इस लेख में हम समता का अधिकार (Right to Equality) के अंतर्गत आने वाले सारे अनुच्छेदों की सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे; तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें।

यह लेख पिछले लेख का कंटिन्यूएशन है। पिछले लेख में मौलिक अधिकारों की बेसिक्स की चर्चा की गयी है। इस लेख की बेहतर समझ के लिए उसे अवश्य पढ़ें।

इस असमान समाज में समता स्थापित करना थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन अगर समता न हो तो ये असमान समाज और भी असमान होता चला जाएगा।

समता का अधिकार
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समानता की आधारभूत समझ (Basic understanding Equality)

समानता यानी कि असमानता को खत्म कर बराबरी लाना, लेकिन सवाल यही आता है कि किस प्रकार की असमानता?

एक होता है प्रकृतिजनित असमानता (Natural inequality), यानी कि ऐसी असमानताएं जो प्रकृतिजनित है एंव जिस पर इन्सानों का ज़ोर नहीं चलता।

उदाहरण के लिए, रंग-रूप, शारीरिक क्षमता, मानसिक क्षमता, कुछ विशेष प्रकार के जैविक गुण आदि। स्त्री और पुरुष में लगभग हर दृष्टि से काफी अंतर पाया जाता है, तो क्या समानता स्थापित करने के लिए सारे स्त्री को पुरुष बना देना चाहिए या फिर सारे पुरुष को स्त्री बना देना चाहिए?

दूसरा होता है समाजमूलक असमानता (Social inequality), यानी कि ऐसी असमानताएं जिसके पीछे मूल रूप से समाज है। उदाहरण के लिए, लिंग, जाति, धर्म, उंच-नीच, अमीर-गरीब, असहाय-शक्तिशाली, शोषित/पीड़ित-विशेषाधिकार युक्त आदि पर आधारित असमानताएं। क्या इस असमानता को खत्म कर देना चाहिए? जवाब शायद हाँ में होगा।

गौरतलब है कि कुछ प्रमुख विचारधाराएँ जैसे कि समाजवाद (Socialism), मार्क्सवाद (Marxism), नारीवाद (Feminism) आदि असमानताओं को खत्म करने के बारे में ही है।

समाजवाद (Socialism), ये औद्योगिक पूंजीवाद से उत्पन्न असमानताओं को खत्म करने की बात करता है, हालांकि बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था का ये पूरी तरह से विरोध करता लेकिन असमानताओं को खत्म करने के लिए संसाधनों के न्यायपूर्ण बँटवारे पर ज़ोर देता है। इसके लिए वे कुछ बुनियादी क्षेत्र जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि पर सरकारी नियमन, नियोजन एवं नियंत्रण का समर्थन करता है।

मार्क्सवाद (Marxism), इनके अनुसार असमानता इसीलिए बढ़ी है क्योंकि जल, जंगल, जमीन समेत उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर निजी स्वामित्व स्थापित हो गया है। इसीलिए असमानता को खत्म करने के लिए जरूरी है कि निजी स्वामित्व को खत्म कर दिया जाये।

नारीवाद (Feminism), ये स्त्री-पुरुष समानता की बात करता है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं होता कि स्त्री को पुरुष एवं पुरुष को स्त्री बना दिया जाये या ऐसा माना जाये।

इसका मुख्य फोकस पितृसत्ता से उत्पन्न असमानताओं को खत्म करने पर होता है। यानी कि समाज में स्त्री को भी उतना ही महत्व और शक्ति मिलनी चाहिए जितना की पुरुष को मिलता है।

समाज में जितनी आसमानताएँ हैं कमोबेश उतने ही असमानता खत्म करने के लोगों के विचार है। इसीलिए समानता के संदर्भ में कोई एक निश्चित विचार पर पहुँचना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है।

कोई मेहनत एवं काबिलियत से बहुत ही ज्यादा अमीर हो जाता है, तो कोई गरीबी एवं अक्षमता से पूरी ज़िंदगी से उबर ही नहीं पाता है। कोई बहुत ही ज्यादा शक्ति अर्जित कर लेता है, तो कोई शारीरिक विकलांगता एवं लाइलाज़ बीमारी से शक्तिविहीन एवं से समाज में अलग-थलग पड़ जाता है। ऐसे में समानता कैसे स्थापित होगा?

