रा ष्ट्रपति शा सन : क्यों , यों क्या , कब और कैसे [बो म्मई मा मला सहि त]
इस लेख में हम रा ष्ट्रपति शा सन और बो म्मई मा मला (President’s Rule and Bommai Case) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके वि भि न्न महत्वपूर्ण पहलुओंलु ओंको समझेंगे,
तो अच्छी तरह से समझने के लि ए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें सा थ ही इससे संबंधि त अन्य लेखों को भी पढ़ें।
दवा खा लो नहीं तो डॉ क्टर आ के सुईसु लगा देंगे, और बच्चा समया नुसानु सार अपना दवा खा ने लगता है। रा ष्ट्रपति शा सन उस डॉ क्टर की तरह ही है जो अंत में आकर सुईसु लगा ता है और फि र सबकुछ ठी क हो जा ता है।
भा रत के आपा तका ली न प्रा वधा न
आपा तका ल (Emergency) का आशय ऐसी घटना से है जि समें तुरंतुरंत का र्रवा ई की जरूरत हो । ऐसी स्थि ति कभी भी आ सकती है और ये व्यक्ति गत भी हो सकता है और रा ष्ट्री य भी , इसी लि ए भा रत के संवि धा न में आपा तका ली न प्रा वधा नों (Emergency provisions) की व्यवस्था की गई है। ये प्रा वधा न संवि धा न के भा ग 18 में अनुच्नुछेद 352 से 360 तक उल्लि खि त हैं।
आपा तका ल लगा ने के लि ए जरूरी परि स्थि ति याँ
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संवि धा न के भा ग 18 में ऐसी ती न परि स्थि ति यों का जि क्र कि या गया है। जि सके रहने पर आपा तका ल लगा या जा सकता है। ये ती नों अलग-अलग अनुच्नुछेदों में वर्णि त है। जैसे कि –
1. अनुच्नुछेद 352 – इसके तहत युद्धयु, बा ह्य आक्रमण और सशस्त्रत् वि द्रोद् रोह के दौरा न आपा तका ल लगा या जा सकता है। इस प्रका र के आपा तका ल को रा ष्ट्री य आपा तका ल (National emergency) कहा जा ता है।
2. अनुच्नुछेद 356 – जब रा ज्यों में संवैधा नि क तंत्रत् वि फल हो जा ये, तब भी आपा तका ल लगा या जा सकता है। इस प्रका र के आपा तका ल को रा ष्ट्रपति शा सन कहा जा ता है। इसे रा ज्य आपा तका ल और संवैधा नि क आपा तका ल भी कह दि या जा ता है। हा लां कि संवि धा न में सि र्फ ‘रा ष्ट्रपति शा सन’ शब्द का जि क्र कि या गया है।
3. अनुच्नुछेद 360 – जब भा रत की वि त्ती य स्था यि त्व अथवा सा ख खतरे में हो तो उस समय भी आपा तका ल लगा या जा सकता है। इस प्रका र के आपा तका ल को वि त्ती य आपा तका ल कहा जा ता है।
वि त्ती य आपा तका ल (Financial emergency) आजतक देश में लगा ही नहीं इसी लि ए उसके व्या वहा रि क पहलुओंलु ओं पर बहुत ही कम जा नका री उपलब्ध हो ती है।
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रा ष्ट्री य आपा तका ल (National emergency) और रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्यों कि इन दोनों के व्या वहा रि कता का हमें अंदाजा भी है और इसके लगने की संभा वना भी अपेक्षा कृत ज्या दा हो ती है। रा ष्ट्री य आपा तका ल पर पहले ही वि स्तृततृ चर्चा की जा चुकीचु की है। इस लेख में हम अनुच्नुछेद 356 के तहत लगने वा ले रा ष्ट्रपति शा सन को समझेंगे।
रा ष्ट्री य आपा तका ल की तरह रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) भी दागों से मुक्मुत नहीं है। रा ष्ट्री य आपा तका ल तो चलो 3 बा र ही लगा है लेकि न रा ष्ट्रपति शा सन तो 100 से भी अधि क बा र लग चुकाचु का है।
