यह लेख Article 358 (अनुच्छेद 358) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 358 (Article 358) – Original

भाग 18 [आपात उपबंध]
358. आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन — 1[(1)] 2[जब युद्ध या बाह्य आक्रमण के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा के संकट में होने की घोषणा करने वाली आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब अनुच्छेद 19 की कोई बात भाग 3 में यथा परिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्बधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है :

3[परन्तु 4[जहां आपात की ऐसी उद्घोषणा] भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां, यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहां तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।]

5[(2) खंड (1) की कोई बात,

(क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्घोषणा के संबंध में है ; या
(ख) किसी ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतर्विष्ट करने वाली विधि के अधीन न करके अन्यथा की गई है ।
========================
1. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छेद 358 को उसके खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांयितत किया गया।
2. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 52 द्वारा (3-1-977 से) अंतःस्थापित ।
4. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
5. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित ।
अनुच्छेद 358 हिन्दी संस्करण

Part XVIII [EMERGENCY PROVISIONS]
358. Suspension of provisions of article 19 during emergencies— 1[(1)] 2[While a Proclamation of Emergency declaring that the security of India or any part of the territory thereof is threatened by war or by external
aggression is in operation], nothing in article 19 shall restrict the power of the State as defined in Part III to make any law or to take any executive action which the State would but for the provisions contained in that Part be
competent to make or to take, but any law so made shall, to the extent of the incompetency, cease to have effect as soon as the Proclamation ceases to operate, except as respects things done or omitted to be done before the law so ceases to have effect:

3[Provided that 4[where such Proclamation of Emergency] is in operation only in any part of the territory of India, any such law may be made, or any such executive action may be taken, under this article in relation to or in any
State or Union territory in which or in any part of which the Proclamation of Emergency is not in operation, if and in so far as the security of India or any part of the territory thereof is threatened by activities in or in relation to the part of the territory of India in which the Proclamation of Emergency is in operation.]

5[(2) Nothing in clause (1) shall apply—
(a) to any law which does not contain a recital to the effect that such law is in relation to the Proclamation of Emergency in operation when it is made; or
(b) to any executive action taken otherwise than under a law containing such a recital.]
======================
1. Art. 358 re-numbered as cl. (1) by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 39 (w.e.f. 20-6-1979).
2. Subs. by s. 39, ibid, for “While a Proclamation of Emergency is in operation” (w.e.f. 20-6-1979).
3. Added by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 52 (w.e.f. 3-1-1977).
4.Subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 39, for “where a Proclamation of Emergency” (w.e.f. 20-6-1979).
5. Ins. by s. 39, ibid. (w.e.f. 20-6-1979).
Article 358 English Version

🔍 Article 358 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग आपात उपबंध (EMERGENCY PROVISIONS) के बारे में है।

भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान विशेष शक्तियों का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय या संवैधानिक संकट के समय भारत के राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जा सकता है। ये प्रावधान सरकार को कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और संकट से निपटने के लिए अन्य असाधारण उपाय करने की अनुमति देते हैं।

आपातकालीन प्रावधानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

राष्ट्रीय आपातकाल: यह सबसे गंभीर प्रकार का आपातकाल है और इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।

राष्ट्रपति शासन: यह तब घोषित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि वित्तीय संकट मौजूद है या होने की संभावना है तो इसे घोषित किया जा सकता है।

आपातकालीन प्रावधान भारतीय संविधान का एक विवादास्पद हिस्सा हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि संकट के समय में देश की रक्षा के लिए वे आवश्यक हैं, जबकि अन्य का तर्क है कि वे बहुत शक्तिशाली हैं और सरकार द्वारा उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

उपरोक्त सारे आपातकालीन प्रावधानों को अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में सम्मिलित किया गया है; और इस लेख में हम अनुच्छेद 358 को समझने वाले हैं;

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| अनुच्छेद 358 – आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन (Suspension of provisions of article 19 during emergencies)

विपरीत परिस्थितियों में देश की संप्रभुताएकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की बात की गई है। जिसके तहत हमने समझा कि किस तरह से बाह्य आक्रमण के आधार पर आपातकाल लगाया जा सकता है। पहले आंतरिक अशांति के आधार पर भी लगाया जा सकता था लेकिन अब सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लगाया जा सकता है। हालांकि सशस्त्र विद्रोह भी आंतरिक अशांति को जन्म देता है।

