इस लेख में हम मार्शल लॉ और राष्ट्रीय आपातकाल (Marshall law and National emergency) के मध्य अंतर पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।
मार्शल लॉ लगे या राष्ट्रीय आपातकाल दोनों में ही मूल अधिकारों में कटौती की जाती है इसीलिए मूल अधिकार (Fundamental Rights) और राष्ट्रीय आपातकाल (National emergency) दोनों को समझना जरूरी है। दिये गए लिंक के माध्यम से आप उसे समझ सकते हैं।

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Marshall law and National emergency
अनुच्छेद 34 कहता है कि जब किसी क्षेत्र में सेना कानून (Marshall law) लागू हो तब संविधान के भाग 3 द्वारा प्रदत मूल अधिकारों को निर्बंधित किया जा सकता है। यानी कि जब भी भारत में कहीं भी मार्शल लॉ लागू होगा वहाँ अनुच्छेद 34 के तहत मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में सैन्य शासन द्वारा साधारण शासन व्यवस्था को टेकओवर कर लिया जाता है और इसे कुछ विशेषाधिकार होते हैं जो संसद द्वारा दिया जा सकता है।
वहीं राष्ट्रीय आपातकाल की बात करें तो इसे अनुच्छेद 352 के तहत लगाया जाता है, इसे आमतौर पर युद्ध, बाहरी आक्रमण एवं देश के भीतर सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाए जाने की व्यवस्था है। इस मामले में अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 (जो कि अभिव्यक्ति समेत अन्य विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता की बात करता है) निलंबित हो जाता है। साथ ही अनुच्छेद 359 के तहत राष्ट्रपति को ये अधिकार मिल जाता है कि अनुच्छेद 20 (अपराध के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) को छोड़कर वे अन्य मूल अधिकारों को भी निलंबित कर सकता है।
मार्शल लॉ और राष्ट्रीय आपातकाल में अंतर
युद्ध, आंतरिक अशांति, दंगे या कानून के उल्लंघन जैसी स्थिति में आपातकाल भी लगाया जा सकता है और मार्शल लॉ भी पर फिर भी दोनों में कुछ मूलभूत अंतर है। तो आइये देखते हैं वो क्या है-
> युद्ध, आंतरिक अशांति या फिर सशस्त्र विद्रोह आदि जैसे किसी भी स्थिति में अगर देश के किसी भाग में कानून व्यवस्था भंग हो जाये या फिर अराजकता फैल जाये तो ऐसी स्थिति में मार्शल लॉ लगाया जाता है।
> वहीं अगर राष्ट्रीय आपातकाल की बात करें तो कानून व्यवस्था भंग न भी हो तब भी अगर युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह हो तो इसे लगाया जा सकता है।
मार्शल लॉ संविधान द्वारा प्रदत मूल अधिकारों को पूरी तरह प्रभावित करता है। यहाँ तक कि जहां ये लागू होता है वहाँ पर सरकार और साधारण कानूनी न्यायालय निलंबित हो जाता है।
दूसरे शब्दों में मार्शल लॉ का सीधा सा मतलब होता है सामान्य प्रशासन को सेना द्वारा अपने नियंत्रण में ले लेना। ऐसा होते ही वहाँ साधारण कानून पूरी तरह से समाप्त हो जाता है और सैन्य प्रशासन को कुछ असाधारण अधिकार मिल जाते हैं। जैसे कि किसी नागरिक को मृत्युदंड देना, आदि।
> मार्शल लॉ किसी विशेष क्षेत्रों में ही लागू किया जा सकता है वहीं आपातकाल पूरे देश भर में भी लागू किया जा सकता है और किसी क्षेत्र में भी।
कुल मिलाकर देखें तो जहां पर मार्शल लॉ लगता है ये केवल उसी क्षेत्र को प्रभावित करता है। जबकि राष्ट्रीय आपातकाल एक साथ पूरे देश को प्रभावित कर सकता है।
> आपातकाल की बात करें तो मूल अधिकार तो इससे प्रभावित होता ही है पर इसके साथ ही साथ केंद्र और राज्य के मध्य प्रशासनिक और वित्तीय संबंध भी प्रभावित होता है। राष्ट्रपति और संसद की शक्ति बढ़ जाती है। जबकि मार्शल लॉ में सैन्य शक्ति बढ़ जाती है।
> मार्शल लॉ के दौरान सैन्य अधिकारियों को इतना अधिकार मिल जाता है कि वे किसी नागरिक को मृत्युदंड भी दे सकता है। वहीं आपातकाल के दौरान ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें सामान्य न्याय व्यवस्था निलंबित नहीं होता है।
> मार्शल लॉ के संबंध में संविधान में किसी विशेष प्रक्रिया या व्यवस्था का उल्लेख नहीं किया गया है। जबकि राष्ट्रीय आपातकाल की स्पष्ट व्याख्या संविधान में वर्णित है।
कुल मिलाकर यही मुख्य अंतर है मार्शल लॉ और राष्ट्रीय आपातकाल (Marshall law and National emergency) में, उम्मीद हैं समझ में आया होगा। नीचे अन्य लेखों का लिंक दिया जा रहा है उसे भी जरूर विजिट करें।
मूल संविधान↗️
https://www.india.gov.in/my-government/constitution-india/constitution-india-full-text