इस लेख में हम मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) को अनुच्छेदवार देखेंगे और समझेंगे कि किस तरह से भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मूल अधिकारों से यह साम्यता रखता है।

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मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा [freepik]


मानवाधिकार (Human Rights) 

मानव अधिकारों के पीछे का मूल तर्क ये है कि सिर्फ मनुष्य होने मात्र से हम कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हो जाते हैं। इसका दूसरा मतलब ये है कि आंतरिक दृष्टि से सभी मनुष्य समान है इसीलिए उन्हे स्वतंत्र रहने तथा अपनी पूरी संभावनाओं को साकार करने का समान अवसर मिलना ही चाहिए।

तो कुल मिलाकर वे सभी अधिकार जो कम से कम एक इंसान होने के नाते हमें मिलनी ही चाहिए, मानवाधिकार है। उदाहरण के लिए- जीने का अधिकार, इसके तहत ढेरों संबन्धित अधिकार आ सकते हैं जैसे कि खाने का अधिकार, कपड़े पहनने का अधिकार, घर में रहने का अधिकार आदि।

अब ऐसा तो नहीं हो सकता है न कि कोई देश इसे दे और कोई न दे। इसीलिए मानवाधिकार किसी राज्य की सीमाओं से नहीं बंधी होती है बल्कि ये पूरी मानवजाति के लिए होती है। इस विचार का इस्तेमाल समाज में व्याप्त नस्ल, जाति, धर्म और लिंग पर आधारित मौजूदा असमानताओं को खत्म करने या चुनौती देने के लिए किया जाता है।

यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा) मानवाधिकारों के इतिहास में एक मील का पत्थर दस्तावेज़ है। इसे 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने स्वीकार किया और लागू किया।

मानवाधिकार की पैरवी करने वाले ढेरों देश और संस्थाएं आज भी इस दस्तावेज़ से प्रेरणा लेते हैं। इसमें क्या लिखा है, इसे आप खुद ही देख लीजिये। इसका 500 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR)

चूंकि, मानव परिवार के सभी सदस्यों के जन्मजात गौरव और सम्मान तथा अविच्छिन अधिकार की स्वीकृति ही विश्व-शांति, न्याय और स्वतंत्रता की बुनियाद है,
चूंकि, मानव अधिकारों के प्रति उपेक्षा और घृणा के फलस्वरूप ही ऐसे बर्बर कार्य हुए जिनसे मनुष्य की आत्मा पर अत्याचार किया गया, इसीलिए यह अनिवार्य है कि ऐसे विश्व की स्थापना हो जिसमें सभी मनुष्य भाषण तथा विश्वास की स्वतंत्रता हासिल तथा भय तथा अभाव से मुक्ति प्राप्त कर सकें, जो मानव समुदाय की सबसे महत्वपूर्ण अभिलाषा है।
चूंकि, यह आवश्यक है कि मनुष्य को अत्याचार तथा दमन के विरुद्ध अंतिम अस्त्र के रूप में विद्रोह न करना पड़े, इसीलिए विधि के शासन के द्वारा मनवाधिकारों की रक्षा हो,
चूंकि, राष्ट्रों के मध्य मित्रतापूर्ण संबन्धों की स्थापना को प्रोत्साहित करना आवश्यक है,
चूंकि, संयुक्त राष्ट्रसंघ के देशों ने घोषणा पत्र में मूलभूत मानवाधिकारों, मनुष्य की गरिमा तथा महत्व तथा पुरुषों तथा महिलाओं के समान अधिकारों के प्रति अपना विश्वास पुनः व्यक्त किया तथा व्यापक स्वतंत्रता की उपलब्धि हेतु उत्तम जीवन स्तर तथा सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया है,
चूंकि, सदस्य देशों ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के सहयोग से मानव अधिकारों तथा मूल स्वतंत्रताओं के विश्व स्तर पर सम्मान तथा अनुपालन को प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया है,
चूंकि, उक्त संकल्पों की पूर्ण उपलब्धि हेतु इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सार्वदेशिक अवधारणा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
अतः आज संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा, मनवाधिकारों के विश्वजनीन घोषणा पत्र को सभी सभ्यताओं तथा देशों के लिए उपलब्धि के सर्वमान्य मानदंड के रूप में एतदर्थ घोषित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज का प्रत्येक अंग इस घोषणा पत्र का सदा विचार रखते हुए इन अधिकारों तथा स्वतंत्रता, स्वतंत्रताओं की मर्यादा को अध्यापन तथा शिक्षा के माध्यमों द्वारा प्रोत्साहित करेगा तथा विकासोन्मुख राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साधनों द्वारा इनकी सार्वदेशिक तथा सशक्त स्वीकृति एवं अनुपालन को आपस में, सदस्य देशों की जनता के बीच तथा उनके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आनेवाले प्रदेशों की जनता के बीच स्थापित करेगा।
UDHR Hindi Pdf↗️ English Booklet↗️

तो आप यहाँ देख सकते हैं कि अधिकारों के संबंध में यहाँ ढ़ेरों बातें की गई है, जैसे कि भाषण एवं विश्वास की स्वतंत्रता, विधि का शासन, मनुष्य की गरिमा एवं महिलाओं के समान अधिकार इत्यादि।

ये समझना इसीलिए जरूरी है ताकि जब आप भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मूल अधिकारों के बारे में समझें तो ये समझ पाएँ कि भारतीय संविधान ने इन सभी बातों को अपने में सम्मिलित किया है।

हालांकि इससे संबन्धित भारत में मानवाधिकारों की स्थिति↗️ पर एक अलग से लेख साइट पर उपलब्ध है, उसे जरूर पढ़ें।

◾ अधिकारों की बातें करने भर से तो ये लागू हो नहीं जाएगा इसे उचित उचित संवैधानिक संरक्षण भी देना पड़ता है। भारत का संविधान इस मामले में अग्रणी है क्योंकि ये न्यायोचित मूल अधिकारों की एक लंबी एवं विस्तृत सूची उपलब्ध कराता है जो कि कानूनी रूप से प्रवर्तनीय भी है।

मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद

इसके तहत 30 अनुच्छेद है। जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं। हम इन अनुच्छेदों का भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मूल अधिकारों से साम्यता का भी अध्ययन करेंगे;

हालांकि भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मूल अधिकारों को गहराई से समझने के लिए आप दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं; मौलिक अधिकारों की बेसिक्स↗️

अनुच्छेद 1

सभी मनुष्य गरिमा और अधिकारों में स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं। वे तर्क और विवेक से संपन्न हैं और उन्हें भाईचारे की भावना से एक दूसरे के प्रति कार्य करना चाहिए।

◾ इस अनुच्छेद में मनुष्य की गरिमा और भाईचारे की भावना की प्रधानता है। और इन दोनों टर्म्स को भारतीय संविधान के प्रस्तावना में देखा जा सकता है।

अनुच्छेद 2

हर कोई इस घोषणा में निर्धारित सभी अधिकारों और स्वतंत्रताओं का हकदार है, बिना किसी प्रकार के भेद के, जैसे जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति।

इसके अलावा, किसी व्यक्ति के देश या क्षेत्र की राजनीतिक, अधिकार क्षेत्र या अंतरराष्ट्रीय स्थिति के आधार पर कोई भेद नहीं किया जाएगा, चाहे वह स्वतंत्र हो, विश्वास हो, गैर-स्वशासी हो या संप्रभुता की किसी अन्य सीमा के तहत हो।

◾ भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक समानता का अधिकार की चर्चा की है। और वहाँ भी जन्मस्थान, लिंग, जाति, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव को खत्म करने का प्रयास किया गया है।

अनुच्छेद 3

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्ति की सुरक्षा का अधिकार है।

◾ भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 इस मामले में बहुत ज्यादा विस्तृत है। इसके तहत जीवन से जुड़े लगभग सभी पहलुओं को समाहित किया गया है।

