राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election): जब हम संसद की बात करते हैं तो उसका मतलब होता है लोकसभा (Lok Sabha), राज्यसभा (Rajya Sabha) और राष्ट्रपति (President)।
लोकसभा का चुनाव तो जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान द्वारा हो जाता है लेकिन राष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
इस लेख में हम राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha elections) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।
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राज्यसभा का संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions of Rajya Sabha):
संविधान के लागू होते ही लोकसभा तो अस्तित्व में आ गया लेकिन राज्यसभा पहली बार प्रथम लोकसभा चुनाव (1951-52) के बाद अस्तित्व में आया। हालांकि औपचारिक तौर पर अगस्त 1954 में इसके गठन की घोषणा की गई।
और 7वां संविधान संशोधन द्वारा चौथी अनुसूची के माध्यम से राज्यसभा में सीटों का आवंटन किया गया। सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया गया है इसीलिए ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य को ज्यादा सीटें मिली हैं, जैसे कि उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक 31 सीटें मिली हैं जबकि त्रिपुरा एवं गोवा जैसे छोटे राज्यों को सिर्फ 1 सीट मिली है।
संविधान के अनुच्छेद 80 में ये व्यवस्था की गई है कि राज्यसभा में अधिकतम सदस्यों की संख्या 250 होगी। जिसमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाएँगे और शेष 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाएगा।
फिलहाल राज्यसभा में 245 सदस्य भाग लेते हैं जिसमें से 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। यानी कि 233 सदस्य ऐसे हैं जो चुनकर आते हैं। इसके चुनाव प्रक्रिया के बारे में अनुच्छेद 80(4) में बताया गया है।
अनुच्छेद 80(4) के अनुसार, राज्यसभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
दूसरे शब्दों में कहें तो राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य (Elected Member) करते हैं जिसे कि निर्वाचक मंडल (electoral College) कहा जाता है। मतलब ये कि राज्यसभा उम्मीदवारों के मतदाता विधायक होते हैं।
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राज्यसभा सदस्यों के चयन की प्रक्रिया
राज्यसभा एक निरंतर चलने वाली संस्था है, यानी कि लोक सभा की तरह ये कभी विघटित नहीं होता है। लेकिन इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त (Retire) होते हैं। इसका मतलब ये है कि हर दूसरे वर्ष में एक तिहाई सदस्यों को भरने के लिए चुनाव होता है।
यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है कि इस्तीफे (Resignation), मृत्यु (death) या अयोग्यता (Disqualification) के कारण उत्पन्न होने वाली रिक्तियों को उपचुनावों के माध्यम से भरा जाता है, लेकिन ऐसे सदस्य अपने पूर्ववर्तियों के बचे शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए होते हैं न कि पूरे छह वर्ष के लिए।
संविधान में राज्यसभा सदस्यों के कार्यकाल के बारे में कुछ नहीं कहा गया है इसे संसद पर छोड़ दिया गया था, इसीलिए संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष कर दिया।
◾ राज्यसभा चुनाव के लिये नामांकन दाखिल करने के लिए कम से कम 10 निर्वाचक मण्डल के सदस्यों की सहमति अनिवार्य होती है।
विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – राज्यसभा: गठन, संरचना, शक्तियाँ
राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election) कैसे होता है?
जैसा कि ऊपर बताया गया है राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य के निर्वाचित विधायक करते हैं। लेकिन हर सीट के लिए विधायकों द्वारा अलग-अलग वोट नहीं डाला जाता, क्योंकि अगर ऐसा होगा तो हर सीट पर सत्तारूढ़ पार्टी ही कब्जा कर लेगी। इसी से बचने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति (PR System) के अनुसार एकल संक्रमणीय मत (STV) का इस्तेमाल किया जाता है।
एकल संक्रमणीय मत प्रणाली में मतदाता का वोट तो एक ही होता है लेकिन वो संक्रमणीय (Transferable) होता है। दरअसल इसके तहत, वोटिंग के वक्त हर विधायक को एक सूची दी जाती है, जिसमें उसे राज्यसभा प्रत्याशियों के लिए अपनी पहली पसंद (First Preference ), दूसरी पसंद (Second Preference ), तीसरी पसंद (Third Preference ) आदि लिखनी होती है।
◾ एक उम्मीदवार को जीतने के लिए कितने विधायकों के वोटों की आवश्यकता होगी इसे पहले ही रिक्त सीटों के आधार पर निकाल लिया जाता है।
यानी कि इस व्यवस्था में जीतने के लिए एक निश्चित वोट लाना ही पड़ता है। फ़र्स्ट पास्ट दी पोस्ट सिस्टम की तरह नहीं होता है कि जो सबसे ज्यादा वोट लाएगा वही जीतेगा।
ऐसे में यदि किसी उम्मीदवार को पहली काउंटिंग में वो निश्चित वोट प्राप्त नहीं होता है तो दूसरे और तीसरे आदि राउंड की काउंटिंग की जाती है और तभी दूसरी पसंद (Second Preference), तीसरी पसंद (Third Preference) आदि काम में आता है। इस सब का क्या मतलब है आइये उदाहरण से समझते हैं;
राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया का उदाहरण
चलिये दिल्ली का उदाहरण लेकर इसे समझते हैं। दिल्ली में राज्यसभा की 3 सीटें है मान लेते हैं कि 2 सीटें अभी खाली है और उस पर चुनाव होना है। दिल्ली में विधानसभा की कुल 70 सीटें है यानी कि कुल 70 वोटर है जो वोट डालेंगे।
नियम ये है कि जितनी सीटें खाली है उसमें 1 जोड़कर, कुल विधानसभा सीटों में उससे भाग दे देना है और जितना परिणाम आएगा उसमें 1 और जोड़ देना है।
जीतने का कोटा = कुल वोटों की संख्या / (राज्यसभा सीटों की संख्या + 1) + 1
इस उदाहरण के हिसाब से देखें तो, 2+1 =3 होता है। इस 3 से 70 में भाग दें, तो 23.3 आएगा। अब इसमें 1 और जोड़ देना है; यानी कि 24.3 होगा। राउंड फ़िगर में इसे 24 ले सकते हैं।
इसका मतलब ये हुआ कि 1 उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 24 विधायकों का वोट तो चाहिए ही चाहिए। अभी के सिचुएशन को लें तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पास 70 में से 62 विधायक हैं।
दोनों उम्मीदवारों को जीतने के लिए चाहिए कम से कम 48 विधायकों का वोट। यानी कि इस स्थिति में आम आदमी पार्टी अपना उम्मीदवार उतार देगा और वो आराम से जीत जाएगा।
नोट – अगर 1 से अधिक सीटों के लिए चुनाव होना हो तो फॉर्मूला में कुल MLA के संख्या में 100 से गुना कर दिया जाता है। यानि कि इसे कुछ इस तरह से लिखा जाता है। यानि कि 1 से अधिक सीटों के चुनाव में प्रत्येक MLA के वोट का वैल्यू 100 माना जाता है।
जीतने का कोटा = कुल वोटों की संख्या x 100 / (राज्यसभा सीटों की संख्या + 1) + 1
ये तो हुआ एक ऐसी स्थिति जब एक दल के पास इतने विधायक है कि वे अकेले ही अपने उम्मीदवार को जीता सकता है, लेकिन अगर मान लें कि 70 विधायकों में से आम आदमी पार्टी के पास 25 विधायक है और भाजपा के पास 30 विधायक हैं और काँग्रेस के पास 15 विधायक हैं और सीटें 1 ही खाली है; तो ऐसी स्थिति में क्या होगा?
जाहिर है उस 1 सीट के लिए तीनों अपने-अपने उम्मीदवार उतारेंगे। इस 1 सीट के लिए अगर कोटा निकाले तो 36 आता है[(70/1+1) +1]। यानी कि किसी भी उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 36 विधायकों का वोट चाहिए। और हमारे केस में किसी भी दल के पास 36 विधायक नहीं हैं।
यहाँ पर एक स्थिति ये हो सकती है कि कोई दो दल समझौता कर लें और अपने उम्मीदवार को जीता दें। लेकिन समझने के लिए मान लेते हैं तीनों दलों ने अलग-अलग ही वोट किया है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है सभी वोटर (यानी कि विधायक) अपनी पहली पसंद, दूसरी पसंद और तीसरी पसंद चुनेगा। मान लेते हैं कि तीनों ने कुछ इस तरह से अपनी पसंद चुनी है-
भाजपा विधायक | पसंद |
पहली पसंद | भाजपा उम्मीदवार |
दूसरी पसंद | आप उम्मीदवार |
तीसरी पसंद | काँग्रेस उम्मीदवार |
आप विधायक | पसंद |
पहली पसंद | आप उम्मीदवार |
दूसरी पसंद | भाजपा उम्मीदवार |
तीसरी पसंद | काँग्रेस उम्मीदवार |
काँग्रेस विधायक | पसंद |
पहली पसंद | काँग्रेस उम्मीदवार |
दूसरी पसंद | आप उम्मीदवार |
तीसरी पसंद | भाजपा उम्मीदवार |
सबसे ज्यादा भाजपा के पास विधायक (30) है, यानी कि जीतने के लिए छह वोट अभी भी कम है। यहाँ पहले चार्ट में देखें तो पता चलता है कि भाजपा के तीसों विधायकों ने अपनी पहली पसंद के रूप में अपने ही उम्मीदवार को चुना है।
इसी तरह से आप के 25 विधायकों ने अपनी पहली पसंद के रूप में आप उम्मीदवार को चुना है और 15 काँग्रेस विधायकों ने अपनी पहली पसंद के रूप में काँग्रेस उम्मीदवार को चुना है। इसे आप नीचे दिये गए चार्ट में देख सकते हैं
उम्मीदवार | प्राप्त वोट |
भाजपा उम्मीदवार | 30 |
आप उम्मीदवार | 25 |
काँग्रेस उम्मीदवार | 15 |
यहाँ पर देखा जा सकता है कि किसी उम्मीदवार को 36 वोट नहीं मिला है इसीलिए अब वोट ट्रान्सफर किया जाएगा। इसके लिए दूसरे राउंड की काउंटिंग शुरू की जाएगी।
एकल संक्रमणीय मत व्यवस्था के अनुसार जिसको सबसे कम वोट मिला है उसकी दूसरी पसंद (Second Preference) देखी जाएगी। यहाँ पर पहली पसंद के रूप में सबसे कम वोट काँग्रेस को मिला है इसीलिए इसका वोट ट्रान्सफर कर दिया जाएगा। इसके लिए इन पन्द्रहों कोंग्रेसी वोटरों की दूसरी पसंद (Second Preference) देखी जाएगी।
काँग्रेस विधायकों का चार्ट देखें तो उसके पन्द्रहों विधायकों की दूसरी पसंद (Second Preference) आम आदमी पार्टी है। इसका मतलब ये है कि इन पन्द्रहों वोटों का ट्रान्सफर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को हो जाएगा।
आप विधायक के पास पहले से ही 25 वोट हैं और अब 15 और मिल गया, इस तरह से उसके उम्मीदवार को कुल 40 वोट प्राप्त हो गया जबकि जीतने के लिए सिर्फ 36 ही चाहिए था इसीलिए आप उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाएगा।
इस तरह से देखा जा सकता है कि पहली पसंद के रूप में सबसे ज्यादा वोट भाजपा उम्मीदवार को मिला था लेकिन दूसरे राउंड की काउंटिंग में वोट ट्रान्सफर होने के कारण भाजपा उम्मीदवार हार गया और आप उम्मीदवार जीत गया। एकल संक्रमणीय मत (Single transferable vote) व्यवस्था की यही खूबसूरती है।
तो कुल मिलाकर ऐसे ही होता है राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha election); उम्मीद है समझ में आया होगा। अब आइये इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को समझ लेते हैं-
राज्यसभा चुनाव से संबंधित तथ्य (Facts Related to Rajya Sabha Election):
▪️ आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति में चुनाव जीतने के लिए जरूरी सीटें निकालने के इस फॉर्मूले को ‘हेयर फॉर्मूले‘ के नाम से जाना जाता है क्योंकि 1857 में अंग्रेज राजनीतिज्ञ थॉमस हेयर ने इसे बनाया था।
भारत में इस पद्धति का प्रयोग राज्यसभा चुनाव के अलावा राष्ट्रपति और विधान परिषद के सदस्यों के चुनाव के लिए भी होता है। इसके अलावा अमेरिका, कनाडा, माल्टा और आयरलैंड जैसे देशों में भी इस पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है।
▪️ राज्यसभा चुनावों के लिये खुली मतपत्र प्रणाली (Open Ballot System) को अपनाया जाता है, यानी कि प्रत्येक दल के विधायक को मतपेटी में अपना मत डालने से पूर्व अपने दल के अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है।
यदि किसी विधायक द्वारा अपने दल के अधिकृत एजेंट के अलावे किसी अन्य दल के एजेंट को मतपत्र दिखाया जाता है तो उसका वोट अमान्य हो जाएगा। वहीं अधिकृत एजेंट को मतपत्र न दिखाना भी वोट को अमान्य कर देगा।
▪️ भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा 2014 और 2015 को दो परिपत्र जारी किये गए थे, जिसमें राज्यसभा चुनावों में नोटा (None of the Above- NOTA) के विकल्प के प्रयोग की बात की थी। लेकिन अगस्त, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल नहीं होगा।
Rajya Sabha Election Practice Quiz
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भारत की राजव्यवस्था↗️
मूल संविधान
हमारी संसद – सुभाष कश्यप
THE CONSTITUTION (SEVENTH AMENDMENT) ACT, 1956
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