यह लेख अनुच्छेद 129 (Article 129) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 129


📜 अनुच्छेद 129 (Article 129) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
129. उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना — उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होगी।
अनुच्छेद 129

THE UNION JUDICIARY
129. Supreme Court to be a court of record —The Supreme Court shall be a court of record and shall have all the powers of such a court including the power to punish for contempt of itself.
Article 129

🔍 Article 129 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 129 (Article 129) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-128- भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 129 – उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना

जैसा कि हमने ऊपर भी समझा संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होने (Supreme Court to be a court of record) के बारे में है।

Article 129 कहता है कि उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होगी।

यहाँ पर दो बातें हैं;

पहली बात – उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा।

दूसरी बात – उच्चतम न्यायालय को अपने अवमान (Contempt) के लिए दंड देने की शक्ति होगी।

आइये दोनों को थोड़े विस्तार से समझते हैं;

उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना (Supreme Court as a court of record):

कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड का मतलब है कि कार्यवाही को रिकॉर्ड (अभिलेख) के लिए भविष्य के संदर्भों के लिए रखना। इसका इस्तेमाल विश्वसनीय और अकाट्य साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।

कहने का अर्थ है कि उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही एव उसके फैसले सार्वकालिक अभिलेख व साक्ष्य के रूप में रखे जाते हैं। खास बात ये है कि अन्य अदालत में चल रहे मामले के दौरान इन अभिलेखों पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। बल्कि उसका इस्तेमाल मार्गदर्शन के लिए या विधिक संदर्भों में किया जाता है।

भारतीय न्यायपालिका में रिकॉर्ड की एक अदालत एक अदालत को संदर्भित करती है जिसके पास अपनी कार्यवाही और निर्णयों का स्थायी रिकॉर्ड रखने का अधिकार होता है। यह निहित शक्तियों और विशेषाधिकारों के साथ एक उच्च न्यायालय है, और इसके रिकॉर्ड कानूनी साक्ष्य के रूप में काम करते हैं और इन्हें महान साक्ष्य मूल्य माना जाता है।

कुल मिलाकर, भारत में, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को अभिलेख न्यायालयों के रूप में मान्यता प्राप्त है। रिकॉर्ड के न्यायालयों के रूप में, उनके पास कुछ विशिष्ट विशेषताएं और शक्तियां हैं:

  1. कार्यवाही की रिकॉर्डिंग (Recording of Proceedings): अभिलेख न्यायालय अपनी कार्यवाही का एक व्यापक और सटीक रिकॉर्ड बनाए रखते हैं, जिसमें मौखिक तर्क, प्रस्तुतियाँ और निर्णय शामिल होते हैं। इन अभिलेखों को सावधानीपूर्वक बनाए रखा जाता है और भविष्य के संदर्भ के लिए संरक्षित किया जाता है।
  2. बाध्यकारी मिसालें (Binding Precedents): अभिलेख न्यायालयों में बाध्यकारी मिसालें बनाने की शक्ति है। कहने का अर्थ है कि इन अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय और निर्णय कानून की आधिकारिक व्याख्या के रूप में काम करते हैं और कानूनी सिद्धांतों को स्थापित करते हैं जिसे कि निचली अदालतों को समान मामलों में पालन करना होता है।
  3. अभिलेख न्यायालयों के रिकॉर्ड और निर्णय अन्य सबूतों के बिना अन्य अदालतों में सबूत के रूप में स्वीकार्य हैं। इसके अलावा, उनके निर्णयों को आधिकारिक माना जाता है और देश के कानूनी परिदृश्य पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्षतः एक अदालत को अभिलेख न्यायालय के रूप में पदनामित करना न्यायिक प्रणाली के भीतर इसकी उच्च स्थिति को दर्शाता है, इसके अधिकार, विश्वसनीयता और ऐतिहासिक महत्व को उजागर करता है।

उच्चतम न्यायालय को अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति (Contempt of Court):

न्यायालय की अवमानना ​​न्यायालय की अपनी महिमा और सम्मान की रक्षा करने की शक्ति है। हालांकि ‘अदालत की अवमानना (contempt of court)’ को संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 129 ने सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना ​​को दंडित करने की शक्ति प्रदान की।

