Fundamental Rights

Fundamental Rights

मौ लि क अधि का र (Fundamental Rights) [UPSC] 

इस लेख में हम मौ लि क अधि का र (Fundamental Rights) का एक परि चया त्मक अध्ययन करेंगे एवं संवि धा न के भा ग 3 के अंतर्गत आने वा ले दो शुरुशुआती अनुच्नुछेद (अनुच्नुछेद 12 और 13) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, 

तो मौ लि क अधि का रों की आधा रभूतभू समझ के लि ए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, और सा थ ही इस टॉ पि क से संबंधि त अन्य लेखों को भी पढ़ें। [मौ लि क अधि का रों पर लेख] 

मौ लि क अधि का र की आधा रभूत समझ 

18वीं सदी की जर्मन दार्शनि क इमैनुएनुल कां ट के वि चा र में ”हर ची ज़ की या तो की मत हो ती है या गरि मा ” जि सकी की मत हो ती है उसके जगह को ई अन्य समतुल्तुय वस्तुएँतुएँरखी जा सकती है पर इसके इत्तर जि सकी को ई की मत न हो या जो सभी की मतों से ऊपर हो ; वो है कि सी व्यक्ति की गरि मा ।

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व्यक्ति की ये गरि मा कुछ मूलमू भूतभू अधि का रों एवं दायि त्वों पर टि का हो ता है। कां ट ने इन वि चा रों के जरि ये अधि का र की एक नैति क अवधा रणा प्रस्तुततु की । पहला , हम अधि का रों की प्रा प्ति के लि ए इतने स्वा र्थी न हो जा ये कि दूसदू रों का नुकनु सा न कर बैठें। दूसदू रा , हम दूसदू रों के सा थ वैसा ही आचरण करें जो हम अपने लि ए सा मने वा ले से अपेक्षा रखते हैं। 

मनुष्नुय एक चिं तनशी ल प्रा णी है और समय के सा थ उन्हो ने एक ऐसा जटि ल सा मा जि क संरचना वि कसि त की है जहां लो गों को अपनी इच्छा ओं एवं जरूरतों के हि सा ब से जी ने के लि ए कुछ अधि का र हो ते है। 

समा ज में कि सी के पा स बहुत ही ज्या दा अधि का र हो ते हैं तो कि सी के पा स बहुत ही कम पर सभी के पा स कुछ न कुछ अधि का र जरूर हो ते हैं। दरअसल ये अधि का र बो ध प्रा कृति क तौ र पर हमा रे अंदर वि द्यमा न हो ता है। 

अधि का र क्या है? (What is right?) 

अधि का र वो हक़ या मां ग या दावे है जो हमें मि लता है, या तो रा ज्य से, समा ज से, परि वा र से, खुदखु से या फि र प्रकृति से। 

17वीं एवं 18वीं शता ब्दी के रा जनैति क चिं तकों का अधि का र के बा रे में तर्क यही हो ता था कि ये प्रकृति या ईश्वर प्रदत है और को ई व्यक्ति या शा सक उसे हमसे छी न नहीं सकता है। उस समय इस तरह के ती न प्रा कृति क अधि का र चि न्हि त कि ए गए थे – जी वन का अधि का र, स्वतंत्रत् ता का अधि का र एवं संपत्ति का अधि का र। 

उस समय की यही अवधा रणा हा ल के वर्षों में मा नवा धि का र (Human Rights) के रूप में प्रचलि त हुआ है। ज्यों -ज्यों लो गों के अंदर ता र्कि क चेतना घर करने लग गया , वे ईश्वर केन्द्रि त से स्वकेंद्रि त हो ने लग गया और इस तरह से इन्सा नों ने समय के सा थ कई ऐसे अधि का रों की खो ज की जो उसके लि ए उपयुक्युत था । 

मा नवा धि का र क्या है? (What is Human Rights?) 

