| भारत में गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन के लिए किए गए उपाय

आजादी के बाद प्रमुख चुनौतियों में से एक गरीबी भी था। 1950 से 1960 के दशक के पूर्वार्द्ध में आर्थिक संवृद्धि (Economic growth) [यानी कि सकल घरेलू उत्पाद और प्रतिव्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि] को इसके लिए आधार बनाया गया। उस समय ऐसा माना जा रहा था कि औद्योगिक विकास और हरित क्रांति के माध्यम से निश्चित ही पिछड़े वर्ग को लाभ मिलेगा।

पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) और दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) इसी में निकल गया, लेकिन ये तरीका बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं रहा। जाहिर है अगर प्रभावशाली रहा होता है तो गरीबी खत्म हो गई होती। तब नीति निर्धारकों ने इसका विकल्प खोजना शुरू किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विशेष प्रकार के निर्धनता निवारण योजनाओं या कार्यक्रमों के द्वारा ही इसे समाप्त किया जा सकता है।

तब जाकर तीसरी-चौथी पंचवर्षीय योजना के माध्यम से इस नए नीति को बढ़ाने का काम शुरू हुआ। इस क्रम में 1970 के दशक में ‘काम के बदले अनाज‘ एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम रहा। इसके बाद ढ़ेरों योजनाएँ लायी जाती रही, ज़्यादातर फेल ही हुआ। उस सब में से जो सबसे महत्वपूर्ण है, आइये उसकी चर्चा करते हैं;

ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम – इसे 1995 में खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा शुरू किया गया था। इसके माध्यम से 2 लाख रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया था।

प्रधानमंत्री रोजगार योजना – इसे 1993 में शुरू किया गया था। इसके तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के शिक्षित बेरोजगार किसी भी प्रकार का उद्यम शुरू करने के लिए ऋण ले सकते हैं। इसकी खास बात ये है कि ब्याज की दर काफी कम है और इसे आसान किस्तों में 7 वर्षों में चुकाने की व्यवस्था है।

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) – ऊपर बताए गए दो योजनाओं- प्रधानमंत्री रोजगार योजना (Pradhan Mantri Rozgar Yojana) और ग्रामीण रोजगार सृजन (Rural Employment Generation Program) कार्यक्रम को साल 2008 में मिलाकर इस नयी योजना को बनाया गया।

इसके योजना की उद्देश्य की बात करें तो, इसे नए स्‍वरोजगार या लघु उद्यम की स्‍थापना के माध्यम से देश के ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से लाया गया। ताकि ग्रामीण और शहरी बेरोजगार युवाओं को जितना संभव हो सके, उसी स्‍थान पर रोजगार मिल जाए। [विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें]

स्वर्णजयंती रोजगार योजना (Goden Jubilee Employment Scheme) – इसके तहत दो मुख्य योजनाएँ आती है – (1) स्वर्णजयंती शहरी रोजगार योजना और (2) स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना।

(1) स्वर्णजयंती शहरी रोजगार योजना – यह योजना 1 दिसंबर 1997 में लागू की गई है। उसका उद्देश्य शहरी बेरोजगार या अल्प रोजगार व्यक्तियों को स्वरोजगार, अथवा वेतन रोजगार के अवसर प्रदान करके लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। शहरी क्षेत्रों मे पहले से चलायी जा रही तीन योजनाओं – नेहरू रोजगार योजना (NRY), गरीबों के लिए शहरी बुनियादी सेवाएं तथा प्रधानमंत्री एकीकृत शहरी गरीब उन्मूलन योजना को इसी नई योजना में शामिल कर दिया गया है।

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दिनांक 23 सितंबर, 2013 को मौजूदा स्‍वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के स्‍थान पर राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (National Urban Livelihoods Mission) आरंभ किया। 2016 में इसका नाम बदलकर DAY-NULM यानी कि दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन कर दिया गया। हालांकि इस सब के बावजूद इसका उद्देश्य गरीबी को दूर करना ही रहा।

(2) स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना – यह भी एक स्वरोजगार कार्यक्रम है। इसकी स्थापना अप्रैल, 1999 में की गई। वित्तीय वर्ष 2010-11 में इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission) कर दिया गया। 29 मार्च, 2016 से  इसका नाम बदल कर DAY-NRLM यानी कि दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन कर दिया गया।

