Article 48A Explained in Hindi
यह लेख अनुच्छेद 48क (Article 48A) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;
�� अनुच्छेद 48क (Article 48A)
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1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः स्थापित।
—अनुच्छेद 48क—-
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1. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 10 (w.e.f. 3-1-1977).
—Article 48A—
�� Article 48A Explanation in Hindi
राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy/DPSP) का शाब्दिक अर्थ है – राज्य के नीति को निर्देशित करने वाले तत्व।
जब संविधान बनाया गया था उस समय लोगों को लोकतांत्रिक राज्य में शासन करने का और देशहीत में कानून बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। खासकर के राज्यों के लिए जो कि एक लंबे औपनिवेशिक काल के बाद शासन संभालने वाले थे।
जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में राजनेताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना कोई अनिवार्य नहीं है। ऐसे में मार्गदर्शक आवश्यक हो जाता है ताकि नीति निर्माताओं को हमेशा ज्ञात होता रहे कि किस तरफ जाना है।
◾ ऐसा नहीं था कि DPSP कोई नया विचार था बल्कि आयरलैंड में तो ये काम भी कर रहा था और हमने इसे वहीं से लिया।
◾ राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) नागरिकों के कल्याण और विकास के लिए कानूनों और नीतियों को बनाने के लिए दिशानिर्देश हैं। ये भारतीय संविधान के भाग IV में शामिल हैं।
◾ ये सिद्धांत गैर-प्रवर्तनीय (non enforceable) हैं, जिसका अर्थ है कि ये अदालतों द्वारा लागू नहीं हैं, हालांकि इसे देश के शासन में मौलिक माना जाता है और कानून और नीतियां बनाते समय सरकार द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।
कुल मिलाकर नीति-निदेशक तत्व लोकतांत्रिक और संवैधानिक विकास के वे तत्व है जिसका उद्देश्य लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
DPSP का वर्गीकरण — नीचे आप निदेशक तत्वों का वर्गीकरण देख सकते हैं। इससे आपको यह समझने में आसानी होगी कि जो अनुच्छेद आप पढ़ रहें है वे किसलिए DPSP में शामिल की गई है और किन उद्देश्यों को लक्षित करने के लिए की गई है।
सिद्धांत
(Principles)
समाजवादी
(Socialistic)
गांधीवादी
(Gandhian)
उदार बौद्धिक
(Liberal intellectual)
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⚫ अनुच्छेद 43
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⚫ अनुच्छेद 45
⚫ अनुच्छेद 48
⚫ अनुच्छेद 48A
⚫ अनुच्छेद 49
⚫ अनुच्छेद 50
⚫ अनुच्छेद 51
Article 48A
इसके अलावा निदेशक तत्वों को निम्नलिखित समूहों में भी बांट कर देखा जा सकता है;
कल्याणकारी राज्य (Welfare State) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 38 (1 एवं 2), अनुच्छेद 39 (ख एवं ग), अनुच्छेद 39क, अनुच्छेद 41, अनुच्छेद 42, अनुच्छेद 43, अनुच्छेद 43क एवं अनुच्छेद 47 को रखा जाता है।
प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता (Equality of Dignity & Opportunity) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 40, 41, 44, 45, 46, 47 48 एवं 50 को रखा जाता है।
व्यक्ति के अधिकार (individual’s rights) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 39क, 41, 42, 43 45 एवं 47 को रखा जाता है।
संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 48क को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद-34 – भारतीय संविधान
⚫ अनुच्छेद-35 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 48क – पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
42वें संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से DPSP में अनुच्छेद 48क को अन्तः स्थापित (Insert) किया गया। अनुच्छेद 48क के तहत राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
इस निदेश के तहत मुख्य रूप से दो कार्य हैं; पहला – देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन। और दूसरा – वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास।
पहला – देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन।
भारत का पर्यावरण विविधतापूर्ण है और इसमें वनों,नों आर्द्रभूमियों,यों घास के मैदानों और तटीय क्षेत्रों जैसे पारिस्थितिक तंत्रों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। हालाँकि, देश को वायु और जल प्रदूषण, वनों की कटाई, जैव विविधता की हानि और जलवायु परिवर्तन सहित कई पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, कई शहरों में पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रो जन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के उच्च स्तर का सामना करना पड़ रहा है। यह बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन के जलने, औद्योगिक उत्सर्जन और खाना पकाने और गर्म करने के लिए बायोमास के उपयोग के कारण होता है।
भारत में जल प्रदूषण भी एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसमें कई नदियाँ, झीलें और भूजल स्रोत प्रदूषकों जैसे सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और कृषि रसायनों से दूषित हैं।
वनों की कटाई भारत में एक अन्य प्रमुख पर्यावरणीय चिंता है, जिसमें वन के बड़े क्षेत्रों को कृषि, लॉगिंग और शहरी विकास के लिए साफ किया जा रहा है। इससे जैव विविधता का नुकसान हुआ है, साथ ही मिट्टी का क्षरण हुआ है और पानी की उपलब्धता में कमी आई है।
जलवायु परिवर्तन भी भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकिक्यों देश इसके प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, जैसे समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि, और कृषि उत्पादकता में कमी।
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, भारत सरकार ने देश के पर्यावरण की रक्षा और सुधार के उद्देश्य से कई नीतियों और कार्यक्रमों को लागू किया है। इनमें वायु और जल प्रदूषण को कम करने, वनों और जैव विविधता के संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के उपाय शामिल हैं।
◾राष्ट्री य वन नीति (1988): इस नीति का उद्देश्य वनों और वन्यजीवों का संरक्षण और सुरक्षा करना और देश के पारिस्थितिक संतुलन को सुनिश्चित करना है।
◾राष्ट्री य वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016): इस योजना का उद्देश्य देश में वन्यजीवों और उनके आवासों का संरक्षण और सुरक्षा करना है।
