संवि धा न की बेसि क्स (UPSC) वि स्तृततृ आधा रभूतभू चर्चा
इस लेख में हम संवि धा न की बेसि क्स पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इससे संबंधि त सभी जरूरी प्रश्नों के उत्तर समझेंगे, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
“Constitution is not a mere lawyer’s document, it is a vehicle of Life, and its spirit is always the spirit of Age.”
“The Indian Constitution is workable and flexible enough to meet the demands and the challenges of the ever-changing times.”
– B. R. Ambedkar
“We are a socialist, secular, and democratic republic, and the ideals of justice, liberty, equality, and fraternity enshrined in our Constitution are precious to us.”
– Pranab Mukherjee
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संविसंविधा न की बेसि क्स
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| संविसंविधा न क्या है?
संवि धा न का आशय ‘’श्रेश् रेष्ठ वि धा न’’ से है; या नी कि ऐसा वि धा न जो इतना श्रेश् रेष्ठ है कि कि सी व्यक्ति , समा ज या संस्था को उसमें श्रश्द्धा रखने के लि ए बा ध्य करता है या उचि त तर्क प्रस्तुततु करता है।
मो टे तौ र पर कहें तो ये एक ऐसा दस्ता वेज़ हो ता है जो ‘व्यक्ति ’ और ‘रा ज्य’ के बी च सम्बन्धों को स्पष्ट करता है। कैसे?
– एक लो कतां त्रि क देश में व्यक्ति स्वतंत्रत् ता का प्रती क हो ता है या यूं कहें कि लो कतंत्रत् की अवधा रणा ही इसी बा त पर टि की हुई है कि व्यक्ति स्वतंत्रत् रहें।
वहीं दूसदू री ओर रा ज्य शक्ति का प्रती क हो ता है या नी कि देश को चला ने के लि ए सा री की सा री आवश्यक शक्ति याँ रा ज्य के पा स हो ती है।
ऐसे में रा ज्य अपनी शक्ति यों का गलत उपयो ग न करें और व्यक्ति अपनी आजा दी का गलत उपयो ग न करें, इन्ही दोनों में संतुलतु न स्था पि त करने के लि ए जो दस्ता वेज़ बना ए जा ते हैं, वही संवि धा न है।
| कि सी देश को संवि धा न की जरूरत ही क्यों पड़ती है?
जैसा कि हमने ऊपर बा त की संवि धा न एक श्रेश् रेष्ठ वि धा न हो ता है ऐसे में सभी देश (चा हे वो लो कतंत्रत् हो या न हो ) इस तरह के वि धा न को सूची बद्ध करना चा हेगा ता कि देश या रा ष्ट्र जो भी हो , चलती रहे।
उदाहरण के लि ए अफ़ग़ा नि स्ता न के ता लि बा न को लें तो वे शरि या का नूननू के हि सा ब से देश को चला ना चा हता है या नी कि हम ये समझ सकते हैं कि वो अपने देश का संवि धा न उस शरि या का नूननू को ही मा नता है।
कुल मि ला कर यहाँ कहने का भा व ये है कि जि न देशों के पा स संवि धा न है जरूरी नहीं है वो लो कतां त्रि क देश ही हो , उदाहरण के लि ए आप कुछ इस्ला मि क देश को ले सकते हैं जैसे कि सऊदी अरब, ईरा न आदि । ईरा न एक धर्मतंत्रत् आधा रि त देश है जो थो ड़े-बहुत लो कतां त्रि क मूल्मूयों को अपने में समेटे हुआ है पर संवि धा न तो है।
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यहीं पर कॉ न्सेप्ट आता है संवि धा न और संवि धा नवा द का , ये क्या ची ज़ है आइये समझते हैं।
जैसे कि हमने ऊपर अफ़ग़ा नि स्ता न का उदाहरण लि या जहां पर ता लि बा न का शा सन है। जि सका कि संवि धा न शरि या या शरी यत है। यहाँ पर शा सन को संभा लने वा ले जो मुट्मुठी भर लो ग है वो अप्रति बंधि त शक्ति यों का इस्तेमा ल करता है जबकि दूसदू री ओर जनता के ऊपर ढ़ेरों प्रति बंध है।
