यह लेख Article 360 (अनुच्छेद 360) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 360 (Article 360) – Original

भाग 18 [आपात उपबंध]
360. वित्तीय आपात के बारे में उपबंध — (1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

1[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा
(क) किसी पश्चातवर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या परिवर्तित की जा सकेगी ;
(ख) संसद्‌ के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ;
(ग) दो मास की समास्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद्‌ के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है :

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।]

(3) उस अवधि के दौरान, जिसमें खंड (1) में उल्लिखित उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धांतों का पालन करने के लिए निदेश देने तक, जो निदेशों में विनिर्दिष्ट किए जाएं, और ऐसे अन्य निदेश देने तक होगा जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिए देना आवश्यक और पर्याप्त समझे।

(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,
(क) ऐसे किसी निदेश के अंतर्गत –
(i) किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध ;
(ii) धन विधेयकों या अन्य ऐसे विधेयकों को, जिनको अनुच्छेद 207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित किए जाने
के पश्चात्‌ राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के लिए उपबंध,
हो सकेंगे;

(ख) राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।

1(5)* * * * *
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1. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) प्रतिस्थापित।
2. संविधान (अड़तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (5) अंतःस्थापित किया गया था और उसका संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 4। द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया।
अनुच्छेद 360 हिन्दी संस्करण

Part XVIII [EMERGENCY PROVISIONS]
360. Provisions as to financial emergency— (1) If the President is satisfied that a situation has arisen whereby the financial stability or credit of India or of any part of the territory thereof is threatened, he may by a Proclamation make a declaration to that effect.

1[(2) A Proclamation issued under clause (1)—
(a) may be revoked or varied by a subsequent Proclamation;
(b) shall be laid before each House of Parliament;
(c) shall cease to operate at the expiration of two months, unless before the expiration of that period it has been approved by resolutions of both Houses of Parliament:

Provided that if any such Proclamation is issued at a time when the House of the People has been dissolved or the dissolution of the House of the People takes place during the period of two months referred to in sub clause (c), and if a resolution approving the Proclamation has been passed by the Council of States, but no resolution with respect to such Proclamation has been passed by the House of the People before the expiration of that period, the Proclamation shall cease to operate at the expiration of thirty days from the date on which the House of the People first sits after its reconstitution unless before the expiration of the said period of thirty days a resolution approving the Proclamation has been also passed by the House of the People.]

(3) During the period any such Proclamation as is mentioned in clause (1) is in operation, the executive authority of the Union shall extend to the giving of directions to any State to observe such canons of financial propriety as may be specified in the directions, and to the giving of such other directions as the President may deem necessary and adequate for the purpose.

(4) Notwithstanding anything in this Constitution—
(a) any such direction may include—
(i) a provision requiring the reduction of salaries and allowances of all or any class of persons serving in connection with the affairs of
a State;
(ii) a provision requiring all Money Bills or other Bills to which the provisions of article 207 apply to be reserved for the consideration of the President after they are passed by the Legislature of the State;

(b) it shall be competent for the President during the period any Proclamation issued under this article is in operation to issue directions for the reduction of salaries and allowances of all or any class of persons serving in connection with the affairs of the Union including the Judges of the Supreme Court and the High Courts.

2[(5) * * * * *]
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1. Subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 41, for cl. (2) (w.e.f. 20-6-1979).
2. Ins. by the Constitution (Thirty-eighth Amendment) Act, 1975, s. 8 (with retrospective effect) and omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 41 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 360 English Version

🔍 Article 360 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग आपात उपबंध (EMERGENCY PROVISIONS) के बारे में है।

भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान विशेष शक्तियों का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय या संवैधानिक संकट के समय भारत के राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जा सकता है। ये प्रावधान सरकार को कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और संकट से निपटने के लिए अन्य असाधारण उपाय करने की अनुमति देते हैं।

आपातकालीन प्रावधानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

राष्ट्रीय आपातकाल: यह सबसे गंभीर प्रकार का आपातकाल है और इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।

राष्ट्रपति शासन: यह तब घोषित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि वित्तीय संकट मौजूद है या होने की संभावना है तो इसे घोषित किया जा सकता है।

आपातकालीन प्रावधान भारतीय संविधान का एक विवादास्पद हिस्सा हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि संकट के समय में देश की रक्षा के लिए वे आवश्यक हैं, जबकि अन्य का तर्क है कि वे बहुत शक्तिशाली हैं और सरकार द्वारा उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

उपरोक्त सारे आपातकालीन प्रावधानों को अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में सम्मिलित किया गया है; और इस लेख में हम अनुच्छेद 360 को समझने वाले हैं;

⚫ ◾  वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency)
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| अनुच्छेद 360 – वित्तीय आपात के बारे में उपबंध (Provisions as to financial emergency)

विपरीत परिस्थितियों में देश की संप्रभुताएकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की बात की गई है। जिसके तहत हमने समझा कि किस तरह से बाह्य आक्रमण के आधार पर आपातकाल लगाया जा सकता है। पहले आंतरिक अशांति के आधार पर भी लगाया जा सकता था लेकिन अब सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लगाया जा सकता है। हालांकि सशस्त्र विद्रोह भी आंतरिक अशांति को जन्म देता है।

इसी तरह से अनुच्छेद 356 के तहत बताया गया है कि अगर कोई राज्य संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप कार्य न करें या फिर किसी भी वजह से राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाये तो, अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र उस राज्य को अपने नियंत्रण में ले सकता है। यानी कि राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लगाया जा सकता है।

इसी तरह से एक और प्रकार की आपातकाल की व्यवस्था संविधान में की गई है जो कि है – वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency)।

राष्ट्रीय आपातकाल (National emergency)↗️ और राष्ट्रपति शासन (President’s Rule)↗️ बहुत ही महत्वपूर्ण है, और कुख्यात भी। ऐसा इसीलिए क्योंकि इसका इस्तेमाल देश हित से ज्यादा राजनैतिक हित में हुआ है। वित्तीय आपातकाल (Financial emergency) आजतक देश में लगा ही नहीं इसीलिए उसके व्यावहारिक पहलुओं पर बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध होती है।

संविधान के भाग 18 के तहत अनुच्छेद 352 से लेकर 360 तक तीन प्रकार के आपातकाल की चर्चा मिलती है। उसी में से एक है वित्तीय आपातकाल (Financial emergency)।

जैसा कि ऊपर भी बताया गया है जब भारत की वित्तीय स्थायित्व अथवा साख खतरे में हो तो राष्ट्रपति देश में वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है। इसी को हम अनुच्छेद 360 के तहत समझने वाले हैं। इस अनुच्छेद के तहत कुल 4 खंड है। आइये इसे समझें;

अनुच्छेद 360 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

अनुच्छेद 360 (1) राष्ट्रपति को वित्तीय आपात कि उद्घोषणा करने की शक्ति प्रदान करता है, यदि वह संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है, जिसमें भारत अथवा उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व अथवा साख खतरे में है।

38वें संविधान संशोधन अधिनियम 1975 के माध्यम से इन्दिरा गांधी की सरकार ने तीनों प्रकार के आपातकाल को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया था। यानी कि वित्तीय आपातकाल भी न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर था।

उस अधिनियम में साफ-साफ लिख दिया गया था कि राष्ट्रपति की वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने की संतुष्टि अंतिम और निर्णायक है तथा किसी भी न्यायालय में किसी भी आधार पर प्रश्नयोग्य नहीं है।

परंतु 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के माध्यम से मोरारजी देसाई की सरकार ने इस प्रावधान को समाप्त कर यह कहा कि राष्ट्रपति की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है।

अनुच्छेद 360(2) के अनुसार, वित्तीय आपातकाल की घोषणा को दो माह के भीतर संसद की स्वीकृति मिलना अनिवार्य है।

यदि वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने के दौरान लोकसभा विघटित हो जाये अथवा दो माह के भीतर इसे मंजूर करने से पूर्व लोकसभा विघटित हो जाये तो यह घोषणा लोकसभा के पुनर्गठन के प्रथम बैठक के बाद तीस दिनों तक प्रभावी रहेगी, परंतु इस अवधि में इसे राज्यसभा की मंजूरी मिलना आवश्यक है। क्योंकि राज्यसभा विघटित नहीं होता है। यानी कि अगर 30 दिनों के भीतर लोकसभा उसे मंजूर नहीं करता है तो वो समाप्त हो जाएगा।

इस तरह एक बार यदि संसद के दोनों सदनों से इसे मंजूरी प्राप्त हो जाये तो वित्तीय आपात अनिश्चितकाल के लिए तब तक प्रभावी रहेगा जब तक इसे वापस न लिया जाये। ऐसा इसलिए है क्योंकि

1. इसकी अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। और

2. इसे जारी रखने के लिए संसद की पुनः मंजूरी आवश्यक नहीं है।

वित्तीय आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देने वाला प्रस्ताव, संसद के किसी भी सदन द्वारा सामान्य बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता है। यानी कि राष्ट्रीय आपातकाल की तरह यहाँ विशेष बहुमत की जरूरत नहीं पड़ती है।

अनुच्छेद 360 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि उस अवधि के दौरान, जिसमें खंड (1) में उल्लिखित उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धांतों का पालन करने के लिए निदेश देने तक, जो निदेशों में विनिर्दिष्ट किए जाएं, और ऐसे अन्य निदेश देने तक होगा जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिए देना आवश्यक और पर्याप्त समझे।

केंद्र की आधिकारिक कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किया जा सकता है, जहां केंद्र किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों के पालन का निर्देश दे सकता है। या फिर अन्य कोई निदेश दे सकता है जो राष्ट्रपति उचित समझे।

अनुच्छेद 360 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,
(क) ऐसे किसी निदेश के अंतर्गत –
(i) किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध हो सकेंगे।
(ii) धन विधेयकों या अन्य ऐसे विधेयकों को, जिनको अनुच्छेद 207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित किए जाने
के पश्चात्‌ राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के लिए उपबंध, हो सकेंगे।

(ख) राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।

कहने का अर्थ है कि इस तरह के किसी भी निर्देश में इन प्रावधानों का उल्लेख हो सकता है, जैसे कि – राज्य की सेवा में किसी भी अथवा सभी वर्गों के सेवकों की वेतन एवं भत्तों में कटौती और राज्य विधायिका द्वारा पारित एवं राष्ट्रपति के विचार हेतु लाये गए सभी धन विधेयकों अथवा अन्य वित्त विधेयकों को आरक्षित रखना, इत्यादि।

3. राष्ट्रपति, आपातकाल की अवधि के दौरान वेतन एवं भत्तों में कटौती हेतु निर्देश जारी कर सकता है – (1) केंद्र की सेवा में लगे सभी अथवा किसी भी श्रेणी के व्यक्तियों को और (2) उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की।

अत: वित्तीय आपातकाल की अवधि में राज्य के सभी वित्तीय मामलों में केंद्र का नियंत्रण हो जाता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल से संबंधित है, यह एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो राष्ट्रपति को गंभीर आर्थिक संकट के दौरान असाधारण उपायों की घोषणा करने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद 360 के मुख्य बिंदु:

  • आह्वान के लिए आधार:
    • राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हैं कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे संघ या उसके क्षेत्र के किसी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या साख खतरे में पड़ गई है।
    • यह खतरा युद्ध, बाहरी आक्रमण, आंतरिक गड़बड़ी, प्राकृतिक आपदाओं या इसी तरह की स्थितियों के कारण उत्पन्न हो सकता है।
  • आह्वान के परिणाम:
    • केंद्र सरकार को संघ और राज्य दोनों के वित्तीय मामलों को विनियमित करने के लिए अतिरिक्त शक्तियां प्राप्त होती हैं।
    • इन शक्तियों में शामिल हैं:
      • राज्यों को विशिष्ट वित्तीय सिद्धांतों का पालन करने का निर्देश देना।
      • सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्ते कम करना।
      • संघ और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण को संशोधित करना।
  • सुरक्षा उपाय:
    • उद्घोषणा के दो महीने के भीतर संसद की मंजूरी आवश्यक है।
    • आपातकाल उद्घोषणा के छह महीने बाद लागू होना बंद हो जाता है जब तक कि संसद द्वारा इसे बढ़ाया न जाए।
    • संसद किसी भी समय आपातकाल को रद्द कर सकती है।
    • चुनौती दिए जाने पर उच्चतम न्यायालय उद्घोषणा की समीक्षा कर सकता है।

