यह लेख अनुच्छेद 30 (Article 30) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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Article 30

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📜 अनुच्छेद 30 (Article 30)

30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार – (1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

1[(1क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बंधित या निराकृत न हो जाए।]

(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है।
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1. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अन्तःस्थापित।
अनुच्छेद 30—-
30. Right of minorities to establish and administer educational institutions.— (1) All minorities, whether based on religion or language, shall have the right to establish and administer educational institutions of their choice.

1[(1A) In making any law providing for the compulsory acquisition of any property of an educational institution established and administered by a minority, referred to in clause (1), the State shall ensure that the amount fixed by or determined under such law for the acquisition of such property is such as would not restrict or abrogate the right guaranteed under that clause.]

(2) The State shall not, in granting aid to educational institutions, discriminate against any educational institution on the ground that it is under the management of a minority, whether based on religion or language.
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1. Inserted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 4 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 30

🔍 Article 30 Explanation in Hindi

संस्कृति, किसी भी सभ्यता का एक मूल तत्व होता है। ये लोगों के एक विशेष समूह की उन विशेषताओं, समूहिक व्यवहार और ज्ञान को बताता है, जिसमें भाषा, धर्म, भोजन, सामाजिक आदतें, संगीत और कला, रीति-रिवाज, परंपरा आदि शामिल होते हैं। और शिक्षा इन्ही सारी चीजों को सीखने, सिखाने एवं उसे आगे हस्तांतरित करने की एक प्रक्रिया है।

भारत एक सांस्कृतिक विविधता वाला देश है जहां ढ़ेरों अलग-अलग संस्कृतियाँ एक साथ अपनी संस्कृति को बनाए रखते हुए निवास करती है।

ऐसा इसीलिए संभव हो पाता है क्योंकि हमारा संविधान विविधता का सम्मान करती है और सभी को अपनी संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार देती है (खासकर के अल्पसंख्यकों को जिसकी संस्कृतियों के लुप्त हो जाने का डर सबसे ज्यादा होता है)।

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights)‘ में कुल दो अनुच्छेद आते हैं (जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं) इस लेख में हम इसी का दूसरा अनुच्छेद यानी कि अनुच्छेद 30 (Article 30) को समझने वाले हैं।

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार↗️
अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण (Protection of interests of minorities)

अनुच्छेद 30 – शिक्षा संस्थानों की स्थापना और उसका प्रशासनकरने का अल्पसंख्यक वर्ग का अधिकार (Right of minority to set up and manage educational institutions)
Article 30

| अनुच्छेद 30 – शिक्षा संस्थानों की स्थापना और उसका प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्ग का अधिकार

अल्पसंख्यक (Minority) कौन है?

संविधान में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं दी गई है। इस शब्द के साधारण अर्थ में इसका तात्पर्य है कोई भी ऐसा समुदाय जो राज्य की जनसंख्या के पचास प्रतिशत से कम है।

कोई समुदाय अल्पसंख्यक है या नहीं यह आपेक्षित विधान के प्रति निर्देश से सुनिश्चित किया जाएगा। भाषिक अल्पसंख्यक होने के लिए उस समुदाय की अपनी बोलचाल की भाषा होनी चाहिए, भले ही लिपि न हो।

संविधान लागू होने के बाद अगर कोई संस्था अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर बनाई गई है तो ऐसे में अल्पसंख्यक भारत में निवासी व्यक्ति होना चाहिए। लेकिन अगर संविधान लागू होने के पूर्व ही किसी अनिवासी व्यक्ति द्वारा कोई संस्था भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के फायदे के लिए स्थापित की गई है तो उसे इस अनुच्छेद का संरक्षण मिल सकता है।

अनुच्छेद 30 के दो खंड है, जिसकी व्याख्या नीचे की गई है।

अनुच्छेद 30 (1)

यह अनुच्छेद कहता है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

अर्थात, प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय को यह अधिकार है कि वह अपने समुदाय के बालकों को अपने द्वारा चलाई जाने वाली शिक्षा संस्थाओं में, अपनी भाषा में शिक्षा प्रदान करे।

यदि इस अधिकार का अतिलंघन होता है तो उस समुदाय की शिक्षा संस्था मूल अधिकार के उल्लंघन के विरुद्ध उपचार की मांग कर सकती है।

याद रखें, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। और अनुच्छेद 351 में उसके प्रोन्नयन के लिए राज्य को विशेष निदेश दिया गया है। फिर भी इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनुच्छेद 29 या 30 द्वारा दिए गए अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

यानी कि राज्य का शिक्षा का माध्यम क्या हो यह तय करने का अधिकार, अल्पसंख्यक समुदाय के अपनी भाषा में शिक्षा देने के अधिकार के सामने झुक जाएगा।

