Article 31A

article 31a

Article 31A Explained in Hindi 

यह लेख अनुच्छेद 31क (Article 31A) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें; 

Article 31A 

�� अनुच्छेद 31(Article 31A) 

2 द्वारा प्रदत अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है

परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधानमण्डल द्वारा बनाई गई विधि है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगेहों गेजब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है:] 5 

(2) इस अनुच्छेद में

6 और केरल राज्यों में कोई जन्मम अधिकार भी होगा

(ii) रैयतबाड़ी बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी

(iii) कृषि के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए धृत या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि, चरागाह या भूमि के कृषकों,कों कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभोग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल हैं;] 

() “अधिकारपद के अंतर्गत, किसी संपदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उपस्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भूधृतिधारक, 8 या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भूराजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषाधिकार होंगेहों गे।] —————- 

1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अतः स्थापित। 

2. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अतः स्थापित। 

3. संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खडं (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित। 4. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31” के स्थान पर प्रतिस्थापित। 

5. संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा (20-6-1964 से) अतः स्थापित। 

6. संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से उपखडं () के स्थान पर प्रतिस्थापित। 7. मद्रास राज्य (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रासके स्थान पर प्रतिस्थापित। 

8. संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अतः स्थापित। 

———अनुच्छेद 31क———— 

2: 

Provided that where such law is a law made by the Legislature of a State, the provisions of this article shall not apply thereto unless such law, having been reserved for the consideration of the President, has received his assent:] 

(2) In this article,— 

6 and Kerala, any janmam right; 

(ii) any land held under ryotwari settlement; 

(iii) any land held or let for purposes of agriculture or for purposes ancillary thereto, including waste land, forest land, land for pasture or sites of buildings and other structures occupied by cultivators of land, agricultural labourers and village artisans;] 

(b) the expression “rights”, in relation to an estate, shall include any rights vesting in a proprietor, sub proprietor, under-proprietor, tenureholder, 8 or other intermediary and any rights or privileges in respect of land revenue.] 

—————— 

1. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 3 (w.e.f. 3-1-1977). 2. Ins. by the Constitution (First Amendment) Act, 1951, s. 4, (with retrospective effect). 3. Subs. by the Constitution (Fourth Amendment) Act, 1955, s. 3, for cl. (1) (with retrospective effect). 4. Subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 7, for “article 14, article 19 or article 31” (w.e.f. 20-6-1979). 

5. Ins. by the Constitution (Seventeenth Amendment) Act, 1964, s. 2(i) (w.e.f. 20-6-1964). 6. Subs. by s.2(ii), ibid., for sub-clause (a) (with retrospective effect). 

7. Subs. by the Madras State (Alteration of Name) Act, 1968 (53 of 1968), s. 4, for “Madras” (w.e.f. 14-1- 1969). 

8. Ins. by the Constitution (Fourth Amendment) Act, 1955, s. 3 (with retrospective effect). ——-Article 31A——– 

�� Article 31A Explanation in Hindi 

कुछ विधियों की व्यावृत्ति (Saving of Certain Laws)‘ के तहत कुल तीन खंड हैं; (जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं) इस लेख में हम इसी का पहला खंड यानी कि अनुच्छेद 30(Article 31A) को समझने वाले हैं; 

हालांकि इसके तहत एक चौथा खंड (31घ) भी था जो कि राष्ट्र विरोधी क्रियाकलाप के संबंध में था पर उसे 43वां संविधान संशोधन अधिनियम 1977 द्वारा खत्म कर दिया गया। 

इन प्रावधानों को संविधान में संशोधन करके जोड़ा गया है। यानी कि ये सारे प्रावधान मूल संविधान का हिस्सा नहीं रहा है। इसे जोड़ने का मुख्य कारण जमींदा मीं री प्रथा को खत्म करना और कृषि सुधार या भूमि सुधार की दिशा में आगे बढ़ना था। 

अनुच्छेद 31↗️ 

अनुच्छेद 30संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति (Saving of laws providing for acquisition of estates, etc.) 

अनुच्छेद 30– कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण 

अनुच्छेद 30– कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति 

Article 31A 

| अनुच्छेद 31संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति 

अनुच्छेद 31क को पहला संविधान संशोधन अधिनियम 1951 द्वारा लाया गया था। इसका उद्देश्य जमींदा मीं री के अर्जन (acquisition) को विधिमान्यता (validity) देना था। ताकि जब भी राज्य द्वारा जमींदा मीं रों की ज़मीनें छीनी जाए तो न्यायालय उसमें हस्तक्षेप न करे। 

न्यायालय द्वारा इसमें हस्तक्षेप करने का खतरा इसीलिए था क्योंकिक्यों संपत्ति का अधिकार एक मूल अधिकार हुआ करता था। और अनुच्छेद 13 इस बात की बिलकुल इजाजत नहीं देता कि मूल अधिकारों का हनन करने वाली कोई विधि अस्तित्व में आए। 

क्योंकिक्यों अगर ऐसा होता है तो किसी भी व्यक्ति के पास अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट का कर्तव्य है कि वो किसी भी हालत में मूल अधिकारों की रक्षा करें; 

| पहला संविधान संशोधन 1951 

1950 में भारतीय संविधान लागू किया गया था, और अगले ही वर्ष, एक संशोधन पेश किया गया। यह महत्वपूर्ण इसीलिए है क्योंकिक्यों अभी तक पहला आम चुनाव भी नहीं हुआ था। 

इस संशोधन के द्वारा संविधान में तीन मूलभूत परिवर्तन किए गए, जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं

1. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित करना – ‘सार्वजनिक व्यवस्था’, ‘विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, और ‘अपराध के लिए उकसाना’ शब्दों को शामिल करके कुछ प्रतिबंध जोड़ा गया। 

2. पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों को पेश किया गया – अनुच्छेद 15 में खंड 4 जोड़ा गया क्योंकिक्यों देश को पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। 

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – ◾ भारत में आरक्षण 

3. भूमि सुधार (land reform) – अनुच्छेद 31A और अनुच्छेद 31B को जोड़ा गया जिसने भूमि सुधारों को संवैधानिक जांच से छूट दी। इनके अलावा, नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया था जिसमें मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ किसी भी चुनौती से सुरक्षित कानून शामिल थे। 

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – ◾ नौवीं अनुसूची की न्यायिक समीक्षा 

प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951 की धारा 4 ने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 31को जोड़ा, जिसमें सम्पदा आदि के अधिग्रहण के लिए कानूनों की व्यावृत्ति का प्रावधान किया गया। 

वर्तमान में, यह अनुच्छेद, अनुच्छेद 31ख और 31ग के साथ एक अलग समूह के तहत समूहीकृत है। जिसका शीर्षक है ‘कुछ कानूनों की व्यावृत्ति (Saving of Certain Laws)’। यह शीर्षक संविधान (बयालीसवें) संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से पेश किया गया था। 

तो यहाँ तक हमने ये समझ लिया कि अनुच्छेद 31क संविधान में कैसे आया। आइये अब समझते हैं कि इस व्यवस्था को लाए जाने की जरूरत क्या थी; 

| अनुच्छेद 31क को जोड़ने की आवश्यकता 

इस संशोधन के पीछे का उद्देश्य अदालतों के हस्तक्षेप के बिना ज़मींदा मीं री के अधिग्रहण या स्थायी बंदोबस्त (permanent settlement) के उन्मूलन को मान्य करना था। 

दरअसल संविधान को अपनाने के बाद, कृषि सुधार की दिशा में राज्य सरकारों द्वारा कई कदम उठाए गए। उनमें से एक कानून, बिहार भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की थी। 

इस अधिनियम ने राज्य सरकार को कुछ जमींदा मीं रों की संपत्ति का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया। लेकिन, इस अधिनियम को सर कामेश्वर सिंह बनाम बिहार प्रांत (1951) के मामले में पटना उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई, और न्यायालय ने इसे असंवैधानिक घोषित किया क्योंकिक्यों इसने संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन किया था। 

◾ दूसरा मामला चंपकम दोराइराजन बनाम मद्रास सरकार का मामला 1951 है। 

दरअसल जब चंपकम दोराइराजन नामक लड़की को मद्रास के एक मेडिकल कॉलेज में सिर्फ इसीलिए एड्मिशन नहीं मिला क्योंकिक्यों वहाँ सरकार के एक ऑर्डर से सीटों को समाज के अलग-अलग सेक्शन के लिए आरक्षित कर दिया गया था। तो उसने मद्रास उच्च न्यायालय में अपने मूल अधिकारों के हनन को लेकर एक याचिका दायर की। 

मामला सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समुदाय के आधार पर दिया गया आरक्षण मूल अधिकारों का हनन करता है इसीलिए राज्य एड्मिशन के मामले में जाति या धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं कर सकता है, क्योंकिक्यों इससे अनुच्छेद 16(2) और अनुच्छेद 29(2) का हनन होता है। 

इसे विस्तार से समझें – भारत में आरक्षण 

उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जो कि एक समाजवादी विचारधारा के नेता थे, समझ गए कि अगर समाज के वंचित तबके को मुख्य धारा में लाना है तो संविधान में संशोधन करना ही पड़ेगा। 

क्योंकिक्यों अगर ऐसा नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट हर बार टांग अड़ाएगा और समाज के वंचित हमेशा वंचित ही रह जाएँगे। इस तरह से पहला संविधान संशोधन अस्तित्व में आया। 

और इस तरह से भूमि सुधार से जुड़े मुद्दों को समाप्त करने के लिए, अनुच्छेद 31को पेश किया गया। इस प्रावधान ने सरकार को किसी भी संपत्ति का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया और किसी को भी भारतीय संविधान के भाग III के तहत निहित अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर इसे चुनौती देने से प्रतिबंधित कर दिया। 

⚫ हालांकि याद रखिए कि उस समय अनुच्छेद 31 को खत्म नहीं किया गया था बस अनुच्छेद 31क और 31ख को जोड़ा गया था। 25वें संविधान संशोधन अधिनियम 1971द्वारा अनुच्छेद 31ग जोड़ा गया। 

साल 1978 में 44वें संविधान संशोधन की मदद से अनुच्छेद 31 को खत्म कर दिया गया। और इस तरह से अब अनुच्छेद 31क, 31ख और 31ग बचा है। और इस लेख में आइये हम अनुच्छेद 31क को खंडवार समझते हैं; (अनुच्छेद 31ख और 31ग पर अलग से लेख मौजूद है) 

⚫ अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान 

⚫ अनुच्छेद-31(ग) – भारतीय संविधान 

——Article 31A—— 

पखंड () : किसी संपदा के या उसमें किन्ही अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि 

यह उपबंध मुख्य रूप से दो दशाओं में लागू होता है – राज्य द्वारा संपदा का अर्जन, या (2) अर्जन किए बिना संपदा के अधिकारों का समाप्तीकरण या उपांतरण (modification)। 

यह उस समय लागू नहीं होगा जब किसी धारक के अधिकार न तो अर्जित किए जाते हैं, न समाप्त किए जाते हैं और न उपांतरित किए जाते हैं। 

किसी संपदा के अधिकारों का अर्जन, समाप्तीकरण या उपांतरण के बीच अंतर

अर्जन में हितग्राही (Beneficiary) राज्य होता है किन्तु अन्य मामलों में नहीं।हीं जैसे कि अगर लोक प्रयोजन (public purpose) के लिए राज्य किसी जागीरदार की संपत्ति ले लेता है तो यह अनुच्छेद 31के तहत अर्जन (acquisition) होगा। 

अगर किसी पट्टेदार से जमीन लेने पर उसके अधिकार उस संपत्ति पर समाप्त हो जाते हों,हों तो ऐसी स्थिति में अगर यह पट्टा किसी प्राइवेट व्यक्ति से लिया गया है तो यह समाप्तीकरण या निर्वापन होगा। वहीं अगर यह पट्टा राज्य के ही अधीन है तो यह अर्जन होगा। 

◾ उपांतरण शब्द का अर्थ निर्वापन भी हो सकता है और नहीं भी, जैसे कि कोई विधि जो सीमित अवधि के लिए स्वामी के अधिकार को निलंबित करती है तो इसे उपांतरण (modification) कहा जाएगा। 

कुल मिलाकर अनुच्छेद 31क(1)(क) लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य उन जमींदा मीं रों और बिचौलियों की भूमि का अर्जन करना था जो केवल लगान प्राप्त करते थे और अनुच्छेद 19(1)(च) और 31(2) के तहत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त कर बच जाते थे। 

पखंड () : संपत्ति का प्रबंध ग्रहण करने से संबंधित है

यह उपखंड राज्य को सीमित अवधि के लिए स्थावर (immovable) या जंगम (moveable) किसी भी संपत्ति का प्रबंध ग्रहण करने की शक्ति देता है। और यह सिर्फ औद्योगिक उपक्रमों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका विस्तार सभी प्रकार की संपत्ति पर है। 

इसके तहत कुछ शर्तें भी है; जैसे कि संपत्ति सीमित अवधि के लिए ली गई हो अनिश्चित अवधि के लिए नहीं,हीं संपत्ति लोकहित में या उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ली गई हो, और संपत्ति राज्य द्वारा ली गई हो, इत्यादि। 

पखंड () : निगमों का समामेलन (incorporation) से संबंधित है

इस उपखंड का उद्देश्य लोकहित को ध्यान में रखकर एक ही क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिस्पर्धी उद्यमियों के बीच हानिकर प्रतियोगिता समाप्त करना है। 

पखंड () : निदेशकों या अंशधारकों (shareholders) के अधिकारों का निर्वापन (extinction) या उपांतरण (modification) आदि के बारे में है

किसी कंपनी में शेयर धारकों को जो वोटिंग का अधिकार मिलता है वो उसे संपत्ति से मिलता है या फिर यह संपत्ति से उत्पन्न होने वाला एक व्यक्तिगत अधिकार है। यह प्रश्न चिरंजीत मामले में उठाया गया। 

अगर संपत्ति से यह अधिकार मिलता है तो उस समय संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार था ऐसे में राज्य द्वारा संपत्ति अर्जन से मौलिक अधिकारों का हनन होता। 

इसी से बचने से लिए इस उपखंड को लाया गया और यह व्यवस्था कर दी गई कि यदि किसी विधि द्वारा शेयर धारकों के मत देने के अधिकार प्रभावित होते हैं तो इसे अनुच्छेद 19(1)(च) या 31 का उल्लंघन नहीं होगा। 

पखंड () : खनन पट्टों (mining leases) के अधीन अधिकारों का निर्वापन (extinction) या उपांतरण (modification) से संबंधित है

अगर किसी विधि के द्वारा, किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे (lease) या अनुज्ञप्ति (license) के आधार पर अगर किन्ही अधिकारों को समाप्त किया जाता है या उनमें परिवर्तन किया जाता है तो उस विधि को इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत अधिकारों में से किसी से असंगत है: 

याद रखने योग्य बातें

◾ यदि ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मण्डल द्वारा बनाई जाती है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगेहों गे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है: 

◾ 17वें संविधान संशोधन अधिनियम 1964 द्वारा कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए एक तो दूसरा परंतुक (Proviso) जोड़ा गया और अनुच्छेद 31क के खंड 2(क)(ii) को भी जोड़ा गया। 

◾ अनुच्छेद 31क के खंड 2()(ii) के द्वारा रैयतवाड़ी को अनुच्छेद 31(1)() के अधीन लाया गया। आपको याद होगा कि अनुच्छेद 31(1)() लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य उन जमींदा मीं रों और बिचौलियों की भूमि का अर्जन करना था जो केवल लगान प्राप्त करते थे और अनुच्छेद 19(1)(च) और 31(2) के तहत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त कर लेते थे। 