कई बा र तो को ई पा र्टी अपनी खुन्खुनस नि का लने के लि ए कि सी वि पक्षी पा र्टी के रा ज्य में रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या करते थे। इसी तरह के नि जी हि त या पा र्टी हि त में इसे इस्तेमा ल कि ए जा ने के का रण ये भी रा ष्ट्री य आपा तका ल की ही तरह का फी वि वा दास्पद प्रा वधा न बन गया था । हा लां कि बो म्मई मा मले ने का फी हद तक इस समस्या को खत्म कर दि या ।
रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule)
हमा रा देश संवैधा नि क सर्वो च्चता (Constitutional supremacy) वा ला देश है। ऐसे में संवि धा न ठी क से चलता रहे और संवि धा न के अनुसानु सार सबकुछ ठी क से चलता रहें, इसकी जि म्मेवा री रा ष्ट्रपति पर हो ती है।
रा ष्ट्रपति बका यदेसंवि धा न को बचा ने की शपथ भी लेते हैं। इसलि ए जब जरूरत पड़ती है तो वे बचा ते भी है। रा ष्ट्रपति शा सन भी उसी संवैधा नि क व्यवस्था को बना ये रखने का एक तरी का है।
इसका उल्लेख अनुच्नुछेद 355 और अनुच्नुछेद 356 में कि या गया है। अनुच्नुछेद 355 में कहा गया है कि केंद्रद् सरका र का ये कर्तव्य है कि प्रत्येक रा ज्य संवैधा नि क व्यवस्था के अनुरूनु प का र्य करें।
अगर को ई रा ज्य संवैधा नि क व्यवस्था के अनुरूनु प का र्य न करें या फि र कि सी भी वजह से रा ज्य में संवैधा नि क तंत्रत् वि फल हो जा ये तो , अनुच्नुछेद 356 के तहत केंद्रद् उस रा ज्य को अपने नि यंत्रत् ण में ले सकता है। या नी कि रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) लगा या जा सकता है।
चूंकि इसे संवैधा नि क तंत्रत् वि फल हो जा ने पर लगा या जा ता है, इसी लि ए इसे संवैधा नि क आपा तका ल (Constitutional emergency) भी कहा जा ता है। इसी तरह कि सी रा ज्य में लगा ये जा ने के का रण इसे रा ज्य आपा तका ल (State emergency) भी कह दि या जा ता है।
यों है
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रा ष्ट्रपति शा सन क्यों लगा या जा ता है?
जैसा कि अभी हमने ऊपर पढ़ा , अनुच्नुछेद 355 के तहत ये सुनिसुनिश्चि त करना केंद्रद् का कर्तव्य है कि रा ज्य संवैधा नि क उपबंधों के अनुसानु सार का म करता रहे।
अनुच्नुछेद 356 (1) के अनुसानु सार, रा ष्ट्रपति को उस रा ज्य के रा ज्यपा ल द्वा रा रि पो र्ट मि लने पर या फि र रा ष्ट्रपति अगर खुदखु ही आश्वस्त हो जा ये कि उस रा ज्य का शा सन संवि धा न के अनुसानु सार नहीं चला या जा रहा है तो ऐसी स्थि ति में रा ष्ट्रपति उद्घो षणा द्वा रा रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) लगा सकता है।
रा ष्ट्रपति शा सन लगा ने का दूसदू रा आधा र अनुच्नुछेद 365 में मि लता है। जो कहता है कि यदि को ई रा ज्य केंद्रद् द्वा रा दि ये गये नि र्देशों का पा लन करने में या फि र उसे प्रभा वी करने में असफल हो ता है, तो इस स्थि ति में भी रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) लगा या जा सकता है।
Q. रा ष्ट्रपति को ये कैसे पता चलता है कि कि सी रा ज्य का संवैधा नि क तंत्रत् वि फल हो गया है या केंद्रद् द्वा रा नि र्धा रि त नि र्देशों का पा लन करने में को ई रा ज्य असफल रहा है?
रा ज्यों में रा ज्यपा ल इसी के लि ए तो हो ता है, जि स तरह रा ष्ट्रपति संवि धा न को बचा ने की शपथ लेता है, रा ज्यपा ल भी लेता है इसी लि ए ऐसी स्थि ति आने पर वे रा ष्ट्रपति को रि पो र्ट भेजते हैं, उस आधा र पर रा ष्ट्रपति चा हे तो रा ष्ट्रपति शा सन लगा सकता है।
हा लां कि रा ष्ट्रपति अपने वि वेक से भी फैसला ले सकता है अगर उसे लगता है कि कि सी रा ज्य में संवैधा नि क स्थि ति खतरे में हैं।
रा ष्ट्रपति शा सन लगने से हो ता क्या है?
अनुच्नुछेद 356(1) के तहत रा ष्ट्रपति शा सन लगने के सा थ ही रा ष्ट्रपति को नि म्नलि खि त असा धा रण शक्ति याँ प्रा प्त हो जा ती है, जो कि अनुच्नुछेद 356(1) क, ख, और ग में वर्णि त है:
(क) वह रा ज्य सरका र के सा रे का म अपने हा थ में ले लेती हैं यहाँ तक कि रा ज्यपा ल और अन्य जि तने भी का र्यका री अधि का री हैं, उनकी शक्ति याँ भी रा ष्ट्रपति को प्रा प्त हो जा ती हैं।
(ख) रा ष्ट्रपति यह घो षणा कर सकती है कि संसद, रा ज्य वि धा यि का की शक्ति यों का प्रयो ग करेंगी । दूसदू रे शब्दों में कहें तो रा ज्य के वि षयों पर संसद का नूननू बना सकती है।
(ग) वह वे सभी कदम उठा सकता है, जि समें रा ज्य के कि सी भी नि का य या प्रा धि करण से संबंधि त संवैधा नि क प्रा वधा नों को नि लंबन करना शा मि ल है। दूसदू रे शब्दों में कहें तो रा ष्ट्रपति जो भी चा हे का र्यका री आदेश जा री कर सकता है और सा थ ही कि सी संवैधा नि क प्रा वधा नों को नि लंबि त भी कर सकता है।
रा ज्य का प्रशा सन कैसे चलता है?
कि सी रा ज्य में रा ष्ट्रपति शा सन ला गू हो ने की स्थि ति में रा ष्ट्रपति , मुख्मुयमंत्मं रीत् री के नेतृत्तृव वा ली मंत्रिमंत्रि परि षद को भंगभं (dissolution) कर देता है या फि र नि लंबि त (suspend)।
तब रा ज्य का रा ज्यपा ल, रा ष्ट्रपति के ना म पर रा ज्य सचि व की सहा यता से रा ज्य का प्रशा सन चला ता है। हा लां कि रा ष्ट्रपति चा हे तो रा ज्यपा ल को सला ह देने के लि ए एक सला हका र की भी नि युक्तियुक्ति कर सकता है।
चूंकि रा ज्य सूची पर का नूननू बना ने का अधि का र संसद को मि ल जा ता है इसी लि ए रा ज्य के वि धेयक और बजट संसद ही पा रि त करती है।
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रा ष्ट्रपति शा सन के कुछ तथ्य (Some facts of President’s rule)
अनुच्नुछेद 357 के तहत अनुच्नुछेद 356 के अधी न की गई उद्घो षणा के अधी न वि धा यी शक्ति यों के प्रयो ग से संबन्धि त है। इसके तहत, जब को ई रा ज्य वि धा नसभा इस तरह से रा ष्ट्रपति शा सन के का रण वि घटि त हो या नि लंबि त हो , तो ;
(क) संसद रा ज्य वि धा न-मंडमं ल के लि ए वि धि बना ने की शक्ति रा ष्ट्रपति अथवा उनके द्वा रा उल्लि खि त कि सी अधि का री को देसकती है।
(ख) संसद या कि सी प्रति नि धि मंडमं ल के मा मले में, रा ष्ट्रपति या अन्य को ई प्रा धि का री , केंद्रद् अथवा इसके अधि का रि यों व प्रा धि करण पर शक्ति यों पर वि चा र करने और कर्तव्यों के नि र्वहन के लि ए वि धि बना सकते हैं।
(ग) जब लो कसभा का सत्रत् नहीं चल रहा हो तो रा ष्ट्रपति , संसद की अनुमनुति के लि ए लंबि त पड़े रा ज्य की संचि त नि धि के प्रयो ग की प्रा धि कृत कर सकता है।
– जब संसद का सत्रात् रावसा न हो तो रा ष्ट्रपति , रा ज्य के लि ए अध्या देश (Ordinance) जा री कर सकता है।
रा ष्ट्रपति अथवा संसद अथवा अन्य कि सी वि शेष प्रा धि का री द्वा रा बना या गया का नूननू, उस रा ज्य में रा ष्ट्रपति शा सन खत्म हो ने के पश्चा त भी प्रभा व में रहेगा । परंतु इसे रा ज्य वि धा यि का द्वा रा वा पस अथवा परि वर्ति त कि या जा सकता है।
– यहाँ ध्या न देने वा ली बा त है कि रा ष्ट्रपति को उस रा ज्य के उच्च न्या या लय की शक्ति याँ प्रा प्त नहीं हो ती हैं। या नी कि रा ष्ट्रपति शा सन लगने के बा वजूदजू भी उच्च न्या या लय की स्थि ति , शक्ति याँ एवं का र्य पहले की तरह की हो ता है, उसमें रा ष्ट्रपति को ई बदला व नहीं कर सकता ।
