यह लेख अनुच्छेद 147 (Article 147) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 147

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📜 अनुच्छेद 147 (Article 147) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
147. निर्वचन — इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद्‌ आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान प्रश्न के प्रति निर्देश हैं।
अनुच्छेद 147

THE UNION JUDICIARY
147. Interpretation.—In this Chapter and in Chapter V of Part VI, references to any substantial question of law as to the interpretation of this Constitution shall be construed as including references to any substantial question of law as to the interpretation of the Government of India Act, 1935 (including any enactment amending or supplementing that Act), or of any Order in Council or order made thereunder, or of the Indian Independence Act, 1947, or of any order made thereunder.
Article 147

🔍 Article 147 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 147 (Article 147) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

अनुच्छेद 145 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 147 – निर्वचन

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 147 निर्वचन (Interpretation) के बारे में है।

अनुच्छेद 147 के तहत कहा गया है कि इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद्‌ आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान प्रश्न के प्रति निर्देश हैं।

आगे बढ़ने से पहले इस अनुच्छेद के बारे में कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं का ध्यान रखें: –

(पहली बात), यह अनुच्छेद इस अध्याय यानि कि संविधान के भाग 5 का अध्याय 4 और संविधान के भाग 6 का अध्याय 5 से संबंधित है। यानि कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय से संबंधित है।

(दूसरी बात), इसमें संविधान के निर्वचन यानि कि व्याख्या (Interpretation) की बात की गई है। जो कि विधि के किसी सारवान प्रश्न ( (substantial question of law) से संबंधित है।

(तीसरी बात), विधि के किसी सारवान प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि यह निम्नलिखित के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान प्रश्न के प्रति निर्देश है;

  • भारत शासन अधिनियम 1935 (इसके अंतर्गत इसमें हुए संशोधन भी शामिल है),
  • सपरिषद आदेश (प्रिवी काउंसिल का आदेश),
  • भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

भारत शासन अधिनियम (government of india Act) 1935 क्या है?

अगस्त 1935 को, भारत सरकार ने संसद के ब्रिटिश अधिनियम के तहत सबसे लंबा अधिनियम यानी भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित किया। इस अधिनियम में बर्मा सरकार अधिनियम 1935 भी शामिल था।

इस अधिनियम के अनुसार, यदि 50% भारतीय राज्य इसमें शामिल होने का निर्णय लेते हैं, तो भारत एक संघ बन जाएगा। तब उनके पास केंद्रीय विधानमंडल के दोनों सदनों में बड़ी संख्या में प्रतिनिधि होंगे। हालांकि, संघ के संबंध में प्रावधानों को लागू नहीं किया गया था। इस अधिनियम में भारत को स्वतंत्रता तो दूर, डोमिनियन का दर्जा प्रदान करने का भी कोई संदर्भ नहीं था।

भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने अंततः भारतीय संविधान के निर्माण के लिए आधार तैयार किया और स्वतंत्रता-पूर्व भारत के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, शासन के प्रमुख पहलुओं पर ब्रिटिश नियंत्रण बनाए रखने और सांप्रदायिक विभाजन को मजबूत करने के लिए इसकी आलोचना की जाती है।

प्रिवी काउंसिल (Privy Council) क्या है?

प्रिवी काउंसिल न्यायिक निकाय के अलावा और कुछ नहीं थी, जिसने भारत सहित ब्रिटिश उपनिवेशों की विभिन्न अदालतों से अपील सुनी।

दूसरे शब्दों में, प्रिवी काउंसिल, न्यायिक समिति को संदर्भित करती है, जो 1950 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना तक भारत सहित ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सर्वोच्च अपीलीय अदालत थी।

  1. प्रिवी काउंसिल ने औपनिवेशिक काल के दौरान भारत से उत्पन्न होने वाले मामलों के लिए अपील की अंतिम अदालत के रूप में कार्य किया। इसमें ब्रिटिश न्यायाधीशों का एक पैनल शामिल था, जिसमें हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य शामिल थे, जिन्हें ब्रिटिश सम्राट द्वारा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था।
  2. प्रिवी काउंसिल के पास भारत के उच्च न्यायालयों से अपील सुनने की शक्ति थी, जो उस समय भारतीय प्रांतों में सर्वोच्च न्यायालय थे। उच्च न्यायालयों के निर्णयों से असंतुष्ट व्यक्ति प्रिवी कौंसिल में अपील करने की अनुमति प्राप्त कर सकते थे।
  3. 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, भारतीय मामलों पर प्रिवी काउंसिल का अधिकार क्षेत्र 1950 तक जारी रहा, जब भारत का संविधान लागू हुआ। सर्वोच्च न्यायिक निकाय के रूप में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना ने भारतीय मामलों में प्रिवी काउंसिल के अपीलीय क्षेत्राधिकार को समाप्त कर दिया।
  4. इसके संबंध में सबसे जो सबसे विवादित चीज़ है वो ये है कि कहा जाता है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के बाद से, यह भारतीय कानूनी प्रणाली के भीतर उत्पन्न होने वाले मामलों के लिए अपील की अंतिम अदालत है। यानि कि सुप्रीम कोर्ट से ऊपर भी एक कोर्ट है वो है ब्रिटेन का प्रिवी काउंसिल।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (Indian Independence Act) 1947 क्या है?