कहने का अर्थ ये है कि उस देश के सभी लो ग संवि धा न के अनुसानु सार नहीं चलते है बल्कि कुछ लो ग उससे भी ऊपर है जो कि अपने सुविसुविधा नुसानु सार संवि धा न को रूप देसकता है। इसी स्थि ति को कहा जा सकता है कि वहाँ संवि धा न तो है लेकि न संवि धा नवा द नहीं ।हीं इसे दूसदू रे शब्दों में कहा जा सकता है कि वहाँ जी वंत संवि धा न नहीं है।
यहाँ पर ये या द रखि ए कि संवि धा न संहि ता बद्ध (codified) भी हो सकती है और नहीं भी । संहि ता बद्ध संवि धा न का मतलब सा रे संवैधा नि क प्रा वधा नों का एक ही दस्ता वेज़ में सम्मि लि त हो ना है।
कुछ देशों को छो ड़ देंतो दुनिदुनिया के ज़्या दातर देश के पा स एक संहि ता बद्ध संवि धा न है जैसे कि भा रत, ब्राब् राज़ी ल, फ्रां स, अमेरि का आदि …..। कुछ ऐसे भी देश हैं जो एक लो कतंत्रत् तो है लेकि न वहाँ पर संहि ता बद्ध संवि धा न नहीं है जैसे कि यूना इटेड किं गडम, न्यूजी लैंड, इस्रा इल आदि ।
इतना समझने के बा द अब अगर हम ये समझें कि कि सी देश को संवि धा न की जरूरत क्यों पड़ती है तो कुल मि ला कर कि सी देश को संवि धा न की जरूरत पड़ती है;है
क्यों कि संवि धा न उन आदर्शों या बुनिबुनिया दी नि यमों को सूची बद्ध करता है जि नके आधा र पर ना गरि क अपने देश को अपने इच्छा और जरूरत के अनुसानु सार रच सकता है। ऐसा कैसे?
हमा री कुछ व्यक्ति गत, पा रि वा रि क या सा मा जि क आकां क्षा एँ हो ती है कि का श! ची ज़ें ऐसी हो ती । जैसे कि अगर हम ये सो चते हैं कि का श! सा मा जि क-आर्थि क असमा नता पूरी तरह से खत्म हो जा ता । जा हि र है संवि धा न में हम ऐसी व्यवस्था को शा मि ल करके इसे हा सि ल कर सकते है।
कि सी देश को संवि धा न की जरूरत पड़ती है;है
क्यों कि संवि धा न ये स्पष्ट करता है कि समा ज में नि र्णय लेने की शक्ति कि सके पा स हो गी और सरका र कैसे बनेगी । या नी कि दूसदू रे शब्दों में कहें तो संवि धा न देश की रा जनी ति क व्यवस्था को तय करता है।
यहाँ रा जनी ति क व्यवस्था का मतलब हमा री आम समस्या ओं या बुनिबुनिया दी समस्या ओं से छुटका रा दि ला ने एवं हमा री वि का स को सुनिसुनिश्चि त करने वा ली औपचा रि क व्यवस्था से है।
कि सी देश को संवि धा न की जरूरत पड़ती है;है
क्यों कि संवि धा न व्यक्ति और रा ज्य के लि ए एक लक्ष्मण रेखा खीं चखीं ती है ता कि दोनों को हमेशा पता रहे कि हमें इसी के दायरे में रहना है। दूसदू रे शब्दों में कहें तो संवि धा न हमें खुदखु से ही खुदखु को बचा ता है। ऐसा क्यों ?
ऐसा इसी लि ए क्यों कि इंसा नी फ़ि तरत हो ता है बंधनों से मुक्मुत हो ना पर ऐसा व्यक्ति गत नि र्णय कभी -कभी समा ज के लि ए या खुदखु उसके लि ए घा तक सा बि त हो सकता है ऐसे में संवि धा न ऐसी ची ज़ें न करने को बा ध्य करता है।
इस बा त को आप और भी अच्छी तरह से समझेंगे जब मौ लि क अधि का र आप समझ लेंगे। आपके अंदर ये बो ध आ जा एगा कि बेशक बंधनों से मुक्मुत हो ना हमा री फ़ि तरत है पर युक्तियुक्ति युक्युत बंधन हमा री जरूरत है।
कि सी देश को संवि धा न की जरूरत पड़ती है;है
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क्यों कि संवि धा न अल्पसंख्यकों तथा समा ज के कमजो र एवं पि छड़े वर्ग के हि तों की रक्षा करता है। ऐसा ये अंतर–सा मुदा मु यि क वर्चस्व (inter-community domination) एवं अंतः –सा मुदा मु यि क वर्चस्व (intra community domination) के नि रंकुशता को क़ा बू करके करता है।
[नो ट – यहाँ अंतर–सा मुदा मु यि क वर्चस्व का मतलब एक समुदा मु य द्वा रा दूसदू रे समुदा मु य को अपने हि सा ब से चला ने से है वहीं अंतः –सा मुदा मु यि क वर्चस्व का मतलब एक ही समुदा मु य के भी तर कुछ सा मा जि क-आर्थि क रूप से सा मर्थ्य वा न लो गों द्वा रा दूसदू रे लो गों को चला ये जा ने की को शि श करने से है।]
