इस लेख में हम भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) को सरल और सहज भाषा में समझेंगे, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
भारत के महान्यायवादी
हमने देखा था की संघ के स्तर पर मुख्यतः 5 कार्यपालिका होते हैं। राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रिपरिषद और भारत के महान्यायवादी। अब तक हमने 4 को पढ़ लिया है, उस शृंखला का ये अंतिम लेख है।
अगर आप पहले के लेखों को पढ़ना चाहते हैं तो नीचे सभी का लिंक क्रम से दिया हुआ है उसे जरूर विजिट करें।
Attorney General of India
🔰महान्यायवादी दरअसल देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। संविधान में अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी के पद की व्यवस्था की गई है।
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महान्यायवादी की नियुक्त एवं कार्यकाल
Appointment and tenure of the Attorney General
महान्यायवादी (Attorney General of India) की नियुक्त राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। उसमें उन योग्यताओं का होना आवश्यक होता है जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए होता है।
दूसरे शब्दों में, महान्यायवादी बनने के लिए आवश्यक है कि (1) वह भारत का नागरिक हो, (2) उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने का पाँच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो या (3) राष्ट्रपति के नज़र वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।
◼ संविधान में महान्यायवादी के कार्यकाल को लेकर कोई निश्चित व्यवस्था नहीं किया गया है। इसके साथ ही संविधान में उसको हटाने को लेकर भी कोई मूल व्यवस्था नहीं दी गई है। वह अपने पद पर राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत तक बने रह सकता है। इसका तात्पर्य है कि उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है। या फिर वो खुद भी चाहे तो राष्ट्रपति को कभी भी अपना त्यागपत्र सौंपकर पदमुक्त हो सकता है।
वैसे परंपरा ये है कि जब सरकार त्यागपत्र दे दे या फिर वो गिर जाये तो उसे त्यागपत्र देना होता है क्योंकि उसकी नियुक्ति सरकार की सिफ़ारिश से ही होती है। फिर जब नया सरकार बनेगा तब वो जो सिफ़ारिश करेगा वो भारत का महान्यायवादी बनेगा।
◼ संविधान में महान्यायवादी के पारिश्रमिक के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया है, उसे राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक मिलता है।
महान्यायवादी की कार्य एवं शक्तियाँ
भारत सरकार के मुख्य कानून अधिकारी के रूप में महान्यायवादी के निम्नलिखित कर्तव्य हैं:-
1. भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे जो राष्ट्रपति द्वारा सौपे गए हो
2. संविधान या किसी अन्य विधि द्वारा प्रदान किए गए कृत्यों का निर्वहन करना।
राष्ट्रपति भी महान्यायवादी को कार्य सौंपता है जैसे कि –
1. भारत सरकार से संबन्धित मामलों को लेकर उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार की ओर से पेश होना।
2. संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत, राष्ट्रपति के द्वारा उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
3. सरकार से संबन्धित किसी मामले में उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार।
◼ भारत के किसी भी अदालत में महान्यायवादी को सुनवाई का अधिकार है। इसके अतिरिक्त संसद के दोनों सदनों मे बोलने या कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है। हालांकि वो वोटिंग प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकता है। एक संसद सदस्य की तरह महान्यायवादी को भी सभी भत्ते एवं विशेषाधिकार मिलते है।
महान्यायवादी की सीमाएं
Limitations of Attorney General of India
महान्यायवादी की निम्नलिखित सीमाएं भी है ताकि वो क्या कर सकता है और क्या नहीं उसके बीच स्पष्ट अंतर रहे।
1. वह भारत सरकार के खिलाफ कोई सलाह या विश्लेषण नहीं कर सकता
2. जिस मामले में उसे भारत की ओर से पेश होना है, उस पर वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है
3. बिना भारत सरकार की अनुमति के वह किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता है
4. बिना भारत सरकार की अनुमति के वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद ग्रहण नहीं कर सकता है।
🔰महान्यायवादी से जुड़े अन्य तथ्य
महान्यायवादी के अतिरिक्त भी भारत सरकार के अन्य कानूनी अहिकारी होते हैं। वे हैं – भारत के महाधिवक्ता एवं अपर महाधिवक्ता।
ये लोग महान्यायवादी को उसकी ज़िम्मेदारी पूरी करने में सहायता करते हैं। यहाँ एक बात ध्यान में रखिए कि महान्यायवादी का पद एक संवैधानिक पद है जिसका कि अनुच्छेद 76 में उल्लेख किया गया है।
वहीं महाधिवक्ता एवं अपर-महाधिवक्ता की बात करें तो संविधान में उसकी चर्चा नहीं की गयी है।
◼ महान्यायवादी केंद्रीय कैबिनेट का सदस्य नहीं होता है। सरकारी स्तर पर विधिक मामलों को देखने के लिय केन्द्रीय कैबिनेट में एक अलग से विधि मंत्री होता है।
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