मा नव अधि का रों के पी छे का मूलमू तर्क ये है कि सि र्फ मनुष्नुय हो ने मा त्रत् से हम कुछ ची जों को पा ने के अधि का री हो जा ते हैं। इसका दूसदू रा मतलब ये है कि आंतरि क दृष्टिदृष्टि से सभी मनुष्नुय समा न है इसी लि ए उन्हे स्वतंत्रत् रहने तथा अपनी पूरी संभा वना ओं को सा का र करने का समा न अवसर मि लना ही चा हि ए। 

तो कुल मि ला कर वे सभी अधि का र जो कम से कम एक इंसा न हो ने के ना ते हमें मि लनी ही चा हि ए, मा नवा धि का र है। उदाहरण के लि ए- जी ने का अधि का र, इसके तहत ढेरों संबन्धि त अधि का र आ सकते हैं जैसे कि खा ने का अधि का र, कपड़े पहनने का अधि का र, घर में रहने का अधि का र आदि । 

अब ऐसा तो नहीं हो सकता है न कि को ई देश इसे देऔर को ई न दे। इसी लि ए मा नवा धि का र कि सी रा ज्य की सी मा ओं से नहीं बंधी हो ती है बल्कि ये पूरी मा नवजा ति के लि ए हो ती है। इस वि चा र का इस्तेमा ल समा ज में व्या प्त नस्ल, जा ति , धर्म और लिं ग पर आधा रि त मौ जूदा जू असमा नता ओं को खत्म करने या चुनौचुनौती देने के लि ए कि या जा ता है। 

यूनि वर्सल डि क्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन रा इट्स (UDHR) मा नवा धि का रों के इति हा स में एक मी ल का पत्थर दस्ता वेज़ है। इसे 10 दि सम्बर 1948 को संयुक्युत रा ष्ट्र की आम सभा ने स्वी का र कि या और ला गू कि या । 

मा नवा धि का र की पैरवी करने वा ले ढेरों देश और संस्था एं आज भी इस दस्ता वेज़ से प्रेरणा लेते हैं। इसमें क्या लि खा है, इसे आप खुदखु ही देख सकते हैं; UDHR 

मा नवा धि का रों की सा र्वभौ मि क घो षणा (UDHR)

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चूंकि , मा नव परि वा र के सभी सदस्यों के जन्मजा त गौ रव और सम्मा न तथा अवि च्छि न अधि का र की स्वी कृति ही वि श्व-शां ति , न्या य और स्वतंत्रत् ता की बुनिबुनिया द है, 

चूंकि , मा नव अधि का रों के प्रति उपेक्षा और घृणाघृ णा के फलस्वरूप ही ऐसे बर्बर का र्य हुए जि नसे मनुष्नुय की आत्मा पर अत्या चा र कि या गया , इसी लि ए यह अनि वा र्य है कि ऐसे वि श्व की स्था पना हो जि समें सभी मनुष्नुय भा षण तथा वि श्वा स की स्वतंत्रत् ता हा सि ल तथा भय तथा अभा व से मुक्तिमुक्ति प्रा प्त कर सकें, जो मा नव समुदा मु य की सबसे महत्वपूर्ण अभि ला षा है। 

चूंकि , यह आवश्यक है कि मनुष्नुय को अत्या चा र तथा दमन के वि रुद्ध अंति म अस्त्रत् के रूप में वि द्रोद् रोह न करना पड़े, इसी लि ए वि धि के शा सन के द्वा रा मनवा धि का रों की रक्षा हो , 

चूंकि , रा ष्ट्रों के मध्य मि त्रत् ता पूर्ण संबन्धों की स्था पना को प्रो त्सा हि त करना आवश्यक है, चूंकि , संयुक्युत रा ष्ट्रसंघ के देशों ने घो षणा पत्रत् में मूलमू भूतभू मा नवा धि का रों , मनुष्नुय की गरि मा तथा महत्व तथा पुरुपुषों तथा महि ला ओं के समा न अधि का रों के प्रति अपना वि श्वा स पुनःपुनः व्यक्त कि या तथा व्या पक स्वतंत्रत् ता की उपलब्धि हेतु उत्तम जी वन स्तर तथा सा मा जि क वि का स को प्रो त्सा हि त करने का संकल्प लि या है, चूंकि , सदस्य देशों ने संयुक्युत रा ष्ट्रसंघ के सहयो ग से मा नव अधि का रों तथा मूलमू स्वतंत्रत् ता ओं के वि श्व स्तर पर सम्मा न तथा अनुपानुपालन को प्रो त्सा हि त करने का संकल्प लि या है, 

चूंकि , उक्त संकल्पों की पूर्ण उपलब्धि हेतु इन अधि का रों और स्वतंत्रत् ता ओं की सा र्वदेशि क अवधा रणा सर्वा धि क महत्वपूर्ण है। 

अतः आज संयुक्युत रा ष्ट्रसंघ महा सभा , मनवा धि का रों के वि श्वजनी न घो षणा पत्रत् को सभी सभ्यता ओं तथा देशों के लि ए उपलब्धि के सर्वमा न्य मा नदंड के रूप में एतदर्थ घो षि त करती है कि प्रत्येक व्यक्ति तथा समा ज का प्रत्येक अंग इस घो षणा पत्रत् का सदा वि चा र रखते हुए इन अधि का रों तथा स्वतंत्रत् ता , स्वतंत्रत् ता ओं की मर्या दा को अध्या पन तथा शि क्षा के मा ध्यमों द्वा रा प्रो त्सा हि त करेगा तथा वि का सो न्मुखमु रा ष्ट्री य-अंतर्रा ष्ट्री य सा धनों द्वा रा इनकी सा र्वदेशि क तथा सशक्त स्वी कृति एवं अनुपानुपालन को आपस में, सदस्य देशों की जनता के बी च तथा उनके क्षेत्रात् राधि का र के अंतर्गत आनेवा ले प्रदेशों की जनता के बी च स्था पि त करेगा । 

तो आप यहाँ देख सकते हैं कि अधि का रों के संबंध में यहाँ ढ़ेरों बा तें की गई है, जैसे कि भा षण एवं वि श्वा स की स्वतंत्रत् ता , वि धि का शा सन, मनुष्नुय की गरि मा एवं महि ला ओं के समा न अधि का र इत्या दि । ये समझना इसी लि ए जरूरी है ता कि जब आप भा रती य संवि धा न द्वा रा दि ए गए मूलमू अधि का रों के बा रे में समझें तो ये समझ पा एँ कि भा रती य संवि धा न ने ↗️

इन सभी बा तों को अपने में सम्मि लि त कि या है। हा लां कि इससे संबन्धि त भा रत में मा नवा धि का रों की स्थि ति पर एक अलग से लेख सा इट पर उपलब्ध है, उसे जरूर पढ़ें। 

◾ अधि का रों की बा तें करने भर से तो ये ला गू हो नहीं जा एगा इसे उचि त उचि त संवैधा नि क संरक्षण भी देना पड़ता है। भा रत का संवि धा न इस मा मले में अग्रग् णी है क्यों कि ये न्या यो चि त मूलमू अधि का रों की एक लंबी एवं वि स्तृततृ सूची उपलब्ध करा ता है जो कि का नूनीनूनी रूप से प्रवर्तनी य भी है। मुख्मुय रूप से यहाँ दो टर्म आता है – संवैधा नि क अधि का र (Constitutional right) एवं मौ लि क अधि का र (Fundamental Rights)। 

संवैधा नि क अधि का र क्या है? (What is constitutional right?) 

जैसा कि ना म से ही स्पष्ट है ये वो अधि का र है जो संवि धा न हमें देता है। एक सवा ल यहाँ आता है कि मौ लि क अधि का र भी तो संवि धा न द्वा रा ही दि या जा ता है। 

हाँ , पर एक बा त या द रखने वा ली है कि मौ लि क अधि का र केवल वो है जि से मौ लि क अधि का रों के अंतर्गत दि या गया है जबकि संवैधा नि क अधि का र वे सभी हैं जो पूरे संवि धा न में उल्लेखि त है। 

या नी कि सभी मौ लि क अधि का र संवैधा नि क अधि का र है लेकि न सभी संवैधा नि क अधि का र मौ लि क अधि का र नहीं है। जैसे कि संपत्ति के अधि का र को ही ले लें तो ये एक संवैधा नि क अधि का र तो है पर एक मौ लि क अधि का र नहीं है। 

मौ लि क अधि का र क्या है? (What is a Fundamental Right?) 

