यह लेख Article 352 (अनुच्छेद 352) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 352 (Article 352) – Original

भाग 18 [आपात उपबंध]
352. आपात की उद्घोषणा— (1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि गंभीर आपात विद्यमान है जिससे युद्ध या बाह्य आक्रमण या 1[सशस्त्र विद्रोह] के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा 2[संपूर्ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबंध में जो उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट किया जाए] इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

3[स्पष्टीकरण – यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सन्निकट है तो यह घोषित करने वाली आपात की उद्घोषणा कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, युद्ध या ऐसे किसी आक्रमण या विद्रोह के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी।]

4[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा में किसी पश्चातवर्ती उद्घोषणा द्वारा परिवर्तन किया जा सकेगा या उसको वापस लिया जा सकेगा।

(3) राष्ट्रपति, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा तब तक नहीं करेगा जब तक संघ के मंत्रिमंडल का (अर्थात्‌ उस परिषद्‌ का जो अनुच्छेद 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल स्तर के अन्य मंत्रियों से मिलकर बनती है) यह विनिश्वय कि ऐसी उद्धोषणा की जाए, उसे लिखित रूप में संसूचित नहीं किया जाता है।

(4) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद्‌ के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और जहां वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है वहां वह एक मास की समाप्ति पर, यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद्‌ के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है तो, प्रवर्तन में नहीं रहेगी :

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पूर्ववर्ती उद्धोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट एक मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से
पहले पारित नहीं किया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।

(5) इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (4) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे संकल्प के पारित किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी

परन्तु यदि और जितनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प संसद्‌ के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तो और उतनी बार वह उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती, छह मास की और अवधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी :

परन्तु यह और कि यदि लोक सभा का विघटन छह मास की ऐसी अवधि के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्धोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सका द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अवधि के दौरान पारित नहीं किया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम
बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है ।

(6) खंड (4) और खंड (5) के प्रयोजनों के लिए, संकल्प संसद्‌ के किसी सदन द्वारा उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ही पारित किया जा सकेगा ।

(7) पूर्वगामी खंडों में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सभा खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्धोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन या उसे प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाला संकल्प पारित कर देती है तो राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा को वापस ले लेगा ।

(8) जहां खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन या उसको प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूचना लोक सभा सदस्य संख्या के कम से कम दसवें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके लिखित रूप में,-

(क) यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या
(ख) यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपति को,
दी गई है वहां ऐसे संकल्प पर विचार करने के प्रयोजन के लिए लोक सभा की विशेष बैठक, यथास्थिति, अध्यक्ष या राष्ट्रपति को ऐसी सूचना प्राप्त होने की तारीख से चौदह दिन के भीतर की जाएगी।]

5[(9)] इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत, युद्ध या बाह्य आक्रमण या 1[सशस्त्र विद्रोह] के अथवा युद्ध या बाह्य आक्रमण या 1[सशस्त्र विद्रोह] का संकट सन्निकट होने के विभिन्‍न आधारों पर विभिन्‍न उद्घोषणाएं करने की शक्ति होगी चाहे राष्ट्रपति ने खंड (1) के अधीन पहले ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी उद्घोषणा प्रवर्तन में है या नहीं।
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1. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) ‘आंतरिक अशान्ति” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
2. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
3. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित ।
4. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और खंड (3) के स्थान पर खंड (2) से खंड (8) प्रतिस्थापित किए गए।
5. संविधान (अड़तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित ।
अनुच्छेद 352 हिन्दी संस्करण

Part XVIII [EMERGENCY PROVISIONS]
352. Proclamation of Emergency — (1) If the President is satisfied that a grave emergency exists whereby the security of India or of any part of the territory thereof is threatened, whether by war or external aggression or 1[armed rebellion], he may, by Proclamation, make a declaration to that effect 2[in respect of the whole of India or of such part of the territory thereof as may be specified in the Proclamation.]

3[Explanation.—A Proclamation of Emergency declaring that the security of India or any part of the territory thereof is threatened by war or by external aggression or by armed rebellion may be made before the actual
occurrence of war or of any such aggression or rebellion, if the President is satisfied that there is imminent danger thereof.]

4[(2) A Proclamation issued under clause (1) may be varied or revoked by a subsequent Proclamation.

(3) The President shall not issue a Proclamation under clause (1) or a Proclamation varying such Proclamation unless the decision of the Union Cabinet (that is to say, the Council consisting of the Prime Minister and other
Ministers of Cabinet rank appointed under article 75) that such a Proclamation may be issued has been communicated to him in writing.

(4) Every Proclamation issued under this article shall be laid before each House of Parliament and shall, except where it is a Proclamation revoking a previous Proclamation, cease to operate at the expiration of one month unless before the expiration of that period it has been approved by resolutions of both Houses of Parliament:

Provided that if any such Proclamation (not being a Proclamation revoking a previous Proclamation) is issued at a time when the House of the People has been dissolved, or the dissolution of the House of the People takes place during the period of one month referred to in this clause, and if a resolution approving the Proclamation has been passed by the Council of States, but no resolution with respect to such Proclamation has been passed by
the House of the People before the expiration of that period, the Proclamation shall cease to operate at the expiration of thirty days from the date on which the House of the People first sits after its reconstitution, unless before the expiration of the said period of thirty days a resolution approving the Proclamation has been also passed by the House of the People.

(5) A Proclamation so approved shall, unless revoked, cease to operate on the expiration of a period of six months from the date of the passing of the second of the resolutions approving the Proclamation under clause (4):

Provided that if and so often as a resolution approving the continuance in force of such a Proclamation is passed by both Houses of Parliament the Proclamation shall, unless revoked, continue in force for a further period of six
months from the date on which it would otherwise have ceased to operate under this clause:

Provided further that if the dissolution of the House of the People takes place during any such period of six months and a resolution approving the continuance in force of such Proclamation has been passed by the Council of States but no resolution with respect to the continuance in force of such Proclamation has been passed by the House of the People during the said period, the Proclamation shall cease to operate at the expiration of thirty days from the date on which the House of the People first sits after its reconstitution unless before the expiration of the said period of thirty days, a resolution approving the continuance in force of the Proclamation has been also passed by the House of the People.

(6) For the purposes of clauses (4) and (5), a resolution may be passed by either House of Parliament only by a majority of the total membership of that House and by a majority of not less than two-thirds of the Members of that House present and voting.

(7) Notwithstanding anything contained in the foregoing clauses, the President shall revoke a Proclamation issued under clause (1) or a Proclamation varying such Proclamation if the House of the People passes a resolution disapproving, or, as the case may be, disapproving the continuance in force of, such Proclamation.

(8) Where a notice in writing signed by not less than one-tenth of the total number of members of the House of the People has been given, of their intention to move a resolution for disapproving, or, as the case may be, for
disapproving the continuance in force of, a Proclamation issued under clause (1) or a Proclamation varying such Proclamation,—
(a) to the Speaker, if the House is in session; or
(b) to the President, if the House is not in session, a special sitting of the House shall be held within fourteen days from the date on which such notice is received by the Speaker, or, as the case may be, by the President, for the purpose of considering such resolution.]

5[(9) The power conferred on the President by this article shall include the power to issue different Proclamations on different grounds, being war or external aggression or 1[armed rebellion] or imminent danger of war or external aggression or 1[armed rebellion], whether or not there is a Proclamation already issued by the President under clause (1) and such Proclamation is in operation.
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1. Subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 37, for “internal disturbance” (w.e.f. 20-6-1979).
2. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 48 (w.e.f. 3-1-1977).
3. Ins. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 37 (w.e.f. 20-6-1979).
4. Subs. by s. 37, ibid., for cls. (2), (2A) and (3) (w.e.f. 20-6-1979).
5. Cls. (4) and (5) ins. by the Constitution (Thirty-eighth Amendment) Act, 1975, s. 5 (with retrospective effect) and subsequently cl. (4) renumbered as cl. (9) and cl. (5) omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 37 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 352 English Version

🔍 Article 352 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग आपात उपबंध (EMERGENCY PROVISIONS) के बारे में है।

भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान विशेष शक्तियों का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय या संवैधानिक संकट के समय भारत के राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जा सकता है। ये प्रावधान सरकार को कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और संकट से निपटने के लिए अन्य असाधारण उपाय करने की अनुमति देते हैं।

आपातकालीन प्रावधानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

राष्ट्रीय आपातकाल: यह सबसे गंभीर प्रकार का आपातकाल है और इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।

राष्ट्रपति शासन: यह तब घोषित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि वित्तीय संकट मौजूद है या होने की संभावना है तो इसे घोषित किया जा सकता है।

आपातकालीन प्रावधान भारतीय संविधान का एक विवादास्पद हिस्सा हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि संकट के समय में देश की रक्षा के लिए वे आवश्यक हैं, जबकि अन्य का तर्क है कि वे बहुत शक्तिशाली हैं और सरकार द्वारा उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

उपरोक्त सारे आपातकालीन प्रावधानों को अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में सम्मिलित किया गया है; और इस लेख में हम अनुच्छेद 352 को समझने वाले हैं;

राष्ट्रीय आपातकाल और उसके प्रावधान (National Emergency)
Closely Related to Article 352

| अनुच्छेद 352 – आपात की उद्घोषणा (Proclamation of Emergency)

मान लें कि अगर देश पर बाहर से आक्रमण हो गया। राज्य इतने सक्षम होते नहीं हैं कि ऐसे आक्रमण का मुक़ाबला कर पाये, ऐसे में अराजकता फैल सकता है, लोग संविधान को मानने से इंकार कर सकता है, सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है, इत्यादि-इत्यादि।

इसीलिए संविधान केंद्र सरकार पर ये कर्तव्य आरोपित करता है कि इस तरह की असामान्य परिस्थितियों में वह राज्य को बाह्य आक्रमण से बचाए और ये सुनिश्चित करे कि सब कुछ संविधान के अनुसार काम करता रहे।

दूसरे शब्दों में कहें तो विपरीत परिस्थितियों में देश की संप्रभुताएकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की बात की गई है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 9 खंड है। आइये इसे बारी-बारी से समझें;

अनुच्छेद 352 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि गंभीर आपात विद्यमान है जिससे युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा संपूर्ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबंध में जो उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट किया जाए, इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

आपातकाल की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 (1) के तहत किया जाता है। जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि ऐसी गंभीर स्थिति आ गई है जिससे युद्ध (War) या बाह्य आक्रमण (External Aggression) या सशस्त्र विद्रोह (armed rebellion) के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा ‘सम्पूर्ण भारत’ या उसके ‘राज्यक्षेत्र के किसी भाग’ में आपातकाल लगा सकता है।

ऐसा नहीं है कि जब खतरा आ जाये तब ही राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकता है। अगर ख़तरा आने की गुंजाइश भी हो तब भी इसे लगाया जा सकता है।

◾️ जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर की जाती है तो उसे बाह्य आपातकाल (External emergency) कहा जाता है।

◾️ इसी तरह जब आपातकाल सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लगाया जाता है तो उसे आंतरिक आपातकाल (Internal emergency) कहा जाता है।

◾️ जब इन्दिरा गांधी ने 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लगाया तब एक आपातकाल पहले से ही चल रहा था। वो कैसे?

पहला आपातकाल तो 26 अक्तूबर 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय लगाया गया था। जिसे कि 10 जनवरी 1968 को खत्म कर दिया गया। लेकिन, दूसरा आपातकाल 3 दिसम्बर 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय लगाया गया था, जिसे कि खुद श्रीमती गांधी ने ही लगाया था और वो चल ही रहा था। ऊपर से उन्होने एक और नया आपातकाल 25 जून 1975 को देश पर थोप दिया। इन दोनों आपातकालों को 21 मार्च 1977 को एक साथ खत्म किया गया।

यहाँ पर एक बात याद रखने वाली है कि 1962 और 1971 में जो आपातकाल लगाया गया था, वो बाह्य आक्रमण (External attack) के आधार पर लगाया गया था।