अनुच्छेद 4

किसी को गुलामी या गुलामी में नहीं रखा जाएगा; गुलामी और दास व्यापार उनके सभी रूपों में निषिद्ध होगा।

◾ भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 इसी तरह के मुद्दों को संबोधित है, जैसे कि बलात श्रम एवं मानव तस्करी।

अनुच्छेद 5

किसी को भी यातना या क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड के अधीन नहीं किया जाएगा।

◾ इस संबंध में संविधान के प्रस्तावना को देखा जा सकता है, साथ ही अनुच्छेद 21 और 22 को भी देखा जा सकता है।

अनुच्छेद 6

हर किसी को हर जगह कानून के सामने एक व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार है।

अनुच्छेद 7

सभी कानून के समक्ष समान हैं और बिना किसी भेदभाव के कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं। सभी इस घोषणा के उल्लंघन में किसी भी भेदभाव के खिलाफ और इस तरह के भेदभाव के लिए किसी भी उत्तेजना के खिलाफ समान सुरक्षा के हकदार हैं।

◾ 6 और 7 के संबंध में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 को देखा जा सकता है। जिसके तहत विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण सुनिश्चित किया गया है।

अनुच्छेद 8

संविधान या कानून द्वारा उसे दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कृत्यों के लिए सक्षम राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों द्वारा एक प्रभावी उपाय का अधिकार है।

◾ भारत के संविधान द्वारा सभी मूल अधिकारों को प्रवर्तनीय बनाया गया है। यानी कि मूल अधिकारों के हनन पर सीधे सुप्रीम कोर्ट जाया जा सकता है।

अनुच्छेद 9

किसी को भी मनमानी गिरफ्तारी, नजरबंदी या निर्वासन के अधीन नहीं किया जाएगा।

◾ भारत में मनमानी गिरफ्तारी अवैध है। हालांकि निवारक निरोध (preventive detention) वैध है और इसे कई अधिनियम के द्वारा लागू किया जाता है। जैसे कि UAPA, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून इत्यादि।

हालांकि गिरफ्तार हुए व्यक्ति के पास कई ऐसे अधिकार है जो उसे इस मामले में भेदभाव होने से बचाता है। जैसे कि 24 घंटे के अंदर मैजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना, वकील हायर करने का अधिकार होना इत्यादि।

अनुच्छेद 10

हर कोई अपने अधिकारों और दायित्वों के निर्धारण में और उसके खिलाफ किसी भी आपराधिक आरोप के निर्धारण में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायाधिकरण द्वारा निष्पक्ष और सार्वजनिक सुनवाई के लिए पूर्ण समानता का हकदार है।

◾ भारत में प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अंतर्गत सुनवाई का अधिकार भी शामिल है। और अनुच्छेद 20 के तहत अपराध के लिए दोषसिद्धि के संबंध में कई अधिकार भारत के नागरिकों को प्राप्त है।

अनुच्छेद 11

दंडात्मक अपराध के लिए आरोपित प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माने जाने का अधिकार है, जब तक कि वह सार्वजनिक परीक्षण में कानून के अनुसार दोषी साबित न हो जाए, जिसमें उसके पास अपने बचाव के लिए आवश्यक सभी गारंटियां हों।

किसी भी कार्य या चूक के कारण किसी भी दंडात्मक अपराध के लिए किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जो कि किए जाने के समय राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक दंडात्मक अपराध नहीं था। न ही दंडात्मक अपराध किए जाने के समय लागू होने वाले दंड से अधिक भारी जुर्माना लगाया जाएगा।

◾ अनुच्छेद 20 इस संबंध में आरोपित व्यक्ति को तीन अधिकार प्रदान करता है जो कि यूडीएचआर से मेल खाता है;

(1) यदि आपने कोई ऐसा काम किया है जो कानून के नजर में अपराध नहीं है तो आपने भले ही कितना ही बुरा काम क्यों न किया हो लेकिन वह अपराध (crime) नहीं कहलाएगा।

और अगर आप अपराधी सिद्ध हो चुके है तो आपको उससे ज्यादा सजा नहीं मिल सकता जो उस अपराध के लिए पहले से निर्धारित सजा है। 

(2) एक अपराध के लिए एक से अधिक बार सजा नहीं दी जा सकती।

(3) आपको आपके ही विरुद्ध गवाह के रूप में पेश नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 12

किसी की निजता, परिवार, घर या पत्राचार में मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा और न ही उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर कोई हमला किया जाएगा। इस तरह के हस्तक्षेप या हमलों के खिलाफ हर किसी को कानून की सुरक्षा का अधिकार है।

◾ निजता का अधिकार भारत में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के तहत आता है जिसे साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक मामले की सुनवाई करने के दौरान जोड़ा गया था।

अनुच्छेद 13

सभी को प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर आने-जाने और रहने की स्वतंत्रता का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने सहित किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश लौटने का अधिकार है।

◾ भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1) इसी बारे में है। भारत के भीतर अबाध संचरण का अधिकार भारतीय नागरिकों को प्राप्त है।

अनुच्छेद 14

हर किसी को दूसरे देशों में उत्पीड़न से बचने के लिए शरण लेने और आनंद लेने का अधिकार है। यह अधिकार वास्तव में गैर-राजनीतिक अपराधों या संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों के विपरीत कृत्यों से उत्पन्न होने वाले मुकदमों के मामले में लागू नहीं किया जा सकता है।

◾ भारत में सीधे तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है लेकिन अगर कोई व्यक्ति शरणार्थी के रूप में भारत आ जाता है तो व्यवहार में सरकार द्वारा उसे मानवाधिकार और कई राजनीतिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाता है।

अनुच्छेद 15

सभी को एक राष्ट्रीयता का अधिकार है। किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जाएगा और न ही उसे अपनी राष्ट्रीयता बदलने के अधिकार से वंचित किया जाएगा।

◾ राष्ट्रीयता का अधिकार भारत में मूल अधिकार तो नहीं है लेकिन भारत में एकल राष्ट्रीयता का प्रावधान जरूर है।

अनुच्छेद 16

पूरी उम्र के पुरुषों और महिलाओं को बिना किसी जाति, राष्ट्रीयता या धर्म की सीमा के शादी करने और परिवार स्थापित करने का अधिकार है। वे विवाह के दौरान और उसके विघटन पर समान अधिकारों के हकदार हैं।

इच्छुक पति-पत्नी की स्वतंत्र और पूर्ण सहमति से ही विवाह किया जाएगा। परिवार समाज की प्राकृतिक और मौलिक समूह इकाई है और समाज और राज्य द्वारा सुरक्षा का हकदार है।

◾ भारत में यह मूल अधिकारों के तहत तो नहीं आता है लेकिन यहां कि संस्कृति में इस तरह की खूबी है कि परिवार, समाज को लोग एक संस्था मानकर चलता है।

और जहां तक विवाह आदि की बात है तो उसके लिए संसद द्वारा 1954 में विशेष विवाह अधिनियम को लागू किया गया था जो कि इस तरह के मसलों को हल कर देता है।

अनुच्छेद 17

प्रत्येक व्यक्ति को अकेले तथा दूसरों के साथ मिलकर संपत्ति रखने का अधिकार है। किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।

◾ साल 1978 तक संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार हुआ करता था पर अब यह एक संवैधानिक या विधिक अधिकार है। चूंकि यह एक विधिक अधिकार है इसीलिए किसी भी व्यक्ति से बिना विधि के प्राधिकार के संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है।

अनुच्छेद 18

सभी को विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है; इस अधिकार में अपने धर्म या विश्वास को बदलने की स्वतंत्रता, और स्वतंत्रता, या तो अकेले या दूसरों के साथ समुदाय में और सार्वजनिक या निजी तौर पर, शिक्षण, अभ्यास, पूजा और पालन में अपने धर्म या विश्वास को प्रकट करने की स्वतंत्रता शामिल है।

◾ इस मामले में भारतीय संविधान बहुत ही उदार है, अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। लोगों के पास यह स्वतंत्रता है कि वह अपने अन्तःकरण की स्वतंत्रता, मानने की स्वतंत्रता एवं प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता का लाभ ले सकता है।

