नागरिकता एक पहचान है जो हमें विश्व में एक खास स्थान और सुविधाएं प्रदान करता है। इस लेख में हम नागरिकता (Citizenship) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे;
वे लोग जो किसी देश के पूर्ण सदस्य होते है एवं राज्य के प्रति जिसकी निष्ठा होती है उसे नागरिक (Citizen) कहा जाता है। ऐसे लोगों को देश के सभी सिविल और राजनैतिक अधिकार प्राप्त होते हैं।

नागरिकता क्या है?
नागरिकता कोई पृथक अवधारणा नहीं है बल्कि ये राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, मूलभूत नागरिक अधिकार, स्वतंत्रता आदि से जुड़ा हुआ है। क्योंकि एक तरह से देखें तो ”नागरिकता, एक व्यक्ति और एक राज्य के बीच का संबंध ही तो है, जिसमें व्यक्ति का राज्य के प्रति निष्ठा होता है और उस निष्ठा के बदले में राज्य उसे संरक्षण प्रदान करता है।”
जिस समय राजतंत्र था या जिस समय लोकतंत्र नहीं था उस समय भी व्यक्ति और राजा के बीच के संबंध होता था, उस समय भी व्यक्ति को किसी खास संगठन या ग्रुप का हिस्सा बनाया जाता था जहां कि उसे कुछ विशेष प्रकार का अधिकार या कर्तव्य मिलता था। इसीलिए नागरिकता की एक परिभाषा ये भी है कि ”साझा हितों को प्राप्त करने के उद्देश्य से बनाए किसी किसी संगठन की सदस्यता प्राप्त करना नागरिकता है।”
लेकिन धीरे-धीरे आम लोगों द्वारा कुछ मूलभूत नागरिक अधिकारों या व्यक्तिगत अधिकारों की मांग शुरू हो गयी। जिसे कि सत्तापक्ष द्वारा दिया भी गया, जैसे कि ब्रिटेन में 1689 में बिल ऑफ राइट्स लाया गया जिसके तहत राजा की शक्ति को कम कर दिया गया और संसद की शक्ति को बढ़ा दिया गया। साथ ही ढेरों नागरिक अधिकार लोगों को दिया गया।
इसी तरह 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान राष्ट्र राज्य की अवधारणा ने ज़ोर पकड़ी जिसमें साझा संस्कृति, इतिहास एवं भूमिक्षेत्र के आधार पर एक समान पहचान स्थापित करने पर ज़ोर दिया गया।
कहने का अर्थ ये है कि जैसे-जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता या सामूहिक नागरिक स्वतंत्रता में वृद्धि होता गया, वैसे-वैसे राजतंत्र कमजोर हुआ और लोकतांत्रिक मूल्य मजबूत होता गया।
इस तरह से व्यक्ति और राज्य के बीच सम्बन्धों में बदलाव आया क्योंकि अब राज्य एक स्वतंत्र-संप्रभु संगठन के रूप में काम करने लगा और उस संगठन में रहने वाले लोगों पर ये ज़िम्मेदारी आ गयी कि वे अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए एकजुट रहे।
इसके लिए राज्य ने अपने सदस्यों या उस राज्यक्षेत्र के अंतर्गत रहने वाले लोगों को कुछ विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारी दी। इस तरह से ये लोग वहाँ के नागरिक कहलाने लगे क्योंकि इन्हे जो विशेषाधिकार एवं ज़िम्मेदारी प्राप्त है वो इस राज्यक्षेत्र के बाहर के लोगों को प्राप्त नहीं होता। इसीलिए बाहरी लोग विदेशी या एलियन कहलाए।
संक्षिप्त में कहें तो वे लोग जो किसी देश के पूर्ण सदस्य होते है एवं राज्य के प्रति जिसकी निष्ठा होती है उसे नागरिक (Citizen) कहा जाता है। ऐसे लोगों को देश के सभी सिविल और राजनैतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। यहीं अधिकार जब किसी दूसरे देश के नागरिक को नहीं मिलता है तो उसे विदेशी (Foreigner) कहते हैं।
ये विदेशी समान्यतः किसी न किसी देश का नागरिक होता है और उस देश के प्रति उसकी निष्ठा होती है इसीलिए उसके पास उस देश का पासपोर्ट होता है।
उस व्यक्ति को अगर किसी और देश जाना हो तो सामान्यतः पहले उस देश से अनुमति लेनी होती है, जिसे कि वीजा (Visa) कहा जाता है। बगैर या अवैध वीजा एवं पासपोर्ट के अगर कोई किसी और देश में रह रहा है, तो उसे अवैध प्रवासी (Illegal migrant) कहा जाता है।
