यह लेख Article 177 (अनुच्छेद 177) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 177 (Article 177) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [साधारण] |
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177. सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार —(1) प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान-मंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा। |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [General] |
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177. Rights of Ministers and Advocate-General as respects the Houses—Every Minister and the Advocate-General for a State shall have the right to speak in, and otherwise to take part in the proceedings of, the Legislative Assembly of the State or, in the case of a State having a Legislative Council, both Houses, and to speak in, and otherwise to take part in the proceedings of, any committee of the Legislature of which he may be named a member, but shall not, by virtue of this article, be entitled to vote. |
🔍 Article 177 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम साधारण (General) के तहत आने वाले अनुच्छेद 177 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 88 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 177 – सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार (Rights of Ministers and Advocate-General as respects the Houses)
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से केंद्र में अनुच्छेद 88 के तहत सदनों के बारे में मंत्रियों एवं महान्यायवादी के अधिकार का वर्णन है उसी तरह से अनुच्छेद 177 के तहत सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार का वर्णन है।
अनुच्छेद 177 के तहत कहा गया है कि प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान-मंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
कहने का अर्थ है कि प्रत्येक मंत्री (Minister) और राज्यों का महाधिवक्ता (Advocate General of States);
(1) विधानमंडल के किसी भी सदन में बोल सकता है और उसकी कार्यवाहियों में भाग ले सकता है। अगर एक सदनीय है तो विधान सभा में बोल सकता है और अगर द्विसदनीय है तो विधान परिषद में भी बोल सकता है।
(2) संसद के किसी संयुक्त बैठक (Joint meeting) में बोल सकता है और उसकी कार्यवाहियों में भाग ले सकता है।
(3) विधानमंडल के किसी समिति में बोल सकता है और उसकी कार्यवाहियों में भाग ले सकता है, बशर्ते कि उसका नाम उस समिति में सदस्य के रूप में दिया गया हो।
लेकिन यहाँ याद रखने वाली बात यह कि प्रत्येक मंत्री और राज्यों का महाधिवक्ता बोल तो सकता है और उसकी कार्यवाहियों में भाग तो ले सकता है लेकिन वह मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकता है।
तो यही है अनुच्छेद 177, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |