मूलमू अधि का रों एवं नि देशक तत्वों में टकरा व का वि श्लेषण
इस लेख में हम मूलमू अधि का रों एवं नि देशक तत्वों में टकरा व पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके वि भि न्न महत्वपूर्ण पहलुओंलु ओंको समझने का प्रया स करेंगे;
इस लेख को समझने से पहले आप ये सुनिसुनिश्चि त कर लें कि आपने मूलमू अधि का र एवं रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व (DPSP) को अच्छे से समझा है। ये लेख थो ड़ा लंबा है पर आप इसे धैर्य के सा थ अंत तक जरूर पढ़ें, ऐसा करने से आपके सा रे डा उट खत्म हो जा एँगेएँगे।
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मूलमू अधि का रों एवं नि देशक सि द्धां तों में टकरा व
मूलमू अधि का र की बा त करें तो ये प्रवर्तनी य या न्या यो चि त है या नी कि उसका हनन हो ने पर सी धे उच्चतम न्या या लय जा या जा सकता है और मूलमू अधि का रों के संरक्षण की मां ग की जा सकती है,
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वहीं अनुच्नुछेद 37 के तहत रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व गैर-प्रवर्तनी य या गैर-न्या यो चि त है लेकि न यही अनुच्नुछेद रा ज्य पर एक नैति क बा ध्यता भी आरो पि त करता है कि रा ज्य वि धि बना ते समय इन तत्वों को उसमें शा मि ल करेगा ।
और यहीं से टकरा व की स्थि ति शुरूशु हुई क्यों कि बहुत सा रे नि देशक तत्व ऐसे है जो मूलमू अधि का रों से मेल नहीं खा ती । इसे उदाहरण से समझते हैं-
टकरा व का उदाहरण
अनुच्नुछेद 14, अनुच्नुछेद 15 और अनुच्नुछेद 16 समा नता की बा त करता है। खा सकर के अनुच्नुछेद 15 की बा त करें तो ये रा ज्य द्वा रा , लिं ग, जा ति , धर्म, जन्मस्था न या मूलमू वंश के आधा र पर वि भेद का प्रति षेध करता है।
अनुच्नुछेद 16 की बा त करें तो ये कहता है कि रा ज्य के अधी न कि सी पद पर नि यो जन या नि युक्तियुक्ति के लि ए सभी के पा स समा न अवसर उपलब्ध रहेंगे एवं रा ज्य, यहाँ भी धर्म, र्म जा ति , लिं ग, जनस्था न, या मूलमू वंश के आधा र पर ना गरि कों के सा थ को ई वि भेद नहीं करेगा ।
वहीं रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व के अनुच्नुछेद 46, मुख्मुय रूप से अनुसूनु सूचि त जा ति एवं जनजा ति यों को समा ज के मुख्मुय धा रा में ला ने के लि ए उसके आर्थि क और शैक्षणि क हि तों को प्रो त्सा हन देने की बा त करता है।
यहाँ अंतर्वि रो ध ये है कि – एक तरफ अनुच्नुछेद 15 और अनुच्नुछेद 16 समा नता की बा त करता है तो वहीं दूसदू री तरफ अनुच्नुछेद 46 एससी और एसटी वर्ग के लि ए वि शेष प्रका र की सुविसुविधा या यूं कहें कि आरक्षण की बा त करता है।
अब फि र से यहाँ भी एक समस्या आती है अगर समा नता की रक्षा करेंगे तो नि चले तबके के लो ग कभी भी मुख्मुय धा रा में नहीं आ पा एंगेएं गेऔर अगर आरक्षण देंगे तो फि र समा नता नहीं बचेगा ।
⚫ दूसदू रा उदाहरण देखें तो अनुच्नुछेद 19(1)(f) और अनुच्नुछेद 31 के तहत संपत्ति के अधि का र को सुनिसुनिश्चि त कि या गया था । या नी कि यह अनुच्नुछेद सा र्वजनि क और नि जी दोनों उद्देश्यों के लि ए सरका र या रा ज्य द्वा रा नि जी संपत्ति की मनमा नी जब्ती से व्यक्ति यों की रक्षा करता है।
वहीं दूसदू री ओर रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व के तहत आने वा ली अनुच्नुछेद 39 (ख) सा मूहिमूहिक हि त के लि ए समुदा मु य के भौ ति क संसा धनों के सम वि तरण पर बल देता है, और 39(ग) धन और उत्पा दन के संकेन्द्रद् ण को रो कने पर बल देता है।
कहने का अर्थ है कि अनुच्नुछेद 39 रा ज्य पर यह नैति क कर्तव्य डा लता है कि रा ज्य लो गों के हि त में भौ ति क संसा धनों का सम वि तरण (Equal distribution) करें, और कि सी एक ही व्यक्ति या सि र्फ कुछ ही व्यक्ति के पा स धन के इकट्ठा हो ने से रो कें।
वहीं मौ लि क अधि का र कहता है कि जि तना मन हो संपत्ति रखो , क्यों कि संपत्ति रखना मौ लि क अधि का र है।
⚫ अब सरका र के पा स यही समस्या थी कि करें तो करें क्या बो ले तो बो ले क्या । क्यों कि देश की सा मा जि क, आर्थि क और शैक्षणि क स्थि ति ठी क नहीं थी । और अगर सरका र के द्वा रा कुछ एक्सट्रा अफ़र्ट नहीं लगा या जा ता तो स्थि ति सुधसुरने वा ली भी नहीं थी ।
इसी से संबन्धि त एक दि लचस्प मा मला है चंपकम दोरा इरा जन बना म मद्राद् रास रा ज्य का मा मला । इस मा मले पर अप्रैल 1951 में फैसला आया था । क्या था वो आइये देखते हैं।