इतनी बार नाम बदलने के बावजूद भी इसके मूल उद्देश्य में कोई बदलाव नहीं आया है, जो कि है गरीबी दूर करना। इसके तहत ग्रामीण निर्धनों को स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा बनाया जाता है और उनकी क्षमता का निर्माण, प्रशिक्षण और कौशल के विकास के माध्यम से किया जाता है। साथ ही इसका ग्रामीण निर्धन परिवारों को बैंक तथा सरकारी आर्थिक सहायता के मिले-जुले माध्यम से आय सृजन की परिसंपत्तियाँ उपलब्ध कराकर, निर्धनता रेखा से ऊपर उठाने की कोशिश की जाती है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) – इसे साल 2005 में शुरू किया गया था। सरकार के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा में वृद्धि करना है। प्रत्येक परिवार का कोई वयस्क सदस्य, जो अकुशल कार्य करना चाहता है, एक वर्ष में कम से कम 100 दिन का वैतनिक रोजगार गारंटी से प्राप्त कर सकता है।

इसमें एक तिहाई भाग स्त्रियों का होता है। यह योजना वेतन रोजगार तो उपलब्ध कराती ही है साथ ही कार्य के माध्यम से प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को सुदृढ़ करती है। इसका मुख्य उद्देश्य दीर्घकालीन निर्धनता जैसे – सूखा, वनों का काटना और भूमि के कटाव के कारणों को दूर करना धारणीय विकास (sustainable development) को प्रोत्साहन देना है।

प्रधानमंत्री जन-धन योजना – सभी देशवासियों को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ने के लिए इस योजना की शुरुआत साल 2014 में की गई थी. इस योजना के अंतर्गत अब तक लगभग साढ़े 42 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके हैं। इस बैंक खाते के तहत कई तरह की सुविधाएं प्रदान जाती हैं, जैसे कि जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा आदि। यह बीमा रुपे डेबिट कार्ड (rupay debit card) पर दिया जाता है।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)  इस योजना को जुलाई 2015 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था। इसके तहत 2020 तक एक करोड़ अकुशल युवाओं को प्रशिक्षण देने की योजना बनाई गई थी। इस योजना का उद्देश्य ऐसे लोगों को प्रशिक्षित करना और रोजगार मुहैया कराना है जो कम पढ़े-लिखे हैं या बीच में स्कूल छोड़ देते हैं। प्रशिक्षण कोर्स पूरा करने के बाद सर्टिफिकेट दिया जाता है और यह सर्टिफिकेट पूरे देश में मान्य होता है।

राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (National Old Age Pension Scheme) – सरकार सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से बुजुर्ग लोगों (60 वर्ष से ऊपर) को पेंशन देती है। इस योजना की शुरुआत साल 1995 में हुई थी। इसका क्रियान्वयन केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों द्वारा मिलकर किया जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में 3.5 करोड़ लोगों को वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ मिल रहा है।

प्रधानमंत्री आवास योजना – यह योजना भारत सरकार की एक योजना है जिसके माध्यम से नगरों में रहने वाले निर्धन लोगों को उनकी क्रयशक्ति के अनुकूल घर प्रदान किये जाएँगे। इस योजना की शुरुआत 25 जून, 2015 को हुआ। इसका उद्देश्य 2022 तक सभी को घर उपलब्ध करना है।

इंदिरा आवास योजना; इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों को आवास के निर्माण के लिए सहायता प्रदान की जाती है। 2016 में इसका नाम प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना या प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) कर दिया गया।

आयुष्मान भारत योजना – आंकड़ों के अनुसार हमारी भारत के आबादी के लगभग  60 प्रतिशत से अधिक लोगों को अपने स्वयं के स्वास्थ्य और अस्पताल के खर्चों के लिए भुगतान करना पड़ता है क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर किसी भी प्रकार का कोई बीमा कवर नहीं है।

अपनी आय और बचत का उपयोग करने के अलावा, लोग अपनी स्वास्थ्य सेवा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे उधार लेते हैं या अपनी संपत्ति बेचते हैं। इससे गरीबी बढ़ती है। इसी को ध्यान में रखकर यह योजना लाया गया ताकि इतनी बड़ी आबादी को बिना किसी वित्तीय कठिनाई का सामना किए बिना अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ मिल पाएँ ।

प्रधानमंत्री जन-आरोग्य या आयुष्मान भारत योजना माध्यमिक और तृतीयक अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का बीमा कवर प्रदान करता है। इस योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक परिवारों के लगभग 50 करोड़ से अधिक लोगों को शामिल किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।

| गरीबी उन्मूलन के लिए नीति आयोग की रणनीति

नीति आयोग ने साल 2017 में गरीबी दूर करने हेतु एक विज़न डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया जिसमें साल 2032 तक गरीबी दूर करने की योजना बनाई गई। इस डॉक्यूमेंट के अनुसार गरीबी दूर करने के लिए तीन चरणों में काम करना अपेक्षित होगा –

  1. गरीबों की सही गणना ताकि देश में गरीबों की सही संख्या का पता लगाया जा सके।
  2. गरीबी दूर करने संबंधी प्रभावी योजनाएँ लाई जाने की जरूरत।
  3. लागू हो चुकी योजनाओं की मॉनीटरिंग या निरीक्षण किया जाए, ताकि सही स्थिति का पता चलता रहे।

