इस लेख में हम रुपया पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इससे संबंधित ढेरों महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर करेंगे। जैसे कि रुपए पर लिखा ‘मैं धारक को अदा करने का वचन देता हूँ’ इसका क्या मतलब होता है। सिक्के कौन जारी करता है, आरबीआई का क्या रोल है इत्यादि।

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रुपया

| रुपया और इसका इतिहास

भारतीय रुपया (INR) भारत की आधिकारिक मुद्रा है। इसका प्रतीक चिन्ह ₹ है। इस प्रतीक चिन्ह (₹) को 2010 में, आधिकारिक तौर पर अपनाया गया था। इसके बाद नए रुपये के चिन्ह वाले सिक्कों की पहली श्रृंखला 8 जुलाई 2011 को प्रचलन में आई।

यहाँ यह याद रखिए कि ‘रुपया’ नाम, संस्कृत ‘रूपया’ से निकला है जिसका मतलब होता है “चांदी”। ये भी याद रखिए कि रुपया मॉरीशस, नेपाल और सेशेल्स में उपयोग की जाने वाली मौद्रिक इकाई का भी नाम है।

16वीं शताब्दी के अंत में मध्य और उत्तरी भारत के मुगल वंश के शासकों ने चांदी के रुपये को अपनाया, जो कि बहुत पहले से चलन में था। 1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत ने रुपए को बरकरार रखा और 1955 में दशमलव प्रणाली को अपनाया गया।

1 रुपये को 100 पैसों में विभाजित किया गया है, हालांकि अभी 1 रुपये के मूल्यवर्ग के सिक्के उपयोग में सबसे कम मूल्य के हैं। लेकिन ऑनलाइन लेन-देन में पैसों का खूब इस्तेमाल होता है। भारतीय मुद्रा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियंत्रित किया जाता है। रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा का प्रबंधन करता है और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंधन में अपनी भूमिका प्राप्त करता है।

8 नवंबर 2016 से, भारत सरकार द्वारा ₹500 और ₹1,000 के नोट को लीगल टेंडर से बाहर कर दिया गया। हालांकि इसके जगह पर ₹500 और ₹2000 मूल्यवर्ग के नए नोट मार्केट में लाया गया। साल 2017-18 से महात्मा गांधी श्रृंखला के नए नोट जारी किए गए जो कि ₹10, ₹20, ₹50, ₹100 और ₹200 के मूल्यवर्ग का था। और फिलहाल अभी यही चलन में है।

इतिहास

🔴 लगभग 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से भारत में सिक्कों के प्रमाण मिलते हैं, इसीलिए भारत को सबसे शुरुआती सिक्का जारीकर्ताओं में से एक माना जाता है। पाणिनि ने सर्वप्रथम रूप्या (रूप्य) का उल्लेख किया है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वह सिक्के की बात कर रहे थे या नहीं।

🔴 आचार्य चाणक्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में चांदी के सिक्कों का उल्लेख रुपयारूपा (rūpyarūpa) के रूप में किया है। इसके अलावा सोने के सिक्के को सुवर्णरूपा (suvarṇarūpa), तांबे के सिक्के ताम्ररूपा (tāmrarūpa), और सीसे के सिक्के को सीसारूपा (sīsarūpa) कहा है।

यहाँ यह याद रखिए कि रूपा (Rūpa) का मतलब रूप (form) या आकृति (shape) होता है। यानी कि रुपयारूपा (rūpyarūpa) का मतलब हुआ ‘ढला हुआ चाँदी (wrought silver)’।

🔴 गुप्त साम्राज्य (खासकर कर के चंद्रगुप्त द्वितीय) ने बड़ी संख्या में चांदी के सिक्कों का उत्पादन किया। इसे रूपक (Rūpaka) सिक्का कहा गया। चांदी के रूपक सिक्कों का वजन लगभग 20 रत्ती (2.2678 ग्राम) था। (इसके बाद से मुगल काल तक कोई एक निश्चित मौद्रिक व्यवस्था भारत में नहीं दिखता है।)

