इस लेख में हम राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इससे संबंधित अन्य सभी महत्वपूर्ण तथ्यों पर भी गौर करेंगे।

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राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग National Commission for Scheduled Tribes
NCST Image by macrovector on Freepik
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| अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) कौन है?

भारत में अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) स्वदेशी या आदिवासी समुदाय हैं जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक विशेषताओं के कारण सामाजिक और आर्थिक हाशिए, भेदभाव और अलगाव का सामना करना पड़ा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: अनुसूचित जनजातियाँ, जिन्हें आदिवासी या फिर वनवासी भी कहा जाता है, भारत के मूल निवासी माने जाते हैं। उनकी अपनी अनूठी भाषाएं, रीति-रिवाज और परंपराएं हैं और वे ऐतिहासिक रूप से दूरदराज और जंगली इलाकों में निवास करते हैं और प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं।

Schedule Tribe नाम अंग्रेजों का दिया हुआ नाम है, जिसे आजादी के बाद भी बरकरार रखा गया।

इन समुदायों को विशेष सुरक्षा और सकारात्मक कार्रवाई प्रदान करने के लिए भारत के संविधान के तहत आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजातियों (ST) के रूप में मान्यता दी गई है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अनुसार भारत में 700 से अधिक अनुसूचित जनजातियाँ हैं। इसके अलावा, जनजातीय मामलों का मंत्रालय देश भर के 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups) के वर्गीकरण में आने वाली 75 जनजातियों की एक सूची जारी करता है।

अनुसूचित क्षेत्र: भारत में महत्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले कुछ क्षेत्रों को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत “अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Area)” के रूप में नामित किया गया है। इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा के लिए स्थानीय स्वशासन और भूमि अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान हैं।

संवैधानिक मान्यता: भारतीय संविधान अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा और उत्थान की आवश्यकता को मान्यता देता है। अनुच्छेद 342 के तहत इसकी व्याख्या की गई है कि अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है या होंगे।

Q. संविधान के अनुसार अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है?

अनुच्छेद 342 कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों (castes), मूलवंशों (races) या जनजातियों (Tribes) या उसके भाग या उनके समूह को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजाति (ST) समझा जाएगा। 

(2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति को या उसके भाग को या उसके समूह को, खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) अनुसूचित जनजाति को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी। 

Visit – Schedule Tribe List↗

Q. अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

अनुसूचित जनजाति (ST) का आशय समाज के उन समुदाय या जातियों से है जो कि किन्ही वजहों से मुख्य समाज से दूर जंगलों या पहाड़ों पर रहते हैं और आदिकालीन संस्कृति (primitive culture) को अपनाते हैं। हम आपतौर पर इसे आदिवासी (Aboriginal) या खानाबदोस (nomadic) भी कहते हैं।

संविधान निर्माताओं ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि देश में कुछ समुदाय को आदिम कृषि प्रथाओं, बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण और भौगोलिक अलगाव, उनके हितों की रक्षा और उनके त्वरित सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन समुदायों को संविधान के अनुच्छेद 342 में निहित प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया।

स्वतंत्र भारत में इन समुदाय या जाति के लोगों को समाज के मुख्य धारा में लाया जा सके, और इन्हे शोषण एवं असमानता आदि से बचाया जा सके; इसके लिए जरूरी था कि इन लोगों के हित के लिए चिंता करने वाला एक अलग से आयोग या विभाग सरकार में हो। इसी संदर्भ में अनुसूचित जनजाति आयोग (Scheduled Tribes Commission) का गठन किया गया।

| राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग क्या है?

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST), एक संवैधानिक निकाय है, जिसे अनुसूचित जनजातियों के शोषण के खिलाफ उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया।

  • यह एक संवैधानिक निकाय है क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 ‘क’ इसकी व्याख्या करते हुए कहता है कि – अनुसूचित जनजातियों के लिए एक आयोग होगा जो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के नाम से ज्ञात होगा।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs), भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र के तहत आता है।

आयोग का इतिहास (History of the Commission):

मूल रूप से संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों (दोनों) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध करता था, जिसका मुख्य काम था अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबन्धित सभी मामलों का निरीक्षण करना तथा उनसे संबन्धित प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करना।

अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों (दोनों) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति 18 नवम्बर 1950 को किया गया। समय के साथ अनुच्छेद 338 में उल्लिखित SC व ST के लिए एक विशेष अधिकारी के स्थान पर बहु-सदस्यीय आयोग की जरूरत महसूस की गई।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (दोनों) के लिए पहला बहु-सदस्यीय आयोग अगस्त 1978 में स्थापित किया गया।