Q. गरीबी पूरी तरह से खत्म क्यों नहीं हो रही है?

भारत से गरीबी खत्म न होने के पीछे कोई एक कारण नहीं है बल्कि कई ऐसे कारण रहे हैं या हैं जिसके कारण भारत में गरीबी पूरी तरह से खत्म नहीं हो पायी है, आइये उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारणों को समझते हैं;

गरीबों के सही आकलन का अभाव – आजादी के बाद से ही गरीबी का आकलन किया जा रहा है और इसके लिए कई समितियां गठित की जा चुकी है लेकिन कोई भी आकलन स्थायी और प्रामाणिक नहीं रहा है, हर नयी समिति एक नए आकलन ले कर आती है और जो कि पिछले वाले आकलन से या तो भिन्न होता है या उसे खारिज कर रहा होता है। जैसे कि, 2011-12 के तेंदुलकर समिति के अनुसार देश में 21.9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे है जबकि रंगराजन समिति के अनुसार ये आंकड़ा 29,5 प्रतिशत है। ऐसे में समस्या ये आती है किस आंकड़े को लेकर आगे बढ़ा जाए।

बेलगाम भ्रष्टाचार – भारत में भ्रष्टाचार एक आम समस्या है या फिर एक आम बात है, अच्छी से अच्छी योजनाओं में भी लूपहोल ढूंढ लिया जाता है और उसे सही लाभार्थियों तक पहुँचने ही नहीं दिया जाता है। कई ग्रामीण लोगों को तो ये भी पता नहीं होता है कि उसके नाम से मनरेगा का पैसा ग्राम प्रधान या मुखिया उठा रहे हैं। इसी तरह आयुष्मान भारत जैसे महत्वाकांक्षी योजना से संबंधित भी ढेरों धांधली सामने आई है।

जागरूकता का अभाव – भ्रष्टाचार को अगर कोई खत्म कर सकता है तो वो है खुद जनता लेकिन कई बार जागरूकता के अभाव में वो खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा सही जानकारी के अभाव में सही लाभार्थियों को पता तक नहीं होता है कि उसके हित में कौन-कौन ही योजनाएँ अभी चल रही है। कई योजनाओं के असफल होने की एक वजह ये भी होती है कि वो सही लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाता है।

क्रियान्वयन या सही निरीक्षण का अभाव – कई योजनाओं को लागू तो कर दिया जाता है लेकिन उसके बाद देखने वाला भी कोई नहीं होता है कि उस योजना की प्रगति क्या है या फिर वो योजना काम कर भी रही है कि नहीं। सालों बाद सरकार को याद आता है और फिर उसकी जगह पर एक नई योजना ला दी जाती है।

| समापन टिप्पणी

ऐसा नहीं है कि देश में गरीबी कम नहीं हो रही है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2018 (Multi-dimentional Poverty Index-MPI) को ही देखें तो उसके मुताबिक, साल 2005-06 और 2015-16 के बीच भारत में 270 मिलियन (27 करोड़) से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।

इसके अलावा MSME क्षेत्र में भी अच्छा काम हुआ है। जहां बताया जा रहा है कि लगभग 12 करोड़ लोग रोजगार में संलग्न है। और जो किसान है उसे गरीबी से बाहर निकालने के लिए 2022 तक उसकी आय दुगुनी करने की बात सरकार ने कही है। अगर ऐसा होता है तो इससे काफी ज्यादा फर्क पड़ेगा।

फिर भी गरीबी को भारत से पूरी तरह से खत्म करने के लिए समन्वित प्रयास करने की जरूरत होगी। अगर सिर्फ सरकार के भरोसे इसे छोड़ दिया जाए तो फिर बात नहीं बनेगी। तो उम्मीद यही करते हैं कि नीति आयोग की वो बात सच हो जिसके अनुसार भारत से 2031-32 तक गरीबी पूरी तरह खत्म हो जाएगी।

| कुल मिलाकर यही है भारत में गरीबी की स्थिति, उम्मीद है इस लेख से आपके अंदर गरीबी की एक अच्छी समझ पैदा होगी। नीचे अन्य जरूरी लेखों का लिंक दिया जा रहा है उसे भी अवश्य पढ़ें।

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Article Based On,
भारत में हर 10 में से 3 व्यक्ति गरीब: रंगराजन समिति
Poverty estimation in india – PRS
How Are Poor People Identified?
Report of Dr. Rangarajan Commission
India’s Poverty Profile – world bank
https://ncert.nic.in/ncerts/l/khec104.pdf
https://ncert.nic.in/textbook/pdf/ihss203.pdf

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