🔴 1540 से 1545 तक अपने पांच साल के शासन के दौरान, सुल्तान शेर शाह सूरी ने चांदी का एक सिक्का जारी किया, जिसे रुपिया (rupiya) भी कहा जाता था। आधुनिक भारत के रुपयों की शुरुआत यहीं से मानी जाती है। बाद में मुगल साम्राज्य द्वारा इसे अपनाया और मानकीकृत किया गया। चांदी का सिक्का, मुगल के साथ-साथ मराठा और अंग्रेजों के काल में भी उपयोगी रहा।

🔴 1861 में, भारत सरकार ने अपना पहला पेपर मनी पेश किया: 1864 में ₹10 का नोट, 1872 में ₹5 का नोट, 1899 में ₹10,000 का नोट, 1900 में ₹100 का नोट, 1905 में ₹50 का नोट, 1907 में ₹500 का नोट और ₹ 1909 में 1,000 का नोट। इसके साथ ही 1917 में, ₹1 और ₹2 1⁄2 (ढाई रुपए) के नोट भी पेश किए गए। लेकिन 1940 के आस-पास ₹500 और ₹2 1⁄2 के नोटों को बंद कर दिया गया।

🔴 भारतीय रिजर्व बैंक ने 1938 में ₹2, ₹5, ₹10, ₹50, ₹100, ₹1,000 और ₹10,000 के नोट जारी करते हुए बैंकनोट का उत्पादन शुरू किया। जबकि सरकार ने ₹1 का नोट जारी करना जारी रखा। और आज भी 1 रुपए का नोट केवल भारत सरकार ही जारी कर सकता है।

| आजादी के बाद सिक्कों की स्थिति

भारत ने 15 अगस्त, 1947 को अपनी स्वतंत्रता हासिल की। ​​इसके तुरंत बात सब कुछ बदल देना संभव नहीं था इसीलिए लगभग 3 सालों तक भारत ने पहले की मौद्रिक प्रणाली और मुद्रा और सिक्के को बरकरार रखा। इसे संक्रमण काल (transition period) कहा जाता है। और 15 अगस्त, 1950 को सिक्कों की एक नई विशिष्ट श्रृंखला पेश की।

स्वतंत्र भारत के सिक्कों के विकासक्रम को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है:

फ्रोजन सीरीज 1947-1950

यह भारतीय गणराज्य की स्थापना तक की संक्रमण अवधि (यानी कि साल 1947 से 1950 तक के अवधि) के दौरान मुद्रा व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। उस समय 1 रुपया 192 पाई के बराबर होता था। ये कुछ इस प्रकार था;

1 रुपया = 16 अन्ना

1 अन्ना = 4 पाइस

1 पाइस = 3 पाई

अन्ना सीरीज

यह श्रृंखला 15 अगस्त, 1950 को शुरू की गई थी। पहली बार सिक्के पर अशोक स्तंभ को अंकित किया गया। साथ ही मकई के शीफ को भी अंकित किया गया। इसके अलावा कई अन्य भारतीय प्रतीकों को अलग-अलग सिक्कों पर जगह दी गई। हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि मौद्रिक प्रणाली को बड़े पैमाने पर अपरिवर्तित रखा गया, यानी कि एक रुपया अब भी 16 आने का था। उस समय 1 रुपया, आधा रुपया, एक चौथाई रुपया, 2 आना, 1 आना, आधा आना और एक पाइस मूल्यवर्ग के सिक्के चलन में लाए गए।

दशमलव सीरीज

सितंबर 1955 में भारतीय सिक्का अधिनियम 1906 में संशोधन किया गया, ताकि देश में सिक्के के लिए एक मीट्रिक प्रणाली को अपनाया जा सके। संशोधित अधिनियम 1 अप्रैल 1957 से प्रभावी हुआ। रुपया मूल्य और नामकरण में अपरिवर्तित रहा। लेकिन, अब इसे 16 अन्ना या 64 पाइस के बजाय 100 ‘पैसा’ में विभाजित किया गया। इसे ‘नया पैसा’ कहा गया।