◾नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (2010): यह पर्यावरण के मुद्दों से संबंधित मामलों की सुनवाई करने और पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित कानूनों को लागू करने के लिए स्थापित एक विशेष अदालत है।
◾राष्ट्री य स्वच्छ ऊर्जा कोष (2010): इस कोष का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना और जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता को कम करना है।
◾राष्ट्री य नदी संरक्षण योजना (1995): इस योजना का उद्देश्य देश की नदियों के जल की गुणवत्ता में सुधार करना और उन्हें प्रदूषण से बचाना है।
◾राष्ट्री य तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (2011): इस योजना का उद्देश्य देश के तटीय क्षेत्रों और उनके पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और संरक्षण करना है।
◾जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्री य कार्य योजना (2008): यह योजना जलवायु परिवर्तन से निपटने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए देश की रणनीति की रूपरेखा तैयार करती है।
◾राष्ट्री य स्वच्छ वायु कार्यक्रम (2019): इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश में वायु प्रदूषण को कम करना और वायु की गुणवत्ता में सुधार करना है।
◾राष्ट्री य जैव विविधता अधिनियम (2002): इस अधिनियम का उद्देश्य देश की जैव विविधता और इसके उपयोग को संरक्षित और संरक्षित करना है।
◾राष्ट्री य जल ढांचा कानून (2017): इस कानून का उद्देश्य देश में जल संसाधनों के संरक्षण, संरक्षण और प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।
◾राष्ट्री य ई–कचरा प्रबंधन (2016): इस नियम का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल तरीके से इलेक्ट्रॉ निक कचरे का प्रबंधन और निपटान करना है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, और भारत सरकार देश के पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के लिए लगातार नई नीतियों को अद्यतन और कार्यान्वित कर रही है।
दूसरा – वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास।
भारत विविध प्रकार के वनों और वन्यजीवों का घर है। देश के वन अपने कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 21.34% कवर करते हैं और इसे कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन और मैंग्रोव शामिल हैं। ये वन विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों का घर हैं, जिनमें कई ऐसे भी हैं जो केवल भारत में पाए जाते हैं।
भारत का वन्यजीव भी विविध है और इसमें कई प्रकार की प्रजातियां शामिल हैं, जैसे कि बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, भारतीय गैंडे, हिम तेंदुआ, और हिरण, मृग और प्राइमेट की कई प्रजातियां। भारत पक्षियों,यों सरीसृपों और उभयचरों की कई प्रजातियों के साथ-साथ मछलियों और अकशेरुकी जीवों की एक विस्तृत विविधता का भी घर है।
हालांकि, देश की समृद्ध जैव विविधता के बावजूद, भारत के कई वन और वन्य जीवन खतरे में हैं। वनों की कटाई, आवास की हानि, और अवैध शिकार भारत के वनों और वन्य जीवन के लिए सभी प्रमुख खतरे हैं। जलवायु परिवर्तन भी एक चिंता का विषय है, क्योंकिक्यों
इसका देश के पारिस्थितिक तंत्र और उन पर निर्भर प्रजातियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है।
भारत के वनों और वन्य जीवन की रक्षा और संरक्षण के लिए, भारत सरकार ने कई नीतियों और कार्यक्रमों को लागू किया है, जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं;
◾वन संरक्षण अधिनियम (1980): यह अधिनियम गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के परिवर्तन को नियंत्रित करता है और इसका उद्देश्य देश के वनों को संरक्षित और संरक्षित करना है।
◾वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): यह अधिनियम जंगली जानवरों,रों पक्षियों और पौधों की सुरक्षा प्रदान करता है और राष्ट्री य उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करता है।
◾प्रोजेक्ट टाइगर (1973): यह बंगाल टाइगर और उसके आवासों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए शुरू किया गया एक प्रमुख संरक्षण कार्यक्रम है।
◾प्रोजेक्ट एलिफेंट (1992): यह एक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य एशियाई हाथी और उसके आवासों की रक्षा और संरक्षण करना है।
◾राष्ट्री य वन नीति (1988): इस नीति का उद्देश्य वनों और वन्यजीवों का संरक्षण और सुरक्षा करना और देश के पारिस्थितिक संतुलन को सुनिश्चित करना है।
◾राष्ट्री य वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016): इस योजना का उद्देश्य देश में वन्यजीवों और उनके आवासों का संरक्षण और सुरक्षा करना है।
◾द फ़ॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया (1981): यह एक ऐसा संगठन है जो देश के जंगलों के स्वास्थ्य का आकलन करने और वन आवरण में बदलाव की निगरानी के लिए नियमित सर्वेक्षण करता है।
◾भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (1988): यह एक राष्ट्री य संगठन है जो वानिकी और वन्यजीव संरक्षण पर शोध करता है और इन क्षेत्रों में शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करता है।
◾राष्ट्री य जैव विविधता अधिनियम (2002): इस अधिनियम का उद्देश्य देश की जैव विविधता और इसके उपयोग को संरक्षित और संरक्षित करना है।
◾नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (2010): यह वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा से संबंधित मामलों सहित पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए गठित एक विशेष अदालत है।
तो हमने कुछ कानून और संस्थाओं के बारे में समझा जो कि वन और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहा है। अनुच्छेद 48क को प्रभाव में लाने के उद्देश्य से भारत सरकार देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा और संरक्षण के लिए नीतियों को लगातार अपडेट और लागू कर रही है।
तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 48क (Article 48A), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
⚫ अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान
⚫ अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
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अनुच्छेद 48क (Article 48A) क्या है?
राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;