यह लेख अनुच्छेद 124 (Article 124) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 124

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📜 अनुच्छेद 124 (Article 124) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
124. उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन — (1) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और, जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती है तब तक, सात1 से अनधिक अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा।

(2) 2[अनुच्छेद 124क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर], राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है:
3[* * * * * *]
4[परंतु], —
(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
(ख) किसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
5[(2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे।]

(3) कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और –
(क) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पांच वर्ष तक न्यायाधीश रहा है; या
(ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्षों तक अधिवक्ता रहा है; या
(ग) राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है।

स्पष्टीकरण 1– इस खंड में, “उच्च न्यायालय” से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जो भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में अधिकारिता का प्रयोग करता है, या इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय प्रयोग करता था।

स्पष्टीकरण 2 – इस खंड के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात्‌ ऐसा न्यायिक पद धारण किया है जो जिला न्यायाधीश के पद से अवर नहीं है।

(4) उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद्‌ के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समवेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सतार में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।

(5) संसद खंड (4) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।

(6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा ।

(7) कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण किया है, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन या कार्य नहीं करेगा।

6[124क. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग — (1) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग नामक एक आयोग होगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात :-
(क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति — अध्यक्ष, पदेन;
(ख) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से ठीक नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीश — सदस्य, पदेन;
(ग) संघ का विधि और न्याय का भारसाधक मंत्री — सदस्य, पदेन;
(घ) प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और लोकसभा में विपक्ष के नेता या जहां ऐसा कोई विपक्ष का नेता नहीं है वहाँ, लोक सभा में सबसे बड़े एकल विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनने वाली समिति द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने वाले दो विख्यात व्यक्ति — सदस्य:

परंतु विख्यात व्यक्तियों में से एक विख्यात व्यक्ति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों अथवा स्त्रियॉं में से नामनिर्दिष्ट किया जाएगा:
परंतु यह और कि विख्यात व्यक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए नामनिर्दिष्ट किया जाएगा और पुनःनामनिर्देशन का पात्र नहीं होगा।

(2) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का कोई कार्य या कार्यवाहियाँ, केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी या अविधिमान्य नहीं होंगी कि आयोग में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है।

124ख. आयोग के कृत्य — राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे, —

(क) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों तथा उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की सिफारिश करना;

(ख) उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालेय में स्थानांतरण करने की सिफारिश करना ; और

(ग) यह सुनिश्चित करना कि वह व्यक्ति, जिसकी सिफारिश की गई है, सक्षम और सत्यनिष्ठ है।

124ग. विधि बनाने की संसद की शक्ति — संसद, विधि द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया विनियमित कर सकेगी तथा आयोग को विनियमों द्वारा उसके कृत्यों के निर्वहन, नियुक्ति के लिए व्यक्तियों के चयन की रीति और ऐसे अन्य विषयों के लिए, जो उसके द्वारा आवश्यक समझे जाएं, प्रक्रिया अधिकथित करने के लिए सशक्त कर सकेगी।]
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1. उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अधिनियम, 2019 (2019 का 37) की धारा 2 के अनुसार (09-
08- 2019 से) अब यह संख्या ‘तैतीस” है ।
2. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशो से परामर्श करने के पश्चात्‌, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।
3. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) पहले परन्तुक का लोप किया गया। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायात्रय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है। संशोधन के पूर्व यह निम्नानुसार था — “परन्तु मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगा”।
4. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “परन्तु यह और कि” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले मैं उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।
5. संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्थापित।
6. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अन्तःस्थापित। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।
अनुच्छेद 124

THE UNION JUDICIARY
124. Establishment and constitution of Supreme Court.—(1) There shall be a Supreme Court of India consisting of a Chief Justice of India and, until Parliament by law prescribes a larger number, of not more than 1[seven] other Judges.

(2) Every Judge of the Supreme Court shall be appointed by the President by warrant under his hand and seal 2[on the recommendation of the National Judicial Appointments Commission referred to in article 124A] and shall hold office until he attains the age of sixty-five years:
3[* * * * *]

4[Provided that]—
(a) a Judge may, by writing under his hand addressed to the President, resign his office;
(b) a Judge may be removed from his office in the manner provided in clause (4).

5[(2A) The age of a Judge of the Supreme Court shall be determined by such authority and in such manner as Parliament may by law provide.]

(3) A person shall not be qualified for appointment as a Judge of the Supreme Court unless he is a citizen of India and—
(a) has been for at least five years a Judge of a High Court or of two or more such Courts in succession; or
(b) has been for at least ten years an advocate of a High Court or of two or more such Courts in succession; or
(c) is, in the opinion of the President, a distinguished jurist.

Explanation I.—In this clause “High Court” means a High Court which exercises, or which at any time before the commencement of this Constitution exercised, jurisdiction in any part of the territory of India.
Explanation II.—In computing for the purpose of this clause the period during which a person has been an advocate, any period during which a person has held judicial office not inferior to that of a district judge after he became an advocate shall be included.

(4) A Judge of the Supreme Court shall not be removed from his office except by an order of the President passed after an address by each House of Parliament supported by a majority of the total membership of that House and by a majority of not less than two-thirds of the members of that House present and voting has been presented to the President in the same session for such removal on the ground of proved misbehaviour or incapacity.

(5) Parliament may by law regulate the procedure for the presentation of an address and for the investigation and proof of the misbehaviour or incapacity of a Judge under clause (4).

(6) Every person appointed to be a Judge of the Supreme Court shall, before he enters upon his office, make and subscribe before the President, or some person appointed in that behalf by him, an oath or affirmation according to the form set out for the purpose in the Third Schedule.

(7) No person who has held office as a Judge of the Supreme Court shall plead or act in any court or before any authority within the territory of India.

6[124A. National Judicial Appointments Commission.—(1) There shall be a Commission to be known as the National Judicial Appointments Commission consisting of the following, namely:—
(a) the Chief Justice of India, Chairperson, ex officio;
(b) two other senior Judges of the Supreme Court next to the Chief Justice of India––Members, ex officio;
(c) the Union Minister in charge of Law and Justice––Member, ex officio;
(d) two eminent persons to be nominated by the committee consisting of the Prime Minister, the Chief Justice of India and the Leader of Opposition in the House of the People or where there is no such Leader of Opposition, then, the Leader of single largest Opposition Party in the House of the People––Members:

Provided that one of the eminent person shall be nominated from amongst the persons belonging to the Scheduled Castes, the Scheduled Tribes, Other Backward Classes, Minorities or Women:

Provided further that an eminent person shall be nominated for a period of three years and shall not be eligible for renomination.

(2) No act or proceedings of the National Judicial Appointments Commission shall be questioned or be invalidated merely on the ground of the existence of any vacancy or defect in the constitution of the Commission.

124B. Functions of Commission.––It shall be the duty of the National Judicial Appointments Commission to—
(a) recommend persons for appointment as Chief Justice of India, Judges of the Supreme Court, Chief Justices of High Courts and other Judges of High Courts;
(b) recommend transfer of Chief Justices and other Judges of High Courts from one High Court to any other High Court; and
(c) ensure that the person recommended is of ability and integrity.

124C. Power of Parliament to make law.––Parliament may, by law, regulate the procedure for the appointment of Chief Justice of India and other Judges of the Supreme Court and Chief Justices and other Judges of High Courts and empower the Commission to lay down by regulations the procedure for the discharge of its functions, the manner of selection of persons for appointment and such other matters as may be considered necessary by it.]
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1. Now “thirty-three” vide the Supreme Court (Number of Judges) Amendment Act, 2019 (37 of 2019), s. 2 (w.e.f. 9-8-2019).
2. Subs. by the Constitution (Ninety-ninth Amendment) Act, 2014, s. 2, for “after consultation with such of the Judges of the Supreme Court and of the High Court in the States as the President may deem necessary for the purpose” (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court in the case of Supreme Court Advocates-on-Record Association and another Vs. Union of India in its judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117.
3. The first proviso was omitted by s. 2, ibid. The proviso was as under:— “Provided that in the case of appointment of a Judge other than the Chief Justice, the Chief Justice of India shall always be consulted:” (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court in the case of Supreme Court Advocates-on-Record Association and another Vs. Union of India in its judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117.
4. Subs. by s. 2, ibid. for “provided further that” (w.e.f.13.4.2015).This amendment has been struck down by the Supreme Court in the Supreme Court Advocates-on-Record Association and another Vs Union of India judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117.
5. Ins. by the Constitution (Fifteenth Amendment) Act, 1963, s. 2 (w.e.f. 5-10-1963).
6. Ins. by the Constitution (Ninety-ninth Amendment) Act, 2014, s. 3 (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court in the case of Supreme Court Advocates-on-Record Association and another Vs Union of India in its judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117.
Article 124