अनुच्छेद 360 की आलोचनाएँ:

  • दुरुपयोग की संभावना: आह्वान के व्यापक आधार और केंद्र सरकार को दी गई व्यापक शक्तियां राज्य की स्वायत्तता के संभावित दुरुपयोग और क्षरण के बारे में चिंताएं बढ़ाती हैं।
  • संघवाद पर प्रभाव: राज्य के वित्त पर केंद्रीय नियंत्रण बढ़ने से शक्ति संतुलन बाधित हो सकता है और संघवाद कमजोर हो सकता है।
  • अलोकतांत्रिक प्रथाएं: कुछ वित्तीय प्रावधानों के निलंबन और सार्वजनिक जांच पर संभावित सीमाओं से जवाबदेही और पारदर्शिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

विचार के लिए प्रश्न:

  • अनुच्छेद 360 के अधिनियमन के पीछे के ऐतिहासिक संदर्भ और तर्क का विश्लेषण करें।
  • 1975 के वित्तीय आपातकाल और उसके परिणामों के विशिष्ट विवरण की जाँच करें।
  • सुधारों या प्रावधान को समाप्त करने के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का अन्वेषण करें।

तो यही है अनुच्छेद 360, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

⚫ ◾ राष्ट्रपति शासन और बोम्मई मामला (President Rule)
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Question 1: Which of the following is NOT a ground for the President to proclaim a financial emergency under Article 360?

(a) A critical decline in India’s foreign exchange reserves.
(b) A sharp fall in the value of the Indian rupee.
(c) A significant rise in the government’s budget deficit.
(d) A natural disaster like an earthquake or a major flood.

Answer: (d) Explanation: While Article 360 covers threats to financial stability due to economic factors like currency depreciation and fiscal imbalances, natural disasters are not explicitly mentioned as grounds. However, the government can utilize other provisions to cope with financial consequences of natural disasters.

Question 2: When the President proclaims a financial emergency under Article 360, the effect is:

(a) Imposition of direct taxes on agricultural income.
(b) Automatic dissolution of both Houses of Parliament.
(c) Suspension of fundamental rights enshrined in Part III of the Constitution.
(d) Granting the President the power to modify economic policies without Parliament’s approval.

Answer: (d) Explanation: The most significant consequence of a financial emergency is the power delegated to the President to modify financial provisions of the Constitution and take economic measures without requiring Parliament’s approval. This includes altering taxes, expenditure patterns, and resource allocation.

Question 3: Which of the following safeguards are present to prevent the misuse of Article 360?

(a) Parliament’s approval required within two months of the proclamation.
(b) Supreme Court’s power to review the proclamation and its specific measures.
(c) Fixed duration of six months for the emergency.
(d) All of the above.

Answer: (b) Explanation: While Parliament’s approval is not required initially, the President must inform Parliament about the proclamation. However, the Supreme Court has the power to review the proclamation itself and even specific measures undertaken during the emergency. There’s no fixed duration, and the emergency can be extended indefinitely subject to Parliament’s approval every six months.

Question 4: One of the main criticisms of Article 360 is that it:

(a) Provides insufficient clarity to prevent economic policy decisions from being driven by political motives. (b) Fails to adequately protect the rights of state governments over their finances.
(c) Undermines the role of Parliament in shaping economic policy during emergencies.
(d) All of the above.

Answer: (d) Explanation: Article 360 has faced criticism for lacking precise guidelines regarding its invocation and potential for exceeding economic necessities, leading to concerns about political opportunism. Additionally, the broad powers granted to the President can infringe upon the financial autonomy of state governments and sideline Parliament’s role in economic policymaking.

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मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।