यह लेख अनुच्छेद 133 (Article 133) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 133


📜 अनुच्छेद 133 (Article 133) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
133. उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता1[(1) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी 2[यदि उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134क के अधीन प्रमाणित कर देता है कि] —
(क) उस मामले में विधि का व्यापक महत्व का कोई सारवान प्रश्न अंतर्वलित है; और
(ख) उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है।]

(2) अनुच्छेद 132 में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय में खंड (1) के अधीन अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधारों में यह आधार भी बता सकेगा कि इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है।

(3) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे।
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1. संविधान (तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमाणित करता है” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
अनुच्छेद 133

THE UNION JUDICIARY
133. Appellate jurisdiction of Supreme Court in appeals from High Courts in regard to civil matters.— 1[(1) An appeal shall lie to the Supreme Court from any judgment, decree or final order in a civil proceeding of a High Court in the territory of India 2[if the High Court certifies under article
134A—]
(a) that the case involves a substantial question of law of general importance; and
(b) that in the opinion of the High Court the said question needs to be decided by the Supreme Court.]

(2) Notwithstanding anything in article 132, any party appealing to the Supreme Court under clause (1) may urge as one of the grounds in such appeal that a substantial question of law as to the interpretation of this Constitution has been wrongly decided.

(3) Notwithstanding anything in this article, no appeal shall, unless Parliament by law otherwise provides, lie to the Supreme Court from the judgment, decree or final order of one Judge of a High Court.
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1. Subs. by the Constitution (Thirtieth Amendment) Act, 1972, s. 2, for cl. (1) (w.e.f. 27- 2-1973)।
2. Subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s.18, for “if the High Court certifies.—” (w.e.f. 1-8-1979).
Article 133

🔍 Article 133 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 133 (Article 133) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

अनुच्छेद-132 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 133 – उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 133 उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता (Appellate jurisdiction of Supreme Court in appeals from High Courts in regard to civil matters) के बारे में है।

इस अनुच्छेद के तहत कुल 3 खंड आते हैं। आइये समझे;

अनुच्छेद 133(1) के तहत कहा गया है कि भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी, यदि उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134क के अधीन प्रमाणित कर देता है कि —

(क) उस मामले में विधि का व्यापक महत्व का कोई सारवान प्रश्न अंतर्वलित है; और
(ख) उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है।]

कुल मिलाकर अनुच्छेद 133(1) दीवानी मामलों में अपील (Appeal in civil cases) से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट अपील का सबसे उच्चतम न्यायालय है। होता ये है कि अगर किसी को अधीनस्थ न्यायालय का फैसला उचित नहीं लगता है तो उच्च न्यायालय में अपील कर देता है, अगर उच्च न्यायालय का फैसला भी उचित नहीं जान पड़ता है तो फिर इसे उच्चतम न्यायालय में अपील कर देता है।

अब सवाल ये है कि किस प्रकार का अपील उच्चतम न्यायालय में किया जाता है। तो इसे निम्नलिखित चार भागों में बाँट कर देखा जा सकता है।

(1) संवैधानिक मामलों में अपील (अनुच्छेद 132),
(2) दीवानी मामलों में अपील (Appeal in civil cases) ,
(3) आपराधिक मामलों में अपील, और
(4) विशेष अनुमति द्वारा अपील।

अनुच्छेद 133 के तहत, दीवानी मामलों को उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है।

(घर-गृहस्थी से संबन्धित जो झगड़े होते है उसे दीवानी मामला कहा जाता है जैसे कि शादी से संबन्धित, तलाक से संबन्धित, गोद लेने से संबन्धित इत्यादि मामले)

यहाँ अनुच्छेद 134क के तहत उच्च न्यायालय को प्रमाणित करना पड़ेगा कि (पहली बात) निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है और (दूसरी बात) मामला किसी तरह की व्याख्या की मांग करता है।

अनुच्छेद 133(2) के तहत कहा गया है कि अनुच्छेद 132 में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय में खंड (1) के अधीन अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधारों में यह आधार भी बता सकेगा कि इस संविधान के निर्वचन (Interpretation) के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न (substantial question) का विनिश्चय (decide) गलत किया गया है।

अनुच्छेद 133(3) के तहत कहा गया है कि इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे।

इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की मदद से अनुच्छेद 134क को संविधान में प्रतिस्थापित (insert) किया।

विस्तार से समझेंउच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of Supreme Court)

तो यही है अनुच्छेद 133 (Article 133), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

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FAQ. अनुच्छेद 133 (Article 133) क्या है?

अनुच्छेद 133 उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता (Appellate jurisdiction of Supreme Court in appeals from High Courts in regard to civil matters) के बारे में है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।