चंपचं कम दोरा इरा जन बना म मद्राद् रास सरका र का मा मला 1951
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दरअसल चंपकम दोरा इरा जन ना मक लड़की को मद्राद् रास के एक मेडि कल कॉ लेज में सि र्फ इसी लि ए एड्मि शन नहीं मि ला क्यों कि वहाँ सरका र के एक ऑर्डर से सी टों को समा ज के अलग-अलग सेक्शन के लि ए आरक्षि त कर दि या गया था । जो कि कुछ इस तरह था ।
हरेक 14 सी टों में से Non-Brahmin (Hindu) के लि ए 6 सी टें, Backward Hindu के लि ए 2 सी टें, Brahmin के लि ए 2 सी टें, Harijan के लि ए 2 सी टें, Anglo-Indians और Indian Christians के लि ए 1 सी ट और Muslims के लि ए 1 सी ट।
चंपकम दोरा इरा जन एक ब्राब् राह्मण लड़की थी और उसके लि ए सी टें कम हो ने के वजह से उसका एड्मि शन नहीं हो पा या । तो उसने मद्राद् रास उच्च न्या या लय में अपने मूलमू अधि का रों के हनन को लेकर एक या चि का दायर की ।
चंपकम दोरा इरा जन का पक्ष
उन्हो ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अनुच्नुछेद 15 और 16 के तहत ऐसा नहीं कि या जा सकता है। इसके सा थ ही उन्हो ने एक और अनुच्नुछेद 29(2) की भी बा त की जि समें सा फ-सा फ कहा गया है कि रा ज्य नि धि (State fund) से सहा यता प्रा प्त कि सी संस्था में कि सी ना गरि क को धर्म, जा ति , मूलमू वंश, लिं ग एवं जन्मस्था न के आधा र पर वि भेद नहीं कि या जा एगा ।
इस आर्गुमेंर्गुमेंट के आधा र पर तो ये बि ल्कुल कहा जा सकता है कि सी टों का आरक्षण गलत था । लेकि न फि र सरका र के तरफ से भी आर्गुमेंर्गुमेंट दि या गया ।
सरका र का पक्ष
सरका र ने DPSP के अनुच्नुछेद 46 का हवा ला देते हुए कहा कि चूंकि उसके आधा र पर सी टों को आरक्षि त कि या जा सकता है, इसी लि ए कि या गया । और अनुच्नुछेद 37 भी तो यहीं कहता है कि इसे ला गू करना रा ज्य का कर्तव्य हो गा ।
अब जब ये मा मला सुप्सुप्री म को र्ट गया तो सुप्सुप्री म को र्ट के सा मने यही सवा ल था कि क्या DPSP के आधा र पर मूलमू अधि का र के हनन को जा यज ठहरा या जा सकता है?
सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला
सुप्सुप्री म को र्ट ने कहा कि समुदा मु य के आधा र पर दि या गया आरक्षण मूलमू अधि का रों का हनन करता है इसी लि ए रा ज्य एड्मि शन के मा मले में जा ति या धर्म के आधा र पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं कर सकता है, क्यों कि इससे अनुच्नुछेद 16(2) और अनुच्नुछेद 29(2) का हनन हो ता है।
इसके सा थ ही सुप्सुप्री म को र्ट ने एक और बड़ी बा त कही कि जब भी कभी मूलमू अधि का र और नी ति नि देशक तत्वों में टकरा व हो गा तो उस स्थि ति में मूलमू अधि का र को ही प्रभा वी मा ना जा एगा न कि DPSP को ।
हा लां कि सुप्सुप्री म को र्ट ने ये स्पष्ट कर दि या कि मूलमू अधि का रों को संसद द्वा रा संवि धा न संशो धन प्रक्रि या के मा ध्यम से संशो धि त जरूर कि या जा सकता है।
⚫ इसी तरह से दूसदू रा मा मला है, का मेश्वर सिं ह बना म बि हा र प्रां त (1951)
बि हा र सरका र ने बि हा र भूमिभूमि सुधासुधार अधि नि यम 1950 ला या ता कि जमीं दा मीं रों से उसकी संपत्ति लि या जा ए और गरी बों में बां टा जा ए या उस संपत्ति का इस्तेमा ल समा ज सुधासुधार में कि या जा ए।
लेकि न का मेश्वर सिं ह (दरभंगाभं गा रा ज 1929-52) को अच्छा नहीं लगा कि संपत्ति रखना एक मौ लि क अधि का र है तो सरका र इसे छी न क्यों रही है! इसी लि ए का मेश्वर सिं ह ने इस का नूननू को पटना हा इ को र्ट में चुनौचुनौती दी।
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और का मेश्वर सिं ह बना म बि हा र प्रां त (1951) के मा मले में 12 March 1951 को पटना उच्च न्या या लय ने इस का नूननू को असंवैधा नि क घो षि त कर दि या क्यों कि इसने मौ लि क अधि का र का उल्लंघन कि या था ।
कुल मि ला कर 1951 के अप्रैल मा ह में ये फ़ा इनल हो चुकाचु का था कि अब DPSP के आधा र पर आरक्षण नहीं दि या जा सकता । और दूसदू री बा त कि DPSP के आधा र पर भूमिभूमि सुधासुधार नहीं कि या जा सकता है।
क्यों कि हर बा र न्या या लय मूलमू अधि का रों को बचा ने के लि ए आ जा एगा । लेकि न सरका र को तो आरक्षण देना था , भूमिभूमि सुधासुधार तो करनी थी ।
उस समय के प्रधा नमंत्मं रीत् री जवा हरला ल नेहरू जो कि एक समा जवा दी वि चा रधा रा के नेता थे, समझ गए कि अगर समा ज के वंचि त तबके को मुख्मुय धा रा में ला ना है तो संवि धा न में संशो धन करना ही पड़ेगा ।
क्यों कि अगर ऐसा नहीं कि या तो सुप्सुप्री म को र्ट हर बा र टां ग अड़ा एगा और समा ज के वंचि त हमेशा वंचि त ही रह जा एँगेएँगे। इस तरह से पहला संवि धा न संशो धन अस्ति त्व में आया ।
पहला संविसंविधा न संशोसं शोधन [18 जूनजू 1951]
पंडि त नेहरू ने 1951 में ही संवि धा न में पहला संशो धन करवा या जो कि कुछ इस प्रका र था ;
अनुच्नुछेद 15 में एक नया क्लॉ ज़ 4 जो ड़ दि या गया जि समें लि खवा दि या गया कि अनुच्नुछेद 29(2) में चा हे कुछ भी क्यों न लि खा हो रा ज्य अगर चा हे तो सा मा जि क एवं शैक्षि क दृष्टिदृष्टि से पि छड़े हुए ना गरि कों को या एससी और एसटी वर्ग के उत्था न के लि ए को ई वि शेष उपबंध बना सकता है।
दूसदू रा संशो धन अनुच्नुछेद 31 में कि या गया । इसमें एक नया क्लॉ ज़ अनुच्नुछेद 31क जो ड़ा गया जि सके मा ध्यम से जमीं दा मीं रों एवं अन्य से लो क हि त में जमी न अधि ग्रग् हण करना आसा न कर दि या गया ।
इसके अला वा अनुच्नुछेद 31ख भी जो ड़ा गया जि सके तहत नौ वीं अनुसूनु सूची बना या गया और लि खवा दि या गया कि अगर नौ वीं अनुसूनु सूची में डा ला गया को ई प्रा वधा न मूलमू अधि का रों का हनन भी करता है तो उसे न्या या लय में चुनौचुनौती नहीं दी जा सकती है।
इसी लि ए 1951 का पहला संवि धा न संशो धन इतना महत्वपूर्ण बन गया क्यों कि इसने आरक्षण एवं जमीं दा मीं री प्रथा को समा प्त करना या नी कि भूमिभूमि सुधासुधार का रा स्ता सा फ कर दि या था ।
नो ट – यहाँ यह या द रखि ए जब पहला संवि धा न संशो धन 1951 में आया था तब तक पहला आम चुनाचुनाव भी नहीं हुआ था । पहला आम चुनाचुनाव 25 October 1951 से 21 February 1952 के बी च चला ।
पहला संवि धा न संशो धन को चुनौचुनौती
जब इस पहले संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से बहुत से जमीं दा मीं रों की जमी ने सरका र द्वा रा अधि गृहीगृ हीत कि ए जा ने लगे तब बि हा र के एक जमीं दा मीं र शंकरी प्रसा द ने अक्टूबर 1951 में इस पहले संवि धा न संशो धन को इस आधा र पर चुनौचुनौती दि या गया कि ये मूलमू अधि का रों का हनन करता है,
क्यों कि अनुच्नुछेद 13 में सा फ-सा फ लि खा है कि मूलमू अधि का रों को कम करने वा ली को ई भी वि धि उतने मा त्रात् रा में खा रि ज हो जा एंगीएं गी, जि तनी मा त्रात् रा में वे मूलमू अधि का रों का हनन करती है। इसी लि ए अनुच्नुछेद 368 के आधा र पर की गई संशो धन को असंवैधा नि क मा ना जा ना चा हि ए।
सुप्सुप्री म को र्ट ने कहा कि अनुच्नुछेद 368 के तहत संसद को मौ लि क अधि का रों सहि त संवि धा न के कि सी भी भा ग में संशो धन करने की शक्ति है, क्यों कि अनुच्नुछेद 13 में ” वि धि ” शब्द का जि क्र है ” संवि धा न संशो धन ” शब्द का नहीं ।हीं
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जब 17वें संवि धा न संशो धन 1964 के मा ध्यम से रा जस्था न में भी भूमिभूमि सुधासुधार को ला गू कि या गया और वहाँ के जमीं दा मीं रों से जमी ने ली जा ने लगी तो वहाँ के एक जमीं दा मीं र सज्जन सिं ह इस मा मले को लेकर न्या या लय पहुँच गया ।
इन्हो ने भी न्या या लय में वहीं बा तें कहीं जो शंकरी प्रसा द ने कही थी । या नी कि अनुच्नुछेद 13 के आधा र पर मूलमू अधि का र को कम करने वा ली वि धि यों को असंवैधा नि क घो षि त करना ।
सुप्सुप्री म को र्ट ने इस मा मले में भी वहीं फैसला सुनासुनाया जो शंकरी प्रसा द मा मले में सुनासुनाया था । या नी कि संसद अनुच्नुछेद 368 के तहत संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से मूलमू अधि का र में भी संशो धन कर सकती है।
गो लकना थ मा मला 1967
ये भी जमी न अधि ग्रग् हण का ही मा मला है। पंजा ब में जब हेनरी गो लकना थ और वि लि यम गो लकना थ की ज़मी नें छी नी गई तो वे सुप्सुप्री म को र्ट पहुँच गए।
दरअसल हुआ ये था कि पंजा ब सरका र के अधि नि यम Punjab Security of Land Tenures Act, 1953 के तहत इन दोनों भा इयों की ज़मी नें छी नी गई थी ।
और फि र इस अधि नि यम को 17वें संवि धा न संशो धन अधि नि यम 1964 के मा ध्यम से नौ वीं अनुसूनु सूची में डा ल दि या गया था ता कि इसे न्या या लय में चुनौचुनौती न दी जा सके।
