इस लेख में हम भारत में आरक्षण के आधारभूत तत्वों पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।
कहने को तो ये बस एक कोटा सिस्टम (quota system) है पर क्रमिक विकास ने इसे इतना जटिल बना दिया है कि आम आदमी इसके कई पहलुओं से वंचित रह जाता है।
🔹 समझने की दृष्टि से इस पूरे लेख को चार मुख्य भागों में बाँट दिया गया है। यह इसका पहला भाग है और अन्य तीन भागों में हम इसके निम्नलिखित पहलुओं पर गौर करेंगे –
- भारत में आरक्षण की संवैधानिक स्थिति [2/4]
- भारत में आरक्षण का विकास क्रम [3/4]
- रोस्टर सिस्टम – आरक्षण के पीछे का गणित [4/4]
इसके साथ ही इससे जुड़े कई अन्य टॉपिक पर भी हम बात करेंगे, जिसका कि लिंक आपको लेखों को पढ़ने के दौरान मिल जाएगा। चूंकि पूरी आरक्षण व्यवस्था मूल अधिकारों के इर्द-गिर्द घूमता है (खासकर के समता का अधिकार के), तो हमारी सलाह है कि बेहतर समझ के लिए कम से कम मौलिक अधिकारों पर एक नज़र जरूर डाल लीजिए।

आरक्षण क्या है?
आरक्षण (Reservation), एक सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative action) है; उन जाति, लिंग वर्ग या समुदाय के लिए जो किन्ही वजहों से समाज के मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाया है।
संविधान, केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं केंद्रशासित प्रदेशों को ये अधिकार देता है कि कुछ खास वर्ग या समुदाय के लोगों के लिए प्रवेश, नियुक्ति या प्रोन्नति में एवं संसद एवं विधानमंडल आदि में Quota या आरक्षित सीट का निर्धारण करें।
हम अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) को देखें तो उसमें दो टर्म आता है, पहला, विधि के समक्ष समता (equality before law) और दूसरा, विधियों का समान संरक्षण (equal protection of laws)।
‘विधि के समक्ष समता’ इस बात को पुष्ट करता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और कानून के सामने सब समान है। इस सिद्धांत में खामी ये है कि ये गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित, संसाधन विहीन-संसाधन युक्त आदि को पहले से एक समान मान का चलता है और किसी के पक्ष में कोई विशेषाधिकार प्रदान करने को हतोत्साहित करता है।
पर ‘विधियों का समान संरक्षण’ सही मायने में समानता लाने के लिए किसी के पक्ष में कुछ करने से संबंधित है। क्योंकि ये सर्वविदित है कि हम जिस समाज में रहते हैं वो असमान है, और उस असमानता में समानता स्थापित करने के लिए जरूरी है कि समाज के दलित, शोषित, अशिक्षित एवं पिछड़े वर्ग के पक्ष में कुछ विशेष किया जाए।
इन्ही लोगों के पक्ष में कुछ विशेष करने के लिए जो सरकार द्वारा कदम उठाये जाते हैं उसे सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) कहा जाता है, और आरक्षण इसी सकारात्मक कार्रवाई का एक हिस्सा है।
🔹 अनुच्छेद 15 को पढ़ें तो ये साफ-साफ कहता है कि भारत अपने किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव (discrimination) नहीं करेगा। यहाँ ‘केवल’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है यानी कि भारत चाहे तो धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्मस्थान के अलावे किसी आधार पर भेदभाव कर सकता है। उदाहरण के लिए मान लीजिये कि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्षम है, तो ऐसे व्यक्ति के लिए विकलांगता के आधार पर तो भेदभाव किया जा सकता है।
और जाहिर है किया भी जाता है, आप देख सकते हैं हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज इत्यादि में दिव्याङ्गजनों के लिए रैम्प बना होता है। तो इस तरह के भेदभाव को सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) कहा जाता है।
🔹 अनुच्छेद 15 (3) को पढ़ें तो ये साफ-साफ कहता है कि राज्य, महिलाओं एवं बच्चों के पक्ष में विशेष प्रावधान बना सकता है। सरकारें ऐसा करती भी है जैसे कि महिलाओं को मातृत्व अवकाश देना, बच्चों के पोषण कार्यक्रम चलाना इत्यादि।
[अनुच्छेद 15(4), 15(5) एवं 15(6) भी सकारात्मक कार्रवाई या आरक्षण से संबंधित है पर इसपर आगे चर्चा करेंगे]