समाज के सहज कार्य-व्यापार के लिए कार्य विभाजन जरूरी है। ऐसे में किसी के काम को ज्यादा महत्व मिलना, किसी काम से ज्यादा लाभ प्राप्त होना या किसी को विशेषाधिकार मिलना स्वाभाविक है।

जैसे पुलिस किसी को शूट कर देता है तो उसे सीधे अन्य लोगों की तरह फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता। प्रधानमंत्री के एक फैसले के कारण अगर किसी को घंटों तक कतारों में खड़ा रहना पड़ता है और किसी की मृत्यु हो जाती है, तो इसका ये मतलब नहीं है कि उस पे मुकदमा चला के जेल में बंद कर दें।

कहने का अर्थ ये है कि समानता का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि कि सभी तरह के अंतरों को खत्म कर दिया जाये। इसका मतलब केवल यह है कि हमसे जो व्यवहार किया जाता है और हमें जो अवसर मिलता है, वे जन्म, लिंग, जाति या अन्य किसी भी सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए।

दूसरे शब्दों में कहें तो तर्कसंगत एवं न्यायसंगत अपवादों को छोड़कर सभी मनुष्य एक समान व्यवहार एवं सम्मान के अधिकारी है और इस ग्राउंड पर अगर कोई असमानता पनपती है चाहे वो सामाजिक हो या प्राकृतिक; उसे खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

यही काम हमारा संविधान भी करता है। ये धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है, ये छुआछूत की प्रथा का उन्मूलन करता है, ये अवसरों की समानता की व्यवस्था करता है एवं गैर-जरूरी विशेषाधिकारों का अंत करके एक तर्कसंगत एवं न्यायसंगत समानता पर बल देता है।

समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 – 18)

समता के अधिकार (Right to Equality) को संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक में वर्णित किया गया है। जिसे कि आम नीचे चार्ट में देख सकते हैं।

समता का अधिकार
अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समता एवं विधियों का समान संरक्षण
अनुच्छेद 15 – धर्म, मूलवंश, लिंग एवं जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
अनुच्छेद 16 – लोक नियोजन में अवसर की समता
अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत
अनुच्छेद 18 – उपाधियों का अंत

समता का आशय समानता से होता है, एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए समानता एक मूलभूत तत्व है क्योंकि ये हमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक वंचितता से रोकता है।

समानता एक भाव है जो हमारी समाजीकरण (Socialization) की प्रक्रिया के दौरान ही हमारे अंतर्मन में उठने लगता है। हम दूसरों से समान आदर की अपेक्षा करते हैं, हम समाज से समान व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं, हम अपने राज्य से समान अवसर प्रदान करने की अपेक्षा करते हैं। इत्यादि-इत्यादि।

* उदाहरण के लिए देखें तो हम सब के वोट का मूल्य एक समान होता है, ये जो चीज़ है ये हमें एहसास दिलाता है कि ये देश मेरा भी उतना ही है जितना की किसी और का, इस देश को संवारने में, निखारने में मेरा भी उतना ही योगदान है जितना की किसी और का।

तो आइये एक-एक करके हमारे संविधान में उल्लेखित समानता के अधिकार को देखते हैं और समझने की कोशिश करते हैं। 

अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण

राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

इसमें दो टर्म है पहला कि विधि के समक्ष समता (Equality before law) और दूसरा विधियों का समान संरक्षण (equal protection of laws) इन दोनों का ही संबंध न्याय की समानता से है पर दोनों में कुछ बारीक अंतर है।

विधि के समक्ष समता (Equality before Law)

इसे ब्रिटिश संविधान से लिया गया है। इसका मतलब है कि विधि के सामने कोई भी व्यक्ति चाहे अमीर गरीब, ऊंचा-नीचा, अधिकारी, गैर-अधिकारी सभी समान है, किसी के लिए भी कोई विशेषाधिकार नहीं होगा।