इसी में से जब पहले दो के आधार पर आपातकाल लगाया जाता है तब अनुच्छेद 19 के प्रावधानों को निलंबित कर दिया जाता है। और अनुच्छेद 358 इसी के बारे में है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 2 खंड है। आइये इसे समझें;

अनुच्छेद 358 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि जब युद्ध या बाह्य आक्रमण के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा के संकट में होने की घोषणा करने वाली आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब अनुच्छेद 19 की कोई बात भाग 3 में यथा परिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्बधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है :

परन्तु जहां आपात की ऐसी उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी आग में प्रवर्तन में है वहां, यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहां तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।

अनुच्छेद 358 के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल (National emergency) जैसे ही घोषित होता है। उसके साथ ही अनुच्छेद 19 द्वारा जो स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है वो स्वतः निलंबित हो जाता है। इसके लिए कोई अगल से आदेश की जरूरत नहीं पड़ती है।

दूसरे शब्दों में कहें तो अनुच्छेद 19 के तहत जो छह स्वतंत्रता मिलती है, वो आपातकाल के लागू रहने तक छीन जाती है। आपातकाल खत्म होते ही अनुच्छेद 19 पुनः जीवित हो जाती है। पर इससे जो जनता को नुकसान होगा उसके भरपाई की कोई व्यवस्था नहीं है।

दूसरी बात ये कि इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसका ये मतलब कतई नहीं है कि आपातकाल को चुनौती नहीं दी जा सकती है। बस अनुच्छेद 19 के निलंबन से मूल अधिकारों का जो हनन होता है, उसको चुनौती नहीं दी जा सकती ।

इस संबंध में, 1978 के 44वें संविधान संशोधन द्वारा दो व्यवस्थाएं दी गयी है, पहला कि केवल ‘बाह्य आपातकाल’ के दौरान ही अनुच्छेद 19 निलंबित होगा। ‘आंतरिक आपातकाल’ के दौरान नहीं।

और दूसरी व्यवस्था ये दी गयी कि उन विधियों को जो आपातकाल से संबन्धित है तथा ऐसे विधियों के तहत दिये गए कार्यकारी निर्णयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

अनुच्छेद 358 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि खंड (1) की कोई बात,

(क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्घोषणा के संबंध में है ; या
(ख) किसी ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतर्विष्ट करने वाली विधि के अधीन न करके अन्यथा की गई है।

अनुच्छेद 358 और अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों पर प्रभाव
अनुच्छेद 358 के तहत स्वतः ही अनुच्छेद 19 का निलंबन हो जाता है इसके लिए राष्ट्रपति के आदेश की जरूरत नहीं पड़ती।
वहीं अगर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 19 के अतिरिक्त किसी अन्य मूल अधिकारों को निलंबित करना है तो वे अनुच्छेद 359 के तहत ऐसा कर सकते हैं। लेकिन अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर ।
अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 का निलंबन केवल बाह्य आक्रमण के आधार पर ही होता है।
जबकि अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन बाह्य और आंतरिक दोनों आपातकाल में होता है।
अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 तब तक निलंबित रहता है जब तक आपातकाल लागू रहता है
वहीं अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन; राष्ट्रपति जितनी अवधि तय करता है, उतनी अवधि तक रहता है।
अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 सम्पूर्ण देश में निलंबित हो जाता है।
वहीं अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन पूरे देश में या फिर देश के किसी भाग में किया जा सकता है।
अनुच्छेद 358 के तहत ऐसे नियम भी बनाए जा सकते हैं जो अनुच्छेद 19 से संबंध नहीं रखते हैं।
लेकिन अनुच्छेद 359 के तहत सिर्फ ऐसे नियम ही बनाए जा सकते हैं जो इसी अनुच्छेद के तहत निलंबित मूल अधिकारों से संबन्धित हो।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 358 कुछ मौलिक अधिकारों के निलंबन से संबंधित है, विशेष रूप से अनुच्छेद 19 में निहित मूल अधिकार।

  • दायरा: केवल तभी लागू होता है जब युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया हो।
  • निलंबित अधिकार: आपातकाल के दौरान, अनुच्छेद 19 के तहत निम्नलिखित अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है:
    • भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
    • शांतिपूर्वक और बिना हथियार के इकट्ठा होने की आज़ादी
    • संघ और यूनियन बनाने की स्वतंत्रता
    • भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने की स्वतंत्रता
    • भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता
  • सीमाएँ:
    • निलंबन केवल “राज्य” पर लागू होता है जैसा कि संविधान के भाग III में परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह निजी व्यक्तियों या संस्थाओं को इन अधिकारों को प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं देता है।
    • इस अनुच्छेद के तहत बनाया गया कोई भी कानून या की गई कार्यकारी कार्रवाई भारत या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की सुरक्षा से संबंधित होनी चाहिए।

अनुच्छेद 358 की आलोचनाएँ:

  • दुरुपयोग की संभावना: “सुरक्षा” की व्यापक परिभाषा सरकार के खिलाफ असहमति को दबाने या आलोचना को रोकने के लिए इसका उपयोग करने की संभावना के बारे में चिंता पैदा करती है।
  • शक्ति का असंतुलन: मौलिक अधिकारों को निलंबित करने से राज्य को महत्वपूर्ण शक्ति मिलती है, जो संभावित रूप से व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कमजोर करती है।
  • अप्रभाविता: आलोचकों का तर्क है कि स्वतंत्रता में कटौती से जरूरी नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत हो और यह प्रतिकूल भी हो सकता है।

वर्तमान परिदृश्य:

  • अनुच्छेद 358 का उपयोग विवादास्पद रहा है, 1975 के इंदिरा गांधी आपातकाल जैसे उदाहरणों से लोकतंत्र को कमजोर करने की इसकी क्षमता के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • हालाँकि, हाल के वर्षों में इसका उपयोग कम हो गया है, जो असाधारण परिस्थितियों के दौरान भी मौलिक अधिकारों की रक्षा पर अधिक जोर देता है।

विचारणीय प्रश्न:

  • सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन के गंभीर विश्लेषण की आवश्यकता?
  • अनुच्छेद 358 और उसकी व्याख्या पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों का विश्लेषण करें।
  • अनुच्छेद 358 की आवश्यकता और संभावित सुधारों पर विभिन्न दृष्टिकोणों की तुलना करें और तुलना करें।
  • इसके उपयोग के विशिष्ट उदाहरणों और भारतीय समाज और राजनीति पर प्रभाव की जांच करें।

तो यही है अनुच्छेद 358, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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Question 1: Article 358 applies to which fundamental rights during a national emergency?

(a) All fundamental rights enshrined in Part III of the Constitution.
(b) Only the rights to freedom of speech, assembly, and movement.
(c) Only the rights related to judicial review and legal remedies.
(d) Any rights deemed necessary by the President for the security of the nation.

Answer: (b) Explanation: While Article 358 empowers the President to suspend fundamental rights, it specifically targets the rights to freedom of speech, assembly, and movement. Other fundamental rights like the right to life and equality cannot be suspended.

Question 2: The suspension of fundamental rights under Article 358 is:

(a) Absolute and cannot be challenged in any court.
(b) Subject to judicial review by the Supreme Court.
(c) Valid only for the duration of the national emergency.
(d) Both (b) and (c).

Answer: (d) Explanation: Even though fundamental rights can be suspended, the Supreme Court has the power to review the suspension and ensure its validity. Additionally, the suspension remains in effect only for the duration of the national emergency.

Question 3: One of the main criticisms of Article 358 is that it:

(a) Provides inadequate safeguards against arbitrary suspension of rights.
(b) Grants excessive power to the President without sufficient legislative oversight.
(c) Has never been misused in the history of the Indian Constitution.
(d) Fails to consider the specific circumstances of each emergency.

Answer: (a) Explanation: A major concern with Article 358 is the potential for abuse of power and the lack of strong safeguards against arbitrary suspension of fundamental rights. This raises concerns about the erosion of individual liberties during emergencies.

Question 4: The Supreme Court has played a crucial role in:

(a) Expanding the scope of Article 358 and its application to more rights.
(b) Upholding the suspension of rights without any judicial intervention.
(c) Interpreting and setting limits on the use of Article 358.
(d) Abolishing Article 358 altogether.

Answer: (c) Explanation: The Supreme Court has played a critical role in interpreting Article 358 and establishing its limitations. It has set important precedents by emphasizing proportionality, judicial review, and due process in applying the provision.

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अनुच्छेद 359 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 357 – भारतीय संविधान
Next and Previous to Article 358
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संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।