अगर अमेरिका के राष्ट्रपति के समकक्ष इंडिया में कोई है तो वो है प्रधानमंत्री (Prime Minister), क्योंकि वास्तविक कार्यपालिका और राष्ट्राध्यक्ष प्रधानमंत्री ही है।
इस लेख में हम भारत के प्रधानमंत्री (Prime minister of India) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे,
तो इस लेख को अच्छी तरह से समझने के लिए अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही अन्य कार्यपालिकाओं (executives) को भी पढ़ें।
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भूमिका
भारत के प्रधान मंत्री भारत सरकार की कार्यकारी शाखा के प्रमुख हैं। प्रधान मंत्री को भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और ये आमतौर पर राजनीतिक दल या गठबंधन के नेता होते हैं जो भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में बहुमत का आदेश देते हैं।
भारत में प्रधान मंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है और भूमि क्षेत्र के मामले में सातवां सबसे बड़ा देश है।
1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से भारत में कई प्रधान मंत्री रहे हैं। भारत के कुछ सबसे उल्लेखनीय प्रधानमंत्रियों में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी शामिल हैं।
इन नेताओं में से प्रत्येक ने अलग-अलग तरीकों से अपने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को आकार देते हुए देश पर अपनी अनूठी छाप छोड़ी है।
भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में देश के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
◾उन्होंने भारतीय संविधान में इन सिद्धांतों को स्थापित करते हुए एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
◾नेहरू ने भारत की विदेश नीति को विकसित करने, गुटनिरपेक्षता की वकालत करने और अफ्रीका और एशिया में अन्य नए स्वतंत्र राष्ट्रों के साथ गठबंधन बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इंदिरा गांधी, नेहरू की बेटी और भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री, ने आंतरिक राजनीतिक संघर्ष, आर्थिक चुनौतियों और क्षेत्रीय संघर्षों द्वारा चिह्नित उथल-पुथल भरे दौर से देश का नेतृत्व किया।
◾उन्हें बैंकों और उद्योगों के राष्ट्रीयकरण, भूमि सुधार जैसी नीतियों के माध्यम से गरीबों को सशक्त बनाने और देश के परमाणु कार्यक्रम को विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
इंदिरा के बेटे राजीव गांधी ने 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्हें भारत के आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने और देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलने वाले आर्थिक सुधारों को शुरू करने में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता था।
अटल बिहारी वाजपेयी, कार्यालय में पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री थे, जिन्होंने 1998 से 2004 तक कार्य किया।
◾वाजपेयी की सरकार ने बुनियादी ढांचे में सुधार, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्हें पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों को सुधारने और क्षेत्र में कई शांति पहल शुरू करने का श्रेय भी दिया जाता है।
नरेंद्र मोदी, भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री, ने 2014 में पदभार ग्रहण किया और 2019 में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुने गए। मोदी को आर्थिक विकास, नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने और भारत की नौकरशाही और सुधार के उनके प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जाना जाता है।
◾उन्होंने देश के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कारोबारी माहौल में सुधार के लिए स्वच्छ भारत अभियान, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी कई प्रमुख पहल भी शुरू की हैं।
भारत के प्रधान मंत्री देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत के प्रत्येक प्रधान मंत्री ने अपने पूर्ववर्तियों द्वारा रखी गई नींव पर निर्माण करते हुए और अपने तरीके से भारत की नियति को आकार देते हुए देश पर अपनी अनूठी छाप छोड़ी है। आइये इस पद के बारे में विस्तार से समझते हैं;
भारत के प्रधानमंत्री (Prime minister of india)
ये लेख संघीय कार्यपालिका वाले लेख का एक हिस्सा है। मुख्य रूप से 5 संघीय कार्यपालिका होते हैं- (1) राष्ट्रपति (2) उप राष्ट्रपति (3) प्रधानमंत्री (4) मंत्रिमंडल (5) महान्यायवादी। इस लेख में हम प्रधानमंत्री को समझने वाले हैं।
भारतीय संविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री केंद्रीय मंत्रिपरिषद् का प्रमुख और राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। इसके साथ ही वह भारत सरकार के कार्यपालिका का प्रमुख होता है और सरकार के कार्यों को लेकर संसद के प्रति जवाबदेह होता है।
