बहुमत के प्रकार (Types of Majority): इस लेख में हम बहुमत (majority) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं भारत के परिपेक्ष्य में इसके कई प्रकारों की अवधारणा को समझने की कोशिश करेंगे; तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख के अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इससे जुड़े हुए अन्य लेखों को भी पढ़ें।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया में बहुमत का बहुत बड़ा रोल होता है। उस प्रक्रिया में मुख्य रूप से तीन प्रकार के बहुमत को प्रयोग में लाया जाता है। लेकिन बहुमत के अन्य प्रकार भी होते हैं।
बहुमत लोगों का एक समूह है जो कुल के आधे से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।
A majority is a group of people that represents more than half of the total.
बहुमत के प्रकार (Types of Majority):
बहुमत कुल के आधे से अधिक होता है। यह समुच्चय (set) का एक उपसमुच्चय (subset) है जिसमें समुच्चय के आधे से अधिक तत्व शामिल होते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी समूह में 20 व्यक्ति हैं, तो बहुमत 11 या अधिक व्यक्तियों का होगा, जबकि 10 या उससे कम व्यक्तियों का होना बहुमत नहीं होगा।
“बहुमत” का उपयोग सामान्यतः मतदान की आवश्यकता को निर्दिष्ट करने के लिए किया जाता है। भारतीय संविधान में बहुमत का कोई स्पष्ट वर्गीकरण नहीं है। लेकिन भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को ध्यान से पढ़ने पर चार प्रकार के बहुमत के बारे में जानकारी मिलती है।
बहुमत के प्रकार कुछ इस तरह से है;
(1) सामान्य बहुमत (Simple Majority);
(2) पूर्ण बहुमत (Absolute Majority) ;
(3) प्रभावी बहुमत (Effective Majority) और
(4) विशेष बहुमत (Special Majority)।
आइये इसे एक-एक करके समझते हैं;
| सामान्य बहुमत (Simple Majority) क्या है?
इसका मतलब होता है – उपस्थित कुल सदस्यों का या फिर मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का 50 प्रतिशत से अधिक। यानी कि अगर 100 लोग वोटिंग कर रहें है तो कम से कम 51 की सहमति।
इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं; लोकसभा की कुल सीटें = 543; मान लीजिए उसमें से सिर्फ 520 सदस्य ही उपस्थित है। उसमें से भी यह मान लीजिए कि 20 लोग उपस्थित रहने के बाद भी वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले रहें हैं।
यानि कि जो उपस्थित भी है और वोटिंग प्रक्रिया में भाग भी ले रहा है; ऐसे सदस्यों की संख्या 500 है। तो सामान्य बहुमत (Simple Majority) 251 होगा।
नीचे कुछ ऐसे उदाहरण दिए गए हैं,जहां साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है:
- धन विधेयक, वित्तीय विधेयक और साधारण विधेयक;
- स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव (No confidence motion), निंदा प्रस्ताव, विश्वास प्रस्ताव;
- वित्तीय आपातकाल घोषित करना;
- राष्ट्रपति शासन घोषित करने के लिए;
- लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करने के लिए;
अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन विधेयक, जिसे राज्यों द्वारा अनुमोदित करने की आवश्यकता है, को केवल राज्य विधानमंडलों में साधारण बहुमत की आवश्यकता है;
| पूर्ण बहुमत (Absolute Majority) किसे कहते हैं?
इसमें भी 50 प्रतिशत से अधिक सदस्यों की सहमति ही काउंट किया जाता है पर अंतर बस इतना है कि इसमें खाली सीटों को भी काउंट किया जाता है। मतलब ये कि जो सदस्य अनुपस्थित है उसकी भी काउंटिंग होती है।
दूसरे शब्दों में कहें तो कुल Sanctioned सीटों का 50 प्रतिशत से अधिक मतदान को पूर्ण बहुमत (Absolute Majority) कहते हैं।
हालांकि पूर्ण बहुमत में खाली सीटों की भी गिनती की जाती है। जैसे कि लोकसभा का उदाहरण लें तो यहाँ पूर्ण बहुमत 273 है, भले ही कई सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे।
इस बहुमत का उपयोग आम चुनाव के दौरान केंद्र और राज्यों में सरकार बनाने के लिए किया जाता है। आपने सुना भी होगा, 273 या अधिक सीटें प्राप्त कर लेने के बाद अक्सर ये कहा जाता है कि अमुक सरकार पूर्ण-बहुमत की सरकार है।
| प्रभावी बहुमत (Effective Majority) किसे कहते हैं?
ये पूर्ण-बहुमत (Absolute majority) का ही उल्टा है। जहां पूर्ण-बहुमत में खाली सीटों को भी काउंट किया जाता है वहीं इसमें खाली सीटों को छोडकर काउंट किया जाता है। यानी कि जितना उपस्थित है उसी का 50 प्रतिशत या उससे अधिक।
दूसरे शब्दों में, कुल Sanctioned सीटों में से अगर Absent रहने वाले सदस्यों को और Vacant सीटों को घटा दें तो जो बचेगा उसका बहुमत, प्रभावी बहुमत यानि कि Effective Majority कहलाएगा।
उदाहरण के लिए, अगर लोकसभा में 543 सीटें है और उसमें से 43 सीटें खाली है. तो प्रभावी सीटें 500 हुई और प्रभावी बहुमत 251। संविधान में प्रभावी बहुमत का उल्लेख “सभी तत्कालीन सदस्यों (all the then members)” के रूप में किया गया है।
नीचे दिए गए मामलों में प्रभावी बहुमत का इस्तेमाल किया जाता है;
- राज्यसभा में उपसभापति को हटाना (अनुच्छेद 67(b))।
- लोकसभा और राज्य विधानमंडलों के उपाध्यक्ष को हटाना।
इसका उपयोग आमतौर पर महाभियोग के दौरान किया जाता है। जैसे कि अगर लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति को पद से हटाना हो।
यहाँ याद रखिए कि राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता पड़ती है। ज्यादा जानकारी के लिए अनुच्छेद 61 पढ़ें;
| विशेष बहुमत (Special Majority) क्या है?
सामान्य बहुमत (Simple Majority), पूर्ण बहुमत (Absolute Majority और प्रभावी बहुमत (Effective Majority) के अलावा जो बहुमत है उसे विशेष बहुमत (Special Majority) कहा जाता है।
विशेष बहुमत (Special Majority) 4 प्रकार के होते हैं,
- अनुच्छेद 312 के तहत विशेष बहुमत,
- अनुच्छेद 249 के तहत विशेष बहुमत,
- अनुच्छेद 368 के तहत विशेष बहुमत,
- अनुच्छेद 61 के तहत विशेष बहुमत अनुसार बहुमत।
1. अनुच्छेद 312 के तहत विशेष बहुमत (special majority under article 312):
अनुच्छेद 312 अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन के बारे में है। यह राज्यसभा की एक विशेष शक्ति है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि “यदि राज्य सभा में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई सदस्यों द्वारा अगर एक संकल्प पारित किया जाता है तो फिर संसद अखिल भारतीय सेवाओं (All India Services) का सृजन कर सकती है।
आप यहाँ देख सकते हैं कि यहाँ उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई सदस्यों की वोटिंग वाले बहुमत का जिक्र किया गया है।
2. अनुच्छेद 249 के तहत विशेष बहुमत (Special Majority Under Article 249):
अनुच्छेद 249 के तहत संसद राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकती है लेकिन उसके लिए राज्यसभा में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई सदस्यों की स्वीकृति जरूरी होता है।
यहाँ भी उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई सदस्यों की वोटिंग वाले बहुमत का जिक्र किया गया है।
3. अनुच्छेद 368 के तहत विशेष बहुमत (special majority under article 368):
संविधान के ज़्यादातर उपबंधों का संशोधन इसी के द्वारा किया जाता है। अनुच्छेद 368 के अनुसार इसका मतलब होता है – प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों का बहुमत और उस दिन सदन में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो तिहाई बहुमत।
इसे इस उदाहरण से समझिए – जैसे कि लोकसभा की बात करें तो वहाँ कुल 545 सदस्य होते है। अब इसका साधारण बहुमत निकालें तो ये 273 होता है। यानी कि इतना तो चाहिए ही।