🔴 एक रुपया तो वैसे ही रहा लेकिन इससे छोटे मूल्यवर्ग के सभी सिक्कों के नाम कुछ इस प्रकार हो गए – पचास नया पैसा, 25 नया पैसा, 10 नया पैसा, 5 नया पैसा, 2 नया पैसा और 1 नया पैसा।

हालांकि 1964 में आधिकारिक रूप से ‘नया’ शब्द हटा दिया गया। और उसके जगह पर एक रुपये के सौवें हिस्से के बराबर मूल्य की व्याख्या करते हुए हिंदी में मूल्य का वर्णन किया गया। यानी कि अब सिक्कों के नाम कुछ इस तरह से हो गए – पचास पैसा, 25 पैसा, 10 पैसा, 5 पैसा, 2 पैसा और 1 पैसा।

🔴 साठ के दशक में धातुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण, छोटे मूल्य के सिक्के जो कांस्य, निकल-पीतल और एल्युमिनियम-कांस्य से बने होते थे; को धीरे-धीरे एल्यूमीनियम में ढाला जाने लगा। इस नए परिवर्तन के कारण सिक्के को हेक्सागोनल आकृति मिला। 1964 में पहली बार 3 पैसे के सिक्के ढाले गए। 1968 में एक बीस पैसे का सिक्का भी पेश किया गया लेकिन उसे ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली।

फेरिटिक स्टेनलेस स्टील सीरीज

समय के साथ-साथ धातुओं में मूल्य वृद्धि हुई जिससे कि सिक्कों में लगे धातुओं की कीमत उस सिक्कों की कीमत से ज्यादा होने लग गई। इसीलिए लाभ के विचार से सत्तर के दशक में 1, 2 और 3 पैसे के सिक्कों को क्रमिक रूप से बंद कर दिया गया। और साल 1988 में 10, 25 और 50 पैसे के सिक्के स्टेनलेस स्टील में ढाले गए। आगे चलकर 1992 में 1 रुपए के सिक्के को भी स्टेनलेस स्टील में ढाला गया।

🔴 1 रुपये, 2 रुपये और 5 रुपये के नोटों के प्रबंधन की काफी लागत के कारण 1990 के दशक में इन मूल्यवर्गों का क्रमिक सिक्काकरण किया गया। इसे कप्रो-निकल (cupro-nickel) धातु में ढाला गया।

साल 2000 से भारत के सिक्के

साल 2001-02 के बाद से कम मूल्यवर्ग के सिक्कों की मांग में काफी गिरावट आई। इसलिए, सभी निचले मूल्य के सिक्कों जैसे 5 पैसे, 10 पैसे और 20 पैसे और 25 पैसे, 50 पैसे और एक रुपये के कप्रो-निकल सिक्कों को प्रचलन से बाहर करने का निर्णय लिया गया।

धातु की बढ़ती कीमतों के कारण कप्रो-निकल सिक्कों को भारत सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से 2006 में फेरिटिक स्टेनलेस स्टील में (सभी मूल्यवर्ग के सिक्कों को) ढालने का फैसला किया।

21वीं सदी के पहले दशक में सिक्कों की कई नई किस्में आई। धात्विक मुद्रा की मांग में वृद्धि के कारण कुछ नई श्रृंखलाओं की शुरुआत की गई। जो कि कुछ इस प्रकार है; (1) विविधता में एकता सीरीज (2) नृत्य मुद्रा सीरीज और (3) कनेक्टिविटी और सूचना प्रौद्योगिकी सीरीज। साथ ही पहली बार, सिक्कों के निर्माण में द्वि-धातु का उपयोग करने की अवधारणा भी सामने आयी, और उसे 10 रुपए के सिक्कों में इस्तेमाल किया गया।