तो गो लकना थ ने उस अधि नि यम को चुनौचुनौती दी और सा थ ही इसे नौ वीं अनुसूनु सूची में डा ले जा ने की वैधता को भी चुनौचुनौती दी। कुल मि ला कर इन्हो ने भी लगभग वहीं मुद्दामुद्दा उठा या जो कि शंकरी प्रसा द और सज्जन सिं ह मा मले में उठा या गया था ।
सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला
इस बा र सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला चौ का ने वा ला था क्यों कि इन्हो ने अपने जजमेंट में कहा कि (1) कि सी भी स्थि ति में संसद अनुच्नुछेद 368 का उपयो ग करके मूलमू अधि का र के सा थ छेड़-छा ड़ नहीं कर सकती है क्यों कि संवि धा न में संशो धन करना भी एक वि धि ही है।
(2) अब तक जो भी का नूननू इस संबंध में बन चुकेचुके है और जि स कि सी का भी जमी न छी ना जा चुकाचु का है उसको तो वा पस नहीं कि या जा सकता लेकि न अब से ये का नूननू अवैध हैं और इसका इस्तेमा ल अब और नहीं कि या जा सकता ।
इस तरह से सुप्सुप्री म को र्ट ने पहले दि ये गए अपने ही फैसले को बदल दि या और एक नयी व्यवस्था ला दी। जो कि सरका र के लि ए बहुत ही नि रा शा जनक था क्यों कि अगर जमीं दा मीं रों से या अन्य से जमी न नहीं ली जा ती तो फि र वि का स का र्य कैसे करती ।
उस समय इन्दि रा गां धी सत्ता में तो थी लेकि न का फी कमजो र स्थि ति में। इसका पता आर. सी . कूपर बना म भा रत सरका र मा मला 1970 से भी चलता है। ये बैंकों का रा ष्ट्री यकरण से संबन्धि त मा मला था । क्या था वो आइये इसे समझते हैं।
आर. सी . कूपर बना म भा रत सरका र मा मला 1970
उस समय की इन्दि रा गां धी की सरका र बैंकिं ग सुविसुविधा ओं को देश के दूरदू-दरा ज के इला कों या बैंकिं ग सुविसुविधा ओं से वंचि त क्षेत्रोंत् रों तक पहुंचा ना चा हती थी । ऐसा वो कर सकती थी क्यों कि
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अनुच्नुछेद 39 के ‘b’ और ‘c’ ऐसा करने की वजह भी देता है। अनुच्नुछेद 39 ‘b’ जहां – सा मूहिमूहिक हि त के लि ए समुदा मु य के भौ ति क संसा धनों के सम वि तरण पर बल देता है अनुच्नुछेद 39 ‘c’ – धन और उत्पा दन के संकेन्द्रद् ण को रो कने पर बल देता है।
1969 में इन्दि रा गां धी सरका र ने Banking Companies (Acquisition and transfer of undertaking) Ordinance ला या । जि सके तहत सरका र ने 14 बैंकों का रा ष्ट्री यकरण कि या ।
इन 14 बैंकों को डि पॉ ज़ि ट के आधा र पर चुनाचुना गया था या नी कि जि न बैंकों का डि पॉ ज़ि ट उस समय 50 करो ड़ से ज्या दा था उन्ही बैंकों को चुनाचुना गया था ।
इन्ही 14 बैंकों में से 2 बैंकों (बैंक ऑफ बड़ौ दा और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडि या ) के शेयरहो ल्डर आर सी कूपर थे।
आर सी कूपर की मुख्मुय समस्या क्षति पूर्ति व्यवस्था से थी । दरअसल सरका र द्वा रा ला ये गए अध्या देश में एक प्रा वधा न ये था कि बैंकों के अधि ग्रग् हण के बा द उसके शेयरहो ल्डर को जो क्षति पूर्ति मि लेगी वो आपसी समझौ ते पर आधा रि त हो गा । अगर ये समझौ ता वि फल रहता है तो ये मा मला अधि करण को सौं पसौं दि ये जा एँगेएँगेऔर फि र वहाँ जो रकम तय की जा एंगीएं गी वो शेयरहो ल्डर को 10 सा ल बा द दि या जा एगा ।
जबकि अनुच्नुछेद 31(2) के तहत ऐसे मा मलों में क्षति पूर्ति का प्रा वधा न ये था कि जब भी सरका र कि सी की संपत्ति को अधि गृहीगृ हीत करेगा तो उस संपत्ति के मा लि क या शेयरहो ल्डर को सरका र द्वा रा उतना क्षति पूर्ति दि या जा एगा जि तना उस समय के बा ज़ा र भा व के हि सा ब से बनता है।
ऐसी स्थि ति को देखते हुए, 1970 में आर. सी . कूपर ने भा रत सरका र के खि ला फ सुप्सुप्री म को र्ट में एक या चि का दायर कर दि या ।
सरका र का पक्ष ये था कि हमने तो रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व के तहत ये का म कि या है जबकि आर सी कूपर का ये कहना था कि इससे मेरा मौ लि क अधि का र हनन हुआ है।
सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला
सुप्सुप्री म को र्ट ने 10:1 से फैसला देते हुए कहा कि
(1) सरका र द्वा रा बना या गया का नूननू अनुच्नुछेद 14 का हनन करता है। क्यों ? क्यों कि सरका र ने सि र्फ 50 करो ड़ डि पॉ ज़ि ट वा ले बैंक को लि या , अन्य को छो ड़ कर उसने भेदभा व कि या ।
(2) ये का नूननू अनुच्नुछेद 31(2) का हनन करती है क्यों कि इस का नूननू में बता या गया क्षति पूर्ति व्यवस्था अनुच्नुछेद 31(2) से असंगत है।
