यह लेख Article 227 (अनुच्छेद 227) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 227 (Article 227) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
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227. सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति— 1[(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा।] (2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय— (क) ऐसे न्यायालयों से विवरणी मंगा सकेगा ; (ख) ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिए साधारण और प्ररूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा ; और (ग) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्ररूप विहित कर सकेगा। (3) उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणियां भी स्थिर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यावसाय करने वाले अटार्नियों, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होंगी: परंतु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई नियम, विहित किए गए कोई प्ररूप या स्थिर की गई कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिए राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी । (4) इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियां देने वाली नहीं समझी जाएगी। 2[(5) * * * ] ============== 1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) और तत्पश्चात् संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 3 द्वारा (20-6-1979 से) प्रतिस्थापित होकर उपरोक्त खंड (1) रूप में आया। 5. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 का धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंतःस्थापित किया गया और संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप किया गया। |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
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227. Power of superintendence over all courts by the High Court—1[(1) Every High Court shall have superintendence over all courts and tribunals throughout the territories in relation to which it exercises jurisdiction.] (2) Without prejudice to the generality of the foregoing provision, the High Court may— (a) call for returns from such courts; (b) make and issue general rules and prescribe forms for regulating the practice and proceedings of such courts; and; (c) prescribe forms in which books, entries and accounts shall be kept by the officers of any such courts. (3) The High Court may also settle tables of fees to be allowed to the sheriff and all clerks and officers of such courts and to attorneys, advocates and pleaders practising therein: Provided that any rules made, forms prescribed or tables settled under clause (2) or clause (3) shall not be inconsistent with the provision of any law for the time being in force, and shall require the previous approval of the Governor. (4) Nothing in this article shall be deemed to confer on a High Court powers of superintendence over any court or tribunal constituted by or under any law relating to the Armed Forces. 2(5)* * * * ======================= 1.. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 40, for cl. (1) (w.e.f. 1-2-1977) and further subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 31, for cl. (1) (w.e.f. 20-6-1979). 2. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 42 (w.e.f. 1-2-1977). |
🔍 Article 227 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 227 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 124 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 227 – सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति (Power of superintendence over all courts by the High Court)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 227 के तहत सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति का वर्णन है। अनुच्छेद 227 के तहत कुल 4 खंड है;
अनुच्छेद 227 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा।
जैसा कि हम जानते हैं कि उच्च न्यायालय किसी राज्य का सर्वोच्च न्यायालय होता है और उसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत कई न्यायालय आते हैं। अनुच्छेद के इस खंड में कहा गया है कि उच्च न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जितने भी न्यायालय (Courts) एवं अधिकरण (Tribunals) आते हैं सबका अधीक्षण (Supervision) करेगा।
इसका मतलब यह है कि उच्च न्यायालय के पास अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी अधीनस्थ न्यायालयों (subordinate courts) और न्यायाधिकरणों (tribunals) के कामकाज की निगरानी और हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 227 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय—
(क) ऐसे न्यायालयों से विवरणी मंगा सकेगा ;
(ख) ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिए साधारण और प्ररूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा ; और
(ग) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्ररूप विहित कर सकेगा।
उच्च न्यायालय को इस बात का अधिकार है कि वह अपने क्षेत्राधिकार के क्षेत्र के सभी न्यायालयों व सहायक न्यायालयों के सभी गतिविधियों पर नजर रखे। (सिवाय सैन्य न्यायालयों और अभिकरणों के)।
इसके तहत वह –
1. निचले अदालतों से मामले वहाँ से स्वयं के पास मँगवा सकता है।
2. सामान्य नियम तैयार और जारी कर सकता है, और उसने प्रयोग और कार्यवाही को नियमित करने के लिए प्रपत्र निर्धारित कर सकता है।
3. ऐसे न्यायालयों द्वारा रखे जाने वाले लेखा सूची आदि के लिए प्रपत्र निर्धारित कर सकता है।
अनुच्छेद 227 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणियां भी स्थिर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यावसाय करने वाले अटार्नियों, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होंगी:
इस खंड के तहत उच्च न्यायालय क्लर्क, अधिकारी एवं वकीलों के शुल्क आदि निश्चित करता है।
हालांकि खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई नियम, विहित किए गए कोई प्ररूप या स्थिर की गई कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिए राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी।
अनुच्छेद 227 के खंड (4) के तहत कहा गया है कि इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियां देने वाली नहीं समझी जाएगी।
उच्च न्यायालय को इस बात का अधिकार है कि वह अपने क्षेत्राधिकार के क्षेत्र के सभी न्यायालयों व सहायक न्यायालयों के सभी गतिविधियों पर नजर रखे लेकिन सैन्य न्यायालयों और अभिकरणों को छोड़कर।
Closing Remarks (Article 227)
अधीक्षण की शक्ति न्यायिक प्रणाली की एक अनिवार्य विशेषता है क्योंकि यह उच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करने की अनुमति देती है कि अधीनस्थ अदालतें और न्यायाधिकरण कानून के ढांचे के भीतर कार्य करें और स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करें। यह न्यायिक अनुशासन बनाए रखने और न्याय के उचित प्रशासन को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
कुल मिलाकर पर्यवेक्षण के मामले में उच्च न्यायालय की शक्तियाँ बहुत ही व्यापक है क्योंकि,
(1) यह सभी न्यायालयों एवं सहायकों पर विस्तारित होता है चाहे वे उच्च न्यायालय में अपील के क्षेत्राधिकार में हो या न हो,
(2) उसमें न केवल प्रशासनिक प्रयवेक्षण बल्कि न्यायिक पर्यवेक्षण भी शामिल है,
(3) उच्च न्यायालय स्वयं संज्ञान ले सकता है, किसी पक्ष द्वारा प्रार्थनापत्र आवश्यक नहीं है।
जबकि अनुच्छेद 227 उच्च न्यायालय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये शक्तियाँ असीमित नहीं हैं। उच्च न्यायालय से अपेक्षा की जाती है कि वह इन शक्तियों का विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग करेगा और अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि कानून या प्रक्रिया में कोई स्पष्ट त्रुटि न हो।
इसीलिए उच्च न्यायालय की ये शक्तियाँ असीमित नहीं होती है बल्कि सामान्यत: यह (1) क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण (2) नैसर्गिक न्याय का घोर उल्लंघन (3) विधि की त्रुटि (4) उच्चतर न्यायालयों कि विधि के प्रति असम्मान या (5) अनुचित निष्कर्ष और प्रकट अन्याय तक सीमित होती है।
तो यही है अनुच्छेद 227, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |