इस लेख में हम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes) पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इससे संबंधित अन्य तथ्यों पर भी गौर करेंगे।
आरक्षण प्राप्त करने वाला यह सबसे बड़ा वर्ग है, और अब तो इसे संविधान के तहत ला दिया गया है। तो इस लेख को अंत तक पढ़ें, एवं संबंधित अन्य आयोगों पर लिखे लेखों को भी पढ़ें। साथ ही हमारे फ़ेसबुक पेज़ को लाइक अवश्य करें।
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पिछड़ा वर्ग (Backward Class) कौन है?
अनुच्छेद 342 ‘क’ के तहत इसकी व्याख्या की गई है कि पिछड़ा वर्ग (BC) कौन है या होंगे।
अनुच्छेद 342 ‘क’ कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से ऐसे पिछड़े वर्गों को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग समझा जाएगा।
(2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा किसी सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग को, खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी।
Q. पिछड़े वर्गों (BC) के लिए आयोग बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
पिछड़ा वर्ग या जिसे हम आमतौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कहते हैं; के तहत एक ऐसे वर्ग को चिन्हित किया जाता है जिसे कि अपेक्षाकृत अस्पृश्यता का सामना नहीं करना पड़ा और आदिवासी की तरह मुख्य समाज से समान्यतः दूर भी नहीं रहना पड़ा, फिर भी किन्ही वजहों से वे सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े ही रहे। इसे Other Backward Class या अन्य पिछड़ा वर्ग कहा ही इसीलिए जाता है, क्योंकि एससी एवं एसटी को छोड़ कर ये ऐसे लोग है जो कि पिछड़ा (backward) है।
यहाँ ये याद रखिए कि एससी एवं एसटी भी पिछड़ा वर्ग ही है लेकिन मंडल आयोग के सिफ़ारिशों को मानने के बाद से पिछड़े समुदाय के एक अलग वर्ग को चिन्हित किया गया, जिसे कि अन्य पिछड़ा वर्ग कहा गया। और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग इन्ही समुदायों के लोगों को चिन्हित कर उसे लिस्ट में शामिल करने एवं बाहर करने का काम मुख्य रूप से करता है।
आइये इसे थोड़े विस्तार से समझते हैं।
भारत के संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को प्राप्त करना है। सामाजिक न्याय प्रदान करने के इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए ढेरों नीतियाँ अपनाई गई है। संविधान का अनुच्छेद 14 राज्य को सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों का समान संरक्षण प्रदान करने का आदेश देता है। अनुच्छेद 15 और 16 में “समानता के अधिकार” के सिद्धांत को सकारात्मक कार्रवाई के संदर्भ में स्थापित किया गया है।
अनुच्छेद 15 (1), किसी भी नागरिक के भेदभाव को रोकता है और अनुच्छेद 15 के खंड (4 एवं 5) के तहत, राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश के मामले में विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 16 के माध्यम से सार्वजनिक रोजगार के मामले में अवसर की समानता घोषित करने का विशेष ध्यान रखा गया है। और इसी अनुच्छेद के खंड (4) घोषित करता है कि इस अनुच्छेद में कुछ भी राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों में आरक्षण के लिए कोई प्रावधान करने से नहीं रोकेगा, जो कि राज्य की राय में, राज्य के तहत सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए मंडल आयोग का गठन किया गया। उनकी ही सिफारिशों पर भारत सरकार ने केंद्रीय पदों और सेवाओं में पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण प्रदान किया।
सुप्रीम कोर्ट ने 16-11-1992 के इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले में, 27 % आरक्षण को हरी झंडी दे दी लेकिन सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उन्नत व्यक्तियों के लिए ‘क्रीमी लेयर‘ के कॉन्सेप्ट का प्रतिपादन किया।
इसके लिए कोर्ट ने यह भी निदेशित किया कि केंद्र एवं राज्यों के स्तर पर एक स्थायी आयोग या ट्रिब्यूनल की स्थापना की जानी चाहिए जो कि लिस्ट में पिछड़े वर्ग को शामिल कर सकने या बाहर करने से संबन्धित सलाह सरकार को दे सकेगी।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश के अनुसरण में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 अधिनियमित किया। और इसके तहत केंद्र में एक राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई जो कि 24 अप्रैल 1993 को प्रभावी हुआ।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग एवं उसका संगठन