◾इसके अलावा वे लोग हैं जो युद्ध, हिंसा, संघर्ष या उत्पीड़न से भाग गए हैं और दूसरे देश में सुरक्षा खोजने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर किसी और देश में शरण लेते हैं, शरणार्थी (Refugees) कहलाते है।
तो सामान्यतः कोई व्यक्ति किसी न किसी देश का नागरिक होता है लेकिन कई बार ऐसी स्थिति भी आती है जब कोई व्यक्ति किसी भी देश का नागरिक नहीं होता है, उसे राज्यविहीन (Stateless) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए – भारत में यह नियम है कि यहाँ पैदा होने वाला बच्चा तभी भारत का नागरिक होगा जब या तो उसके माता-पिता दोनों उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो या फिर दोनों में से एक भारत का नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
लेकिन मान लीजिये कि एक पुरुष जो भारत का नागरिक है और दूसरा एक अमेरिकी युवती जो भारत में अवैध तरीके से रह रहा है। अब इन दोनों का अगर बच्चा होता है, तो वो बच्चा न तो अमेरिका का नागरिक होगा और न ही भारत का। यानी कि वो राज्यविहीन (Stateless) है।
UNHCR के आंकड़ों के मुताबिक अभी पूरे विश्व में 1 करोड़ 20 लोग राज्यविहीन है। वहीं शरणार्थी की बात करें तो विश्व में उसकी संख्या 2.5 करोड़ के आसपास है।
यहाँ पर ये बात याद रखिए कि शरणार्थी भी राज्यविहीन हो सकते है लेकिन सभी शरणार्थी राज्यविहीन नहीं होते हैं। ऐसा क्यों, ये आप समझ रहे होंगे।
भारत के संदर्भ में विदेशियों के अधिकार
भारत के संविधान का भाग 3 (अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक) मौलिक अधिकारों के बारे में है। लेकिन इनमें से कुछ अधिकार सिर्फ और सिर्फ भारतीयों के लिए है, यानी कि विदेशियों को निम्नलिखित अधिकार भारत में प्राप्त नहीं हैं।
1. अनुच्छेद 15 के तहत, धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद के विरुद्ध अधिकार; विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि विदेशियों को इन आधारों पर भेदभाव किया जा सकता है।
2. अनुच्छेद 16 के तहत, लोक नियोजन के विषय में समता का अधिकार; विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि सरकारी नौकरियों में विदेशियों के साथ भेदभाव किया जा सकता है।
3. अनुच्छेद 19 के तहत, स्वतंत्रता का अधिकार भी विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि वो हमारे देश में आकर के स्वतंत्रता की उस स्तर को एंजॉय नहीं कर सकता है जो हम करते हैं।
4. अनुच्छेद 29 और 30 के तहत, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार; विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि इन लोगों की भाषा, लिपि या संस्कृति भारत में बची रहे या नहीं रहे इससे हमारे संविधान को कोई मतलब नहीं है।
इसके अलावे ये लोग मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते हैं, चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, इन लोगों को टैक्स भी नहीं देना होता है और देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध भी नहीं रहना होता है। यहाँ ये याद रखिये कि भारतीय मूल के विदेशी को इन सामान्य विदेशियों से अधिक अधिकार मिलते हैं। कैसे? इसे आगे समझाया गया है।
नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान
जैसा कि हम जानते है भारत में एकल नागरिकता (Single citizenship) की व्यवस्था है। यानी कि आप देश के किसी भी भाग से क्यों न हो, आप भारत के ही नागरिक होंगे, उस क्षेत्र विशेष के नहीं।
भारत के संविधान के भाग 2 में नागरिकता का वर्णन है, जिसके तहत अनुच्छेद 5 से 11 तक कुल 7 अनुच्छेद आते है। लेकिन यहाँ याद रखने वाली बात है कि इन अनुच्छेदों में उन्ही लोगों के नागरिकता की चर्चा की गयी है जो आजादी के समय देश के नागरिक बन चुके थे या फिर बनने वाले थे।
