यह लेख Article 323B (अनुच्छेद 323ख) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 323B (Article 324ख) – Original

*भाग 14क [अधिकरण]
323B. अन्य विषयों के लिए अधिकरण— (1) समुचित विधान-मंडल, विधि द्वारा, ऐसे विवादों, परिवादों या अपराधों के अधिकरणों दवारा न्‍यायनिर्णयन या विचारण के लिए उपबंध कर सकेगा जो खंड (2) में विनिर्दिष्ट उन सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित हैं जिनके संबंध में ऐसे विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति है ।

(2) खंड (1) में निर्दिष्ट विषय निम्नलिखित हैं, अर्थात्‌ —

(क) किसी कर का उद्‌ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण और प्रवर्तन ;
(ख) विदेशी मुद्रा, सीमाशुल्क सीमांतों के आर-पार आयात और निर्यात ;
(ग) औद्योगिक और श्रम विवाद ;
(घ) अनुच्छेद 31क में यथापरिभाषित किसी संपदा या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन या ऐसे किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उपांतरण द्वारा या कृषि भूमि की अधिकतम सीमा द्वारा या किसी अन्य प्रकार से भूमि सुधार ;
(ङ) नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा ;
(च) संसद्‌ के प्रत्येक सदन या किसी राज्य विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचन, किन्तु अनुच्छेद 329 और अनुच्छेद 329क में निर्दिष्ट विषयों को छोड़कर ;

(छ) खाद्य पदार्थों का (जिनके अंतर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैं) और ऐसे अन्य माल का उत्पादन, उपापन, प्रदाय और वितरण, जिन्हें राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, इस अनुच्छेद के प्रयोजन के लिए आवश्यक माल घोषित करे और ऐसे माल की कीमत का नियंत्रण ;

1[(ज) किराया, उसका विनियमन और नियंत्रण तथा किराएदारी संबंधी विवादयक, जिनके अंतर्गत मकान मालिकों और किराएदारों के अधिकार, हक और हित हैं ;]

2[(झ)] उपखंड (क) से उपखंड 3[(ज)] में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराध और उन विषयों में से किसी की बाबत फीस ;

4[(ञ)] उपखंड (क) से उपखंड 5[(झ)] में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय।

(3) खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि

(क) अधिकरणों के उत्क्रम की स्थापना के लिए उपबंध कर सकेगी ;

(ख) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियां (जिनके अंतर्गत अवमान के लिए दंड देने की शक्ति है) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट कर सकेगी;

(ग) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के लिए (जिसके अंतर्गत परिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध हैं) उपबंध कर सकेगी;

(घ) अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का उन सभी या किन्हीं विषयों के संबंध में अपवर्जन कर सकेगी जो उक्त अधिकरणों की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं;

(ङ) प्रत्येक ऐसे अधिकरण को उन मामलों के अंतरण के लिए उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अधिकरण की स्थापना से ठीक पहले किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसे वाद हेतुक जिन पर ऐसे वाद या कार्यवाहियां आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना के पश्चात्‌ उत्पन्न होते तो ऐसे अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते ;

(च) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट कर सकेगी जो समुचित विधान-मंडल ऐसे अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण के लिए और उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए और उनके आदेशो के प्रवर्तन के लिए आवश्यक समझे।

(4) इस अनुच्छेद के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।

स्पष्टीकरण – इस अनुच्छेद में, किसी विषय के संबंध में, “समुचित विधान-मंडल” से, यथास्थिति, संसद्‌ या किसी राज्य का विधान-मंडल अभिप्रेत हैं, जो भाग के उपबंधों के अनुसार ऐसे विषय के संबंध में विधि बनाने के लिए सक्षम है।
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1. संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) अंतःस्थापित।
2. संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (झ) को उपखंड (ज) के रूप में पुन:अक्षराँकित किया गया।
3. संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(छ)” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4. संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (ज) और उपखंड (झ) को उपखंड (झ) और और उपखंड (ञ) के रुप में पुन:अक्षरांकित किया गया।
5. संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(ज)” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
अनुच्छेद 323B हिन्दी संस्करण

*Part XIVA [TRIBUNALS]
323B. Tribunals for other matters— (1) The appropriate Legislature may, by law, provide for the adjudication or trial by tribunals of any disputes, complaints, or offences with respect to all or any of the matters specified in
clause (2) with respect to which such Legislature has power to make laws.

(2) The matters referred to in clause (1) are the following, namely:—
(a) levy, assessment, collection and enforcement of any tax;
(b) foreign exchange, import and export across customs frontiers;
(c) industrial and labour disputes;
(d) land reforms by way of acquisition by the State of any estate as defined in article 31A or of any rights therein or the extinguishment or modification of any such rights or by way of ceiling on agricultural land or in any other way;
(e) ceiling on urban property;
(f) elections to either House of Parliament or the House or either House of the Legislature of a State, but excluding the matters referred to in article 329 and article 329A;
(g) production, procurement, supply and distribution of food-stuffs (including edible oilseeds and oils) and such other goods as the President may, by public notification, declare to be essential goods for the purpose of this article and control of prices of such goods;
1[(h) rent, its regulation and control and tenancy issues including the right, title and interest of landlords and tenants;]
2[(i)] offences against laws with respect to any of the matters specified in sub-clauses (a) to 3[(h)] and fees in respect of any of those matters;
4[(j)] any matter incidental to any of the matters specified in sub-clauses (a) to 5[(i)].

(3) A law made under clause (1) may—
(a) provide for the establishment of a hierarchy of tribunals;
(b) specify the jurisdiction, powers (including the power to punish for contempt) and authority which may be exercised by each of the said tribunals;
(c) provide for the procedure (including provisions as to limitation and rules of evidence) to be followed by the said tribunals;
(d) exclude the jurisdiction of all courts, except the jurisdiction of the Supreme Court under article 136, with respect to all or any of the matters falling within the jurisdiction of the said tribunals;
(e) provide for the transfer to each such tribunal of any cases pending before any court or any other authority immediately before the establishment of such tribunal as would have been within the jurisdiction of such tribunal if the causes of action on which such suits or proceedings are based had arisen after such establishment;
(f) contain such supplemental, incidental and consequential provisions (including provisions as to fees) as the appropriate Legislature may deem necessary for the effective functioning of, and for the speedy disposal of cases by, and the enforcement of the orders of, such tribunals.

(4) The provisions of this article shall have effect notwithstanding anything in any other provision of this Constitution or in any other law for the time being in force.

Explanation.—In this article, “appropriate Legislature”, in relation to any matter, means Parliament or, as the case may be, a State Legislature competent to make laws with respect to such matter in accordance with the provisions of Part XI.]
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1. Ins. by the Constitution (Seventy-fifth Amendment) Act, 1993, s. 2 (w.e.f. 15-5-1994).
2, Sub-clause (h) re-lettered as sub-clause (i) by s. 2, ibid. (w.e.f. 15-5-1994).
3. Subs. by s. 2, ibid., for cl. “(g)” (w.e.f. 15-5-1994).
4. Sub-clause (i) re-lettered as sub-clause (j) by the Constitution (Seventy-fifth Amendment) Act, 1993, s. 2 (w.e.f. 15-5-1994).
5. Subs. by s. 2, ibid, for “(h)” (w.e.f. 15-5-1994).
Article 323B English Version

🔍 Article 323B Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 14A, अनुच्छेद 323A से लेकर अनुच्छेद 323B तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग अधिकरण (Tribunals) के बारे में है।

याद रखें; ट्रिब्यूनल एक विशेष अदालत या अर्ध-न्यायिक निकाय है जो विशिष्ट प्रकार के विवादों का निपटारा करने के लिए स्थापित किया जाता है। इसे न्यायाधिकरण भी कहा जाता है।

न्यायाधिकरण अक्सर नियमित अदालतों की तुलना में विवादों को सुलझाने के लिए अधिक विशिष्ट और कुशल मंच प्रदान करने के लिए बनाए जाते हैं।

भारत में, कई अलग-अलग प्रकार के न्यायाधिकरण हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अधिकार क्षेत्र है। भारत में कुछ सबसे सामान्य प्रकार के न्यायाधिकरणों में शामिल हैं:

प्रशासनिक न्यायाधिकरण: ये न्यायाधिकरण व्यक्तियों और सरकार के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) एक प्रशासनिक न्यायाधिकरण है जो उन सरकारी कर्मचारियों की अपील सुनता है जिन्हें अनुशासित किया गया है या बर्खास्त कर दिया गया है।

श्रम न्यायाधिकरण: ये न्यायाधिकरण नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगिक विवाद न्यायाधिकरण (आईडीटी) एक श्रम न्यायाधिकरण है जो नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच वेतन, काम करने की स्थिति और अन्य मुद्दों पर विवादों की सुनवाई करता है।

उपभोक्ता संरक्षण न्यायाधिकरण: ये न्यायाधिकरण उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) एक उपभोक्ता संरक्षण न्यायाधिकरण है जो व्यवसायों के खिलाफ उपभोक्ताओं की शिकायतें सुनता है।

पर्यावरण न्यायाधिकरण: ये न्यायाधिकरण पर्यावरण से संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिए स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) एक पर्यावरण न्यायाधिकरण है जो प्रदूषण, वनों की कटाई और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों की सुनवाई करता है।

यह भाग हमेशा से संविधान का हिस्सा नहीं था बल्कि इसे संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान का हिस्सा बनाया गया। और इसके तहत मात्र दो ही अनुच्छेद आते हैं;

इस लेख में हम अनुच्छेद 323B को समझने वाले हैं;

Article 323A of the Constitution | अनुच्छेद 323क व्याख्या
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| अनुच्छेद 323B – अन्य विषयों के लिए अधिकरण (Tribunals for other matters)

अनुच्छेद 323B के तहत अन्य विषयों के लिए अधिकरण (Tribunals for other matters) के बारे में बात की गई है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 4 खंड आते हैं, आइये इसे समझें;

अनुच्छेद 323B के खंड (1) के तहत कहा गया है कि समुचित विधान-मंडल, विधि दवारा, ऐसे विवादों, परिवादों या अपराधों के अधिकरणों द्वारा न्‍यायनिर्णयन या विचारण के लिए उपबंध कर सकेगा जो खंड (2) में विनिर्दिष्ट उन सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित हैं जिनके संबंध में ऐसे विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति है।

उपयुक्त विधानमंडल (appropriate legislature) खंड (2) में सूचीबद्ध सभी या किसी भी विषय से जुड़े किसी भी विवाद, शिकायत या अपराध के न्यायाधिकरण द्वारा निर्णय या परीक्षण की अनुमति देने वाला कानून पारित कर सकता है;

“उपयुक्त विधानमंडल (appropriate legislature)” से, यथास्थिति, संसद्‌ या किसी राज्य का विधान-मंडल अभिप्रेत हैं, जो भाग के उपबंधों के अनुसार ऐसे विषय के संबंध में विधि बनाने के लिए सक्षम है।

अनुच्छेद 323B के खंड (2) के तहत कहा गया है कि खंड (1) में निर्दिष्ट विषय निम्नलिखित हैं, अर्थात्‌ –

(क) किसी भी कर का उद्ग्रहण, मूल्यांकन, संग्रहण और प्रवर्तन;
(ख) विदेशी मुद्रा, सीमाशुल्क सीमांतों के आर-पार आयात और निर्यात ;
(ग) औद्योगिक और श्रम विवाद ;
(घ) अनुच्छेद 31क में यथापरिभाषित किसी संपदा या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन या ऐसे किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उपांतरण द्वारा या कृषि भूमि की अधिकतम सीमा द्वारा या किसी अन्य प्रकार से भूमि सुधार ;
(ङ) नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा ;
(च) संसद्‌ के प्रत्येक सदन या किसी राज्य विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचन, किन्तु अनुच्छेद 329 और अनुच्छेद 329क में निर्दिष्ट विषयों को छोड़कर ;

(छ) खाद्य पदार्थों (खाद्य तिलहन और तेल सहित) और ऐसे अन्य सामानों का उत्पादन, खरीद, आपूर्ति और वितरण, जिन्हें राष्ट्रपति, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा, इस लेख के प्रयोजन के लिए आवश्यक सामान घोषित कर सकते हैं और ऐसे सामानों की कीमतों पर नियंत्रण कर सकते हैं;;

