इस लेख में हम भारत में आरक्षण (Reservation in India) के आधारभूत तत्वों पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

कहने को तो ये बस एक कोटा सिस्टम (quota system) है पर क्रमिक विकास ने इसे इतना जटिल बना दिया है कि आम आदमी इसके कई पहलुओं से वंचित रह जाता है।

🔹 समझने की दृष्टि से इस पूरे लेख को चार मुख्य भागों में बाँट दिया गया है। यह इसका पहला भाग है और अन्य तीन भागों में हम इसके निम्नलिखित पहलुओं पर गौर करेंगे –

  1. भारत में आरक्षण की संवैधानिक स्थिति (Constitutional status of reservation in India) [2/4]
  2. भारत में आरक्षण का विकास क्रम (Evolution of reservation in India) [3/4]
  3. रोस्टर सिस्टम (Roster System)- आरक्षण के पीछे का गणित [4/4]

इसके साथ ही इससे जुड़े कई अन्य टॉपिक पर भी हम बात करेंगे, जिसका कि लिंक आपको लेखों को पढ़ने के दौरान मिल जाएगा।

चूंकि पूरी आरक्षण व्यवस्था मूल अधिकारों के इर्द-गिर्द घूमता है (खासकर के समता का अधिकार के), तो हमारी सलाह है कि बेहतर समझ के लिए कम से कम मौलिक अधिकारों पर एक नज़र जरूर डाल लीजिए।

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भारत में आरक्षण Reservation in India
Reservation in India Image by pvproductions on Freepik

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| आरक्षण क्या है [What is Reservation in India]..?

आरक्षण (Reservation), एक सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative action) है; उन जाति, लिंग वर्ग या समुदाय के लिए जो किन्ही वजहों से समाज के मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाया है। 

◾ भारत में आरक्षण सकारात्मक कार्रवाई उपायों की एक प्रणाली को संदर्भित करता है जिसे भारत सरकार ने सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और देश के भीतर कुछ वंचित समूहों द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक भेदभाव और असमानता को कम करने के लिए लागू किया है।

आरक्षण नीति इन समूहों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व सहित सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में विशेष अवसर और प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।

इस सब के पीछे का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारना और समावेशिता और समानता को बढ़ावा देना है।

Q. भारत का संविधान या विधि व्यवस्था आरक्षण के बारे में क्या कहता है?

भारत का संविधान, केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं केंद्रशासित प्रदेशों को ये अधिकार देता है कि कुछ खास वर्ग या समुदाय के लोगों के लिए प्रवेश (Admission), नियुक्ति (Appointment) या प्रोन्नति (Promotion) में एवं संसद एवं विधानमंडल आदि में Quota या आरक्षित सीट का निर्धारण करें। 

हम अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) को देखें तो उसमें दो टर्म आता है, पहला, विधि के समक्ष समता (equality before law) और दूसरा, विधियों का समान संरक्षण (equal protection of laws)।

‘विधि के समक्ष समता’ इस बात को पुष्ट करता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और कानून के सामने सब समान है। इस सिद्धांत में खामी ये है कि ये गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित, संसाधन विहीन-संसाधन युक्त आदि को पहले से एक समान मान का चलता है और किसी के पक्ष में कोई विशेषाधिकार प्रदान करने को हतोत्साहित करता है।

पर ‘विधियों का समान संरक्षण’ सही मायने में समानता लाने के लिए किसी के पक्ष में कुछ करने से संबंधित है। क्योंकि ये सर्वविदित है कि हम जिस समाज में रहते हैं वो असमान है, और उस असमानता में समानता स्थापित करने के लिए जरूरी है कि समाज के दलित, शोषित, अशिक्षित एवं पिछड़े वर्ग के पक्ष में कुछ विशेष किया जाए।

इन्ही लोगों के पक्ष में कुछ विशेष करने के लिए जो सरकार द्वारा कदम उठाये जाते हैं उसे सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) कहा जाता है, और आरक्षण इसी सकारात्मक कार्रवाई का एक हिस्सा है।

🔹 अनुच्छेद 15 को पढ़ें तो ये साफ-साफ कहता है कि भारत अपने किसी भी नागरिक के साथ केवल* धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव (discrimination) नहीं करेगा।

अनुच्छेद 15 के इस खंड के तहत एक प्रकार से गारंटी दी गई है कि राज्य की नजर में सभी भारतीय नागरिक बराबर है। और उसके साथ केवल* इन पांच आधारों पर कोई विभेद (Discrimination) नहीं किया जाएगा।

ये पांच आधार है – धर्म (Religion), मूलवंश (race), जाति (Caste), लिंग (sex) और जन्मस्थान (Place of Birth)।

यहाँ ‘केवल’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है यानी कि भारत चाहे तो धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्मस्थान के अलावे अन्य किसी आधार पर भेदभाव कर सकता है।

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्षम है, तो ऐसे व्यक्ति के लिए विकलांगता के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है।

या फिर अगर कोई व्यक्ति या वर्ग सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है तो उसे पक्ष में सरकार कुछ विशेष कदम उठा सकती है, या यूं कहें कि आरक्षण दे सकती है;

और जाहिर है किया भी जाता है, आप देख सकते हैं हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज इत्यादि में दिव्याङ्गजनों के लिए रैम्प बना होता है। तो इस तरह के भेदभाव को सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) कहा जाता है।

हालांकि इस बात को ध्यान में रखिए कि कई बार यह न्यायालय की व्याख्या पर निर्भर करता है, उदाहरण के लिए, यूपी राज्य बनाम प्रदीप टंडन (1974) मामले को ले सकते हैं जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार गाँव में रहने के आधार पर कुछ स्टूडेंट्स को मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण दे रहा था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को आरक्षित सीटें प्रदान करना असंवैधानिक था।

🔹 अनुच्छेद 15 (3) को पढ़ें तो ये साफ-साफ कहता है कि राज्य, महिलाओं एवं बच्चों के पक्ष में विशेष प्रावधान बना सकता है। सरकारें ऐसा करती भी है जैसे कि महिलाओं को मातृत्व अवकाश देना, बच्चों के पोषण कार्यक्रम चलाना इत्यादि।

[अनुच्छेद 15(4), 15(5) एवं 15(6) भी सकारात्मक कार्रवाई या आरक्षण से संबंधित है पर इसपर आगे चर्चा करेंगे]

🔹 अनुच्छेद 16 को पढ़ें तो ये कहता है कि राज्य के तहत होने वाले नियोजन (employment) या नियुक्ति (Appointment) में किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अगर अनुच्छेद 16(2) को पढ़ें तो वहाँ कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के साथ केवल धर्म (Religion), मूलवंश (Race), जाति (Caste), लिंग (Sex), उद्भव (Descent) जन्मस्थान (Place of Birth), निवास (Residence) के आधार पर नियोजन या नियुक्ति में किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करेगा।

यहाँ भी ‘केवल’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है, यानी कि उन सातों चीजों के अलावा किसी अन्य के आधार पर नियोजन या नियुक्ति में भेदभाव किया जा सकता है। सरकारें ऐसा करती भी है, उदाहरण के लिए दिव्याङ्गजनों को नियोजन या नियुक्ति में आरक्षण मिलता है।

[यहां पर याद भी याद रखिए कि अनुच्छेद 15 में केवल 5 शब्दों का जिक्र है {यानि कि धर्म (Religion), मूलवंश (race), जाति (Caste), लिंग (sex) और जन्मस्थान (Place of Birth)} जबकि अनुच्छेद 16 में 7 शब्दों का जिक्र है, दो शब्दों “उद्भव (Descent)” और “निवास (Residence)” वे अतिरिक्त शब्द है जिसे कि इसमें जोड़ा गया है।]
Reservation in India

🔹 अनुच्छेद 16 (4) को पढ़ें तो ये साफ-साफ कहता है कि राज्य चाहे तो पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में राज्य के अंदर आने वाले पद या नियुक्ति में आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है, अगर राज्य को लगता है कि उनका प्रतिनिधित्व राज्य सेवाओं में पर्याप्त नहीं है। तो कहने का अर्थ ये है कि नौकरियों में जो आरक्षण मिलता है उसका कारण यही अनुच्छेद है।

इसके अलावा अनुच्छेद 16 (4A), 16 (4B), 16(5) और 16(6) है जो कि आरक्षण के संबंध में कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को स्थापित करता है। इन सारें अनुच्छेदों को हम आगे समझने वाले हैं।

यहाँ तक आप ये समझ गए होंगे कि आरक्षण क्या है और संविधान में कहाँ इसका जिक्र मिलता है। आइये अब आगे के कुछ महत्वपूर्ण सवालों के उत्तर जानते हैं।

Q. किन लोगों, वर्गों या समुदायों को आरक्षण मिलता है?

मूल संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 330 एवं 332 के तहत, लोकसभा एवं विधानसभा में SC एवं ST के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। और साथ ही अनुच्छेद 15 एवं 16 के तहत पिछड़े वर्गों को (महिलाओं एवं बच्चों सहित), आरक्षण जैसी व्यवस्था को स्वीकृति दी गई थी।

कहने का अर्थ है कि मूल रूप से आरक्षण नीति मुख्य रूप से दो प्रमुख समूहों-अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को ही मिला करती थी।

जाहिर है इन समूहों को ऐतिहासिक रूप से गंभीर सामाजिक भेदभाव, अस्पृश्यता (एससी के मामले में) और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है।

🔹 आज SC, ST, OBC एवं EWS समुदाय को मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ मिलता है। (साल 2019 से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EWS) के लिए भी 10% आरक्षण की व्यवस्था है।) इन लोगों को जो आरक्षण मिलता है उसे ऊर्ध्वाधर आरक्षण (vertical reservation) कहा जाता है। 

इसके अलावा महिलाओं, दिव्याङ्गजनों एवं तृतीयलिंगी (third gender) को भी आरक्षण का लाभ मिलता है। इनलोगों को जो आरक्षण मिलता है, उसे क्षैतिज आरक्षण (horizontal reservation) कहा जाता है। [इसे हम आगे समझने वाले हैं;]

[विस्तार से समझें – वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण क्या होता है] 

🔹 मुख्य रूप से भारत में आरक्षण चार समुदायों को मिलता है, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section)। 

एसटी एवं एससी के लिए आरक्षण की व्यवस्था मोटे तौर पर आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था। जबकि ओबीसी को आरक्षण, 1992 में मंडल आयोग के सिफ़ारिशों को मान लेने के बाद से मिलता है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण 2019 में 103वें संविधान संशोधन पारित होने के बाद से। 

🔹 यहाँ ये याद रखिए कि एससी एवं एसटी के लिए आयोग का गठन अनुच्छेद 338 एवं 338 ‘क’ के तहत किया गया था। 102वें संविधान संशोधन 2018 की मदद से अनुच्छेद 338 ‘ख’ नामक एक नया भाग संविधान में जोड़ा गया, जिसके तहत पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया।

Q. भारत में कुछ चुनिंदा वर्गों को आरक्षण क्यों दिया जाता है (Why is reservation given to some selected sections in India?)?

Basics of Reservation in India [image credit freepik]

ये एक सहज सवाल है कि अगर संविधान ने सबको बराबरी का दर्जा दिया है तो फिर आरक्षण देने की जरूरत क्या है?

इसका मुख्य कारण है, असमान समाज (unequal society)। हमें यह समाज अपने समतामूलक स्वरूप में नहीं मिला था बल्कि एक असमान समाज की बागडोर हमें मिली थी।

ऐसे में नकारात्मक समता (जो कि सबके लिए एक समान कानून और किसी भी प्रकार का विशेषाधिकार किसी के पास नहीं होने की बात करता है) से काम नहीं बनने वाला था। क्योंकि इससे एक दुष्चक्र (vicious circle) पनपता और पिछड़े, पिछड़े ही रहते और अगड़ा, अगड़ा ही रहता।

अगड़ा, अगड़ा ही रहे इससे कोई दिक्कत नहीं है पर पिछड़े को मुख्य धारा में लाना एक कल्याणकारी राज्य का मुख्य दायित्व है और समाजवादी लोकतन्त्र का तक़ाज़ा भी। 

इसीलिए अनुच्छेद 14 में आपको एक टर्म ”क़ानूनों का समान संरक्षण (equal protection of laws)” मिलता है। जो कि अपने आप में सकारात्मक है और कुछ देने का भाव रखता है।

आरक्षण भी एक ऐसी व्यवस्था है जो कुछ देने का भाव रखता है। और तब तक देने की भाव रखता है जब तक वे समाज के मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बन जाते। (इसके बारे में हमने ऊपर भी चर्चा की है।)

इसके तहत किसी खास वर्ग या जाति को किसी क्षेत्र में वरीयता (preference) भी दी जा सकती है और उन्ही जातियों या वर्गों को उस क्षेत्र में Quota (फिक्स सीट) भी दिया जा सकता है। आमतौर पर हम जिसे आरक्षण कहते हैं वो यही Quota सिस्टम है। कैसे है, ये आगे आपको समझ में आ जाएगा।

|अनुसूचित जाति को भारत में आरक्षण क्यो दिया गया (Why were Scheduled Castes given reservation in India)?

अनुसूचित जाति (SC), जिन्हें दलित भी कहा जाता है, भारत में ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर और वंचित समुदाय हैं। “अनुसूचित जाति” शब्द उन लोगों के समूहों को संदर्भित करता है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय सामाजिक व्यवस्था में समाज के कुछ वर्गों द्वारा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव, बहिष्कार और अस्पृश्यता के अधीन रहे हैं।

प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था अस्तित्व में था और कालांतर में इसी व्यवस्था से जातियों को निर्माण हुआ जो कि अपने मूल रूप में कार्य पर आधारित एक विभाजन था। पर समय के साथ यह व्यवस्था भ्रष्ट होती गई, और कई ऐसी परंपराएं विकसित हुई जिसमें समाज के कुछ वर्गों को हेय दृष्टि से देखा गया, उसके साथ समानता का व्यवहार नहीं अपनाया गया।

ऐसे ही ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदाय को औपचारिक रूप से दलित या अनुसूचित जाति कहा गया। इसे समाज में कमतर आंका गया और समाज में सबसे छोटा समझे जाने वाले काम को उसके लिए निर्धारित माना गया, जैसे कि हाथ से मैला ढोना (Manual scavenging), कपड़े धोना इत्यादि।

इन जातियों ने सबसे ज्यादा अस्पृश्यता (untouchability) को झेला, आजाद भारत में इन लोगों को मुख्य धारा में लाया जा सके, इसीलिए SC वर्ग को आरक्षण दिया गया। 

नोट – यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय समूह नहीं हैं; इनमें विभिन्न उप-जातियाँ और समुदाय शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा इतिहास और चुनौतियाँ हैं।

संविधान अनुसूचित जाति आदेश, 1950↗, जिसने अनुसूचित जातियों की पहली सूची जारी की थी, के अनुसार केवल हिंदू धर्म का पालन करने वाले हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सदस्यों को अनुसूचित जाति माना जा सकता है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय अनुसूची में आने वाली जातियों की एक राज्य-वार सूची प्रकाशित करता है, और केवल सूचीबद्ध राज्यों से जाति प्रमाण पत्र रखने वाले लोग ही एससी समुदाय के सदस्यों को दी जाने वाली सुरक्षा के लिए पात्र होते हैं।

आप यहाँ से अनुसूचित जाति की राज्यवार लिस्ट देख सकते हैं – SC STATE Wise List↗

| अनुसूचित जनजाति को भारत में आरक्षण क्यों दिया गया (Why were Scheduled Tribes (ST) given reservation in India)?

ST के तहत समाज के उन जातियों को चिन्हित किया जाता है जो कि किन्ही वजहों से मुख्य समाज से दूर जंगलों या पहाड़ों पर रहते हैं और आदिकालीन संस्कृति (primitive culture) को अपनाते हैं। हम आमतौर पर इसे आदिवासी (Aboriginal) या खानाबदोस (nomadic) भी कहते हैं।

भारत में अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) को ऐतिहासिक रूप से अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक विशेषताओं के कारण सामाजिक और आर्थिक हाशिए, भेदभाव और अलगाव का सामना करना पड़ा है।

मुख्य धारा के समाज में ये घुल मिल सके इसीलिए इनको भी आरक्षण देने की जरूरत थी। 

भारत में महत्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले कुछ क्षेत्रों को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत “अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Area)” के रूप में नामित किया गया है।

इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा के लिए स्थानीय स्वशासन और भूमि अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान हैं। मोटे तौर पर कहें तो इनको आरक्षण देने का मुख्य कारण भौगोलिक अलगाव (Geographical Isolation) है।

Visit – Schedule Tribe List↗

| अन्य पिछड़ा वर्ग को भारत में आरक्षण क्यों मिलता है (Why do Other Backward Classes (OBC) get reservation in India)?

ओबीसी के तहत एक ऐसे वर्ग को चिन्हित किया जाता है जिसे कि अपेक्षाकृत अस्पृश्यता का सामना नहीं करना पड़ा और आदिवासी की तरह मुख्य समाज से समान्यतः दूर भी नहीं रहना पड़ा, फिर भी किन्ही वजहों से वे सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े ही रहे।

इसे Other Backward Class या अन्य पिछड़ा वर्ग कहा ही इसीलिए जाता है, क्योंकि एससी एवं एसटी को छोड़ कर ये ऐसे लोग है जो कि पिछड़ा (backward) है।

ये लोग देश की आबादी की आधी जनसंख्या को शेयर करता है। इसीलिए मण्डल आयोग के सिफ़ारिशों को मानते हुए तत्कालीन सरकार ने 1990-91 में ओबीसी आरक्षण की घोषणा की। [ये पूरा माजरा क्या है इसे आगे समझते हैं।] 

यहां यह याद रखिए कि पिछड़े वर्ग एक सजातीय समूह नहीं हैं; इनमें समुदायों और उप-समूहों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषताएं और चुनौतियाँ हैं।

पिछड़े वर्गों का वर्गीकरण अक्सर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन जैसे मानदंडों पर आधारित होता है, न कि केवल जाति पर।

Visit – OBC List↗

| महिलाओं, दिव्याङ्गजनों एवं ट्रान्सजेंडर आदि को आरक्षण क्यों दिया जाता है (Why is reservation given to women, disabled people and transgenders etc.)?

इन लोगों या समुदायों को आरक्षण, आमतौर पर इनकी सामाजिक स्थिति, या समाज का इनके प्रति संकीर्ण एवं रूढ़िवादी सोच, एवं समाज में उचित दर्जा या सम्मान न मिलने के कारण; मिलता है।

दूसरा कारण प्रतिनिधित्व (Representation) का अभाव है; इनको मिलने वाला आरक्षण यह सुनिश्चित करता है कि इन समूहों को शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थलों और विधायी निकायों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले।

हालांकि ये याद रखिए कि इनलोगों को SC, ST या OBC की तरह ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical Reservation) नहीं मिलता है बल्कि इन लोगों को मिलने वाला आरक्षण क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) किस्म का होता है। ये क्या होता है इसे आगे समझाया गया है। 

| आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण क्यों मिलता है (Why do Economically Weaker Sections (EWS) get Reservation in India)?

अनुच्छेद 15(6) और अनुच्छेद 16(6) के तहत संवैधानिक रूप से यह सुनिश्चित किया गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण मिले;

1991 में पी. वी. नरसिंहराव की सरकार ने सामान्य वर्गों के गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 % अलग से आरक्षण देने की पहल की। लेकिन उस समय उच्चतम न्यायालय ने इन्दिरा साहनी मामले में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग को खारिज कर दिया।

दरअसल इस आरक्षण के पीछे का मूल तर्क यही है कि उच्च कहे जाने वाले जातियों में भी सभी की स्थिति ठीक नहीं है वहाँ भी ऐसे लोग है जो कि गरीबी, बदहाली या अपने ही लोगों द्वारा दबाये गए है। 

2019 में 103वां संविधान संशोधन के माध्यम से बीजेपी की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की जो कि अभी चल रही है। 

यहाँ यह याद रखिए कि EWS, SC, ST एवं OBC को मिलने वाले आरक्षण के अलावे है। इसीलिए इसकी अलग से गणना की जाती है।

◾ मोटे तौर पर भारत में आरक्षण देने के पीछे इन 5 कारकों को माना जाता है;

  • समानता को बढ़ावा देने के लिए (Promoting Equality);
  • ऐतिहासिक अन्यायों को संबोधित करने के लिए (To address historical injustices);
  • प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए (to ensure representation);
  • हाशिए पर स्थित समाज के सशक्तिकरण के लिए (For empowerment of marginalized communities);
  • समावेशिता और संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए (To ensure inclusivity and access to resources)

समापन टिप्पणी (Closing Remarks)

तो कुल मिलाकर यहाँ तक हमने भारत में आरक्षण (Reservation in India) के संदर्भ में उन पहलुओं को समझा जो कि आरक्षण के मूल में है।

जैसे कि भारत में आरक्षण जैसी व्यवस्था क्यों प्रासंगिक है, जिन्हे आरक्षण मिल रही है, उसे ही क्यों मिल रही है एवं SC व ST को आरक्षण क्यों मिलता है इत्यादि।

यहां यह भी याद रखिए कि आरक्षण का विशिष्ट प्रतिशत राज्य के अनुसार भिन्न हो सकता है क्योंकि यह राज्य की जनसांख्यिकी और सामाजिक और आर्थिक असमानताओं की सीमा जैसे कारकों पर निर्भर करता है।

ओबीसी के मामले में, “क्रीमी लेयर” की एक अवधारणा है, जो ओबीसी श्रेणी के अपेक्षाकृत बेहतर व्यक्तियों को आरक्षण लाभ से बाहर करती है। इसके बारे में हम आगे विस्तार से समझने वाले हैं;

कुल मिलाकर हम देख सकते हैं कि भारत में आरक्षण एक जटिल और बहुआयामी नीति है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और अधिक न्यायसंगत और समावेशी समाज बनाना है।

अब आगे हम भारत में आरक्षण (Reservation in India) के संवैधानिक पहलुओं को एक्सप्लोर करेंगे और समझेंगे कि पंचायत एवं नगरपालिका में आरक्षण, लोकसभा एवं विधानसभा में आरक्षण, नौकरियों में आरक्षण, कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों आदि में प्रवेश में आरक्षण का संवैधानिक या वैधानिक आधार क्या है।

आरक्षण का संवैधानिक आधार[2/4]
आरक्षण का विकास क्रम[3/4]
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम[4/4]
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Some FAQs

एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर सरकार की नीति क्या है?

अखिल भारतीय आधार पर सीधी भर्ती के मामले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए खुली प्रतियोगिता में क्रमशः 15%, 7.5% और 27% की दर से आरक्षण दिया जाता है। खुली प्रतियोगिता के अलावा अखिल भारतीय आधार पर सीधी भर्ती के मामले में, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण क्रमशः 16.66%, 7.5% और 25.84% है। Group सी और डी पदों पर सीधी भर्ती के मामले में जो आम तौर पर किसी इलाके या क्षेत्र से उम्मीदवारों को आकर्षित करते हैं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रतिशत आमतौर पर संबंधित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी के अनुपात में तय किया जाता है।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए क्या छूट उपलब्ध हैं?

सीधी भर्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उपलब्ध छूट इस प्रकार हैं: –

a) ऊपरी आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट:

b) परीक्षा / आवेदन शुल्क के भुगतान से छूट;

c) जहां साक्षात्कार भर्ती प्रक्रिया का एक हिस्सा है, वहां अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों का अलग से साक्षात्कार किया जाना चाहिए:

d) यूपीएससी / सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के संबंध में अनुभव के संबंध में योग्यता में छूट दी जा सकती है;

e) उपयुक्तता के मानकों में ढील दी जा सकती है। 

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए प्रोन्नति में जो छूट उपलब्ध है वह इस प्रकार है:-

a) विचार के सामान्य क्षेत्र (normal zone of consideration) के भीतर उपयुक्त अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में रिक्तियों की संख्या के पांच गुना तक विचार क्षेत्र बढ़ाया जाता है। 

b) न्यूनतम अर्हक अंक/मूल्यांकन के मानकों में छूट दी गई है;

c) ऊपरी आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट दी जा सकती है जहां पदोन्नति के लिए ऊपरी आयु सीमा पचास वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए, आदि।

ओबीसी को क्या छूट उपलब्ध है?

ओबीसी को सीधी भर्ती में उपलब्ध छूट इस प्रकार है:

(i)  ऊपरी आयु सीमा में 3 वर्ष की छूट।

(ii) सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर अनुभव संबंधी योग्यता में छूट दी जा सकती है।

(ii) उपयुक्तता के मानकों में ढील दी जा सकती है, आदि।

एक स्व-योग्य (own merit) उम्मीदवार कौन है?

अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित एक उम्मीदवार जो सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए आवेदन के समान मानक पर चुना जाता है और जो सामान्य योग्यता सूची में उपस्थित होता है, उसे स्व-योग्य उम्मीदवार माना जाता है। ऐसे उम्मीदवार को आरक्षण रोस्टर के अनारक्षित बिंदु के विरुद्ध समायोजित किया जाता है।

आरक्षित श्रेणी के व्यक्ति के एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास के मामले में क्या दिशानिर्देश हैं?

जब कोई व्यक्ति राज्य के उस हिस्से से प्रवास करता है जिसके संबंध में उसका समुदाय अनुसूचित है, उसी राज्य के दूसरे हिस्से में, जिसके संबंध में उसका समुदाय अनुसूचित नहीं है, तो उसे अनुसूचित जाति का सदस्य माना जाता रहेगा या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग, जैसा भी मामला हो।

जब कोई व्यक्ति जो एक राज्य से दूसरे राज्य का सदस्य है, तो वह केवल उस राज्य के संबंध में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने का दावा कर सकता है, जहां से वह मूल रूप से संबंधित था, न कि उस राज्य के संबंध में जहां से वह प्रवास कर चुका है।

आरक्षित स्थान खाली रह जाने की स्थिति में क्या अयोग्य व्यक्ति को भरा जा सकता है?

शैक्षणिक संस्थानों में एक वक्त तक ऐसी व्यवस्था थी जहां खाली रह गए आरक्षित सीटों को सभी के लिए खोल दिया जाता था। यानी कि open category में डाल दिया जाता था पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक निर्देश के अनुसार आरक्षित सीटें open category में नहीं डाली जाएगी बल्कि ऐसी स्थिति में खाली सीटों को भरने के लिए कट ऑफ को नीचे लाया जा सकता है। पर आरक्षित सीट को आरक्षित वर्ग के व्यक्ति द्वारा ही भरा जाएगा।

References,
Constitution of India
Commentary on constitution (fundamental rights) – d d basu
https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
FAQs Related to Reservation
https://dopt.gov.in/sites/default/files/FAQ_SCST.pdf
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC)
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग [NCST]
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग [NCSC]
अनुच्छेद 15
अनुच्छेद 16
indian constitution text context and interpretation Bidyut chakrabarty
Etc.