दूसरे शब्दों में कोई भी विधि के ऊपर नहीं है अगर कोई किसी विधि का उल्लंघन करता है तो वो कोई भी हो उसे दंडित किया जा सकता है। यानी कि हमारा संविधान ”विधि का शासन (Rule of law)” की व्यवस्था करता है, और विधि का शासन संविधान का मूल ढांचा है इसीलिए संसद इसमें संशोधन नहीं कर सकता है।

कुल मिलाकर ये नकारात्मक है क्योंकि ये कुछ देता नहीं है बस ये सुनिश्चित करता है कि विधि के समक्ष सब समान है। अगर किसी के साथ कोई भेदभाव होता है तो विधि के अनुसार उसे रोका जाएगा।

विधियों का समान संरक्षण (Equal Protection of Law)

इसे अमेरिकी संविधान से लिया गया है। जिसका भाव है असमान लोगों में या असमान समाज में समानता स्थापित करने की कोशिश करना।

कहने का अर्थ ये है कि असमान समाज में सब के साथ एक व्यवहार नहीं किया जा सकता। अगर सबको समान मानकर ट्रीट किया जाएगा तो पिछड़ा है वो हमेशा पिछड़ा ही रहेगा।

कहने का अर्थ ये है कि समानता के सिद्धांत का यह मतलब नहीं होता है कि सभी विधियाँ सभी को लागू हो, वो भी तब जब कि हम समझते हैं कि सभी की प्रकृति, गुण, या परिस्थिति एक सी नहीं है। ऐसे में विभिन्न वर्ग के व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार उसके साथ पृथक व्यवहार की आवश्यकता होती है।

उदाहरण के लिए एक अमीर आदमी कोर्ट में केस लड़ने के लिए महंगे से महंगा वकील कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ गरीब आदमी के पास साधारण वकील करने का भी सामर्थ्य नहीं होता है। ऐसे में सही न्याय तो तभी मिलेगा जब उस गरीब व्यक्ति को भी अपनी बात कहने के लिए वकील प्रोवाइड कराया जाये।

कुल मिलाकर, इस असमान समाज के सहज कार्य-व्यापार संचालन के लिए अगर किसी व्यक्ति, समाज या संस्था को कुछ अतिरिक्त ट्रीटमेंट दिया जाता है तो उसे दिया जा सकता है।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि जब भी किसी वर्ग विशेष या व्यक्ति विशेष के पक्ष में इस तरह का वर्गीकरण किया जाता है तो इससे भी असमानता उत्पन्न होती है लेकिन यह असमानता अपने आप में कोई दोष नहीं है।

कहने का अर्थ ये है कि अगर हम जानते हैं कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हो सकता है और उसके लिए हम विशेष कानून बनाते हैं तो ये कोई दोष नहीं है। अगर दलित समाज को कुछ विशेष कानून द्वारा संरक्षण दिया जाता है तो ये कोई दोष नहीं है।

एक बात हमेशा ध्यान रहें कि ये अपने आप में पूर्ण नहीं है और न ही अंतिम है। इसीलिए मूल अधिकारों के लिए न जाने कितने विवाद हुए है और अक्सर होते ही रहते हैं। इसके कुछ अपवाद है जिसे कि आप लेख के अंत में देख पाएंगे।

Read in Details – अनुच्छेद 14 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 15 – केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध

(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

जैसे कि मान लीजिये कि सरकार ने एक चापाकल लगाया, तो सरकार किसी खास जाति को उस चापाकल से पानी पीने को मना नहीं कर सकती है।

* यहाँ पर एक बात ध्यान देने योग्य है कि उस कथन में ‘केवल’ लगा है इसका मतलब है कि अन्य आधारों पर विभेद किया जा सकता है। जैसे कि आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक आधार पर विभेद हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति दिव्याङ्ग है तो उस आधार पर विभेद हो सकता है।

