इस लेख में हम बेरोजगारी के प्रकार (Types of unemployment) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे;
तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, साथ ही बेरोजगारी से संबन्धित अन्य लेखों का लिंक आपको नीचे मिल जाएगा, उसे भी विजिट करें।

| बेरोजगारी (Unemployment)
बेरोजगारी किसी देश विशेष की समस्या नहीं है, अपितु ये सभी राष्ट्रों की समस्या है। यह एक सार्वभौम समस्या है। हर समय हर देश में एक बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिकों के साथ-साथ कुशल व विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक भी बेरोजगार होते है।
ऐसे श्रमिक देश में प्रचलित मजदूरी की दरों पर काम करने के लिए तैयार होते है, किन्तु काम न मिलने के कारण बेरोजगार होते है। एक बड़ी संख्या में बेरोजगारी अशुभ का सूचक है, सामाजिक व्याधि ग्रस्तता का सूचक है।
किसी भी देश में जनसंख्या के दो घटक होते हैं – (1) श्रम शक्ति (labor force) और (2) गैर-श्रम शक्ति (non labor force)।
(1) श्रम शक्ति (labor force) – वे सभी व्यक्ति, जो किसी ऐसे कार्य में संलग्न है जिससे धन का उपार्जन होता हो।
यहाँ पर याद रखने वाली बात ये है कि कभी-कभी व्यक्ति धन उपार्जन तो करना चाहता है और वो काम की तलाश भी करता है लेकिन उसे काम नहीं मिलता है, ऐसे ही व्यक्तियों को बेरोजगार की श्रेणी में रखा जाता है (इसका क्या मतलब है इसे आगे और स्पष्ट करेंगे)।
(2) गैर-श्रम शक्ति (non labor force) – वे सभी लोग जो किसी धन उपार्जन करने वाले काम में संलग्न न हो और न ही वो ऐसे किसी काम की तलाश कर रहा हो, तो ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार नहीं कहा जाता है; जैसे कि बच्चे, बूढ़े, किशोर एवं किशोरियाँ।
कुल मिलाकर एक बेरोजगार व्यक्ति वह है, जो धन उपार्जन करना चाहता है और वह रोजगार की तलाश में भी है लेकिन रोजगार पाने में असमर्थ है, इसीलिए इसे अनैच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है।
वहीं दूसरी तरफ, ऐसे व्यक्ति जो खुद ही काम नहीं करना चाहता या अगर करना भी चाहता है तो सैलरी कम मिलने के कारण नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति को ऐच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है क्योंकि काम तो उपलब्ध है लेकिन किसी कारण से व्यक्ति खुद ही नहीं करना चाहता है।
इसीलिए यहाँ याद रखने वाली बात है कि अनैच्छिक बेरोजगारी को ही बेरोजगारी माना जाता है और इसी अनैच्छिक बेरोजगारी को आगे चक्रीय, मौसमी, संरचनात्मक, संघर्षात्मक एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी में विभाजित किया जाता है। आइये इसे समझते हैं;
| बेरोजगारी के प्रकार (Types of unemployment)
| मौसमी बेरोजगारी (Seasonal unemployment)
मौसमी बेरोजगारी का मतलब है कुछ खास महीनों में काम का न मिलना। दूसरे शब्दों में कहें तो कुछ काम ऐसे होते हैं जो कुछ खास महीनों में तो खूब रोजगार पैदा करते हैं लेकिन काम खत्म हो जाने के बाद साल के अन्य महीनों में फिर से वहीं स्थिति आ जाती है।
मौसमी बेरोजगारी कृषि क्षेत्र और कुछ विशेष उत्पादक इकाईयों –चीनी एवं बर्फ के कारखानों में देखी जाती है। कृषि क्षेत्र, चीनी व बर्फ के कारखानों में काम की प्रकृति ऐसी है कि श्रमिकों को एक वर्ष में 4 – 6 महीने बेकार रहना पड़ता है।
| चक्रीय बेरोजगारी (cyclical unemployment)
चक्रीय बेरोजगारी व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्रों में पाई जाती है। जब व्यापार में तेजी-मंदी या उत्तार-चढाव होता है, तब बेरोजगारी का चक्रवात सामने आता है। जब मंदी होती है तब बेरोजगारी बढ़ जाती है और जब तेजी आती है तो बेरोजगारी घट जाती है। उदाहरण के लिए 2008 की आर्थिक मंदी।
व्यापार की इन चक्रीय दशाओं की उत्पत्ति से संबंधित अनेक सिद्धांत है – जलवायु का सिद्धांत, अधिक बचत या कम उपभोग का सिद्धांत, मुद्रा का सिद्धांत, मनोवैज्ञानिक सिद्धांत आदि। इनमें कभी कोई मुख्य हो जाता है।
| संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural unemployment)
संरचनात्मक बेरोजगारी मूल रूप से आर्थिक ढांचे से संबंधित है। जब आर्थिक ढाँचे में दोष या विकास के कारण परिवर्तन होता है, तब बेरोजगारी देखने को मिलती है।
ऐसा देखा जाता है कि किसी समय में किसी विशेष उद्योग का विशेष रूप से विकास होता है, तो किसी दूसरे उद्योग का ह्रास होता है। ह्रास होने वाले उद्योग के मजदूर बेकार हो जाते है –जैसे भारत में कपड़े के उद्योग में मशीनों के आ जाने से जुलाहों का सफाया हो गया। इसी तरह से कम्प्युटर आ जाने से कई श्रमिकों को काम से हाथ धोना पड़ा था।
| संघर्षात्मक बेरोजगारी (Struggling unemployment)
जब कोई व्यक्ति एक रोजगार को छोड़कर दूसरे रोजगार की तलाश में होता है, इस दौरान नए रोजगार मिलने तक जो वो बेरोजगार बैठा रहता है उसे संघर्षात्मक बेरोजगारी कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो, जब किसी भी उद्योग में उत्पादन की स्थिति और मशीनें बदलती है तो पुराने श्रमिक कुछ समय के लिए बेकार हो जाते है। किन्तु शीघ्र ही उत्पादन की नयी तकनीकों में प्रशिक्षण प्राप्त कर वे अपने लिए नया रोजगार खोज लेते है।
प्राकृतिक बेरोज़गारी की दर – संघर्षात्मक तथा संरचनात्मक बेरोज़गारी के योग को बेरोज़गारी की प्राकृतिक दर कहते हैं।
| छिपी बेरोजगारी (Hidden unemployment)
ऐसी बेरोज़गारी जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई न दे, छिपी बेरोज़गारी कहलाती है। इसे प्रच्छन्न बेरोज़गारी भी कहा जाता है। यह उस समय होता है, जब कोई व्यक्ति उत्पादन में कोई योगदान नहीं देता है, जबकि प्रत्यक्ष रूप से कार्य करता हुआ दिखाई देता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो, छिपी बेरोजगारी के अंतर्गत आवश्यकता से अधिक लोग एक ही तरह के कार्य संपादन में देखे जाते है। इस प्रकार की स्थिति ग्रामीण कृषि-अर्थव्यवस्था में देखी जा सकती है।
गाँव में उतने भूमि के हिस्से पर कई व्यक्ति काम करते है जिसमें केवल एक व्यक्ति कर सकता है। जिससे उनके द्वारा उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती है। यदि उसमें एक के अलावा अन्य को हटा दिया जाए तो कृषि-उत्पादन में कोई कमी नहीं आएगी।
| अर्द्ध-बेरोजगारी (Semi unemployment)
जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से भी कम मजदूरी पर काम करने लगता है, तो ऐसी अवस्था को ही अर्द्ध-बेरोजगारी या अल्प बेरोज़गारी कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे व्यक्ति जो किसी आर्थिक गतिविधि में संलग्न तो है लेकिन उसके इच्छा और कौशल के अनुसार सैलरी या काम नहीं मिल रहा है तो ऐसे व्यक्तियों को अल्प बेरोजगार कहा जाता है।
इस स्थिति में ‘बैठे से बेगार भली’ के सिद्धांत पर व्यक्ति कार्य स्वीकार कर लेता है। जैसे स्नातकोत्तर पास व पीएचडी उपाधि प्राप्त व्यक्ति का निजी स्कूलों में दो या तीन हज़ार मासिक पर कार्यशील होते देखा जाना।
| शिक्षित बेरोजगारी (Educated unemployment)
शिक्षित बेरोजगारी भारत की आर्थिक समस्याओं की प्रमुख समस्या है। यह स्थिति हमारे आर्थिक विकास में बाधक है। शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी अलग किस्म की बेरोजगारी है।
जैसे कोई व्यक्ति सालों लगाकर स्नातक, स्नातकोत्तर पढ़ाई कर लेता है लेकिन जब वह अपनी पढ़ाई समाप्त करके और डिग्री साथ लेकर बाज़ार में आते हैं तो उसे कोई काम ही नहीं मिलता है और वह बेरोजगार हो जाते है तो इसी स्थिति को शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है।
शिक्षित बेरोजगारी पर अलग से एक लेख है, आप ⬆️ यहाँ क्लिक करके उसे पढ़ सकते हैं।
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