इसके साथ ही, अब मान लेते हैं कि जिस दिन वोटिंग होनी है उस दिन सिर्फ 420 सदस्य ही लोकसभा में उपस्थित है और वे सभी मतदान में भाग लेंगे तो, उन सब का दो तिहाई बहुमत (Two thirds majority) होना चाहिए। यानी कि 280 सदस्यों की सहमति।
कुल मिलाकर अगर 280 सदस्यों की सहमति मिल जाए तो दोनों शर्ते पूरी हो जाएंगी। इसी को विशेष बहुमत कहा जाता है।
ऐसे मामले जहां अनुच्छेद 368 के अनुसार विशेष बहुमत का उपयोग किया जाता है:
- मूल अधिकार (Fundamental Rights),
- राज्य के नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy),
- एक संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित करना जो संघवाद को प्रभावित नहीं करता है।
- सुप्रीम कोर्ट या हाइ कोर्ट के जजों को हटाना.
- Chief Election commissioner या Comptroller and Auditor General (CAG) को हटाना.
- राष्ट्रीय आपातकाल की मंजूरी के लिए अनुच्छेद 368 के अनुसार दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
- विधान परिषद के निर्माण या उन्मूलन के लिए राज्य विधानमंडल द्वारा संकल्प (अनुच्छेद 169)।
| संसद के विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे राज्य विधानमंडल की संस्तुति के द्वारा;
भारत के संघीय ढांचे से संबन्धित जो भी संशोधन होता है उसके लिए संसद के विशेष बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों की भी मंजूरी जरूरी होता है। यह अनुच्छेद 368 के तहत होता है;
यहाँ याद रहे कि संसद से तो विशेष बहुमत की दरकार होती है, लेकिन राज्य विधानमंडल में साधारण बहुमत से ही काम चल जाता है।
संघीय ढांचे से संबन्धित निम्नलिखित विषयों को देखा जा सकता है-
▪️ राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं इसकी प्रक्रिया। (अनुच्छेद 54 और 55)
▪️ केंद्र एवं राज्य कार्यकारिणी की शक्तियों का विस्तार। (अनुच्छेद 73 और 162)
▪️ उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय। (अनुच्छेद 241, संविधान के भाग 5 का अध्याय 4 और भाग 6 का अध्याय 5)
▪️ केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन। (संविधान के भाग 11 का अध्याय 1)
▪️ सातवीं अनुसूची से संबन्धित कोई विषय।
▪️ संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व।
▪️ संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और इसके लिए प्रक्रिया (अनुच्छेद 368)।
4. अनुच्छेद 61 के तहत विशेष बहुमत (special majority under article 61) ;
एक और विशेष बहुमत होता है। जिसका कि जिक्र अनुच्छेद 61 में किया गया है। अनुच्छेद 61 दरअसल राष्ट्रपति पर महाभियोग के बारे में है। इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाना हो। इसके लिए सदन के कुल सदस्यों का दो तिहाई सहमति आवश्यक है।
राष्ट्रपति पर महाभियोग लगना कोई सामान्य बात तो है नहीं और ये अक्सर चर्चा में भी नहीं रहता, इसीलिए हम इसके बारे में आम तौर पर अंजान रहते हैं।
कुल मिलाकर यही है बहुमत (majority) के विभिन्न प्रकार, उम्मीद है सभी प्रकार के बहुमत से परिचित हो गए होंगे। कुछ और बेहतरीन लेख यहाँ से पढ़ें
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मूल संविधान
https://wonderhindi.com/article-61/
https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-effective-majority-and-simple-majority-in-the-Indian-parliament
https://byjus.com/free-ias-prep/types-of-majorities-in-the-indian-parliament/
https://en.wikipedia.org/wiki/Majority