story of constitution making

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संविधान निर्माण की कहानी | संविधान कैसे बना?

भारत का संविधान निर्माण कैसे हुआ? जिस देश का संविधान इतना बड़ा हो और लगभग 3 साल उसे बनाने में लग जाये
उसकी कहानी तो दिलचस्प होगी ही।

भारतीय संविधान को बनाना आसान काम नहीं था, इसे कई चरणों में पूरा किया गया है, कई देशों की संविधान की मदद
ली गई है एवं कई विद्वानों ने इसमें भाग लिया है।

इस लेख में हम संविधान निर्माण की कहानी को जानेंगे और इसी के माध्यम से इसके महत्वपूर्ण पक्षों को भी एक्सप्लोर
करेंगे। इस दिलचस्प लेख को अंत तक पढ़ें और हमारे सोशल मीडिया हैंडल से अवश्य जुड़ जाएँ।

विधात्र निर्माण की कहानी

संविधान निर्माण पृष्ठभूमि

भारतीय संविधान और संविधान निर्माण की कहानी अपने आप में विलक्षण है; जहां कई देशों को कई बार अपना संविधान
बनाना पड़ा, कई देशों को संविधान बनाने के बाद जनमत संग्रह करवाना पड़ा ये देखने के लिए कि लोग इसे स्वीकार कर रहें हैं या नहीं ।

पर भारतीय संविधान के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि पहली बात तो भारतीय संविधान को जिन लोगों ने बनाया उनमें समाज का पहले से ही अटूट विश्वास था।

दूसरी बात ये कि संविधान निर्माण के समय किसी प्रावधान को संविधान का हिस्सा बनाने के लिए वोटिंग का सहारा नहीं लिया गया बल्कि आपसी सहमति से इस प्रकार के समस्याओं को सुलझाया गया।

और आपसी सहमति बनाना कितना मुश्किल रहा होगा ये बात आप इससे समझ सकते हैं कि संविधान सभा के कुछ महत्वपूर्ण सदस्यों के बीच आपस में बनती तक नहीं थी ।

जैसे कि डॉ. भीमराव अंबेडकर को काँग्रेस पसंद नहीं था, वहीं पंडित नेहरू और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की एक-दूसरे से बनती नहीं थी | पर ये काबिले तारीफ ही थी कि इस सब के बावजूद भी सहमति बना ली जाती थी।

वैसे भी जिस संविधान को बनने में लगभग 3 साल लग गये हो, उस संविधान के बनने की कहानी दिलचस्प तो होगी ही;
है कि नहीं ।

संविधान निर्माण की कहानी को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि संविधान होता क्या है? आखिर इसका उद्देश्य
क्या होता है? किसी देश के लिए संविधान जरूरी ही क्यों होता है?

आइये पहले संविधान के बेसिक्स को समझ लेते हैं ताकि हमारे दिमाग में संविधान की अहमियत और उसकी
प्रासंगिकता स्पष्ट हो सकें।

संविधान क्या है?
संविधान यानी कि श्रेष्ठ विधान; ये एक ऐसा दस्तावेज़ है जो व्यक्ति और राज्य के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करता है।

दूसरे शब्दों में, एक लोकतांत्रिक देश में व्यक्ति स्वतंत्रता का प्रतीक होता है या यूं कहें कि लोकतंत्र की अवधारणा
ही इसी बात पर टिकी हुई है कि व्यक्ति स्वतंत्र रहें।

वहीं दूसरी ओर राज्य शक्ति का प्रतीक होता है यानी कि देश को चलाने के लिए सारी की सारी आवश्यक शक्तियाँ
राज्य के पास होती है।

ऐसे में राज्य अपनी शक्तियों का गलत उपयोग न करें और व्यक्ति अपनी आजादी का गलत उपयोग न करें, इन्ही दोनों में
संतुलन स्थापित करने के लिए जो दस्तावेज़ बनाए जाते हैं, वही संविधान है।

संविधान का उद्देश्य
संविधान के उद्देश्य को कुछ बेसिक प्रश्नों के माध्यम से समझ सकते हैं, जैसे कि –

राज्य की संरचना कैसी होगी,

सरकार की प्रकृति कैसी होगी,

शक्तियों का बंटवारा कैसे होगा,

सरकार के अधिकार और कार्य तथा व्यक्ति के अधिकार और स्वतंत्रता क्या होगी,
व्यक्ति और सरकार के बीच संबंध कैसा होगा,

