कहने को तो हम इंसान है पर सही मायनों में इंसान हमें शिक्षा ही बनाता है। आज की तारीख़ में शिक्षा की बात करें तो ये प्राण वायु की तरह हो गया है। पर सबसे बड़ा सवाल यही आता है कि शिक्षा है क्या?

इस लेख में हम शिक्षा और इसके विभिन्न व्यवहारिक पहलुओं को सरल और सहज हिन्दी में समझेंगे और ये भी जानेंगे कि सही शिक्षा क्या है? तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

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| शिक्षा की आवश्यकता !

इन्सानों में हमेशा से जानने की प्रवृति रही है न केवल बाह्य भौतिक परिवेश को बल्कि आंतरिक परिवेश को भी। और संभवतः इन्सानों की यही जानने की प्रवृति ने शिक्षा व्यवस्था को जन्म दिया होगा ताकि इंसान एक अनुशासनात्मक तरीके से चीजों को जान सकें, खुद को समझ सकें।

अगर एक नवजात शिशु की कल्पना करें तो, उसे न तो समाज का ज्ञान होता है न ही संसार का, न तो उसे अपने दोस्त की समझ होती है और न ही अपने दुश्मन की, उसे अपनी परंपरा, रीति-रिवाज आदि किसी का भी ज्ञान नहीं होता है यहाँ तक कि उसे ये भी नहीं पता होता है कि वो किस धर्म या मज़हब में पैदा हुआ है पर जैसे-जैसे वो बड़ा होता जाता है वो अपने आस-पास के वातावरण के प्रति जिज्ञासु होने लगता है।

उसके मन में सवाल आने शुरू हो जाते हैं और फिर उसकी चेतना, उसका व्यवहार और उसका व्यक्तित्व किसी साँचे में ढलने लग जाता है। कुल मिलाकर वो सीखने लग जाता है, समझने लग जाता है।

वो कुछ अपने अनुभवों से सीखता है कुछ दूसरों के अनुभवों से या फिर वो खुद जो चाहता है या उसके परिवार या समाज जो चाहता है वो सीखता है। और ये बस चलते ही रहता है।

| शिक्षा क्या है?

शिक्षा संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु से बना शब्द है जिसका अर्थ है सीखना और सिखाना। इस तरह से शिक्षा का तात्पर्य सीखने-सिखाने की क्रिया से है।

इसी सीखने-सिखाने की क्रिया से व्यक्ति में अंतर्निहित क्षमता को उभार कर उसे आवश्यक ज्ञान उपलब्ध कराया जाता है और उसके व्यक्तित्त्व एवं कौशल को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

शिक्षा के लिए अँग्रेजी में Education शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। Education शब्द लैटिन शब्द Educatum से बना है जिसका मतलब होता है शिक्षण की कला। इसीलिए वर्तमान में Education का मतलब व्यक्ति के अन्दर छिपी हुई समस्त शक्तियों को सामाजिक वातावरण में विकसित करने की कला है।

[यहाँ से समझें – शिक्षा और विद्या में अंतर क्या है?]

| शिक्षा कैसी होनी चाहिए?

जब विद्यार्थी को एक नियंत्रित वातावरण में शिक्षा दिया जाता है तो उसे संकुचित शिक्षा कहा जाता है। स्कूली शिक्षा को संकुचित शिक्षा कहा जाता है। ऐसा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वहाँ पहले से ही एक सिलैबस और पढ़ाने का तरीका निर्धारित होता है और उसी के अनुरूप शिक्षा दी जाती है।

इसीलिए इसकी आलोचना ये कहकर की जाती है कि इससे विद्यार्थी कुछ खास चीजों के अलावा कुछ और नहीं सीख पाता है और वो एक रट्टू तोता बन जाता है। इसे कृत्रिम विकास की प्रक्रिया (Artificial growth process) भी कहा जाता है।

जब कोई व्यक्ति अनियंत्रित वातावरण में शिक्षा ग्रहण करता है तो उसे व्यापक शिक्षा कहा जाता है। इसका अर्थ ये है कि व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक अपनी प्रकृति के अनुसार विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है और उसी के अनुसार खुद को बदलता रहता है। ये सिलैबस की बंधनों से मुक्त होता है और यहाँ सभी शिक्षक भी होता है और विद्यार्थी भी।