◼ हम जानते हैं कि भारत एक संसदीय व्यवस्था (Parliamentary system) वाला देश है और गणतंत्र (republic) भी है, जहां राष्ट्र प्रमुख (Head of state) और शासन प्रमुख (Head of government) के पद को पूर्णतः विभक्त रखा गया है। सैद्धांतिक रूप से राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख होता है क्योंकि शासन की सारी शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होती है।
लेकिन वास्तविक रूप से संविधान राष्ट्रपति के सारे कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग करने की शक्ति, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित, प्रधानमंत्री को देती है, बस राष्ट्रपति के नाम पर सारा काम होता है पर वो काम करता प्रधानमंत्री है।
चूंकि वास्तविक शक्तियाँ प्रधानमंत्री के पास होता है, प्रधानमंत्री सरकार का भी प्रमुख होता है और ये चुन के भी आते है, इसीलिए प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालिका होता है। इसे De Facto Executive भी कहा जाता है। जबकि राष्ट्रपति के पास केवल नाममात्र की कार्यकारी शक्तियाँ होती है इसीलिए इसे De Jure Executive कहा जाता है।
संवैधानिक प्रावधान
सबसे ज्यादा अनुच्छेदों में राष्ट्रपति की चर्चा की गयी है जबकि प्रधानमंत्री को बस कुछ ही अनुच्छेदों में समेट दिया गया है। दरअसल व्यावहारिक तौर पर देखें तो जनता सीधे प्रधानमंत्री को तो चुनती नहीं है वो तो सांसदों को चुनती हैं।
उसमें से जो बहुमत प्राप्त दल के सांसद होते है वे अपना एक नेता चुनते है जो कि प्रधानमंत्री बनता है और प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का चुनाव करता है, शायद ये एक कारण है जिससे कि प्रधानमंत्री को ज्यादा अनुच्छेद नहीं मिला है।
भारत के प्रधानमंत्री (prime minister of India) से संबन्धित जो मुख्य अनुच्छेद है वो है अनुच्छेद 74 और अनुच्छेद 75। आइये इसे समझते हैं;
अनुच्छेद 74 – राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
इस अनुच्छेद में 2 क्लॉज़ हैं जो कि निम्नलिखित है-
(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे।
यहाँ से दो बातें पता चलती है पहला कि एक मंत्रिपरिषद होगा उसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे, दूसरी बात कि ये राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए होंगे।
हालांकि संविधान में लिखा हुआ है कि मंत्रिपरिषद द्वारा की गई सलाह को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए भी कह सकता है लेकिन पुनर्विचार के बाद जो सलाह दी जाएगी उसे राष्ट्रपति को मानना ही पड़ेगा।
लेकिन इससे भी दिलचस्प बात इसी अनुच्छेद के क्लॉज़ 2 में लिखी है वो ये है कि ”इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी की क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या दी।”
कुल मिलाकर इसका मतलब ये है कि मंत्रिपरिषद, राष्ट्रपति को सलाह देता है या नहीं इससे कोई फर्क पड़ता नहीं है क्योंकि ये जांच का विषय नहीं है।
अनुच्छेद 75 – मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
इस अनुच्छेद में 6 क्लॉज़ हैं, जो कि निम्नलिखित है-
(1) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा।
91वां संविधान संशोधन 2003 के माध्यम से इसमें एक प्रावधान ये जोड़ दिया गया कि मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। यानी कि लगभग 80 -81 सदस्य ही मंत्रिपरिषद का हिस्सा हो सकता है।
(2) मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत अपने पद धारण करेंगे, यानी कि राष्ट्रपति चाहे तो मंत्रियों को अपने पद से हटा सकता है, लेकिन कैसे इसे आगे समझते हैं;
(3) मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
(4) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति उसको पद की गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
(5) कोई मंत्री, जो निरंतर छह मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
(6) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो संसद, विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे।
आइये इन प्रावधानों को समझते हैं;
प्रधानमंत्री की नियुक्ति (Appointment of Prime Minister)
प्रधानमंत्री की नियुक्ति कैसे होगी इसकी कोई विशेष व्यवस्था संविधान में नहीं दी गई है बस अनुच्छेद 75 में इसके बारे में बताया गया है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और प्रधानमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करेगा। अब सवाल ये है कि राष्ट्रपति किसे प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है?