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) का गठन शुरू में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 1993 के तहत किया गया था। 2016 तक आयोग का 7 बार पुनर्गठन किया जा चुका था। फिर आगे चलकर अगस्त 2018 में सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 को निरस्त कर दिया। और 102वें संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से संविधान में अनुच्छेद 338 ‘ख’ और अनुच्छेद 342 ‘क’ जोड़ा गया। इस आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
अनुच्छेद 338 ‘ख’ के तहत वर्तमान आयोग (8वें) को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। यह अनुच्छेद कहता है कि सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग होगा जो कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के नाम से जाना जाएगा।
आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा नियुक्त किया जाता है। हालांकि आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति होती है।
आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं और ये भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत काम करता है। और इनके सेवा शर्तों एवं पदावधि का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
आयोग के कार्य
अनुच्छेद 338 ‘ख’ का 5वां क्लॉज़ आयोग के कर्तव्य को व्याख्यायित करता है;
1. इस संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी भी आदेश के तहत सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी करना और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करना।
2. सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच पड़ताल करना।
3. सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना और संघ और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
4. राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य समय पर जब आवश्यक हो; रिपोर्ट देना।
5. ऐसी रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में सिफारिशें करना जो संघ या किसी राज्य द्वारा सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उन सुरक्षा उपायों और अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए किए जाने चाहिए।
- आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति, इस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन में रखवाता है।
- अगर रिपोर्ट या उसका कोई भाग ऐसे विषय से संबंधित है, जिसका संबंध राज्य से है तो उसका एक प्रति राज्य के राज्यपाल को भी भेजा जाएगा, जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।
6. सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के संरक्षण, कल्याण और विकास और उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जैसा कि राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, नियम द्वारा निर्दिष्ट करें।
आयोग की शक्तियाँ
अनुच्छेद 338 ‘ख’ का 8वां क्लॉज़ राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के शक्तियों को व्याख्यायित करता है; जिसके अनुसार, जब आयोग किसी कार्य की जांच पड़ताल कर रहा हो या किसी शिकायत की जांच कर रहा हो तो, इसे दीवानी न्यायालय (civil court) की शक्तियाँ प्राप्ति होंगी, अर्थात;
- भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
- किसी दस्तावेज़ को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
- शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
- किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना;
- दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
- कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति द्वारा, अवधारित किया जाए।
यहाँ ये याद रखिए कि अनुच्छेद 338 ‘ख’ (9) में लिखा हुआ है कि संघ और प्रत्येक राज्य सरकार सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।
नया आयोग अपने पुराने स्वरूप से किस प्रकार अलग है?
» नए अधिनियम ने यह स्वीकार किया है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण के अलावा विकास की भी आवश्यकता है। पिछले आयोग को पिछड़ी जातियों को लिस्ट में जोड़ने एवं घटाने जैसे कामों तक सीमित रखा गया था। जबकि नए आयोग को पिछड़े वर्गों की शिकायतों के निवारण का अतिरिक्त कार्य सौंपा गया है।
» इसके अलावा अनुच्छेद 342 (क) पिछड़े वर्गों की सूची में किसी भी समुदाय को शामिल करने या हटाने के लिये संसदीय
सहमति की अनिवार्यता को अधिक पारदर्शी बनाता है।
पिछड़े वर्ग के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपाय
पिछड़ी वर्ग के लिए संविधान में ऐसे ढेरों प्रावधान है जो कि उनके हितों की रक्षा बहुआयामी तरीके से करता है; यथा:
अनुच्छेद 15(4 एवं 5) :- इसके तहत अनुच्छेद 29(2) या अनुच्छेद 19 (1) (g) में लिखित बातों के बावजूद भी राज्य द्वारा सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के पक्ष में सकारात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
अनुच्छेद 29:- इसके तहत सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग को अपनी भाषा, संस्कृति या लिपि आदि को बनाए रखने का अधिकार मिलता है।
अनुच्छेद 46:– इसके तहत सरकार का ये कर्तव्य है कि वे अपनी नीति इस तरह से बनाए कि राज्य के दुर्बल वर्गों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों की संवृद्धि हो सके।
अनुच्छेद 350:- इसके तहत, अपने व्यथा के निवारण के लिए किसी व्यक्ति को, राज्य के किसी अधिकारी के पास, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाले किसी भी भाषा में अभ्यावेदन (representations) देने का अधिकार है।
अनुच्छेद 350 ‘क’ :- इसके तहत भाषायी अल्पसंख्यक अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा दे सकता है। और ये राष्ट्रपति का कर्तव्य है कि इस तरह की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निदेश दें।
अनुच्छेद 350 ‘ख’ :- इसके तहत भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए एक राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्त करेगा, जो कि इनके रक्षोपायों से संबंधित विषयों का अन्वेषन करेगा और उसे राष्ट्रपति को सौंपेगा, ताकि राष्ट्रपति उसे संसद या राज्य विधानमंडल के समक्ष रखवा सके।
अनुच्छेद 23 :- यह अनुच्छेद मानव दुर्व्यापार (human trafficking) एवं बलात श्रम (Forced labor) से बचाता है।
इसके साथ ही पदों, नियुक्तियों एवं प्रोन्नति में आरक्षण के माध्यम से भी इनको सशक्त करने की कोशिश की गई है। ये आरक्षण किस तरह से काम करता है इसके लिए आप नीचे दिये गए लेख को पढ़ सकते हैं।
समापन टिप्पणी
जिस पिछड़े वर्ग का जनसंख्या शेयर लगभग 50 प्रतिशत हो उसके आयोग को संवैधानिक दर्जा देना एवं उसके जिम्मेदारियों को बढ़ाना एक अच्छा कदम है। इस आयोग ने कई पिछड़ी जातियों एवं उप-जातियों को चिन्हित किया है जिससे कि अब पिछड़ी जातियों की संख्या 5 हज़ार से अधिक हो चुकी है।
पर फिर भी कुल मिलाकर देखें तो सामाजिक न्याय की दिशा में इसका काम बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रहा है। और नए आयोग से भी ऐसा ही अपेक्षा रखा जा रहा है, इसके कई कारण है जैसे कि इनकी सिफ़ारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी न होना।
आपको पता होना चाहिए की आयोग की एक सिफ़ारिश ऐसी भी है जो कि ओबीसी को ‘पिछड़े (backward)’, ‘अधिक पिछड़े (more backward)’ और ‘अत्यंत पिछड़े (extremely backward)’ ब्लॉकों में उप-विभाजन, और उनकी आबादी के अनुपात में 27 प्रतिशत कोटा को विभाजित करने की बात करता है। इससे फायदा ये होता कि ओबीसी में भी जो सक्षम है उसे आरक्षण से हतोत्साहित किया जा सकता था।
आरक्षण जैसे मुद्दे आमतौर पर राजनीतिक फायदे एवं नुकसान के नजरिए से देखा जाता है उसी परिपेक्ष्य में इन आयोगों का गठन किया जाता है। और ये आयोग बहुत ज्यादा कुछ बदल सकने की स्थिति में नहीं होता है। इसके लिए बहुत कुछ किया जा सकता है जैसे कि सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के निष्कर्षों और आयोग की सिफारिशों संबंधी जानकारी सार्वजनिक डोमेन पर रखा जा सकता है ताकि पिछड़ी जातियों के मुद्दे पर एक स्वस्थ बहस शुरू हो सके और आयोग सही दिशा में आगे बढ़ सके। इसके अलावा वोट बैंक की राजनीति के स्थान पर मूल्य आधारित राजनीति के मार्ग का अनुसरण किया जा सकता है, इत्यादि।
कुल मिलाकर यही है राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, उम्मीद है समझ में आया होगा। नीचे कुछ अन्य आयोगों का लिंक दिया हुआ है उसे भी अवश्य पढ़ें साथ ही आरक्षण को अवश्य समझें।
आरक्षण : आधारभूत समझ | [1/4] |
आरक्षण का संवैधानिक आधार | [2/4] |
आरक्षण का विकास क्रम | [3/4] |
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम | [4/4] |
⚫ Other Important Articles ⚫
References,
http://www.ncbc.nic.in/Writereaddata/Gazette11.08.2018.pdf
https://en.wikipedia.org/wiki/National_Commission_for_Backward_Classes
http://www.ncbc.nic.in/Writereaddata/AR%202014-15%20English%20RIDKPandey635872590642880226.pdf
https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf