यह लेख अनुच्छेद 148 (Article 148) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 148

📜 अनुच्छेद 148 (Article 148) – Original

भारत का नियंत्रक महालेखापरीक्षक
148. भारत का नियंत्रक महालेखापरीक्षक —(1) भारत का एक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक होगा जिसको राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा और उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।

(2) प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक नियुक्त किया जाता है अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

(3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का वेतन और सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होंगी जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक वे इस प्रकार अवधारित नहीं की जाती हैं तब तक ऐसी होंगी जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं :

परन्तु नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के वेतन में और अनुपस्थिति छुट्टी, पेंशन या निवृत्ति की आयु के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात्‌ उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

(4) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक, अपने पद पर न रह जाने के पश्चात्‌, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी और पद का पात्र नहीं होगा।

(5) इस संविधान के और संसद्‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग में सेवा करने वाले व्यक्तियों की सेवा की शर्तें और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की प्रशासनिक शक्तियां ऐसी होंगी जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं।

(6) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।
अनुच्छेद 148

Comptroller and Auditor-General of India
148. Comptroller and Auditor-General of India.— (1) There shall be a Comptroller and Auditor-General of India who shall be appointed by the President by warrant under his hand and seal and shall only be removed from office in like manner and on the like grounds as a Judge of the Supreme Court.

(2) Every person appointed to be the Comptroller and Auditor-General of India shall, before he enters upon his office, make and subscribe before the President, or some person appointed in that behalf by him, an oath or affirmation according to the form set out for the purpose in the Third Schedule

(3) The salary and other conditions of service of the Comptroller and Auditor-General shall be such as may be determined by Parliament by law and, until they are so determined, shall be as specified in the Second Schedule:

Provided that neither the salary of a Comptroller and Auditor-General nor his rights in respect of leave of absence, pension or age of retirement shall be varied to his disadvantage after his appointment.

(4) The Comptroller and Auditor-General shall not be eligible for further office either under the Government of India or under the Government of any State after he has ceased to hold his office.

(5) Subject to the provisions of this Constitution and of any law made by Parliament, the conditions of service of persons serving in the Indian Audit and Accounts Department and the administrative powers of the Comptroller and Auditor-General shall be such as may be prescribed by rules made by the President after consultation with the Comptroller and Auditor-General.

(6) The administrative expenses of the office of the Comptroller and Auditor-General, including all salaries, allowances and pensions payable to or in respect of persons serving in that office, shall be charged upon the Consolidated Fund of India.
Article 148

🔍 Article 148 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का पांचवा अध्याय है – भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 148 से लेकर अनुच्छेद 151 तक आता है। जिसमें से इस लेख में हम अनुच्छेद 148 (Article 148) को समझने वाले हैं;

लोकतंत्र में जिन लोगों के पास शक्तियां और जिम्मेदारियां होती है उन्हे अपने कार्यों के प्रति जवाबदेह तो होने ही चाहिए। भारतीय संविधान इसको सुनिश्चित करने के लिए कई संस्थाओं को अधिदेशित करता है जैसे कि न्यायपालिका (Judiciary)

इसी क्रम में एक सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्था (Supreme Audit Institution) SAI की भी स्थापना की गई है जिसे कि हम आमतौर पर भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या CAG के नाम से जानते हैं। सविधान का अनुच्छेद 148 – 151 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की विशेष भूमिका निर्धारित करती है।

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संविधान का भाग 5, अध्याय V भारत का नियंत्रक महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India) की बात करता है। अनुच्छेद 148 भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India) के बेसिक्स बारे में है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के स्वतंत्र पद की व्यवस्था की गई है, जिसे संक्षेप में ”महालेखा परीक्षक (Auditor General)” कहा जाता है। यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग का मुख्य होता है।

इस अनुच्छेद के तहत कुल छह खंड है। आइये एक-एक करके समझें;

Article 148 (1) Explanation

अनुच्छेद 148(1) के तहत कहा गया है कि भारत का एक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक होगा जिसको राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा और उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।

यहाँ पर तीन बातें हैं;

(पहली बात), इस अनुच्छेद के तहत भारत के लिए एक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) नामक पद की व्यवस्था की गई है।

(दूसरी बात), नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र (warrant under his hand and seal) द्वारा की जाएगी। 

(तीसरी बात), नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) को उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।

Q. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को कैसे हटाया जाता है?