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में पारित किया गया था। इस अधिनियम ने दो नए देश का निर्माण किया; भारत और पाकिस्तान। इस अधिनियम ने ‘भारत के सम्राट‘ के उपयोग को ब्रिटिश क्राउन के लिए एक उपाधि के रूप में निरस्त कर दिया और रियासतों के साथ सभी मौजूदा संधियों को समाप्त कर दिया।

  1. अधिनियम ने सत्ता हस्तांतरण की तिथि 15 अगस्त, 1947 निर्धारित की। इस दिन, भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश सम्राट की सर्वोच्चता समाप्त हो गई, और भारत और पाकिस्तान स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में उभरे।
  2. भारत और पाकिस्तान दोनों को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के भीतर प्रभुत्व का दर्जा दिया गया था, जिसका अर्थ था कि उन्होंने ब्रिटिश सम्राट को राज्य के प्रतीकात्मक प्रमुख के रूप में स्वीकार किया था।
  3. अधिनियम ने भारत और पाकिस्तान के प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की। इसने द्वैध शासन की अवधारणा को समाप्त कर दिया और सभी विधायी और कार्यकारी शक्तियों को संबंधित प्रांतीय सरकारों को हस्तांतरित कर दिया।

इतना समझने के बाद आइये अब अनुच्छेद 147 को समझते हैं;

जैसा कि हम जानते हैं – भारत का सर्वोच्च न्यायालय कानून के किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न (substantial question of law) की व्याख्या के मामले में सर्वोच्च है, जिसमें कि भारतीय संविधान की व्याख्या भी शामिल है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 147 कानून की व्याख्या की इसी शक्ति के बारे में बात करता है और यह विशेष रूप से यह स्पष्ट करता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कानून की ऐसी व्याख्या में भारत सरकार अधिनियम 1935 की व्याख्या शामिल होगी, प्रिवी काउंसिल के आदेश शामिल होंगी और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की व्याख्या शामिल होंगी।

दूसरे शब्दों में इसे इस तरह से कहा जाता है कि जब भी सुप्रीम कोर्ट विधि के सारवान प्रश्न के अंतर्गत संविधान की व्याख्या करेगा तो वह भारत सरकार अधिनियम 1935, प्रिवी काउंसिल के आदेश और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को भी ध्यान में रखेगा।

कहने का अर्थ है कि इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम 1935 के या प्रिवी काउंसिल के आदेश के या भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के, व्याख्या के बारे में विधि के किसी सारवान प्रश्न के प्रति निर्देश हैं।

यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के अनुच्छेद 395 द्वारा भारत सरकार अधिनियम 1935 और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम1947 को निरस्त कर दिया गया है। लेकिन यह अनुच्छेद प्रिवी काउंसिल क्षेत्राधिकार अधिनियम 1949 के उन्मूलन को निरस्त नहीं करता है। और यहीं से यह अनुच्छेद विवादित बन जाता है।

जैसा कि हम जानते हैं, 26 जनवरी, 1950 से हमारा संविधान प्रभावी हुआ, और इसी दिन से हम भारत गणराज्य बने। लेकिन यहां सवाल यह है कि प्रिवी काउंसिल क्षेत्राधिकार अधिनियम 1949 का उन्मूलन भारतीय संविधान द्वारा निरस्त क्यों नहीं किया गया।

और यदि उक्त कानून को निरस्त नहीं किया गया तो क्या इसका मतलब ये नहीं समझा जाना चाहिए कि प्रिवी काउंसिल में महामहिम (His Majesty) अभी भी भारत पर शासन कर रहे हैं।

इस प्रश्न का उत्तर इस रूप में दिया जाता है कि 1949 के उक्त अधिनियम ने भारत पर महामहिम के अधिकार क्षेत्र को समाप्त कर दिया और अगर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 395 द्वारा 1949 के उक्त अधिनियम को समाप्त किया जाता तो संप्रभु भारत पर काउंसिल का अधिकार क्षेत्र फिर से बहाल हो जाएगा।

दूसरा सवाल इस पर इस आशय से उठाया जाता है कि जो कानून भारत ने बनाया ही नहीं उसे भारत कैसे समाप्त कर सकता है। कहने का अर्थ है कि भारत शासन अधिनियम 1935 और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ब्रिटिश क्राउन के मुहर से बनी थी ऐसे में इस कानून को समाप्त भी तो वही कर सकता है। लेकिन अनुच्छेद 395 के तहत उपरोक्त दोनों अधिनियमों को निरस्त कर दिया गया है।

Article 147 लाया ही क्यों गया था?

