इस लेख में हम भारतीय राज्यों के बनने की कहानी पढ़ेंगे और समझेंगे, तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। इस लेख को पढ़ने से पहले भारतीय संघ और उसका क्षेत्र जरूर पढ़ें।
जाहिर है जिस भारत को आज हम देख रहें है वो आजादी के समय ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था। पर आज के इस भारत को बनने में जो कुछ भी हुआ वो एक दिलचस्प कहानी तो जरूर बन गया।

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भारतीय राज्यों के बनने की कहानी
15 अगस्त 1947, देश अभी-अभी आजाद हुआ था। पहली बार लोग स्वतंत्रता को इतने ऊंचे स्तर पर महसूस कर पा रहे थे। इस आजादी की कीमत जो उन्होने और उनके पुरखों ने चुकायी थी आज उसका परिणाम सामने था।
पर समस्या अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई थी। असली चुनौती तो अब देश के सामने थी। और वो चुनौती थी टुकड़ों में बंटे देश को एकजुट करना। और ये उतना आसान भी नहीं होने वाला था ।
आजादी के समय भारत में राजनीतिक इकाइयों की दो श्रेणियाँ थी – ब्रिटिश प्रांत और देशी रियासतें। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अंतर्गत दो स्वतंत्र एवं पृथक प्रभुत्व वाले देश भारत और पाकिस्तान का निर्माण किया गया और साथ ही देशी रियासतों को तीन ऑप्शन दिये गए –
1. भारत में शामिल हो
2. पाकिस्तान में शामिल हो, या
3. इनमें से कोई नहीं। यानी कि स्वतंत्र रहें ।
उस समय भारत की भौगोलिक सीमा में 552 देशी रियासतें थी। 549 रियासतों ने पहले ऑप्शन को टिक कर दिया और भारत में शामिल हो गये।
पर बची हुयी तीन रियासतों (हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर) ने इतनी समझदारी नहीं दिखायी। उन्होने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया।
सरदार बल्लभ भाई पटेल ने उन्हे सही ऑप्शन समझाने की ज़िम्मेदारी ले ली। ज्यादा समय नहीं लगा, आखिरकार इन्हे भी सही ऑप्शन समझ में आ ही गया ।
हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही के द्वारा सही ऑप्शन समझाया गया, जूनागढ़ को जनमत के द्वारा और कश्मीर पर जैसे ही पाकिस्तान की तरफ से हमला हुआ इन्हे भी सही ऑप्शन समझ में आ गया और एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके ये भी भारत में शामिल हो गए।
अब भारत एक देश की तरह लगने लगा था। कुल मिलाकर भारत की स्थिति कुछ ऐसी थी –
मूल संविधान के अनुसार, भारत की स्थिति
संविधान ने भारतीय संघ के राज्यों को चार प्रकार से वर्गीकृत किया – भाग ‘क’, भाग ‘ख’, भाग ‘ग’, एवं भाग ‘घ’। ये सभी संख्या में 29 थे ।
– भाग ‘क’ में वे राज्य थे, जहां ब्रिटिश भारत में गवर्नर का शासन था। यानी कि एक निर्वाचित गवर्नर और राज्य विधायिका द्वारा शासित था। ये संख्या में 9 था।
– भाग ‘ख’ में उन 9 राज्यों को शामिल किया गया था जहाँ शाही शासन (princely states) था। और जो राजप्रमुख द्वारा शासित था।
– भाग ‘ग’ में ब्रिटिश भारत के मुख्य आयुक्त का शासन एवं कुछ में शाही शासन था।
– अंडमान एवं निकोबार द्वीप को अकेले भाग ‘घ’ में रखा गया था।
भाग ‘क’ | भाग ‘ख’ | भाग ‘ग’ | भाग ‘घ’ |
1. असम | 1. हैदराबाद | 1. अजमेर | 1. अंडमान & निकोबार द्वीप समूह |
2. बिहार | 2. J & K | 2. बिलासपुर | |
3. बंबई | 3. मध्य भारत | 3. भोपाल | |
4. मध्यप्रदेश | 4. मैसूर | 4. कूच बिहार | |
5. मद्रास | 5. पटियाला & पूर्वी पंजाब | 5. दिल्ली | |
6. ओड़ीसा | 6. राजस्थान | 6. कुर्ग | |