अनुच्छेद 124(4) के तहत, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से तभी हटा सकता है, जब उस न्यायाधीश को हटाने का आधार सिद्ध हो जाये और उसके बाद संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पास किया जाये।

इसके लिए बकायदे एक कानून है जिसका नाम है ‘न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968‘ इसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया वर्णन है। इसके अनुसार न्यायाधीश को हटाने की निम्नलिखित प्रक्रिया है –

1. निष्कासन प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति तभी विचार करेगा जब उस प्रस्ताव को लोकसभा में 100 सदस्यों और राज्यसभा में 50 सदस्यों से लिखित सहमति मिलेगी।

2. इतना होने के बावजूद भी ये अध्यक्ष/ सभापति पर निर्भर करता है कि वे इसे स्वीकृति दे या नहीं। यानी कि इस प्रस्ताव को ये शामिल भी कर सकते है या इसे अस्वीकार भी कर सकते हैं।

3. यदि इसे स्वीकार कर लिया जाये तो अध्यक्ष / सभापति को इसकी जांच के लिए तीन सदस्य समिति गठित करनी होगी। इस समिति में शामिल होना चाहिए- मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और प्रतिष्ठित न्यायवादी।

4. यदि यह समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार का दोषी या असक्षम पाती है तो इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।

5. इसके बाद विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है और अंत में राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर देते हैं।

इसी रीति से नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) को भी हटाया जा सकता है। विशेष जानकारी के लिए पढ़ें – अनुच्छेद 124

Article 148 (2) Explanation

अनुच्छेद 148(2) के तहत कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक नियुक्त किया जाता है अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) को अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति के समक्ष या फिर राष्ट्रपति द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी होती है। शपथ में क्या बोला जाएगा यह संविधान की तीसरी अनुसूची में लिखा गया है, जिसे कि आप नीचे देख सकते हैं;

मैं, …………………, जो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक नियुक्त हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ) कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा तथा मैं सम्यक प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूंगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।

Article 148(3) Explanation

अनुच्छेद 148(3) के तहत कहा गया है कि नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का वेतन और सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होंगी जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक वे इस प्रकार अवधारित नहीं की जाती हैं तब तक ऐसी होंगी जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं :

CAG के वेतन और सेवा की अन्य शर्तें भारत की संसद द्वारा “नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 [The Comptroller and Auditor-General (Duties, Powers and Conditions of Service) Act, 1971]” के माध्यम से निर्धारित की जाती हैं।

उनका वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान है। उनकी नियुक्ति के बाद न तो उनके वेतन और न ही अनुपस्थिति अवकाश, पेंशन या सेवानिवृत्ति की आयु के संबंध में अधिकारों में उनके लिए अलाभकारी परिवर्तन किया जा सकता है।

DateSalary
1 January 2016₹250,000 (US$3,100)
https://cag.gov.in/uploads/media/Pay-Scales-7th-CPC-20200911150323.pdf

Article 148(4) Explanation

अनुच्छेद 148(4) के तहत कहा गया है कि नियंत्रक-महालेखापरीक्षक, अपने पद पर न रह जाने के पश्चात्‌, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी और पद का पात्र नहीं होगा।

कहने का अर्थ ये है कि CAG अपने पद पर बने रहने के बाद न तो भारत सरकार के अधीन और न ही किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी पद के लिए पात्र है। ये प्रावधान CAG की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए हैं।

Article 148(5) Explanation

अनुच्छेद 148(5) के तहत कहा गया है कि इस संविधान के और संसद्‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग में सेवा करने वाले व्यक्तियों की सेवा की शर्तें और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की प्रशासनिक शक्तियां ऐसी होंगी जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं।

संविधान के प्रावधानों के अनुसार, The Comptroller and Auditor-General (Duties, Powers and Conditions of Service) Act, 1971 अधिनियमित किया गया था।

1. यह भारत की संचित निधि, प्रत्येक राज्य की संचित निधि और प्रत्येक संघ शासित प्रदेश, जहां विधानसभा हो, में सभी व्यय संबंधी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है।

3. यह केंद्र सरकार और अन्य सरकारों के किसी विभाग द्वारा सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण लाभ और हानि लेखाओं, तुलन पत्रों (Balance sheets) और अन्य अनुषंगी लेखाओं (Subsidiary accounts) की लेखा परीक्षा करता है।

2. यह भारत के लोक लेखा सहित प्रत्येक राज्य की आकस्मिकता निधि (Contingency fund) और प्रत्येक राज्य के लोक लेखा से सभी व्यय की लेखा परीक्षा करता है।

4. यह निम्नांकित संस्थाओं के प्राप्तियों और व्ययों का भी लेखा परीक्षण करता है:

(1) भारतीय रेल, रक्षा, डाक और दूरसंचार सहित सभी संघ और राज्य सरकार विभाग जिन्हे केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान मिलता है:

(2) संघ और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित लगभग 1500 सार्वजनिक वाणिज्यक उद्यम (Commercial enterprise), जैसे सरकारी कंपनियां और निगम।  एवं,

(3) संघ और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित और स्वामित्व वाले लगभग 400 गैर वाणिज्यिक स्वायत्त निकाय (Non-commercial autonomous bodies) और प्राधिकरण।

5. यह राष्ट्रपति या राज्यपाल के निवेदन पर किसी अन्य प्राधिकारण के लेखाओं की भी लेखा परीक्षा करता है। जैसे कि स्थानीय निकायों की लेखा परीक्षा। इसके साथ ही यह राष्ट्रपति को इस संबंधी में सलाह भी देता है कि केंद्र और राज्यों के लेखा किस प्रारूप में रखे जाने चाहिए।

6. अनुच्छेद 151 के तहत, यह केंद्र सरकार के लेखों से संबन्धित रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है, जो उसे संसद के पटल पर रखते है। इसी प्रकार यह राज्य सरकार के लेखों से संबन्धित रिपोर्ट राज्यपाल को देता है, जो उसे विधानमंडल के पटल पर रखते हैं।

7. यह अनुच्छेद 279 के तहत, किसी कर या शुल्क की शुद्ध आगमों का निर्धारण और प्रमाणन करता है इस संबंध में उसका प्रमाण पत्र अंतिम होता है। यहाँ पर शुद्ध आगमों का अर्थ है – कर या शुल्क की प्राप्तियाँ, जिसमें संग्रहण की लागत सम्मिलित न हो।

8. यह संसद की लोक लेखा समिति (Public accounts committee) के गाइड और मित्र के रूप में कार्य करता है।

9. यह राज्य सरकारों के लेखाओं का संकलन और अनुरक्षण (Compilation and maintenance) करता है। पहले भारत सरकार का भी करता था लेकिन 1976 में इसे केन्द्रीय सरकार के लेखाओं के संकलन और अनुरक्षण कार्य से मुक्त कर दिया गया।

Article 148 (6) Explanation

अनुच्छेद 148(6) के तहत कहा गया है कि नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे।

संचित निधि पर भारित होने का अर्थ है कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, वेतन भत्ते और पेंशन पर संसद में मतदान नहीं होगा।

Overall CAG:

CAG का मतलब नियंत्रक और महालेखा परीक्षक है। यह भारत में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक कार्यालय है जो देश के सर्वोच्च लेखापरीक्षा संस्थान के रूप में कार्य करता है। यहाँ CAG और उसकी भूमिका की व्याख्या है:

संवैधानिक स्थिति (Constitutional Position): CAG भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत सृजित एक संवैधानिक पद है। भारत के राष्ट्रपति CAG की नियुक्ति करते हैं, जो छह साल की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर रहते हैं। CAG कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र है।

भूमिका और कार्य (Role and Functions): CAG की प्राथमिक भूमिका विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) और स्वायत्त निकायों (autonomous bodies) सहित केंद्र और राज्य सरकारों के खातों और वित्त पर ऑडिट और रिपोर्ट करना है। CAG के ऑडिट वित्तीय प्रबंधन के सभी पहलुओं को कवर करते हैं, जिसमें राजस्व, व्यय, प्राप्तियां और सार्वजनिक धन का आवंटन शामिल है।

वित्तीय लेखापरीक्षा (Financial Audit): कैग वित्तीय विवरणों और लेन-देन की प्रामाणिकता, सटीकता और अनुपालन की जांच करने के लिए वित्तीय ऑडिट करता है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वित्तीय नियमों और विनियमों का पालन किया जाता है, सार्वजनिक धन का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाता है, और वित्तीय अनियमितताओं या कुप्रबंधन की पहचान की जाती है।

निष्पादन लेखापरीक्षा (Performance Audit): वित्तीय लेखापरीक्षा के अतिरिक्त सीएजी निष्पादन लेखापरीक्षा भी करता है। ये ऑडिट सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं की अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रभावशीलता का आकलन करते हैं। इसका उद्देश्य यह मूल्यांकन करना है कि क्या सार्वजनिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग किया जाता है और बेहतर प्रशासन के लिए सुधार की सिफारिश करना है।

रिपोर्ट प्रस्तुत करना: कैग अपनी लेखापरीक्षा रिपोर्ट संबंधित राज्य के राष्ट्रपति या राज्यपाल को प्रस्तुत करता है, जो फिर उन्हें संसद या राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करता है। इन रिपोर्टों को आवश्यक दस्तावेज माना जाता है जो विधायिका को सरकारी खर्च की जांच करने और कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने में सक्षम बनाता है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति को तीन लेखा परीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करता है: (1) विनियोग लेखाओं पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit report on appropriation accounts), (2) वित्त लेखाओं पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Finance Account) और (3) सरकारी उपक्रमों पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट (Audit Report on Government Undertakings)।

स्वतंत्रता और स्वायत्तता: CAG एक स्वतंत्र निकाय है और अपने कार्यों के निष्पादन में महत्वपूर्ण स्वायत्तता प्राप्त करता है। यह कार्यपालिका या विधायिका के नियंत्रण या प्रभाव के अधीन नहीं है। यह स्वतंत्रता सीएजी को निष्पक्ष रूप से काम करने और निष्पक्ष लेखापरीक्षा टिप्पणियों और सिफारिशों को प्रदान करने की अनुमति देती है।

समापन टिप्पणी (Closing Remarks):

CAG सरकार के वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी रिपोर्ट वित्तीय अनियमितताओं की पहचान करने, भ्रष्टाचार को रोकने और सार्वजनिक धन के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने में सहायक होती है।

CAG रिपोर्ट अक्सर संसदीय बहसों, चर्चाओं और नीतिगत बदलावों का आधार बन जाती है। वे वित्तीय कुप्रबंधन, सार्वजनिक धन के दुरुपयोग, या शासन में कमियों के उदाहरणों को उजागर कर सकते हैं। कैग की टिप्पणियां और सिफारिशें सरकारी विभागों और एजेंसियों के कामकाज में सुधार के लिए मूल्यवान इनपुट के रूप में काम करती हैं।