(2) कोई नागरिक केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर – (क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या (ख) आंशिक या पूर्णरूपेण राज्य निधि से पोषित या आम जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग के संबंध में किसी दायित्व (liability), निर्बंधन (Restriction) या शर्त के अधीन नहीं होगा।

इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि एक मेला जो सबके घूमने के लिए खुले हैं उसमें किसी को इस आधार पर जाने से नहीं रोका जा सकता है कि तुम पहले 10 फीट गड्ढा खोदो उसके बाद ही घूम सकते हो।

(3) ऊपर जो भी लिखा है इसके बावजूद भी राज्य स्त्रियों एंव बच्चों के लिए चाहे तो विशेष उपबंध कर सकता है। जैसे कि बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा, औरतों के लिए सवेतन मातृत्व अवकाश आदि।

(4) इस अनुच्छेद में लिखी बात या अनुच्छेद 29 के खंड(2) के प्रावधानों के होते हुए भी; राज्य, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विकास के लिए कोई विशेष उपबंध कर सकता है। जैसे कि सरकारी जॉब के आवेदन फीस की छूट आदि।

* दरअसल ये जो अनुच्छेद 15 का चौथा प्रावधान है इसे पहला संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था, क्यों जोड़ा गया था इसे समझने के लिए आपको चंपकम दोराईराजन के मामले को समझना होगा। अभी के लिए बस इतना समझिए कि इस खंड को संविधान में डालने का उद्देश्य, पिछड़े वर्ग के नागरिकों और एससी एवं एसटी वर्ग को राज्य शिक्षा संस्थाओं में आरक्षण देना था।

(5) इस अनुच्छेद में लिखी बात या अनुच्छेद 19 के खंड(1) के उपखंड (g) के प्रावधानों के होते हुए भी; राज्य, सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों या अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों के उत्थान के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए छूट संबंधी कोई नियम बना सकता है। ये शैक्षणिक संस्थान अनुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट शिक्षा संस्थाओं से भिन्न भी हो सकता है। यानी कि ये राज्य से अनुदान प्राप्त, निजी या अल्पसंख्यक किसी भी प्रकार के हो सकते हैं।

* अनुच्छेद 15 के पांचवें प्रावधान को 93वें संविधान संशोधन 2005 द्वारा संविधान में डाला गया है। इसे क्यों डाला गया है और इन संशोधनों का क्या मतलब है, इसे आरक्षण वाले लेख में हम विस्तार से समझेंगे।

यहाँ यह याद रखिए कि साल 2019 में 103वें संविधान संशोधन की मदद से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया गया है, और ये जो प्रावधान है इसे अनुच्छेद 15 के 6ठे प्रावधान के तहत संविधान में जगह दिया गया है। इसे भी हम आरक्षण वाले लेख में समझेंगे।

Read in Details – अनुच्छेद 15 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 16 – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता

(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।

यानी कि अनुच्छेद 16(1) सभी नागरिकों को राज्य के अधीन नौकरी करने का अधिकार देता है। यह केवल संगठित लोक सेवाओं और संविदा (Contract) के आधार पर धारित बाह्य पदों तक ही सीमित नहीं है बल्कि गाँवों के उन रूढ़िगत पदों पर भी लागू होता है जिसकी नियुक्ति राज्य करता है।

यहाँ यह याद रखिए कि प्रोन्नति (Promotion) और सेवा की समाप्ति को भी नियोजन या नियुक्ति के अंतर्गत ही रखा जाता है।

(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।

यहाँ पर आप देख सकते हैं कि ‘केवल’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है यानी कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान और निवास के आधार पर आपसे सरकारी नौकरियों में कोई विभेद नहीं किया जाएगा लेकिन इसके अलावे अन्य आधारों पर किया जा सकता है, जैसे कि आपको योग्यता, दिव्याङ्गता, उम्र इत्यादि के आधार पर।

