यह लेख Article 228(अनुच्छेद 228) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 228 (Article 228) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय]
228. कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण— यदि उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि उसके अधीनस्थ किसी न्यायालय में लंबित किसी मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान्‌ प्रश्न अंतर्वलित है जिसका अवधारण मामले के निपटारे के लिए आवश्यक है 1[तो वह 2**उस मामले को अपने पास मंगा लेगा और;]

(क) मामले को स्वयं निपटा सकेगा, या
(ख) उक्त विधि के प्रश्न का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे प्रश्न पर निर्णय की प्रतिलिपि सहित उस न्यायालय को, जिससे मामला इस प्रकार मंगा लिया गया है, लौटा सकेगा और उक्त न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे निर्णय के अनुरूप निपटाने के लिए आगे कार्यवाही करेगा। 
==============
1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से)  “तो वह उस मामले को अपने पास मंगा लेगा तथा –” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2. संविधान (तैतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छेद 131क के उपबंधों के अधीन रहते हुए” शब्दों, अंकों और अक्षर का लोप किया गया।
अनुच्छेद 228 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States]
228. Transfer of certain cases to High Court— If the High Court is satisfied that a case pending in a court subordinate to it involves a substantial question of law as to the interpretation of this Constitution the determination of which is necessary for the disposal of the case, 1[it shall withdraw the case and
2*** may—]
(a) either dispose of the case itself, or
(b) determine the said question of law and return the case to the court from which the case has been so withdrawn together with a copy of its judgment on such question, and the said court shall on receipt thereof proceed to dispose of the case in conformity with such judgment.
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1.. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 41, for “it shall withdraw the case and may—” (w.e.f. 1-2-1977).
2. The words, figures and letter, “subject to the provisions of article 131A,” omitted by the Constitution (Forty-third Amendment) Act, 1977, s. 9 (w.e.f. 13-4-1978).
Article 228 English Version

🔍 Article 228 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 228 को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद 132 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 228

| अनुच्छेद 228 – कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण (Transfer of certain cases to High Court)

न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।

संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 228 के तहत कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण (Transfer Of Certain Cases To High Court) का वर्णन है।

अनुच्छेद 228 के तहत कहा गया है कि यदि उच्च न्यायालय का यह लगता है कि उसके अधीनस्थ किसी न्यायालय में लंबित किसी मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान्‌ प्रश्न* (substantial question of law) अंतर्वलित है जिसका अवधारण मामले के निपटारे के लिए आवश्यक है तो वह उस मामले को अपने पास मंगा लेगा।

और मंगाने के बाद उच्च न्यायालय दो चीज़ें कर सकता है;

(1) मामले को स्वयं निपटा सकता है; या

(ख) उक्त विधि के प्रश्न का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे प्रश्न पर निर्णय सहित उस न्यायालय को, जिससे मामला इस प्रकार मंगा लिया गया है, लौटा सकता है;

ताकि उक्त न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे निर्णय के अनुरूप निपटाने के लिए आगे कार्यवाही करेगा। 

कुल मिलाकर कहने का अर्थ है कि अनुच्छेद 228 उच्च न्यायालयों को अधीनस्थ अदालतों से मामले वापस लेने का अधिकार देता है यदि उनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हो। इसका तात्पर्य यह है कि मामले के समाधान के लिए कानूनी मुद्दा महत्वपूर्ण और आवश्यक होना चाहिए।

एक बार जब उच्च न्यायालय किसी मामले को वापस ले लेता है, तो उसके पास या तो मामले को स्वयं निपटाने या कानून के सारवान (महत्वपूर्ण) प्रश्न का निर्धारण करने और मामले को अपने फैसले के साथ अधीनस्थ न्यायालय को वापस करने का अधिकार होता है। फिर अधीनस्थ न्यायालय को उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार मामले का निपटारा करना आवश्यक है।

विधि का कोई सारवान्‌ प्रश्न* (substantial question of law) क्या होता है?

