इस लेख में हम राष्ट्रपति की शक्तियां एवं कार्य पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे,
तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें।
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राष्ट्रपति की शक्तियां (Powers of President)
राष्ट्रपति की छवि एक विषहीन सर्प की तरह है, लेकिन ये पूरी तरह से सच नहीं है। राष्ट्रपति के पास भी काफी शक्तियाँ है, जिसे वे सही से उपयोग करें तो वे कमजोर बिलकुल नहीं नजर आती। तो आइये राष्ट्रपति के शक्तियों को एक्सप्लोर करते हैं।
राष्ट्रपति की शक्तियां मुख्य रूप से निम्न 7 घटकों के माध्यम से सम्पन्न होता है –
1. कार्यकारी शक्तियाँ (Executive powers)
2. विधायी शक्तियाँ (Legislative powers)
3. वित्तीय शक्तियाँ (Financial powers)
4. न्यायिक शक्तियाँ (Judicial powers)
5. कूटनीतिक शक्तियाँ (Diplomatic powers)
6. सैन्य शक्तियाँ (Military powers)
7. आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency powers)
1. कार्यकारी शक्तियाँ (Executive powers)
राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित कार्यकारी शक्तियाँ (Executive powers) व उससे संबंधित अन्य कार्य है।
संघ की कार्यपालक शक्ति
अनुच्छेद 53 में ये कहा गया है कि संघ की सारी कार्यपालक शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होगी, इसीलिए शासन संबंधी सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं।
अगर राष्ट्रपति के नजरिए से देखें तो केंद्र में भले ही किसी भी पार्टी की सरकार हो लेकिन संवैधानिक दृष्टि से वो राष्ट्रपति की ही सरकार होती है।
विशेष जानकारी के लिए पढ़ें- अनुच्छेद 53 – भारतीय संविधान [कार्यपालिका]
भारत सरकार के कार्य का संचालन
अनुच्छेद 77 के तहत राष्ट्रपति के पास ये शक्ति होती है कि वे इस तरह के नियम बनाए जिससे कि जितने भी आदेश राष्ट्रपति के नाम पर दी जाती है, वे कानूनी रूप से वैध रहे।
साथ ही साथ, वह ऐसे नियम भी बनाए जिससे केंद्र सरकार सहज रूप से कार्य कर सके तथा मंत्रियों को उक्त कार्य सहजता से वितरित हो सकें।
प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करना
अनुच्छेद 75 के तहत प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति करती है। ये तो हम सभी जानते है कि जनता सिर्फ सांसद को चुनती है। प्रधानमंत्री या अन्य मंत्रियों को नहीं।
बहुमत प्राप्त दल के सांसद अपना नेता चुनती है। जिसे कि राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। प्रधानमंत्री अन्य मंत्रियों को चुनती है और इसे भी राष्ट्रपति ही नियुक्त करता है।
इसका मतलब ये होता है कि प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत काम करते हैं। यानी कि राष्ट्रपति अगर चाहे तो प्रधानमंत्री को हटा भी सकती है।
इसका मतलब ये नहीं है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को कभी भी हटा सकती है, बस तभी हटा सकती है जब राष्ट्रपति को लगे कि प्रधानमंत्री अपना बहुमत खो चुकी है।
महान्यायवादी की नियुक्ति तथा उसके वेतन आदि निर्धारित करना
अनुच्छेद 76 के तहत महान्यायवादी (Attorney General) की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करता है। यानी कि भारत के महान्यायवादी भी राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत ही अपने पद पर कार्य करता है और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करता है जो राष्ट्रपति अवधारित करे।
इतना ही नहीं, राष्ट्रपति, भारत के महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG), मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों, राज्य के राज्यपालों, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों आदि की भी नियुक्ति करता है।
राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य
अनुच्छेद 78 में साफ-साफ लिखा है कि केंद्र के कार्यपालक के प्रशासन संबंधी और विधायी संबंधी अगर कोई जानकारी राष्ट्रपति मांगे तो प्रधानमंत्री का ये कर्तव्य होगा कि, राष्ट्रपति के सामने वो उपलब्ध करवाए।
इसी अनुच्छेद में एक और बात का जिक्र है कि – अगर किसी मंत्री द्वारा कोई निर्णय लिया गया हो लेकिन मंत्रिपरिषद ने उस पर विचार नहीं किया हो तो ऐसी स्थिति में अगर राष्ट्रपति कहे तो उस निर्णय को मंत्रिपरिषद के सामने विचार के लिए रखना होगा।
केंद्र-राज्य तथा विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतरराज्यीय परिषद की नियुक्ति करना
अनुच्छेद 263 के तहत, अगर राष्ट्रपति को ये लगता है कि ऐसी परिषद की स्थापना से लोक हित सिद्ध होगा तो वह अपने आदेश से ऐसी परिषद की स्थापना कर सकता है।
अंतर्राज्यीय सम्बन्धों वाले लेख में हमने पढ़ा भी था कि राष्ट्रपति इस प्रकार के कई परिषदों का गठन अतीत में कर चुकी है। जैसे कि – केन्द्रीय स्वास्थ्य परिषद, केन्द्रीय स्थानीय सरकार तथा शहरी विकास परिषद आदि।
वह स्वयं द्वारा नियुक्त प्रशासकों के द्वारा केंद्रशासित राज्यों का प्रशासन सीधे संभालता है।
केंद्र-शासित प्रदेशों का नियम-कानून आमतौर पर राष्ट्रपति ही बनाता है। इस मामले में राष्ट्रपति के पास बहुत सारा विशेषाधिकार होता है। जैसे कि संसद द्वारा बनाए गए कानून राष्ट्रपति के सहमति के पश्चात ही केंद्र-शासित प्रदेश में लागू होता है। तथा राष्ट्रपति अगर चाहे तो उसमें कुछ बदलाव भी कर सकता है।
इसके अलावा राष्ट्रपति अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग की नियुक्त कर सकता है।
इसके साथ ही वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है। उसे अनुसूचित क्षेत्रों तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शक्तियाँ भी प्राप्त हैं।
2. विधायी शक्तियाँ (Legislative powers)
लोकसभा और राज्यसभा के साथ ही राष्ट्रपति भी भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग है तथा उसे निम्नलिखित विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं:-
राष्ट्रपति संसद की बैठक बुला सकता है तथा प्रत्येक नए चुनाव के बाद संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है।
राष्ट्रपति संसद की बैठक बुला सकता है, कुछ समय के लिए संसद को स्थगित कर सकता है तथा लोकसभा को भी विघटित कर सकता है।
अभी हमने ऊपर भी पढ़ा है की प्रधानमंत्री चूंकि राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत काम करता है और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को हटा भी सकता है। अब जब प्रधानमंत्री ही हट जाएगा तो लोकसभा तो विघटित हो ही जाएगा न।
राष्ट्रपति चुनाव के बाद संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित करता है। साथ ही साथ वे प्रत्येक वर्ष भी संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित करता है।
वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आह्वान कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
जब किसी बिल का पास होना बहुत जरूरी होता है लेकिन दोनों सदनों से अलग-अलग पास करवाना थोड़ा मुश्किल होता है, तब राष्ट्रपति अगर चाहे तो दोनों सदनों को एक साथ ही बुला सकती है। इसी को ही संयुक्त अधिवेशन कहा जाता है।
ये बड़ा ही रेयर केस होता है। 1950 के बाद से दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों को मात्र तीन बार बुलाया गया है। इस दौरान जो विधेयक इस संयुक्त बैठक द्वारा पारित हुए, वे हैं: 1. दहेज प्रतिषेध विधेयक 1960 2. बैंक सेवा आयोग विधेयक 1977 3. आतंकवाद निवारण विधेयक 2002।
◾ वह संसद में लंबित किसी विधेयक (Bill) या अन्य किसी संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है।
◾ यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हों तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है।
◾ इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति व उपसभापति दोनों पद रिक्त हों तो वह राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है।
◾ वह साहित्य, विज्ञान, कला व समाज सेवा से जुड़े अथवा जानकार व्यक्तियों में से 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत (Nominate) करता है।
संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफ़ारिश अथवा आज्ञा आवश्यक है।
कुछ खास बिल को बिना राष्ट्रपति से आज्ञा लिए संसद में पेश नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी विधेयक अथवा राज्यों की सीमा परिवर्तन या नए राज्य के निर्माण या संबंधी विधेयक।
अगर आपने धारा 370 हटाये जाने की पूरी कवायद को संसद में देखा होगा तो आपको याद होगा कि अमित शाह ने राष्ट्रपति से पहले ही आज्ञा ले ली थी। तभी तो जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन बिल संसद में पेश हो पाया।
जब एक विधेयक संसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो तीन चीज़ें होती है।
1. वह विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है,
2. वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है, अथवा
3. वह विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) संसद के पास पुनर्विचार के लिए लौटा देता है।
हालांकि यदि संसद विधेयक को संशोधन या बिना किसी संशोधन के पुनः पारित करती है तो राष्ट्रपति की अपनी सहमति देनी ही होती है।
राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है, तब तीन चीज़ें होती है।
1. विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है,
2. विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है, अथवा
3. राज्यपाल को निर्देश देता है कि विधेयक (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) को राज्य विधायिका को पुनर्विचार हेतु लौटा दें।