🔹 अनुच्छेद 16 को पढ़ें तो ये कहता है कि राज्य के तहत होने वाले नियोजन (employment) या नियुक्ति (Appointment) में किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर अनुच्छेद 16(2) को पढ़ें तो वहाँ कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के साथ केवल धर्म, नस्ल, जाति, वंश, जन्मस्थान, लिंग एवं निवास के आधार पर नियोजन या नियुक्ति में किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करेगा।
यहाँ भी ‘केवल’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है, यानी कि उन सातों चीजों के अलावा किसी अन्य के आधार पर नियोजन या नियुक्ति में भेदभाव किया जा सकता है। सरकारें ऐसा करती भी है, उदाहरण के लिए दिव्याङ्गजनों को नियोजन या नियुक्ति में आरक्षण मिलता है।
🔹 अनुच्छेद 16 (4) को पढ़ें तो ये साफ-साफ कहता है कि राज्य चाहे तो पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में राज्य के अंदर आने वाले पद या नियुक्ति में आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है, अगर राज्य को लगता है कि उनका प्रतिनिधित्व राज्य सेवाओं में पर्याप्त नहीं है। तो कहने का अर्थ ये है कि नौकरियों में जो आरक्षण मिलता है उसका कारण यही अनुच्छेद है।
इसके अलावा अनुच्छेद 16 (4A), 16 (4B), 16(5) और 16(6) है जो कि आरक्षण के संबंध में कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को स्थापित करता है। इन सारें अनुच्छेदों को हम आगे समझने वाले हैं।
यहाँ तक आप ये समझ गए होंगे कि आरक्षण क्या है और संविधान में कहाँ इसका जिक्र मिलता है। आइये अब आगे के कुछ महत्वपूर्ण सवालों के उत्तर जानते हैं।
Q. किन लोगों, वर्गों या समुदायों को आरक्षण मिलता है?
मूल संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 330 एवं 332 के तहत, लोकसभा एवं विधानसभा में SC एवं ST के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। और साथ ही अनुच्छेद 15 एवं 16 के तहत पिछड़े वर्गों को (महिलाओं एवं बच्चों सहित), आरक्षण जैसी व्यवस्था को स्वीकृति दी गई थी।
आज SC, ST, OBC एवं EWS समुदाय को मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ मिलता है। (साल 2019 से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EWS) के लिए भी 10% आरक्षण की व्यवस्था है।) इन लोगों को जो आरक्षण मिलता है उसे ऊर्ध्वाधर आरक्षण (vertical reservation) कहा जाता है।
इसके अलावा महिलाओं, दिव्याङ्गजनों एवं तृतीयलिंगी (third gender) को भी आरक्षण का लाभ मिलता है। इनलोगों को जो आरक्षण मिलता है, उसे क्षैतिज आरक्षण (horizontal reservation) कहा जाता है।
[विस्तार से समझें – वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण क्या होता है]
🔹 मुख्य रूप से भारत में आरक्षण चार समुदायों को मिलता है, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section)।
एसटी एवं एससी के लिए आरक्षण की व्यवस्था मोटे तौर पर आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था। जबकि ओबीसी को आरक्षण, 1992 में मंडल आयोग के सिफ़ारिशों को मान लेने के बाद से मिलता है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण 2019 में 103वें संविधान संशोधन पारित होने के बाद से।
अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है?
अनुच्छेद 341 एवं 342 क्रमशः परिभाषित करता है कि अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है।
अनुच्छेद 341 एवं 342 कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों (castes), मूलवंशों (races) या जनजातियों (Tribes) या उसके भाग या उनके समूह को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) समझा जाएगा।
(2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति को या उसके भाग को या उसके समूह को, खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) अनुसूचित जाति को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग है। एससी एवं एसटी के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए दिये गए लिंक को फॉलो करें।
यहाँ से पढ़ें – राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)
यहाँ से पढ़ें – राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कौन है?
