नैनो टेक्नोलॉजी को भविष्य का टेक्नोलॉजी कहा जाता है क्योंकि इस अकेले क्षेत्र में इतनी क्षमता है कि ये भविष्य की दिशा और दशा तय कर सकता है।
इस लेख में हम नैनो टेक्नोलॉजी पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके अनुप्रयोग को समझने की कोशिश करेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें;

नैनो टेक्नोलॉजी क्या है?
नैनो टेक्नोलॉजी को जानने से पहले नैनो को जानना जरूरी है, नैनो का मतलब होता है 10-9 मीटर अर्थात एक मीटर का 1 अरबवां हिस्सा।
इसी आकार के पदार्थों का अध्ययन, उसका अनुप्रयोग तथा इससे जुड़ी तकनीकों को नैनो प्रौद्योगिकी या टेक्नोलॉजी कहा जाता है।
इसपे अध्ययन के दौरान वैज्ञानिको ने पाया कि बहुत सारे पदार्थों के नैनो स्तर पर, आकारगत भिन्नता के साथ-साथ गुणात्मक भिन्नता भी पायी जाती है।
इसका क्या मतलब है – आइये इसे एक उदाहरण से समझते है। सोना को एक अक्रिय धातु माना जाता है यानी कि यह किसी रसायनिक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता है,
किन्तु नैनो स्तर पर वह एक आदर्श उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। यानी कि रसायनिक अभिक्रिया को तेज या धीमा कर देता है। है न दिलचस्प!
नैनो के प्रयोग से किसी वस्तु के व्यवहार तथा रसायनिक प्रतिक्रिया की क्षमता तथा पदार्थ की गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है। इसके इसी प्रकार के गुण ने इसे आज एक शोध का प्रमुख विषय बना दिया है। तथा इसमें छिपी असीमित संभावनाओं को खोज निकालने के लिए वैज्ञानिकों को विवश कर दिया है।
अगर एक उदाहरण दूं कि नैनो टेक्नोलॉजी क्या कर सकता है तो सोचिए कि अगर आपके पास एक चाकू है और आपको अभी एक थाली की जरूरत है,
आपने बस एक कमांड दिया और वो थाली में बदल गया। आपको एक मोबाइल स्टैंड की जरूरत है तो वो उसमें बदल गया।
ऐसे ही न जाने कितने चीजों में आप इसे जरूरत के हिसाब से ढाल सकते हैं। हालांकि इस प्रकार के टेक्नोलॉजी से इंसान अभी काफी दूर है पर इतनी दूर नहीं की वहाँ तक पहुंचा न जा सकें ।
नैनो टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग
कार्बोन नैनो ट्यूब
ये ताप दाबित ग्राफिन परतों की विस्तारित नालिकाएं होती है। (ग्राफीन कार्बन का एक अलॉट्रोप या अपरूप है जो द्वि-आयामी हेक्सागोनल जाली में परमाणुओं की एकल परत के रूप में होता है जिसमें प्रत्येक परमाणु एक शीर्ष बनाता है।) आप इसे इस चित्र में देख सकते है कि ये कैसा होता है।

ये अपनी भौतिक एंव रसायनिक विशेषताओं के कारण हीरे से भी अधिक कठोर होने के बावजूद अत्यंत लचीली होती है, साथ ही विद्युत की सुचालक भी होती है। ग्राफिन का इस्तेमाल आजकल टच स्क्रीन तथा बुलेट प्रूफ जैकेट के रूप में किया जाता है।
नैनो रोबॉट्स
नैनो रोबॉट्स बहुत छोटे कण 0.5 से 3 मिक्रोमीटर के रोबोट होते है जो कि ऐसे कल पुर्जों से बने होते है, जिनका आकार 1 से 100 नैनो मीटर तक होता है।
इसमें कार्बन की नैनो नलिकाओं का उपयोग कर एलेक्ट्रोनिक चिप्स बनाए जाते हैं। इन रोबॉट्स को शरीर के अंदर रक्तवाहिनीयों आदि में आसानी से इंजेक्ट किया जा सकता है।
इन नैनो रोबोटों से फायदा ये होगा कि बगैर किसी एंटिबायोटिक का इस्तेमाल किए, रोगाणुओं से मुक्ति दिलाई जा सकेगी।
ऐसे नैनो रोबॉट्स शरीर की सामान्य प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि कर सकते है। बाहर से जैसे ही कोई अनचाहा रोगाणु प्रवेश करेगा तो ऐसे नैनो रोबॉट्स उसके प्रभाव को समाप्त कर सकेंगी ।
सोचिये कि अगर आपके पास नैनो टेक्नोलॉजी से युक्त एक माउथवाश हो तो आप बस उसे मुह में लेंगे और वो नैनो रोबॉट्स का इस्तेमाल कर रोगजनक बैक्टीरिया को तो नष्ट कर ही देंगे, लेकिन वहीं दूसरी ओर हानिरहित व सामान्य जीवाणुओं को हानि पहुंचाएँ बिना बचाये भी रखेंगे।
नैनो मेडिसिन
नैनो टेक्नोलॉजी का उपयोग मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में किया जा सकता है। ये दवाएं केवल अपने लक्ष्य पर प्रहार कर सकती हैं, अन्य अंगों पर इसका कोई कुप्रभाव नहीं होगा।
ऐसी क्रीम का भी परीक्षण किया जा चुका है जिसमें नैनो रोबॉट्स होते हैं। इस क्रीम में उपस्थित नैनो रोबोटों की सहायता से मृत व खराब त्वचा, पिंपल्स तथा बेकार के तैयार पढ़ार्थ को हटाकर त्वचा में अच्छी सौंदर्यता प्रदान करने वाले पदार्थों को डाला जा सकता है।
इस प्रकार भविष्य में मेकअप की सामाग्री भी नैनो टेक्नोलॉजी के द्वारा उत्पादित हो सकेगी। वर्तमान समय में नैनो मैडिसिन का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग कैंसर के इलाज़ के लिए हो रहा है।
कैंसर उपचार में नैनो का उपयोग
कीमोथेरेपी से कैंसर रोग के निदान में नैनो टेक्नोलॉजी आदर्श साबित हो सकती है। इसके माध्यम से कीमोथेरेपी में जान डाली जा सकती है।
इसके द्वारा केन्द्रित एवं नियंत्रित कीमोथेरेपी की डोज़ रोगी को दी जा सकती है। यह डोज़ व्यक्ति की सहनशक्ति के अनुरूप दिमागी एवं शारीरिक क्षमता को देखते हुए दी जा सकती है, ताकि स्वस्थ कोशिकाओं को बिना क्षति पहुंचाए इससे इलाज संभव हो सकें।
क्वांटम डॉट्स
अर्धचालक यानी कि सेमी कंडक्टर कणों को छोटा आकार देने पर उसमें, क्वान्टम प्रभाव आ जाता है। इस कारण ऊर्जा सीमित हो जाती है तथा इलेक्ट्रॉन और उतनी ही खाली जगह किसी कण में बनी रहती है।
इस तरह मात्र आकार को नियंत्रित कर ऐसे कणों का निर्माण किया जा सकता है जो प्रकाश के विशिष्ट तरंग दैर्ध्य को अवशोषित कर सकते हैं।
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