विधि का कोई सारवान्‌ प्रश्न या कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न तब उठते हैं जब संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या और उन्हें लागू करने की आवश्यकता होती है। ये प्रश्न नियमित या प्रक्रियात्मक नहीं होती हैं, बल्कि मौलिक प्रकृति की होती हैं, जिनमें महत्वपूर्ण संवैधानिक सिद्धांत या अधिकार शामिल होता हैं।

न्यायपालिका, और विशेष रूप से भारत में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय, संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या और सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब किसी मामले में कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल होता है, तो इसका मतलब है कि कानूनी मुद्दे का समाधान संवैधानिक प्रावधानों को समझने और लागू करने के लिए महत्वपूर्ण है।

Boodireddy Chandraiah And Ors vs Arigela Laxmi Case 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब कानून का कोई प्रश्न काफी बहस योग्य हो, जहां उस पर मतभेद की गुंजाइश हो या जहां न्यायालय ने उस प्रश्न से कुछ हद तक निपटना और वैकल्पिक विचारों पर चर्चा करना आवश्यक समझा हो, तो यह प्रश्न कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न होगा।

कुल मिलाकर भारतीय राजनीति के संदर्भ में कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न एक कानूनी प्रश्न को संदर्भित करता है जो महत्वपूर्ण और जटिल है, और जिसका व्यक्तियों के अधिकारों या सरकार के कामकाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न विभिन्न प्रकार के मामलों में उठ सकते हैं, जिनमें संवैधानिक चुनौतियाँ, मौलिक अधिकारों से जुड़े मामले और प्रमुख नीतिगत मुद्दों से जुड़े मामले शामिल हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पास कानून के महत्वपूर्ण प्रश्नों से जुड़े मामलों में उच्च न्यायालयों की अपील सुनने की शक्ति है। यह शक्ति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करने की अनुमति देती है कि संविधान और देश के कानून पूरे देश में निष्पक्ष और लगातार लागू होते हैं।

तो यही है अनुच्छेद 228, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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Chapter Wise Polity Quiz

उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 8 
  2. Passing Marks – 75  %
  3. Time –  6  Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

निम्न में से किस मामले में उच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार को संविधान का मूल ढांचा माना गया?

2 / 8

उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. केरल उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार केवल केरल तक ही सीमित है।
  2. उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार उच्चतम न्यायालय से व्यापक है।
  3. उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार संविधान का मूल ढांचा है।
  4. उच्च न्यायालय के पास भी न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति होती है।

3 / 8

उच्च न्यायालय के पर्यवेक्षक क्षेत्राधिकार को ध्यान में रखकर दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. उच्च न्यायालय, निचले अदालतों से मामले वहाँ से स्वयं के पास मँगवा सकता है।
  2. उच्च न्यायालय क्लर्क, अधिकारी एवं वकीलों के शुल्क आदि निश्चित करता है।
  3. उच्च न्यायालय राज्य सिविल सेवा के अधिकारी के कार्य नियम बना सकता है।
  4. उच्च न्यायालय विधानसभा के कार्यों पर नज़र रखता है।

4 / 8

उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालय पर नियंत्रण रखती है न सिर्फ अपीलीय क्षेत्राधिकार या पर्यवेक्षक क्षेत्राधिकार के तहत बल्कि प्रशासनिक नियंत्रण भी रखती है।

5 / 8

उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. उच्च न्यायालय भी मूलतः एक अपीलीय न्यायालय (Appellate Court) ही है।
  2. जिला न्यायालयों के आदेशों और निर्णयों को प्रथम अपील के लिए सीधे उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है,
  3. प्रशासनिक एवं अन्य अधिकरणों के निर्णयों के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय की खंड पीठ के सामने की जा सकती है।
  4. 3 साल से ऊपर सजा मिलने पर उच्च न्यायालय में उसके खिलाफ अपील की जा सकती है।

6 / 8

निम्नलिखित किन मामलों के विवादों में उच्च न्यायालय प्रथम दृष्टया (Prima facie) सीधे सुनवाई कर सकता है?

7 / 8

उच्च न्यायालय के पास भी अभिलेख न्यायालय (court of record) का स्टेटस है, ये किस अनुच्छेद से संबंधित है?

8 / 8

निम्नलिखित कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालय में लंबित किसी ऐसे मामले को वापस ले सकता है, जिसमें महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न या फिर संविधान की व्याख्या की आवश्यकता हो।
  2. न्यायालय की अवमानना किसे कहा जाएगा इसे संविधान में परिभाषित किया गया है।
  3. सिविल अवमानना का अर्थ है न्यायालय के किसी भी निर्णय, आदेश आदि का जान बूझकर पालन न करना।
  4. जिला न्यायाधीशों कि नियुक्ति और पदोन्नति के लिए राज्यपाल उच्च न्यायालय से परामर्श लेता है।

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अनुच्छेद 229 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 227 – भारतीय संविधान
Next and Previous to Article 228
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।