(3) संसद अगर चाहे तो किसी विशेष रोजगार के लिए निवास की शर्त आरोपित कर सकती है।

इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि एक विकसित राज्य के लोग अविकसित राज्य में जाकर नौकरियाँ ले रहा है, इससे अविकसित राज्यों के विकास में काफी बाधाएं आ सकती है इसीलिए इस अनुच्छेद 16 के तीसरे प्रावधान के तहत यह व्यवस्था की गई है ताकि जहां पर नौकरियाँ उत्पन्न हुई है वहाँ के लोकल लोगों को इसका लाभ मिल सके।

(4) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है।

यह प्रावधान बहुत ही महत्वपूर्ण है, ऐसा इसीलिए क्योंकि नौकरियों में कुछ वर्गों को (एससी, एसटी इत्यादि) जो आरक्षण मिलता है वो इसी के तहत दी जाती है।

यानी कि यह प्रावधान, अनुच्छेद 16 के पहले और दूसरे प्रावधान के अपवाद हैं। हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि अनुच्छेद 16 के खंड 1 और 2 के कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो कि आरक्षित लोगों पर समान रूप से लागू होता है जैसे कि पेंशन, वेतनवृद्धि, नियोजन की शर्तें इत्यादि।

यहाँ पर एक बात और याद रखने वाली है कि दो संशोधनों के माध्यम से अनुच्छेद 16 (4) में कुछ अन्य प्रावधान भी जोड़े गए है जैसे कि 77वें संविधान संशोधन 1995 की मदद से एससी एवं एसटी वर्ग के लोगों के लिए प्रोन्नति में पारिणामिक ज्येष्ठता को जोड़ा गया है और 81वां संविधान संशोधन अधिनियम 2000 की मदद से बैकलॉग रिक्तियों को आगे आने वाले वर्षों में भरे जाने की व्यवस्था की गई है। ये सब क्या है इसे आप अच्छे से समझ जाएँगे जब आप आरक्षण समझेंगे।

(5) विधि के तहत किसी संस्था या इसके कार्यकारी परिषद के सदस्य किसी विशिष्ट धर्म को मानने वाला हो सकता है।

मान लीजिए कि किसी मंदिर ट्रस्ट का संचालन मौलवी कर रहा हो तो स्थिति कैसी होगी। इसका ये मतलब नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता है लेकिन अगर संसद ने कोई विधि बना दी कि उस धर्म को मानने वाले लॉग की उसके सर्वोच्च अधिकारी होंगे तो ऐसा हो सकता है।

(6) आर्थिक रूपो से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों को 10 प्रतिशत आरक्षण

इसे साल 2019 में 103वें संविधान संशोधन की मदद से संविधान में जोड़ा गया है। और इसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के व्यक्तियों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण का लाभ दिया गया है। इसके पीछे का क्या गणित है इसे हम आरक्षण वाले लेख में समझेंगे।

ऊपर अभी हमने जो भी बातें की है उसे अच्छे से समझने के लिए हमें आरक्षण को समझना होगा। आरक्षण पर चार खंडों में लेख उपलब्ध है। आरक्षण से संबन्धित अपने सभी डाउट को क्लियर करने के लिए आप क्रम से सभी लेखों को समझें;

भारत में आरक्षण [Reservation in India] [1/4]

आरक्षण का संवैधानिक आधार एवं इसके विभिन्न पहलू [2/4]

आरक्षण का विकास क्रम (Evolution of Reservation) [3/4]

रोस्टर (Roster) – आरक्षण के पीछे का गणित [4/4]

Read in Details – अनुच्छेद 16 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत

इसका मतलब है कि छुआछूत का पूरी तरह से अंत। इसका एक ही मकसद था कि लोगों में इंसानियत की भावना को मजबूत करना ताकि एक ही समाज में सभी वर्गों के लोग मिल जुल का रह सकें।

इसीलिए अस्पृश्यता (untouchability) से उपजी किसी भी निर्योग्यता (disability) को लागू करने पर रोक लगा दिया गया। पर ये इतना आसान नहीं था। कमोबेश आज भी छुआछूत है ही, भले ही ये एक मौलिक अधिकार है।