मौ लि क अधि का र वो न्यूनतम अधि का र है जो कि सी व्यक्ति के चहुंमुखीमु खी वि का स या नी कि बौ द्धि क, नैति क, भौ ति क, एवं आध्या त्मि क वि का स के लि ए चा हि ए ही चा हि ए। इसके लि ए ”रा जनी ति क अधि का र (Political rights)” शब्द का भी प्रयो ग कि या जा ता है। 

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भा रती य संवि धा न के भा ग 3 के अंतर्गत अनुच्नुछेद 12 से लेकर 35 तक मौ लि क अधि का रों (Fundamental Rights) की चर्चा की गयी है। और हम इस लेख में हम अनुच्नुछेद 12 एवं अनुच्नुछेद 13 को समझेंगे। 

◾ संवि धा न के भा ग 3 को भा रत का मैग्ना का र्टा कहा जा ता है। इसे मैग्ना का र्टा इसी लि ए कहा जा ता है क्यों कि इंग्लैंड में सर्वप्रथम 1215 में एक दस्ता वेज़ बना या गया जि समें जनता को कुछ मूलमू भूतभू अधि का रों की गा रंटी दी गयी जि से मैग्ना का र्टा कहा गया । भा रत के संवि धा न का भा ग 3 भी चूंकि मूलमू भूतभू अधि का रों की गा रंटी देती है इसी लि ए इसे भा रत का मैग्ना का र्टा कहा जा ता है। 

मूलमू संवि धा न के 7 मौ लि क अधि का र 

मूलमू रूप से संवि धा न में 7 मूलमू अधि का र दि ये गए थे जैसा कि आप नी चे देख पा रहे हैं। लेकि न यहाँ एक बा त या द रखने यो ग्य है कि संपत्ति का अधि का र को 44वें संवि धा न संसो धन 1978 द्वा रा हटा दि या गया है। इसी लि ए अब सि र्फ 6 मूलमू अधि का र ही है। 

मौ लि क अधि का र 

1. समता का अधि का र, अनुच्नुछेद 14 – 18  

2. स्वतंत्रत् ता का अधि का र, अनुच्नुछेद 19 – 22  

3. शो षण के वि रुद्ध अधि का र, अनुच्नुछेद 23 – 24  

4. धा र्मि क स्वतंत्रत् ता का अधि का र, अनुच्नुछेद 25 – 28  

5. शि क्षा एवं संस्कृति का अधि का र, अनुच्नुछेद 29 – 30 

6. संपत्ति का अधि का र अनुच्नुछेद 31 

6. संवैधा नि क उपचा र का अधि का र, अनुच्नुछेद 32 

अनुच्नुछेद 12 – परि भा षा 

दरअसल मूलमू अधि का रों के कुछ उपबंधो को छो ड़कर सा रे के सा रे उपबंध रा ज्य (State) के मनमा ने रवैये के खि ला फ है मतलब ये की अगर रा ज्य द्वा रा आपके मूलमू अधि का रों का हनन कि या जा ता है, तो आप सी धे उच्चतम या उच्च न्या या लय जा सकते हैं क्यों कि मूलमू अधि का रों की सुरसुक्षा और प्रवर्तन का ज़ि म्मा अंति म रूप से सुप्सुप्री म को र्ट पर है। 

अब यहाँ पर एक सवा ल आता है कि हम रा ज्य मा ने कि से क्यों कि यहाँ तो स्टेट को भी रा ज्य कहा जा ता है और देश को भी । 

अनुच्नुछेद 12 में इसी रा ज्य को परि भा षि त कि या गया है। तो आइये देखते हैं संवि धा न के अनुसानु सार रा ज्य क्या है? रा ज्य क्या है? (What is the state?) 