ओबीसी मूल रूप से आरक्षण का हिस्सा नहीं नहीं रहा है। संविधान इसे सपोर्ट तो करता था लेकिन इसकी तात्कालिक आधिकारिक वजह मण्डल आयोग है; जो कि मोरार जी देशाई की जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में स्थापित की थी।
और इस आयोग के गठन के पीछे का आधार हम अनुच्छेद 340 में ढूंढ सकते हैं जो कि कहता है – ''सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के हित में राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग का गठन किया जा सकेगा।''
मण्डल आयोग ने 1931 के जनगणना का सहारा लेते हुए (एससी एवं एसटी को छोड़कर) उन जातियों की पहचान की जो की सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े थे। ये संख्या में 3743 थे और आज ये लगभग 5000 जातियाँ एवं उप-जातियों में विस्तारित है।
हालांकि 102वें संविधान संशोधन के माध्यम से ओबीसी के लिए भी (एससी एवं एसटी की तरह) अनुच्छेद 342 'क' के तहत एक परिभाषा दी गई है, जो कि कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को या उसके भाग या उनके समूह को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में अन्य पिछड़ी जाति (OBC) समझा जाएगा।
(2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को या उसके भाग को या उसके समूह को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) ओबीसी को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी।
एससी एवं एसटी की तरह इसके लिए भी एक आयोग का गठन किया गया है, ओबीसी के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इस लेख को अवश्य पढ़ें।
यहाँ से पढ़ें – राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC)आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EWS) कौन है?
EWS में सामान्य वर्गों के गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सम्मिलित किया जाता है। इसे 1991 में पी. वी. नरसिंहराव की सरकार द्वारा आरक्षण देने की कोशिश की गई लेकिन उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इसे सपोर्ट नहीं किया था। 2019 के 103वें संविधान संशोधन द्वारा इसे स्थापित किया गया है और फिलहाल ये चल रहा है।
यहाँ ये याद रखिए कि इसका कोई अलग से आयोग नहीं है।
🔹 यहाँ ये याद रखिए कि एससी एवं एसटी के लिए आयोग का गठन अनुच्छेद 338 एवं 338 ‘क’ के तहत किया गया था। 102वें संविधान संशोधन 2018 की मदद से अनुच्छेद 338 ‘ख’ नामक एक नया भाग संविधान में जोड़ा गया, जिसके तहत पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया।
आरक्षण क्यों दिया जाता है?
ये एक सहज सवाल है कि अगर संविधान ने सबको बराबरी का दर्जा दिया है तो फिर आरक्षण देने की जरूरत क्या है? जैसे इसका मुख्य कारण है, असमान समाज (unequal society)। हमें यह समाज अपने समतामूलक स्वरूप में नहीं मिला था बल्कि एक असमान समाज की बागडोर हमें मिली थी।
ऐसे में नकारात्मक समता (जो कि सबके लिए एक समान कानून और किसी भी प्रकार का विशेषाधिकार किसी के पास नहीं होने की बात करता है) से काम नहीं बनने वाला था। क्योंकि इससे एक दुष्चक्र (vicious circle) पनपता और पिछड़े, पिछड़े ही रहते और अगड़ा, अगड़ा ही रहता। अगड़ा, अगड़ा ही रहे इससे कोई दिक्कत नहीं है पर पिछड़े को मुख्य धारा में लाना एक कल्याणकारी राज्य का मुख्य दायित्व है और समाजवादी लोकतन्त्र का तक़ाज़ा भी।
इसीलिए अनुच्छेद 14 में आपको एक टर्म ”क़ानूनों का समान संरक्षण (equal protection of laws)” मिलता है। जो कि अपने आप में सकारात्मक है और कुछ देने का भाव रखता है। आरक्षण भी एक ऐसी व्यवस्था है जो कुछ देने का भाव रखता है। और तब तक देने की भाव रखता है जब तक वे समाज के मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बन जाते। (इसके बारे में हमने ऊपर भी चर्चा की है।)
इसके तहत किसी खास वर्ग या जाति को किसी क्षेत्र में वरीयता (preference) भी दी जा सकती है और उन्ही जातियों या वर्गों को उस क्षेत्र में Quota (फिक्स सीट) भी दिया जा सकता है। आमतौर पर हम जिसे आरक्षण कहते हैं वो यही Quota सिस्टम है। कैसे है, ये आगे आपको समझ में आ जाएगा।
|अनुसूचित जाति (SC) को भारत में आरक्षण क्यो दिया गया?
SC के तहत समाज के उन वर्गों या जातियों को चिन्हित किया जाता है जिसे कि जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माना गया। और समाज में सबसे छोटा समझे जाने वाले काम को उसके लिए निर्धारित माना गया। जैसे कि हाथ से मैला ढोना (Manual scavenging), कपड़े धोना इत्यादि। इसीलिए इन जातियों ने सबसे ज्यादा अस्पृश्यता (untouchability) को झेला। आजाद भारत में इन लोगों को मुख्य धारा में लाया जा सके, इसीलिए SC वर्ग को आरक्षण दिया गया।
| अनुसूचित जनजाति (ST) को भारत में आरक्षण क्यों दिया गया?
ST के तहत समाज के उन जातियों को चिन्हित किया जाता है जो कि किन्ही वजहों से मुख्य समाज से दूर जंगलों या पहाड़ों पर रहते हैं और आदिकालीन संस्कृति (primitive culture) को अपनाते हैं। हम आपतौर पर इसे आदिवासी (Aboriginal) या खानाबदोस (nomadic) भी कहते हैं। मुख्य धारा के समाज में ये घुल मिल सके इसीलिए इनको भी आरक्षण देने की जरूरत थी।
| अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भारत में आरक्षण क्यों मिलता है?
ओबीसी के तहत एक ऐसे वर्ग को चिन्हित किया जाता है जिसे कि अपेक्षाकृत अस्पृश्यता का सामना नहीं करना पड़ा और आदिवासी की तरह मुख्य समाज से समान्यतः दूर भी नहीं रहना पड़ा, फिर भी किन्ही वजहों से वे सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े ही रहे। इसे Other Backward Class या अन्य पिछड़ा वर्ग कहा ही इसीलिए जाता है, क्योंकि एससी एवं एसटी को छोड़ कर ये ऐसे लोग है जो कि पिछड़ा (backward) है।
ये लोग देश की आबादी की आधी जनसंख्या को शेयर करता है। इसीलिए मण्डल आयोग के सिफ़ारिशों को मानते हुए तत्कालीन सरकार ने 1990-91 में ओबीसी आरक्षण की घोषणा की। [ये पूरा माजरा क्या है इसे आगे समझते हैं।]
| महिलाओं, दिव्याङ्गजनों एवं ट्रान्सजेंडर आदि को आरक्षण क्यों दिया जाता है?
इन लोगों या समुदायों को आरक्षण, आमतौर पर इनकी सामाजिक स्थिति, या समाज का इनके प्रति संकीर्ण एवं रूढ़िवादी सोच, एवं समाज में उचित दर्जा या सम्मान न मिलने के कारण; मिलता है। हालांकि ये याद रखिए कि इनलोगों को मिलने वाला आरक्षण क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) किस्म का होता है। ये क्या होता है इसे आगे समझाया गया है।
| आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण क्यों मिलता है?
1991 में पी. वी. नरसिंहराव की सरकार ने सामान्य वर्गों के गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 % अलग से आरक्षण देने की पहल की। लेकिन उस समय उच्चतम न्यायालय ने इन्दिरा साहनी मामले में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग को खारिज कर दिया। दरअसल इस आरक्षण के पीछे का मूल तर्क यही है कि उच्च कहे जाने वाले जातियों में भी सभी की स्थिति ठीक नहीं है वहाँ भी ऐसे लोग है जो कि गरीबी, बदहाली या अपने ही लोगों द्वारा दबाये गए है।
2019 में 103वां संविधान संशोधन के माध्यम से बीजेपी की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की जो कि अभी चल रही है।
तो कुल मिलाकर यहाँ तक हमने भारत में आरक्षण के संदर्भ में उन पहलुओं को समझा जो कि आरक्षण के मूल में है। अब आगे हम भारत में आरक्षण के संवैधानिक पहलुओं को एक्सप्लोर करेंगे और समझेंगे कि पंचायत एवं नगरपालिका में आरक्षण, लोकसभा एवं विधानसभा में आरक्षण, नौकरियों में आरक्षण, कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों आदि में प्रवेश में आरक्षण का संवैधानिक या वैधानिक आधार क्या है।
आरक्षण का संवैधानिक आधार | [2/4] |
आरक्षण का विकास क्रम | [3/4] |
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम | [4/4] |
एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर सरकार की नीति क्या है?
अखिल भारतीय आधार पर सीधी भर्ती के मामले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए खुली प्रतियोगिता में क्रमशः 15%, 7.5% और 27% की दर से आरक्षण दिया जाता है। खुली प्रतियोगिता के अलावा अखिल भारतीय आधार पर सीधी भर्ती के मामले में, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण क्रमशः 16.66%, 7.5% और 25.84% है। Group सी और डी पदों पर सीधी भर्ती के मामले में जो आम तौर पर किसी इलाके या क्षेत्र से उम्मीदवारों को आकर्षित करते हैं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रतिशत आमतौर पर संबंधित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी के अनुपात में तय किया जाता है।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए क्या छूट उपलब्ध हैं?
सीधी भर्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उपलब्ध छूट इस प्रकार हैं: –
a) ऊपरी आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट:
b) परीक्षा / आवेदन शुल्क के भुगतान से छूट;
c) जहां साक्षात्कार भर्ती प्रक्रिया का एक हिस्सा है, वहां अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों का अलग से साक्षात्कार किया जाना चाहिए:
d) यूपीएससी / सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के संबंध में अनुभव के संबंध में योग्यता में छूट दी जा सकती है;
e) उपयुक्तता के मानकों में ढील दी जा सकती है।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए प्रोन्नति में जो छूट उपलब्ध है वह इस प्रकार है:-
a) विचार के सामान्य क्षेत्र (normal zone of consideration) के भीतर उपयुक्त अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में रिक्तियों की संख्या के पांच गुना तक विचार क्षेत्र बढ़ाया जाता है।
b) न्यूनतम अर्हक अंक/मूल्यांकन के मानकों में छूट दी गई है;
c) ऊपरी आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट दी जा सकती है जहां पदोन्नति के लिए ऊपरी आयु सीमा पचास वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए, आदि।
ओबीसी को क्या छूट उपलब्ध है?
ओबीसी को सीधी भर्ती में उपलब्ध छूट इस प्रकार है:
(i) ऊपरी आयु सीमा में 3 वर्ष की छूट।
(ii) सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर अनुभव संबंधी योग्यता में छूट दी जा सकती है।
(ii) उपयुक्तता के मानकों में ढील दी जा सकती है, आदि।
एक स्व-योग्य (own merit) उम्मीदवार कौन है?
अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित एक उम्मीदवार जो सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए आवेदन के समान मानक पर चुना जाता है और जो सामान्य योग्यता सूची में उपस्थित होता है, उसे स्व-योग्य उम्मीदवार माना जाता है। ऐसे उम्मीदवार को आरक्षण रोस्टर के अनारक्षित बिंदु के विरुद्ध समायोजित किया जाता है।
आरक्षित श्रेणी के व्यक्ति के एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास के मामले में क्या दिशानिर्देश हैं?
जब कोई व्यक्ति राज्य के उस हिस्से से प्रवास करता है जिसके संबंध में उसका समुदाय अनुसूचित है, उसी राज्य के दूसरे हिस्से में, जिसके संबंध में उसका समुदाय अनुसूचित नहीं है, तो उसे अनुसूचित जाति का सदस्य माना जाता रहेगा या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग, जैसा भी मामला हो।
जब कोई व्यक्ति जो एक राज्य से दूसरे राज्य का सदस्य है, तो वह केवल उस राज्य के संबंध में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने का दावा कर सकता है, जहां से वह मूल रूप से संबंधित था, न कि उस राज्य के संबंध में जहां से वह प्रवास कर चुका है।
आरक्षित स्थान खाली रह जाने की स्थिति में क्या अयोग्य व्यक्ति को भरा जा सकता है?
शैक्षणिक संस्थानों में एक वक्त तक ऐसी व्यवस्था थी जहां खाली रह गए आरक्षित सीटों को सभी के लिए खोल दिया जाता था। यानी कि open category में डाल दिया जाता था पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक निर्देश के अनुसार आरक्षित सीटें open category में नहीं डाली जाएगी बल्कि ऐसी स्थिति में खाली सीटों को भरने के लिए कट ऑफ को नीचे लाया जा सकता है। पर आरक्षित सीट को आरक्षित वर्ग के व्यक्ति द्वारा ही भरा जाएगा।
References,
Constitution of India
Commentary on constitution (fundamental rights) – d d basu
https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
FAQs Related to Reservation
https://dopt.gov.in/sites/default/files/FAQ_SCST.pdf