यह व्यापक नीतिगत मुद्दों और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विकास के स्तरों पर सरकार को सलाह देने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर के सलाहकार निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। इसमें एक अध्यक्ष था और विशेष अधिकारी सहित 4 अन्य अधिकारी था।

लेकिन यह एक गैर-सांविधिक निकाय था क्योंकि इसे एक संसदीय संकल्प के द्वारा बनाया गया था। यहाँ से एक अजीब स्थिति बन गई, स्थिति ऐसी थी कि जो विशेष अधिकारी या आयुक्त था वो सांविधिक (Statutory) था क्योंकि इसे अनुच्छेद 338 के तहत बनाया गया था वहीं आयोग असांविधिक (Non-Statutory) था क्योंकि इसे एक गृह मंत्रालय के एक संकल्प (Resolution) द्वारा बनाया गया था। और दोनों को लगभग एक ही काम सौंपा गया था।

इस स्थिति से उबरने के लिए 1 सितंबर 1987 को, सरकार ने एससी और एसटी के लिए आयुक्त और एससी और एसटी के लिए आयोग के कार्यों का सीमांकन (demarcation) करने का निर्णय लिया।

यह निर्णय लिया गया कि केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आयुक्त ही राष्ट्रपति को रिपोर्ट (वार्षिक) सौंपेंगे और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग, जिसे कि अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग का नाम दिया गया है, यह अध्ययन का काम करेगा।

यानि कि सरकार के इस निर्णय से, आयोग का नाम बदलकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग हो गया।

आगे चलकर 65वां संविधान संशोधन अधिनियम 1990 द्वारा, राष्ट्रीय स्तर की एक बहुसदस्यीय संवैधानिक निकाय की स्थापना की गई, जिसे कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के नाम से जाना गया।

इस तरह से 1987 में एक संकल्प के द्वारा जो आयोग गठित किया गया था उसे इस नए बने संवैधानिक आयोग से प्रतिस्थापित (Replace) कर दिया गया।

12 मार्च 1992 में पहला संवैधानिक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग अस्तित्व में आया। और इसी दिन से SC एवं ST के लिए जो आयुक्त का पद था वो भी समाप्त हो गया।

साल 1999 में अनुसूचित जनजाति को, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र से अलग कर एक नए मंत्रालय ‘जनजातीय कल्याण मंत्रालय (Ministry of Tribal Welfare)’ को सौंप दिया गया।

आगे, 2003 के 89वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (अनुच्छेद 338’क’ के अंतर्गत) नामक दो नए आयोग बना दिये गए।

कुल मिलाकर, साल 2004 से पृथक, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) अस्तित्व में आया।

अन्य राष्ट्रीय आयोग जैसे राष्ट्रीय महिला आयोग 1992, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग 1993 , राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग 2007, आदि संवैधानिक आयोग न होकर सांविधिक आयोग है, क्योंकि इनकी स्थापना संसद के अधिनियम के द्वारा किया गया है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की संरचना (Composition of the Commission):

आयोग में एक अध्यक्ष , एक उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य होते हैं। वे राष्ट्रपति द्वारा उसके आदेश एवं मुहर लगे आदेश द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।

उनकी सेवा शर्तें एवं कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं। यहाँ यह याद रखिए कि आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को स्वयं विनियमित करने की शक्ति होती है।

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष का होता है। अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है, और उपाध्यक्ष को एक राज्य मंत्री और अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव का दर्जा दिया गया है।

आयोग के कार्य (functions of the commission):

अनुच्छेद 338 ‘क’ के 5वां क्लॉज़ आयोग के कर्तव्य को व्याख्यायित करता है;

1. इस संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी भी आदेश के तहत अनुसूचित जातियों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी करना और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करना।

2. अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच पड़ताल एवं सुनवाई करना।

3. अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना और संघ और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।

4. राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य समय पर जब आवश्यक हो; रिपोर्ट देना।

5. ऐसी रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में सिफारिशें करना जो संघ या किसी राज्य द्वारा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उन सुरक्षा उपायों और अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए किए जाने चाहिए।

  • आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति, इस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन में रखवाता है।
  • अगर रिपोर्ट या उसका कोई भाग ऐसे विषय से संबंधित है, जिसका संबंध राज्य से है तो उसका एक प्रति राज्य के राजपाल को भी भेजा जाएगा, जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।

6. अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास और उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जैसा कि राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, नियम द्वारा निर्दिष्ट करें।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की शक्तियाँ (powers of the commission):