1949 में संविधान सभा की चर्चा के दौरान डॉ. टेक चंद ने एक संशोधन पेश किया। इसके साथ ही, उन्होंने संविधान की व्याख्या के संबंध में अनुच्छेद 122ए में एक नया मसौदा पेश किया। यही मसौदा संविधान में शामिल किए जाने के पश्चात अनुच्छेद 147 के नाम से जाना गया।

ड्राफ्ट अनुच्छेद पर 6 जून 1949 और 16 अक्टूबर 1949 को बहस हुई थी। यह निर्धारित किया गया था कि ‘इस संविधान की व्याख्या‘ से जुड़े कानून के सारवान प्रश्नों (substantial questions of law) के संदर्भ में भारत सरकार अधिनियम 1935 और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की व्याख्या से जुड़े मामलों को शामिल किया जाना चाहिए।

◾ इस ड्राफ्ट के प्रस्तावक सदस्य ने यह तर्क दिया कि यदि ‘इस संविधान की व्याख्या’ के अर्थ को विस्तारित नहीं किया गया, तो लंबित मामले जिनमें 1935 और 1947 के अधिनियमों की व्याख्या शामिल थी, अब अपील पर नहीं सुनी जा सकती है।

साथ ही यह भी कहा गया कि मौजूदा कानून के तहत संविधान के लागू होने के बाद प्रिवी काउंसिल में सुनवाई के मामले स्वचालित रूप से सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित हो जाएगा। हालांकि, इसी तरह के मुद्दों से जुड़े उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को केवल संघीय न्यायालय द्वारा अपील पर ही सुना जा सकता है, जो संविधान के लागू होने के बाद अस्तित्व में नहीं रहेगा।

◾ एक सदस्य ने तर्क दिया कि 1935 और 1947 के अधिनियम संविधान के लागू होने की तारीख पर समाप्त हो जाएंगे, और अदालतों को मृत संविधानों (1935 के संविधान) की व्याख्या करने के लिए मजबूर करना अनुचित होगा।

इस पर मसौदा समिति के एक सदस्य ने जवाब दिया कि प्रस्तावित मसौदा अनुच्छेद नए संविधान की वैधता को प्रभावित नहीं करेगा। उन्होने इसके लिए मुग़ल कोर्ट का उदाहरण दिया कि मुगल अदालतों द्वारा किए गए कार्यों की वैधता समाप्त होने के वर्षों बाद भी उत्पन्न हुई, उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह के प्रावधान ने पुराने संविधानों के तहत उत्पन्न होने वाले विवादों में शामिल व्यक्तियों के हितों की रक्षा की है।

इस संशोधन को प्रारूप समिति के अध्यक्ष का समर्थन मिला। इस तरह से यह मसौदा अनुच्छेद 122A संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया और 6 जून 1949 को अपनाया गया।

⚫ ⚫ उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of SC)

तो यही है अनुच्छेद 147 (Article 147), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

Related MCQs

  1. The power of judicial review, which allows the Supreme Court to interpret the Constitution and strike down unconstitutional laws, is based on:
    a) Article 124
    b) Article 129
    c) Article 131
    d) Article 32

Explanation: The correct answer is d) Article 32. Article 32 of the Indian Constitution provides the right to constitutional remedies, including the power of the Supreme Court to issue writs for the enforcement of fundamental rights. This article empowers the Supreme Court to protect and enforce the fundamental rights of individuals by striking down laws that violate the Constitution.

  1. The concept of Basic Structure Doctrine, which limits the power of Parliament to amend the Constitution, was established by the Supreme Court in which landmark case?
    a) Keshavananda Bharati case
    b) Golaknath case
    c) Kesavananda Bharati case
    d) Minerva Mills case

Explanation: The correct answer is a) Keshavananda Bharati case. The concept of Basic Structure Doctrine was established by the Supreme Court in the landmark case of Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973). The court held that certain fundamental features or basic structure of the Constitution are beyond the amending power of the Parliament.

  1. The doctrine of ‘Prospective Overruling,’ which allows the Supreme Court to modify its own decision for future cases, was laid down by the court in which case?
    a) Maneka Gandhi case
    b) Golaknath case
    c) S.R. Bommai case
    d) I.R. Coelho case

Explanation: The correct answer is d) I.R. Coelho case. In the I.R. Coelho v. State of Tamil Nadu case (2007), the Supreme Court laid down the doctrine of ‘Prospective Overruling.’ This doctrine allows the court to modify its own decision prospectively and not retrospectively, ensuring that past decisions are not disturbed while setting new precedents.

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अनुच्छेद 148 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 146 – भारतीय संविधान
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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।
1. https://www.studocu.com/in/document/karnataka-state-law-university/constitutional-law-i/article-147/29990876
2. https://www.toppr.com/guides/legal-aptitude/jurisprudence/purpose-of-law-the-purpose-of-the-supreme-court-in-the-case-of-article-147/
3. https://www.constitutionofindia.net/articles/article-147-interpretation/