यह लेख अनुच्छेद 43 (Article 43) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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अनुच्छेद 43

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📜 अनुच्छेद 43 (Article 43)

43. कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि – राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।

1[43क. उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना – राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य रीति से कदम उठाएगा।]

2[43ख. सहकारी सोसाइटियों का संवर्धन – राज्य, सहकारी सोसाइटियों की स्वैच्छिक विरचना, उनके स्वशासी कार्यकरण, लोकतांत्रिक नियंत्रण और वृत्तिक प्रबंधन का संवर्धन करने का प्रयास करेगा।]
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1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
2. संविधान (सतानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2011 की धारा 3 द्वारा (15-2-2012 से) अंतःस्थापित।
—-अनुच्छेद 43—–
43. Living wage, etc., for workers.—The State shall endeavour to secure, by suitable legislation or economic organisation or in any other way, to all workers, agricultural, industrial or otherwise, work, a living wage,
conditions of work ensuring a decent standard of life and full enjoyment of leisure and social and cultural opportunities and, in particular, the State shall endeavour to promote cottage industries on an individual or co-operative basis in rural areas.

3[43A. Participation of workers in management of industries.—The State shall take steps, by suitable legislation or in any other way, to secure the participation of workers in the management of undertakings, establishments or other organisations engaged in any industry.]

1[43B. Promotion of co-operative societies.—The State shall endeavour to promote voluntary formation, autonomous functioning, democratic control and professional management of co-operative societies.]
—————-
1. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 9, (w.e.f. 3-1-1977).
2. Ins. by the Constitution (Ninety-seventh Amendment) Act, 2011, s. 3 (w.e.f. 15-2-2012).
Article 43

🔍 Article 43 Explanation in Hindi

राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy/DPSP) का शाब्दिक अर्थ है – राज्य के नीति को निर्देशित करने वाले तत्व।

जब संविधान बनाया गया था उस समय लोगों को लोकतांत्रिक राज्य में शासन करने का और देशहीत में कानून बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। खासकर के राज्यों के लिए जो कि एक लंबे औपनिवेशिक काल के बाद शासन संभालने वाले थे।

जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में राजनेताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना कोई अनिवार्य नहीं है। ऐसे में मार्गदर्शक आवश्यक हो जाता है ताकि नीति निर्माताओं को हमेशा ज्ञात होता रहे कि किस तरफ जाना है।

◾ ऐसा नहीं था कि DPSP कोई नया विचार था बल्कि आयरलैंड में तो ये काम भी कर रहा था और हमने इसे वहीं से लिया।

◾ राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) नागरिकों के कल्याण और विकास के लिए कानूनों और नीतियों को बनाने के लिए दिशानिर्देश हैं। ये भारतीय संविधान के भाग IV में शामिल हैं।

◾ ये सिद्धांत गैर-प्रवर्तनीय (non enforceable) हैं, जिसका अर्थ है कि ये अदालतों द्वारा लागू नहीं हैं, हालांकि इसे देश के शासन में मौलिक माना जाता है और कानून और नीतियां बनाते समय सरकार द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।

कुल मिलाकर नीति-निदेशक तत्व लोकतांत्रिक और संवैधानिक विकास के वे तत्व है जिसका उद्देश्य लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।

DPSP का वर्गीकरण — नीचे आप निदेशक तत्वों का वर्गीकरण देख सकते हैं। इससे आपको यह समझने में आसानी होगी कि जो अनुच्छेद आप पढ़ रहें है वे किसलिए DPSP में शामिल की गई है और किन उद्देश्यों को लक्षित करने के लिए की गई है।

सिद्धांत
(Principles)
संबंधित अनुच्छेद
(Related Articles)
समाजवादी
(Socialistic)
⚫ अनुच्छेद 38
⚫ अनुच्छेद 39
⚫ अनुच्छेद 39क
⚫ अनुच्छेद 41
⚫ अनुच्छेद 42
⚫ अनुच्छेद 43
⚫ अनुच्छेद 43 क
⚫ अनुच्छेद 47
गांधीवादी
(Gandhian)
⚫ अनुच्छेद 40
⚫ अनुच्छेद 43
⚫ अनुच्छेद 43ख
⚫ अनुच्छेद 46
⚫ अनुच्छेद 48
उदार बौद्धिक
(Liberal intellectual)
⚫ अनुच्छेद 44
⚫ अनुच्छेद 45
⚫ अनुच्छेद 48
⚫ अनुच्छेद 48A
⚫ अनुच्छेद 49
⚫ अनुच्छेद 50
⚫ अनुच्छेद 51
Article 43