चूंकि हम संसदीय व्यवस्था (Parliamentary system) के अनुसार चलते हैं और इसमें पूर्ण बहुमत प्राप्त दल के नेता ही प्रधानमंत्री बनते है इसीलिए राष्ट्रपति के पास ये समस्या नहीं होता है कि वो किसे प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करें।
◾अगर किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं भी मिलता है तो गठबंधन की जो व्यवस्था होती है उससे मामला सुलझ जाता है। वैसे आमतौर पर यदि लोकसभा में कोई भी दल स्पष्ट बहुमत में न हो तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति में अपने विवेक का प्रयोग करने को स्वतंत्र होता है।
इस स्थिति में राष्ट्रपति समान्यतः: सबसे बड़े दल अथवा गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है और उससे 1 माह के भीतर सदन में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहता है। राजनैतिक दल कोई न कोई जुगाड़ करके विश्वास मत हासिल कर ही लेता है।
◾राष्ट्रपति द्वारा इस विवेक का प्रयोग प्रथम बार 1979 में किया गया, जब तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवन रेड्डी ने मोरार जी देशाई वाली जनता पार्टी की सरकार के पतन के बाद चरण सिंह (जो कि एक गठबंधन के नेता थे) को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
और उसे 1 माह का समय बहुमत सिद्ध करने के लिए दिया गया था, हालांकि उससे पहले ये व्यवस्था स्पष्ट नहीं था। 1980 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस व्यवस्था को स्पष्ट किया।
◾पहले व्यवस्था ये था कि जब तक बहुमत सिद्ध न हो जाये तब तक प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति नहीं कर सकता था लेकिन सन 1980 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यह आवश्यक नहीं है कि एक व्यक्ति प्रधानमंत्री नियुक्त होने से पूर्व लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करें।
राष्ट्रपति को पहले प्रधानमंत्री की नियुक्ति करनी चाहिए और तब एक यथोचित समय सीमा के भीतर उसे लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना चाहिए।
उदाहरण के लिए, चरण सिंह 1979, वी.पी. सिंह 1989, चन्द्रशेखर 1990, पी. वी. नरसिम्हाराव 1991, अटल बिहारी वाजपेयी 1996, एच.डी. देवगौड़ा 1996 आइ. के. गुजराल 1997 और पुनः अटल बिहारी वाजपेयी 1998; इसी प्रकार प्रधानमंत्री नियुक्त हुए।
प्रधानमंत्री के जुड़े कुछ तथ्य
◼ 1997 में उच्चतम न्यायालय ने एक निर्णय दिया कि एक व्यक्ति को जो किसी भी सदन का सदस्य न हो, 6 माह के लिए प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता है।
हालांकि इस समायावधि में उसे संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा, अन्यथा वह प्रधानमंत्री के पद पर नहीं बना रहेगा। इसका सीधा सा मतलब ये है कि अगर कोई व्यक्ति किसी सदन का सदस्य नहीं भी है तब भी वो कम से कम 6 महीने के लिए प्रधानमंत्री बन सकता है।
◼ संविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य हो सकता है। उदाहरण के लिए इन्दिरा गांधी 1966, देवगौड़ा 1996 तथा मनमोहन सिंह 2004 और 2009 में राज्यसभा के सदस्य थे।
प्रधानमंत्री की शपथ (Oath of Prime Minister of India)
अनुच्छेद 75(4) के तहत, प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति उसे पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाता है।
पद की शपथ लेते हुए प्रधानमंत्री कहता है कि –
मैं, —————– ईश्वर की शपथ लेता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता एवं अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में श्रद्धापूर्वक एवं शुद्ध अन्तःकरण से अपने पद के दायित्यों का निर्वहन करूंगा, मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।
◼ प्रधानमंत्री गोपनियता की शपथ के रूप में कहता है – मैं, ……………… ईश्वर की शपथ लेता हूं कि जो विषय मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा, उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा। ;
Fact – यहाँ ये याद रखिए कि प्रधानमंत्री ऊपर बताए गए दो शपथ के अलावे भी दो अन्य शपथ लेता है- एक तो चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र दाखिल करते समय और दूसरा सदन के सदस्य के रूप में (जो कि पीठासीन अधिकारी के समक्ष लिया जाता है)। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री या मंत्री कुल चार प्रकार का शपथ लेता है, जो कि संविधान के अनुसूची 3 में वर्णित है।
प्रधानमंत्री का कार्यकाल (Term of Prime Minister of India)
वैसे तो प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, अगर किसी एक दल का पूर्ण बहुमत है तो 5 वर्ष चल भी जाता है। अगर पूर्ण बहुमत नहीं है तो उसका कार्यकाल निश्चित नहीं होता है और चूंकि वे राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत अपने पद पर बना रहता है इसीलिए राष्ट्रपति चाहे तो उसे अपने पद से हटा सकता है।
हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रपति किसी भी समय प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकता है। प्रधानमंत्री को जब तक लोकसभा में बहुमत हासिल है, राष्ट्रपति उसे बर्खास्त नहीं कर सकता है।
लेकिन लोकसभा में अपना विश्वास मत खो देने पर उसे अपने पद से त्यागपत्र देना होगा अगर वो त्यागपत्र न दे तो तब राष्ट्रपति उसे बर्खास्त कर सकता है।
यहाँ ये याद रखिए कि प्रधानमंत्री पद के लिए कोई निश्चित कार्यकाल तय नहीं किया गया है बल्कि वो अनिश्चितकाल के लिए प्रधानमंत्री बने रह सकता है वो भी तब तक जब सदन का विश्वास उसे हासिल है।
प्रधानमंत्री की शक्तियाँ एवं कार्य
कार्यकारी शक्तियाँ – जैसे कि हमने ऊपर भी पढ़ा कि वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ प्रधानमंत्री के पास ही होता है जिसे वे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल करते हैं।
◾प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल में किसी भी व्यक्ति को शामिल कर सकता है, उसे निकाल सकता है या निलंबित कर सकता है। कहने का अर्थ ये है कि पूरा मंत्रिपरिषद प्रधानमंत्री के पसंद का होता है।
◾मंत्रालय का आवंटन हो या कैबिनेट मीटिंग सभी पर प्रधानमंत्री का नियंत्रण होता है। वे कैबिनेट की अध्यक्षता करता है एवं इच्छित विषय को अपनी स्वीकृति प्रदान करता है।
◾प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद एवं राष्ट्रपति के बीच एक पुल की तरह काम करता है, इस तरह प्रधानमंत्री समय-समय पर सभी जरूरी सूचनाएँ एवं गतिविधियों की जानकारी राष्ट्रपति तक पहुंचाता है।
◼ इसके अलावा प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को विभिन्न अधिकारियों जैसे – भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India), भारत का महानियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG), संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों एवं अन्य की नियुक्त के संबंध में परामर्श देता है। या दूसरे शब्दों में कहें तो इनके पसंद से ही इन पदों पर नियुक्तियाँ होती है।