अनुच्छेद 338 ‘क’ का 8वां क्लॉज़ आयोग के शक्तियों को व्याख्यायित करता है; जिसके अनुसार, जब आयोग किसी कार्य की जांच पड़ताल कर रहा हो या किसी शिकायत की जांच कर रहा हो तो, इसे दीवानी न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्ति होंगी, अर्थात;

  1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
  2. किसी दस्तावेज़ को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
  3. शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
  4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना;
  5. दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
  6. कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति द्वारा, अवधारित किया जाए।

यहाँ ये याद रखिए कि अनुच्छेद 338 ‘क’ (9) में लिखा हुआ है कि संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।

आयोग के अन्य कार्य (Other functions of the Commission)

सुरक्षा, कल्याण, विकास और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए 2005 में राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के लिए कुछ अन्य कर्तव्य निर्धारित किए हैं, जो कि कुछ इस प्रकार है;

(i) ऐसे उपाय करना जिसके तहत वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों को लघु वनोपज का स्वामित्व अधिकार प्रदान किया जा सके।

(ii) कानून द्वारा आदिवासी समुदायों को खनिज एवं जल संसाधन आदि पर अधिकारों की सुरक्षा के लिए उपाय करना।

(iii) आदिवासियों के विकास के लिए अधिक व्यवहार्य आजीविका रणनीतियों पर काम करने के लिए उपाय करना।

(iv) विकास परियोजनाओं से विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए राहत और पुनर्वास की प्रभावोत्पादकता में सुधार के लिए उपाय करना।

(v) जनजातीय लोगों को भूमि से अलग-थलग करने से रोकने और ऐसे लोगों को प्रभावी ढंग से पुनर्वास करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए।

(vi) वनों की रक्षा और सामाजिक वनरोपण करने के लिए जनजातीय समुदायों के अधिकतम सहयोग और भागीदारी को प्राप्त करने के लिए उपाय करना।

(vii) पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधान के पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए उपाय करना।

(viii) आदिवासी द्वारा खेती को स्थानांतरित करने की प्रथा (झूम खेती) को कम करने और अंततः समाप्त करने के लिए उपाय करना।

दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली (Approach and Methodology):

अपने संवैधानिक दायित्वों और उन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, जो आजादी की लगभग आधी सदी के बाद, अनुसूचित जनजातियों के समग्र विकास और मुख्यधारा के लिए अब महत्वपूर्ण हैं, फरवरी, 2004 में गठित वर्तमान आयोग ने एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। आयोग की बैठकें नियमित रूप से आयोजित की जाती हैं और लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन की गहन निगरानी की जाती है।

विकास योजनाओं के प्रभाव की निगरानी और मूल्यांकन करने के लिए, आयोग ने मुख्य सचिवों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ राज्य स्तरीय समीक्षा बैठकें आयोजित करके और क्षेत्र स्तर के दौरे आयोजित करके राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों की सरकारों के साथ अधिक सक्रिय रूप से बातचीत करने का निर्णय लिया है।

आयोग को लगता है कि इन दौरों और बैठकों के परिणामस्वरूप, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारें अनुसूचित जनजातियों की वास्तविक समस्याओं के प्रति अधिक जागरूक हो जाएंगी और उपचारात्मक उपायों पर काम करने और उचित रणनीति अपनाने के लिए आवश्यक पहल करेंगी।

आयोग ने अपने मुख्यालयों और राज्य कार्यालयों के माध्यम से क्षेत्र स्तरीय पूछताछ और अध्ययन भी किया है। इस प्रक्रिया को त्वरित राहत सुनिश्चित करने की दृष्टि से, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों पर अपराधों और अत्याचारों से संबंधित मामलों में और विकास लाभ के अनुदान को सुनिश्चित करने के लिए एक नया जोश दिया गया है।

शिकायतों की जांच की प्रक्रिया, विशेष रूप से सेवा सुरक्षा उपायों के उल्लंघन के संदर्भ में, मामलों के त्वरित निपटान और वास्तविक मामलों में राहत सुनिश्चित करने के लिए भी सुव्यवस्थित किया गया है।

सभी संबंधित अभिलेखों के साथ आयोग में अधिकारियों एवं संबंधित संपर्क अधिकारियों को बुलाकर एक या दो बैठकों में कई लंबे समय से लंबित मामलों का निर्णय किया जा रहा है.