(1) विविधता में एकता सीरीज

2005 में, 1, 2 और 10 रुपये के मूल्यवर्ग में ‘विविधता में एकता’ नामक एक श्रृंखला शुरू की गई। इसकी विशेषता ये है कि इसमें 4 बिंदुओं के साथ प्रतिच्छेदन रेखाएँ हैं।

(2) नृत्य मुद्रा सीरीज

2007 में ‘नृत्य मुद्रा’ के नाम से जानी जाने वाली एक नई श्रृंखला शुरू की गई। इसके तहत 50 पैसे, 1 रुपए और 2 रुपए के सिक्के जारी किए गए। ये सिक्के फेरिटिक स्टेनलेस स्टील के थे। 50 पैसे के सिक्के पर “मुट्ठी बंद”, 1 रुपए पर “अंगूठा ऊपर” और 2 रुपए के सिक्के पर “टू फिंगर्स” उकेरा गया।

(3) कनेक्टिविटी और सूचना प्रौद्योगिकी सीरीज

2007 में 5 रुपए के फेरिटिक स्टेनलेस स्टील का सिक्का जारी किया गया, जिसके डिजाइन में लहरें थीं। 2008 में, एक नया 10 रुपए का सिक्का जारी किया गया, जिसमें 15 किरणें आंतरिक और बाहरी रिंगों/वृत्तों को जोड़ती थीं।

रुपया प्रतीक (₹) सीरीज

2011 में, रुपये के प्रतीक (₹), को 1, 2 और 5 के मूल्यवर्ग में पेश किया गया था, जिसमें कमल की कलियों और फूलों को दर्शाया गया था। ₹10 का सिक्का पहले की तरह द्वि-धातु में जारी किया जाता रहा, जिसमें अंकीय मान से ऊपर ‘₹’ था, जिसमें पंद्रह के बजाय दस किरणें थीं। नई सीरीज में 50 पैसे के नए मूल्यवर्ग भी जारी किए गए।

नोट – सिक्का अधिनियम,1906 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारत सरकार ने जून 2011 के अंत से 25 पैसे और उससे कम मूल्यवर्ग के सिक्कों को प्रचलन से बाहर करने का निर्णय लिया। यानी कि इसके बाद, ये सिक्के भुगतान के लिए वैध मुद्रा नहीं रहे। [लेकिन यहाँ यह याद रखिए कि 50 पैसे के सिक्के को आधिकारिक रूप से अभी भी बंद नहीं किया गया है। यानी कि वह अभी भी लेन-देन के लिए वैध मुद्रा है।]

| आजादी के बाद बैंक नोट की स्थिति

आधुनिक पेपर मनी की शुरुआत, अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से मानी जाती है जिसे कि निजी बैंकों के साथ-साथ अर्ध-सरकारी बैंकों (बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास) द्वारा जारी किया गया था।

साल 1861 में कागजी मुद्रा अधिनियम लाया गया। जिसके तहत उस समय के ब्रिटिश भारत सरकार को नोट जारी करने का एकाधिकार प्रदान किया गया। और यह तब तक जारी रहा जब तक भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना नहीं हो गई।

यानी कि 1 अप्रैल, 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना तक भारत सरकार ने मुद्रा नोट जारी करना जारी रखा। हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि अगस्त, 1940 में भारत सरकार द्वारा एक रुपये के नोट को युद्ध के समय के उपाय के रूप में फिर से पेश किया गया। और आपको जानकार आश्चर्य होगा कि भारत सरकार 1994 तक एक रुपये के नोट जारी करती रही।

🔴 जैसा कि हमने सिक्कों के बारे में ऊपर जाना है कि किस तरह से आजादी के बाद भारत के गणतंत्र बनने तक पुराने सिक्कों को ही जारी रखा गया। उसी तरह से आजादी से बाद कागजी मुद्रा को भी 1950 तक जारी रखा गया। इस संक्रमण काल के दौरान फ़्रोजन सीरीज (Frozen Series) के रूप में पुराने नोट चलते रहे, जिसमें किंग जॉर्ज VI की फोटो लगी थी। हालांकि बाद में किंग जॉर्ज VI की तस्वीर को सारनाथ से अशोक स्तम्भ से रिप्लेस कर दिया गया।