इस तरह से किसी व्यक्ति का प्राकृतिक विकास होता है। इसकी भी आलोचना ये कह कर की जाती है कि चूंकि ये प्रक्रिया अनियंत्रित होती है इसीलिए इससे समाज को वो व्यक्ति नहीं मिल पाता है जो उसे चाहिए होता है।

इसीलिए कहा जाता है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसमें किसी बच्चे को संकुचित शिक्षा तो दी ही जाए ताकि वो समकालीन समाज के अपेक्षाओं पर खड़े उतर सके, साथ ही उसे इतनी स्वतंत्रता भी दी जाए जिससे कि वह गलतियाँ कर सके और अपने अनुभवों से सीख सकें।

[यहाँ से जानें – How to learn English at home]

| सही शिक्षा क्या है?

शिक्षा का कार्य सिर्फ जानकारी इकट्ठा करना, तथ्यों को बटोर कर उन्हे आपस में मिलाना तथा अनुपयुक्त तथ्यों की मदद से या फिर कुतर्क की मदद से चीजों को सत्यापित करना नहीं है।

बल्कि शिक्षा का कार्य तो ऐसे मनुष्य तैयार करना है जो स्वयं में पूर्ण एवं प्रज्ञाशील हो। हमारे वर्तमान समाज में प्रज्ञाशील हुए बिना भी हम डिग्री प्राप्त कर सकते हैं, यांत्रिक रूप से सक्षम हो सकते है, खुद को बाज़ार के मांग के अनुरूप प्रशिक्षित कर सकते है पर हम इस बात को कैसे झुठला सकते है कि प्रशिक्षण सिर्फ कार्यकुशलता लाता है, पूर्णता नहीं। 

जो है, उसे पूर्ण रूप से देख पाने की क्षमता जब तक विकसित नहीं होगी तब तक प्रज्ञाशीलता नहीं आएगी और प्रज्ञाशीलता के बिना शिक्षा अधूरा है। वैसे भी ऐसा विद्वान होने से क्या फ़ायदा जो अपनी समझ अथवा बोध के लिए हमेशा जानकारियों एवं प्रमाण्य पर निर्भर रहता हो।

वो समझ अथवा बोध भला जानकारियों से कहाँ आ पाती है, वो तो आत्मज्ञान से ही आ पाता है और आत्मज्ञान तभी आ सकता है जब हम स्वयं के होने के प्रति सजग हो, अपनी पूरी मानसिक प्रक्रिया के प्रति सजग हो और जब ऐसा होगा तभी हमारे व्यवहार में एक सकारात्मक बदलाव आ पाएगा, तभी हमारी चेतना संकीर्णता के बंधनों से मुक्त हो पाएगी। वास्तव में ये सही शिक्षा होगी।

आज हम जिस समाज का हिस्सा है, उसमें लोग अपने बच्चों को केवल जीविकोपार्जन की तकनीक सीखने के लिए स्कूल भेजते है, सभी अपने बच्चे को एक विशेषज्ञ बनाना चाहते है।

इस आशा से की एक दिन वो खूब पैसे कमाएगा, आर्थिक दृष्टि से वो सुरक्षित हो जाएगा । इस सब में होता यही है कि शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य तो कहीं पीछे छूट जाता है उसकी जगह बाज़ारवाद और पूंजीवाद का एक विकृत स्वरूप ले लेता है। 

बेशक पढ़ने-लिखने का ज्ञान होना, इंजीनियरिंग का ज्ञान होना और अत्यधिक पैसा कमाने के उद्देश्य से अन्य प्रकार के कौशलों को विकसित करना, स्पष्ट रूप से आवश्यक है, आज के समय की मांग भी तो यही है, पर क्या हम इस बात को नजरअंदाज कर सकते है कि तकनीक के क्षेत्र में इतना विकसित होने के बाद भी आज तक इंसान कोई ऐसा तकनीक ईजाद नहीं कर पाया है जो खुद को जानने में मदद कर सकें।

आज भी खुद को जानने का एक मात्र स्रोत है – शिक्षा। और जब हम इस स्तर पर जाकर सोचते है तब हमें शिक्षा के महत्व का एहसास होता है। 

[यहाँ से पढ़ें – शिक्षाप्रद बोध कथा]

| शिक्षा का उद्देश्य क्या है?

