यह लेख अनुच्छेद 49 (Article 49) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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अनुच्छेद 49

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📜 अनुच्छेद 49 (Article 49)

49. राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण 1[संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्रीय महत्व वाले [घोषित किए गए] कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या वस्तु का, यथास्थिति, लुंठन, विरूपण, विनाश, अपसारण, व्ययन या निर्यात से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी।
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1. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संसद द्वारा विधि द्वारा घोषित” के स्थान पर (1-11-1956 से) प्रतिस्थापित।
—-अनुच्छेद 49
49. Protection of monuments and places and objects of national importance. — It shall be the obligation of the State to protect every monument or place or object of artistic or historic interest, 1[declared by or under law made by Parliament] to be of national importance, from spoliation, disfigurement, destruction, removal, disposal or export, as the case may be.
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1. Subs. by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 27, for “declared by Parliament by law” (w.e.f. 1-11-1956).
Article 49

🔍 Article 49 Explanation in Hindi

राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy/DPSP) का शाब्दिक अर्थ है – राज्य के नीति को निर्देशित करने वाले तत्व।

जब संविधान बनाया गया था उस समय लोगों को लोकतांत्रिक राज्य में शासन करने का और देशहीत में कानून बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। खासकर के राज्यों के लिए जो कि एक लंबे औपनिवेशिक काल के बाद शासन संभालने वाले थे।

जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में राजनेताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना कोई अनिवार्य नहीं है। ऐसे में मार्गदर्शक आवश्यक हो जाता है ताकि नीति निर्माताओं को हमेशा ज्ञात होता रहे कि किस तरफ जाना है।

◾ ऐसा नहीं था कि DPSP कोई नया विचार था बल्कि आयरलैंड में तो ये काम भी कर रहा था और हमने इसे वहीं से लिया।

◾ राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) नागरिकों के कल्याण और विकास के लिए कानूनों और नीतियों को बनाने के लिए दिशानिर्देश हैं। ये भारतीय संविधान के भाग IV में शामिल हैं।

◾ ये सिद्धांत गैर-प्रवर्तनीय (non enforceable) हैं, जिसका अर्थ है कि ये अदालतों द्वारा लागू नहीं हैं, हालांकि इसे देश के शासन में मौलिक माना जाता है और कानून और नीतियां बनाते समय सरकार द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।

कुल मिलाकर नीति-निदेशक तत्व लोकतांत्रिक और संवैधानिक विकास के वे तत्व है जिसका उद्देश्य लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।

DPSP का वर्गीकरण — नीचे आप निदेशक तत्वों का वर्गीकरण देख सकते हैं। इससे आपको यह समझने में आसानी होगी कि जो अनुच्छेद आप पढ़ रहें है वे किसलिए DPSP में शामिल की गई है और किन उद्देश्यों को लक्षित करने के लिए की गई है।

सिद्धांत
(Principles)
संबंधित अनुच्छेद
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समाजवादी
(Socialistic)
⚫ अनुच्छेद 38
⚫ अनुच्छेद 39
⚫ अनुच्छेद 39क
⚫ अनुच्छेद 41
⚫ अनुच्छेद 42
⚫ अनुच्छेद 43
⚫ अनुच्छेद 43 क
⚫ अनुच्छेद 47
गांधीवादी
(Gandhian)
⚫ अनुच्छेद 40
⚫ अनुच्छेद 43
⚫ अनुच्छेद 43ख
⚫ अनुच्छेद 46
⚫ अनुच्छेद 48
उदार बौद्धिक
(Liberal intellectual)
⚫ अनुच्छेद 44
⚫ अनुच्छेद 45
⚫ अनुच्छेद 48
⚫ अनुच्छेद 48A
⚫ अनुच्छेद 49
⚫ अनुच्छेद 50
⚫ अनुच्छेद 51
Article 49

इसके अलावा निदेशक तत्वों को निम्नलिखित समूहों में भी बांट कर देखा जा सकता है;

कल्याणकारी राज्य (Welfare State) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 38 (1 एवं 2), अनुच्छेद 39 (ख एवं ग), अनुच्छेद 39क, अनुच्छेद 41, अनुच्छेद 42, अनुच्छेद 43, अनुच्छेद 43क एवं अनुच्छेद 47 को रखा जाता है।

प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता (Equality of Dignity & Opportunity) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 40, 41, 44, 45, 46, 47 48 एवं 50 को रखा जाता है।

