इस लेख में हम संसद के कार्य एवं शक्तियां (Functions and Powers of Parliament) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे;
तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें साथ ही अन्य संबंधित लेख भी पढ़ें। [संसद (Parliament) को ज़ीरो लेवल से समझने के लिए दिये गए लिंक को विजिट करें।]

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संसद के कार्य एवं शक्तियां (Powers of Parliament)
संसद अगर किसी काम के लिए लोकप्रिय है तो वो है कानून बनाना। बेशक ये इसका एक मुख्य काम है पर वर्तमान राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था में संसद कानून बनाने के अलावा भी कई अन्य महत्वपूर्ण काम करती है।
इसकी बहुक्रियात्मक भूमिका को समझने के लिए इसके कार्य एवं शक्तियों को निम्नलिखित शीर्षकों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है:-
1. संसद के विधायी कार्य एवं शक्तियां (Legislative Powers of Parliament)
2. संसद के कार्यकारी कार्य एवं शक्तियां (Executive Powers of Parliament)
3. संसद के वित्तीय कार्य एवं शक्तियां (Financial Powers of Parliament)
4. संसद के संवैधानिक कार्य एवं शक्तियां (Constitutional Powers of Parliament)
5. संसद के न्यायिक कार्य एवं शक्तियां (Judiciary Powers of Parliament)
6. संसद के निर्वाचक कार्य एवं शक्तियां (Electoral Powers of Parliament)
7. संसद के अन्य कार्य एवं शक्तियां (Other Powers of Parliament)
1. संसद के विधायी कार्य एवं शक्तियां
जैसा कि हम सब जानते हैं संसद का प्राथमिक कार्य देश के संचालन के लिए विधियाँ बनाना है। आमतौर पर संसद अपने कुल समय का 1/5 भाग विधान कार्य पर खर्च करता है।
इसके पास संघ सूची के विषयों पर, अवशिष्ट विषयों पर (जो विषय तीनों सूचियों में से किसी सूची में शामिल न हो) तथा समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बनाने का अधिकार है। कोई भी विधि बनने से पहले विधेयक के रूप में होती है और ऐसे चार प्रकार के विधेयक होते हैं जो संसद में पेश किए जाते हैं-
1. साधारण विधेयक (Ordinary Bill) –
भारतीय संसद में, एक साधारण विधेयक एक प्रस्तावित कानून है जिसे मंत्री या मंत्री के अलावा किसी संसद के सदस्य द्वारा पेश किया जाता है। एक साधारण विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया में कानून बनने से पहले लोकसभा (निचले सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन) दोनों में कई चरण शामिल होते हैं।
सबसे पहले, बिल को किसी भी सदन में पेश किया जाता है, जहां इसे पहली बार पढ़ा जाता है। फिर, दूसरे पठन चरण में, विधेयक की खंडवार जांच की जाती है और सदस्य संशोधनों का सुझाव दे सकते हैं।
एक बार दूसरी रीडिंग पूरी हो जाने के बाद, बिल तीसरी रीडिंग के माध्यम से सदन के समक्ष जाता है, जहाँ सदस्य केवल बहस कर सकते हैं और पूरे बिल पर वोट कर सकते हैं।
यदि विधेयक दोनों सदनों में साधारण बहुमत से पारित हो जाता है, तो इसे भारत के राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा सहमति दिए जाने के बाद, बिल संसद का एक अधिनियम बन जाता है और पूरे देश में कानून के रूप में लागू किया जाता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारतीय संसद में विभिन्न प्रकार के विधेयक हैं, जिनमें धन विधेयक, संवैधानिक संशोधन विधेयक और निजी सदस्यों के विधेयक शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी प्रक्रियाएं और आवश्यकताएं हैं।
कुल मिलाकर वित्तीय विषयों के अलावा अन्य सभी विषयों से संबद्ध विधेयक साधारण विधेयक कहलाते हैं। [विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें]
2. धन विधेयक (Money Bill) –
भारतीय संसद में, एक धन विधेयक एक प्रस्तावित कानून है जो कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, या भारत के समेकित कोष से व्यय से संबंधित है। धन विधेयक पारित करने की प्रक्रिया सामान्य विधेयक से भिन्न होती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत, एक विधेयक को धन विधेयक माना जाता है यदि इसमें निम्नलिखित सभी या किसी भी मामले से संबंधित प्रावधान शामिल हैं:
- किसी भी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन (Imposition, abolition, remission, alteration, or regulation of any tax),
- सरकार द्वारा धन उधार लेना (Borrowing of money by the government),
- भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा (Custody of the Consolidated Fund or the Contingency Fund of India),
- भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग (Appropriation of moneys out of the Consolidated Fund of India),
- भारत की संचित निधि से व्यय (Expenditure from the Consolidated Fund of India)।
एक धन विधेयक केवल एक मंत्री द्वारा लोकसभा (निचले सदन) में पेश किया जा सकता है, किसी अन्य सदस्य द्वारा नहीं। राज्यसभा (उच्च सदन) केवल धन विधेयक पर सिफारिशें कर सकती है, जिसे लोकसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
यदि लोकसभा धन विधेयक पारित कर देती है, तो इसे राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाता है। राज्यसभा को 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ या बिना किसी विधेयक को लोकसभा में वापस करना होगा।
यदि लोकसभा राज्य सभा द्वारा की गई किसी भी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है, तो विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। यदि लोकसभा किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है, तो विधेयक को दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित माना जाता है जिस रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
एक बार विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाने के बाद, इसे भारत के राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा सहमति दिए जाने के बाद, बिल संसद का एक अधिनियम बन जाता है और पूरे देश में कानून के रूप में लागू किया जाता है।
3. वित्त विधेयक (Finance Bill) –
भारतीय संसद में, एक वित्त विधेयक एक प्रकार का धन विधेयक है जो आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के वित्तीय प्रस्तावों को प्रभावी बनाने के लिए हर साल पेश किया जाता है। वित्त विधेयक में कराधान, उधार, व्यय और देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले अन्य वित्तीय मामलों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
वित्त विधेयक पारित करने की प्रक्रिया धन विधेयक के समान ही होती है। विधेयक को भारत के वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा (निचले सदन) में पेश किया जाता है, और लोकसभा द्वारा पारित होने से पहले इसे तीन बार पढ़ा जाता है। राज्य सभा (उच्च सदन) केवल विधेयक पर सिफारिशें कर सकती है, और लोकसभा इन सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
यदि लोकसभा बिना किसी बदलाव के वित्त विधेयक को पारित कर देती है, तो इसे राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाता है। राज्यसभा को 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ या बिना किसी विधेयक को लोकसभा में वापस करना होगा।
यदि लोकसभा राज्य सभा द्वारा की गई किसी भी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है, तो विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। यदि लोकसभा किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है, तो विधेयक को दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित माना जाता है जिस रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
एक बार वित्त विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाने के बाद, इसे भारत के राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की सहमति के बाद, वित्त विधेयक वित्तीय वर्ष का वित्त अधिनियम बन जाता है और पूरे देश में कानून के रूप में लागू किया जाता है। वित्त अधिनियम में कराधान, उधार, व्यय और अन्य वित्तीय मामलों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं जिनका देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है।
कुल मिलाकर आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के जितने भी वित्तीय प्रस्ताव होते है उसे एक विधेयक में सम्मिलित किया जाता है। यह विधेयक साधारणतया प्रत्येक वर्ष बजट पेश किए जाने के तुरंत पश्चात लोकसभा में पेश किया जाता है। इस पर धन विधेयक की सभी शर्तें लागू होती है तथा इसमें संशोधन प्रस्तावित किए जा सकते है। इसी को वित्त विधेयक कहा जाता है।
वित्त विधेयक को तीन भागों में बांटा जा सकता है :- धन विधेयक, वित्त विधेयक (।) और वित्त विधेयक (॥) [विस्तार से जानने के लिए धन विधेयक और वित्त विधेयक पढ़ें]
4. संविधान संशोधन विधेयक (Constitutional Amendment Bill) –
भारतीय संसद में, एक संवैधानिक संशोधन विधेयक एक प्रस्तावित कानून है जो भारत के संविधान में संशोधन करने के उद्देश्य से लाया जाता है। भारतीय संविधान भूमि का सर्वोच्च कानून है और इसे केवल एक निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के साथ-साथ राज्य विधानसभाएं भी शामिल हैं।
अतीत में पारित संवैधानिक संशोधनों के कुछ उदाहरणों में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में सम्मिलित करना, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की शुरुआत, और नए राज्यों का निर्माण या उनकी सीमाओं में परिवर्तन शामिल हैं। [विस्तार से जानने के लिए संविधान संशोधन की प्रक्रिया पढ़ें]
इसके साथ ही साथ संविधान, संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि बनाने की शक्ति भी प्रदान करता है। हालांकि ऐसा निम्नलिखित पाँच असामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत हो सकता है:-
1. जब राज्यसभा इसके लिए एक संकल्प पारित करे,
2. जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो,
3. जब दो या दो से अधिक राज्य संसद से ऐसा संयुक्त अनुरोध करें,
4. जब अंतर्राष्ट्रीय समझौते, संधि एवं समझौते के तहत ऐसा करना जरूरी हो,
5. जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो। [ऐसा क्यों होता है इसे समझने के लिए इसे पढ़ें – राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान↗️ ]
◾ संसद विधियों का खाका तैयार करती है और कार्यपालिका को, उसी मूल विधि के ढांचे में ही विस्तृत नियम और विनियम (Regulations) बनाने के लिए प्राधिकृत (Authorized) करती है।
इसे प्रत्यायोजित विधान या कार्यपालिका विधान या अधीनस्थ विधान (Subordinate legislation) कहा जाता है। ऐसी नियमों और विनियमों को जांच के लिए संसद के समक्ष रखा जाता है।
2. संसद के कार्यकारी कार्य एवं शक्तियां
भारत में संविधान ने सरकार के संसदीय रूप की स्थापना की है। जिसमें कार्यपालिका अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। यानी कि कार्यपालिका तब तक ही सत्ता में बना रहता है जब तक लोकसभा का विश्वास उसमें हो।
लोकसभा अगर चाहे तो किसी भी समय बहुमत द्वारा सरकार को विघटित कर सकता है। इसका मतलब है की मंत्रिपरिषद को अविश्वास प्रस्ताव पारित कर हटाया जा सकता है। लोकसभा सरकार के प्रति विश्वास की कमी का प्रस्ताव निम्नलिखित तरीके से ला सकती है :-
1. राष्ट्रपति के उद्घाटन भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पास न कर,
2. धन विधेयक को अस्वीकार कर,
3. निंदा प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव पास कर,
4. नीति संबंधी किसी आवश्यक मुद्दे पर सरकार को पराजित करके,
5. कटौती प्रस्ताव पास कर।
आमतौर पर संसद कार्यकारिणी पर प्रश्नकाल, शून्यकाल, आधे घंटे की चर्चा, अल्पावधि चर्चा, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव और अन्य चर्चाओं के जरिये नियंत्रण रखती है।
सदन अपनी अपनी समितियों जैसे सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति, अधीनस्थ विधान संबंधी समिति, याचिका समिति इत्यादि के माध्यम से कार्यपालिका के कार्यों का अधीक्षण करती है।
Lok Sabha: Role, Structure, Functions | Hindi | English |
Rajya Sabha: Constitution, Powers | Hindi | English |
Parliamentary Motion | Hindi | English |
3. संसद के वित्तीय कार्य एवं शक्तियां
कार्यपालिका को बजट (Budget) तैयार करने का अधिकार प्राप्त है पर संसद की सहमति के बिना कार्यपालिका न ही किसी कर (Tax) की उगाही कर सकती है, न ही कोई कर (Tax) लगा सकती और न ही किसी प्रकार का व्यय कर सकती है। इसीलिए बजट को स्वीकृति के लिए संसद के समक्ष रखा जाता है।
बजट के माध्यम से संसद सरकार को आगामी वित्त वर्ष में आय एवं व्यय की अनुमति प्रदान करती है। इसके अलावा संसद, विभिन्न वित्तीय समितियों के माध्यम से सरकार के खर्चों की भी जांच करती है और उस पर नियंत्रण रखती है।
इन समितियों में शामिल हैं- लोक लेखा समति, प्राक्कलन समिति एवं सार्वजनिक उपक्रमों संबंधी समिति। ये अवैध, अनियमित, अमान्य, अनुचित प्रयोगों एवं सार्वजनिक खर्चों के दुरुपयोग के मामलों को भी सामने लाती है।
कार्यपालका के वित्तीय मामलों पर संसद का नियंत्रण निम्न दो तरीकों से संभव हो पाता है:-
1. बजटीय नियंत्रण (Budgetary control), जो कि बजट के प्रभावी होने से पूर्व अनुदान मांगों के रूपो में होता है। तथा,
2. उत्तर बजटीय नियंत्रण (Post budgetary control), जो अनुदान मांगों कों स्वीकृति दिये जाने के पश्चात तीन वित्तीय समितियों के माध्यम से स्थापित किया जाता है।
बजट, वार्षिकता के सिद्धान्त पर आधारित होता है। जिसमें संसद, सरकार को एक वर्ष में व्यय करने के लिय धन उपलब्ध कराती है। यदि मंजूर किया धन, वर्ष के अंत तक व्यय नहीं होता तो शेष धन का ‘छास’ हो जाता है तथा भारत की संचित निधि में चला जाता है। इस प्रक्रिया को ‘छास का सिद्धान्त‘ कहते हैं।
इससे संसद का प्रभावी वित्तीय नियंत्रण स्थापित होता है तथा उसकी अनुमति के बिना कोई भी आरक्षित कोश नहीं बनाया जा सकता है। हालांकि, इस सिद्धान्त के कारण वित्त वर्ष के अंत में व्यय का भारी कार्य उत्पन्न हो सकता है, जिसे ‘मार्च रश‘ कहते हैं।
4. संसद के संवैधानिक कार्य एवं शक्तियां
अनुच्छेद 368 के अंतर्गत, संसद में संविधान संशोधन की शक्तियाँ निहित है जिससे वह संविधान में किसी भी प्रावधान को जोड़कर, समाप्त करके या संशोधित करके इसमें संशोधन कर सकती है।
संविधान के कुछ भागों को विशेष बहुमत द्वारा तथा कुछ अन्य भागों को साधारण बहुमत द्वारा संसद बदल सकती है। यह बहुमत संसद में उपलब्ध सदस्यों के बीच से तय होती है। कुछ व्यवस्थाएं ऐसी भी हैं, जिसे संसद विशेष बहुमत एवं करीब आधे राज्य विधानमंडलों की सहमति के बाद ही संशोधित का सकती है।
कुछ मिलाकर देखें तो संसद संविधान को तीन प्रकार से संशोधित कर सकती है :- 1. साधारण बहुमत द्वारा 2. विशेष बहुमत द्वारा एवं 3. विशेष बहुमत द्वारा, लेकिन आधे राज्यों के विधानमंडलों की स्वीकृति के साथ।
[यहाँ से पढ़ें – बहुमत कितने प्रकार के होते हैं]
यहाँ पर याद रखने वाली बात ये है कि संसद की यह शक्ति असीमित नहीं है, यह संविधान के मूल ढांचे की शर्तानुसार है। दूसरे शब्दों में, संसद संविधान के मूल ढांचे के अतिरिक्त किसी भी व्यवस्था को संशोधित कर सकती है। यह निर्णय उच्चतम न्यायालय ने केशवानन्द भारती मामले 1973 में दिया था।
5. संसद के न्यायिक कार्य एवं शक्तियां
संसद के न्यायिक कार्य एवं शक्तियों के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान आते हैं:
1. संविधान के उल्लंघन पर यह राष्ट्रपति को पदमुक्त कर सकती है। इसके लिए अनुच्छेद 61 में महाभियोग (Impeachment) की व्यवस्था है।
2. यह उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटा सकती है।
3. यह उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को हटाने के लिए राष्ट्रपति से सिफ़ारिश कर सकती है।
4. यह अपने सदस्यों या बाहरी लोगों को इसकी अवमानना या विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिए दंडित कर सकती है।
6. संसद के निर्वाचक कार्य एवं शक्तियां
संसद, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेती है और उप-राष्ट्रपति को चुनती है। लोकसभा अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को चुनती है, जबकि राज्यसभा, उप-सभापति का चयन करती है क्योंकि सभापति उप-राष्ट्रपति होता है।
संसद को यह भी शक्ति है कि वह राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबन्धित नियम बना सकती है या उनमें संशोधन कर सकती है।