अनुच्छेद 19

प्रत्येक व्यक्ति को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है; इस अधिकार में हस्तक्षेप के बिना राय रखने और किसी भी मीडिया के माध्यम से और सीमाओं की परवाह किए बिना सूचना और विचारों को प्राप्त करने, प्राप्त करने और प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।

◾ अनुच्छेद 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी भारत के नागरिकों को प्राप्त है। और यह किसी लोकतांत्रिक देश के नजरिए से बहुत ही व्यापक और उदार है।

अनुच्छेद 20

सभी को शांतिपूर्ण सभा और संघ की स्वतंत्रता का अधिकार है। किसी को भी संघ में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

◾ किसी भी लोकतांत्रिक देश की तरह भारत में भी अनुच्छेद 19(1) के तहत सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण सभा करने का अधिकार प्राप्त है।

अनुच्छेद 21

प्रत्येक व्यक्ति को सीधे या स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से अपने देश की सरकार में भाग लेने का अधिकार है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश में सार्वजनिक सेवा तक समान पहुंच का अधिकार है।

लोगों की इच्छा सरकार के अधिकार का आधार होगी; यह आवधिक और वास्तविक चुनावों में व्यक्त किया जाएगा जो सार्वभौमिक और समान मताधिकार द्वारा होंगे और गुप्त मतदान या समान स्वतंत्र मतदान प्रक्रियाओं द्वारा आयोजित किए जाएंगे।

◾ भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारत उन सभी राजनैतिक अधिकारों को मान्यता देता है जो किसी भी सभ्य लोकतांत्रिक समाज में होना चाहिए। जैसे कि सार्वजनिक वयस्क मताधिकार, उच्चतम सार्वजनिक पदों तक पहुँचने का अधिकार आदि। हालांकि यह मूल अधिकार नहीं है।

अनुच्छेद 22

प्रत्येक व्यक्ति, समाज के एक सदस्य के रूप में, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार रखता है और राष्ट्रीय प्रयास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से और प्रत्येक राज्य के संगठन और संसाधनों के अनुसार आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए अपरिहार्य है। उनकी गरिमा और उनके व्यक्तित्व का मुक्त विकास।

◾ भारतीय संविधान के मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व को मिलाकर देखें तो उपरोक्त कही गई बात भारत अच्छे से फॉलो करता है।

अनुच्छेद 23

प्रत्येक व्यक्ति को काम करने का अधिकार है, रोजगार के स्वतंत्र विकल्प का, काम की उचित और अनुकूल परिस्थितियों का और बेरोजगारी से सुरक्षा का अधिकार है।

बिना किसी भेदभाव के सभी को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है।

काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के लिए मानवीय गरिमा के योग्य अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए उचित और अनुकूल पारिश्रमिक का अधिकार है, और सामाजिक सुरक्षा के अन्य साधनों द्वारा, यदि आवश्यक हो, पूरक है।

प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों की रक्षा के लिए ट्रेड यूनियन बनाने और उसमें शामिल होने का अधिकार है।

◾ काम करने का अधिकार एक मूल अधिकार है जबकि समान कार्य के लिए समान वेतन की बात करें तो इसे निदेशक तत्वों के तहत रखा गया है।

ट्रेड यूनियन की बात करें तो भारत में गुट बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

अनुच्छेद 24

प्रत्येक व्यक्ति को काम के घंटे की उचित सीमा और वेतन के साथ आवधिक छुट्टियों सहित आराम और अवकाश का अधिकार है।

◾ राज्य के नीति निदेशक तत्व में (अनुच्छेद 42) आप इसे देख सकते हैं। राज्य का ये कर्तव्य बनाया गया है कि काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को वे सुनिश्चित करें;

