इस लेख में हम सरल और सहज हिन्दी में और दिलचस्प उदाहरण के साथ समझेंगे कि शेयर मार्केट कैसे काम करता है?

इस पूरे कॉन्सेप्ट की चर्चा दो भागों में की गई है। आप अभी इसके पहले भाग को पढ़ रहे हैं। इसके बाद दूसरा अवश्य पढ़ें।

नोट – अगर आप शेयर मार्केट के बेसिक्स को ज़ीरो लेवल से समझना चाहते हैं तो आपको पार्ट 1 से शुरुआत करनी चाहिए। अगर वो समझ चुके है या सिर्फ शेयर मार्केट के काम करने के तरीके को ही समझना है तो फिर जारी रखें।

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| अब तक हमने समझा…

अब तक हमने समझा कि वित्तीय बाज़ार के दो अंग होते हैं – मुद्रा बाज़ार (money market) एवं पूंजी बाज़ार (Capital market)प्रतिभूति बाज़ार (securities market) पूंजी बाज़ार का एक हिस्सा है। प्रतिभूति बाज़ार के दो घटक होते है – प्राथमिक बाज़ार (Primary market) और द्वितीयक बाज़ार (secondary market)।

◼ जैसा कि हम जानते हैं, बाज़ार में दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जिसके पास एक्सट्रा पैसे हैं जो दूसरा वो जिसे पैसों की जरूरत है। हम-आप अगर किसी कंपनी का शेयर खरीद रहें है इसका मतलब है हमारे पास एक्सट्रा पैसे है जाहिर है तभी तो निवेश कर रहे हैं।

दूसरी तरफ जो कंपनी अपना शेयर बेच रहा है जाहिर है उसके पास पैसों की कमी है इसीलिए वो अपना शेयर बेच रहा है। नहीं तो वो बेचता ही क्यूँ। अब आपके मन में सवाल आ सकता है कि वो अपना शेयर क्यों बेचे जब कि वो बैंक से लोन ले सकता है?

बात दरअसल ये है कि शेयर बेचने के पीछे ढेरों कारण होते है जो आप को आगे धीरे-धीरे समझ में आएगा। वैसे इसका एक कारण ये है कि अगर कंपनी बैंक से लोन लेती है और मान लीजिये वो कंपनी डूब जाती है तो बैंक वाले उसके सारे संपत्ति को बेचकर पैसे वसूलेंगे। वहीं वो कंपनी अगर शेयर जारी करती है और तब डूब जाती है तो निवेशक के पैसे डूब जाएँगे क्योंकि कंपनी को कोई ब्याज तो देने नहीं है।

| शेयर मार्केट कैसे काम करता है? – कॉन्सेप्ट

| उदाहरण भाग 1

मान लीजिये मुकेश ने एक दुकान खोली और उस दुकान में सारी पूंजी उसने खुद अपने संग से लगायी यानी कि उस दुकान की 100 परसेंट इक्विटि मुकेश के पास है।

◾ जब 100 परसेंट इक्विटि किसी एक व्यक्ति के ही पास हो तो इस व्यवस्था को प्रोपराइटरशिप (Proprietorship) कहा जाता है और उस व्यक्ति को प्रोपराइटर (Proprietor)।

| भाग 2

मुकेश को अपना बिज़नस और बड़ा करना है जिसके लिए उसे थोड़े पैसे चाहिए। इस पैसे की व्यवस्था करने के लिए मुकेश अपने भाई अनिल को अपने दुकान का 50 परसेंट इक्विटि दे देते हैं। यानी कि फिफ्टी-फिफ्टी शेयर मुकेश और अनिल में बंट गया।

इससे हुआ ये कि मुकेश को जो पैसे की जरूरत थी उसे अनिल ने पूरा कर दिया लेकिन इसके बदले मुकेश को अपने दुकान की आधी हिस्सेदारी देनी पड़ी। इस तरह से अब प्रोपराइटरशिप खत्म हो जाती है और पार्टनरशिप (partnership) शुरू हो जाती है।

| भाग 3

मान लीजिये मुकेश अपने बिज़नस को और बढ़ाना चाहता हैं, वो और भी कई दुकानें खोलना चाहता है पर न ही उसके पास और न ही अनिल के पास अब पैसे है जो उसमें लगाएंगे। लोन (Loan) वो लेना नहीं चाहता है तो अब वो क्या करेगा? जाहिर है वो मार्केट से पैसा लेगा।

मार्केट में कई प्राइवेट इन्वेस्टर होते है जो किसी कंपनी में पैसा लगाते है पर वो इसके बदले ब्याज नहीं लेते बल्कि उस कंपनी में हिस्सेदारी लेते हैं। जैसे कि एंजेल इन्वेस्टर का नाम तो आपने सुना ही होगा जो किसी कंपनी में इन्वेस्ट करता है और बदले में उस कंपनी का हिस्सेदार बन जाता है।

