Procedure established by law

Procedure established by law

वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या और वि धि की सम्यक प्रक्रि या का वि श्लेषण 

वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या और वि धि की सम्यक प्रक्रि या को समझना बहुत ही जरूरी हो जा ता है जब हम अपने मौ लि क अधि का र के अंतर्गत आने वा ले स्वतंत्रत् ता का अधि का र पढ़ रहे हों ; 

इस लेख में हम ‘वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या (Procedure established by law)‘ और ‘वि धि की सम्यक प्रक्रि या (Due process of law)‘ पर सहज और सरल चर्चा करेंगे, एवं इसके वि भि न्न महत्वपूर्ण पहलुओंलु ओंको समझने का प्रया स करेंगे। 

वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या और वि धि की सम्यक प्रक्रि या में अंतर (Difference between procedure established by law and due process of law) 

अनुच्नुछेद 21 (जो कि प्रा ण एवं दैहि क स्वतंत्रत् ता से संबन्धि त है) में लि खा गया है वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या के तहत ही कि सी को उसके प्रा ण एवं दैहि क स्वतंत्रत् ता से वंचि त कि या जा सकता है। 

इसका सी धा सा मतलब ये है रा ज्य अगर चा हे तो कि सी व्यक्ति की जा न भी ले सकता है लेकि न ऐसा वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या के तहत ही कि या जा सकता है। 

दूसदू रे शब्दों में कहें तो रा ज्य अगर एक वि धि बना ती है कि कि सी को थप्पड़ मा रने पर उम्रम् क़ैद की सजा हो गी , तो हो गी । क्यों कि रा ज्य ने, इस वि धि को बना ने के लि ए जि तने भी प्रो सी जर हो ते हैं; सबको फॉ लो कि या है। यही वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या या नी कि procedure established by law की मूलमू बा त है। 

लेकि न समस्या ये आती है कि क्या सि र्फ थप्पड़ मा रने के लि ए कि सी को उम्रम् क़ैद की सजा देना उचि त है। अगर ये उचि त नहीं है तो फि र इसे उचि त कैसे बना या जा सकता है? इसी के लि ए एक कॉ न्सेप्ट है जि से – वि धि की सम्यक प्रक्रि या या नी कि due process of law कहा जा ता है। आइये इन दोनों को वि स्ता र से समझते हैं; 

वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या (Procedure established by law)

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? हमा रे संवि धा न के भा ग 3 के अनुच्नुछेद 21, जो कि प्रा ण एवं दैहि क स्वतंत्रत् ता का अधि का र देता है; में ये लि खा हुआ है कि कि सी भी व्यक्ति से ‘वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या ‘ द्वा रा ही प्रा ण एवं दैहि क स्वतंत्रत् ता का अधि का र छी ना जा सकता है। 

हम जा नते हैं कि संसद में का नूननू बना ने की एक नि श्चि त प्रक्रि या हो ती है। अगर उसी नि श्चि त प्रक्रि या से का नूननू बना या जा ता है भले ही का नूननू कि तना ही बुराबुरा क्यों न हो , उसके प्रा वधा न कि तने ही अलो कतां त्रि क क्यों न हो , उस का नूननू में नि हि त तत्व भले ही संवि धा न के मौ लि क अधि का रों का हनन करने वा ला क्यों न हो ; तो , इसे ही ‘वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या ‘ कहा जा ता है। 

या नी कि संवि धा न द्वा रा तय मा नदंडों पर का नूननू बना ना भले ही उस का नूननू की प्रकृति कुछ भी क्यों न हो । ये संसदीय सर्वो च्चता का प्रती क है क्यों कि इसमें संसद को बेशुमाशुमार शक्ति याँ मि ल जा ती है। 

? दूसदू री भा षा में इसे समझें तो जि स देश में वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या अपना ई जा ती है। उस देश का संसद सबसे ता कतवर हो ता है। क्यों कि जैसे ही उस का नूननू को वहाँ के सुप्सुप्री म को र्ट में चैलेंज कि या जा एगा । को र्ट के हा थ बंधे हों गे। को र्ट उस का नूननू का , न्या यि क समी क्षा के ना म पर बस इतना देख सकता है कि का नूननू बना ने की प्रक्रि या ठी क है कि नहीं ।हीं का नूननू के अंदर जो नि हि त तत्व है उसे वो हा थ भी नहीं लगा सकता है। 

ब्रि टेन में यहीं प्रक्रि या अपना यी जा ती है। इसी लि ए वहाँ का सबसे ता कतवर संस्था संसद है। संसद ने एक बा र अगर को ई का नूननू बना दी तो वो पत्थर की लकी र बन जा ती है। 

? इसे एक उदाहरण से समझते हैं- मा न लेते हैं कि ब्रि टेन के संसद ने एक का नूननू बना या कि चो री करने वा ले को सी धे फां सी की सजा दी जा एगी । अब सो चि ए कि ऐसी स्थि ति में क्या हो गा । 

चो री के अभि युक्युत वहाँ के सबसे उच्च अदालत में जा ते हैं और अदालत से गुहागुहार लगा ते है कि बस 10 डॉ लर ही तो चुराचुराया था इसके लि ए फां सी की सज़ा क्यों । 

अब अदालत भी जा नता है कि इसके लि ए फां सी की सजा नहीं दी जा सकती , यहाँ तक की पूरा देश जा नता है कि इसके लि ए फां सी की सजा नहीं दी जा नी चा हि ए। 

पर अदालत कुछ नहीं कर सकता , चूंकि देश के संसद ने ऐसा का नूननू बना या है; भले ही ये का नूननू ठी क नहीं है पर का नूननू बना ने की प्रक्रि या पूरी तरह से दुरुदुस्त है। और इस तरह से वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या के का रण अदालत को उसे फां सी की सज़ा सुनासुनानी ही पड़ेगी । 

? भा रत के संवि धा न के अनुच्नुछेद 21 में भी तो यहीं लि खा हुआ है कि वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या के द्वा रा अगर कि सी को मृत्मृयु दंड भी देना हो तो दी जा सकती है। 

पर गौ र करें तो भा रत में सुप्सुप्री म को र्ट का नूननू बना ने की प्रक्रि या की समी क्षा भी करता है और उसमें नि हि त तत्व का भी । या नी कि सुप्सुप्री म को र्ट के नजर में का नूननू बना ने की प्रक्रि या तो ठी क हो नी ही चा हि ए सा थ ही सा थ उस का नूननू में जो लि खा है वो भी ठी क हो नी चा हि ए। 

का नूननू में कुछ भी गलत लगने पर सुप्सुप्री म को र्ट उस का नूननू को रद्द भी कर देता है। अब सवा ल आता है कि ऐसा क्यूँ हो ता है? जबकि संवि धा न के अनुच्नुछेद 21 में तो वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या के बा रे में सा फ-सा फ लि खा है, तो क्या सुप्सुप्री म को र्ट इसका उल्लंघन करते हैं? 

इसे समझने के लि ए आइये पहले वि धि की सम्यक प्रक्रि या या Due process of law के बा रे में जा नते हैं। 

नो ट – यहाँ दो मा मले को समझना का फी जरूरी है (1) ए के गो पा लन मा मला (2) बंदी प्रत्यक्षी करण मा मला । इस लेख की बेहतर समझ के कम से कम पहले वा ले को जरूर पढ़ें।

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वि धि की सम्यक प्रक्रि या (Due process of law) 

ये भी ब्रि टेन से ही नि कला है, ब्रि टेन ने इसे अपना या नहीं पर अमेरि का को ये प्रा वधा न सूट कर गया और उसने इसे अपना लि या । 

? वि धि की सम्यक प्रक्रि या का मतलब हो ता है का नूननू तो स्था पि त प्रक्रि या के तहत ही बना या जा एगा पर जब न्या यपा लि का उस का नूननू की समी क्षा करेंगे तो वे न सि र्फ का नूननू बना ने की प्रक्रि या की समी क्षा करेंगे बल्कि उस का नूननू में क्या लि खा है, उसकी भी समी क्षा करेंगे। 

और इसका मतलब ये हो ता है कि न्या या लय को अगर उस का नूननू में कुछ भी ऐसी बा तें नजर आती है जो संवि धा न सम्मत नहीं है या मौ लि क अधि का रों का हनन करने वा ला है तो उस का नूननू को रद्द कि या जा सकता है। 

आप समझ रहे हों गे कि कि स तरह वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या में जहां सि र्फ प्रक्रि या पर ध्या न दि या जा ता है, वहीं वि धि की सम्यक प्रक्रि या में प्रक्रि या के सा थ-सा थ उसमें नि हि त तत्व पर भी ध्या न दि या जा ता है। 

या नी कि इसमें संसद शक्ति शा ली नहीं हो ती बल्कि उसे भी इस बा त का डर रहता है कि अगर का नूननू ठी क से नहीं बना या गया तो न्या यपा लि का इसे रद्द भी कर सकती है। 

? अब पहले जो उदाहरण दि या गया है – मा न ली जि ये कि वो घटना अब अमेरि का में हो ता जहां पर ‘वि धि की सम्यक प्रक्रि या ‘ का म करती है। तो ऐसी स्थि ति में अदालत उस का नूननू को रद्द कर सकती थी और ये कह सकती थी कि सि र्फ छो टी से चो री के लि ए कि सी से उसका जी वन नहीं छी ना जा सकता है। 

भा रत में भी कुछ ऐसा ही हो ता । यहाँ के न्या या लय भी कुछ इसी तरह का फैसला सुनासुनाते। 

? अब भा रत की बा त करें तो यहाँ अजी ब मा मला है। अनुच्नुछेद 21 में लि खा है ‘वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या ’ पर व्यवहा र में सा रा का सा रा का म हो ता है ‘वि धि की सम्यक प्रक्रि या ’ द्वा रा । 

ऐसा क्यूँ हो ता है? और अगर ये हो ता है तो फि र अनुच्नुछेद 21 में लि खे उस वा क्य का मतलब ही क्या रह जा एगा । दरअसल ऐसा कई का रणों से हो ता है। 

? इसका एक का रण तो ये है कि अनुच्नुछेद 13 में लि खा है कि मूलमू अधि का रों को कम या खत्म करने वा ला को ई भी का नूननू नहीं बना या जा सकता । 

या नी कि अगर उसी उदाहरण को लें तो , वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या के तहत भा रत में भी उस अभि युक्युत को फां सी दे दी जा नी चा हि ए। पर अनुच्नुछेद 20 के तहत अपरा ध के लि ए दोषसि द्धि के संबंध संरक्षण मि लता है। अनुच्नुछेद 21 के तहत जी ने का अधि का र तो मि लता ही है और अनुच्नुछेद 22 के तहत गि रफ्ता री से भी संरक्षण मि लता है। 

? पर सबसे बड़ा संरक्षण मि लता है, अनुच्नुछेद 13 से। इसके तहत सुप्सुप्री म को र्ट प्रक्रि या का तो समी क्षा करता ही है सा थ ही सा थ उस का नूननू में नि हि त तत्व को भी । 

या नी कि अनुच्नुछेद 21 में लि खा ‘वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या ’ सि र्फ अनुच्नुछेद 21 पर ला गू हो सकता है, जबकि अनुच्नुछेद 13 तो पूरी की पूरी मूलमू अधि का र पर ला गू हो ता है। इसका मतलब है कि अनुच्नुछेद 21 पर भी ला गू हो गा । 

संवि धा न की मूलमू संरचना (Basic Structure of the Constitution) 

न्या या लय को एक तो अनुच्नुछेद 13 से शक्ति मि लती है और दूसदू री शक्ति अनुच्नुछेद 32 से तो मि लती ही है। पर 1973 में सुप्सुप्री म को र्ट को एक इससे भी बड़ी एक शक्ति मि ली , जो सुप्सुप्री म को र्ट को इतनी शक्ति देती है जि तना की बहुत से मा मलों में वि धि की सम्यक प्रक्रि या भी नहीं देता है।

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वो शक्ति है सुप्सुप्री म को र्ट की ‘संवि धा न की मूलमू संरचना ‘ की व्या ख्या करने की शक्ति । या फि र दूसदू रे शब्दों में कहें तो संवि धा न की मूलमू संरचना को आधा र बना कर न्या यि क समी क्षा करने की शक्ति । 

अब ये ‘संवि धा न की मूलमू संरचना ‘ का जो सि द्धां त है, इसे जा नना बहुत जरूरी है। सुप्सुप्री म को र्ट ने 1973 के एक नि र्णय में कहा कि संसद संवि धा न के मूलमू आत्मा या मूलमू संरचना के सा थ छेड़-छा ड़ नहीं कर सकता है। 

अगर सुप्सुप्री म को र्ट को लगता है कि को ई का नूननू संवि धा न के मूलमू संरचना को खत्म कर रहा है तो उसे नि लंबि त कि या जा सकता है। या नी कि अगर संसद कल को को ई ऐसा का नूननू बना ता है जो संसद को शक्ति शा ली बना ता हो या वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या को ला गू करता हो तो , सुप्सुप्री म को र्ट उस का नूननू को ‘संवि धा न की मूलमू संरचना ‘ का हनन करने वा ला का नूननू बता कर तुरंतुरंत उसे खा रि ज कर देगा । 

इसके आधा र पर न जा ने अब तक कि तने ही का नूननू ख़ा रि ज़ कि ए जा चूकें हैं। अनुच्नुछेद 13 तो केवल मूलमू अधि का र पर ही ला गू हो ता है लेकि न न्या या लय की ये शक्ति पूरे संवि धा न पर ला गू हो ती है। 

ये कुछ का रणे है जि सके तहत वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या गौ ण सा हो गया है, और ‘वि धि की सम्यक प्रक्रि या ‘ संवि धा न में न लि खा हो ने के बा वजूदजू भी व्यवहा र में चल रहा है। 

उम्मी द है आप वि धि द्वा रा स्था पि त प्रक्रि या और वि धि की सम्यक प्रक्रि या समझ गए हों गे। एक क्रम से संवि धा न को अच्छी तरह से समझने के लि ए यहाँ क्लि क करें। 

References,  

एम लक्ष्मी का न्त 

↗️

मूलमू संवि धा न भा ग 3 

ए के गो पा लन मा मला 1950 और मेनका गां धी मा मला 1978 

मूलमू अधि का रों एवं नि देशक तत्वों में टकरा व 

https://www.india.gov.in/my-government/constitution-india/constitution-india-full-text