आयोग ने दस्तावेजों को समन करने और पूछताछ करने में उपस्थिति को लागू करने के लिए सिविल कोर्ट की अपनी शक्तियों का भी उपयोग किया है।

आयोग का विचार है कि विकास के लिए उपयुक्त योजनाओं के उचित नियोजन और प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से ही अनुसूचित जनजातियां शेष आबादी के साथ तालमेल बिठाने और अपनी पूरी क्षमता का एहसास करने की उम्मीद कर सकती हैं।

इस प्रकार, आयोग ने स्वयं को सक्रिय रूप से जोड़कर और राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर योजना प्रक्रिया में भाग लेकर एक शुरुआत की है। योजना आयोग, जनजातीय कार्य मंत्रालय और राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों के साथ नियमित संचार किया जा रहा है।

केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की वार्षिक योजनाओं का आयोग में इसके राज्य कार्यालयों के समर्थन से विश्लेषण किया जा रहा है।

| अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपाय (Constitutional safeguards for Scheduled Tribes):

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

अनुसूचित जनजातियों के लिए संविधान में ऐसे ढेरों प्रावधान है जो कि उनके हितों की रक्षा बहुआयामी तरीके से करता है; यथा:

I. Educational & Cultural Safeguards

अनुच्छेद 15(4) :- इसके तहत अनुच्छेद 29(2) में लिखित बातों के बावजूद भी अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में सकारात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

अनुच्छेद 29:- इसके तहत अनुसूचित जनजाति को अपनी भाषा, संस्कृति या लिपि आदि को बनाए रखने का अधिकार मिलता है।

अनुच्छेद 46:– इसके तहत सरकार का ये कर्तव्य है कि वे अपनी नीति इस तरह से बनाए कि अनुसूचित जनजाति के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों की संवृद्धि हो सके।

अनुच्छेद 350:- इसके तहत, अपने व्यथा के निवारण के लिए किसी व्यक्ति को, राज्य के किसी अधिकारी के पास, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाले किसी भी भाषा में अभ्यावेदन (representations) देने का अधिकार है।

अनुच्छेद 350 ‘क’ :- इसके तहत भाषायी अल्पसंख्यक अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा दे सकता है। और ये राष्ट्रपति का कर्तव्य है कि इस तरह की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निदेश दें।

अनुच्छेद 350 ‘ख’ :- इसके तहत भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए एक राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्त करेगा, जो कि इनके रक्षोपायों से संबंधित विषयों का अन्वेषन करेगा और उसे राष्ट्रपति को सौंपेगा, ताकि राष्ट्रपति उसे संसद या राज्य विधानमंडल के समक्ष रखवा सके।

II. Social Safeguard

अनुच्छेद 23 :- यह अनुच्छेद मानव दुर्व्यापार (human trafficking) एवं बलात श्रम (Forced labor) से बचाता है।

Art. 24:- बाल श्रम का प्रतिषेध

III. Economic Safeguards

अनुच्छेद 244 :- इसके तहत पाँचवी एवं छठी अनुसूची के जितने भी उपबंध है वो असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम सहित देश के अन्य राज्यों के भी अनुसूचित जनजातियों के क्षेत्र के प्रशासन एवं नियंत्रण को लागू होंगे।

अनुच्छेद 275 :- यह अनुच्छेद संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले निर्दिष्ट राज्यों को सहायता अनुदान देने की बात करता है।

IV. Political Safeguards

अनुच्छेद 164(1):- कुछ राज्यों में जनजातीय मामलों के मंत्रियों के लिए प्रावधान;

अनुच्छेद 337- राज्य विधानमंडलों में एसटी के लिए सीटों का आरक्षण;

अनुच्छेद 334:- आरक्षण के लिए 10 वर्ष की अवधि (अवधि बढ़ाने के लिए कई बार संशोधन किया गया।);

अनुच्छेद 371:- पूर्वोत्तर राज्यों और सिक्किम के संबंध में विशेष प्रावधान।

अनुच्छेद 330 :- यह अनुच्छेद अनुसूचित जनजाति को लोकसभा में आरक्षण देता है।

अनुच्छेद 332 :- यह अनुच्छेद राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देता है।

अनुच्छेद 243 D एवं 243 T :- इन दोनों अनुच्छेदों के तहत क्रमशः पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

V. Service Safeguards

(अनुच्छेद 16(4),16(4ए),164(बी) अनुच्छेद 335, और अनुच्छेद 320(40) के तहत।

समापन टिप्पणी (Closing Remarks):

हमने ऊपर विस्तार से समझा कि अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है, कैसे तय किया जाता है कि कौन ST होंगे और यह व्यवस्था क्यों बनाई गई है। साथ ही हमने अनुसूचित जनजाति आयोग के विभिन्न आयामों को भी समझा। दशकों बाद अब हम देख सकते हैं कि अनुसूचित जनजातियां विकास की मुख्य धारा में लौट रही है, और सरकार की इसमें महती भूमिका रही है;