▪️इसके अनुसानु सार का र्यका री एवं वि धा यी अंगों को केंद्रीद् रीय सरका र में क्रि या न्वि त करने वा ली सरका र और भा रत की संसद, रा ज्य है। 

▪️उसी प्रका र, का र्यका री एवं वि धा यी अंगों को रा ज्य में क्रि या न्वि त करने वा ली सरका र और रा ज्य वि धा नमंडमं ल, रा ज्य हैं। 

▪️सभी स्था नी य नि का य जैसे की नगरपा लि का , पंचा यत, जि ला बो र्ड आदि , रा ज्य हैं। 

▪️भा रत के रा ज्यक्षेत्रत् के भी तर या भा रत सरका र के नि यंत्रत् ण के अधी न सभी स्था नी य और अन्य प्रा धि का री , जैसे- एलआईसी , ओएनजी सी आदि भी रा ज्य हैं। सो सा इटी अधि नि यम के तहत रजि स्टर्ड सो सा इटी भी रा ज्य है। क्षेत्रीत् रीय ग्राग् रामी ण बैंक भी रा ज्य है।

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इसका मतलब समझ गए न कि इन में से अगर कि सी के द्वा रा भी मूलमू अधि का रों का हनन कि या जा ता है तो को ई भी सुप्सुप्री म को र्ट जा सकता है। यहाँ यह या द रखि ए कि रा ज्य की यह जो परि भा षा है वो केवल संवि धा न के भा ग 3 और भा ग 4 के लि ए है। संवि धा न के दूसदू रे भा गों के लि ए इसके मा यने अलग भी हो सकते हैं। 

यहाँ यह या द रखि ए कि नि म्नलि खि त नि का य अनुच्नुछेद 12 के तहत रा ज्य नहीं मा ना जा ता है

1. ऐसा असंवैधा नि क नि का य जो का नूनीनूनी शक्ति यों का प्रयो ग नहीं करता है। जैसे कि को ई कंपनी जो कि सरका र का अधि करण न हो । 

2. प्रा इवेट नि का य जि से को ई को ई का नूनीनूनी शक्ति हा सि ल नहीं है। या फि र जि से कि सी रा ज्य अधि नि यम से समर्थन प्रा प्त नहीं हो ता है। 

अनुच्नुछेद 13 – मूलमू अधि का रों से असंगसं त या उनका अल्पी करण करने वा ली वि धि याँ 

ये अनुच्नुछेद बहुत ही महत्वपूर्ण है संवि धा न नि र्मा ण के बा द से जि तने भी वि वा द मूलमू अधि का रों को लेकर हुआ है उसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्नुछेद 13 उसमें रहा ही है। 

ये बा त आप तब समझेंगे जब गो लकना थ मा मला , केशवा नन्द भा रती आदि जैसे मा मलों के बा रे में जा नेंगे। खैर इसकी चर्चा तो आगे करेंगे अभी जा न लेते हैं कि अनुच्नुछेद 13 कहता क्या है? 

अनुच्नुछेद 13 – (1) इस संवि धा न के प्रा रम्भ से ठी क पहले भा रत के रा ज्यक्षेत्रत् में ला गू सभी वि धि याँ उस मा त्रात् रा तक शून्शूय हों गी जि स तक वे इस भा ग के उपबंधों से असंगत है। 

कहने का ये मतलब है कि हमा रा संवि धा न ला गू हो ने से पहले जि तने का नूननू चल रहे थे, संवि धा न ला गू हो ने के बा द उसका उतना हि स्सा रद्द हो जा एंगीएं गी जो संवि धा न के भा ग 3 में बता ए गए मौ लि क अधि का रों का उल्लंघन करती है। 

(2) रा ज्य ऐसी को ई वि धि (law) नहीं बना सकती है जो संवि धा न के इस भा ग में वर्णि त मूलमू अधि का रों को छी नती है या उसे कम करती है। लेकि न अगर रा ज्य ऐसा करता है तो वो वि धि उतनी मा त्रात् रा तक शून्शूय हो जा एंगीएं गी जो मूलमू अधि का रों का उल्लंघन कर रहा हो गा । 

अगर सुप्सुप्री म को र्ट या हा ई को र्ट को लगता है की कि सी वि धि के द्वा रा मूलमू अधि का रों का उल्लंघन हो रह है, तो सुप्सुप्री म को र्ट या हा ईको र्ट उस वि धि को असंवैधा नि क भी घो षि त कर सकती है। इस संबंध में बहुत सा रे सवा ल उठते हैं, उसका उत्तर समझने के लि ए नी चे दि ए गए FAQs पढ़ें। 

अब यहाँ भी एक सवा ल है कि वि धि क्या हो ता है या फि र हम वि धि कि सको मा ने।ने इसका जवा ब इस अनुच्नुछेद के बि न्दु (3) के तहत दि या गया है – 

वि धि क्या है?(What is the law?) 