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🔴 1950 में, पहली बार गणतंत्र भारत बैंक नोट 2, 5, 10 और 100 रुपये के मूल्यवर्ग में जारी किए गए। पहले के नोटों की तुलना में इसके रंग और डिजाइन में भिन्नता थी।

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🔴 1953 में नए नोटों पर हिंदी को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया। इसके साथ ही 1,000, 5,000, और 10,000 रूपये जैसे उच्च मूल्यवर्ग के नोटों को 1954 में शुरू किया गया। उच्च मूल्यवर्ग के नोटों को 1978 में विमुद्रीकृत (demonetized) कर दिया गया।

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स्मरणीय डिज़ाइन सीरीज (commemorative design series)

1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी समारोह के सम्मान में एक स्मरणीय डिजाइन श्रृंखला जारी की गई जिसकी पृष्ठभूमि बैठे हुए गांधी का चित्रण था। नोट पर गांधीजी का ये पहला चित्रण था।

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🔴 साठ के दशक की शुरुआत में मंदी की अवधि ने अर्थव्यवस्था पर विचार करने को बाध्य किया और इसके चलते 1967 में नोटों के आकार को कम कर दिया गया। और लागत लाभ के विचार से 1972 और 1975 में क्रमशः पहली बार 20 और 50 रूपये के नोट जारी किए गए। उससे पहले 20 और 50 के नोट नहीं छापे जाते थे।

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🔴 1980 के दशक में नोटों के डिज़ाइन और पैटर्न में बदलाव किया गया। इस तरह से नए नोट हमारे सामने आए। 2 रुपये के नोट पर आर्यभट्ट, 1 रुपये पर तेल रिग, 5 रुपये पर फार्म मशीनीकरण और 100 रुपये पर हीराकुंड बांध को चित्रांकित किया गया।

500 रूपये के नोट की एंट्री

1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में भारत ने बढ़ती अर्थव्यवस्था की बढ़ती मांगों के साथ-साथ क्रय शक्ति में गिरावट का सामना किया। क्रय शक्ति को ठीक करने के उद्देश्य से अक्टूबर 1987 में महात्मा गांधी के चित्र के साथ 500 का नोट जारी किया गया। इसके बाद ही महात्मा गांधी सीरीज की नोटों को जारी किया जाने लगा।

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महात्मा गांधी सीरीज

सुरक्षा तकनीकों में बहुत ज्यादा परिवर्तन के कारण और ड्यूप्लिकेट नोटों को रोकने के लिए 1990 के दशक के उतरार्द्ध में ये जरूरी हो गया था कि नोटों में जरूरी परिवर्तन किया जाए। इसी को ध्यान में रखकर 1996 में एक नई ‘महात्मा गांधी श्रृंखला’ पेश की गई थी। जिसमें परिवर्तित वॉटरमार्क, विंडो सुरक्षा धागा, गुप्त छवि और नेत्रहीन विकलांगों के लिए इंटैग्लियो विशेषताएं नई सुविधाओं में से एक थीं।

नई श्रृंखला में अक्टूबर 2000 को 1000 रुपये मूल्यवर्ग की शुरुआत की गई। इसके बाद, नवंबर 2000 को 500 रुपये मूल्यवर्ग के नोट को बदले हुए रंग में जारी किया गया और एक अतिरिक्त सुरक्षा सुविधा के रूप में केंद्र में संख्यात्मक मूल्य में रंग बदलने वाली स्याही को शामिल किया गया था।

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🔴 साल 2005 में, महात्मा गांधी श्रृंखला के नोटों में सुरक्षा की दृष्टि से फिर से परिवर्तन किए गए। इसमें व्यापक रंग शिफ्टिंग, मशीन पठनीय चुंबकीय खिड़की सुरक्षा धागा, जैसे परिवर्तन शामिल थे। इसके अलावा 2005 में पहली बार बैंकनोट्स पर प्रिंटिंग का वर्ष पेश किया गया।