अनुच्छेद 25

प्रत्येक व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य और भलाई के लिए पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़ा, आवास और चिकित्सा देखभाल और आवश्यक सामाजिक सेवाएं शामिल हैं, और बेरोजगारी, बीमारी की स्थिति में सुरक्षा का अधिकार , विकलांगता, विधवापन, बुढ़ापा या उसके नियंत्रण से बाहर परिस्थितियों में आजीविका की अन्य कमी।

मातृत्व और बचपन विशेष देखभाल और सहायता के हकदार हैं। सभी बच्चे, चाहे वे विवाह में पैदा हुए हों या बाहर, समान सामाजिक सुरक्षा का आनंद लेंगे।

◾ मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों को मिलाकर देखें तो उपरोक्त विषयों का अच्छे से संज्ञान लिया गया है। जैसे कि मातृत्व और बचपन की बात करें तो इसे हम निदेशक तत्वों में देख सकते हैं।

भोजन, कपड़ा एवं मकान की बात करें तो यह एक मौलिक अधिकार है और प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के तहत आता है।

अनुच्छेद 26

शिक्षा पर सभी का अधिकार है। शिक्षा मुफ्त होगी, कम से कम प्रारंभिक और मौलिक चरणों में। प्रारंभिक शिक्षा आवश्यक होगी। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा आम तौर पर उपलब्ध कराई जाएगी और योग्यता के आधार पर उच्च शिक्षा सभी के लिए समान रूप से सुलभ होगी।

शिक्षा को मानव व्यक्तित्व के पूर्ण विकास और मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के प्रति सम्मान को मजबूत करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। यह सभी राष्ट्रों, नस्लीय या धार्मिक समूहों के बीच समझ, सहिष्णुता और मित्रता को बढ़ावा देगा और शांति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों को आगे बढ़ाएगा।

माता-पिता को अपने बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा का प्रकार चुनने का पूर्व अधिकार है।

◾ भारत में 6-14 वर्ष तक के उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा उपलब्ध है और यह अनुच्छेद 21क के तहत एक मौलिक अधिकार है। और भारत में माता-पिता के पास पूरा अधिकार होता है कि वे अपने बच्चे को किस तरह की शिक्षा देना चाहते हैं;

अनुच्छेद 27

प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने, कला का आनंद लेने और वैज्ञानिक प्रगति और उसके लाभों में हिस्सा लेने का अधिकार है।

प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक उत्पादन से उत्पन्न नैतिक और भौतिक हितों की सुरक्षा का अधिकार है, जिसके वे लेखक हैं।

◾ ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है और किसी भी सभ्य देश की तरह भारत के नागरिकों को भी ये अधिकार प्राप्त है।

अनुच्छेद 28

हर कोई एक सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का हकदार है जिसमें इस घोषणा में निर्धारित अधिकारों और स्वतंत्रताओं को पूरी तरह से महसूस किया जा सकता है।

अनुच्छेद 29

प्रत्येक व्यक्ति का उस समुदाय के प्रति कर्तव्य होता है जिसमें उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र एवं पूर्ण विकास संभव हो।

अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं के प्रयोग में, हर कोई केवल उन सीमाओं के अधीन होगा जो कानून द्वारा केवल दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए उचित मान्यता और सम्मान हासिल करने के उद्देश्य से निर्धारित की जाती हैं और एक लोकतांत्रिक समाज में नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और सामान्य कल्याण की न्यायोचित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक होती है।

इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं का किसी भी मामले में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों के विपरीत प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

अनुच्छेद 30

इस घोषणा में कुछ भी किसी भी राज्य, समूह या व्यक्ति के लिए किसी भी गतिविधि में संलग्न होने या यहां निर्धारित किसी भी अधिकार और स्वतंत्रता के विनाश के उद्देश्य से किसी भी कार्य को करने के अधिकार के रूप में व्याख्या नहीं की जा सकती है।


तो कुल मिलाकर यही है मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR), पीडीएफ़↗️ दिया हुआ है आप चाहे तो मूल पीडीएफ़ पढ़ सकते हैं। और अधिकारों से संबन्धित अन्य लेखों को अवश्य पढ़ें;

◾ ◾ मौलिक अधिकार बेसिक्स

—–मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा—–