हम किस प्रकार के राज्य की स्थापना करना चाहते हैं इत्यादि ।

इन्ही प्रश्नों का एक सर्वमान्य एवं व्यवस्थित उत्तर स्थापित करना संविधान का प्रमुख उद्देश्य होता है।

अब आते हैं संविधान निर्माण पर कि संविधान कैसे अस्तित्व में आया? संविधान निर्माण को समझने की दृष्टि से पाँच
भागों में बाँट सकते हैं ।

संविसंविधा न नि र्मा ण के पाँ च चरण (Five steps of making of Constitution) 

1. संवि धा न सभा गठन के पूर्व की स्थि ति 

2. प्रा रम्भि क संवि धा न सभा का गठन 

3. गुलागुलाम भा रत के संवि धा न सभा की पहली का र्यवा ही 

4. संवि धा न नि र्मा ण और पंडि त नेहरू का उद्देश्य प्रस्ता व 

5. आजा द भा रत का संवि धा न सभा 

1.संवि धा न सभा गठन के पूर्व की स्थि ति 

संवि धा न नि र्मा ण के लि ए 1946 में एक संवि धा न सभा (Constituent Assembly) का गठन कि या गया था । इसी संवि धा न सभा ने संवि धा न नि र्मा ण को उसकी परि णति तक पहुंचा या था । 

पर संवि धा न सभा का गठन कैसे हुआ ये समझने के लि ए पहले के उन महत्वपूर्ण घटना ओं को समझना जरूरी है जि सके फलस्वरूप संवि धा न सभा अस्ति त्व में आया । तो आइये देखते है वो क्या हैं। 

◾ 1764 ई. से 1857 तक के लगभग 100 सा ल के कंपनी शा सन को देखें या फि र 1858 से 1947 तक के ता ज के शा सन को देखें तो इस दरम्या न ढेरों वि धि -वि धा न बना ए गए। 

हा लां कि वो सब थे तो अंतत: ब्रि टि श हि तों के पक्ष में ही लेकि न वि धि -वि धा न की इस परंपरा ने भा रती यों को एक तरह से तैया र कि या जो कि संवि धा न नि र्मा ण के वक़्त का फी का म आया । इसे उदाहरण से समझते हैं –

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जैसे कि आज हमा रे संसद में दो सदन है रा ज्य सभा और लो क सभा । पर ये कॉ न्सेप्ट को ई नया नहीं है बल्कि 1919 के भा रत शा सन अधि नि यम में पहली बा र ये व्यवस्था कि या गया था । 

यहाँ तक कि प्रत्यक्ष नि र्वा चन की व्यवस्था भी इसी अधि नि यम में कि या गया था । इसी प्रका र अगर हम संघी य व्यवस्था , संघी य न्या या लय आदि की बा त करें तो इसका प्रा वधा न 1935 के भा रत शा सन अधि नि यम में कि या गया था । 

लेकि न इन्ही अधि नि यमों का गुलागुलाम भा रत में बहि ष्का र कि या गया था इसका का रण ये था कि इन अधि नि यमों से भा रती य हि त कम सधता था जबकि ब्रि टि श हि त ज्या दा। 

शा यद इसी लि ए 1922 में, महा त्मा गां धी ने ये वि चा र रखा था कि भा रती यों के लि ए एक संवि धा न हो नी चा हि ए। गां धी जी का इस मा मले में कहना था कि – “स्वरा ज ब्रि टि श संसद का उपहा र नहीं है, वह भा रत की पूर्ण आत्मा भि व्यक्ति की घो षणा हो गी ।” 

सा ल 1922 में एनि बेसेंट के प्रया सों से केन्द्रीद् रीय वि धा नमंडमं लों के दोनों सदनों की संयुक्युत बैठक शि मला में आयो जि त की गई, जि समें संवि धा न सभा की मां ग की गई। 

फि र फरवरी 1923 में दि ल्ली में एक अन्य सम्मेलन का आयो जन कि या गया , जि समें केंद्रीद् रीय और प्रां ती य वि धा नमंडमं ल के सदस्यों द्वा रा संवि धा न के आवश्यक तत्वों की एक रूपरेखा तैया र की गई, जि सके तहत भा रत को अन्य स्व-शा सि त रा ज्यों के बरा बरी का दर्जा दि या गया था । 

अप्रैल, 1924 में तेजबहा दुरदु सपूर की अध्यक्षता में एक रा ष्ट्री य सम्मेलन का आयो जन कि या गया , जि समें कॉ मनवैल्थ ऑफ इंडि या बि ल का ड्रा फ्ट तैया र कि या गया । 

इसमें जरूरी संशो धनों के सा थ, 1925 में हुई दि ल्ली में हुई सर्वदली य सम्मेलन में फि र से इसे रखा गया । महा त्मा गां धी इस सम्मेलन के अध्यक्ष थे। 

यहाँ से पा स हो ने के बा द बि ल को ब्रि टि श संसद में पेश कि या गया । उस समय ब्रि टेन में लेबर पा र्टी की सरका र थी । आम चुनाचुनाव में लेबर पा र्टी की सरका र हा र गई और यह बि ल भी उसी के सा थ खत्म हो गया । 

◾ सा इमन कमी शन की घो षणा के पूर्व भा रती य मा मलों के सचि व लॉ र्ड बर्कनहेड ने उस समय के भा रती य नेता ओं को एक सर्वमा न्य संवि धा न बना ने की चुनौचुनौती थी । लॉ र्ड बर्कनहेड इस बा त को लेकर आश्वस्त थे कां ग्रेग् रेस द्वा रा बना ए गए संवि धा न को मुस्लिमुस्लि म ली ग के जि न्ना एवं अन्य नेता मा न्यता ही नहीं देंगे। 

कां ग्रेग् रेस ने बर्कनहेड की इस चुनौचुनौती को स्वी का र कि या और फ़रवरी 1928 में दि ल्ली में एक सर्वदली य बैठक का आयो जन कि या । फि र मई 1928 में बंबई में सर्वदली य बैठक हुई। 

इसी अधि वेशन के दौरा न पंडि त मो ती ला ल नेहरू ने केंद्रीद् रीय एवं प्रां ती य वि धा नमंडमं लों के नि र्वा चि त सदस्यों तथा अन्य नेता ओं के परा मर्श से भा रत के लि ए एक संवि धा न तैया र करने संबंधी प्रस्ता व रखा , जि से कि स्वी का र भी कर लि या गया । 

संवि धा न के सि द्धां त नि र्धा रि त करने के लि ए पंडि त मो ती ला ल नेहरू की अध्यक्षता में एक समि ति का गठन कि या गया । जि सने कि अगस्त 1928 में अपनी रि पो र्ट प्रस्तुततु की । इसे ही “नेहरू रि पो र्टके ना म से जा ना जा ता है। 

नेहरू रि पो र्ट में भा रत के संवि धा न की पूरी रूपरेखा शा मि ल थी , लेकि न उस वक्त भी संवि धा न अस्ति त्व में न आ पा या । क्यों कि इस रि पो र्ट को भा रत के मुस्लिमुस्लि म नेतृत्तृव, वि शेषकर मुहमुम्मद अली जि न्ना ने खा रि ज कर दि या । 

सा थ ही रा ष्ट्रवा दि यों ने भी इस रि पो र्ट को खा रि ज कर दि या क्यों कि पूर्ण स्वतंत्रत् ता की बा त नहीं की गई थी , बल्कि डो मि नि यन की बा त की गई थी ।

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Important Facts 

नेहरू समि ति की रि पो र्ट ने सां प्रदायि कता को भी मा न्यता प्रदान करने का का म कि या था । इस समि ति ने बंबई से सिं ध को का टकर एक अलग मुस्लिमुस्लि म बहुल प्रां त बना ना स्वी का र कि या था । इस मां ग को मुसमु लमा न का फी समय से कर रहे थे। कहा जा ता है इसी नि र्णय से मुसमु लमा नों के अंदर वि भा जन को लेकर आत्मवि श्वा स जा गा था और इस संबंध में उसकी महत्वा कां क्षा एं आसा मन छूने लगी । 

◾ सा ल 1934 में एक सा म्यवा दी नेता एम.एन. रॉ य ने पहली बा र एक संवि धा न नि र्मा ण के लि ए संवि धा न सभा के गठन की बा त कही । 

हा लां कि ब्रि टि श सरका र ने 1935 में भा रत शा सन अधि नि यम के अंतर्गत एक ऐसी वि स्तृततृ दस्ता वेज़ पेश कि या जो बि लकुल संवि धा न जैसा था । इसमें 321 धा रा एँ और 10 अनुसूनु सूचि याँ थी । पर वहीं बा त कि ये एक स्वतंत्रत् भा रत का संवि धा न नहीं था । इसी लि ए इस अधि नि यम को कॉं ग्रेग् रेस ने अप्रैल 1936 के लखनऊ अधि वेशन और दि सम्बर 1936 के फैजपुरपु अधि वेशन में प्रस्ता व पा रि त करके इसे पूर्णतः अस्वी कृत कर दि या । 

