इस लेख में हम ज़मानती एवं गैर-ज़मानती अपराध (Bailable and non-bailable offences) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे।
बुनियादी नियमों को तोड़ने को अपराध कहा है। चूंकि नियमों की प्रकृति अलग-अलग होती है इसीलिए अपराध भी अलग-अलग तरह के होते हैं।
आज हम ज़मानती एवं गैर-ज़मानती अपराध को समझेंगे, तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, आज हम संज्ञेय एवं गैर-संज्ञेय अपराध को समझेंगे, तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, [Like – Facebook Page]

अपराध (Crime)
ऐसा कोई भी कृत्य जिसके लिए किसी कानून में दंड का प्रावधान है अपराध (crime) कहलाता है। संसद या विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून तो है ही साथ ही न्यायालय के आदेश, कोई निजी संस्थागत कानून, रीति-रिवाज या परंपरा आधारित कानून आदि ऐसे ढेरों कानून हो सकते है जिसमें किसी कृत्य के लिए दंड का प्रावधान हो।
ऐसे में कितना भी बचने की कोशिश करें अपराध हो ही जाता है। इसीलिए अपराध के बारे में कुछ मूलभूत बातें तो हमें पता होनी ही चाहिए। तो अपराध क्या होता है ये तो हम समझ ही गए है अब आइये आगे की बात करते हैं।
कौन सा कृत्य अपराध होगा और उसकी सजा क्या होगी ये भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी कि IPC 1860 में लिखा हुआ है।
और अपराध को सत्यापित करने की प्रक्रिया क्या होगी, सजा देने की प्रक्रिया क्या होगी, उसको क्रियान्वित करने की प्रक्रिया क्या होगी इस सब की चर्चा आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) यानी कि CrPC 1973 में की गई है।
अपराध का वर्गीकरण (Classification of crime)
अपराध की प्रकृति और उसकी गंभीरता के आधार पर इसे मुख्य रूप से तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है –
1. ↗️समाधेय एवं गैर-समाधेय अपराध (Compoundable and Non-Compoundable Offenses)
2. ↗️संज्ञेय अपराध एवं गैर-संज्ञेय अपराध (Cognizable crime and non-cognizable offenses)
3. ज़मानती एवं गैर-ज़मानती अपराध (Bailable and non-bailable offences)।
इसमें से दो पर पहले से ही लेख उपलब्ध है इस लेख में हम ज़मानती एवं गैर-ज़मानती अपराध (Bailable and non-bailable offences) को समझेंगे।
जमानत क्या होता है? (What is bail?)
किसी आरोपी को उस पर जांच या मुकदमा चलते रहने के दौरान छोड़ा जाना जमानत (Bail) है। आरोपी व्यक्ति को कैद से छुड़ाने के लिये न्यायालय के समक्ष कुछ सम्पत्ति जमा की जाती है, इसे ज़मानती राशि कहा जाता है।
ऐसा इसीलिए किया जाता है ताकि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के लिये न्यायालय अवश्य आये, अगर वो सुनवाई के लिए नहीं जाएगा तो उसकी वो जमा राशि जब्त कर ली जाएगी (इसे ही जमानत जब्त होना कहते हैं) और उसे फिर से पकड़ने के वारंट जारी किए जा सकते हैं।
दूसरी बात की ज़मानत का मतलब पूरी स्वतंत्रता नहीं होती बल्कि कई प्रतिबंध के साथ रिहा किया जाता है। जैसे कि, देश छोड़ने एवं बिना आज्ञा यात्रा करना बाधित किया जा सकता है, जब भी आवश्यक हो न्यायालय अथवा पुलिस के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा आदि।
ज़मानती अपराध क्या है? (what is Bailable offences?)
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CrPC के सेक्शन 2(a) के अनुसार ज़मानती अपराध वे अपराध अपराध है जिसे CrPC के प्रथम अनुसूची में ज़मानती घोषित किया गया है और इसके साथ ही किसी अन्य कानून में जिसमें किसी अपराध को ज़मानती घोषित किया गया है।
CrPC के प्रथम अनुसूची को दो भागों में बांटा गया है जिसमें से पहले भाग में उन सभी ज़मानती अपराधों को रखा गया है जिसकी चर्चा IPC के तहत की गई है और दूसरे भाग में ऐसे सभी ज़मानती अपराधों की चर्चा है जो किसी अधिनियम या कानून द्वारा घोषित किया गए है।
इस अनुसूची के आखिरी प्रविष्टि में लिखा गया है कि ऐसे सभी अपराध ज़मानती किस्म के होंगे जिसमें सजा के तौर पर तीन साल या उससे कम का कारावास मिला हो या फिर जुर्माना भी लगा हो। उदाहरण के लिए आप नीचे के कुछ मामलों को देख सकते हैं।
- गैर-कानूनी भीड़ (IPC Section 141)
- एक घातक हथियार से लैस दंगाई (IPC Section 148)
- लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने के इरादे से कानून की अवज्ञा करना (IPC Section 166)
- न्यायिक कार्यवाही में झूठे सबूत देना या गढ़ना (IPC Section 193)
- धार्मिक पूजा में व्यस्त सभा को परेशान किया जाना (IPC Section 296)
- सार्वजनिक उपद्रव (IPC Section 290) इत्यादि।
ज़मानत से संबन्धित अधिकार
सीआरपीसी की धारा 50 के अनुसार जब भी किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जाता है, तो यह पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि वह उस अपराध की पूरी जानकारी बताए, जिसके लिए उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है।
इसके अलावा, अगर वह अपराध जिसके लिए उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जमानती है, तो यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि वह जमानत पर रिहा होने का हकदार है।
सीआरपीसी की धारा 436 के अनुसार, जब भी जमानती अपराध के आरोपी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जाता है और उसे जमानत देने के लिए तैयार किया जाता है, तो ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा। जमानत राशि कितनी होगी ये तय करने का विवेक न्यायालय के पास या सक्षम अधिकारी के पास होगा।
गैर-ज़मानती अपराध क्या हैं? (what is Non-bailable offences?)