तो जब भी मौलिक अधिकार ठीक से काम नहीं कर पाती है तो उसको ताकत प्रदान करने के लिए सरकार अगल से कानून बनाती है, इसीलिए समय-समय पर इसके लिए ढेरों जरूरी कानून बनाए गए, जैसे कि;

जन अधिकारों का सुरक्षा अधिनियम 1955 (The Protection of Civil Rights Act 1955),
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act 1989),
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016),
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 (The Mental Health Care Act, 2017) आदि।

* लेकिन इसमें भी अपवाद है जैसे कि अगर किसी व्यक्ति को कोई ऐसा रोग है जो उससे दूसरे में फैल सकता है तो राज्य क्या हम-आप भी उससे दूर ही रहेंगे और छूने की बात तो छोड़ ही दीजिये।

Read in Details – अनुच्छेद 17 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

अनुच्छेद 18 – उपाधियों का अंत

इसका मतलब है किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा पदवी न देना जो असमानता को दर्शाये। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पहले होता ये था कि किसी खास कुल में जन्म लेने के कारण उसके नाम के आगे महाराज, महाराजाधिराज या इसी प्रकार का अन्य टाइटल लगा दिया जाता था।

पर आपके मन में सवाल आ सकता है कि अभी भी ढेरों उपाधि मिलती है जैसे कि डॉक्ट्रेट की उपाधि, मानद उपाधि (honorary degree) आदि। इस संबंध में निम्नलिखित चार बातें संविधान में कहीं गयी है। 

(1) राज्य सेना या विद्या संबंधी उपाधियों के अलावा और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। मतलब ये कि अगर किसी को डॉक्ट्रेट की उपाधि दी जाती है तो उसे इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

(2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।

(3) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

(4) राज्य के अधीन लाभ के पद पर कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति किसी विदेशी से कोई उपाधि राष्ट्रपति के अनुमति के बिना प्राप्त नहीं करेगा। 

यहाँ भी अपवाद है जैसे किसी को पद्म भूषण, पद्म विभूषण, पद्म श्री और भारत रत्न आदि उपाधि नहीं मानी जाती है। और ऐसा स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि कोई भी व्यक्ति नाम के आगे इन शब्दों को नहीं लगा सकता है नहीं तो उससे ये छीन ली जाएगी। 

Read in Details – अनुच्छेद 18 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]

समता का अपवाद

1. अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति एवं राज्यपालों को कुछ शक्तियाँ दी गई हैं। जैसे कि

(a) राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने कार्यकाल के दौरान किए गए किसी कार्य या लिए गए निर्णय के लिए देश के किसी न्यायालय में जवाबदेश नहीं होंगे। अगर दीवानी मुकदमा चलाया भी जाता है तो इसकी सूचना राष्ट्रपति या राज्यपाल को देने के दो महीने बाद ही ऐसा किया जा सकता है।

(b) इनके कार्यकाल के दौरान इनके विरुद्ध किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही या गिरफ़्तारी के लिए प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की जाएगी।

2. अगर संसद या राज्य विधानमंडल की सत्य कार्यवाही को किसी के द्वारा मीडिया में लाया जाता है तो उस पर अनुच्छेद 361क के तहत किसी भी न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

3. अनुच्छेद 105 के अनुसार, संसद में उसके किसी सदस्य द्वारा कही गई बात या दिये गए किसी मत के संबंध में किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। यानी कि सांसद, संसद में कुछ भी बोल सकते हैं। यही चीज़ राज्य विधानमंडल को अनुच्छेद 194 के तहत प्राप्त है।

4. अनुच्छेद 39ग कहता है कि राज्य जनता के हित में अपनी नीति इस तरह से बनाएँगे कि धन और उत्पादन-साधनों का संकेंद्रण कहीं एक जगह न हो सके। इसके आधार पर अनुच्छेद 31ग कहता है कि यदि राज्य द्वारा अनुच्छेद 39ग या इसी के जैसे किसी अन्य नीति निदेशक तत्व के क्रियान्वयन के लिए कोई नियम बनाया जाता है तो उसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

⚫” समता का अधिकार ” लेख में अभी बस इतना ही। इसका एक महत्वपूर्ण घटक ”आरक्षण” को अलग से समझने की जरूरत है। बाद बाकी आगे अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक ‘स्वतंत्रता का अधिकार‘ की बात करेंगे।

स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)

शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation)

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार । Right to religious freedom

समता का अधिकार Practice Quiz #UPSC


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Chapter Wise Polity Quiz

समता का अधिकार (Art. 14 -18) अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 10
  2. Passing Marks - 80 %
  3. Time - 8 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

Which of the following statement is correct?