इसके बाद जन्मे लोगों के लिए या देश में आने वाले अन्य नए लोगों के लिए नागरिकता की व्यवस्था के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 बनाया गया। जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे पहले संवैधानिक व्यवस्था को समझ लेते हैं।
जिसमें अनुच्छेद 5 से लेकर 8 तक, संविधान लागू होने के दिन तक जिसको-जिसको नागरिकता मिल चुका है, उसके बारे में है।
अनुच्छेद 5 – संविधान के प्रारम्भ पर नागरिकता
भारत में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति भारत के नागरिक तभी होंगे जब वे निम्नलिखित में से कोई एक शर्त पूरा करें – (1) उसका जन्म भारत में होना चाहिए, या (2) उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में होना चाहिए, या (3) संविधान लागू होने के 5 वर्ष पूर्व से वो भारत में रह रहा हो।
| Read in Details – अनुच्छेद 5
अनुच्छेद 6 – पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
अगर कोई व्यक्ति पाकिस्तान से भारत आया हो तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। यदि, उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और यदि वह 19 जुलाई 1948 से पूर्व ही निवास करने के उद्देश्य से भारत आ चुका हो।
| Read in Details – अनुच्छेद 6
अनुच्छेद 7 – भारत से पाकिस्तान गए और फिर से भारत आने वाले व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
एक व्यक्ति जो 1 मार्च 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान चला गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिए लौट आये तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है लेकिन उसे एक प्रार्थना पत्र भारत सरकार को देना होगा और उसके बाद 6 माह तक भारत में निवास करना होगा।
| Read in Details – अनुच्छेद 7
अनुच्छेद 8 – भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
ये उन लोगों के लिए है जिसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों लेकिन वह भारत के बाहर कहीं और मामूली तौर पर निवास कर रहा हो, वह भी भारत का नागरिक बन सकता है। लेकिन उसे नागरिकता के लिए पंजीकरण का आवेदन उस देश में मौजूद भारत के राजनयिक को देना होगा। तो कुल मिलाकर ये वो चार तरह के लोग है जिसे संविधान लागू होने तक नागरिकता दी गई। आइये अब आगे के तीन अनुच्छेदों को समझते हैं।
| Read in Details – अनुच्छेद 8
अनुच्छेद 9 – विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का भारत का नागरिक न होना
वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा जो स्वेच्छा से किसी और देश का नागरिकता ग्रहण कर लेता हो। कहने का अर्थ ये है कि भारत दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता है। अगर कोई व्यक्ति किसी और देश की नागरिकता ग्रहण करता है तो उसे भारत की नागरिकता से वंचित होना होगा।
| Read in Details – अनुच्छेद 9
अनुच्छेद 10 – नागरिकता के अधिकारों का बने रहना
ये अनुच्छेद एक आश्वासन देता है कि जिन लोगों को अनुच्छेद 5, 6, 7, और 8 के तहत नागरिकता दी गई है वे भारत में नागरिक बने रहेंगे। यानी कि ऐसे लोगों से नागरिकता छीनी नहीं जाएगी।
| Read in Details – अनुच्छेद 10
अनुच्छेद 11 – संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना
इस अनुच्छेद के तहत, संसद के पास यह अधिकार है कि नागरिकता अर्जन और समाप्ति या इसी से संबन्धित कोई भी नियम या विधि बना सकती है। कहने का अर्थ ये है कि यह अनुच्छेद संसद को नागरिकता के संबंध में कानून बनाने की शक्ति देता है।
| Read in Details – अनुच्छेद 11
