इस लेख में हम मधुबनी चित्रकला (Madhubani painting) के बारे में बात करेंगे। जैसे कि मधुबनी चित्रकला क्या है?, इसके कितने प्रकार होते हैं? एवं वर्तमान परिदृश्य इत्यादि।
By Sumanjha1991 – Own work, CC BY-SA 4.0, Link
मधुबनी चित्रकला क्या है?
(What is Madhubani painting?)
मधुबनी चित्रकला (madhubani painting), यह एक लोक कला है इस की उत्पत्ति बिहार के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले से हुई है|
इस चित्र कला का इतिहास अति प्राचीन है ऐसा माना जाता है कि राम-सीता विवाह के समय महिला कलाकारों से इसे बनवाया गया था|
इसे बचाए रखने में महिलाओं की ही अधिक भूमिका रही है, आज भी यह अधिकतर महिलाओं द्वारा ही बनाया जाता है |
मधुबनी चित्रकला कितने प्रकार के होते हैं?
(What are the types of Madhubani paintings?)
मधुबनी चित्रकला को शुरू में विभिन्न संप्रदाय द्वारा बनाया जाता था और बनाए जाने वाली चित्रों को पांच शैलियों में बाँटा गया था, जैसे कि तांत्रिक, कोहबर, भरनी, कटचन, और गोदना।
वर्तमान समय में लगभग सारी शैलियों का एक दूसरे में विलय हो गया हैं। समकालीन कलाकारों द्वारा इसमें और नवीनता लाने का प्रयास किया जा रहा हैं इसीलिए अब ये दीवार, कैनवास, हस्तनिर्मित, कागज एवं कपड़ों पर भी बनाई जाती है।
अधिकतर यह दीवारों पर ही बनाया जाता हैं | दीवारों पर बनाए गए चित्र को भित्ति चित्र कहा जाता है।
भित्ति चित्र को समान्यतया: तीन रूपों में दर्शाया जाता हैं।
1. गोसनी घर (पूजा घर) की सजावट,
2. कोहबर घर (विवाहित जोड़ों का घर) की सजावट,
3. घर की बाहरी दीवारों की सजावट
मधुबनी चित्रकला का उपयोग
(Use of Madhubani painting)
गोसनी घर (पूजा घर) में बनाए गए चित्र धार्मिक महत्व के होते हैं इस प्रकार की धार्मिक चित्र में दुर्गा, राधा-कृष्ण, राम-सीता, शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी आदि का अधिक चित्रण होता है|
कोहबर घर में बनाए गए चित्र कामुक प्रवृत्ति के होते हैं इसमें कामदेव, रति तथा यक्षणियों का चित्रण किया जाता है।
विशेष आयोजन जैसे कि- विवाह, मुंडन या उपनयन आदि में घर के अंदरूनी दीवारों सहित घर के बाहरी दीवारों की भी सजावट की जाती हैं ।
चित्रों की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए पशु-पक्षियों, जानवरों, तथा विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों के चित्र निर्मित किए जाते हैं।
मधुबनी चित्रकला के अन्य रूप
(Other forms of Madhubani painting)
मधुबनी कला का एक अन्य रूप अरिपन चित्र है। यह आंगन में एवं चौखट के सामने जमीन पर निर्मित किए जाने वाले चित्र है।
चावल को पीस कर उसमें आवश्यकतानुसार रंग मिलाकर महिलाएं इसे अपनी हाथों और उंगलियों से बनाती है।
इसमें बनाई जाने वाली जाने वाली चित्र निम्न प्रकार के हैं।
1. देवी-देवताओं के चित्र
2. तांत्रिक प्रतीकों पर आधारित चित्र
3. मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों को दर्शाने वाले चित्र
4. स्वास्तिक, ओम इत्यादि के आकार का चित्र
5. फूल, पेड़ एवं फलों के चित्र।
वर्तमान परिदृश्य
(Current scenario)
आज के समय में व्यवसायिक या फिर अधिक से अधिक लोगों तक इस कला को पहुंचाने के उद्देश्य से कपड़े एवं कागज पर भी चित्रांकन की प्रवृत्ति बढ़ी है।
इन चित्रों में प्रयोग किए जाने वाले रंग अधिकांश वनस्पतियों और घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है जैसे कि हल्दी, केले के पत्ते, पीपल की छाल इत्यादि।
इस चित्रकला में अधिकतर हरा, पीला, नीला, केसरिया, लाल, बैंगनी आदि रंगों का इस्तेमाल होता है।
वर्तमान में इस कला की लोकप्रियता राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब बढ़ रही है, इस कला को संरक्षित करने तथा इस में नवीनता लाने के लिए बहुत सारे नए कलाकारों प्रशिक्षण दिया जा रहा है
इसके लिए कई प्रशिक्षण तथा बिक्री केन्द्रों की स्थापना की गई है। आये दिन राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा रही हैं।
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