🔍 Article 124 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 124 (Article 124) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 124 – उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court)आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 124 उच्च्तम न्यायालय की स्थापना और गठन (Establishment and constitution of Supreme Court) के बारे में है। अनुच्छेद 124 के तहत कुल 7 खंड है। आइये एक-एक खंड को समझते हैं।

Article 124 (1) Explanation

अनुच्छेद 124 (1) के तहत, भारत में एक उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) की स्थापना की गई है। 26 जनवरी, 1950 को, भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बना इसके ठीक दो दिन बाद यानी कि 28 जनवरी, 1950 को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।

इससे पहले (अंग्रेजों के जमाने में) एक फेडरल कोर्ट था जिसका संचालन संसद से (1937 से 1950 के बीच लगभग 12 वर्षों तक) किया जाता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने इसी को रिप्लेस किया। यहाँ ये याद रखिए कि आज जिस बिल्डिंग में सुप्रीम कोर्ट काम करता है उसमें वह 1958 में आया।

यहाँ पर यह याद रखिए कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था एकीकृत (Integrated) है, जिसमें शीर्ष स्थान पर उच्चतम न्यायालय है, उसके अधीन उच्च न्यायालय हैं, और उच्च न्यायालय के अधीन (राज्य स्तर के नीचे) अधीनस्थ न्यायालयों की श्रेणियाँ हैं।

एकीकृत न्याय व्यवस्था (integrated justice system) को हमने इसीलिए अपनाया क्योंकि 1935 में भारत सरकार अधिनियम के तहत अंग्रेजों ने इसी व्यवस्था को अपनाया इसीलिए इस प्रकार के न्यायालय का हमें अच्छा-खासा अनुभव प्राप्त हो चुका था और ये भारत के हित को भी साधता था।

जहां तक इसके न्यायाधीशों की बात है, 1950 के मूल संविधान में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 उप न्यायाधीशों के साथ सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी।

जैसे-जैसे कोर्ट का काम बढ़ता गया वैसे-वैसे संसद ने न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाया। 1956 में 11, 1960 में 14, 1978 में 18, 1986 में 26, 2009 में 31, और 2019 में जजों की संख्या 34 कर दिया गया (इसी में से एक मुख्य न्यायाधीश होता है)।

ये जो बढ़ाने का काम होता है ये ”The Supreme Court (Number of Judges) Act, 1956” के आधार पर होता है। तो कुल मिलाकर इस समय उच्चतम न्यायालय में 34 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं 33 अन्य न्यायाधीश) हैं।

Article 124 (2) Explanation

अनुच्छेद का यह खंड सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment), कार्यकाल (Term of Office) और कार्यकाल की समाप्ति (Termination of Office) के बारे में है।

इस खंड में मूलतः यह लिखा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के हाइ कोर्ट के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श (consultation) करने के पश्चात, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति करेगा।

कहने का अर्थ यह है कि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा। पर ये अपने मन से नहीं करेगा बल्कि खुद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श (consultation) करने के पश्चात करेगा। पर किस न्यायाधीश से परामर्श करना है, इसका चुनाव राष्ट्रपति ही करेगा।

यहाँ यह याद रखिए कि अगर मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति होनी है तो ऐसे में राष्ट्रपति को मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श करनी ही होगी।

हमने ऊपर देखा कि यहां परामर्श (consultation) शब्द का इस्तेमाल किया गया है। और इसी परामर्श (consultation) शब्द पर काफी विवाद रहा है। यह शब्द विवाद का कारण इसीलिए बना क्योंकि इससे पता नहीं चलता है कि न्यायाधीशों की परामर्श, राष्ट्रपति के बाध्यकारी है कि नहीं।

उस समय कुछ लोग इसे इस रूप में समझता था कि परामर्श (consultation) का मतलब सहमति (Concurrence) है। यानि कि राष्ट्रपति के लिए परामर्श बाध्यकारी है। जबकि कुछ लोगों के लिए यह बस एक परामर्श था, जिसे मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा थी।

1980 के दशक में यह विवाद मजबूत होता गया और इस तरह से यह विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। इस केस का नाम है S.P. Gupta vs Union of India 1982 मामला। जिसे कि प्रथम न्यायाधीश मामले के नाम से भी जाना जाता है।

प्रथम न्यायाधीश मामला (First Judges Case), 1982 – 30 दिसंबर, 1981 को इस मामले में सात-न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया।