यह ध्यान देने की बात है कि यदि राज्य विधायिका विधेयक को पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है। वहीं केंद्र वाले मामले में राष्ट्रपति सहमति देने को बाध्य होता है। इसे जरूर याद रखें।
वह संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी कर सकता है।
यानी कि जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। इस अध्यादेश (Ordinance) को, संसद की पुनः बैठक के छह हफ्तों के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है।
इसके अलावा अगर वह चाहे तो किसी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है।
◾ अध्यादेश (Ordinance) के बारे में विस्तार से जानने के लिए President and Ordinance पढ़ें।
वह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादर एवं नागर हवेली एवं दमन व दीव में शांति, विकास व सुशासन के लिए विनियम बना सकता है। तथा उस पर प्रशासन भी कर सकता है। इसे अभी हमें ऊपर पढ़ा है।
पुडुचेरी के भी वह नियम बना सकता है परंतु केवल तब जब वहाँ की विधानसभा निलंबित हो अथवा विघटित अवस्था में हो।
◾ वह महानियंत्रक व लेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है।
3. वित्तीय शक्तियाँ (Financial powers)
राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ (financial powers of President) व कार्य निम्नलिखित हैं:-
धन विधेयक (Money Bill) राष्ट्रपति की पूर्वानुमती से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।
धन विधेयक क्या होता है इसे एक अलग लेख में जानेंगे। अभी के लिए बस इतना समझिए कि जिस किसी भी विधेयक में कराधान (Taxation), सरकार द्वारा धन उधार लेने, भारत के समेकित कोष (Consolidated fund) से धन प्राप्त करने आदि जैसा प्रावधान होता है तो उसे धन विधेयक कहा जाता है।
◾ वह वार्षिक वित्तीय विवरण या फिर केन्द्रीय बजट को संसद के समक्ष रखता है।
◾ अनुदान (Grant) की कोई भी मांग उसकी सिफ़ारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
◾ वह भारत की आकस्मिक निधि (Contingency fund) से, किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।
◾ वह राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व के बँटवारे के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में एक वित्त आयोग (Finance Commission) का गठन करता है।
4. राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां (Judicial powers)
राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ (Judicial powers of president) व कार्य निम्नलिखित हैं:-
1. वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
2. अनुच्छेद 143 के तहत, वह उच्चतम न्यायालय से किसी विधि या तथ्य पर सलाह ले सकता है परंतु उच्चतम न्यायालय की यह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है।
3. वह किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किसी व्यक्ति के लिए दंडादेश को निलंबित, माफ या परिवर्तित कर सकता है, या दंड में क्षमादान, प्राणदंड स्थगित, राहत और माफी प्रदान कर सकता है। [हालांकि इसे कार्यपालिका शक्ति के तहत भी रखा जाता है।
⏫राष्ट्रपति के क्षमादान पर एक अलग से लेख उपलब्ध है। अगर आप जानने के इच्छुक है तो ⏫Powers of president and Pardon पढ़ें।
5. राष्ट्रपति की कूटनीतिक शक्तियां (Diplomatic powers)
? अंतरराष्ट्रीय संधियाँ व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं हालांकि इनके लिए संसद की अनुमति अनिवार्य है।
वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों व मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है और कूटनीतिज्ञों, जैसे – राजदूतों व उच्चायुक्तों को भेजता है एवं उनका स्वागत करता है।
6. राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां (Military powers)
? वह भारत के सैन्य बलो का सर्वोच्च सेनापति (Supreme commander) होता है। इस क्षमता में वह थल सेना, जल सेना व वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति करता है। वह युद्ध या इसकी समाप्ति की घोषणा करता है किन्तु यह संसद की अनुमति के अनुसार होता है।
7. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां (Emergency powers)
? उपरोक्त शक्तियों के अतिरिक्त संविधान ने राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में आपातकालीन शक्तियाँ भी प्रदान की है:-
1. राष्ट्रीय आपातकाल (National emergency)
2. राष्ट्रपति शासन (President’s Rule)
3. वित्तीय आपातकाल (Financial emergency)।
तीनों टॉपिक पर बेहतरीन लेख साइट पर पहले से ही उपलब्ध है। इसीलिए इस सब को यहाँ पर व्याख्यायित नहीं कर रहा हूँ।
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