दूसरे शब्दों में, उच्चतम न्यायालय के पास न्यायालय के अवमानना पर दंडित करने का अधिकार है। न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दीवानी और आपराधिक अवमानना दोनों को परिभाषित किया गया है।

नागरिक अवमानना ​​(Civil Contempt) का अर्थ है अदालत के किसी भी फैसले की जानबूझ कर अवज्ञा करना।

आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) का आशय ऐसे कृत्यों से हैं जो कि अदालत के अधिकार को बदनाम करने या कम करने का काम करता है। या फिर न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाता है,या न्याय प्रशासन को किसी भी तरीके से रोकता है।

  • अदालत की अवमानना ​​को आमतौर पर अदालत द्वारा ही निपटाया जाता है, जिसके पास अवमाननापूर्ण व्यवहार को दूर करने के लिए उचित कार्रवाई करने की शक्ति होती है।
  • अदालत अपने स्वयं के प्रस्ताव पर या किसी शिकायत के जवाब में अवमानना ​​कार्यवाही शुरू कर सकती है।
  • अवमानना ​​कार्यवाही की प्रक्रियाएं क्षेत्राधिकार के आधार पर भिन्न हो सकती हैं, लेकिन उनमें आम तौर पर कथित अवमाननाकर्ता को अपने कार्यों की व्याख्या या बचाव करने का अवसर देना शामिल होता है।
  • अदालत की अवमानना ​​की सजा अलग-अलग हो सकती है और अदालत के विवेक के भीतर है। इसमें जुर्माना, कारावास, चेतावनी, या इन उपायों का संयोजन शामिल हो सकता है। सजा की गंभीरता अवमाननापूर्ण व्यवहार की प्रकृति और गंभीरता पर निर्भर करती है। सजा के तौर पर 6 महीने के लिए सामान्य जेल या 2000 रुपए तक अर्थदण्ड या दोनों दिया जा सकता है।
  • अदालत की अवमानना ​​न्यायपालिका की स्वतंत्रता, अधिकार और कामकाज की रक्षा के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करती है। न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करने वाले कार्यों के लिए व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराकर, अदालत की अवमानना ​​कानूनी प्रणाली में जनता के विश्वास को बनाए रखने में मदद करती है और न्याय के प्रभावी प्रशासन को सुनिश्चित करती है।
  • 1991 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि दंड देने की यह शक्ति न केवल उच्चतम न्यायालय में निहित है बल्कि ऐसा ही अधिकार उच्च न्यायालयों अधीनस्थ न्यायालयों पंचाटों को भी प्राप्त है।

यहाँ यह याद रखिए कि किसी मामले का निर्दोष प्रकाशन और उसका वितरण न्यायिक कार्यवाही रिपोर्ट की निष्पक्ष, उचित आलोचना और प्रशासनिक दिशा से इस पर टिप्पणी को न्यायालय की अवमानना में नहीं माना जाता।

अभिलेख का न्यायालय (Court of Record) का न्यायालय की अवमानना से क्या संबंध है?

जैसा कि हमने ऊपर भी समझा कि ‘कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड’ का अर्थ है एक ऐसा न्यायालय जिसके कार्य और कार्यवाहियां चिरस्थायी स्मृति के लिए पंजीकृत हैं या वह स्मृति या सबूत है जिसका कोई अंत नहीं है। इसका इस्तेमाल विश्वसनीय और अकाट्य साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।

इन अभिलेखों की सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है और इन अभिलेखों को उच्च प्राधिकारी के रूप में भी माना जाता है। और इन अभिलेखों की सत्यता के विरुद्ध कही गई किसी भी बात में न्यायालय की अवमानना शामिल है। इसीलिए अदालतों के फैसले के खिलाफ कुछ भी गलत टिप्पणी करने से न्यायालय की अवमानना होती है।

इस टॉपिक के बारे में जानने को और भी बहुत कुछ है, तो अगर इससे भी ज्यादा विस्तार में न्यायालय की अवमानना को समझना है तो दिए गए लेख को पढ़ें;

न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)
Must Read Article

तो यही है अनुच्छेद 129 (Article 129), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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FAQ. अनुच्छेद 129 (Article 129) क्या है?

Article 129 कहता है कि उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होगी।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।