This is a satire ‘go back in time and change it’ written by pbchaudhary.
Go back in time and change it

काश ! वक्त में पीछे जाकर उसे बदल सकते
एक गाना याद आ रहा है –
सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे,
क्या से क्या हो गए देखते-देखते।
सोचता हूँ कि वो लोग कितने मासूम रहे होंगे जिन लोगों पर अंग्रेजों ने राज किया। उनकी आजादी छिन ली, उन पर अत्याचार किए, उनका शोषण किया और फिर क्या से क्या हो गया देखते-देखते, ये तो हम सब जान ही रहे हैं।
तो कभी-कभी मेरे मन में ख्याल आता है कि अगर अंग्रेज भारत नहीं आया होता तो भारत कितना खुशहाल होता, सर्वत्र शांति होती।
न इतने लोग शहीद होते, न आंदोलने होती, न विश्व युद्ध होता, ना ही हिटलर जैसे क्रूर तानाशाही के हाथों लाखों निर्दोष लोग मारे जाते और न ही धर्म के नाम पर इतनी लड़ाईयाँ होती।
तो साईंस फिक्सन मूवी में टाईम ट्रैवलिंग को देखकर मैं भी सोचता की काश! मेरे पास भी टाईम मशीन होता तो मैं समय में पीछे जाकर भारत आने के समुद्री मार्ग के खोजकर्ता श्रीमान् वास्कोडिगामा को भारत आने ही नहीं देता।
मैं अपनी पूरी कोशिश करता की वो और कही भी चले जाए जैसे कि – अंटार्कटिका, पर भारत न आए क्यूंकि वही इस सब के जिम्मेदार हैं, वो न समुद्री मार्ग खोजता न अंग्रेज भारत आता।
लेकिन फिर से ख्याल आता है कि अंग्रेज से पहले भी तो मुग़ल हम पर राज कर रहे थे, वो भी तो बाहरी ही थे। ये सोचे ही थे कि तभी दिमाग में एक बात फिर से क्लिक किया.. अरे यार….!
उससे पहले गुलाम वंश, खलज़ी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश, लोदी वंश भी तो बाहरी थे।तुर्की से जो आये थे.!
फिर से मन में एक बार ख्याल आया कि अगर बदलना ही है तो क्यूँ न समय में और पीछे जाकर कुछ ऐसी चीज़ बदला जाए जिससे कि भारत आज भी सोने की चिड़िया कहलाए।
समय में पीछे चलते-चलते मैं 715 ई. में आ गया वहा मोहम्मद बिन क़सिम भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण करने वाला था। पर मन हुआ कि थोड़ा और पीछे जाए।
भारत के भविष्य का जो सवाल था.!
चलते-चलते आखिरकार मैं 327 ई. पू. आ गया। वहाँ श्रीमान् अलेक्जेंडर महान भारतीय उपमहाद्वीप पर बड़े पैमाने पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे।
उन्हे विश्व विजेता जो बनना था.!
चूंकि मैं वक़्त में पीछे आते-आते काफ़ी थक गया था तो सोचा क्यु न श्रीमान् अलेक्जेंडर को ही समझा बुझाकर घर भेज दे।
क्यूंकि कही सुन रखा था कि वक़्त में पीछे थोड़ी सी भी परिवर्तन पूरे वर्तमान को बदल देगा। मतलब उसके बाद न ही भारत पर विदेशी आक्रमण होगा और न भारत गुलाम बनेगा।
अब मैं अपने मकसद में कामयाब होने वाला था तो मैं चला श्रीमान् अलेक्जेंडर को समझाने, मैं समझाने ही वाला था कि, मेरे अंदर से एक आधुनिक, टेक्नोलॉजी प्रिय, पढ़ाकू लड़का बाहर आकर मुझे डाँटते हुए कहता है – ठीक हुआ तुम्हें टाईम मशीन नहीं मिला।
तुम जानते भी हो आज इंसान जितना शांति में जी रहा है, अतीत में उतना शांति कभी नहीं रहा। जिधर देखो अशांति, मार-काट, युद्ध, एक दूसरे पर आक्रमण, न कोई नियम न कोई कानून.!
और फिर तुम अगर सब कुछ बदल देते, तो सोचो इंसान कभी उतना विकास कर पाता जितना विश्व युद्ध के बाद इंसानों ने विकास की है।
क्या तुम्हें लोकतंत्र जैसे संस्था मिल पाती जहाँ तुम बिना किसी डर के सपने देख पाते हो और वक़्त में पीछे जाकर किसी चीज़ को बदलने के बारे में सोच पाते हो…..……………।
मैं बस सुन रहा था………..
…………….
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प्लास्टिक की खोज कब और कैसे हुई?
प्लास्टिक शब्द ग्रीक शब्द प्लास्टिकोज और प्लासटोज से बना है तथा इसका अर्थ है – जो लचीला हो या जिसे ढाला, मोड़ा या मनमर्जी का आकार दिया जा सके।
पहली सिंथेटिक पॉलिमर का आविष्कार 1869 में जॉन वेस्ले हयात ने किया था। ऐसा कहा जाता है कि हाथी के दाँत का विकल्प खोजने के लिए न्यूयॉर्क के एक फर्म द्वारा $ 10,000 की पेशकश की गयी थी.
और इसी को जीतने के लिए, वेस्ले ने कपूर के साथ सूती फाइबर से प्राप्त सेल्युलोज को मिलाकर के एक नया पदार्थ बनाया, जिसे प्लास्टिक कहा गया । पूरा यहाँ से पढ़ें