सीआरपीसी की धारा 2 (ए) के अनुसार, गैर-जमानती अपराध में वे सभी अपराध शामिल हैं जो पहली अनुसूची में जमानती अपराध के रूप में शामिल नहीं हैं। यानी कि ज़मानती अपराध वाले अनुसूची में और किसी अधिनियम के अंतर्गत आने वाले ज़मानती अपराधों को छोड़कर और जितने भी अपराध होंगे वे गैर-ज़मानती होंगे।
ये वैसे अपराध होते हैं जिसके लिए अपराधी अपने अधिकार के रूप में ज़मानत नहीं मांग सकता है, ये अदालत के ऊपर निर्भर करता है कि वे उसको ज़मानत दे या न दे। आमतौर पर इसमें ज़मानत नहीं दिया जाता है।
ऐसे सभी अपराध जिसके लिए सजा के तौर पर मौत की सजा, आजीवन कारावास या सात साल से अधिक की कारावास दी गई हो, अदालत द्वारा ज़मानत नहीं दी जाती।
गैर-ज़मानती अपराध के कुछ उदाहरण
- हत्या (IPC Section 302)
- दहेज मृत्यु (IPC Section .304-B)
- हत्या का प्रयास (IPC Section 307)
- अपहरण (IPC Section 363)
- बलात्कार (IPC Section 376) आदि।
गैर-ज़मानती अपराध के अधिकार
मौत या आजीवन कारावास की सजा के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जा सकता है यदि वह व्यक्ति सोलह वर्ष से कम उम्र का हो।
यदि जांच के किसी भी चरण में यह अदालत को प्रतीत होता है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि व्यक्ति ने गैर-जमानती अपराध नहीं किया है, तो व्यक्ति को अदालत द्वारा विवेचना पर जमानत पर रिहा किया जा सकता है।
आदिवासी मामलों में, यदि गैर-जमानती अपराध के साथ आरोपी व्यक्ति की सुनवाई साठ दिनों की अवधि के भीतर संपन्न नहीं होती है, तो ऐसे व्यक्ति को दंडाधिकारी द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
जमानत देने की शर्त यह है कि व्यक्ति को पूरी अवधि के दौरान हिरासत में रहना होगा। यदि ऐसे व्यक्ति को जमानत नहीं दी जाती है, तो जमानत नहीं देने का कारण मजिस्ट्रेट को लिखित में देना पड़ेगा।
अग्रिम ज़मानत क्या है? (what is Anticipatory bail?)
अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) अदालत का वह निर्देश है जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को, उसके गिरफ्तार होने के पहले ही, जमानत दे दिया जाता है। यानी कि दूसरे शब्दों में कहें तो गिरफ्तार ही नहीं किया जाता है।
यदि किसी व्यक्ति को यह आशंका है कि उसे गैर-जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह सीआरपीसी की धारा 437 या धारा 438 के तहत जमानत के लिए उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
जमानत की मंजूरी कुछ शर्तों के अधीन होगी जिसे कि न्यायालय द्वारा तय किया जाएगा, आमतौर पर इसमें कुछ इस तरह की शर्तें शामिल होती है –
1. आरोपी व्यक्ति, जब भी आवश्यकता हो पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ के लिए खुद को उपलब्ध कराएं,
2. किसी भी व्यक्ति को कोई भी अभियोग, धमकी या वादा न करें ताकि उसे अदालत या किसी पुलिस अधिकारी को किसी भी सबूत का खुलासा करने से रोक सकें,
3. न्यायालय की पूर्वानुमति के बिना भारत नहीं छोड़ सकते।
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Bailable and non-bailable offences प्रैक्टिस क्विज
https://drive.google.com/file/d/1cdpIId3YU1nMYwWwBmM1vztBO-AjXiKa/view?usp=sharing
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