प्राचीन शिक्षा विशेषकर मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर बल देती थी जिसके अनुसार केवल ज्ञानार्जन एवं अनुशासन आदि को ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य माना जाता था।

आधुनिक शिक्षा व्यक्ति के न केवल मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर बल देती है बल्कि शारीरिक एवं सामाजिक विकास तथा आवश्यकता या बाज़ार के अनुसार भी शिक्षा पर भी बल देती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य, व्यक्ति का सर्वांगीण विकास तथा उसमें सामाजिक कुशलता के गुणों का विकास करना है।

| शिक्षा के विभिन्न प्रकार

व्यवस्था, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण पद्धति आदि की दृष्टि से शिक्षा को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है – (1) औपचारिक शिक्षा, (2) अनौपचारिक शिक्षा, (3) निरौपचारिक शिक्षा, (4) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शिक्षा, (5) सामान्य एवं विशेष शिक्षा, (6) बेसिक या बुनियादी शिक्षा (7) व्यक्तिगत तथा सामूहिक शिक्षा, (8) ऑनलाइन शिक्षा, (9) नैतिक शिक्षा आदि।

| औपचारिक शिक्षा क्या है?

विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि में चलने वाली शिक्षा औपचारिक शिक्षा कहलाती है। ऐसा इसीलिए क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य, सिलैबस और शिक्षण तरीका आदि, सभी योजनाबद्ध और निश्चित होता है।

इस तरह की शिक्षा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है और यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास इस तरह से करती है ताकि वे किसी व्यवसाय या बाज़ार में काम करने योग्य हो सके।

| अनौपचारिक शिक्षा क्या है?

व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक अपनी प्रकृति के अनुसार विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है और उसी के अनुसार खुद को शिक्षित करता रहता है। ये सिलैबस की बंधनों से मुक्त होता है, इसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती और इसका कोई उद्देश्य भी निश्चित नहीं होता है। इसीलिए इसे अनौपचारिक शिक्षा कहा जाता है।

| निरौपचारिक शिक्षा क्या है?

ऐसे लोग जो उम्र निकल जाने के कारण से या औपचारिक शिक्षा में धन, समय और ऊर्जा नहीं लगाने के उद्देश्य से या फिर किसी अन्य कारण से नियमित महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयों से शिक्षा नहीं ले पाते हैं उसके लिए निरौपचारिक शिक्षा का प्रावधान किया जाता है।

इसका पाठ्यक्रम तो होता है लेकिन वो बहुत ही लचीला और सीखने वालों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है। सीखने वाला जब चाहे अपने समय के अनुसार इसमें भाग ले सकता है।

कुल मिलाकर ये औपचारिक शिक्षा की तरह बंधनों में बंधा नहीं रहता है बल्कि ये उस से मुक्त होता है इसीलिए इसे मुक्त शिक्षा या खुली शिक्षा या दूरस्थ शिक्षा या फिर प्रौढ़ शिक्षा भी कहा जाता है।

| प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शिक्षा क्या है?

एक ऐसी व्यवस्था जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी एक-दूसरे के आमने-सामने हो और शिक्षक पूर्व निर्धारित योजना के तहत एक नियंत्रित वातावरण में विद्यार्थी को अपना ज्ञान दें तो उसे प्रत्यक्ष शिक्षा कहा जाता है। औपचारिक शिक्षा मूल रूप से प्रत्यक्ष शिक्षा ही होती है।

अप्रत्यक्ष शिक्षा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है किसी पूर्व निर्धारित योजना या किसी नियंत्रित वातावरण में नहीं दी जाती है बल्कि स्वतंत्र वातावरण में अप्रत्यक्ष साधनों का प्रयोग करके दी जाती है या फिर खुद से ही ग्रहण की जाती है।

जैसे कि आप एक पेपर के टुकड़े पर कुछ खा रहे है और अचानक से आपका नजर उस लाइन पे गया जहां लिखा था कि सांप अगर काट ले तो क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

| बेसिक या बुनियादी शिक्षा क्या है?