Q. आम आदमी को संवि धा न क्यों पढ़ना चा हि ए?
आमतौ र पर हमा री सा मा न्य धा रणा यही हो ती है कि संवि धा न पढ़ना रा जनी ति वि ज्ञा न के छा त्रोंत् रों का का म है पर चूंकि हम एक संवैधा नि क व्यवस्था वा ले देश में रहते हैं जहां हमा रे नि र्णय इससे प्रभा वि त हो ता है तो हमें इसके बा रे में जरूर पढ़ना चा हि ए और इससे हमें क्या फ़ा यदा मि लेगा आइये जा नते हैं;
1. हमें रा ज्य की संरचना एवं शक्ति यों के वि भा जन का ज्ञा न हो ता है–
हम जा न पा ते हैं कि हमा रा रा ज्य ती न ऊर्ध्वा धर (vertical) खंडोंखं डों में वि भक्त है जि से कि हम केंद्रद् (centre), रा ज्य (state) एवं स्था नी य स्व-शा सन (local governance) कहते हैं। और इनके बी च शक्ति यों का वि भा जन इस कुछ इस तरह से हुआ है कि केंद्रद् परि वा र की मुखिमुखिया की भूमिभूमिका में नज़र आता है और बां की सब परि वा र के सदस्य की भूमिभूमिका में, जि से नि र्णय लेने की पर्या प्त शक्ति प्रा प्त है।
2. हमें सरका र की प्रकृति एवं उसके अंगों का ज्ञा न हो ता है–
हम समझ पा ते हैं कि हमा री सरका र संसदीय शा सन व्यवस्था पर आधा रि त है, हम समझ पा ते हैं कि जि से हम सरका र (Government) कहते हैं दरअसल वो और कुछ नहीं बल्कि वि धा यि का (Legislature) + का र्यपा लि का (executive) + न्या यपा लि का (Judiciary) है।
3. हमें हमा रे अधि का र एवं कर्तव्य का ज्ञा न हो ता है–
हम समझ पा ते हैं कि एक लो कतां त्रि क देश का ना गरि क हो ने के ना ते हमें कि तने अधि का र मि लते हैं। जि सकी मदद से हम अपना चहुंमुखीमु खी वि का स कर पा ने में सक्षम तो हो ते ही है सा थ ही सा थ एक बेहतर समा ज का नि र्मा ण भी हम कर पा ते हैं।
[नो ट – चहुंमुखीमु खी वि का स का आशय ऐसे वि का स से हो ता है जि समें हम भौ ति क, सा मा जि क, मा नसि क एवं नैति क; सभी क्षेत्रोंत् रों में वि का स करते हैं।]
इतना पढ़ने के बा द उम्मी द है संवि धा न के संबंध में आपके मन में एक आधा र तैया र हो चुकाचु का हो गा । अब आइये हम ये समझते हैं कि भा रती य संवि धा न की ख़ा सि यत क्या है?
| भा रती य संविसंविधा न की ख़ा सि यतें
संवि धा न के बा रे में इतना समझने के बा द ये हमा रे लि ए जा नना जरूरी हो जा ता है कि आखि र कौ न सी बा त भा रती य संवि धा न को ख़ा स बना ती है। बहुत सा री ऐसी ची ज़ें है जो भा रती य संवि धा न को खा स बना ती है पर उनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण है और जो अपने आप में लगभग सभी मूलमू बा तों को समेट लेता है वो है ये ती न ख़ा सि यतें (इसे हम संवि धा न का लक्षण भी कह सकते हैं) :-
1. संघवा द (federalism)
2. संसदीय शा सन व्यवस्था (Parliamentary system)
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3. मौ लि क अधि का र (fundamental rights)
| संघवा द (federalism) – संघवा द, या नी कि एकल रा जनैति क व्यवस्था के अंतर्गत एक ऐसा मि श्रि त शा सन व्यवस्था जहां एक केंद्रीद् रीय सरका र हो ती है और कई प्रां ती य सरका र और दोनों की शक्ति यों का वि भा जन इस तरह से कि या जा ता है जि ससे कि दोनों स्वतंत्रत् रूप से नि र्णय ले सकने और उसे क्रि या न्वि त कर सकने में सक्षम हो सके।
भा रत के संबंध में इसके क्या मा यने है इसे समझने के लि ए दि ए गए लेख को पढ़ें – भा रत की संघी य व्यवस्था
| संसदीय व्यवस्था (Parliamentary System of Govt.) – संसदीय व्यवस्था , या नी कि एक ऐसी व्यवस्था जि सका केंद्रद् , संसद हो । दूसदू रे शब्दों में कहें तो इस व्यवस्था में का र्यपा लि का अपनी नी ति यों एवं का र्यों के लि ए वि धा यि का के प्रति उत्तरदायी हो ता है।
इनको वि स्ता र से समझने के लि ए दि ए गए लेख को पढ़ें – संसदीय व्यवस्था
| मौ लि क अधि का र (Fundamental Rights) – मूलमू रूप से संवि धा न में 7 मूलमू अधि का र दि ये गए थे जैसा कि आप नी चे देख पा रहे हैं। लेकि न यहाँ एक बा त या द रखने यो ग्य है कि संपत्ति का अधि का र को 44वें संवि धा न संसो धन 1978 द्वा रा हटा दि या गया है। इसी लि ए अब सि र्फ 6 मूलमू अधि का र ही है।
मौ लि क अधि का र
1. समता का अधि का र, अनुच्नुछेद 14 – 18
2. स्वतंत्रत् ता का अधि का र, अनुच्नुछेद 19 – 22
3. शो षण के वि रुद्ध अधि का र, अनुच्नुछेद 23 – 24
4. धा र्मि क स्वतंत्रत् ता का अधि का र, अनुच्नुछेद 25 – 28
5. शि क्षा एवं संस्कृति का अधि का र, अनुच्नुछेद 29 – 30
❌ 6. संपत्ति का अधि का र – अनुच्नुछेद 31
6. संवैधा नि क उपचा र का अधि का र, अनुच्नुछेद 32
इन सभी अधि का रों को वि स्ता र से समझने के लि ए दि ए गए लेख को पढ़ें – Fundamental Rights Q. संविसंविधा न, वि धा न/का नूननू/अधि नि यम, नि यम एवं परि नि यम क्या है?
जैसा कि अब तक हम जा न चुकेचुके है संवि धा न का नि र्मा ण संवि धा न सभा ने कि या था । या नी कि संवि धा न बन चुकाचु का है संसद उसे दोबा रा नहीं बना सकती है। संसद जो बना सकती है वो का नूननू या वि धा न या फि र अधि नि यम।
दूसदू रे शब्दों में कहें तो संवि धा न संसद को गा इड करता है कि वो क्या बना सकता है और क्या नहीं ।हीं या नी कि संसद जो भी बना एगा उसे संवि धा न सम्मत हो ना चा हि ए।
जब एक बा र का नूननू या वि धा न या अधि नि यम (Act) बन जा ता है तो उसे ला गू करने के लि ए फि र से कुछ का नूननू की जरूरत पड़ती है जो कि संसद द्वा रा बना ए गए का नूननू जि तना व्या पक नहीं हो ता है लेकि न ला गू करने के लि हा ज से का फी महत्वपूर्ण हो ता है।
दूसदू रे शब्दों में कहें तो जि स तरह का नूननू को संवि धा न सम्मत हो ना पड़ता है उसी तरह नि यम (Rules) को का नूननू सम्मत हो ना पड़ता है। या नी कि नि यम का नूननू से नी चे की ची ज़ है।
और उससे भी नी चे या कभी -कभी लगभग उसी के समकक्ष छो टे का नूननू जो बनते हैं उसे परि नि यम (regulations) कहा जा ता है।
Q.संवि धा न में क्या सब सम्मि लि त है?
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आमतौ र पर हमा रे लि ए संवि धा न सि र्फ वो कि ता ब है जि समें प्रस्ता वना , 395 अनुच्नुछेद और 12 अनुसूनु सूचि याँ है। लेकि न संवि धा न सि र्फ इतना भर नहीं है, तो फि र क्या है इसे आप इस समी करण से समझ सकते है;
संवि धा न = संवि धा न की कि ता ब + उच्चतम न्या या लय के नि र्णय + संवि धा न संशो धन + वि द्वा नों द्वा रा संवि धा न के गूढ़गूता को सर्वग्राग् राह्य बना ने के लि ए लि खी गई वि धि क भा ष्य या कमेंट्री + संवि धा न का अभि समय या परंपरा ।
नो ट – उच्चतम न्या या लय के नि र्णय का मतलब उन नि र्णयों से है जो संवि धा न की व्या ख्या करता है। जैसे कि केशवा नन्द भा रती मा मले में मौ लि क अधि का रों के संशो धन पर दि या गया नि र्णय।
संवि धा न संशो धन (constitutional amendment) का मतलब संसद द्वा रा संवि धा न में की गई जो ड़ या घटा व है। वि धि क भा ष्य (legal commentary) संवि धा न का ही एक्स्टेंडेड और सिं प्लि फा इड फ़ा रमैट हो ता है।
अभि समय या परंपरा (convention or tradition) से आशय उन ची जों से है जो कि कहीं लि खा नहीं हुआ है फि र भी संवि धा न के मा नने वा ले उसे फॉ लो करते हैं।
Q.संविसंविधा न में कि तने अनुच्नुछेद, कि तने भा ग एवं कि तनी अनुसूनुचिसूचियाँ है?
भा रत के संवि धा न को वि श्व का सबसे लंबा संवि धा न हो ने का दर्जा प्रा प्त है जो कि सही भी क्यों कि इसमें कुल 395 अनुच्नुछेद है जो कि 22 भा गों में बंटा हुआ है। सा थ ही 12 अनुसूनु सूचि याँ भी है जो कि मूलमू रूप से 8 था ।
फ़ि र भी बहुत जगह हमें पढ़ने को मि लता है की अनुच्नुछेदों की संख्या 450 से अधि क हो गया है और संवि धा न का भा ग भी 22 से 25 हो गया है।
ये एक तरह से सही भी है, क्यों कि पि छले 75 से अधि क सा लों में 100 से अधि क बा र संवि धा न का संशो धन हो चुकाचु का है। और बहुत सा री ची ज़ें जो ड़ी और घटा यी गई है।
जैसे कि भा ग 7 को खत्म कर दि या गया और कुछ नए भा ग – भा ग 4क, भा ग 9क, भा ग 9ख एवं भा ग 9ग जो ड़ा गया । इस नजरि ये से देखें तो संवि धा न के 25 भा ग हो जा ते हैं।
लेकि न यहाँ ध्या न रखने वा ली बा त ये है कि अंति म रूप से संवि धा न मेँ 395 मेँ अनुच्नुछेद ही है और 22 भा गों मेँ बंटा हुआ है ऐसा इसी लि ए क्यों कि जो भी परि वर्तन हुए है वो सब इसी के बी च मेँ हुए हैं को ई नया भा ग (भा ग 23) या को ई नया अनुच्नुछेद (अनुच्नुछेद 396) नहीं जो ड़ा गया है। हाँ अनुसूनु सूचि याँ जरूर बढ़ी है जो कि पहले 8 था लेकि न अब 12 है।
अब सवा ल ये आता है कि संवि धा न के कि स भा ग में क्या -क्या ची ज़ें है या नी कि अगर हम संवि धा न खो लें तो हमें क्या सब पढ़ने या जा नने को मि लेगा और कि स भा ग और अनुच्नुछेद से मि लेगा ? तो आप इसके लि ए इस चा र्ट को देख सकते हैं, इससे आपको ये स्पष्ट हो जा एगा कि कि स भा ग के तहत क्या आता है।
भा रती य_संवि धा न की एक संक्षि प्त तस्वी र
संवि धा न का भा ग वि वरण अनुच्नुछेद की संख्या
1 संघ और उसका क्षेत्रत् 1 से 4 तक
2 ना गरि कता 5 से 11 तक
संवि धा न के भा ग 1 में हम भा रत के वि वरण के बा रे में पढ़ सकते हैं जैसे कि भा रत क्या है, भा रत में नए रा ज्य कौ न जो ड़ सकता है एवं सी मा ओं में परि वर्तन कौ न कर सकता है आदि ।
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संवि धा न के भा ग 2 में हम संवि धा न ला गू हो ने के समय कि स-कि स को ना गरि कता मि ला और कि से मि ल सकता था उसके बा रे में जा नते हैं।
3 मौ लि क अधि का र 12 से 35 तक
संवि धा न का यह भा ग मौ लि क अधि का रों के बा रे में है। इसे हमने ऊपर संक्षि प्त रूप में चर्चा भी कि या है। 4 रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व 35 से 51 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम रा ज्य के नी ति नि देशक तत्व, या नी कि वे तत्व जि सका कि समा वेशन रा ज्य के नी ति यों में हो नी चा हि ए; की चर्चा की गई है।
4क मौ लि क कर्तव्य 51क
संवि धा न का ये भा ग मूलमू संवि धा न का हि स्सा नहीं था बल्कि इसे 42वें संवि धा न संशो धन 1976 द्वा रा संवि धा न का हि स्सा बना या गया । ये भा ग देश के ना गरि कों के मौ लि क कर्तव्य के बा रे में है।
5 संघ सरका र 52 से 151 तक
इस भा ग में 5 अध्या य है। अलग-अलग अध्या य में हम संघ सरका र के अलग-अलग घटकों के बा रे में पढ़ते हैं।
अध्या य 1 में हम का र्यपा लि का के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 52 से लेकर 78 तक आता है। इसमें हम रा ष्ट्रपति , उपरा ष्ट्रपति , प्रधा नमंत्मं रीत् री, मंत्रिमंत्रि परि षद एवं महा न्या यवा दी के बा रे में पढ़ते है।
अध्या य 2 में हम संसद (Parliament) के बा रे में पढ़ते हैं, जो कि अनुच्नुछेद 79 से लेकर 122 तक आता है। जि सके अंतर्गत लो कसभा , रा ज्यसभा एवं इसके वि भि न्न प्रा वधा न को पढ़ते हैं।
अध्या य 3 में हम रा ष्ट्रपति की वि धा यी शक्ति याँ या नी कि अध्या देश जा री करने की शक्ति के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 123 के तहत आता है।
अध्या य 4 में हम संघी य न्या या लय या नी कि उच्चतम न्या या लय के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 124 से लेकर 147 तक आता है।
अध्या य 5 में हम महा नि यंत्रत् क एवं लेखा परी क्षक (CAG) के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 148 से लेकर 151 तक आता है।
6 रा ज्य सरका र 152 से 237 तक
संवि धा न का यह भा ग 6 अध्या यों में बंटा हुआ है जो कि रा ज्य सरका र के बा रे में बा त करता है। या नी कि रा ज्यपा ल, मुख्मुयमंत्मं रीत् री, रा ज्य मंत्रिमंत्रि परि षद, महा धि वक्ता एवं उच्च न्या या लय।
अध्या य 1 में परि भा षा दि या हुआ है जो की अनुच्नुछेद 152 के अंतर्गत आता है। चूंकि जम्मू-मूकश्मी र आम रा ज्यों की तरह नहीं था इसी लि ए उसके बा रे में यहाँ लि ख दि या गया था ।
अध्या य 2 में हम का र्यपा लि का के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 153 से लेकर 167 तक आता है। इसमें हम मुख्मुयमंत्मं रीत् री, रा ज्यपा ल, मंत्रिमंत्रि परि षद एवं महा धि वक्ता के बा रे में पढ़ते है।
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अध्या य 3 में हम रा ज्य वि धा नमंडमं ल के बा रे में पढ़ते हैं, जो कि अनुच्नुछेद 168 से लेकर 212 तक आता है। जि सके अंतर्गत वि धा नसभा , वि धा न परि षद एवं इसके वि भि न्न प्रा वधा न को पढ़ते हैं।
अध्या य 4 में हम रा ज्यपा ल की वि धा यी शक्ति याँ या नी कि अध्या देश जा री करने की शक्ति के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 213 के तहत आता है।
अध्या य 5 में हम रा ज्यों के न्या या लय या नी कि उच्च न्या या लय के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 214 से लेकर 232 तक आता है।
अध्या य 6 में हम अधी नस्थ न्या या लय के बा रे में पढ़ते हैं जो कि अनुच्नुछेद 232 से लेकर 237 तक आता है। 7 (नि रसि त) रा ज्य से संबंधि त पहली अनुसूनु सूची का खंडखं ‘ख’ 238
दरअसल अब ये भा ग अस्ति त्व में नहीं है इसे 7वां संवि धा न संशो धन 1956 द्वा रा हटा दि या गया था । क्यों कि इसी संशो धन अधि नि यम से रा ज्यों के बा रे में एक नया व्यवस्था ला या गया था ।
8 केंद्रद्शा सि त प्रदेश 239 से 242 तक
इस भा ग में केंद्रद्शा सि त प्रदेश और उससे संबंधि त वि भि न्न प्रा वधा नों को पढ़ते हैं। जैसे कि अगर दि ल्ली के बा रे में आपको जा नना हो ।
9 पंचा यतें 243 से 243 ‘O’ तक
संवि धा न के इस भा ग में हम पंचा यती रा ज व्यवस्था के बा रे में जा न पा ते हैं। जैसे कि ग्राग् राम सभा , पंचा यत समि ति , जि ला परि षद एवं इससे जुड़ेजुड़ेसभी प्रा वधा न।
9 A नगरपा लि का एं 243 P से 243 ZG तक
संवि धा न के इस भा ग में हम शहरी स्था नी य स्व-शा सन के बा रे में जा न पा ते हैं जैसे कि नगर पंचा यत, नगरपा लि का , नगरनि गम आदि ।
9 B सहका री समि ति यां 243 ZH से 243 ZT तक
संवि धा न के इस भा ग में हम सहका री समि ति एवं इससे जुड़ेजुड़ेवि भि न्न प्रा वधा न को पढ़ते है। 10 अनुसूनु सूचि त और जनजा ति क्षेत्रत् 244 से 244 ‘क’ तक
संवि धा न का यह भा ग अनुसूनु सूचि त और जनजा ति क्षेत्रोंत् रों के प्रशा सन से संबंधि त है।
11 केंद्रद्–रा ज्य संबंध 245 से 263 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम केंद्रद्-रा ज्य सम्बन्धों के बा रे में पढ़ते हैं, जैसे कि केंद्रद्-रा ज्य वि धा यी संबंध, केंद्रद्-रा ज्य प्रशा सनि क संबंध एवं अंतररा ज्यी य संबंध।
12 वि त्त, संपत्ति , संवि दाएं एवं वा द 264 से 300 ‘क’ तक
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संवि धा न के इस भा ग में हम वि भि न्न प्रका र के टैक्सों , वि त्त आयो ग, टैक्स से छूट, भा रत सरका र या रा ज्य सरका र द्वा रा ऋण लेने की व्यवस्था आदि के बा रे में समझते हैं।
13 भा रत के रा ज्यक्षेत्रत् के भी तर व्या पा र, वा णि ज्य एवं समा गम 301 से 307 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम भा रत के रा ज्यक्षेत्रत् में व्या पा र एवं वा णि ज्य आदि की स्वतंत्रत् ता या इस पर लगने वा ले प्रति बंधों के बा रे में पढ़ते हैं।
14 संघ और रा ज्य के अधी न सेवा एँ 308 से 323 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम मुख्मुय रूप से संघ लो क सेवा आयो ग एवं रा ज्य लो क सेवा आयो ग के बा रे में पढ़ते हैं। 14 A न्या या धि करण 323 A से 323 B तक
संवि धा न का यह भा ग हमेशा से संवि धा न का हि स्सा नहीं था इसे 1976 में जो ड़ा गया । इसके तहत हम अधि करण (Tribunals) के बा रे में पढ़ते हैं।
15 नि र्वा चन 324 से 329 ‘क’ तक
संवि धा न के इस भा ग में हम चुनाचुनाव आयो ग एवं इससे संबंधि त वि भि न्न प्रा वधा नों के बा रे में पढ़ते हैं। 16 कुछ वर्गों के संबंध में वि शेष उपबंध 330 से 342 तक
संवि धा न के इस भा ग में बहुत सा री ची ज़ें आती है जैसे कि लो कसभा में अनुसूनु सूचि त जा ति एवं जनजा ति का आरक्षण, आंग्ल-भा रती य को मनो नी त कि या जा ना (जि से कि 2020 में समा प्त कर दि या गया ) आदि ।
17 रा जभा षा 343 से 351 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम संघ की रा जभा षा , रा ज्य की रा जभा षा , उच्चतम न्या या लय की रा जभा षा आदि के बा रे में पढ़ते हैं।
18 आपा त उपबंध 352 से 360 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम रा ष्ट्री य आपा तका ल एवं रा ष्ट्रपति शा सन आदि के बा रे में वि स्ता र से पढ़ते हैं। 19 प्रकी र्ण 361 से 367 तक
संवि धा न के इस भा ग में हम अलग-अलग प्रका र के अलग-अलग प्रा वधा नों के बा रे में पढ़ते हैं। जैसे कि रा ष्ट्रपति और रा ज्यपा लों का संरक्षण, केंद्रद् द्वा रा दि ये गए नि देश का रा ज्यों द्वा रा पा लन न करने पर पड़ने वा ला प्रभा व आदि ।
20 संवि धा न का संशो धन 368
संवि धा न के इस भा ग में हम संवि धा न के संशो धन करने से संबन्धि त प्रा वधा नों के बा रे में पढ़ते हैं। 21 अस्था यी , संक्रा मणशी ल एवं वि शेष प्रबंध 369 से 392 तक
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संवि धा न के इस भा ग में वि भि न्न रा ज्यों के लि ए ला गू वि शेष उपबंध पर अलग-अलग अनुच्नुछेदों में चर्चा की गई है। 22 संक्षि प्त ना म, प्रा रम्भ, हि न्दी में प्रा धि कृत पा ठ एवं नि रसन 393 से 395 तक
इसी तरह से अगर हम अनुसूनु सूचि यों की बा त करें तो अनुसूनु सूचि यों में नि म्नलि खि त ची ज़ें पढ़ने को मि लती है। अनुसूनु सूची 1 – अनुसूनु सूची 1 रा ज्यों एवं केंद्रद्शा सि त प्रदेशों की लि स्टिं ग के बा रे में है।
अनुसूनु सूची 2 – सरका री ओहदेपर बैठे लो गों के वेतन एवं भत्तों के बा रे में है। खा सकर के रा ष्ट्रपति , उप-रा ष्ट्रपति , सर्वो च्च न्या या लय के न्या या धी श आदि के बा रे में।
अनुसूनु सूची 3 – ये अनुसूनु सूची रा ष्ट्रपति , प्रधा नमंत्मं रीत् री, उच्चतम न्या या लय के न्या या धी श आदि द्वा रा शपथ ली जा ने वा ली कथनों के बा रे में है।
अनुसूनु सूची 4 – यह अनुसूनु सूची रा ज्यसभा में सी टों के आवंटन के बा रे में है।
अनुसूनु सूची 5 – यह अनुसूनु सूची अनुसूनु सूचि त जा ति एवं जनजा ति के प्रशा सन एवं नि यंत्रत् ण आदि के बा रे में है। अनुसूनु सूची 6 – असम, मेघा लय, त्रि पुरापुरा एवं मि ज़ो रम रा ज्यों में जनजा ती य प्रशा सन से संबन्धि त है। अनुसूनु सूची 7 – यह अनुसूनु सूची संघ सूची , रा ज्य सूची एवं समवर्ती सूची के बा रे में है।
अनुसूनु सूची 8 – यह अनुसूनु सूची संवि धा न द्वा रा मा न्यता प्रा प्त भा षा ओं के बा रे में है जि समें कि अभी 22 भा षा एँ है।
अनुसूनु सूची 9 – यह अनुसूनु सूची पहला संवि धा न संशो धन द्वा रा बना या गया था । इसमें जो भी वि षय रखा जा ता है उसकी न्या यि क समी क्षा आमतौ र पर न्या या लय नहीं करता है।
अनुसूनु सूची 10 – इसे 52वें संवि धा न संशो धन द्वा रा बना या गया , इसमें दल-बदल से संबन्धि त नि रर्हता (disqualification) के बा रे में प्रा वधा न है।
अनुसूनु सूची 11 – इसे 73वें संवि धा न संशो धन द्वा रा बना या गया इसमें पंचा यती रा ज से संबन्धि त का र्यका री वि षयों को रखा गया है।
अनुसूनु सूची 12 – इसे 74वें संवि धा न संशो धन द्वा रा बना या गया , इसमें नगरपा लि का से संबन्धि त का र्यका री वि षयों को रखा गया है।
Q.संवि धा न बना ने वा ला सबसे पहला देश कौ न था ?
USA पहला देश था जि सने संवि धा न बना या था । इसने 21 जूनजू 1788 को अपना संवि धा न बना या था और संघी य गणतन्त्रत् का रा स्ता अपना या था ।
Q. हमा रे देश के संविसंविधा न में कि न देशों से क्या –क्या ची ज़ें ली गई है?
| अमेरि का – • मूलमू अधि का र • न्या यपा लि का की स्वतंत्रत् ता • न्या यि क पुनपुरा वलो कन का सि द्धां त • उपरा ष्ट्रपति का पद • रा ष्ट्रपति पर महा भि यो ग।
| कना डा – • सशक्त केंद्रद् के सा थ संघी य व्यवस्था • अवशि ष्ट शक्ति यों का केंद्रद् में नि हि त हो ना • केंद्रद् द्वा रा रा ज्य के रा ज्यपा लों की नि युक्तियुक्ति • उच्चतम न्या या लय का परा मर्शी न्या य नि र्णयन।
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| ब्रि टेन – • संसदीय शा सन • वि धि का शा सन • वि धा यी प्रक्रि या • एकल ना गरि कता • मंत्रिमंत्रि मंडमं ल प्रणा ली • परमा धि का र लेख • संसदीय वि शेषा धि का र • द्वि सदनी य व्यवस्था ।
| आयरलैंड – • रा ज्यसभा के लि ए सदस्यों का ना मां कन • रा ज्य के नी ति नि देशक सि द्धां त • रा ष्ट्रपति की नि र्वा चन पद्धति ।
| ऑस्ट्रेलि या – • समवर्ती सूची • व्या पा र, वा णि ज्य एवं समा गम की स्वतंत्रत् ता • दोनों सदनों की संयुक्युत बैठक।
| भा रत शा सन अधि नि यम 1935 – • संघी य तंत्रत् • रा ज्यपा ल का का र्या लय • न्या यपा लि का • लो क सेवा आयो ग • आपा तका ली न उपबंध।
इसके सा थ ही मूलमू कर्तव्य रूस से, संवि धा न में संशो धन की प्रक्रि या दक्षि ण अफ्री का से एवं गणतंत्रात् रात्मक फ्रां स से लि या गया ।
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