संसदीय अनुमोनुमोदन तथा समया वधि
संसदीय अनुमोनुमोदन और समया वधि से संबन्धि त प्रा वधा न अनुच्नुछेद 356 का ही हि स्सा हैं। इसे इस अनुच्नुछेद के क्लॉ ज़ 3, 4 एवं 5 में वर्णि त कि या गया है।
दरअसल ये रा ष्ट्रपति शा सन लगा ने की बा द की प्रक्रि या है। हम ये तो समझ गये है कि घो षणा कि स आधा र पर कि या जा सकता है। अब आइये देखते हैं उसके बा द क्या सब करना पड़ता है।
रा ष्ट्री य आपा तका ल की तरह रा ष्ट्रपति शा सन को भी संसद से अनुमोनुमोदन की आवश्यकता पड़ती है। पर बस कुछ अंतर है, और वो इस कुछ इस प्रका र है;
रा ष्ट्रपति शा सन के घो षणा हो ने के दो मा ह के भी तर संसद के दोनों सदनों से इसका अनुमोनुमोदन (Approval) करवा ना पड़ता है।
अगर रा ष्ट्रपति शा सन तब जा री हो ता है जब लो कसभा का वि घटन हो गया हो , या फि र लो कसभा हो लेकि न दो मही ने के अंदर अनुमोनुमोदन करने से पहले ही वि घटि त हो जा ये तो , ऐसी स्थि ति में जब फि र से लो कसभा का गठन हो गा उसके पहली बैठक से ती स दि न तक वो घो षणा बना रहेगा । लेकि न उससे पहले रा ज्यसभा से वो अनुमोनुमोदि त हो ना चा हि ए, क्यों कि रा ज्य सभा कभी भंगभं नहीं हो ता है।
इस तरह यदि दोनों सदनों से ये अनुमोनुमोदि त (Approved) हो जा ये तो यह छह मही ने तक जा री रह सकता है। इसे अधि कतम 3 सा ल तक के लि ए बढ़ा या जा सकता है लेकि न हर छह मही ने में संसद की स्वी कृति जरूरी है।
यहाँ पर एक बा त या द रखि ए कि 3 सा ल तो बढ़ा या जा सकता है लेकि न 44वें संवि धा न संशो धन 1978 के द्वा रा इस पर दो प्रति बंध लगा दि या गया है।
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या नी कि एक सा ल तक तो रा ष्ट्रपति शा सन आरा म से चल सकता है लेकि न अगर एक सा ल के बा द इसे फि र से छह मही ने बढ़ा ना हो तो , दो स्थि ति यों में ही बढ़ा यी जा सकती है।
पहली कंडि शन ये है कि यदि पूरे भा रत में अथवा पूरे रा ज्य या उसके कि सी भा ग में रा ष्ट्री य आपा त की घो षणा की गई हो , तथा ,
दूसदू रा ये कि , चुनाचुनाव आयो ग यह प्रमा णि त करें कि संबन्धि त रा ज्य में वि धा नसभा के चुनाचुनाव के लि ए कठि ना इयाँ उपस्थि त हैं।
लेकि न क्या हो अगर छह मही ने इसे और बढ़ा ना हो लेकि न उस अवधि में लो कसभा ही भंगभं हो जा ये। ऐसी स्थि ति में फि र से जब लो कसभा का गठन हो गा , उसकी पहली बैठक से 30 दि नों तक वो प्रस्ता व ला गू रहेगा ।
अगर उसे फि र से बढ़ा ना है तो इसी अवधि में फि र से उसे अनुमोनुमोदि त करना हो गा । लेकि न या द रहे कि इससे पहले रा ज्यसभा से वो अनुमोनुमोदि त हो चुकाचु का हो ना चा हि ए। क्यों कि रा ज्यसभा कभी वि घटि त (dissolved) नहीं हो ता है।
जहां रा ष्ट्री य आपा तका ल को वि शेष बहुमत की जरूरत पड़ती है। वहीं रा ष्ट्रपति शा सन (President’s Rule) को ↗️
संसद में सा मा न्य बहुमत से पा रि त कि या जा सकता है। [यहाँ से पढ़ें – वि भि न्न प्रका र के बहुमत ] रा ष्ट्रपति शा सन के घो षणा की समा प्ति
रा ष्ट्रपति शा सन को समा प्त करना बहुत ही आसा न है। इसमें को ई संसद के अनुमोनुमोदन की जरूरत नहीं पड़ती है। बस रा ष्ट्रपति को ये घो षणा करना पड़ता है कि अब रा ष्ट्रपति शा सन समा प्त हो गया । और घो षणा के सा थ ही वो समा प्त हो जा ता है।
रा ष्ट्रपति शा सन और अनुच्नुछेद 356 का प्रयो ग