वही 1975 में जो आपातकाल श्रीमती गांधी द्वारा लगाया गया, वो आंतरिक गड़बड़ी (Internal Disturbance) के आधार पर लगाया गया था। और ये विवाद का कारण बन गया।

दरअसल पहले आपातकाल लगाने की एक वजह आंतरिक गड़बड़ी हुआ करती थी लेकिन ये अपने आप में विवादास्पद था। क्योंकि आंतरिक गड़बड़ी संविधान में परिभाषित नहीं था इसका मतलब ये था कि ये कुछ भी हो सकता था।

जैसे कि अगर देश में प्रदर्शन भी हो तो उसे आंतरिक गड़बड़ी कहा जा सकता है। और श्रीमती गांधी ने अपनी सफाई में यही कहा भी था। क्योंकि इन्दिरा गांधी के खिलाफ उस समय देश में खूब प्रदर्शन चल रहा था। जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति को कौन भूल सकता है।

◾️ भविष्य में फिर से कोई सरकार आंतरिक गड़बड़ी के आधार पर आपातकाल न लगा दे, इसी को ध्यान में रखकर 44वें संविधान संशोधन 1978 में इस को बदलकर सशस्त्र विद्रोह (Armed Rebellion) कर दिया गया।

यानी कि अब युद्ध और बाह्य आक्रमण को छोड़कर देश में तभी आपातकाल लगाया जा सकता है जब हथियार के दम पर लोग विद्रोह कर दें।

अनुच्छेद 352 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा में किसी पश्चातवर्ती उद्घोषणा द्वारा परिवर्तन किया जा सकेगा या उसको वापस लिया जा सकेगा।

आपातकाल अगर लगाया गया है तो वो हमेशा के लिए तो रहेगा नहीं, इसीलिए राष्ट्रीय आपातकाल (National emergency) को हटाना आसान बनाया गया है। आपातकाल लगने के बाद एक दूसरे उद्घोषणा से इसे समाप्त भी किया जा सकता है।

अनुच्छेद 352 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि राष्ट्रपति, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा तब तक नहीं करेगा जब तक संघ के मंत्रिमंडल का (अर्थात्‌ उस परिषद्‌ का जो अनुच्छेद 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल स्तर के अन्य मंत्रियों से मिलकर बनती है) यह विनिश्वय कि ऐसी उद्धोषणा की जाए, उसे लिखित रूप में संसूचित नहीं किया जाता है।

कहने का अर्थ है कि खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या इस तरह की उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली कोई दूसरा उद्घोषणा, राष्ट्रपति तब तक नहीं करेगा जब तक संघ के मंत्रिमंडल यह निर्णय नहीं कर लेते हैं कि इस तरह की कोई उद्घोषणा की जाये। और अगर ऐसा होता है तो सिर्फ मौखिक रूप से काम नहीं चलेगा बल्कि लिखित रूप में यह राष्ट्रपति को देना होगा।

यहाँ यह याद रखिए कि मंत्रि-परिषद्‌ का निर्माण अनुच्छेद 75 के अधीन होता है जिसका प्रमुख प्रधान मंत्री होता है और इन्ही में से सबसे महत्वपूर्ण मंत्रियों से मिलकर मंत्रिमंडल (Cabinet) बनता है। ज्यादा जानकारी के लिए अनुच्छेद 75 पढ़ें;

अनुच्छेद 352 के खंड (4) के तहत संसदीय अनुमोदन (approval) और समायावधि के बारे में बात की गई है।

इसमें कहा गया है कि इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद्‌ के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और अगर यह पहले लगाए गए उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है तो फिर ऐसी स्थिति में एक मास की समाप्ति से पहले संसद्‌ के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं किया जाता है तो फिर आपातकाल प्रवर्तन में नहीं रहेगी।

और अगर यह अनुमोदित हो जाता है तो फिर ये जारी रह सकती है। लेकिन इसमें कुछ अन्य स्थितियाँ भी आ सकती है जिसे कि इसी खंड के परंतुक के तहत स्पष्ट किया गया है।

यानि कि यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन (या एक मास के भीतर) हो गया है और यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।