अनुच्छेद 5 से 11 तक का संवैधानिक प्रावधान बस यही है। जाहिर है इसमें भविष्य में नागरिकता को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि ये संविधान के लागू होने के समय के परिस्थितियों पर ही फोकस करता है। इसीलिए नागरिकता से संबन्धित सारी कमियों को दूर करने के लिए 1955 में नागरिकता अधिनियम लाया गया। नागरिकता के संबंध में ये सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, इसीलिए इसे समझना बहुत जरूरी है।
नागरिकता अधिनियम 1955 (Citizenship Act 1955)
इस अधिनियम में 18 धाराएँ हैं जिसमें से धारा 3 से लेकर 7 तक भारत की नागरिकता प्राप्त करने के क्रमशः 5 तरीके बताए गए हैं, जो कि निम्नलिखित है –
1. जन्म के आधार पर (By birth)
2. वंश के आधार पर (By descent)
3. पंजीकरण के द्वारा (By registration)
4. प्राकृतिक तौर पर (Naturally)
5. क्षेत्र समाविष्ट के आधार पर (On the basis of area comprised)।
1. जन्म के आधार पर नागरिकता (Citizenship by birth)
ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जन्म के आधार पर भारत का नागरिक होगा जिसका जन्म भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात किन्तु 1 जुलाई 1987 से पूर्व हुआ है।
इसका मतलब ये है कि उपरोक्त समय अंतराल में भारत Jus Soli के सिद्धांत पर चलता था यानी कि कोई भी बच्चा अगर भारत की भूमि पर जन्म लेगा वो भारतीय नागरिकता का अधिकारी होगा।
आप उस देश के नागरिक है या नहीं इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता है अगर आपका बच्चा वहाँ जन्म लेता है तो उसे वहाँ की नागरिकता मिल जाएगी। इसी सिद्धांत पर अमेरिका भी चलता है।
भारत में इस व्यवस्था से अवैध प्रवासी की समस्या और गंभीर होती चली गई (खासकर के बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के संदर्भ में), इसीलिए 1986 में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया और उसमें एक शर्त को जोड़ दिया गया।
यानी कि 1 जुलाई 1987 के बाद जन्म के आधार पर किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता तभी मिलेगी, जब उस व्यक्ति के जन्म के समय उसके माता या पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
लेकिन आगे चलकर ये भी नाकाफ़ी साबित हुई और 2003 में नागरिकता अधिनियम 1955 में एक और संशोधन के जरिये इसमें कुछ शर्ते जोड़ दी गई।
यानी कि इस संशोधन के लागू होने के बाद से (2004 से लागू हुआ) अब कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर भारत का नागरिक तभी बन सकता है जब उसके जन्म के समय (1) उसके माता-पिता दोनों भारत का नागरिक हो, या (2) उसके माता- पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
2. वंश के आधार पर नागरिकता (Citizenship by Descent)
26 जनवरी 1950 को या उसके बाद लेकिन 10 दिसम्बर 1992 के पूर्व भारत के बाहर पैदा हुआ कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत का नागरिक होगा, यदि उसके जन्म के समय उसके पिता भारतीय नागरिक है।
लेकिन जन्म लेने वाले बच्चे का पिता अगर केवल वंश के आधार पर भारतीय नागरिक है तो फिर उसके बच्चे को 1 साल के भीतर उस देश में स्थित भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। (इसे Jus Sanguinis का सिद्धांत कहा जाता है।)
यहाँ पर एक समस्या ये थी कि बच्चे की नागरिकता के लिए पिता का भारतीय नागरिक होना जरूरी था। इसीलिए जब जनवरी 1992 में महिला आयोग का गठन हुआ तो इसने इस बात को उठाया।
परिणामस्वरूप, 1992 में नागरिकता अधिनियम (धारा 4) 1955 में संशोधन करके ये प्रावधान कर दिया गया कि अब 10 दिसम्बर 1992 को या उसके बाद भारत के बाहर पैदा हुआ कोई बच्चा भारत का नागरिक होगा, यदि उसके माता या पिता में से कोई उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो।
लेकिन जन्म लेने वाले बच्चे का माता या पिता अगर केवल वंश के आधार पर भारतीय नागरिक है तो फिर उसके बच्चे को 1 साल के भीतर उस देश में स्थित भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।
हालांकि 2003 में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया और अब ये व्यवस्था ये है कि 3 दिसम्बर 2004 के पश्चात भारत के बाहर पैदा हुए किसी भी बच्चे को वंश के आधार पर नागरिकता तब तक नहीं मिलेगा जब तक कि जन्म से एक वर्ष के भीतर उस देश में स्थिति भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन न करवाया हो। (उसके माता या पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारतीय नागरिक होना ही चाहिए)
3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by registration)
केंद्र सरकार किसी आवेदन प्राप्त होने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी वैध प्रवासी को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कर सकती है, यदि वह निम्नलिखित में से किसी भी एक श्रेणी में आता है-
(1) भारतीय मूल का वह व्यक्ति रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने के 7 वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर पर निवासी है;
लेकिन शर्त ये है कि – वह रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के पहले के ठीक 1 वर्ष की सम्पूर्ण अवधि में भारत में रहा हो, और इस 1 साल के पहले के 8 सालों में से कम से कम 6 साल की अवधि भारत में निवास किया हो।
यही उपरोक्त प्रावधान तब भी लागू होता है, जब कोई व्यक्ति भारत के किसी नागरिक से विवाहित है।
(2) भारतीय मूल का वह व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी अन्य देश में रह रहा हो।
(3) भारत के नागरिक के नाबालिग बच्चे।
(4) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा उसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो।
(5) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा उसके माता या पिता में से कोई पहले स्वतंत्र भारत का नागरिक था और रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के ठीक 1 वर्ष पूर्व से भारत में मामूली तौर पर निवासी हो।
(6) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा भारत सरकार द्वारा जारी किए गए OCI कार्ड को पिछले 5 वर्ष से धारण कर रहा हो और रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के ठीक 1 वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर पर निवास कर रहा हो।
कुल मिलाकर आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर कोई बच्चा भारत के बाहर पैदा हुआ हो और उसने वंश के आधार पर जन्म से एक साल के भीतर भारत की नागरिकता नहीं ली और जवान होने के बाद उसे भारत की नागरिकता लेने का मन कर रहा है तो वह इस तरीके को अपना सकता है।
▪️ उपरोक्त सभी श्रेणियों के लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हो जाने के बाद निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती है।
4. प्राकृतिक रूप से नागरिकता (Citizenship by naturalisation)
भारत सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति को प्राकृतिक तौर पर नागरिकता प्रदान कर सकती है बशर्ते कि वह अवैध प्रवासी न हो, और निम्नलिखित योग्यताएँ रखता हो:
(क) वह व्यक्ति ऐसे किसी देश से संबन्धित न हो, जहां भारतीय नागरिक प्राकृतिक रूप से नागरिक नहीं बन सकते।
(ख) यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक हो तो भारतीय नागरिकता प्राप्त होने पर उसे उस देश की नागरिकता का त्याग करना होगा।
(ग) यदि कोई व्यक्ति भारत में रह रहा हो और नागरिकता संबंधी आवेदन देने के कम से कम 1 वर्ष पूर्व से भारत में लगातार निवास कर रहा हो और इस 1 वर्ष के पहले के 14 वर्षों में से कम से कम 11 वर्ष भारत में रहा हो।