अनुच्छेद 30 के तहत दो अधिकार दिए गए है; पहला है संस्था स्थापित करने का अधिकार; यानी कि संस्था की रचना करने का अधिकार। और दूसरा है उसके प्रशासन का अधिकार; यानी कि संस्था के क्रियाकलाप के प्रबंध में बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ताकि अल्पसंख्यक वर्ग संस्था को वैसा बना सके जैसा वो ठीक समझे।

शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का क्या मतलब है इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सेक्रेटरी ऑफ मलनकारा सीरियन कैथीलिक कॉलेज केस (2006) द्वारा स्पष्ट किया गया, इसके बारे में नीचे बताया गया है;

Secretary of Malankara Catholic College Case (2006)

इस केस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट, अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों की स्थापना एवं प्रशासन क्या अर्थ है; को व्याख्यायित किया।

1. अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन के अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार शामिल है;

(a) अपना शासी निकाय चुनने का अधिकार, जिसमें संस्थापकों का भरोसा हो कि वह संस्थान को भली-भांति चला सकेगा।

(b) शिक्षण कर्मचारियों एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों को नियुक्त करने, साथ ही अपने काम में लापरवाही बरतने पर उनके विरुद्ध कारवाई करने का अधिकार।

(c) अपनी पसंद के योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाने तथा एक सुसंगत शुल्क-ढांचा स्थापित करने का अधिकार।

(d) अपनी संपदा तथा परिसंपत्तियों का संस्था के हित में उपयोग करने का अधिकार।

2. अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार सम्पूर्ण या अबाध नहीं है। यानी कि कुप्रबंधन की स्थिति में या अकादमिक उत्कृष्टता के मानदंडों को पूरा न करने की स्थिति में राज्य द्वारा विनियामक उपाय किए जा सकते है या कुछ स्थितियों में उसके प्रशासन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के प्रकार

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान तीन प्रकार तीन प्रकार के होते हैं;

1. राज्य से आर्थिक सहायता और मान्यता लेने वाले संस्थान।

2. ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता लेते हो लेकिन आर्थिक सहायता नहीं लेते हों।

3. ऐसे संस्थान जो राज्य से न तो आर्थिक सहायता लेता हो और न ही मान्यता

जो भी शिक्षण संस्थान राज्य से आर्थिक सहायता या फिर मान्यता लेते हो या फिर दोनों ही लेते हों तो उसमें शिक्षण कार्य और प्रशासनिक तरह के कार्य राज्य के अनुसार होगी।

यानी कि सीधे-सीधे कहें तो पहले दो में शिक्षण कार्य राज्य के अनुसार होगी वहीं तीसरे प्रकार के संस्थान अपने प्रशासनिक कार्यों का संचालन स्वयं कर सकते है पर बिना विधि का उल्लंघन किए हुए।

अनुच्छेद 30(1) लागू होने की शर्तें

अनुच्छेद 30(1) का लाभ उठाने के लिए समुदाय को यह दर्शित करना होगा कि (1) वह धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक है, और (2) उसने संस्था की स्थापना की थी। इन दो शर्तों को पूरा किए बिना वह उसका प्रशासन चलाने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

यदि शिक्षा संस्था की स्थापना धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग ने नहीं की है तो वह उसके प्रशासन के अधिकार का दावा नहीं कर सकता चाहे वह संविधान के प्रारम्भ के पूर्व उस संस्था का प्रशासन चलाता रहा हो।

यानी कि स्थापना और प्रशासन चलाना ये दोनों क्रियाएं एक साथ होंगी। यदि दोनों शर्तें एक साथ नहीं है तो विधि पर यह आपेक्ष नहीं हो सकता कि वह अनुच्छेद 30(1) का उल्लंघन करती है।

खंड (1) द्वारा प्रदत्त अधिकार की सीमाएं

इस अनुच्छेद के तहत जो प्रशासन का अधिकार दिया गया है उसके तहत कुप्रशासन का अधिकार नहीं आता है। यानी की कुप्रशासन की स्थिति में यह अनुच्छेद विफल हो जाएगा।

राज्य, अनुच्छेद 30(1) के अधीन आने वाली संस्था को सहायता या मान्यता देने की शर्त के रूप में, स्वच्छता, शिक्षकों की क्षमता, अनुशासन आदि सुनिश्चित करने के प्रयोजनों के लिए युक्तियुक्त विनियम अधिरोपित कर सकता है। कहने का अर्थ है की राज्य विनियमन (regulation) ला सकती है, हालांकि यह विनियमन इतना नहीं हो सकता है कि अनुच्छेद 30(1) द्वारा दिया गया अधिकार ही समाप्त हो जाए।

अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं को अनुच्छेद 337 के तहत राज्य से सहायता पाने का अधिकार है। ऐसे में यदि राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं को सहायता प्रदान करता तो वह सहायता के साथ ऐसी शर्तें नहीं लगा सकता जिससे धार्मिक या भाषाई समुदाय के सदस्य अनुच्छेद 30(1) के तहत मिले अधिकार से वंचित हो जाए। हालांकि राज्य को युक्तियुक्त शर्त अधिरोपित करने का अधिकार है।

अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं के लिए राज्य से मान्यता प्राप्त करना कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। फिर भी अगर राज्य मान्यता देता है वो कुछ युक्तियुक्त शर्ते अधिरोपित कर सकता है। जैसे कि शिक्षकों की योग्यता, वेतन आदि के संबंध में।

अनुच्छेद 30(2) के तहत शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है।

इसका मतलब ये है कि राज्य से ये अपेक्षित होगा कि वे अल्पसंख्यकों द्वारा प्रबंधित संस्थान के प्रति भी वहीं वित्तीय नजरिया रखें जो अन्य के प्रति रखते हैं।

अनुच्छेद 31(1क)

यह कहता है कि खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बंधित या निराकृत न हो जाए।

दरअसल 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा अनुच्छेद 31 को खत्म कर दिया गया जिसके तहत संपत्ति का अधिकार दिया गया था। इसी अनुच्छेद 31(2) के दूसरे परंतुक (proviso) को अनुच्छेद 30 का खंड (1क) बना दिया गया।

परंतुक (Proviso) का अर्थ – किसी समझौते या बयान से जुड़ी शर्तों को परंतुक कहा जाता है।

इस खंड का अर्थ है कि जब भी राज्य अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति का अर्जन (acquisition) करेगा तो वह इस बात बात का ध्यान रखेगा कि क्षतिपूर्ति रकम इतनी होगी जिससे कि अनुच्छेद 30(1) के तहत दिया गया अधिकार व्यवहार में बना रहे। यानी कि अगर जमीन ले भी ली गई तो क्षतिपूर्ति रकम से दूसरी जगह शिक्षा संस्था स्थापित कर सके।

[कुछ तथ्य]

यह आवश्यक नहीं है की अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों का पाठ्यक्रम केवल धर्म की शिक्षा या अल्पसंख्यक समुदाय की भाषा तक ही सीमित रहे। कहने का अर्थ है की ऐसी संस्थाओं में साधारण शिक्षा देने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

अनुच्छेद 30(1) और अनुच्छेद 28(3) के तहत यदि किसी अल्पसंख्यक संस्था को राज्य से सहायता या मान्यता मिलती है तो वह किसी विद्यार्थी (यदि वयस्क हो) या उसके संरक्षक की अनुमति के बिना किसी विद्यार्थी को धार्मिक शिक्षा नहीं दे सकती या उसे कोई धार्मिक अर्चना में उपस्थिति होने के लिए विवश नहीं कर सकती।

अनुच्छेद 30(1) और अनुच्छेद 19 के तहत राज्य को यह शक्ति है कि अनुशासन, स्वच्छता, नैतिकता या लोक व्यवस्था आदि बातों को ध्यान में रखकर अल्पसंख्यक समुदाय की संस्था का प्रशासन चलाने के अधिकार को विनियमित (Regulate) कर सकता है।

अनुच्छेद 30(1) द्वारा दिया गया अधिकार अनुच्छेद 29(2) द्वारा अधिरोपित मर्यादाओं के अधीन है। इसीलिए यदि किसी अल्पसंख्यक संस्था को राज्य से सहायता मिलती है तो वह धर्म, जाति आदि के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय के बाहर के किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में प्रवेश देने से इंकार नहीं कर सकती।

अनुच्छेद 29 के अधीन अधिकार का दावा केवल नागरिकों द्वारा ही किया जा सकता है। किन्तु अनुच्छेद 30 के अधीन अधिकारों का दावा करने के लिए नागरिक होना आवश्यक नहीं है। इसीलिए किसी विदेशी मिशनरी सोसाइटी द्वारा भारत में स्थापित स्कूल को अनुच्छेद 30(1) का संरक्षण प्राप्त हो सकता है।

अनुच्छेद 29(1) एक साधारण उपबंध है जिसके अधीन अल्पसंख्यक अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं। अनुच्छेद 30(1) अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं का संरक्षण और प्रशासन चलाने का विशेष अधिकार देता है।

यह विकल्प भाषा आदि की संरक्षा करने वाली संस्थाओं तक ही सीमित है। यदि अल्पसंख्यक समुदाय अपनी रुचि की शिक्षा संस्था स्थापित करने के बाद उसमें अन्य समुदाय के व्यक्तियों को प्रवेश देता है तो इससे अधिकार समाप्त नहीं होता।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 30 (Article 30), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।


अनुच्छेद 30 (Article 30) क्या है?

शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार – (1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

भारत में माइनॉरिटि किसे कहते हैं?

संविधान में माइनॉरिटि की परिभाषा नहीं दी गई है। इस शब्द के साधारण अर्थ में इसका तात्पर्य है कोई भी ऐसा समुदाय जो राज्य की जनसंख्या के पचास प्रतिशत से कम है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
—-Article 30—-
अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।