कुल मिलाकर समझने की बात ये है कि अनुच्छेद 352 (4) के अनुसार, आपातकाल की उद्घोषणा जारी होने के एक माह के भीतर संसद के दोनों सदनों से इसका अनुमोदित (Approved) होना जरूरी है।

पहले ये समय दो माह हुआ करता था, पर इसे भी 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा 1 माह किया गया। क्यों कर दिया गया? ताकि अगर वो अनुचित तरीके से लगाया गया हो तो 1 महीने के अंदर ही खत्म हो जाये।

पर मान लीजिये अगर आपातकाल उस समय लागू हुआ हो जब लोकसभा का विघटन (Dissolution) हो गया हो। या फिर लोकसभा तो हो लेकिन 1 महीने के अंदर अनुमोदन से पहले ही विघटित हो गया हो।

ऐसी स्थिति में पुनः जैसे ही लोकसभा का गठन होगा। उसकी पहली बैठक से तीस दिनों के भीतर आपातकाल की उद्घोषणा को पास करवाना जरूरी है। नहीं तो वो खत्म हो जाएगा।

हाँ, लेकिन इसमें एक शर्त ये है कि उससे पहले राज्य सभा से वो पास रहना चाहिए। क्योंकि राज्यसभा भंग नहीं होता है।

अगर इस तरह से ये पारित हो गया तो कितने समय तक आपातकाल लग सकता है, इसकी चर्चा अगले खंड में की गई है।

अनुच्छेद 352 के खंड (5) खंड (4) का ही विस्तार है। जिसके तहत उससे आगे की बात की गई है।

इस खंड में कहा गया है कि यदि खंड (4) में बताए गए तरीके से यदि वह उद्घोषणा दोनों सदनों से वो पास हो जाये तो आपातकाल छह माह तक जारी रह सकता है। इस छह माह की गिनती तब से शुरू होगी जब दूसरा संकल्प पारित होगा।

यानि कि अगर राज्यसभा से संकल्प पारित हो चुका है लेकिन लोकसभा भंग होने की स्थिति में वो लोकसभा से पारित नहीं हो सका है तो फिर ऐसी स्थिति में जब लोकसभा फिर से गठित होकर बैठेगी और उस उद्घोषणा को पारित करेगी, तब से छह माह की गिनती शुरू होगी।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि हर छह महीने के बाद इसे अनंतकाल तक बढ़ाया जा सकता है लेकिन हर छह माह में फिर से उसी प्रक्रिया से गुजरना होगा। यानी कि दोनों सदनों से मंजूरी लेना।

हालांकि पहले बस एक बार संसद से अनुमोदन (Approval) लेना पड़ता था फिर जितना चाहे उसे उतनी बार बढ़ाया जा सकता था। पर इन्दिरा गांधी ने जिस प्रकार इस कानून का दुरुपयोग किया, कोई और न करे, इसी को ध्यान में रखकर 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा इसे संशोधित करके आवधिक विस्तार (Periodic expansion) वाला व्यवस्था लाया गया। यानी कि हर छह महीने में फिर से संसद से अनुमोदन लेना पड़ेगा।

लेकिन अगर कभी ऐसी स्थिति बन जाये कि आपातकाल को छह माह तक और बढ़ाना हो पर उस समय लोकसभा भंग हो। तो ऐसी स्थिति में भी राज्यसभा से पहले अनुमोदन लेकर रखना पड़ता है।

और जैसे ही पुनः लोकसभा का गठन होता है उसकी पहली बैठक से 30 दिनों से भीतर उसको लोकसभा से अनुमोदन करवाना पड़ता है।

अनुच्छेद 352 के खंड (6) के तहत कहा गया है कि खंड (4) और खंड (5) के प्रयोजनों के लिए, संकल्प संसद्‌ के किसी सदन द्वारा उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ही पारित किया जा सकेगा।

कहने का अर्थ है कि आपातकाल की उद्घोषणा अथवा इसके जारी रहने का प्रत्येक प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (Special majority)  से पारित होना चाहिए। अगर विशेष बहुमत नहीं जानते हैं तो उसे यहाँ क्लिक करके पढ़ लें।