इसके बा द 19-20 मा र्च को काँ ग्रेग् रेस के वि धा नमंडमं ल के सदस्यों ने रा ष्ट्री य सम्मेलन में और 14 सि तंबर 1939 को अपने ऐति हा सि क प्रस्ता व में संवि धा न सभा की मां ग दोहरा ई। नवम्बर 1939 में कॉं ग्रेग् रेस का र्यका रि णी समि ति ने फि र से एक प्रस्ता व पा रि त करने हुए भा रत के लि ए संवि धा न सभा की स्था पना पर जो र दि या । 

अगस्त प्रस्ता व – इस समय द्वि ती य वि श्व युद्धयु चल रहा था और में जर्मनी की असा धा रण सफलता ने ब्रि टेन की स्थि ति अत्यन्त ना जुकजु कर दी थी । ऐसी स्थि ति में भा रती यों का सहयो ग पा ने के लि ये ब्रि टेन ने समझौ ता वा दी दृष्टिदृष्टि को ण की नी ति अपना ई। 

और कॉं ग्रेग् रेस की मां ग को ध्या न में रखते हुए 8 अगस्त 1940 को वा यसरा य लि नलि थगो ने भा रती यों के लि ये एक प्रस्ता व की घो षणा की जि से अगस्त प्रस्ता वके ना म से जा ना जा ता है। 

इस प्रस्ता व के मुख्मुय प्रा वधा न कुछ ऐसे थे, (i) भा रत को डो मि नि यन स्टेट्स देने का प्रस्ता व, (ii) द्वि ती य वि श्व युद्धयु के उपरां त संवि धा न सभा गठन कि ए जा ने का प्रस्ता व, 

हा लां कि इस अगस्त प्रस्ता व में संवि धा न सभा के गठन की बा त कही गई थी लेकि न फि र भी काँ ग्रेग् रेस द्वा रा इस प्रस्ता व को अस्वी का र कर दि या गया , क्यों कि इसमें एक स्वतंत्रत्-संप्रभु देश के बजा य डो मि नि यन दर्जा देने की बा त कही गई थी और दूसदू री बा त ये कि इसमें कहा गया था कि बि ना अल्पसंख्यकों की स्वी कृति के सरका र को ई भी संवैधा नि क परि वर्तन ला गू नहीँ कर सकती है। या नी कि एक तरह से मुस्लिमुस्लि म ली ग को वी टो पा वर मि ल रहा था । 

क्रि प्स मि शन उपरो क्त प्रस्ता व के असफल हो जा ने के बा द ब्रि टि श सरका र ने संवि धा न नि र्मा ण का एक प्रा रूप तैया र कि या और सन 1942 में उसे स्टा फो र्ड क्रि प्स के हा थों भा रत भेजा । दरअसल क्रि प्स मि शन ब्रि टि श सरका र द्वा रा द्वि ती य वि श्व युद्धयु में भा रती यों का सहयो ग प्रा प्त करने के लि ए कि या गया एक असफल प्रया स था । 

इस मि शन ने युद्धयु में सहयो ग करने के बदले, युद्धयु समा प्त हो ने के बा द चुनाचुनाव करा ने, डो मि नि यन स्टेटस देने और संवि धा न नि र्मा ण की बा त कही । इसे काँ ग्रेग् रेस और मुस्लिमुस्लि म ली ग दोनों ने अस्वी कृत कर दि या । और काँ ग्रेग् रेस ने भा रत छो ड़ो आंदोलन को शुरूशु कर दि या । 

इससे हुआ ये कि ब्रि टि श सरका र ने सभी प्रमुखमु काँ ग्रेग् रेस नेता ओं को जेल में बंद कर दि या । इससे एक व्या पक गति रो ध की शुरुशुआत हुई और स्थि ति स्थि ति धी रे-धी रे बि गड़ती चली गई। 

वेवेल यो जना – इसी गति रो ध को दूरदू करने के लि ए तत्का ली न वा यसरा य लॉ र्ड वेवेल ने जूनजू 1945 में एक यो जना प्रस्तुततु की जि से कि वेवेल यो जना कहा गया ।

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इस यो जना की मुख्मुय बा ते कुछ ऐसी थी – (1) वा यसरा य की का र्यका रि णी परि षद में मुस्लिमुस्लि म सदस्यों की संख्या सवर्ण हि न्दुओंदु ओंके बरा बर हो गी । (2) युद्धयु समा प्त हो ने के उपरा न्त भा रती य स्वयं ही संवि धा न बना येंगे। (3) कां ग्रेग् रेस के नेता रि हा कि ये जा येंगे तथा शी घ्रघ् ही शि मला में एक सर्वदली य सम्मेलन बुलाबु लाया जा येगा । शि मला में सम्मेलन बुलाबु लाया भी गया लेकि न मो हम्मद अली जि न्ना की जि द के का रण ये यो जना भी नि रस्त हो गया । 

मुस्लिमुस्लि म ली ग भा रत का वि भा जन चा हते थे और अपनी बा त पर अड़े थे कि भा रत को दो स्वा यत हि स्सों में बां टा जा ना चा हि ए जि सका कि अपना -अपना एक संवि धा न सभा हो गा । 

कैबि नेट मि शन – स्थि ति इतनी बि गड़ गया कि अंतत: अंग्रेग् रेजों को झुकझु ना ही पड़ा और सत्ता हस्तां तरण के लि ए बा ध्य हो ना ही पड़ा । इसके लि ए वर्ष 1946 में ब्रि टेन के प्रधा नमंत्मं रीत् री क्लि मेंट एटली ने भा रत में एक ती न सदस्यी य उच्च- स्तरी य शि ष्टमंडमं ल भेजने की घो षणा की । 

इस मि शन को वि शि ष्ट अधि का र दि ये गये थे तथा इसका का र्य भा रत को शां ति पूर्ण सत्ता हस्तां तरण के लि ये, उपा यों एवं संभा वना ओं को तला शना था । इसे कैबि नेट मि शन कहा गया जो कि 24 मा र्च 1946 को दि ल्ली पहुंचा । 

का फी बहस और जद्दो जहद के बा द इन्हों ने मुस्लिमुस्लि म ली ग को कि सी तरह से समझा बुझाबु झा लि या और इस तरह से एक अवि भा जि त भा रत के लि ए संवि धा न सभा बनने का रा स्ता सा फ हो गया । 

2. प्रा रम्भि क संवि धा न सभा का गठन 

संवि धा न नि र्मा ण के लि ए एक संवि धा न सभा (Constituent Assembly) का हो ना जरूरी था । और ये संवि धा न सभा का गठन कैबि नेट मि शन द्वा रा सुझासु झाए गये तरी कों के आधा र पर हो ना था । जो कि कुछ ऐसा था – 

◾संवि धा न सभा में कुल सदस्यों की संख्या 389 आवंटि त कि या गया । जि समें से 93 सी टें देशी रि या सतों (Princely states) और 296 सी टें ब्रि टि श भा रत के क्षेत्रोंत् रों के लि ए आवंटि त कि ए गए थे। 

◾ये सी टें जनसंख्या के अनुपानुपात में आवंटि त की जा नी थी मो टे तौ र पर प्रत्येक 10 ला ख लो गों पर 1 सी ट की व्यवस्था की गयी थी । 

◾संवि धा न सभा लि ए के ब्रि टि श भा रती य क्षेत्रोंत् रों से सदस्यों का चुनाचुनाव उसी के समुदा मु य द्वा रा उसी के प्रां ती य असेंबेली में कि या जा ना था और देशी रि या सतों के प्रति नि धि का चुनाचुनाव रि या सत प्रमुखोंमु खों द्वा रा कि या जा ना था । 

तो कुल मि ला कर ये सभा आंशि क रूप से चुनीचुनी हुई और आंशि क रूप से ना मां कि त नि का य हो ने वा ली थी । 

संवि धा न सभा के लि ए चुनाचुनाव – 1946 के जुलाजु लाई-अगस्त में संवि धा न सभा के लि ए चुनाचुनाव सम्पन्न हुआ। और ब्रि टि श भा रती य क्षेत्रोंत् रों के लि ए आवंटि त 296 सी टों में से 208 से सी टें भा रती य रा ष्ट्री य काँ ग्रेग् रेस को , 73 सी टें मुस्लिमुस्लि म ली ग को और और बची सी टें नि र्दली य उम्मी दवा रों को मि ला । 

लेकि न देशी रि या सतों को जो 93 सी टें मि ला था उसने इसका बहि ष्का र कर दि या और इसमें हि स्सा नहीं लि या या नी कि अपने प्रति नि धि को उनलो गों ने संवि धा न सभा में नहीं भेजा । 

3. गुलागुलाम भा रत के संवि धा न सभा की पहली का र्यवा ही 

इसे गुलागुलाम भा रत के संवि धा न सभा इसी लि ए कहा जा ता है क्यों कि उस समय देश आजा द नहीं हुआ था । तो कुल मि ला कर देशी रि या सतों ने तो संवि धा न सभा का पहले ही बहि ष्का र कर रखा था और अब मुस्लिमुस्लि म ली ग को 73 सी टें मि लने के बा वजूदजू भी उसने इसका बहि ष्का र कर दि या । अब ये स्पष्ट हो चुकाचु का था कि वि भा जन के अला वा और को ई रा स्ता नहीं है और वही हुआ भी ।

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यही का रण था कि जब 9 दि सम्बर 1946 को संवि धा न सभा की पहली बैठक हुई तो इसमें मा त्रत् 211 सदस्यों ने हि स्सा लि या । इसके बा वजूदजू भी संवि धा न सभा ने उसी सदस्यों के सा थ बैठक की और डॉ . रा जेंद्रद् प्रसा द को संवि धा न सभा का अध्यक्ष बना दि या गया । इस तरह से संवि धा न नि र्मा ण की आधा रशि ला रख दी गई। 

4. संवि धा न नि र्मा ण और पंडि त नेहरू का उद्देश्य प्रस्ता व 

इसके ठी क चा र दि न बा द 13 दि सम्बर 1946 को पंडि त नेहरू ने ऐति हा सि क उद्देश्य प्रस्ता व को पढ़ा । ये एक प्रस्ता वना की तरह ही था । 

ग़ौ रतलब कि आज के प्रस्ता वना में बहुत सा री बा तों को उसी में से लि या गया है। इस उद्देश्य प्रस्ता व में इस बा त को रेखां कि त कि या गया कि हमा रा भा वी संवि धा न कैसा हो गा और उस से संचा लि त देश कैसा हो गा । 

इसमें कही गयी कुछ बा तें बहुत महत्वपूर्ण है। जैसे कि – 

◾यह संवि धा न सभा भा रत को एक स्वतंत्रत् , संप्रभु गणरा ज्य घो षि त करती है और अपने भवि ष्य के प्रशा सन के लि ए संवि धा न के नि र्मा ण की घो षणा करती है। (हा लां कि उस समय तक भा रत आजा द नहीं हुआ था ।) 

◾ब्रि टि श भा रत में शा मि ल सभी क्षेत्रत् तथा भा रत के बा हर के को ई क्षेत्रत् जो इसमें शा मि ल हो ना चा हेंगे वे इस संघ का हि स्सा हों गे। संघ में नि हि त शक्ति यों को छो ड़कर सभी शक्ति याँ रा ज्यों को प्रा प्त हों गी । 

◾इस स्वतंत्रत् एवं संप्रभु भा रत के सभी शक्ति यों का स्रो त इसकी जनता हों गी । या नी कि जनता सर्वो परि हो गी । 

◾भा रत के सभी लो गों के लि ए न्या य, सा मा जि क आर्थि क और रा जनैति क स्वतंत्रत् ता ; वि चा र, अभि व्यक्ति , वि श्वा स, धर्म की स्वतंत्रत् ता सुनिसुनिश्चि त की जा एगी । (इसे आप मौ लि क अधि का र में भी पढ़ेंगे और प्रस्ता वना में भी ) 

◾अल्पसंख्यकों एवं पि छड़े वर्गों तथा जनजा ति यों को पर्या प्त सुरसुक्षा प्रदान की जा एगी । 

◾वि धि के अनुरूनु प सभी का म हों गे तथा भा रत को वि श्व में उसका उचि त स्था न और अधि का र दि ला या जा एगा । ये थी उद्देश्य प्रस्ता व की कुछ मूलमू बा तें, जि से कि 26 जनवरी 1947 को इसे सर्वसम्मति से स्वी का र कर लि या गया । 

उसके कुछ समय बा द ही मा उण्टबेटन ने 3 जूनजू 1947 को स्वतंत्रत् ता की घो षणा कर दी। ऐसा घो षणा कि ए जा ने के बा द धी रे-धी रे लगभग सभी रि या सतें (जि न्हो ने अब तक संवि धा न सभा का बहि ष्का र कर रखा था ) इस सभा में शा मि ल हो गया । 

(कुछ को छो ड़ कर जैसे कि – जम्मू और कश्मी र, हैदरा बा द, और जूनाजूनागढ़ जि से बा द में शा मि ल करा लि या गया । ये कैसे ↗️