इसके अलावा निदेशक तत्वों को निम्नलिखित समूहों में भी बांट कर देखा जा सकता है;

कल्याणकारी राज्य (Welfare State) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 38 (1 एवं 2), अनुच्छेद 39 (ख एवं ग), अनुच्छेद 39क, अनुच्छेद 41, अनुच्छेद 42, अनुच्छेद 43, अनुच्छेद 43क एवं अनुच्छेद 47 को रखा जाता है।

प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता (Equality of Dignity & Opportunity) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 40, 41, 44, 45, 46, 47 48 एवं 50 को रखा जाता है।

व्यक्ति के अधिकार (individual’s rights) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 39क, 41, 42, 43 45 एवं 47 को रखा जाता है।

संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 43 को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-34 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-35 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 43 – कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि

राज्य, सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएँ तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और खासकर के ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या फिर सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।

इस मामले में देखें तो कुटीर उद्योग (cottage industry) के क्षेत्र में काफी काम हुआ है उदाहरण के लिए, खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड, खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग, सिल्क बोर्ड, हैंडलूम बोर्ड आदि।

गांधीजी कुटीर उद्योग और आत्मनिर्भरता के इतने बड़े समर्थक थे कि उन्होने एक समय सबको चरखा चलाने एवं अपनी जरूरत का कपड़ा स्वयं बनाने को कहा था। वर्तमान में MSME मंत्रालय के तहत इसे बढ़ावा दिया जा रहा है।

भारत में एक कुटीर उद्योग छोटे पैमाने पर, विकेन्द्रीकृत विनिर्माण या हस्तकला उत्पादन को संदर्भित करता है। और यह आमतौर पर ग्रामीण या अर्ध-शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक तरीकों और सरल उपकरणों का उपयोग करके व्यक्तियों या परिवारों द्वारा किया जाता है।

ये उद्योग अक्सर स्थानीय बाजार के लिए सामान का उत्पादन करते हैं और इसमें कपड़ा, मिट्टी के बर्तन, हस्तशिल्प और अन्य सामान शामिल हो सकते हैं।

कुटीर उद्योग सदियों से भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं और ग्रामीण समुदायों के लिए रोजगार और आय प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।

अनुच्छेद 43 के तहत कुटीर उद्योग को वैयक्तिक या फिर सहकारी आधार पर बढ़ाने का विचार रखा गया है।

◾ 42वां संविधान संशोधन 1976 द्वारा अनुच्छेद 43 में संशोधन करके एक भाग अनुच्छेद 43क बनाया गया। इसी तरह से 2011 में 97वां संविधान संशोधन करके अनुच्छेद 43ख को जोड़ा गया। आइये इन दोनों संशोधनों को समझते हैं;

अनुच्छेद 43क – उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना

अनुच्छेद 43 क
Article 43

अनुच्छेद 43क के तहत राज्य, उपयुक्त विधान द्वारा उद्योगों में प्रबंध के कार्यों में कर्मकारों (workers) को भाग लेने के लिए कदम उठाएगा।

जैसा कि हम जानते है पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में किसी उद्योग या उद्यम का प्रबंध उस व्यक्ति के पास होता है जो पूंजी लगाता है। कर्मकारों को दिहाड़ी या सैलरी पर रखी जाती है।

जबकि समाजवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीपति के लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि उत्पादन के सभी साधन और उनका प्रबंधन राज्य के पास होता है।

◾ 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से प्रस्तावना में तीन शब्दों जो जोड़ा गया जिसमें से एक समाजवाद (Socialism) भी था। और इसी समाजवाद को सक्रिय करने के उद्देश्य से अनुच्छेद 43क डीपीएसपी में अंतःस्थापित (insert) किया गया।

अनुच्छेद 43क का मकसद ये है कि स्वामित्व चाहे प्राइवेट व्यक्ति का हो या राज्य का, किसी विशिष्ट उद्योग या उद्यम में लगे हुए कर्मकारों को विधानमंडल द्वारा उस उद्योग के प्रबंध में हिस्सा दिया जाएगा।

अगर ऐसा होता है तो इसका परिणाम ये होगा कि कर्मकार (worker) भाड़े के मजदूर नहीं रहेंगे। उनका उस उद्यम की सफलता में हित होगा और उन्हे लाभों का शेयर प्राप्त होगा।