अनुच्छेद 352 के खंड (7) के तहत कहा गया है कि पूर्वगामी खंडों में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सभा खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्धोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन (Disapproval) या उसे प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाला संकल्प पारित कर देती है तो राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा को वापस ले लेगा।

कहने का अर्थ है कि पूर्वगामी खंडों में किसी भी बात के बावजूद, राष्ट्रपति खंड (1) के तहत जारी उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा को रद्द कर देगा यदि लोक सभा इस तरह के प्रावधान को अस्वीकार करने वाला एक प्रस्ताव पारित करती है।

जहां खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्घोषणा का, (जैसी भी स्थिति हो), अस्वीकृति करने वाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूचना लोक सभा सदस्य संख्या के कम से कम दसवें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके लिखित रूप में, यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपति को दी गई है वहां ऐसे संकल्प पर विचार करने के प्रयोजन के लिए लोक सभा की विशेष बैठक, अध्यक्ष या राष्ट्रपति को ऐसी सूचना प्राप्त होने की तारीख से चौदह दिन के भीतर की जाएगी।

इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत, युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के अथवा युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सन्निकट होने के विभिन्‍न आधारों पर विभिन्‍न उद्घोषणाएं करने की शक्ति होगी चाहे राष्ट्रपति ने खंड (1) के अधीन पहले ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी उद्घोषणा प्रवर्तन में है या नहीं।

इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति में युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह या ऐसा होने की संभावना जैसे विभिन्न आधारों पर अलग-अलग उद्घोषणाएँ जारी करने की शक्ति शामिल होगी। भले ही राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के तहत पहले से ही कोई उद्घोषणा जारी क्यों न की गई हो और ऐसी उद्घोषणा प्रवर्तन में हो।

आसान भाषा में कहें तो विभिन्न आधारों पर विभिन्न उद्घोषणाएँ की जा सकती है। और एक उद्घोषणा के रहते हुए भी दूसरे आधार पर दूसरी उद्घोषणा हो सकती है।

यह आवश्यक नहीं है कि उद्घोषणा का विस्तार सम्पूर्ण भारत पर हो। उद्घोषणा को किसी विशिष्ट क्षेत्र तक भी सीमित किया जा सकता है।

अनुच्छेद 352 भारत में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने की राष्ट्रपति की शक्ति से संबंधित है। यह संविधान के सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद प्रावधानों में से एक है, जो संकट के समय राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • घोषणा के लिए आधार: राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं यदि वे संतुष्ट हों कि एक गंभीर आपातकाल मौजूद है जिससे भारत या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण, या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।
  • दिलचस्प बात यह है कि यदि आसन्न खतरा हो तो युद्ध या आक्रामकता की वास्तविक घटना से पहले भी आपातकाल घोषित किया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा तभी कर सकता है जब वह पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है कि देश सचमुच खतरे में है। हालांकि उसकी यह संतुष्टि व्यक्तिगत संतुष्टि नहीं होती है बल्कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिमंडल की संतुष्टि होती है, और वो भी तभी मान्य हो सकता है जब वह लिखित में दिया जाए।

घोषणा का प्रभाव: एक बार घोषित होने के बाद, आपातकाल राष्ट्रपति को निम्नलिखित का अधिकार देता है:

  • मौलिक अधिकारों को निलंबित करें: अनुच्छेद 20 और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) को छोड़कर, कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।
  • कानून के बल पर अध्यादेश जारी करें: राष्ट्रपति संसद को दरकिनार कर सकते हैं और विधायी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए सीधे कानून बना सकते हैं।
  • अतिरिक्त शक्तियां ग्रहण करें: राष्ट्रपति राज्य सरकारों का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकता है और संघीय ढांचे में संशोधन कर सकता है।

सुरक्षा उपाय:

  • संसदीय अनुमोदन: आपातकाल की घोषणा को एक महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। अगर संसद ने उसे अस्वीकृत कर दी तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा वापस लेनी होगी।
  • हालांकि उद्घोषणा वापस लेने के लिए संकल्प पारित करना होता है और यह संकल्प विशेष बैठक के दौरान पारित हो सकता है।
  • और यह विशेष बैठक तभी बैठेगा जब 1/10 सदस्य लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति को ऐसा करने के लिए कहें। अगर ऐसा होता है तो फिर 14 दिनों के अंदर विशेष बैठक बुलाई जाएगी।
  • न्यायिक समीक्षा: सर्वोच्च न्यायालय घोषणा की समीक्षा कर सकता है और असंवैधानिक पाए जाने पर इसे रद्द कर सकता है।
  • अवधि: आपातकाल की प्रारंभिक अवधि छह महीने है, लेकिन इसे संसद की मंजूरी से बढ़ाया जा सकता है।

विवाद:

  • शक्ति का दुरुपयोग: अनुच्छेद 352 द्वारा दी गई व्यापक शक्तियों का अतीत में दुरुपयोग किया गया है, जिससे लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों को कमजोर करने की इसकी क्षमता के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • पारदर्शिता का अभाव: आपातकाल घोषित करने के मानदंड अस्पष्ट हैं, जिससे राष्ट्रपति द्वारा मनमाने निर्णयों की गुंजाइश बनी रहती है।
  • शक्ति का असंतुलन: आपातकाल कार्यपालिका को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है, जो संभावित रूप से राजनीतिक व्यवस्था के भीतर नियंत्रण और संतुलन को बाधित करता है।

महत्त्व:

विवादों के बावजूद, अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाली असाधारण स्थितियों से निपटने के लिए सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बना हुआ है। यह संकटों पर तेजी से और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिए आवश्यक लचीलापन प्रदान करता है।

अनुच्छेद 352 को समझने के लिए इसके संभावित लाभों और खतरों दोनों पर विचार करना आवश्यक है। इस आपातकालीन शक्ति का जिम्मेदार और संतुलित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए इसके पिछले उपयोग और चल रही बहसों का आलोचनात्मक विश्लेषण महत्वपूर्ण है।

तो यही है अनुच्छेद 352, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आपातकाल 1975 : एक कड़वा सच
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(a) The power of the Union Government to levy surcharges on the taxes levied by the State Governments
(b) The power of the State Governments to levy taxes on goods and services
(c) The proclamation of National Emergency
(d) The dissolution of Lok Sabha

(a) War
(b) Armed Rebellion
(c) external aggression
(d) All of the above

(a) Suspension of some fundamental rights
(b) Increased powers for the Union Government to make laws and take executive actions
(c) Both (a) and (b)
(d) Neither (a) nor (b)

(a) Parliament must approve the proclamation within one months
(b) Both Houses of Parliament must meet during the Emergency
(c) Every six months, Parliament must reconsider the continuation of the Emergency
(d) The Supreme Court can review the validity of the proclamation and any laws made under the Emergency

(a) Potential misuse of emergency powers by the government
(b) Erosion of fundamental rights and democratic principles
(c) Both (a) and (b)
(d) Neither (a) nor (b)

Answer 1: (c) Explanation: Article 352 empowers the President to declare a National Emergency in India if he/she is satisfied that a grave threat to the nation’s security, unity, or integrity exists.

Answer 2: (d) Explanation: Article 352 allows the President to declare a National Emergency due to war, external aggression, armed rebellion, or any other internal disturbance which threatens the security of India.

Answer 3: (c) Explanation: Upon declaration of a National Emergency, some fundamental rights like freedom of speech and assembly (Article 19) and right to life and personal liberty (Article 21) can be suspended partially. Additionally, the Union Government gains wide-ranging powers to enact laws and implement measures deemed necessary for national security.

Answer 4: (d) Explanation: While Parliament plays a crucial role in oversight and approval of the National Emergency, the Supreme Court retains the power of judicial review. It can assess the legality of the proclamation and any laws passed under the Emergency based on constitutional principles.

Answer 5: (c) Explanation: The proclamation of a National Emergency under Article 352 has often been controversial, raising concerns about its potential for abuse by the government and the temporary abrogation of fundamental rights. Balancing national security with democratic principles and individual liberties remains a key challenge in implementing this sensitive provision.

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अनुच्छेद 353 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 351 – भारतीय संविधान
Next and Previous to Article 352
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।