डॉ . बी आर अंबेडकर ने संवि धा न सभा में अनुच्नुछेद 356 के बा रे में कहा था कि यह एक मृतमृ -पत्रत् (Dead letter) की भां ति ही रहेगी । हा लां कि उनके उम्मी दों पर पा नी फि र गया क्यों कि रा ष्ट्रपति शा सन का इस्तेमा ल इतनी बा र और ऐसी – ऐसी स्थि ति यों में हुआ है कि धी रे-धी रे ये वि वा दास्पद और व्यक्ति गत या रा जनैति क हि त सा धने का एक टूल बन गया ।
सबसे पहले 1951 में पंजा ब में इसे लगा या गया था और तब से लेकर अब तक इसे 100 बा र से अधि क लगा या जा चुकाचु का है। ज़्या दातर मा मलों में इसे रा जनैति क स्वा र्थ सि द्धि के लि ए ही लगा या गया है और ऐसा कहने का का रण भी है। दरअसल इन्दि रा गां धी द्वा रा लगा या गया रा ष्ट्री य आपा तका ल जब 1977 में खत्म हुआ और मो रा र जी देशा ई की सरका र बनी तो , इस सरका र ने काँ ग्रेग् रेस शा सि त 9 रा ज्यों में रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या गया और वो भी बि ना कि सी ठो स वजह के।
इसी तरह जब 1980 में जब काँ ग्रेग् रेस सत्ता में फि र से आयी तो उसने भी गैर-कॉं ग्रेग् रेसी रा ज्यों में रा ष्ट्रपति शा सन लगा दी और अपना बदला ले लि या ।
यही नहीं 1992 हीं में फि र से काँ ग्रेग् रेस सरका र ने 3 बी जेपी शा सि त रा ज्यों में (मध्य-प्रदेश, हि मा चल व रा जस्था न), में इस आधा र पर रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या कि , रा ज्य सरका र केंद्रद् द्वा रा धा र्मि क संगठनों पर लगा ए गए प्रति बंधों का अनुपानुपालन करने में असमर्थ हो रहे हैं। दरअसल उस समय रा म मंदिमंदिर वा ला वि वा द शुरूशु हो चुकाचु का था और RSS को प्रति बंधि त कर दि या गया था और केंद्रद् का मा नना था कि इन बी जेपी शा सि त रा ज्यों ने RSS को अपने रा ज्य में शह दी है।
ऐसे में सवा ल ये आता है कि क्या ये इसी तरह से मनमा नी पूर्वक लगा या जा सकता था , क्या न्या या लय इसपर कुछ नहीं करता था ?
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ऐसी बा त नहीं थी , हा लां कि 38वें संवि धा न संशो धन 1975 के मा ध्यम से इन्दि रा गां धी ने रा ष्ट्री य आपा तका ल के सा थ सा थ रा ष्ट्रपति शा सन के मा मले में भी न्या या लय में चुनौचुनौती देने के प्रा वधा न को खत्म कर दि या था ।
लेकि न 1978 के 44वें संवि धा न संशो धन से मो रा रजी देशा ई की सरका र ने इस प्रा वधा न को हटा दि या गया था । या नी कि न्या या लय द्वा रा रा ष्ट्रपति शा सन न्या यि क समी क्षा तो की जा सकती थी । पर ऐसा हो ता नहीं था ।
लगभग 14 वर्षों तक मनमा ने तरी के से रा ष्ट्रपति शा सन लगा ने का का म चलता रहा । 1994 में जा कर बो म्मई मा मले में सुप्सुप्री म को र्ट ने इसपर सुनसुवा ई की और रा ष्ट्रपति शा सन को थो ड़ा उत्तरदायी और तर्कपूर्ण बना या ।
बो म्मई बना म भा रत संघसं 1994
रा ष्ट्री य आपा तका ल की तरह रा ष्ट्रपति शा सन भी दागमुक्मुत नहीं है। इस पर भी कई सा रे दाग लगे हैं, कुछ तो बड़े ही बेतुकेतुके थे।
वैसे तो ये तब से ही वि वा दास्पद रहा है जब पहली बा र रा ष्ट्रपति शा सन लगा या गया था । पर हद तो तब हो गयी जब 1978 में मो रा रजी देशा ई की सरका र ने नौ कॉं ग्रेग् रेस शा सि त रा ज्यों में रा ष्ट्रपति शा सन लगा दी। इसी के जवा बी का रवा ई में 1980 में कॉं ग्रेग् रेस सरका र ने 9 गैर-कॉं ग्रेग् रेसी रा ज्यों में रा ष्ट्रपति शा सन लगा दी। इतना भी रहता तो ठी क था ।