  • अपने फैसले में न्यायालय ने यह माना गया कि “परामर्श (consultation)” का अर्थ “सहमति (Concurrence)” नहीं है, बल्कि यह विचारों का आदान-प्रदान है।
  • कुल मिलाकर राष्ट्रपति के पास यह शक्ति बनी रही कि परामर्शदाताओं के विचारों को वो ओवरराइड कर सकते थे।

लेकिन बात इतने पर खत्म नहीं हुई, लगभग 10 साल बाद फिर से यह मामला कोर्ट के समक्ष आया। और इस बार यह द्वितीय न्यायाधीश मामला कहलाया।

द्वितीय न्यायाधीश मामला (Second judges case) 1993 – सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCARA) बनाम भारत संघ को दूसरे न्यायाधीशों के मामले के रूप में जाना जाता है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ के फैसले को खारिज कर दिया और निम्नलिखित बिंदुओं को निर्धारित किया;

  • इस निर्णय से “परामर्श (consultation)” का अर्थ सहमति (Concurrence) कर दिया गया। यानी कि मुख्य न्यायाधीश के परामर्श को लिए राष्ट्रपति के लिए बाध्य कर दिया गया।
  • यह व्यवस्था किया गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश 2 वरिष्ठ न्यायाधीशों से विचार-विमर्श करने के बाद सिफारिशें करेगा। और राष्ट्रपति का काम बस उस सिफ़ारिश को प्रभावी बनाना होगा। और यही वह मामला है जिसके परिणामस्वरूप कॉलेजियम प्रणाली का जन्म हुआ।

तीसरा न्यायाधीश मामला (Third judges case) 1998 – यह मामला का ही विस्तार है। इस मामले के माध्यम से न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली में कुछ प्रावधान जोड़ दिया।

अब प्रावधान ये बनाया गया कि मुख्य न्यायाधीश को चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से सलाह करनी होगी, इनमे से अगर दो का मत भी पक्ष में नहीं है तो वह नियुक्ति के लिए सिफ़ारिश नहीं भेज सकता।

यहीं जो 5 न्यायाधीशों का कॉलेजियम है यह आज भी चल रहा है। लेकिन विवाद अभी भी खत्म नहीं हुआ। वो इसीलिए क्योंकि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है और ये लोकतांत्रिक मूल्यों पर खड़ा नहीं उतरता है।

तो इसी कोलेजियम व्यवस्था को ठीक करने के उद्देश्य से साल 2014 में 99वां संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम लाया गया जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बने कॉलेजियम सिस्टम को हटाकर एक नए निकाय राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया गया। अनुच्छेद 124क, 124ख और 124ग इसी के तहत संविधान में डाला गया था। जिसे कि आप मूल अनुच्छेद में ऊपर देख भी सकते हैं।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट को यह व्यवस्था पसंद नहीं आया, और फिर चतुर्थ न्यायाधीश मामले में इसके विपक्ष में फैसला सुनाया।

चतुर्थ न्यायाधीश मामला (Fourth Judges Case) 2015 – सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड-एसोसिएशन और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले को फोर्थ जजेस केस के रूप में जाना जाता है।

इस मामले में अदालत ने 4:1 के बहुमत से, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अमान्य कर दिया और संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया। और इस तरह पुरानी कोलेजियम सिस्टम पुनः बहाल हो गया। पर कॉलेजियम सिस्टम आज भी विवादित सिस्टम है।

| विस्तार से समझें – कॉलेजियम सिस्टम और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)

अनुच्छेद के इसी खंड के तहत अन्य तीन बातें भी बतायी गई है;

पहली बात – न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद पर बना रह सकता है। हालांकि इस मामले में किसी प्रश्न के उठने पर संसद द्वारा स्थापित संस्था इसका निर्धारण करेगी।

दूसरी बात – वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र दे सकता है।

तीसरी बात – संसद की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति द्वारा इसे पद से हटाया जा सकता है। किस विधि से हटाया जाएगा इसकी चर्चा इसी अनुच्छेद के खंड 4 में किया गया है। जिसे कि हम आगे समझने वाले हैं।

Article 124 (3) Explanation

अनुच्छेद 124 (3) के अनुसार, कोई व्यक्ति उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) का न्यायाधीश तभी बन सकता है जब वो व्यक्ति भारत का नागरिक हो और निम्नलिखित में कोई एक योग्यता हो;

(a) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पाँच तक न्यायाधीश रहा हो, या 

(b) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम 10 साल तक अधिवक्ता (Advocate) रहा हो, या 

(c) राष्ट्रपति की दृष्टि में सम्मानित व योग्य न्यायवादी (jurist) हो।

यहाँ पर यह याद रखिए कि संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है।

