यह लेख अनुच्छेद 37 (Article 37) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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Article 37

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📜 अनुच्छेद 37 (Article 37)

37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना — इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किन्तु फिर भी इनमें अधिकथित तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
अनुच्छेद 37
37. Application of the principles contained in this Part.—The provisions contained in this Part shall not be enforceable by any court, but the principles therein laid down are nevertheless fundamental in the governance of the country and it shall be the duty of the State to apply these principles in making laws.
Article 37

🔍 Article 37 Explanation in Hindi

राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy/DPSP) का शाब्दिक अर्थ है – राज्य के नीति को निर्देशित करने वाले तत्व।

जब संविधान बनाया गया था उस समय लोगों को लोकतांत्रिक राज्य में शासन करने का और देशहीत में कानून बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। खासकर के राज्यों के लिए जो कि एक लंबे औपनिवेशिक काल के बाद शासन संभालने वाले थे।

जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में राजनेताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना कोई अनिवार्य नहीं है। ऐसे में मार्गदर्शक आवश्यक हो जाता है ताकि नीति निर्माताओं को हमेशा ज्ञात होता रहे कि किस तरफ जाना है।

◾ ऐसा नहीं था कि DPSP कोई नया विचार था बल्कि आयरलैंड में तो ये काम भी कर रहा था और हमने इसे वहीं से लिया।

◾ राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) नागरिकों के कल्याण और विकास के लिए कानूनों और नीतियों को बनाने के लिए दिशानिर्देश हैं। ये भारतीय संविधान के भाग IV में शामिल हैं।

◾ ये सिद्धांत गैर-प्रवर्तनीय (non enforceable) हैं, जिसका अर्थ है कि ये अदालतों द्वारा लागू नहीं हैं, हालांकि इसे देश के शासन में मौलिक माना जाता है और कानून और नीतियां बनाते समय सरकार द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।

कुल मिलाकर नीति-निदेशक तत्व लोकतांत्रिक और संवैधानिक विकास के वे तत्व है जिसका उद्देश्य लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।

संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 37 को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-34 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-35 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 37 – इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना

अब जैसा कि हम जानते है DPSP, मौलिक अधिकार की तरह बाध्यकारी नहीं है। ये तो बस एक सिफ़ारिश है न की कोई ऐसा कानून जो बाध्यकारी हो।

तो अनुच्छेद 37 में यही कहा गया है कि भले ही ये कोई बाध्यकारी कानून नहीं है पर राज्यों का ये कर्तव्य होगा कि इसे लागू करें। 

याद रखने योग्य कुछ बातें;

◾ राज्य के नीति निदेशक तत्वों को न्यायालय द्वारा प्रवृत्त नहीं कराया जा सकता है और इसीलिए कोई व्यक्ति निदेशक तत्वों के हनन को लेकर न्यायालय नहीं जा सकता है।

हालांकि निदेशक तत्वों का क्रियान्वयन विधान बनाकर किया जा सकता है। और आगे आने वाले अनुच्छेदों में हम समझेंगे भी की किस कदर निदेशक तत्वों को प्रभाव में लाने के लिए कई अधिनियम बनाए गए हैं।

◾ निदेशक तत्वों से संसद को न तो कोई विधायी शक्ति मिलती है और न ही उनकी कोई विधायी शक्ति समाप्त होती है। हमें याद होनी चाहिए कि विधान बनाने की क्षमता का निर्णय संविधान की सातवीं अनुसूची में अंतर्विष्ट विधायी सूची के आधार पर किया जाता है।

◾ चूंकि निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है और ये मूल अधिकार भी नहीं है इसीलिए किसी विधि को इस आधार पर शून्य घोषित नहीं किया जा सकता है कि वह विधि निदेशक तत्वों का उल्लंघन करती है।

आजादी के बाद से ही इस संबंध में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को देखें तो हमें पता चलता है कि न्यायालय ने हमेशा मूल अधिकारों को प्राथमिकता दी है, निदेशक तत्वों को नहीं।

| ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ेंमूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव

◾ न्यायालय सरकार को किसी निदेशक तत्व को क्रियान्वित करने के लिए विवश नहीं कर सकती है। जैसे कि अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता बनाने की बात कही गई है। तो ऐसे में न्यायालय सरकार को आदेश नहीं दे सकती है कि इस व्यवस्था पर कानून बनाओं। हालांकि न्यायालय सलाह जरूर दे सकता है और देता भी है।

तो कुल मिलाकर बात यही है कि निदेशक तत्व गैर-प्रवर्तनीय होते हुए भी देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाते समय इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है।

◾ यहाँ यह याद रखिए कि निदेशक तत्वों और मूल अधिकारों के बीच कोई विरोध नहीं है। ये एक-दूसरे के अनुपूरक है और इन दोनों का उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।

हालांकि आजादी के बाद मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बीच टकराव देखने को अवश्य मिलता है। लेकिन न्यायालय द्वारा दिए गए कई निर्णयों के द्वारा अब बहुत ही स्पष्टता आई है। आगे आने वाले अनुच्छेदों में आप इसे समझ पाएंगे;

तो यही है अनुच्छेद 37 (Article 37), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
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अनुच्छेद 37 (Article 37) क्या है?

इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना — इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किन्तु फिर भी इनमें अधिकथित तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

| Related Article

अनुच्छेद 36
अनुच्छेद 38
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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।