1988 में कर्ना टक के वि धा नसभा के चुनाचुनाव के बा द जनता पा र्टी और लो क दल ने मि लकर जनता दल बना या और उसके नेता चुनेचुनेगये एस आर बो म्मई। वे मुख्मुयमंत्मं रीत् री बन गये। सि तंबर 1988 में 13 नये सदस्यों के सा थ मंत्रिमंत्रि मंडमं ल का वि स्ता र कि या ।
लेकि न कुछ दि न बा द ही एक वि धा यक ने रा ज्यपा ल पी वैंकटसुबैसुबैया को 1 पत्रत् सौं पासौं पा सा थ ही 19 अन्य वि धा यकों का भी उसके हस्ता क्षर वा ला पत्रत् सौं पासौं पा, उस पत्रत् में समर्थन वा पसी की घो षणा की गयी थी ।
19 अप्रैल 1989 की बा त है रा ज्यपा ल ने रा ष्ट्रपति को पत्रत् लि खा कि हा लि या घटी घटना के मद्देनजर चूंकि अब मुख्मुयमंत्मं रीत् री एस आर बो म्मई के पा स बहुमत नहीं रह गया है इसी लि ए वहाँ अब रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या जा ना चा हि ए।
हा लां कि इसके तुरंतुरंत एक दि न बा द या नी कि 20 अप्रैल को ही उस 19 में से 7 वि धा यकों ने कहा कि मेरे ना म पर जो पत्रत् दि ये गये है वो फर्जी है। हम सब अब भी सरका र के सपो र्ट में हैं।
ऐसा हो ते ही मुख्मुयमंत्मं रीत् री एस आर बो म्मई रा ज्यपा ल के पा स पहुंचे और उन्हो ने रा ज्यपा ल से कहा कि मुझेमु झेबहुमत सा बि त करने का मौ का दि या जा ये। और यही बा त उन्हो ने रा ष्ट्रपति को भी कहा कि यहाँ पर अभी रा ष्ट्रपति शा सन न लगा या जा ये बल्कि पहले मुझेमु झेबहुमत सि द्ध करने का मौ का दि या जा ये।
उसी दि न रा ज्यपा ल ने भी रा ष्ट्रपति को फि र एक पत्रत् के मा ध्यम से कहा कि मुख्मुयमंत्मं रीत् री सदन में अपना वि श्वा स खो चुकाचु का है। इसलि ए यहाँ अनुच्नुछेद 356 (1) के तहत रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या जा ये।
केंद्रद् में कॉं ग्रेग् रेस की सरका र थी रा जी व गां धी उस समय प्रधा नमंत्मं रीत् री थे, और रा ष्ट्रपति ज्ञा नी ज़ैल सिं ह थे। उन्हो ने आव देखा न ता व बो म्मई की सरका र को बर्खा स्त करके 21 अप्रैल 1989 को रा ष्ट्रपति शा सन लगा दी। और कॉं ग्रेग् रेस की बहुमत वा ली सरका र थी इसलि ए संसद के दोनों सदनों से अनुमोनुमोदि त भी कर दि या गया ।
चूंकि बहुमत सा बि त करने का मौ का दि ये बि ना ही रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या गया था । इसी लि ए एस आर बो म्मई 26 अप्रैल 1989 को कर्ना टक हा इ को र्ट गये। पर कर्ना टक हा इ को र्ट ने उनके रि ट पि टि शन को ही खा रि ज कर दि या । ये तो हुआ एक मा मला , इसके अला वे भी उन कुछ सा लों में बहुत कुछ घटा ।
7 अगस्त 1988 को ना गा लैंड के सरका र को भी बर्खा स्त करके वहाँ रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या गया था ।
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जब वहाँ के वि पक्षी दल ने गुवागुवाहा टी हा इ को र्ट में इस आदेश को चुनौचुनौती दी तो केंद्रद् सरका र के आदेश पर वहाँ के हा इ को र्ट के का र्यवा ही पर रो क लगा दी गयी ।
11 अप्रैल 1991 को मेघा लय में भी रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या गया । तब भी कॉं ग्रेग् रेस की ही सरका र केंद्रद् में थी , गठबंधन के सा थ। उस समय प्रधा नमंत्मं रीत् री थे चन्द्रद्शेखर।
पर इससे भी बड़ा बवा ल तो तब हुआ जब 6 दि सम्बर 1992 को बा बरी मस्जि द ढा ह दी गयी थी । चूंकि उस समय आरएसएस, वि श्व हि न्दू परि षद और बजरंग दल की संलि प्तता (Involvement) उसमें सा मने आयी थी तो उस समय इन संगठनों को केंद्रद् सरका र द्वा रा बैन कर दि या गया ।