दूसरी बात अधिवक्ता की जो 10 वर्ष की गणना होगी, उसमें वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात्‌ ऐसा न्यायिक पद धारण किया है जो जिला न्यायाधीश के पद से नीचा नहीं है।

Article 124 (4) Explanation

इस खंड के तहत न्यायाधीशों को पद से हटाने की विधि (method) के बारे में बताया गया है। न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है लेकिन राष्ट्रपति उसे अपने मन से हटा नहीं सकता है। 

अनुच्छेद 124(4) के तहत, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से तभी हटा सकता है, जब उस न्यायाधीश को हटाने का आधार सिद्ध हो जाये और उसके बाद संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पास किया जाये।

विशेष बहुमत (Special Majority) मतलब, प्रत्येक सदन के कुल सदस्य संख्या का बहुमत और उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत। [विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – बहुमत कितने प्रकार के होते हैं?]

लेकिन सवाल यही आता है कि न्यायाधीश को हटाने का आधार कैसे सिद्ध होगा, इसी के बारे में अगले खंड में बताया गया है।

Article 124 (5) Explanation

इस खंड के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि अनुच्छेद 124(4) के तहत जो न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव जो सदन में पेश किया जाएगा, उसके बाद जो उसकी कदाचार या असमर्थता साबित करने की प्रक्रिया होगी, वो संसद निर्धारित करेगा।

संसद ने इसी को निर्धारित करने के लिए बकायदे एक कानून बनाया जिसका नाम है ‘न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968‘। इसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया वर्णन है। इसके अनुसार न्यायाधीश को हटाने की निम्नलिखित प्रक्रिया है –

1. निष्कासन प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति तभी विचार करेगा जब उस प्रस्ताव को लोकसभा में 100 सदस्यों और राज्यसभा में 50 सदस्यों से लिखित सहमति मिलेगी।

2. इतना होने के बावजूद भी ये अध्यक्ष या सभापति पर निर्भर करता है कि वे इसे स्वीकृति दे या नहीं। यानी कि इस प्रस्ताव को ये शामिल भी कर सकते है या इसे अस्वीकार भी कर सकते हैं।

3. यदि इसे स्वीकार कर लिया जाये तो अध्यक्ष या सभापति को इसकी जांच के लिए तीन सदस्य समिति गठित करनी होगी। इस समिति में शामिल होना चाहिए – मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और प्रतिष्ठित न्यायवादी।

4. यदि यह समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार का दोषी या असक्षम पाती है तो इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।

5. इसके बाद विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है और अंत में राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर देते हैं।

यहाँ यह जानना रोचक है कि उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर अब तक महाभियोग नहीं लगाया गया है। एक बार ऐसा मौका बना भी था जब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी (1991-1993) को जांच समिति द्वारा दुर्व्यवहार का दोषी पाया गया था। पर वे इसलिए नहीं हटाए जा सके क्योंकि यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका। कॉंग्रेस पार्टी मतदान से अलग हो गई थी।

अनुच्छेद-31- भारतीय संविधान
Article 124

अनुच्छेद 124 (6) Explanation

Article 124 (6) और संविधान की अनुसूची 3 के तहत, उच्चतम न्यायालय के लिए नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यकाल संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिए उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने निम्नलिखित शपथ लेनी पड़ती है कि –

मैं, —————, जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूं, ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा तथा मैं सम्यक प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूंगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।

Article 124 (7) Explanation

इस खंड के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि कोई व्यक्ति, जिसने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अपना पद धारण किया है, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष वकालत का कार्य नहीं करेगा।

तो यही है अनुच्छेद 124 (Article 124 ), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

| विस्तार से समझें – कॉलेजियम सिस्टम और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)

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FAQ. अनुच्छेद 124 (Article 124) क्या है?

अनुच्छेद 124 उच्च्तम न्यायालय की स्थापना और गठन (Establishment and constitution of Supreme Court) के बारे में है। इस अनुच्छेद के तहत कई चीज़ें समझ सकते हैं; जैसे कि 1. न्यायाधीश की नियुक्ति, 2. न्यायाधीश का कार्यकाल, 3. न्यायाधीश की पद समाप्ति, 4. न्यायाधीश का शपथ इत्यादि।
यह अनुच्छेद आज भी विवादों से घिरा है क्यों घिरा है, विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1812352#:~:text=The%20Supreme%20Court%20(Number%20of,of%20India)%20to%20be%2010.

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।
Article 124