  1. Article 17 talks about the complete end of untouchability.
  2. Padma Bhushan is not considered a title.
  3. No citizen of India can accept any title from any foreign state.
  4. The Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act 1989 deals with the abolition of untouchability.

1 / 10

निम्न में से कौन सा कथन सही है?

  1. अनुच्छेद 17 छुआछूत को पूरी तरह से अंत की बात करता है।
  2. पद्म भूषण को उपाधि नहीं मानी जाती है।
  3. भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।
  4. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 का संबंध अस्पृश्यता का अंत से है।

Which of the following statements is correct with respect to Article 16?

  1. There shall be equality of opportunity for all persons in matters relating to employment or appointment to any post under the State.
  2. The Parliament can, if it so desires, impose a residence condition for any particular employment.
  3. The State may make provision for reservation in appointments in favor of any backward class of citizens.
  4. Reservation is completely against equality.

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अनुच्छेद 16 के संबंध में निम्न में से कौन सा कथन सही है?

  1. राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबन्धित विषयों में सभी व्यक्तियों के लिए अवसर की समता होगी।
  2. संसद अगर चाहे तो किसी विशेष रोजगार के लिए निवास की शर्त आरोपित कर सकती है।
  3. राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है।
  4. आरक्षण समानता के पूरी तरह से खिलाफ है।

Which of the following is correct regarding Article 14?

  1. Parity before the law indicates negative equality.
  2. This article is only for the citizens of India.
  3. Equal Protection of the Laws is derived from the US Constitution.
  4. The rule of law is the basic structure of the constitution.

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अनुच्छेद 14 के संबंध में निम्न में से क्या सही है?

  1. विधि के समक्ष समता, नकारात्मक समानता को इंगित करता है।
  2. ये अनुच्छेद सिर्फ भारत के नागरिकों के लिए है।
  3. विधियों का समान संरक्षण अमेरिकी संविधान से लिया गया है।
  4. विधि का शासन संविधान का मूल ढांचा है।

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पहला पिछड़ा वर्ग आयोग किसकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुई थी?

Which of the following statements is correct regarding the creamy layer?

  1. Ram Nandan committee constituted to identify creamy layer in OBC
  2. The aim of the creamy layer is to deprive those people of backward classes who are economically and socially prosperous from reservation.
  3. Creamy layer defined as the gross annual income of the parents from all sources
  4. Right now its limit is ₹ 12 lakh.

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क्रीमीलेयर के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. OBC में क्रीमीलेयर की पहचान के लिए राम नंदन समिति का गठन किया
  2. क्रीमीलेयर का मकसद है कि आरक्षण से पिछड़े वर्ग के उन लोगों को वंचित किया जाये जो कि आर्थिक, सामाजिक रूप से सम्पन्न है।
  3. क्रीमीलेयर को सभी स्रोतों से माता-पिता की सकल वार्षिक आय (Gross Annual Income) के रूप में परिभाषित किया गया
  4. अभी फ़िलहाल इसकी सीमा 12 लाख ₹ है।

Choose the correct statements from the given statements

  1. The Governor shall not be answerable to any court of the country for any act done or decision taken during his tenure.
  2. No proceedings shall lie in any court of law in respect of anything said or any vote given by any member thereof.
  3. If a civil case is to be filed against the President, it can be done only after 3 months of informing the President.
  4. If the true proceedings of the State Legislature are brought to the media by anyone, then no case can be prosecuted in any court under Article 361A.

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दिए गए कथनों में से सही कथनों का चुनाव करें

  1. राज्यपाल अपने कार्यकाल के दौरान किए गए किसी कार्य या लिए गए निर्णय के लिए देश के किसी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगे
  2. संसद में उसके किसी सदस्य द्वारा कही गई बात या दिये गए किसी मत के संबंध में किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती
  3. राष्ट्रपति पर अगर दीवानी मुकदमा चलाना हो तो इसकी सूचना राष्ट्रपति को देने के 3 महीने बाद ही ऐसा किया जा सकता है।
  4. राज्य विधानमंडल की सत्य कार्यवाही को किसी के द्वारा मीडिया में लाया जाता है तो उस पर अनुच्छेद 361क के तहत किसी भी न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

Which of the given options is considered correct?

  1. Feminism is based on gender equality.
  2. According to Marxism, equality can be established by abolishing private ownership of properties.
  3. Division of work is necessary for the smooth functioning of the society, in such a situation it is necessary for the society to be unequal.
  4. Not giving children the right to vote shows inequality.

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दिए गए विकल्पों में से कौन से विकल्प को सही माना जाता है?

  1. नारीवाद स्त्री-पुरुष समानता पर आधारित है।
  2. मार्क्सवाद के अनुसार संपत्तियों के निजी स्वामित्व को ख़त्म करके समानता स्थापित किया जा सकता है।
  3. समाज के सहज कार्य-व्यापार के लिए कार्य विभाजन जरूरी है ऐसे में समाज का असमान होना लाज़िमी है।
  4. बच्चों को वोट देने का अधिकार न देना असमानता को दर्शाता है।

Which of the following is logical in the context of equality?

  1. Equality means complete equality in the society.
  2. We should end the natural inequality.
  3. Equality is at the core of socialism.
  4. Sociological inequality creates distortion in the society.

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समानता के संदर्भ में इनमें से क्या तर्कसंगत है?

  1. समानता का मतलब समाज में पूर्णरूपेण बराबरी से है।
  2. हमें प्रकृतिजनित असमानता को ख़त्म कर देनी चाहिए।
  3. समाजवाद के मूल में समानता ही है।
  4. समाजमूलक असमानता समाज में विकृति पैदा करती है।

Which of the following is correct regarding reservation?

  1. Persons belonging to the creamy layer of OBC are denied reservation.
  2. In 1993, the National Commission for Backward Classes was formed, whose job was to add and subtract names from the reservation list.
  3. Mandal Commission had recommended 27 percent reservation for backward castes.
  4. Indira Sahni's case is related to reservation.

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आरक्षण के संबंध में इनमें से क्या सही है?

  1. OBC के क्रीमीलेयर से संबंधित व्यक्तियों को आरक्षण से वंचित किया जाता है।
  2. 1993 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया, जिसका काम आरक्षण लिस्ट में नाम जोड़ने एवं घटाने का था।
  3. मंडल आयोग ने पिछड़े जातियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश की थी।
  4. इंदिरा साहनी का मामला आरक्षण से संबंधित है।

Which of these judgments was given by the Supreme Court in the Indira Sawhney case?

  1. The system of reservation should be only for appointment and not for promotion.
  2. Caste can be the basis of reservation.
  3. The need of the hour is to provide 15% additional reservation for the economically backward.
  4. The total reserved quota should not exceed 60%.

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इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इनमें से क्या निर्णय दिया गया?

  1. आरक्षण की व्यवस्था केवल नियुक्ति के लिए होनी चाहिए प्रोन्नति (Promotion) के लिए नहीं।
  2. आरक्षण का आधार जाति हो सकता है।
  3. आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 15% अतिरिक्त आरक्षण देना समय की जरूरत है।
  4. कुल आरक्षित कोटा 60% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

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References,
मूल संविधान भाग 3 समता का अधिकार
NCERT कक्षा 11A राजनीति विज्ञान समता का अधिकार
Consequential seniority↗️
Mandal Commission↗️
डी डी बसु (संविधान पर भाष्य) एवं एनसाइक्लोपीडिया आदि।