1970 में आर. सी . कूपर वो केस जी त गया और सरका र केस हा र गयी । सुप्सुप्री म को र्ट ने एक बा र फि र से मौ लि क अधि का रों को रा ज्य के नी ति नि देशक की जगह वरी यता दि या ।
इन्दि रा गां धी का 1971 में दोबा रा सत्ता में आना
1971 के चुनाचुनाव में इन्दि रा गां धी जब पूर्ण बहुमत के सा थ सरका र में आई तो सबसे पहले उन्हो ने इन्ही सब को नि पटा या । कैसे?से
गो लकना थ जजमेंट को पलटना
इन्दि रा गां धी ने संवि धा न में 24वां संवि धा न संशो धन करके गो लकना थ मा मले को पलट दि या । जि समें कहा गया था कि संसद अनुच्नुछेद 368 के आधा र पर मूलमू अधि का र में को ई बदला व नहीं कर सकती है, अगर ऐसा कि या गया तो उसे अनुच्नुछेद 13 के आधा र पर शून्शूय कि या जा सकता है।
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सरका र ने 24वां संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से अनुच्नुछेद 13 में संशो धन करके क्लॉ ज़ 4 जो ड़ दि या और उसमें लि खवा दि या कि – इस अनुच्नुछेद की को ई बा त अनुच्नुछेद 368 के अधी न कि ए गए इस संवि धा न के कि सी संशो धन पर ला गू नहीं हो गी ।
इसी तरह अनुच्नुछेद 368 में भी ये लि खवा दि या गया कि – संवि धा न में कि सी बा त के हो ते हुए भी संसद संवि धा न के कि सी भी भा ग का संशो धन कर सकती है।
इस तरह से गो लकना थ मा मले को शून्शूय कि या गया और फि र से वही स्थि ति ला गू हो गई जो गो लकना थ मा मले 1967 से पहले था ।
आर सी कूपर मा मले को पलटना
गो लकना थ फैसले को पलटने के बा द, 25वां संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से आर. सी . कूपर मा मले के फैसले को पलट दि या गया । ये कैसे कि या गया ?
अनुच्नुछेद 31 ‘ग’ में ये लि खवा दि या कि –
(1) अनुच्नुछेद 13 में कि सी बा त के हो ते हुए भी , को ई वि धि जो रा ज्य के नी ति नि देशक तत्वों को ध्या न में रखकर बना यी जा ती है तो उसे इस आधा र पर शून्शूय नहीं मा नी जा एगी कि वो अनुच्नुछेद 14 या अनुच्नुछेद 19 का हनन करती है।
(2) ऐसी नी ति को प्रभा वी बना ने की घो षणा करने वा ली कि सी भी वि धि को न्या या लय में इस आधा र पर चुनौचुनौती नहीं दी जा सकती है कि यह ऐसी नी ति को प्रभा वि त नहीं करता है।
इस तरह से इन्दि रा गां धी ने बैंकों का रा ष्ट्री यकरण कि या ।
[फि र आगे चलकर 1978 में 44वें संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से संपत्ति के अधि का र को जो अनुच्नुछेद 19(1)(f) और अनुच्नुछेद 31 के तहत वर्णि त था । उसे वहाँ से हटा दि या गया और अनुच्नुछेद 300 ‘क’ के तहत इसे एक संवैधा नि क अधि का र बना दि या गया ]
अनुच्नुछेद 300क कहता है कि – कि सी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वि धि के प्रा धि का र से ही वंचि त कि या जा सकता है, अन्यथा नहीं ।हीं या नी कि अब वि धि के तहत कि सी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचि त कि या जा सकता है।
केशवा नन्द भा रती मा मला 1973
ये मा मला भी भूमिभूमि अधि ग्रग् हण से ही संबन्धि त है। केरल के मठ के संचा लक केशवा नन्द भा रती के मठ की भूमिभूमि का केरल भूमिभूमि सुधासुधार (संशो धि त) अधि नि यम 1969 के तहत अधि ग्रग् हण (Acquisition) कर लि या गया । और इस का नूननू को 29वें संवि धा न संशो धन 1972 द्वा रा 9वीं अनुसूनु सूची में डा ल दि या गया ।
केशवा नन्द भा रती ने सुप्सुप्री म को र्ट में या चि का डा ली और उन्हो ने अनुच्नुछेद 25, 26, 14, 19(1)(f) और अनुच्नुछेद 31 के तहत मि लने वा ली मौ लि क अधि का रों की रक्षा की मां ग की ।
इसके सा थ ही उन्हो ने 24वें संवि धा न संशो धन एवं 25 वें संवि धा न संशो धन को भी इस मा मले में शा मि ल कि या और कहा कि इस संशो धन के मा ध्यम से हमा रे मौ लि क अधि का रों का हनन हुआ है, खा सकर के अनुच्नुछेद 19(1)(f) के तहत मि लने वा ली संपत्ति का अधि का र।
सुप्सुप्री म को र्ट के सा मने प्रश्न
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1. क्या अनुच्नुछेद 368 के तहत, संवि धा न में संशो धन करने की संसद की शक्ति असी मि त है? दूसदू रे शब्दों में, क्या संसद संवि धा न के कि सी भी भा ग में संशो धन कर सकती है यहाँ तक सभी मौ लि क अधि का रों को छी नने की सी मा तक भी संवि धा न के कि सी भी हि स्से को बदल सकती है?