व्यक्ति के अधिकार (individual’s rights) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 39क, 41, 42, 43 45 एवं 47 को रखा जाता है।

संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 49 को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-34 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-35 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 49 – राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण

यह अनुच्छेद राज्य पर बाध्यता आरोपित करता है ताकि संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन राष्ट्रीय महत्व वाले घोषित किए गए कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या वस्तु का, यथास्थिति, लुंठन, विरूपण, विनाश, अपसारण, व्ययन या निर्यात से संरक्षण प्राप्त हो सके।

भारत में एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है और बड़ी संख्या में स्मारक, स्थान और राष्ट्रीय महत्व की वस्तुएँ हैं। कुछ स्थल तो अपने सुंदर कलाकृति, आर्किटेक्ट आदि की वजह से पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है।

उदाहरण के लिए ताजमहल, अजंता और एलोरा की गुफाएँ (रॉक-कट गुफा स्मारकों की एक श्रृंखला), हम्पी (14 वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी), खजुराहो (जटिल नक्काशी और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध), कोणार्क सूर्य मंदिर एवं महाबलीपुरम को लिया जा सकता है, जो कि भारत में राष्ट्रीय महत्व के कुछ सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं में से एक है।

कुछ कारकों ने भारत के स्मारकों, स्थानों और राष्ट्रीय महत्व की वस्तुओं की सुरक्षा के लिए कई चुनौतियाँ पेश की हैं। उदाहरण आप नीचे देख सकते हैं;

धन की कमी: भारत के कई स्मारकों, स्थानों और राष्ट्रीय महत्व की वस्तुओं की मरम्मत और रखरखाव की आवश्यकता है, लेकिन इन कार्यों को पूरा करने के लिए अक्सर धन की कमी होती है।

शहरीकरण और विकास: जैसे-जैसे शहरों और कस्बों का विस्तार हो रहा है, कई ऐतिहासिक स्थलों और स्मारकों के निर्माण और विकास के कारण नष्ट होने या क्षतिग्रस्त होने का खतरा है।

जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान और चरम मौसम की घटनाओं से ऐतिहासिक स्थलों, स्मारकों और वस्तुओं को नुकसान हो सकता है, जिससे उन्हें संरक्षित करना मुश्किल हो जाता है।

जागरूकता की कमी: भारत में बहुत से लोग ऐतिहासिक स्थलों और स्मारकों के संरक्षण के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं, जिससे संरक्षण के प्रयासों के लिए धन और समर्थन प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है।

अवैध व्यापार: प्राचीन वस्तुओं और अन्य सांस्कृतिक वस्तुओं का अवैध व्यापार भारत के स्मारकों, स्थानों और राष्ट्रीय महत्व की वस्तुओं के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है।

अपर्याप्त कर्मचारी और विशेषज्ञता: भारत के कई ऐतिहासिक स्थलों और स्मारकों में पर्याप्त कर्मचारी नहीं है।

प्राकृतिक आपदाएँ: राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं को प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, चक्रवात आदि से नुकसान का खतरा होता है।

अभिगम्यता और संरक्षण: कई स्थल और स्मारक दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित हैं और आगंतुकों के लिए आसानी से सुलभ नहीं हैं और उनकी रक्षा और संरक्षण करना मुश्किल है।

हालांकि चुनौतियों के बावजूद भी भारत सरकार ने राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें शामिल है:

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की स्थापना जो भारत में ऐतिहासिक स्मारकों, स्थलों और अवशेषों के संरक्षण और रखरखाव के लिए जिम्मेदार है।

राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) का निर्माण जो राष्ट्रीय स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों के संरक्षण और संरक्षण के लिए जिम्मेदार है।

प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 जो प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेषों के संरक्षण का प्रावधान करता है।

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) एक गैर-लाभकारी संगठन है जो भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम करता है।

यूनेस्को की विश्व विरासत सूची जो मानवता की साझी विरासत के उत्कृष्ट सांस्कृतिक या प्राकृतिक महत्व के स्थलों को पहचानती है और इन स्थलों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है।

राष्ट्रीय स्मारक और पुरावशेष मिशन (NMMA) को 2007-08 में देश की सांस्कृतिक विरासत का दस्तावेजीकरण करने और इसे भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने के लिए शुरू किया गया था।

अनुच्छेद 49 के तहत प्राप्त अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए ये भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 49 (Article 49), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
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अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।