कॉं ग्रेग् रेस शा सि त रा ज्यों में तो यह आसा नी से हो गया , लेकि न उस समय मध्य प्रदेश, रा जस्था न, हि मां चल प्रदेश में बी जेपी का शा सन था । और वहाँ इन ती नों संगठनों पर प्रति बंध नहीं था । वहाँ वे अपना का म मजे से कर रहे थे। इसी लि ए 15 दि सम्बर 1992 को केंद्रद् सरका र ने इन ती नों रा ज्यों के सरका रों को बर्खा स्त कर दि या और, रा ष्ट्रपति शा सन लगा दि या , और का रण के रूप में कहा गया कि इन रा ज्यों ने केंद्रद् द्वा रा इन संगठनों पर लगा ए गये प्रति बंधों की अवहेलना की है। (या नी कि यहाँ पर अनुच्नुछेद 365 का इस्तेमा ल कि या गया )
अब जब ये सा रे मा मले सुप्सुप्री म को र्ट के पा स पहुंचा तो को र्ट ने इन सभी मा मलों को एक सा थ मि ला दि या और उसे ही एस आर बो म्मई बना म भा रत सरका र का मा मला कहा गया ।
ढेर सा रे सवा ल सुप्सुप्री म को र्ट के पटल पर रखे गए जैसे कि – रा ष्ट्रपति द्वा रा लगा ए गये रा ष्ट्रपति शा सन कहा तक उचि त है? क्या रा ष्ट्रपति के पा स अनुच्नुछेद 356 के तहत रा ष्ट्रपति शा सन लगा ने की असी म शक्ति है? क्या रा ष्ट्रपति शा सन को संसद द्वा रा अनुमोनुमोदि त करने के बा द सुप्सुप्री म को र्ट में चैलेंज नहीं कि या जा सकता है? इत्या दि -इत्या दि ।
11 मा र्च 1994 को सुप्सुप्री म को र्ट के 9 जजों के बेंच ने अपना फैसला सुनासुनाया । को र्ट ने ना गा लैंड, मेघा लय और कर्ना टक में लगा ए गये रा ष्ट्रपति शा सन को अवैध ठहरा या , जबकि मध्यप्रदेश, हि मा चल प्रदेश और रा जस्था न में लगा ए गए रा ष्ट्रपति शा सन को सही ठहरा या । (ऐसा क्यों ?)
क्यों कि को र्ट ने धर्म नि रपेक्षता (Secularism) को संवि धा न का मूलमू ढां चा मा ना और इस आधा र पर लगा ये गये रा ष्ट्रपति शा सन को सही ठहरा या ।
मध्यप्रदेश, हि मां चल प्रदेश और रा जस्था न पर रा म मंदिमंदिर वि वा द को लेकर चूंकि ये आरो प लगा था कि इन रा ज्यों ने धा र्मि क मा मलों में अपनी सहभा गि ता जता यी है इसी लि ए उच्चतम न्या या लय ने इन रा ज्यों में लगा ए गए रा ष्ट्रपति शा सन को सही मा ना ।
बो म्मई मा मले की कुछ महत्वपूर्ण बा तें
1. रा ष्ट्रपति शा सन ला गू करने की रा ष्ट्रपति की घो षणा न्या यि क समी क्षा (judicial review) यो ग्य है। भले ही उसे संसद के दोनों सदनों द्वा रा अनुमोनुमोदि त क्यों न कि या गया हो ।
2. यदि रा ष्ट्रपति शा सन के दौरा न कि या गया का म अता र्कि क या दुर्भादुर्भावना से युक्युत पा या जा ता है तो न्या या लय द्वा रा रा ष्ट्रपति के का र्य पर रो क लगा ई जा सकती है। और केंद्रद् की यह जि म्मेवा री हो गी कि वह रा ष्ट्रपति शा सन को न्या यो चि त सि द्ध करने के लि ए तर्कसम्मत का रणों को प्रस्तुततु करे।
3. अनुच्नुछेद 356 के अधी न शक्ति याँ वि शि ष्ट शक्ति याँ है। इनका प्रयो ग वि शेष परि स्थि ति यों में यदा-कदा ही का रण चा हि ए।
4. यदि न्या या लय रा ष्ट्रपति की घो षणा को असंवैधा नि क और अवैध पा ता है तो उसे वि घटि त रा ज्य सरका र को पुनःपुनः स्था पि त करने और नि लंबि त अथवा वि घटि त वि धा नसभा को पुनःपुनः बहा ल करने का अधि का र है।
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5. रा ज्य वि धा नसभा को केवल तभी वि घटि त कि या जा सकता है, जब रा ष्ट्रपति की घो षणा को संसद की अनुमनुति मि ल जा ती है। जब तक ऐसी कि सी घो षणा को मंजूमं रीजूरी नहीं प्रा प्त हो ती है, रा ष्ट्रपति वि धा नसभा को केवल नि लंबि त कर सकता है। यदि संसद इसे मंजूमं रीजूरी देने में असमर्थ हो ती है तो वि धा नसभा पुनपुर्जी वि त हो जा ती है।