बुनियादी शिक्षा की परिकल्पना महात्मा गांधी द्वारा की गई थी। उनका इस शिक्षा से आशय ये था कि विद्यार्थियों को कुछ इस तरह से शिक्षित किया जाए कि वे पढ़ाई के साथ-साथ कुछ धनोपार्जन भी कर सके।

इसके लिए एक ऐसी व्यवस्था की बात कही गई जिसके तहत विद्यार्थियों को हस्तशिल्प आदि का प्रशिक्षण देना शामिल था। कुल मिलाकर बेसिक या बुनियादी शिक्षा आत्मनिर्भर विद्यार्थी बनाने की एक संकल्पना है।

| सामान्य एवं विशेष शिक्षा क्या है?

सामान्य शिक्षा का तात्पर्य है कि कम से कम इतनी शिक्षा तो सभी बच्चों को सामान्य रूप से मिलना ही चाहिए जिससे कि वो मानसिक या बौद्धिक रूप से खुद को एक बेहतर ज़िंदगी के लिए तैयार कर सके और आगे की विशिष्ट शिक्षा प्राप्त करने में उसे कोई कठिनाई न आए।

विशेष शिक्षा का तात्पर्य किसी खास लक्ष्य आधारित शिक्षा प्राप्त करने से है। ये आम तौर पर किसी विशेष क्षेत्र में अपनी योग्यता और क्षमता को बढ़ाकर खुद को बाज़ार या व्यवसाय के लिए तैयार करने से संबन्धित है। जैसे कि डॉक्टर की पढ़ाई या इंजीन्यरिंग आदि।

| व्यक्तिगत तथा सामूहिक शिक्षा क्या है?

जब किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों से अलग करके व्यक्तिगत तौर पर शिक्षा दी जाती है तो उसे व्यक्तिगत शिक्षा कहा जाता है। इसकी खूबी ये है कि इसमें शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की इच्छाओं एवं रुचियों आदि का ख्याल रखा जाता है।

इसी तरह से व्यक्तियों के समूह को जब एक साथ शिक्षा दी जाती है तो उसे सामूहिक शिक्षा कहा जाता है। इसकी खामी ये है कि इसमें अलग-अलग व्यक्तियों के इच्छाओं का ध्यान नहीं रखा जाता है।

| ऑनलाइन शिक्षा क्या है?

इंटरनेट के प्रसार ने शिक्षा के एक नए क्षेत्र को स्थापित होने का मौका दिया। आज ऑनलाइन शिक्षा, शिक्षा का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है।

ऑनलाइन शिक्षा का सबसे बड़ा फायदा ये है कि स्टूडेंट घर पर बैठकर अपने कंप्यूटर, लैपटॉप, या स्मार्टफोन का उपयोग करके, दुनिया के किसी कोने में बैठकर, दुनिया के किसी भी शिक्षक से पढ़ाई कर सकता है।

| नैतिक शिक्षा क्या है?

व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र के स्तर पर ये स्पष्ट होनी ही चाहिए कि क्या नैतिक और क्या अनैतिक। आमतौर पर कुछ चीजों के प्रति स्वयं के अनुभवों से हम ये परिभाषित कर लेते हैं कि क्या हमारे लिए नैतिक है और क्या अनैतिक।

लेकिन एक समाज या राष्ट्र के स्तर पर नैतिकता की जो सामान्य समझ स्थापित है उस मूल्य को सबमें समाहित किया जा सके इसके लिए नैतिक शिक्षा दी जाती है। ये इसीलिए जरूरी होता है क्योंकि सम्पूर्ण समाज या राष्ट्र के हित की रक्षा इससे की जा सकती है।

| शिक्षा करता क्या है?