2. क्या 24वां और 25वां संवि धा न संशो धन वैध है?
सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला
सुप्सुप्री म को र्ट की 13 जजों की बेंच ने (जो अब तक की सबसे बड़ी बेंच है) 24 अप्रैल 1973 को 7:6 के बहुमत से एक ऐति हा सि क फैसला सुनासुनाते हुए कहा कि –
1. 24वां और 25वां संवि धा न संशो धन पूरी तरह से सही है।
हा लां कि 25वें संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से जो अनुच्नुछेद 31ग में संशो धन कि या गया था उसके दूसदू रे भा ग (जि समें ये बता या गया था कि उसके तहत बना ए गए नी ति को न्या या लय में चैलेंज नहीं कि या जा सकता है) को सुप्सुप्री म को र्ट ने असंवैधा नि क घो षि त कर दि या । इसके तहत न्या या लय ने कहा कि – न्या यि क समी क्षा संवि धा न की मूलमू वि शेषता है और इसी लि ए इसे छी ना नहीं जा सकता है।
2. संसद, संवि धा न के कि सी भी हि स्से को संशो धि त कर सकती है चा हे वो मूलमू अधि का र ही क्यों न हो । लेकि न संसद को ये हमेशा या द रखना हो गा कि संवि धा न संशो धन की शक्ति , संवि धा न को फि र से लि खने की शक्ति नहीं है।
तब सुप्सुप्री म को र्ट ने ‘संवि धा न की मूलमू संरचना ‘ व्यवस्था को सबके सा मने रखा । इस मा मले में सुप्सुप्री म को र्ट ने सा फ सा फ कहा कि संसद अनुच्नुछेद 368 की मदद से संवि धा न में हर प्रका र का संशो धन कर सकता है पर संसद संवि धा न के मूलमू ढां चे में को ई परि वर्तन नहीं कर सकता ।
क्या मूलमू ढां चा हो गा और क्या नहीं , हीं इसे सुप्सुप्री म को र्ट समय-समय पर बता ता रहेगा । [ये क्या है, इसके लि ए संवि धा न के मूलमू ढां चे (Basic Structure of the Constitution) को पढ़ सकते है।]
42वां संविसंविधा न संशोसं शोधन 1976
केशवा नन्द भा रती मा मले के फैसले (1973) आने के 2 सा ल बा द पूरे देश में आपा तका ल लगा दि या गया । इसी आपा तका ल के बी च 1976 में 42वां संवि धा न संशो धन कि या गया । इस संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से संवि धा न में इतनी बड़ी मा त्रात् रा में संशो धन कि या गया कि इसे लघु संवि धा न (Mini constitution) कहा जा ने लगा ।
केशवा नन्द भा रती मा मले द्वा रा सुप्सुप्री म को र्ट द्वा रा जो तय कि या गया था उसे इस 42वें संवि धा न संशो धन मा मले से उल्लंघन कि या गया । जैसे कि – सुप्सुप्री म को र्ट के न्या यि क समी क्षा की शक्ति को छी नने की शक्ति संसद को नहीं दी गई थी लेकि न फि र भी इस संशो धन अधि नि यम से ऐसा कि या गया ।
इसके तहत अनुच्नुछेद 368 में संशो धन करके क्लॉ ज़ 4 और 5 जो ड़ दि या गया , जि सका मूलमू भा व ये था कि अनुच्नुछेद 368 के तहत जो संवि धा न में संशो धन कि ए जा रहे हैं या जो कि ए गए है उसकी न्या यि क समी क्षा नहीं की जा सकती ।
दूसदू री बा त कि केशवा नन्द भा रती मा मले में सुप्सुप्री म को र्ट ने कहा था कि संसद, संवि धा न में संशो धन कर सकती है लेकि न संवि धा न को पुनःपुनः लि ख नहीं सकती है। 42वें संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से तो संवि धा न में इतने बदला व कि ए गए कि वो एक तरह से संवि धा न लि खने जैसा ही था ।
कुल मि ला कर रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व को मूलमू अधि का रों पर प्रभा वी बना या गया । खा सकर के उन अधि का रों पर जि सका उल्लेख अनुच्नुछेद 14, 19 और 31 में है।
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इन्ही प्रा वधा नों को मि नर्वा मि ल्स मा मले (1980) में सुप्सुप्री म को र्ट द्वा रा नि रस्त कि या गया । (यहाँ ये या द रखि ए कि 42वें संवि धा न संशो धन के कुछ प्रा वधा न को 44वें संवि धा न संशो धन 1978 द्वा रा भी नि रस्त कि या गया था ।)
मि नर्वा मि ल्स मा मला 1980
मि नर्वा मि ल्स एक टेक्सटा इल मि ल था जो कि कर्ना टक में अवस्थि त था । 1970 के आसपा स सरका र को लगा कि इस मि ल में उत्पा दन कम हो गया है। इसकी जां च के लि ए Industries Development Act 1951 के तहत एक समि ति गठि त कर दि या गया ।
1971 के अक्तूबतूर में समि ति ने अपनी रि पो र्ट सरका र को सौं पीसौं पी (1971 के मा र्च में ही चुनाचुनाव हुआ था जि समें इन्दि रा गां धी भा री बहुमत से सत्ता में आयी थी )। सरका र को जैसे ही रि पो र्ट मि ली सरका र ने Industries Development Act 1951 के तहत मि नर्वा मि ल्स के प्रबंधन को National Textile Corporation Ltd. को सौं पसौं दि या गया ।
बा द में Sick Textile Undertakings (Nationalisation) Act, 1974 के तहत सरका र इसे रा ष्ट्री यकृत करके टेकओवर कर लि या । और 39वें संवि धा न संशो धन के मा ध्यम से उसे नौं वीनौं वी अनुसूनु सूची में डा ल दि या गया ता कि उसकी न्या यि क समी क्षा न हो सके।
[लेकि न बा त सि र्फ इतनी नहीं थी क्यों कि इन्दि रा गां धी बना म रा जना रा यन केस में इला हा बा द उच्च न्या या लय ने इन्दि रा गां धी के द्वा रा 1971 में लड़े गए चुनाचुनाव को अवैध घो षि त कर दि या था । आइये थो ड़ा इसे समझ लेते हैं।]
इन्दि रा गां धी बना म रा जना रा यन मा मला
1971 के चुनाचुनाव में इन्दि रा गां धी रा यबरेली से चुनाचुनाव जी ती थी लेकि न उपवि जेता रा जना रा यन ने इन्दि रा गां धी के जी त को इला हा बा द उच्च न्या या लय में इस आधा र पर चुनौचुनौती दी की , इन्हो ने सरका र में रहते हुए अपने चुनाचुनावी फा यदेके लि ए सरका री अधि का री और सरका री संसा धन का इस्तेमा ल कि या । जो कि जन-प्रति नि धि त्व अधि नि यम 1951 की धा रा 123(7) का उल्लंघन है।
12 जूनजू 1975 को इला हा बा द उच्च न्या या लय ने इसे सही मा ना और इन्दि रा गां धी के इस चुनाचुनाव को रद्द कर दि या सा थ ही अगले 6 सा ल तक चुनाचुनाव लड़ने पर भी रो क लगा दी।
इसका मतलब ये था कि अब इन्दि रा गां धी को सरका र से त्या गपत्रत् देना पड़ता और सरका र गि र जा ती । लेकि न श्रीश् रीमती गां धी ने ऐसा नहीं कि या उन्हो ने इसे सुप्सुप्री म को र्ट में चैलेंज कि या (इसकी एक वजह ये भी थी कि उस समय मुख्मुय न्या या धी श ए एन रे थे और उन्हे श्रीश् रीमती गां धी का मनपसंद न्या या धी श मा ना जा ता है)।
खैर जो भी हो उन्हो ने 25 जूनजू 1975 को देश में आपा तका ल लगा दि या और अगस्त 1975 में 39वां संवि धा न संशो धन कि या । जि सके तहत मि नर्वा मि ल्स के मा मले को तो नौं वीनौं वी अनुसूनु सूची में डा ला ही गया सा थ ही कुछ अन्य बदला व भी संवि धा न में कि ए गए।
जैसे कि – अनुच्नुछेद 329 में संशो धन करके एक नया भा ग अनुच्नुछेद 329A जो ड़ा गया , जि सके तहत 6 क्लॉ ज़ थे। जि समें मुख्मुय रूप से यही कहा गया था कि प्रधा नमंत्मं रीत् री के चुनाचुनाव को कि सी भी न्या या लय में चुनौचुनौती नहीं दी जा सकती है।
खा सकर के इसका चौ था क्लॉ ज़ का फी वि वा दि त था जि समें मूलमू रूप से ये लि खा हुआ था कि संवि धा न के 39वें संशो धन से पहले संसद द्वा रा बना या गया को ई भी का नूननू जो चुनाचुनाव के वि रुद्ध में या चि का दायर करने से संबन्धि त हो , इस तरह के चुनाचुनाव को शून्शूय करा र नहीं देसकता ।
सुप्सुप्री म को र्ट के सा मने प्रश्न
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सुप्सुप्री म को र्ट के सा मने यही प्रश्न था कि (1) क्या अनुच्नुछेद 329A का क्लॉ ज़ 4 संवैधा नि क है? (2) क्या इन्दि रा गां धी के चुनाचुनाव को शून्शूय करा र दि या जा सकता है।
सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला
नवम्बर 1975 में सुप्सुप्री म को र्ट ने फैसला सुनासुनाते हुए इन्दि रा गां धी के चुनाचुनाव को तो वैध करा र देदि या लेकि न इसके सा थ ही अनुच्नुछेद 329ए के चौ थे क्लॉ ज़ को अवैध करा र दि या गया और सा थ ही कहा कि स्वतंत्रत् एवं नि ष्पक्ष चुनाचुनाव संवि धा न का मूलमू ढां चा है। (हा लां कि 1978 के 44वें संवि धा न संशो धन के तहत इस पूरे अनुच्नुछेद 329ए को ही नि रस्त कर दि या गया )
दूसदू री बा त उन्हो ने का नूननू के शा सन को संवि धा न का मूलमू ढां चा मा ना और ये स्था पि त करने की को शि श की कि का नूननू से ऊपर को ई भी नहीं है।
तो कहने का अर्थ ये है कि संवि धा न में 42वां संशो धन करके इतनी सा री ची जों को बदलने के पी छे एक का रण ये भी था । अब मि नर्वा मि ल्स मा मले पर आते हैं
मि नर्वा मि ल्स…….
हमने ऊपर देखा कि कि स तरह से सरका र ने मि नर्वा मि ल्स को रा ष्ट्री यकृत कि या और उसे अपने कब्जे में ले लि या । मि नर्वा मि ल्स का पक्ष
इन्हो ने मि नर्वा मि ल्स के रा ष्ट्री यकरण के ऑर्डर को चैलेंज कि या , सा थ ही इनकी तरफ से Sick Textile Undertakings (Nationalisation) Act, 1974 के कुछ प्रा वधा नों को भी चैलेंज कि या गया जैसे कि धा रा 5(b), 19(3), 21, 25 आदि ।
42वें संवि धा न संशो धन अधि नि यम 1976 के धा रा 4 और धा रा 55 को चैलेंज कि या गया
इसके अला वा मौ लि क अधि का र के ऊपर नी ति नि देशक तत्वों की सर्वो च्चता को भी चैलेंज कि या गया । सुप्सुप्री म को र्ट के सा मने प्रश्न
42वें संवि धा न संशो धन के धा रा 4 के तहत अनुच्नुछेद 31C में और धा रा 55 के तहत अनुच्नुछेद 368 में जो परि वर्तन कि या गया है, क्या वो संवि धा न के मूलमू ढां चे को हा नि पहुंचा ता है?
क्या रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व को मौ लि क अधि का र के ऊपर सर्वो च्च मा ना जा सकता है?
42वें संवि धा न संशो धन की धा रा 4
इस संशो धन अधि नि यम के धा रा 4 के मा ध्यम से अनुच्नुछेद 31C में परि वर्तन कर दि या गया था । जहां पहले ये लि खा हुआ था कि – अनुच्नुछेद 39 ख और ग के आधा र पर बना या गया को ई वि धि इस आधा र पर शून्शूय करा र नहीं दि या जा सकता कि वो अनुच्नुछेद 14 या 19 का उल्लंघन करती है।
अब इसमें बदला व करके ये लि खवा दि या गया था कि रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व के कि सी भी प्रा वधा न के तहत अगर को ई वि धि बना यी जा ती है तो उसे इस आधा र पर खा रि ज नहीं कि या जा एगा कि वो अनुच्नुछेद 14 या अनुच्नुछेद 19 का हनन करती है। इसी को मौ लि क अधि का र पर DPSP की सर्वो च्चता कहा गया ।
42वें संवि धा न संशो धन की धा रा 55
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इस धा रा के मा ध्यम से अनुच्नुछेद 368 में क्लॉ ज़ 4 और 5 जो ड़ा गया , जि सके प्रा वधा न नि म्न थे –
4 – संवि धा न का को ई भी संशो धन (मूलमू अधि का रों में संशो धन सहि त) जो अनुच्नुछेद 368 के तहत संशो धि त कि या है भले ही वो धा रा 55 के आने से पहले का हो या उसके बा द का हो ; न्या या लय में उसको कि सी भी आधा र पर चुनौचुनौती नहीं दी जा सकती है।
5 – संदेह को दूरदू करने के लि ए, यह घो षि त कि या गया है कि अनुच्नुछेद 368 के तहत संवि धा न के प्रा वधा न में संशो धन या नि रस्त करने के लि ए संसद की घटक शक्ति पर को ई सी मा नहीं हो गी ।
सुप्सुप्री म को र्ट का फैसला
सुप्सुप्री म को र्ट ने 4:1 से फैसला सुनासुनाते हुए कहा कि (1) 42वें संवि धा न संशो धन अधि नि यम की धा रा 4 और 55 असंवैधा नि क है। संसद की संवि धा न संशो धन करने की शक्ति असी मि त नहीं है, क्यों कि संसद की संवि धा न संशो धन करने की सी मि त शक्ति ही संवि धा न का मूलमू ढां चा है। (2) Nationalization Act 1974 के वैधता को सही मा ना गया ।
इस तरह से फि र से एक बा र मौ लि क अधि का रों के महत्व को रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व से ज्या दा मा ना गया और मौ लि क अधि का रों एवं नी ति नि देशक सि द्धां तों के बी च सौ हा र्दएवं संतुलतु न को संवि धा न का मूलमू ढां चा मा ना गया । ये रहा मूलमू अधि का रों एवं नि देशक तत्वों में टकरा व के कुछ सबसे महत्वपूर्ण मा मले, उम्मी द है समझ में आया हो गा । संवि धा न की मूलमू संरचना का लि स्ट देखने के लि ए दि ये गए लिं क को वि जि ट करें।