संवैधानिक मान्यता: जैसा कि ऊपर भी समझा कि अनुसूचित जनजाति समाज एक संवैधानिक मान्यता प्राप्त समाज है। संविधान में विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों के तहत ST वर्ग के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।

सकारात्मक कार्रवाई: सरकार ने अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए विभिन्न सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम और योजनाएं लागू की हैं। इन कार्यक्रमों में छात्रवृत्ति, आवास योजनाएं, रोजगार के अवसर और कौशल विकास पहल शामिल हैं। आरक्षण भी इसी का ही एक विस्तार है;

आरक्षण: अनुसूचित जाति की तरह, अनुसूचित जनजाति को भी आरक्षण प्रणाली से लाभ होता है। संविधान विभिन्न क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और विधायी निकायों (संसद और राज्य विधानमंडल) में आरक्षण प्रदान करता है।

जनजातीय उप-योजना (Tribal Sub-Plans): सरकार जनजातीय क्षेत्रों की विकास आवश्यकताओं को पूरा करने और जनजातीय समुदायों के उत्थान के लिए जनजातीय उप-योजना (टीएसपी) के तहत धन आवंटित करती है। यह आदिवासी और गैर-आदिवासी क्षेत्रों के बीच विकास की खाई को पाटने की एक विशिष्ट रणनीति है।

जनजातीय उप-योजना की अवधारणा पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-1979) में पेश की गई थी और 17 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यान्वयन शुरू हुआ था। जनजातीय उप-योजना के तहत क्षेत्र धीरे-धीरे बढ़ाए गए; नौवीं पंचवर्षीय योजना (2002) के अंत में, 23 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को कवर किया गया।

वन अधिकार: अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, या वन अधिकार अधिनियम, आदिवासी और वन में रहने वाले समुदायों को वन अधिकार प्रदान करता है, जिससे वे अपने पारंपरिक वनों की रक्षा कर सकते हैं।

इन सब प्रयासों के बावजूद अभी भी कई चुनौतियाँ है;

चुनौतियाँ: कानूनी सुरक्षा और सकारात्मक कार्रवाई के बावजूद, अनुसूचित जनजातियों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें गरीबी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की कमी, विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन और उनके प्राकृतिक संसाधनों का शोषण शामिल है।

कुल मिलाकर,

भारतीय आदिवासी समुदाय अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखते हुए विकास के मार्ग पर अग्रसर हो इसके लिए ढेरों प्रयास किए गए है या किए जा रहें है।

भारत, जनजातीय समुदायों की एक विस्तृत श्रृंखला का घर है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषाएं और परंपराएं हैं। ये विविध संस्कृतियाँ देश की समृद्ध सांस्कृतिक विकास में योगदान देती हैं।

इसीलिए शिक्षा, कौशल विकास और आर्थिक पहल के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों को सशक्त बनाने के प्रयास किए गए हैं। वनबंधु कल्याण योजना जैसी पहल का उद्देश्य उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है।

विभिन्न आदिवासी संगठनों और नेताओं ने अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और कल्याण की वकालत करने के लिए काम किया है। इन आंदोलनों ने आदिवासी भूमि, संस्कृति और पहचान की रक्षा सुनिश्चित किया है। फिर भी अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है;

इन समुदायों को, नियुक्तियों एवं प्रोन्नति में आरक्षण के माध्यम से भी इनको सशक्त करने की कोशिश की गई है। ये आरक्षण किस तरह से काम करता है इसके लिए आप नीचे दिये गए लेख को पढ़ सकते हैं।

आरक्षण : आधारभूत समझ[1/4]
आरक्षण का संवैधानिक आधार[2/4]
आरक्षण का विकास क्रम[3/4]
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम[4/4]

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References,
https://ncst.nic.in/
https://ncst.nic.in/sites/default/files/2017/Citizen_Charter/citizen_charter_English.pdf
https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf
Commentary on constitution (fundamental rights) – d d basu
https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
FAQs Related to Reservation
https://dopt.gov.in/sites/default/files/FAQ_SCST.pdf
https://ncst.gov.in/sites/default/files/documents/ncst_reports/first_annual_report_of_ncst/Part%20I%20-%20Ist%20Report%20NCST%20-%20Hindi3656828737.pdf
https://ncst.gov.in/sites/default/files/documents/ncst_reports/first_annual_report_of_ncst/PART%20I%20-%20Ist%20Report%20NCST%202004-20059484175791.pdf