जन्मजात शक्तियों का सही दिशा में विकास- किसी भी व्यक्ति में जो प्रेम, जिज्ञासा, कल्पना, तर्क तथा आत्मसम्मान आदि जैसी जन्मजात शक्तियां होती है। शिक्षा इसे सही दिशा में विकसित करने का कार्य करता है।

मूल-प्रवृतियों पर नियंत्रण – हम पशुओं से इस मायने में बिलकुल भी अलग नहीं है कि यदि हमें बिना खुली छूट दे दी जाए तो हम भी पशुओं की तरह अराजकता पर उतर जाएंगे। हम इस पशु वाली प्रवृति पर नियंत्रण रख सके इसके लिए शिक्षा जरूरी है।

सभ्यता एवं संस्कृति का संरक्षण – प्रत्येक समाज की अपनी खास परंपरा, रीति-रिवाज या संस्कृति होती है। जिसके अनुसार वे अपना जीवन-यापन करते हैं। शिक्षा इसे बचाए रखने में मदद करता है। सिंधु घाटी जैसे सभ्यता किस तरह से खत्म हुआ ये तो हम सब जानते ही है।

समाज में सकारात्मक बदलाव – शिक्षा समाज में समय और परिस्थिति के अनुकूल बदलाव लाने में मदद करता है।

शिक्षा व्यक्ति को बाज़ार के अनुसार कौशल प्राप्त करने में मदद करता है इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था सुधरती है परिणामस्वरूप व्यक्ति की भौतिक जरूरतों की पूर्ति संभव हो पाती है।

[यहाँ से पढ़ें – शिक्षाप्रद धार्मिक कहानी]

| शिक्षा व्यवस्था की खामियाँ

आज सुख-सुविधा के उद्देश्य से शिक्षा ग्रहण करने की प्रवृति बढ़ रही है ऐसे में लोग सुख-सुविधा मिलने के बाद जीवन का कोई एकांत कोना खोज लेते है जहां पर किसी प्रकार का कोई प्रतिरोध न हो और फिर उस सुविधा क्षेत्र में जीने के वे इतने आदि हो जाते है कि – उसे उस एकांत कोने से बाहर निकलने में भी डर लगता है, वे स्थूल हो जाते है और व्यवस्था को दोष देने लगते है, उसे कोसने लगते है।

वर्तमान में शिक्षा का संबंध बाहरी कार्यकुशलता से हो गया है, इस प्रकार की शिक्षा मनुष्य की आंतरिक प्रकृति की या तो पूर्णतया: उपेक्षित कर देती है या फिर उसे विकृत कर देती है। वर्तमान शिक्षा हमारे आंतरिक प्रकृति के एक अंश का तो विकास करता है पर शेष को बोझ के रूप में ढोने के लिए छोड़ देता है।

इस बात को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है कि जानकारी तथा तकनीकी प्रशिक्षण बहुत जरूरी है पर जानकारी तथा तकनीकी प्रशिक्षण देने के साथ ही सबसे अधिक जरूरी है कि शिक्षा, जीवन के प्रति एक समन्वित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करें ।

हमें इस पर विचार करना ही होगा कि, जीवन का महत्व आखिर क्या है?, हम क्यों जीवित है?, हम क्यों अपने अस्तित्व को लेकर इतना संघर्ष कर रहें है? यदि हम मात्र कोई विशेष योग्यता पाने के लिए, अच्छी नौकरी पाने के लिए, अधिक कार्यकुशल होने के लिए, दूसरों पर अधिकाधिक आधिपत्य जमाने के लिए ही शिक्षा प्राप्त कर रहें है, तो ये गलत दिशा में विकसित हो रही हमारी संकीर्ण सोच को ही दर्शाता है।

अगर हम शिक्षित होकर भी विश्व में विनाश और दु:ख का ही सृजन कर रहें है तो हमें इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि आखिर क्यों आज हमारी शिक्षा व्यवस्था अब तक की सबसे बड़ी विकृति से गुजर रही है। आखिर क्यों आज हमारी शिक्षा व्यवस्था इस बात की गारंटी नहीं दे पाती है कि एक शिक्षित व्यक्ति हमेशा एक अच्छा इंसान होगा?

Ordinance

“मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास, शिक्षा है।”

डॉ. भीमराव अंबेडकर

प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में अदृश्य रूप से विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना, शिक्षा है।

सुकरात

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संदर्भ,
शिक्षा क्या है? – जे. कृष्णमूर्ति,
शिक्षा का प्रत्यय – विकासपिडिया,
https://hi.wikipedia.org/
नैतिक शिक्षा