(ज) किराया, उसका विनियमन और नियंत्रण तथा किराएदारी संबंधी विवादयक, जिनके अंतर्गत मकान मालिकों और किराएदारों के अधिकार, हक और हित हैं ;

(झ)] उपखंड (क) से उपखंड (ज)] में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराध और उन विषयों में से किसी की बाबत फीस ;

(ञ) उपखंड (क) से उपखंड (झ) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय।

अनुच्छेद 323B के खंड (3) के तहत कहा गया है कि खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि

(क) अधिकरणों के उत्क्रम (heirarchy) की स्थापना के लिए उपबंध कर सकेगी ;

(ख) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियां (जिनके अंतर्गत अवमान के लिए दंड देने की शक्ति है) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट कर सकेगी;

(ग) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के लिए (जिसके अंतर्गत परिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध हैं) उपबंध कर सकेगी;

(घ) अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का उन सभी या किन्हीं विषयों के संबंध में अपवर्जन कर सकेगी जो उक्त अधिकरणों की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं;

(ङ) प्रत्येक ऐसे अधिकरण को उन मामलों के अंतरण के लिए उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अधिकरण की स्थापना से ठीक पहले किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसे वाद हेतुक जिन पर ऐसे वाद या कार्यवाहियां आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना के पश्चात्‌ उत्पन्न होते तो ऐसे अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते ;

(च) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट कर सकेगी जो समुचित विधान-मंडल ऐसे अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण के लिए और उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए और उनके आदेशो के प्रवर्तन के लिए आवश्यक समझे।

अनुच्छेद 323B के खंड (4) के तहत कहा गया है कि इस अनुच्छेद के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।

अनुच्छेद 323कअनुच्छेद 323ख
अनुच्छेद 323क लोकसेवाओं से संबन्धित विषय तक ही सीमित है।अनुच्छेद 323ख उन अधिकरणों से संबंधित है जो खंड (2) में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है जैसे कराधान, विदेशी मुद्रा, श्रमिक विवाद, निर्वाचन, आवश्यक वस्तु और ऐसे विषयों से संबंधित अपराध तथा आनुषंगिक विषय।
संघ के लिए केवल एक ही ऐसा अधिकरण स्थापित किया जा सकता है और प्रत्येक राज्य के लिए या दो या अधिक राज्य के लिए एक अधिकरण हो सकता है (ये सोपान क्रम में नहीं होंगे)।समुचित विधान मण्डल खंड (2) में विनिर्दिष्ट विषय में से प्रत्येक के संबंध में सोपान क्रम में अधिकरणों की स्थापना कर सकता है।
ऐसी विधि बनाने की शक्ति अनन्य रूप से संसद को है।विधायी शक्ति का विभाजन संघ और राज्य के विधान मंडलों के बीच विभिन्न विषयों पर उनकी विधायी क्षमता के अनुसार किया गया है।
Article 323ख Info Snippet

तो यही है अनुच्छेद 323B , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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Question 1: Article 323B of the Indian Constitution deals with the establishment of tribunals for the adjudication of disputes relating to:

(a) Taxation, foreign exchange, import and export, industrial and labour matters
(b) Land reforms, ceiling on urban property, elections to Parliament and state legislatures, rent and tenancy rights
(c) Food stuff, rent and tenancy rights
(d) All of the above

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Answer: (d) Explanation: Article 323B of the Indian Constitution empowers both the Parliament and the State Legislatures to establish tribunals for the adjudication of disputes relating to a wide range of matters, including taxation, foreign exchange, import and export, industrial and labour matters, land reforms, ceiling on urban property, elections to Parliament and state legislatures, rent and tenancy rights, food stuff, and offences against laws with respect to any of these matters.

Question 2: The establishment of tribunals under Article 323B is intended to:

(a) Provide an alternative to the traditional court system for the resolution of disputes
(b) Reduce the burden on the regular courts
(c) Provide specialized expertise in the adjudication of certain types of disputes
(d) All of the above

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Answer: (d) Explanation: The establishment of tribunals under Article 323B serves several purposes, including providing an alternative to the traditional court system for the resolution of disputes, reducing the burden on the regular courts, and providing specialized expertise in the adjudication of certain types of disputes.

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