(घ) उसका चरित्र भारत सरकार की नजर में अच्छा होना चाहिए और संविधान के आठवीं अनुसूची में उल्लिखित किसी भाषा का अच्छा ज्ञाता होना चाहिए।
हालांकि भारत सरकार चाहें तो उपरोक्त शर्तों में ढील दे सकती है या फिर सभी शर्तों को ही नजरंदाज कर सकती है यदि व्यक्ति किसी विशेष सेवा जैसे, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति या मानव उन्नति आदि से संबद्ध हो।
▪️ इस तरह से नागरिक बने व्यक्तियों को भी भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होती है।
5. क्षेत्र समाविष्ट के आधार पर नागरिकता (Citizenship by incorporation of territory)
किसी भी विदेशी क्षेत्र का जब भारत के द्वारा अधिग्रहण किया जाता है तो उस क्षेत्र विशेष के अंदर रह रहें लोगों को भारत की नागरिकता दी जाती है। जैसे कि जब पॉण्डिचेरी और गोवा को भारत में शामिल किया गया तो उसके लोगों को भारत की नागरिकता दी गयी।
▪️ ये तो था नागरिकता अर्जन करने का तरीका जिसे कि नागरिकता अधिनियम 1955 के धारा 3 से लेकर 7 तक वर्णित किया गया है। इसी तरह से धारा 8, 9 और 10 नागरिकता समाप्ति से संबन्धित है जिसे कि क्रमशः नीचे व्याख्यायित (Explained) किया गया है।
नागरिकता समाप्ति के प्रावधान (Provisions for termination of citizenship)
1. स्वैच्छिक त्याग (Voluntary renunciation)
नागरिकता अधिनियम धारा 8 के अनुसार, पूर्ण आयु और क्षमता प्राप्त कोई भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता छोड़ना चाहे तो छोड़ सकता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति ऐसे समय में भारतीय नागरिकता छोड़ने की घोषणा करता है जब भारत किसी युद्ध में लगा हुआ हो, तो उसका रजिस्ट्रीकरण तब तक निर्धारित रखा जाएगा जब तक केंद्रीय सरकार निदेश नहीं दे देती।
2. बर्खास्तगी के द्वारा (By Termination)
धारा 9 के अनुसार, यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं बर्खास्त हो जाएगी। लेकिन जब भारत किसी युद्ध में लगा हुआ हो, तो उसका रजिस्ट्रीकरण तब तक निर्धारित रखा जाएगा जब तक केंद्रीय सरकार निदेश नहीं दे देती।
3. वंचित करने द्वारा (By depriving)
केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता से वंचित कर देगा, यदि;
(1) नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी हो,
(2) यदि नागरिक ने संविधान के प्रति अनादर जताया हो,
(3) यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर- कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो,
(4) पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पाँच वर्ष के दौरान नागरिक को किसी देश में दो वर्ष की कैद हुई हो,
(5) नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर सात वर्षों से रह रहा हो।
विदेशी भारतीय_नागरिकता (Overseas Citizen of India)
भारतीय मूल के व्यक्तियों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा कुछ योजनाएँ शुरू की गई ताकि वो किसी और देश के नागरिकता को छोड़े बिना भी भारतीय नागरिकता के बहुत सारे अधिकारों को एंजॉय कर सके। इसके लिए नागरिकता अधिनियम 1955 में ही संशोधन करके धारा 7क, धारा 7ख, धारा 7ग एवं धारा 7घ को सम्मिलित किया गया। तो विदेशी भारतीय नागरिकता क्या है, इसके क्या लाभ है, कौन लाभ उठा सकता है इत्यादि बातों को जानने के लिए इस लेख को पढ़ें↗️
Citizenship Practice Quiz
↗️INDIAN CITIZENSHIP ONLINE FORMS
↗️Consular Services, Passport Services & Visa Services
↗️Citizenship FAQs – Hindi, English
↗️Important Acts & Rules
NRI और भारतीय मूल के विदेशी व्यक्ति में अंतर
नागरिकता अधिनियम 1955 (संशोधन सहित)↗️
मूल संविधान भाग 2 नागरिकता↗️
विकिपीडिया – Indian nationality law↗️