उदरवादी या पूंजीवादी अर्थव्यवस्था अपनाने के बाद इस प्रावधान के उद्देश्य को किस तरह से पूरा किया जाएगा इस पर संदेह है।

अनुच्छेद 43ख – सहकारी समितियों का संवर्धन

अनुच्छेद 43ख
Article 43

इस प्रावधान को निदेशक तत्वों में  97वां संविधान संशोधन 2011 के माध्यम से जोड़ा गया था। इसके तहत कहा गया है कि राज्य, सहकारी समितियों (Co-operative societies) के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त संचालन, लोकतांत्रिक नियंत्रण तथा व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा देगा।

सहकारी समितियों के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है। आज देशभर में ढ़ेरों सहकारी समितियां (Co-operative societies) काम कर रही है जैसे कि अमूल, लिज्जत पापड़ आदि। आइये इसके बारे थोड़ा समझते हैं;

भारत में सहकारी समितियां

भारत में सहकारी समितियाँ ऐसे संगठन हैं जिनका स्वामित्व और नियंत्रण उनके सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो आमतौर पर समान हित वाले व्यक्ति या समूह होते हैं।

भारत में सहकारी समितियों की स्थापना उनके सदस्यों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। वे आम तौर पर कृषि, वित्तीय, या उपभोक्ता सेवाएं प्रदान करने के लिए गठित होते हैं और विभिन्न स्तरों पर काम कर सकते हैं, जैसे गांव, जिला, राज्य या राष्ट्रीय। वे “एक सदस्य एक वोट” के सिद्धांत का पालन करते हैं, भले ही उनके पास कितनी भी शेयर पूंजी हो।

भारत में सहकारी समितियाँ सहकारी समिति अधिनियम द्वारा शासित होती हैं और सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा नियंत्रित होती हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। सरकार द्वारा अनुमोदित लेखा परीक्षकों द्वारा सहकारी समितियों का वार्षिक लेखा परीक्षण किया जाता है।

सहकारी समितियों ने कृषि उत्पादों के ऋण, बैंकिंग, बीमा और विपणन जैसी सेवाएं प्रदान करके भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने ऋण और अन्य सेवाओं तक आसान पहुंच प्रदान करके समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान में भी मदद की है।

भारत में सहकारी समितियों के कई उदाहरण हैं, यहाँ कुछ हैं:

अमूल: गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (GCMMF), जिसे अमूल के नाम से जाना जाता है, एक सहकारी समिति है जिसे 1946 में गुजरात में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। यह दुग्ध सहकारी समितियों का एक संघ है और 3.6 मिलियन से अधिक दुग्ध उत्पादकों के सदस्यों के साथ दुनिया में सबसे बड़ा है।

NAFED: भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED) एक सहकारी समिति है जिसे 1958 में कृषि उपज के विपणन को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। यह भारत के सभी राज्यों में संचालित होता है और किसानों और उपभोक्ताओं के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।

ICDC: भारतीय सहकारी डेयरी संघ (ICDF) एक सहकारी समिति है जिसे 1965 में भारत में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। यह दुग्ध सहकारी समितियों का एक संघ है और अपने सदस्यों को ऋण, विपणन और तकनीकी सहायता जैसी सेवाएं प्रदान करता है।

PACS: प्राथमिक कृषि साख समितियाँ (PACS) सहकारी समितियाँ हैं जो किसानों को ऋण और अन्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए स्थापित की गई थीं। वे ग्राम स्तर पर काम करते हैं और आम तौर पर उनके सदस्यों, जो कि किसान होते हैं, के स्वामित्व और नियंत्रण में होते हैं।

उपभोक्ता सहकारी स्टोर: एक उपभोक्ता सहकारी स्टोर एक खुदरा स्टोर है जिसका स्वामित्व और नियंत्रण उसके सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो आम तौर पर उपभोक्ता होते हैं। ये स्टोर पारंपरिक खुदरा स्टोरों की तुलना में कम कीमत पर सामान और सेवाएं प्रदान करते हैं और भारत भर के कई शहरों और कस्बों में पाए जाते हैं।

ये सभी सहकारी समितियों के उदाहरण हैं जो उनके सदस्यों के स्वामित्व और नियंत्रण में हैं और उनके कल्याण के लिए काम करती हैं, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत और पूरी दुनिया में सहकारी समितियों के कई और प्रकार और उदाहरण हैं।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 43 (Article 43), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
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अनुच्छेद 43 (Article 43) क्या है?

राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

| Related Article

अनुच्छेद 42
अनुच्छेद 44
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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
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अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।