लेकिन चूंकि पूरे देश में जमींदा मीं री व्यवस्था थी नहीं,हीं देश के कई भागों (खासकर के मद्रास प्रेसीडेंसी) में रैयतवाड़ी व्यवस्था चल रही थी। जिसके तहत किसान ही जमीन का मालिक हुआ करता था। 

लेकिन चूंकि सभी किसानों के पास अपनी ज़मीनें नहीं थी ऐसे में उसे भी जमीन दिए जाने की जरूरत तो थी। इसीलिए ऐसी भूमि को भी अनुच्छेद 31(1)() के अधीन ला दिया गया। लेकिन चूंकि ये लोग जमींदा मीं र या बिचौलिये नहीं थे बल्कि किसान ही थे इसीलिए उससे ली गई भूमि के लिए बाज़ार मूल्य देने की व्यवस्था की गई। 

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि यदि कोई व्यक्ति अधिकतम सीमा के भीतर भूमि को इस समय जोत रहा है और वह उसके जीवनयापन का स्रोत है तो उसे अनुच्छेद 31के अधीन आने वाली किसी विधि के द्वारा उसकी भूमि से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक कि उसे बाज़ार भाव से क्षतिपूर्ति न दे दिया जाए। 

और इसे ही दूसरे परंतुक के तहत संविधान का हिस्सा बनाया गया जिसे कि आप संशोधन न. 5 में देख सकते है। 

अनुच्छेद 31(2)() : सम्पदा का अर्थ 

सम्पदा (wealth) शब्द में मूल संकल्पना यह है कि सम्पदा धारण करने वाला व्यक्ति भूमि का स्वत्वधारी हो और उसका राज्य से सीधा संबंध हो। और आमतौर पर राज्य को भू-राजस्व देता हो। 

कुल मिलाकर इस अनुच्छेद के अर्थ में कोई सम्पदा है या नहीं,हीं इसे जानने के लिए हमें उस क्षेत्र में लागू भू-धृति (land tenure) संबंधी विधि को देखना होगा। हो सकता है कि स्थानीय स्तर पर संपदा के लिए कोई और शब्द इस्तेमाल में आता हो। 

अनुच्छेद 31(2)()(i): जागीर के तहत उन व्यक्तियों को दिए गए सभी अनुदान आते हैं जो कि कृषक नहीं थे। अनुच्छेद 31(2)()(ii): इसके तहत रैयतवाड़ी की बात की गई है जिसे कि हमने ऊपर समझ लिया है। 

अनुच्छेद 31(2)()(iii): ‘बंजर भूमि या वन भूमि’ इस खंड के अधीन संपदा की परिभाषा के तहत तभी आएंगी जब वे कृषि से अनुषंगी (subsidiary) प्रयोजनों (purposes) के लिए धारित है या भाटक (rent) पर दिए गए है। 

अनुच्छेद 31(2)(): किसी संपदा के संबंध में “अधिकार” पद के अंतर्गत, किसी स्वत्वधारी (proprietor), उप-स्वत्वधारी (sub proprietor), अवर स्वत्वधारी (under-proprietor), भू-धृतिधारक (tenure holder), रैयत, अवर रैयत या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषाधिकार होंगेहों गे। 

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 31क (Article 31A), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं। समग्रता से समझने के लिए अनुच्छेद 31, 31क, 31ख और 31ग तीनों को पढ़ें और समझे; 

⚫ अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान 

⚫ अनुच्छेद-31(ग) – भारतीय संविधान 

—Article 31A—- 

अनुच्छेद 31(Article 31A) क्या है

31क. संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति – (1) अनुच्छेद 13 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जमींदा मीं रों या बिचौलियों से भूमि अर्जन करने वाली विधि इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है: 

विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें; 

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों,त्रों पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। 

Article 31A 

Extra References 

https://blog.ipleaders.in/first-amendment-of-indian-constitution/

https://en.wikipedia.org/wiki/First_Amendment_of_the_Constitution_of_India