वह संसद के दोनों सदनों एवं राज्य विधायिका के निर्वाचन से संबन्धित नियम बना सकती है या उनमें संशोधन कर सकती है। इसी आधार पर संसद ने राष्ट्रपतीय एवं उप-राष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम 1952, लोक-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 एवं लोक-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 आदि बनाए हैं।
7. संसद_के_अन्य_कार्य_एवं_शक्तियां
जानकारी प्राप्त करने का अधिकार – जानकारी संसद के लिए बहुत महत्व रखती है। वैसे तो संसद को अनेक प्रकार से, विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है पर चूंकि सरकार जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत होता है इसीलिए संसद एवं इसके सदस्यों को जानकारी की अपनी आवश्यकताओं के लिए सरकारी विभागों पर निर्भर रहना पड़ता है।
हालांकि सरकार का स्वयं ये कर्तव्य होता है कि वह समय पर पूरी, सही और स्पष्ट जानकारी संसद को उपलब्ध कराए। संसद के प्रश्न पुछने के व्यवस्था के माध्यम से सरकार जानकारी संसद के पटल पर रखती भी है।
संघर्षों का समाधान करना और राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करना – विचारों एवं हितों का टकराव मानव जीवन का एक स्वाभाविक पहलू है। संसदीय लोकतंत्र को बेहतर एवं अधिक सभ्य शासन प्रणाली इसीलिए माना जाता है क्योंकि टकरावों से उत्पन्न होने वाली लड़ाइयों का स्थान संसद में वाद-विवाद एवं चर्चाएं ले लेती है।
इससे समाज के भीतर के तनाव और असंतोष प्रकाश में आ जाता है और संसदीय निमयों एवं प्रक्रियाओं के कारण समझौता करना आसान हो जाता है।
भर्ती और प्रशिक्षण – संसद प्रतिभा के राष्ट्रीय रक्षित भंडार के रूप में कार्य करता है जहां से राजनीतिक नेता उभरते है। विभिन्न संसदीय समितियों में काम करते हुए सदस्यगण विशिष्ट क्षेत्रों में काफी जानकारी और विशेषज्ञता प्राप्त कर लेते हैं और वे आमतौर पर योग्य मंत्री सिद्ध होते हैं।
⚫ इसके अलावा भी संसद की अन्य कई कार्य एवं शक्तियां हैं, जैसे कि
1. यह देश में विचार-विमर्श की सर्वोच्च इकाई है। यह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर बहस करती है।
2. यह तीनों तरह के आपातकाल की संस्तुति करती है।
3. यह संबन्धित राज्य विधानसभा की स्वीकृति से विधान परिषद की समाप्ति या उसका गठन कर सकती है।
4. यह राज्यों के क्षेत्र, सीमा एवं नाम में परिवर्तन कर सकती है।
5. यह उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के गठन एवं न्यायक्षेत्र को नियंत्रित करती है और दो या अधिक राज्यो के बीच समान न्यायालय की स्थापना कर सकती है।
Closing Remarks on Powers of Parliament
भारतीय संसद एक शक्तिशाली संस्था है जो देश के शासन और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद के पास कानून बनाने, सरकार की नीतियों की जांच करने, बजट को मंजूरी देने और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने की शक्ति है।
संसद के दोनों सदन, लोकसभा और राज्यसभा, यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं कि लोगों के हितों की रक्षा की जाए और सरकार को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
भारतीय संविधान संसद के कामकाज और बिलों के पारित होने के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित प्रक्रिया प्रदान करता है। संसद के पास संविधान में संशोधन करने, साधारण विधेयकों, धन विधेयकों और संवैधानिक संशोधन विधेयकों को पारित करने की शक्ति है।
संसद के पास भारत के राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों पर महाभियोग लगाने की शक्ति भी है।
कुल मिलाकर, भारतीय संसद की शक्तियों को यह सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है कि सरकार लोगों के सर्वोत्तम हित में काम करे और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखा जाए।
संसद विविध आवाज़ों, बहस और विचार-विमर्श के प्रतिनिधित्व के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करती है, जो एक कार्यशील लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं।
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Powers of Parliament Practice Quiz
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