7. पंजाब | 7. सौराष्ट्र | 7. हिमाचल प्रदेश | |
8. संयुक्त प्रांत | 8. विंध्य प्रदेश | 8. कच्छ | |
9. पश्चिम बंगाल | 9. त्रावणकोर-कोचीन | 9. मणिपुर | |
10. त्रिपुरा |
भारतीय राज्यों के बनने की कहानी में विभिन्न आयोगों की भूमिका
आजादी के बाद राजनीतिक घटनाक्रम ने एक नया मोड़ लिया और नए-नए राज्य बनाने की मांग उठने लगी, लोग भाषा के आधार पर राज्य बनाने की मांग कर रहे थे।
यानी कि एक ही भाषा बोलने वालों के लिए एक राज्य। अनायास ही उठ खड़ी हुई इन समस्याओं के निदान तलाशने के लिए समय-समय पर ढेरों समिति एवं आयोगों का गठन किया जाता रहा। ऐसे में इन आयोगों के बारे में जानना बहुत ही जरूरी हो जाता है।
धर आयोग (Dhar Commission)
दरअसल हुआ ये कि देश के दक्षिणी भाग से भाषा के आधार पर आंध्र राज्य बनाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी। उस समय एक ही बड़ा राज्य हुआ करता था मद्रास, जहां मुख्य रूप से तमिल, तेलुगु एवं मलयालम भाषी लोग रहते थे। तेलुगु भाषी लोग मद्रास के उस हिस्से को काटकर एक नया राज्य बनाने की मांग कर रहे थे जो कि तेलुगु बोलता था।
यहाँ पर ये याद रखिए कि साल 1917 में काँग्रेस ने खुद ये कहा था कि आजादी मिलने पर वो भाषायी आधार पर राज्यों के गठन का समर्थन करेगी। 1920 के नागपूर अधिवेशन में तो भाषायी प्रांत के आधार पर काँग्रेस कमेटियों का गठन भी किया गया।
महात्मा गांधी की बात करें तो वे तो भाषायी आधार पर राज्य बनाने के पक्के समर्थक थे। 1937 में लिखे एक पत्र के माध्यम से पंडित नेहरू भी भाषायी आधार को अपना समर्थन दे चुके थे।
लेकिन देश आजाद होने के बाद पंडित नेहरू ऐसा कर पाने में खुद को असमर्थ पा रहे थे। इसके कई कारण थे, जैसे कि उन्हें ये डर सता रहा था कि अभी-अभी देश धर्म के आधार पर अलग हुआ है फिर से भाषा के आधार पर देश को अलग कर देना एकता और स्थायित्व को नुकसान पहुंचा सकता है।
अपने मृत्यु से कुछ दिन पूर्व 25 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी ने इस बात को याद दिलाते हुए कहा था कि काँग्रेस को 20 वर्ष पूर्व किए गए वादे को निभाने का वक्त आ गया है।
पंडित नेहरू दवाब में आ चुके थे और उनके साथ कई अन्य लोगों को भी ये समझ में आने लगी कि लोगों के लिए भाषा कितनी मायने रखती है। और अगर जल्दी कुछ नहीं किया गया तो ये लोग तो गदर मचा देंगे।
यही सोचकर जून, 1948 में भारत ने रिटायर्ड जज़ एस.के. धर की अध्यक्षता में भाषायी प्रांत आयोग की नियुक्ति की। लोगों को थोड़ी सांत्वना मिली कि अब कुछ तो अच्छा जरूर होगा, हमारी बातें जरूर सुनी जाएंगी।
पर आयोग ने अपनी रिपोर्ट दिसम्बर, 1948 में पेश करते हुए जैसे ही कहा कि राज्यों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर नहीं बल्कि प्रशासनिक सुविधा के अनुसार होना चाहिए।
फिर से लोगों में अत्यधिक असंतोष फैल गया, जो नहीं सुनना चाहते थे वही सुनना पड़ा। सरकार को भी लगा था उसके इस कदम से मामला सुलझ जाएगा पर ये तो और भी ज्यादा बिगड़ ही गया।
मामले को और तूल पकड़ता देख काँग्रेस द्वारा दिसम्बर, 1948 में एक अन्य भाषायी प्रांत समिति का गठन किया गया ताकि इस मामले को पूरी तरह से शांत किया जा सकें।
इस समिति के सदस्य खुद जवाहरलाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल और पट्टाभिसीतारमैया बन गए। इन्ही तीनों के नाम के पहले अक्षर के आधार पर इसे जेवीपी समिति के रूप में जाना गया।
जेवीपी समिति (JVP Committee)