हालांकि संविधान में कैग (CAG) की परिकल्पना नियंत्रक महालेखा परीक्षक के रूप में ई गई है। लेकिन व्यवहार में कैग केवल महालेखा परीक्षक ही है क्योंकि कैग (CAG) का भारत की संचित निधि से धन की निकासी पर कोई नियंत्रण नहीं है और अनेक विभाग कैग के प्राधिकार के बिना चैक जारी कर धन की निकासी कर सकते है।

कैग की भूमिका वहाँ से शुरू होती है जब व्यय (expenditure) हो चुका होता है। जबकि ब्रिटेन के CAG की बात करें तो उसकी स्वीकृति के बिना कार्यपालिका राजकोष से धन की निकासी नहीं कर सकता है।

◾ गुप्त सेवा व्यय (यानी कि ऐसा व्यय जिसे सार्वजनिक नहीं किया जाता जैसे कि खुफ़िया एजेंसी से संबंधित खर्च) कैग की लेखा परीक्षा भूमिका पर सीमाएं निर्धारित करता है। इस संबंध में कैग कार्यकारी एजेंसियों द्वारा किए गए व्यय के ब्योरे नहीं मांग सकता।

कुल मिलाकर, CAG को भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ माना जाता है, जो सरकार की वित्तीय गतिविधियों और प्रदर्शन का एक स्वतंत्र और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन प्रदान करता है। इसके ऑडिट पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने में योगदान करते हैं।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [CAG]
Article 148

तो यही है अनुच्छेद 148 (Article 148), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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Concept MCQs

  1. The Comptroller and Auditor General (CAG) of India is appointed by:
    a) The President of India
    b) The Prime Minister of India
    c) The Chief Justice of India
    d) The Finance Minister of India

Explanation: The correct answer is a) The President of India. The Comptroller and Auditor General (CAG) of India is appointed by the President of India under Article 148 of the Indian Constitution.

  1. The primary function of the Comptroller and Auditor General (CAG) is to:
    a) Enforce tax regulations
    b) Conduct financial audits of the government
    c) Prepare the national budget
    d) Manage public debt

Explanation: The correct answer is b) Conduct financial audits of the government. The primary function of the Comptroller and Auditor General (CAG) is to audit and report on the accounts and finances of the central and state governments, including various public sector undertakings and autonomous bodies. The CAG’s audits ensure transparency, accountability, and the proper utilization of public funds.

  1. The reports of the Comptroller and Auditor General (CAG) are submitted to:
    a) The Prime Minister of India
    b) The Chief Justice of India
    c) The President of India
    d) The Parliament or state legislature

Explanation: The correct answer is d) The Parliament or state legislature. The reports of the Comptroller and Auditor General (CAG) are submitted to the President or the Governor of the respective state, who then presents them to the Parliament or the state legislature. These reports serve as crucial documents that enable the legislature to scrutinize government spending and hold the executive accountable.

  1. The Comptroller and Auditor General (CAG) in India is appointed for a term of:
    a) 4 years
    b) 6 years
    c) 8 years
    d) 10 years

Explanation: The correct answer is b) 6 years. The Comptroller and Auditor General (CAG) of India is appointed for a term of six years or until the age of 65, whichever is earlier. This ensures independence and stability in the functioning of the office.

  1. The Comptroller and Auditor General (CAG) operates independently of:
    a) The executive
    b) The legislature
    c) The judiciary
    d) All of the above

Explanation: The correct answer is d) All of the above. The Comptroller and Auditor General (CAG) operates independently of the executive, legislature, and judiciary. This independence allows the CAG to perform its functions impartially and provide unbiased audit observations and recommendations, ensuring transparency and accountability in government finances.

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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
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FAQ. अनुच्छेद 148 (Article 148) क्या है?

संविधान का भाग 5, अध्याय V भारत का नियंत्रक महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India) की बात करता है। अनुच्छेद 148 भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India) के बेसिक्स बारे में है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।