मुकेश, इसी प्रकार के प्राइवेट इन्वेस्टर से पैसा जुटाने के लिए अपनी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड बना लेता है। प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाने का फायदा ये होता है कि कंपनी अपने शेयर को किसी प्राइवेट इन्वेस्टर से बेचकर पैसा जुटा सकता हैं यानी कि अब मुकेश भी अपने कंपनी का शेयर जारी कर सकता है।

प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का दूसरा फायदा ये है कि अब जब मुकेश बैंक से लोन लेंगे और उसे चुका नहीं पाएंगे तो बैंक चाहे तो मुकेश के कंपनी के संपत्ति को बेचकर जितना पैसा हो सके उगाही कर लें लेकिन वे मुकेश के निजी संपत्ति पर हाथ नहीं लगा सकता है।

यहाँ एक बात याद रखिए कि मुकेश अभी भी आम लोगों को शेयर नहीं बेच सकता हैं। बस रजिस्टर्ड प्राइवेट इन्वेस्टर को ही बेच सकता हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि मुकेश की कंपनी अभी भी पब्लिक लिमिटेड नहीं है।

वैसे अगर आप प्राइवेट और पब्लिक लिमिटेड में अंतर जानना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करके जान सकते हैं।

| भाग 4

मान लेते हैं कि मुकेश के कंपनी मूल्य अभी 1 लाख रुपए है। क्योंकि मुकेश और अनिल दोनों फिफ्टी-फिफ्टी के हिस्सेदार है तो इस हिसाब से 50 हज़ार रुपए मुकेश के और 50 हज़ार रुपए अनिल के हुए। इसे कहते है पेड-अप कैपिटल (Paid up capital) यानी कि वो कैपिटल जो अभी तक इस बिज़नस में दोनों ने लगाए हैं।

अब दोनों पार्टनर ने अपने पेड-अप कैपिटल के हिसाब से 1 लाख शेयर बनाए और दोनों में बाँट लिए यानी कि 50 हज़ार शेयर मुकेश के हुए और 50 हज़ार शेयर अनिल के हुए।

इसे दूसरे तरीके से कहें तो इन दोनों ने अपने एक शेयर का मूल्य 1 रुपया रखा। ये जो 1 रुपया है इसे कहते हैं फ़ेस वैल्यू (Face value) यानी कि 1 शेयर का वो वैल्यू जो उन दोनों ने तब रखा जब उसका पेड अप कैपिटल 1 लाख रुपया है।

यहाँ पर एक बात याद रखिए कि एक लाख शेयर दोनों में बांटे गए है इसीलिए एक शेयर का मूल्य 1 रुपया है, अगर 10 हज़ार शेयर दोनों में बांटे होते तो एक शेयर का मूल्य 10 रुपया होता। इस केस में मुकेश और अनिल ने 1 लाख शेयर बनाया है इसीलिए फेस वैल्यू 1 रुपया है। और दोनों पार्टनरों ने 50 – 50 हज़ार शेयर अपने-अपने नाम कर लिए है।

लेकिन अगर मुकेश और अनिल को भविष्य में और पैसे चाहिए तो उसके पास बेचने के लिए भी तो शेयर होना चाहिए क्योंकि कोई पैसा तो तभी देगा जब उसे कंपनी में हिस्सेदारी मिलेगा।

ये ध्यान में रखकर मुकेश और अनिल ने 1 लाख एक्सट्रा शेयर जारी किया। ये जो एक्सट्रा शेयर उन्होने बेचने के लिए जारी किया है इसे कहा जाता है Authorised Shares; यानी कि वे शेयर जिसे बेच कर मुकेश और अनिल धन उगाही कर सकता है।

चूंकि अभी एक शेयर का फेस वैल्यू 1 रुपया है इसीलिए अभी अगर मुकेश और अनिल उस पूरे एक्सट्रा 1 लाख शेयर को बेचेंगे तो उसे कुल 1 लाख रुपए मिल जाएँगे। यानी कि अभी के तारीख में मुकेश और अनिल इस शेयर को बेचकर मैक्सिमम 1 लाख रुपया तक अर्जित कर सकते हैं। इसे कहते हैं Authorised Capital; यानी कि वे मैक्सिमम कैपिटल (पूंजी) जो मुकेश और अनिल अर्जित कर सकता है।

| भाग 5

हम यहाँ पर मान लेते हैं कि मुकेश और अनिल को शेयर जारी किए हुए 6 महीने हो चुके है और अब उसकी कंपनी 2 लाख रुपए की हो गयी है। इसका मतलब ये हुआ कि अब एक शेयर का मूल्य 2 रुपए हो गया। क्यों?

क्योंकि एक शेयर का दाम 1 रुपए तब था जब कंपनी की कीमत 1 लाख रुपए थी। लेकिन अब तो कंपनी 2 लाख रुपए की हो चुकी है और शेयर तो उतना ही है, यानी कि एक लाख। तो जाहिर है एक शेयर का मूल्य 2 रुपए हो जाएगा।

ये जो शेयर का मूल्य 2 रुपए हो गया इसे ही कहते हैं मार्केट वैल्यू (Market value); याद रखिए कि मार्केट वैल्यू के हिसाब से ही सब कुछ चलता है।

इसका मतलब ये है कि मुकेश और अनिल के पास जो अभी 1 लाख Authorised Share है। उसकी कीमत 2 रुपए पर शेयर की दर से 2 लाख रुपए हो गया। अब वे उस शेयर को बेचकर 2 लाख रुपए अर्जित कर सकता है।

इसका मतलब ये है कि अभी अगर कोई मुकेश और अनिल के कंपनी का शेयर खरीदेगा तो उसे 2 रुपया में एक शेयर मिलेगा।

अब मान लेते हैं कि अभी उन दोनों को 1 लाख रुपए की जरूरत है। तो अगर वे उस 1 लाख Authorised Shares में से अगर 50 हज़ार शेयर को बेच देंगे तो 1 लाख रुपया मिल जाएगा क्योंकि अभी एक शेयर की मार्केट वैल्यू 2 रुपए है।

वो 50 हज़ार शेयर एक प्राइवेट इन्वेस्टर जिसका नाम नीता है; को बेच देता है और इस तरह उसे 1 लाख रुपए मिल जाता है।

| भाग 6

अब आपको याद होगा कि दोनों पार्टनरों के पास अभी 50- 50 हज़ार शेयर है और अभी एक तीसरे व्यक्ति नीता को 50 हज़ार शेयर और बेच दिये। इसका मतलब ये हुआ कि अब उस कंपनी के तीन हिस्सेदार हो गए है। और तीनों के पास चूंकि 50 – 50 हज़ार शेयर है इसीलिए तीनों की कंपनी में हिस्सेदारी (इक्विटि) 33.3 प्रतिशत हो जाएगी।

अब यहाँ आप सोचेंगे कि ये जो नया हिस्सेदार नीता आया है ये तो कंपनी का बराबर का मालिक हो गया। तो आपको बता दूँ कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ऐसा क्यूँ है?

तो आपको याद होगा कि मुकेश और अनिल, दोनों ने शुरुआती समय में 50 – 50 हज़ार रुपए लगाए थे जिसे कि हमने पेड अप कैपिटल कहा था। उसे उस 50 हज़ार के बदले में 50 हज़ार शेयर मिले थे।

लेकिन इसी 50 हज़ार शेयर को खरीदने के लिए नीता को 1 लाख रुपए देना पड़ा। यानी कि उन दोनों से दुगुना रुपया देकर उसे वो 50 हज़ार शेयर खरीदना पड़ा। तो फायदे में हमेशा दोनों पार्टनर ही रहेंगे भले ही कंपनी में उसकी हिस्सेदारी कम ही क्यों न हो जाये।

अगर इतना कॉन्सेप्ट आप समझ गए है तो आपको बता दूँ कि ये अभी जो शेयर की खरीद-बिक्री हुई है वो प्राथमिक बाज़ार में हुई है क्योंकि शेयर की खरीद सीधे कंपनी से ही हुई है और अभी भी आम निवेशक इसमें शामिल नहीं है।

दूसरी बात ये कि अभी तक कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ही है और इसकी सीमा (Limitation) ये है कि इसमें ज्यादा से ज्यादा 50 शेयर होल्डर ही हो सकते है। लेकिन अगर मुकेश और अनिल को और भी बहुत ज्यादा पैसों की जरूरत है तो वो क्या करें?

तब वो आम लोगों से पैसा लेने के बारे में सोचेगा। और आम लोगों से पैसा लेने के लिए उसे पहले अपने प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (private Limited company) को पब्लिक लिमिटेड कंपनी (Public Limited Company) में कन्वर्ट करना पड़ेगा।

जब ऐसा होगा तब शेयर मार्केट (Share Market) का असली खेल शुरू हो जाएगा। क्योंकि द्वितीयक बाज़ार (secondary market) ही असली शेयर बाज़ार है। ये कैसे होता है और हमलोग शेयर कैसे खरीद पाते है? सब का जवाब इस लेख के दूसरे भाग में मिल जाएगा। उसके लिए ⏬नीचे लिंक पर क्लिक करें।

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