आंदोलन कर रहे लोगों को फिर से सांत्वना मिली कि इस बार हमारे लोकप्रिय नेता इस समिति में शामिल है तो कुछ तो अच्छा जरूर होगा। शायद इस बार हमारी मन मांगी मुरादे पूरी हो जाये। पर इस समिति ने भी अपनी रिपोर्ट अप्रैल, 1949 में पेश की और भाषायी राज्य के पुनर्गठन को कम से कम 10 साल तक टालने की सिफ़ारिश की।
इससे विवाद थमा नहीं बल्कि साल 1949 में कई अन्य आंदोलन भी शुरू हो गई जैसे कि मैसूर, बंबई और हैदराबाद में फैले कन्नड़ भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य बनाने के लिए संयुक्त कर्नाटक आंदोलन शुरू हो गया।
इसके साथ ही संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन भी शुरू हो गया, मलयालियों ने अपने लिए एक राज्य की मांग शुरू कर दी। पंजाब से भी पंजाबी भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग उठने लगी।
कुल मिलाकर देश के बड़े हिस्से से भाषा के आधार पर राज्य गठित करने को लेकर आवाजें उठनी शुरू हो गई, इस सब में तेलुगु भाषियों ने काफी आक्रामक आंदोलन किया।
हालांकि जेवीपी रिपोर्ट में अलग आंध्र राज्य की मांग को सही ठहराया गया लेकिन साथ ही ये भी कहा गया कि ये तभी पूरा हो सकता है जब आंध्र राज्य के समर्थक मद्रास की मांग को छोड़ दें।
जैसा कि थोड़ी देर पहले हमने बताया मद्रास उस समय दक्षिण भारत का सबसे बड़ा शहर हुआ करता था इसीलिए तमिल भाषी और तेलुगु भाषी दोनों ही मद्रास को अपने राज्य का हिस्सा बनाना चाहते थे। पर उस समय के वहाँ के मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी ऐसा नहीं चाहते थे।
पंडित नेहरू ने ये पासा इसीलिए फेंका ताकि उन्हे समय मिल सके, लोगों को आश्वासन भी मिल जाये और मामला शांत भी हो जाये, पर ये थी तो एक अस्वीकृति ही।
इस निर्णय से आंध्र समर्थक लोगों का दिल टूट सा गया क्योंकि जिससे वफ़ा की उम्मीद थी उसने बेवफ़ाई की थी। इसी से आहत होकर एक गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति पोट्टी श्रीरामुलु ओक्टोबर 1952 में भूख हड़ताल पर बैठ गए।
सोचा अब कोई तो मनाने के लिए आएंगे ही। 57 दिन हो गए कोई नहीं आया। 58वें दिन भूख हड़ताल के कारण पोट्टी श्रीरामुलु का निधन हो गया।
उसके बाद तो सरकार के पास कोई चारा ही नहीं बचा उन्हे मनाने के लिए आना ही पड़ा और आखिरकार अक्तूबर, 1953 में भारत सरकार को भाषा के आधार पर पहले राज्य के गठन के लिए मजबूर होना पड़ा, और तब जाकर मद्रास से तेलुगु भाषी क्षेत्रों को पृथक कर आंध्र प्रदेश का गठन किया गया। इस तरह से आंध्र प्रदेश का गठन हुआ।
फजल अली आयोग (Fazal Ali Commission)
अब जैसे ही आंध्र प्रदेश का निर्माण हुआ, दूसरे राज्य कहाँ चुप रहने वाले थे देश के अन्य क्षेत्रों से भी भाषा के आधार पर राज्य बनाने की मांग उठने लगी।
अब भारत सरकार को समझ में आने लगा कि अगर फिर से कुछ नहीं किया तो अन्य दूसरे राज्य भी रूठने लगेंगे और कितने को मनाएंगे।
यही सोच के भारत सरकार ने दिसम्बर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग (State Reorganization Commission) गठित किया। इस आयोग के दो अन्य सदस्य भी थे – के. एम. पणिक्कर और एच. एन. कुंजुरु।
फजल अली को तो पहले से पता था कि अगर सिफ़ारिश जनता के पक्ष में नहीं जाती है तो क्या-क्या होता है। शायद इसलिए 1955 में जब इन्होने अपनी रिपोर्ट पेश कि तो इस बात को व्यापक रूप से स्वीकार किया कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए।