अनुच्नुछेद 13 के अनुसानु सार नि म्नलि खि त बा तें वि धि मा नी जा एंगीएं गी। 

1. संसद या रा ज्य वि धा नमण्डल द्वा रा पा रि त वि धि याँ 

2. रा ज्यपा ल और रा ष्ट्रपति द्वा रा जा री अध्या देश (Ordinance) 

3. प्रत्या यो जि त वि धा न (Delegated statement) जैसे कि – (आदेश order), उप-वि धि (Bye law), नि यम (Rule), वि नि यम (Regulations) या अधि सूचना (Notification)। 

4. वि धि के गैर-वि धा यी स्रो त जैसे कि – कि सी वि धि का बल रखने वा ली रूढ़ि या प्रथा (Custom or practice)।

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नो ट संवि धा न संशो धन (Constitutional amendment) एक वि धि है कि नहीं इसकी चर्चा यहाँ नहीं की गई है इसी लि ए लंबे समय तक ये मा ना जा ता रहा कि चूंकि संवि धा न संशो धन को ई वि धि नहीं है इसी लि ए उसे न्या या लय में चुनौचुनौती भी नहीं दी जा सकती है। 

लेकि न 1973 के केशवा नन्द भा रती मा मले में सुप्सुप्री म को र्ट ने कहा कि मूलमू अधि का र के हनन के आधा र पर संवि धा न संशो धन को भी चुनौचुनौती दी जा सकती है और मूलमू अधि का रों से असंगत पा ये जा ने पर उसे सुप्सुप्री म को र्ट द्वा रा अवैध घो षि त कि या जा सकता है। 

मौ लि क अधि का र का महत्व 

⚫ मौ लि क अधि का र लो कतां त्रि क व्यवस्था की जड़ है। ये अधि का र रा ज्य को कुछ खा स तरी कों से का र्य करने के लि ए वैधा नि क दायि त्व सौं पसौं ते हैं। प्रत्येक अधि का र नि र्देशि त करता है कि रा ज्य के लि ए क्या करने यो ग्य है और क्या नहीं ।हीं जैसे कि अगर को ई मेरे जी ने के अधि का र को क्षति पहुंचा ता है तो रा ज्य का ये दायि त्व बनता है कि वे ऐसे का नूननू बना ए जि ससे की को ई मेरे जी ने के अधि का र को क्षति न पहुंचा पा ये। 

⚫ ये व्यक्ति की भौ ति क एवं नैति क सुरसुक्षा के लि ए आवश्यक स्थि ति उत्पन्न करता है एवं व्यक्ति गत सम्मा न को बना ए रखता है। 

⚫ ये सरका र के पूर्णता पर नि यंत्रत् ण ला ता है और व्यक्ति गत एवं सा मूहिमूहिक अधि का रों को बढ़ा वा देता है। इसी लि ए इसे व्यक्ति गत स्वतंत्रत् ता का रक्षक कहा जा ता है। 

⚫ ये अल्पसंख्यकों एवं समा ज के कमजो र वर्गों के हि तों की रक्षा करते हुए लो गों को रा जनी ति क एवं प्रशा सनि क प्रणा ली में भा ग लेने का अवसर प्रदान करता है। 

⚫ ये देश में वि धि के शा सन को संरक्षि त करता है एवं सा मा जि क समा नता एवं सा मूहिमूहिक न्या य को सुदृसुढ़दृ करता है। 

अधि का र एवं कर्तव्य (Rights and Duties) 

जब भी हम अपने अधि का रों का इस्तेमा ल करते हैं तो हमें ये मा नकर चलना चा हि ए कि कर्तव्य भा व भी उसी में नि हि त है। ये न सि र्फ रा ज्यों के लि ए है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लि ए है। 

जैसे कि हमें व्यवसा य करने का अधि का र प्रा प्त है तो हमने ऐसे व्यवसा य चला ने शुरूशु कर दि ये जि ससे जल, जमी न, वा यु सभी प्रदूषिदूषित हो रहे हैं। ऐसे में हमा रा दायि त्व या कर्तव्य बनता है कि नए वृक्ष लगा कर, जंगलों की कटा ई को रो ककर, जल को प्रदूषिदूषित हो ने से रो ककर, पा रि स्थि ति की य संतुलतु न का यम रखने में अपनी भूमिभूमिका को सुनिसुनिश्चि त करें। 

वैसे 42वां संवि धा न संशो धन 1976 के मा ध्यम से संवि धा न में एक नया भा ग 4’क’ जो ड़कर प्रत्येक ना गरि क के लि ए मौ लि क कर्तव्यों (Fundamental duties) यों को सुनिसुनिश्चि त कि या गया है। 

मूलमू अधि का रों की वि शेषता एँ 

⚫ भा ग 3 के अंतर्गत जि तने भी मूलमू अधि का रों की चर्चा की गई है उसमें से कुछ सि र्फ भा रती य ना गरि कों के लि ए उपलब्ध है जैसे कि अनुच्नुछेद 15, अनुच्नुछेद 16, अनुच्नुछेद 19, अनुच्नुछेद 29 एवं 30। बा द बा की अन्य सभी व्यक्ति यों के लि ए भी उपलब्ध है। इसकी चर्चा हमने ना गरि कता (Citizenship) वा ले लेख में भी कि या है। 

⚫ ये अधि का र असी मि त नहीं हो ते हैं, या नी कि रा ज्य इस पर युक्तियुक्ति युक्युत प्रति बंध (Reasonable restriction) लगा सकता है। उदाहरण के लि ए अभि व्यक्ति की आजा दी के तहत कि सी को भी तस्वी रे खीं चखीं ने की आजा दी है लेकि न अगर वो कि सी की नहा ते हुए तस्वी र खीं चखीं लेता है तो ये उसकी नि जता के अधि का र का उल्लंघन हो गा , और ऐसे

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अधि का र तो कि सी को हरगि ज़ नहीं दी जा सकती । 

⚫ ये अधि का र स्था यी नहीं है, या नी कि संसद इसमें कटौ ती या कुछ जो ड़ सकता है। हाँ , लेकि न शर्त ये है कि इस तरह के संशो धन से संवि धा न के मूलमू ढां चे को नुकनु सा न नहीं पहुँचना चा हि ए। जैसे कि अगर संसद ये चा हे कि जी ने के अधि का र को मौ लि क अधि का रों की सूची से हटा दि या जा ये तो वे ऐसा नहीं कर सकते। 

हा लां कि संपत्ति के अधि का र को 44वें संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से मौ लि क अधि का रों की सूची से हटा दि या गया , लेकि न चूंकि वो सुप्सुप्री म को र्ट की नजर में संवि धा न का मूलमू ढां चा नहीं था इसी लि ए इसे हटा ये जा ने से भी को ई फर्क नहीं पड़ा । 

⚫ ये प्रवर्तनी य (Enforceable) हो ते हैं एवं इन्हे उच्चतम न्या या लय द्वा रा गा रंटी व सुरसुक्षा प्रदान की जा ती है। मूलमू अधि का रों का उल्लंघन हो ने पर व्यक्ति सी धे उच्चतम न्या या लय जा सकता है और उच्चतम न्या या लय उसे सुनिसुनिश्चि त करने के लि ए बा ध्य है। 

FAQs 

Q. मूलमू अधि का र से असंगत हो ने पर क्या उच्चतम न्या या लय सम्पूर्ण वि धि को शून्शूय कर देगा

आमतौ र पर न्या या लय पृथक्करण के सि द्धां त (principle of separation) को अपना ता है। या नी कि उच्चतम न्या या लय यह देखता है कि अगर कि सी वि धि का को ई ऐसा प्रा वधा न मूलमू अधि का रों से असंगत है जि से कि उस वि धि / अधि नि यम से पृथक कि या जा सकता है तो केवल वह प्रा वधा न ही शून्शूय घो षि त कि या जा एगा , सम्पूर्ण वि धि नहीं ।हीं 

अगर का नूननू इस तरह से बना हो कि इस तरह के असंगत प्रा वधा न को उससे अलग करना ना मुममुकि न हो तो फि र न्या या लय पूरे का नूननू को शून्शूय करने के बा रे में वि चा र करता है। 

Q. मूलमू अधि का रों के हनन के मा मले में उच्चतम न्या या लय के अधि का र एवं कर्तव्य क्या है

उच्चतम न्या या लय वि धा नमंडमं ल द्वा रा बना ए गए अधि नि यमों का सम्मा न करता है और आमतौ र पर ये मा न के चलता है कि वि धा नमंडमं ल ने बना या है तो सही ही बना या हो गा । 

लेकि न एक बा र जब उच्चतम न्या या लय को यह लग जा ता है कि कि सी या ची (petitioner) के मूलमू अधि का रों का उल्लंघन रा ज्य के क़ा नूनोंनूनों से हुआ है तो उच्चतम न्या या लय का ये कर्तव्य हो ता है कि उस मा मले में वह हस्तक्षेप करें, और मूलमू अधि का रों को ला गू करें। 

Q. उच्चतम न्या या लय कि सी वि धि के संवैधा नि कता पर कब वि चा र करता है

उच्चतम न्या या लय कि सी वि धि के संवैधा नि कता पर वि चा र करने से पहले सा मा न्यतः दो ची ज़ें देखती है। पहला यह कि वि धि सा मा न्य वि धि बना ने की प्रक्रि या का पा लन करके बना या गया है कि नहीं और दूसदू रा ये कि वह वि धि या उसका को ई हि स्सा मूलमू अधि का रों का उल्लंघन करती है या नहीं ।हीं 

या द रखें न्या या लय यह मा न कर चलता है कि वि धि संवैधा नि क है और यह सि द्ध करने का भा र कि वि धि मूलमू अधि का रों का उल्लंघन करती है, उस व्यक्ति पर हो ता है जि सने अपी ल की है। 

यह भी या द रखि ए कि अगर कि सी का नूननू का इस्तेमा ल गलत तरी के से कि या जा रहा है तो ऐसी स्थि ति में न्या या लय उसकी संवैधा नि कता पर वि चा र नहीं करता । 

Q. वि धि की संवैधा नि कता पर कौ न सवा ल उठा सकता है और कौ न नहीं ?हीं

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जि सपर उस वि धि का सी धा प्रभा व पड़ता है। उसे न्या या लय के समक्ष यह बता नी हो गी कि उस वि धि से उसे क्या क्षति हुई है। अगर को ई व्यक्ति मूलमू अधि का रों की श्रेश् रेणी में नहीं आता है तो वह कि सी वि धि की वि धि मा न्यता पर आक्षेप नहीं कर सकता है। 

Q. क्या मौ लि क अधि का र का त्या ग कि या जा सकता है

इस मा मले में आम मत ये है कि को ई ना गरि क ऐसा नहीं कर सकता है, क्यों कि यह मौ लि क अधि का र उस व्यक्ति के ला भ के लि ए बना ए गए है। 

Q. क्या उच्चतम न्या या लय द्वा रा असंवैधा नि क या शून्शूय घो षि त कर दि ए जा ने पर संसद या वि धा नमंडमं ल फि र से उसी का नूननू को पा रि त कर सकती है

नहीं , हीं वि धा नमंडमं ल या संसद फि र से नया का नूननू बना सकती है जो कि असंवैधा नि क तत्वों से मुक्मुत हो । इस लेख में बस इतना ही , संक्षि प्त में सभी महत्वपूर्ण पहलुओंलु ओंको समेटने की को शि श की गई है, उम्मी द है समझ में आया हो गा । अगले लेख में हम समता का अधि का र (Right to Equality) या नी कि अनुच्नुछेद 14 से लेकर अनुच्नुछेद 18 तक की चर्चा करेंगे उसे पढ़ने के लि ए क्लि क करें।