कि या गया इसके लि ए इस लेख को पढ़ें) 

5. आजा द भा रत का संवि धा न सभा 

जैसा कि हम जा नते हैं, 15 अगस्त 1947 को भा रत आजा द हुआ और संवि धा न सभा एक स्वतंत्रत् नि का य बन गया जि से अब कि सी से अनुमनुति लेने की आवश्यकता नहीं थी । इससे हुआ ये कि अब संवि धा न सभा अपनी पूरी क्षमता और गति के सा थ का म करने लगे। 

[चूंकि अब देश भी चला ना था इसी लि ए सभा दो रूपों मे का म करने लगी । एक संवि धा न बना ने का का म और दूसदू रा सा मा न्य वि धि बना ने का का म जि ससे की तत्का ली न प्रशा सन को चला या जा सकें।] 

[मुस्लिमुस्लि म ली ग चूंकि अब अलग हो कर एक नया रा ज्य पा कि स्ता न बना चुकाचु का था इसी लि ए संवि धा न सभा में सी टों की संख्या कम हो गयी और अब केवल 299 सी टें ही रह गयी थी जि समें से 70 देशी रि या सतों के लि ए और बा की ब्रि टि श प्रां त के लि ए।] 

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संवि धा न नि र्मा ण, व्यवस्थि त और क्रमबद्ध तरी के से हो इसके लि ए वि भि न्न बड़ी और छो टी समि ति यों का गठन कि या गया और सभी समि ति यों को उसके वि शेषज्ञता और क्षमता के अनुसानु सार का र्य सौ प दि या गया । 

आइये जा न लेते है कि वो कौ नकौ न समि ति यां (Committees) थी । 

संविसंविधा न नि र्मा ण के लि ए नि र्मि त बड़ी समि ति यां 

1. संघ शक्ति समि ति – जवा हर ला ल नेहरू 

2. संघी य संवि धा न समि ति – जवा हर ला ल नेहरू 

3. प्रां ती य संवि धा न समि ति – सरदार पटेल 

4. प्रा रूप समि ति – डॉ बी आर अंबेडकर 

5. मौ लि क अधि का रों , अल्पसंख्यकों , जनजा ति यों एवं सी मां त क्षेत्रोंत् रों के लि ए सला हका र समि ति – सरदार पटेल 6. प्रक्रि या नि यम समि ति – डॉ रा जेंद्रद् प्रसा द 

7. रा ज्यों के लि ए समि ति – जवा हर ला ल नेहरू 

8. संचा लन समि ति – डॉ रा जेंद्रद् प्रसा द 

9. झंडा समि ति – जे बी कृपला नी 

10. परा मर्श समि ति – सरदार पटेल 

इसमें से जो सबसे महत्वपूर्ण है वो हैं प्रा रूप समि ति (Drafting committee)। ये इसलि ए महत्वपूर्ण है क्यों कि संवि धा न के प्रा रूप या नी कि ड्रा फ्ट तैया र करने की जि म्मेवा री इसी की थी । 

सब कुछ ड्रा फ्ट पर ही टि का था क्यों कि ड्रा फ्ट तैया र हो ने के बा द ही इस पर बहस हो ता , इसमें संशो धन हो ता और अंति म रूप से संवि धा न अस्ति त्व में आ पा ता । 

प्रा रूप समि ति 

प्रा रूप समि ति में कुल 7 सदस्य थे जि सके अध्यक्ष डॉ . बी .आर. अंबेडकर थे। 

इसके अला वा और छह सदस्य क्रमशः एन गो पा लस्वमी आयंगर, अल्ला दी कृष्णस्वा मी अय्यर, के एम मुंशीमुं शी, सैयद मो हम्मद सा दुल्दुला ह, एम मा धव रा व (इन्हों ने बा द में बी एल मि त्रत् की जगह ली ।) टी टी कृष्णमचा री (इन्हों ने डी पी खेताखे तान की जगह ली ।) 

संवि धा न का प्रभा व में आना (Constitution comes into effect) 

प्रा रूप समि ति द्वा रा संवि धा न का पहला प्रा रूप फ़रवरी 1948 में पेश कि या गया । और इस में संशो धन करा ने के लि ए लो गों को 8 मही ने का वक़्त दि या गया । 

जि तने भी संशो धन के मां ग आये। जरूरत अनुसानु सार उसमें संशो धन करके आठ मही ने बा द अक्तूबतूर 1948 में इसे फि र से प्रका शि त कि या गया । 

4 नवम्बर 1948 को संवि धा न का अंति म प्रा रूप पेश कि या गया । इस पर पाँ च दि नों तक चर्चा हुई और 15 नवम्बर 1948 से इस पर खंडखं वा र वि चा र और उस पर संवि धा न सभा में बहस हो ना शुरूशु हुआ। बहस इस कदर हुई कि कहा जा ता है कि सा र्वभौ मि क मता धि का र ही एक ऐसा प्रा वधा न था जो कि बि ना बहस के पा स हो पा या । 

17 अक्तूबतूर 1949 तक इस पर वि चा र और बहस चला और उसके बा द 14 नवम्बर 1949 से इस पर ती सरे दौर का वि चा र हो ना शुरूशु हुआ।

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डॉ . अंबेडकर ने ‘The Constitution Age Settled by the Assembly be Passed’ ना मक प्रस्ता व पेश कि या और 26 नवम्बर 1949 को इसे पा रि त घो षि त कर दि या गया । 

जब ये बनकर तैया र हो गया तो इस संवि धा न में कुल 395 अनुच्नुछेद, 8 अनुसूनु सूचि याँ और एक प्रस्ता वना थी । 

हा लां कि जि स दि न ये पा रि त हुआ उस दि न सभी सदस्य नहीं आए थे केवल 284 सदस्य ही उपलब्ध थे तो उन्हो ने ही इस पर हस्ता क्षर कि ए। (आप इस लिं क के मा ध्यम से उस समय की कुछ तस्वी रें देख सकते हैं – संवि धा न नि र्मा ण की ↗️

तस्वी रें ) 

और एक बा त और या द रखने वा ली है कि 26 नवम्बर 1949 को संवि धा न के सि र्फ कुछ ही प्रा वधा नों को ला गू कि या गया था जैसे कि ना गरि कता , चुनाचुनाव आदि । जबकि सम्पूर्ण संवि धा न को 26 जनवरी 1950 को ला गू कि या गया । जि स दि न हम गणतन्त्रत् दि वस (Republic Day) मना ते है। 

इस दि न के पी छे का रण ये है कि इसी दि न 1930 में भा रती य रा ष्ट्री य काँ ग्रेग् रेस के ला हौ र अधि वेशन में पा रि त एक संकल्प के आधा र पर पूर्ण स्वरा ज दि वस मना या गया था । 

संवि धा न नि र्मा ण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिभूमिका नि भा ने के का रण डॉ .अंबेडकर को भा रती य संवि धा न के पि ता से संबो धि त कि या जा ता है। 

◾24 जनवरी 1950 को संवि धा न सभा की अंति म बैठक हुई और 26 जनवरी 1950 से इस संवि धा न सभा ने तब तक अन्तरि म संसद के रूप में का म कि या जब तक कि 1951-52 में आम चुनाचुनाव नहीं हो गया । 

संविसंविधा न नि र्मा ण तथ्य (Facts of making of Constitution) 

◾संवि धा न बनने में 2 सा ल 11 मही ने और 18 दि न का समय लगा । इस के दौरा न संवि धा न सभा की कुल 11 बैठकें हुई लगभग 60 देशों के संवि धा न को खंगाखं गाला गया । कहा जा ता है कि उस समय इसमें लगभग 64 ला ख रुपए खर्च आया । उस समय के हि सा ब से ये का फी ज्या दा रकम था । 

◾22 जुलाजु लाई 1947 को रा ष्ट्री य ध्वज को अपना या गया । 24 जनवरी 1950 को रा ष्ट्री य गा न एवं रा ष्ट्री य गी त को अपना या गया । 

◾मूलमू संवि धा न प्रेम बि हा री ना रा यण रा यजा दा द्वा रा इटैलि क शैली में लि खा गया , तथा इसका सौं दसौं र्यी करण शां ति नि केतन के कला का र द्वा रा हुआ। (इन कला का रों में नन्दला ल बो स और बि उहर रा ममनो हर सि न्हा शा मि ल थे) 

◾मूलमू प्रस्ता वना , प्रेम बि हा री ना रा यण रा यजा दा द्वा रा लि खा गया तथा सौं दसौं र्यी करण रा म मनो हर सि न्हा द्वा रा हुआ। 

◾मूलमू संवि धा न के हि न्दी संस्करण का सुलेसु लेखन वसंत कृष्ण वैद्य द्वा रा कि या जि से कि नंदला ल बो स द्वा रा सौं दसौं र्यी करण कि या गया ।