हाँ, लेकिन मुख्य और बड़ी संख्या में बोली जाने वाली भाषा को ही आधार माना जाना चाहिए। [ये निर्णय सही भी था क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो आज देश में जितनी भाषायें है उतनी ही राज्यें होती।]
इस आयोग ने सलाह दी कि मूल संविधान के अंतर्गत स्थापित चार आयामी राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त किया जाए यानी कि राज्यों के भाग क, भाग ख, भाग ग और भाग घ वाले वर्गीकरण को समाप्त कर दिया जाना चाहिए और 16 राज्यों एवं 3 केंद्रशासित क्षेत्रों का निर्माण किया जाना चाहिए।
भारत सरकार को पूर्व का अनुभव था इसीलिए इससे पहले की अन्य राज्य भी इसके लिए आंदोलन करें। भारत सरकार ने बहुत कम परिवर्तनों के साथ इन सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 और 7वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 के द्वारा 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया।
◾राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा कोचीन राज्य के त्रावणकोर तथा मद्रास राज्य के मलाबार तथा दक्षिण कन्नड के कसरगोड़े को मिलाकर एक नया राज्य केरल स्थापित किया गया। इस तरह से मलयालयी भाषी लोगों की मांगे पूरी हुई
◾इस अधिनियम ने हैदराबाद राज्य के तेलुगू भाषी क्षेत्रों को भी आंध्र राज्य में मिला दी। इस तरह से हैदराबाद आंध्र प्रदेश का हिस्सा बना।
इसी प्रकार मध्य भारत राज्य, विंध्य प्रदेश राज्य तथा भोपाल राज्य को मिलाकर मध्य प्रदेश राज्य बनाया गया।
◾ इस अधिनियम के तहत सौराष्ट्र और कच्छ राज्य को बॉम्बे राज्य में मिला दिया गया, कुर्ग राज्य को मैसूर राज्य में मिला दिया गया (इसे ही 1973 में कर्नाटक कहा गया), पटियाला एवं पूर्वी पंजाब को पंजाब राज्य में मिला दिया गया, तथा अजमेर राज्य को राजस्थान राज्य मे मिला दिया गया।
इसके अलावा इस अधिनियम द्वारा नए संघ शासित प्रदेश – लक्षद्वीप, मिनिकाय तथा अमीनदिवि द्वीपों का सृजन मद्रास राज्य से काटकर किया। इस तरह से अब देश का नक्शा अब पूरी तरह से बदल गया था। 14 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कुछ इस प्रकार था- –
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत बने राज्यों की स्थिति
राज्य | केंद्रशासित प्रदेश |
1. आंध्र प्रदेश | 1. अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह |
2. बिहार | 2. दिल्ली |
3. बंबई | 3. हिमाचल प्रदेश |
4. असम | 4. लकादीव, अमीनदिवी और मिनीकॉय द्वीप समूह |
5. जम्मू एवं कश्मीर | 5. मणिपुर |
6. केरल | 6. त्रिपुरा |
7. मध्य प्रदेश | |
8. मद्रास | |
9. मैसूर (कर्नाटक) | |
10. ओड़ीसा | |
11. पंजाब | |
12. राजस्थान | |
13. उत्तर प्रदेश | |
14. पश्चिम बंगाल |

इतना करने के बाद अब भारत सरकार ने चैन की सांस ली पर ये चैन ज्यादा दिन तक नहीं टिका। 1956 में व्यापक स्तर पर राज्यों के पुनर्गठन के बावजूद भी भाषा या सांस्कृतिक एकरूपता एवं अन्य कारणों के चलते दूसरे राज्यों से भी अन्य राज्यों के निर्माण की मांग उठने लगी। यहाँ से राज्य निर्माण ने एक दिलचस्प मोड़ ली। ये कैसे-कैसे हुआ? आइये देखते हैं।
1956 के बाद बनाए गए नए राज्य एवं संघ शासित क्षेत्र
महाराष्ट्र और गुजरात
आंध्र के बाद सबसे बड़ा विवाद महाराष्ट्र और गुजरात को लेकर हुआ। महाराष्ट्र और गुजरात पहले एक ही राज्य था जिसे बॉम्बे या बंबई कहा जाता था। पर यहाँ भी भाषायी विवाद ने बहुत ज्यादा तूल पकड़ लिया।
बॉम्बे सिटीजन कमेटी जिसके सदस्य पुरुषोतम दास ठाकुरदास एवं JRD टाटा थे। चाहते थे कि बॉम्बे महाराष्ट्र से अलग रहे, क्योंकि यहाँ कोई एक भाषा बोलने वाले लोग नहीं रह रहे थे बल्कि कई भाषा बोलने वाले और कई धर्मों के लोग रह रहे थे।
और अगर बॉम्बे महाराष्ट्र की राजधानी बन जाती तो यहाँ मराठी लोगों एकाधिकार स्थापित हो जाता। जबकि दूसरी तरफ थे संयुक्त महाराष्ट्र परिषद, जिसकी अध्यक्षता शंकरदेव कर रहे थे; ये लोग एक वृहत महाराष्ट्र चाहते थे जिसका कि राजधानी होता बंबई।
इसमें भी हद तब हो गया जब फजल अली आयोग की रिपोर्ट 1955 में सामने आयी। इसमें इन्होने वृहत महाराष्ट्र को नकार दिया और मराठी भाषी जिलों को मिलाकर एक नए राज्य के गठन की सिफ़ारिश की जिसका नाम था विदर्भ।
हालांकि 1956 के शुरुआती कुछ महीनों में खूब विरोध प्रदर्शन हुए पुलिस कार्यवाही में सैंकड़ों लोग मारे गए पर अंतत: संयुक्त महाराष्ट्र परिषद ने बॉम्बे को छोड़ना कबूल नहीं किया और इस तरह से नवम्बर 1956 में बॉम्बे राज्य का गठन कर दिया गया। लेकिन ये ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका। साल 1960 में द्विभाषी राज्य बंबई को दो पृथक राज्यों में विभक्त करना पड़ा –
मराठी भाषी लोगों के लिए महाराष्ट्र अस्तित्व में आया एवं गुजराती भाषी लोगों के लिए गुजरात अस्तित्व में आया। इस तरह गुजरात भारतीय संघ का 15वां राज्य बना।
फिर से एक बार recall कर लें तो अब कुल मिलाकर 15 राज्य जो कि कुछ इस प्रकार है – आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओड़ीसा, मैसूर (जिसे कि 1973 से कर्नाटक कहा जाता है), मद्रास (जिसे कि 1969 में तमिलनाडु कर दिया गया), पंजाब, असम, जम्मू कश्मीर, केरल, मध्यप्रदेश और राजस्थान।
इसी तरह से केंद्रशासित प्रदेश की बात करें तो कुछ इस प्रकार है – त्रिपुरा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एवं लकादिव, अमिनिदिवी एवं मिनीकॉय द्वीप समूह (इसे 1973 में लक्षद्वीप कर दिया गया)।
दादरा एवं नगर हवेली
यहाँ पर पुर्तगाल का शासन था 1954 में भारत सरकार ने इसे पुर्तगाल के शासन से मुक्त करवा लिया। 1961 तक तो यहाँ लोगों द्वारा स्वयं चुना गया प्रशासन ही चलता रहा। आगे चलकर, 10वें संविधान संशोधन अधिनियम 1961 द्वारा इसे संघ शासित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया गया।
पुडुचेरी
यहाँ पर फ़्रांसीसियों का शासन था। फ्रांस ने शायद सोचा होगा कि भारत इसे भी नहीं छोड़ने वाला, आज नहीं तो कल भारत इसे ले ही लेगा। इससे अच्छा कि दे ही देते हैं।
1954 में फ्रांस ने इसे भारत को सुपुर्द कर दिया। 1962 तक तो इसका प्रशासन अधिगृहीत क्षेत्र की तरह चलता रहा। फिर इसे 14वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संघ शासित प्रदेश बनाया गया।
गोवा, दमन एवं दीव
यहाँ भी पुर्तगाल का शासन था पर 1961 में पुलिस कार्यवाही के माध्यम से भारत में इन तीन क्षेत्रों को मिला लिया गया। 12वें संविधान संशोधन अधिनियम 1962 के द्वारा इन्हे संघ शासित क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया। हालांकि आगे चलकर, 1987 में गोवा को एक पूर्ण राज्य बना दिया गया।
नागालैंड
अब तक जो भारत के मुख्य भू भाग पर ही नए राज्यों के लिए आंदोलन हो रहे थे वो अब उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी शुरू हो गया। नागाओं ने देखा कि सबकी झोलियाँ भरी जा रही है तो वो लोग भी क्यूँ पीछे रहते। उनलोगों ने भी आंदोलन छेड़ दिया।
आखिरकार नागा आंदोलनकारियों की संतुष्टि के लिए 1963 में नागा पहाड़ियों और असम के बाहर के त्वेनसांग क्षेत्रों को मिलाकर नागालैंड राज्य का गठन किया गया। इस प्रकार नागालैंड को भारतीय संघ के 16वें राज्य का दर्जा मिला।
हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश
हमने पहले चर्चा की है कि राज्य पुनर्गठन आयोग 1956 के तहत पंजाब राज्य तो बना था लेकिन हरियाणा उसके साथ ही था। और हरियाणा वाले क्षेत्र में लोग हिन्दी बोलते थे।
जबकि पंजाबियों का शुरू से ही मांग यही था कि पश्चिमी पंजाब के पंजाबी भाषी क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। 1966 में सिखों के लिए पृथक ‘सिंह गृह राज्य’ की मांग फिर से उठने लगी। ये मांग अकाली दल के तारा सिंह ने ज़ोर-शोर से उठाया’
जब सबकी सुनी ही जा रही थी तो इनकी भला कैसे नहीं सुनी जाती। शाह आयोग ने सिफ़ारिश की और इस प्रकार 1966 में पंजाबी भाषी क्षेत्र से हिन्दी भाषी क्षेत्र को काटकर उसे हरियाणा राज्य के रूप मे स्थापित किया गया एवं इससे लगे पहाड़ी क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का रूप दिया गया इस प्रकार हरियाणा भारतीय संघ का 17वां राज्य बना ।
चंडीगढ़ को केंद्रशासित प्रदेश ही रहने दिया गया जबकि हिमाचल प्रदेश जो कि एक केंद्रशासित प्रदेश था; को 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। इस प्रकार हिमाचल प्रदेश भारतीय संघ का 18वां राज्य बन गया।
मणिपुर, त्रिपुरा एवं मेघालय
1971 के युद्ध से पहले पाकिस्तान ने जो बांग्लादेश में तबाही मचायी उससे करोड़ों बांग्लादेशी भारत भाग आए और भारत सरकार ने उसको शरण दी।
अब अगर आपको उत्तरपूर्व भारत का नक्शा याद हो तो आपको याद आ गया होगा कि ये बांग्लादेशी मणिपुर, त्रिपुरा, असम, मेघालय एवं पश्चिम बंगाल भागे। क्योंकि यहीं भारतीय राज्य बांग्लादेश से सटा हुआ है।
पश्चिम बंगाल तो पहले से एक राज्य था, असम तो पहले से ही एक राज्य था पर मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय एक राज्य नहीं था। इसका प्रशासन व्यवस्था केंद्र संभालता था।
जब बांग्लादेशी बहुत ज्यादा इन क्षेत्रों में आ गए तब इन क्षेत्रों ने इन्दिरा गांधी सरकार से पूर्ण-राज्य का दर्जा देने को कहा। ताकि वहाँ का प्रशासन अपने हिसाब से संभाल सकें। तो कुल मिलकार उस समय देश की स्थिति ऐसी बन गयी कि इन तीनों को 1972 में राज्य का दर्जा दे दिया गया।
इस तरह दो केंद्र शासित प्रदेश मणिपुर व त्रिपुरा एवं उप-राज्य मेघालय को राज्य का दर्जा मिला । (मेघालय पहले असम के उप-राज्य के रूप में जाना जाता था) ।
इसके साथ ही भारतीय संघ में राज्यों की संख्या 21 हो गई – मणिपुर 19वां, त्रिपुरा 20वां और मेघालय 21वां ।
इसके अलावे संघ शासित प्रदेश मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश (जिसे पूर्वोत्तर सीमांत एजेंसी-NEFA के नाम से जाना जाता था) भी अस्तित्व में आए।
सिक्किम
1947 तक सिक्किम भारत का एक शाही राज्य था, जहां चोगयाल का शासन था। 1947 में ब्रिटिश शासन के समाप्त होने पर सिक्किम को भारत द्वारा रक्षित किया गया। 1974 में भारत सरकार ने सिक्किम को एक संबद्ध राज्य का दर्जा दिया।
लेकिन वहाँ के लोगों का राजशाही व्यवस्था पर से भरोसा उठने लगा था। क्योंकि बाकी सभी राज्य लोकतंत्र को फॉलो कर रहे थे और बेशुमार आजादी को एंजॉय कर रहे थे।
इसीलिए 1975 में वहाँ एक जनमत संग्रह करवाया गया। जनता ने एक जनमत के दौरान चोगयाल के शासन को समाप्त करने के लिए मत दिया ।
और इस तरह सिक्किम भारत का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। 36वें संविधान संशोधन अधिमियम 1975 के प्रभावी होने के बाद सिक्किम को पूर्ण राज्य बना दिया गया और इस तरह ये भारतीय संघ का 22वां राज्य बना।
मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश एवं गोवा
नये-नये राज्यों का गठन करते-करते सरकार को भी इसमें मजा आने लगा था। इसलिए 1987 में तीन और राज्यों का गठन किया गया।
मिज़ोरम जो पहले संघशासित प्रदेश था उसे पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और मिज़ोरम भारतीय संघ का 23वां राज्य बना। अरुणाचल प्रदेश को भी पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया और ये भारतीय संघ का 24वां राज्य बना।
और, गोवा जो पहले केंद्रशासित प्रदेश था उसे भी पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। और ये भारतीय संघ का 25वां राज्य बना।
छतीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड
1987 के बाद एक लंबे समय तक कोई नया राज्य अस्तित्व में नहीं आया। इसीलिए लोगों का मन नहीं लग रहा था और सरकार के हाथों में भी खुजली होने लगी थी।
तो जैसे ही लोगों ने नये राज्यों की मांग की, सरकार तो तैयार ही बैठी थी; उसने मांग भर दी । देखते ही देखते सन 2000 में तीन नये राज्यों का जन्म हुआ। मुबारक हो!!
मध्य प्रदेश को काटकर छतीसगढ़ बनाया गया। उत्तर प्रदेश को काटकर उत्तराखंड बनाया गया, तथा बिहार को काटकर झारखंड बनाया गया।
इस प्रकार छतीसगढ़ भारतीय संघ का 26वां, उत्तराखंड 27वां और झारखंड 28वां राज्य बना।
तेलंगाना
अब याद कीजिये तो यही आंध्र प्रदेश था जो सबसे पहले बना था। फिर भी इसे संतुष्टि नहीं मिली। वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश राज्य को काटकर तेलंगाना राज्य बनाया गया। और ये भारतीय संघ का 29वां राज्य बना। और इस प्रकार 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हो गए
सभी को 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों की आदत सी हो गयी थी। पर ये आदत फिर से जल्द ही बदल गयी
साल 2019 में एक ऐतिहासिक घटनाक्रम के फलस्वरूप जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बाँट दिया गया। जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख। और इस तरह से जब तक और नये राज्य नहीं बनते, आज हमारे देश में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश है।
भारतीय राज्यों की वर्तमान स्थिति

Union territory | Capital | UT established | Officiallanguages |
Andaman and Nicobar Islands | Port Blair | 1 November 1956 | Hindi |
Chandigarh | Chandigarh | 1 November 1966 | English |
Dadra and Nagar Haveli and Daman and Diu | Daman | 26 January 2020 | Gujarati, Hindi |
Delhi | New Delhi | 1 November 1956 | Hindi, English |
Jammu and Kashmir | Srinagar (Summer Jammu (Winter) | 31 October 2019 | Kashmiri, Urdu |
Ladakh | Leh (Summer) Kargil (Winter) | 31 October 2019 | Hindi, English |
Lakshadweep | Kavaratti | 1 November 1956 | Malayalam, English |
Puducherry |
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State Reorganization Act 1956↗️
States and union territories of India↗️
अनुसूची 1↗️
Story of Madras and Bombay↗️ etc.