◾वह नीति आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद, अंतर्राज्यीय परिषद और राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद का अध्यक्ष होता है।
◾वह राष्ट्र की विदेश नीति को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों (Heads of state) से मिलता है एवं विभिन्न प्रकार के समझौता ज्ञापनों (Memorandum of understanding) पर हस्ताक्षर करता है।
◾वह सत्ताधारी दल का नेता तो होता ही है साथ ही वह केंद्र सरकार का मुख्य प्रवक्ता भी होता है। देश का नेता होने के नाते वह विभिन्न राज्यों के विभिन्न वर्गों के लोगों से मिलता है और उनकी समस्याओं के संबंध में ज्ञापन प्राप्त करता है
◾वह आपातकाल के दौरान राजनीतिक स्तर पर आपदा प्रबंधन का प्रमुख है इसके अलावा वह सेनाओं का राजनैतिक प्रमुख भी होता है, इत्यादि।
मंत्रिपरिषद के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री की शक्तियाँ
1. वह मंत्री नियुक्त करने हेतु अपने दल के व्यक्तियों की राष्ट्रपति को सिफ़ारिश करता है। राष्ट्रपति उन्ही व्यक्तियों को मंत्री नियुक्त कर सकता है जिनकी सिफ़ारिश प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
2. वह मंत्रियों को विभिन्न मंत्रालय आवंटित करता है और उनमें फेरबदल भी कर सकता है। इसके साथ ही वह किसी मंत्री को त्यागपत्र देने अथवा राष्ट्रपति को उसे बर्खास्त करने की सलाह दे सकता है।
3. वह मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करता है तथा उसके निर्णयों को प्रभावित करता है। इसके साथ ही वह सभी मंत्रियों की गतिविधियों को नियंत्रित, निर्देशित करता है और उनमें समन्वय रखता है।
4. वह अपने पद से त्यागपत्र देकर पूरे मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर सकता है। चूंकि प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है, अत: जब प्रधानमंत्री त्यागपत्र देता है अथवा उसकी मृत्यु हो जाती है तो मंत्रिपरिषद विघटित हो जाता है यानी कि सरकार गिर जाता है।
वहीं दूसरी ओर किसी अन्य मंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र पर सरकार नहीं गिरता है बल्कि बस एक मंत्री का सीट खाली होता है, प्रधानमंत्री जिसे चाहे वहाँ बैठा सकता है।
राष्ट्रपति के संबंध में प्रधानमंत्री के कार्य
हमने राष्ट्रपति वाले लेख में देखा था कि प्रधानमंत्री सारे काम राष्ट्रपति के नाम पर ही करते हैं। चूंकि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवं मंत्रिपरिषद से बीच संवाद की मुख्य कड़ी है। अतः अनुच्छेद 78 के अनुसार उसका दायित्व है कि वह:-
1. संघ के कार्यपालक के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय (Decision) राष्ट्रपति को संसूचित करें। इसका सीधा सा मतलब ये है कि मंत्रिपरिषद प्रशासन और विधि से संबन्धित जितने भी निर्णय लेते है उसे राष्ट्रपति को भी बताएं।
2. संघ के कार्यपालक के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनों संबंधी जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे, प्रधानमंत्री वह दे, और
3. किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय (Decision) कर दिया है किन्तु उस विषय पर मंत्रीपरिषद ने विचार नहीं किया है, ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर प्रधानमंत्री, मंत्रीपरिषद के समक्ष उसे विचार के लिए रखे।
संसद के संबंध में प्रधानमंत्री की शक्तियाँ
प्रधानमंत्री निचले सदन का नेता होता है। इस संबंध में वह निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग करता है।
1. वह राष्ट्रपति को संसद का सत्र आहूत करने एवं सत्रावसान करने संबंधी परामर्श देता है।
2. वह किसी भी समय लोकसभा विघटित करने की सिफ़ारिश राष्ट्रपति से कर सकता है।
3. वह सभा पटल पर सरकार की नीतियों की घोषणा करता है।
◼ इस प्रकार प्रधानमंत्री देश की राजनीतिक -प्रशासनिक व्यवस्था में अति महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका निभाता है।

“हमारे संविधान के अंतर्गत किसी कार्यकारी की यदि अमेरिका के राष्ट्रपति से तुलना की जाये तो वह प्रधानमंत्री है, न कि राष्ट्रपति“
— डॉ. बी आर अंबेडकर
भारत के प्रधानमंत्री की सूची
नाम | कार्यकाल |
---|---|
जवाहरलाल नेहरू | अगस्त 15, 1947 – मई 27, 1964 |
गुलजारी लाल नंदा (कार्यवाहक) | मई 27, 1964 – जून 9, 1964 |
लाल बहादुर शास्त्री | जून 09, 1964 – जनवरी 11, 1966 |
गुलजारी लाल नंदा (कार्यवाहक) | जनवरी 11, 1966 – जनवरी 24, 1966 |
इंदिरा गांधी | जनवरी 24, 1966 – मार्च 24, 1977 |
मोरारजी देसाई | मार्च 24, 1977 – जुलाई 28, 1979 |
चरण सिंह | जुलाई 28, 1979 – जनवरी14 , 1980 |
इंदिरा गांधी | जनवरी 14, 1980 – अक्टूबर 31 , 1984 |
राजीव गांधी | अक्टूबर 31, 1984 – दिसंबर 01, 1989 |
विश्वनाथ प्रताप सिंह | दिसंबर 02, 1989 – नवंबर 10, 1990 |
चंद्रशेखर | नवंबर 10, 1990 – जून 21, 1991 |
पी. वी. नरसिम्हा राव | जून 21, 1991 – मई 16, 1996 |
अटल बिहारी वाजपेयी | मई 16, 1996 – जून 01, 1996 |
एच. डी. देवेगौड़ा | जून 01, 1996 – अप्रैल 21, 1997 |
इंद्रकुमार गुजराल | अप्रैल 21, 1997 – मार्च 18, 1998 |
अटल बिहारी वाजपेयी | मार्च 19, 1998 – अक्टूबर 13, 1999 |
अटल बिहारी वाजपेयी | अक्टूबर 13, 1999 – मई 22, 2004 |
डॉ. मनमोहन सिंह | मई 22, 2004 – मई 26, 2014 |
नरेन्द्र मोदी | मई 26, 2014 – वर्तमान तक |
समापन टिप्पणी
भारत का प्रधान मंत्री सरकार का प्रमुख होता है, लेकिन राज्य का प्रमुख नहीं। भारत का राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख होता है। भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्होंने 1947 से 1964 तक सेवा की।
इंदिरा गांधी भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया।
इसी तरह से अटल बिहारी वाजपेयी कार्यालय में पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री थे। उन्होंने 1998 से 2004 तक प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया।
भारत के प्रधान मंत्री का आधिकारिक निवास 7, लोक कल्याण मार्ग है, जिसे पहले 7, रेस कोर्स रोड के नाम से जाना जाता था।
कुल मिलाकर, भारत के प्रधान मंत्री देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। पिछले कुछ दशकों में, भारत में कई प्रधान मंत्री हुए हैं जिन्होंने देश की नियति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उनके योगदान ने भारत को एक मजबूत अर्थव्यवस्था, विविध सांस्कृतिक विरासत और समृद्ध इतिहास के साथ एक लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्ष राज्य के रूप में उभरने में मदद की है।
जैसे-जैसे भारत विकसित हो रहा है, देश को प्रगति, विकास और सामाजिक सद्भाव की ओर ले जाने में प्रधान मंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है।
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◼◼◼
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मूल संविधान भाग 5↗️
भारत का प्रधानमन्त्री
संविधान की तीसरी अनुसूची