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🔴 स्टार सीरीज – 2006 में, “स्टार सीरीज़” को बैंक नोटों पर पेश किया गया, ताकि क्रम को बनाए रखने के लिए समान क्रम संख्या वाले दोषपूर्ण नोटों की पुन: छपाई से बचा जा सके।

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🔴 2011 में, रुपया प्रतीक (₹), भारतीय रुपये का पहचान चिह्न पेश किया गया था। इसी प्रतीक चिन्ह को साल 2011 में, बैंकनोट्स और सिक्कों में शामिल किया गया।

🔴 नकली नोटों से आगे रहने के लिए और बैंकनोट्स की सुरक्षा सुविधाओं के अप-ग्रेडेशन के उद्देश्य से 2015 में, कुछ नई सुविधाएँ जैसे कि उच्च मूल्यवर्ग के नोटों पर ब्लीड लाइनें और विस्फोट करती हुई संख्या शुरू की गई। साथ ही 2015 में भारत सरकार ने एक रुपया मूल्यवर्ग फिर से पेश किया।

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महात्मा गांधी (नई) सीरीज

भारत सरकार ने नवंबर 2016 में रिजर्व बैंक द्वारा जारी महात्मा गांधी श्रृंखला के बैंकनोट्स (500 और 1,000) को लीगल टेंडर से बाहर कर दिया। इसके बाद नए बैंकनोट्स को महात्मा गांधी (नई) श्रृंखला में पेश किया गया, जो देश की सांस्कृतिक विरासत और वैज्ञानिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हैं।

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| ‘मैं धारक को अदा करने का वचन देता हूँ’ इसका क्या मतलब होता है ?

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अक्सर हमारा ध्यान रुपए पर लिखे इस वाक्य पर जाता है पर हम उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचते है लेकिन वो बहुत ही महत्वपूर्ण बात होती है । आइये समझते है।

देखिये हम सब जानते है कि कोई भी बैंक नोट का मूल्य उसके उत्पादन में लगे मूल्य का कई गुना होता है। अगर 2000 रुपए का एक नोट है तो उसे बनाने का खर्चा मुश्किल से 5 रुपए आता है। पर उसका मूल्य  2000 रुपए के बराबर होता है।

लोग उसको 2000 रुपए के मूल्य जितना माने इसीलिए रिजर्व बैंक लोगों को एक वचन (प्रॉमिस) देता है कि ‘मैं धारक को’ यानि कि जिस किसी के पास भी अभी ये नोट है; 2000 रुपए अदा करने का वचन देता हूँ।

दूसरे शब्दों में कहूँ तो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 26, के अनुसार रिजर्व बैंक उस बैंक नोट पर अंकित मूल्य अदा करने के लिए ज़िम्मेवार है।

रिजर्व बैंक का ये संवैधानिक दायित्व बनता है कि उस बैंक नोट के विनिमय में उसके मूल्य के बराबर राशि या तो छोटे मूल्यवर्ग के बैंक नोट अथवा ‘भारतीय सिक्काकरन अधिनियम 2011‘ के अंतर्गत उतने ही मूल्य के सिक्के दें।

तो कुल मिलाकर ये एक प्रॉमिस है जो आरबीआई उन लोगों से करता है जो इसका इस्तेमाल करेंगे। ताकि जितना मूल्य उस नोट पर अंकित है उसे वही माना जाए। उम्मीद है आप इसका मतलब समझ गए होंगे।

उम्मीद है आपको रुपया पर लिखा गया यह लेख आपको पसंद आया होगा और इससे आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा। इसी तरह के ढेरों लेखों को पढ़ने के लिए हमारे साइट को एक्सप्लोर करें और दिए गए लिंक को फॉलो करें

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References,
https://rbi.org.in/
https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_rupee
https://dea.gov.in/sites/default/files/indiancoinageact1906.pdf
Britinnica Encyclopedia Etc.