6. रा ज्य सरका र का वि धा नसभा में वि श्वा स मत खो ने का प्रश्न संसद में नि श्चि त कि या जा ना चा हि ए जब तक यह न हो तब तक मंत्रिमंत्रि परि षद बनी रहेगी ।
7. जब केंद्रद् में को ई नया रा जनी ति क दल सत्ता में आता है तो उसे रा ज्यों में अन्य दलों की सरका र को बर्खा स्त करने का अधि का र प्रा प्त नहीं हो गा । [ये फैसला क्यों दि या हो गा आप समझ ही गये हों गे।]
रा ष्ट्रपति शा सन की वर्तमा न स्थि ति
1994 में बो म्मई मा मले के बा द ये बा द अब ये स्थि ति है कि नि म्नलि खि त परि स्थि ति यों में लगा ये गये रा ष्ट्रपति शा सन उचि त हो गा ।
◾ जब आम चुनाचुनावों के बा द वि धा नसभा में कि सी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्रा प्त न हो अर्था त त्रि शंकु वि धा नसभा हो ।
◾ जब बहुमत प्रा प्त दल सरका र बना ने से इंका र कर देऔर रा ज्यपा ल के समक्ष वि धा नसभा में स्पष्ट बहुमत वा ला को ई गठबंधन न हो ।
◾ जब मंत्रिमंत्रि परि षद त्या गपत्रत् देदेऔर अन्य को ई दल सरका र बना ने की इच्छुक न हो अथवा स्पष्ट बहुमत के अभा व में सरका र बना ने की अवस्था में न हो ।
◾ यदि रा ज्य सरका र केंद्रद् सरका र के कि सी संवैधा नि क नि र्देश को मा नने से इंका र कर दे।
◾ सरका र जब सो च वि चा रपूर्वक संवि धा न व का नूननू के वि रुद्ध का र्य करे और इसका परि णा म एक उग्रग् वि द्रोद् रोह के रूप में फूट पड़े।
◾ भौ ति क वि खंडखं न, जहां सरका र इच्छा पूर्वक अपने संवैधा नि क दायि त्व नि भा ने से इंका र कर देजो रा ज्य की सुरसुक्षा को खतरा उत्पन्न कर दें।
नि म्नलि खि त परि स्थि ति यों में रा ष्ट्रपति शा सन लगा ना अनुचिनुचित हो गा ।
◾ जब मंत्रिमंत्रि परि षद त्या गपत्रत् देदेंअथवा सदन के बहुमत के अभा व के का रण बर्खा स्त कर दी जा ये और रा ज्यपा ल एक वैकल्पि क सरका र की संभा वना ओं की जां च कि ए बि ना रा ष्ट्रपति शा सन आरो पि त करने की सि फ़ा रि श करें।
◾ जब रा ज्यपा ल मंत्रिमंत्रि परि षद के समर्थन के संबंध में स्वयं नि र्णय ले एवं मंत्रिमंत्रि परि षद को सदन में बहुमत सि द्ध करने की अनुमनुति दि ए बि ना रा ष्ट्रपति शा सन ला गू करने की सि फ़ा रि श कर दें।
◾ जब वि धा नसभा में बहुमत प्रा प्त दल, लो कसभा के आम चुनाचुनावों में भा री हा र का सा मना करें जैसा कि 1977 तथा 1980 में हुआ था ।
◾ आंतरि क गड़बड़ी जि ससे को ई आंतरि क उच्छेदन अथवा भौ ति क वि घटन या गड़बड़ी न हो । ◾ रा ज्य में कुशा सन अथवा मंत्रिमंत्रि परि षद के वि रुद्ध भ्रभ् ष्टा चा र के आरो प अथवा रा ज्य में वि त्ती य संकट ।
◾ जहां रा ज्य सरका र को अपनी गलती सुधासुधारने के लि ए पूर्व चेता वनी नहीं दी गयी हो । केवल उन मा मलों को छो ड़कर जहां स्थि ति यां , यां वि पत्ति का रक घटना ओं में परि वर्ति त हो ने वा ली हों ।
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◾ जहां सत्ता धा री दल के अंदर की परेशा नि यों के सुलसुझा ने के लि ए अथवा कि सी के बा ह्य अथवा असंगत उदेश्य के लि ए शक्ति का प्रयो ग संवि धा न के वि रुद्ध कि या जा ये। तो कुल मि ला कर यही है रा ष्ट्रपति शा सन, उम्मी द है समझ में आया हो गा । आपा तका ल का ही एक अगला भा ग वि त्ती य आपा तका ल भी है उसे भी अवश्य पढ़ें।