इस लेख में हम संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Rights related to culture and education) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे,
तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें।
वैसे तो वक्त के साथ सबकुछ बदलता है लेकिन कुछ चीज़ें ऐसे होती है जिसे हम हमेशा बचा के रखना चाहते हैं। संस्कृति उसी में से एक है।

ये लेख मौलिक अधिकारों पर पहले लिखे गए लेखों का कंटिन्यूएशन है। अब तक हम समता का अधिकार (Right to Equality), स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom), शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) एवं धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom) समझ चुके हैं। अगर आपने नहीं समझा है तो उसे जरूर समझें।
संस्कृति और शिक्षा (Culture and education)
संस्कृति, किसी भी सभ्यता का एक मूल तत्व होता है। ये लोगों के एक विशेष समूह की उन विशेषताओं, समूहिक व्यवहार और ज्ञान को बताता है, जिसमें भाषा, धर्म, भोजन, सामाजिक आदतें, संगीत और कला, रीति-रिवाज, परंपरा आदि शामिल होते हैं। और शिक्षा इन्ही सारी चीजों को सीखने, सिखाने एवं उसे आगे हस्तांतरित करने की एक प्रक्रिया है।
भारत एक सांस्कृतिक विविधता वाला देश है जहां ढ़ेरों अलग-अलग संस्कृतियाँ एक साथ अपनी संस्कृति को बनाए रखते हुए निवास करती है।
ऐसा इसीलिए संभव हो पाता है क्योंकि हमारा संविधान विविधता का सम्मान करती है और सभी को अपनी संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार देती है (खासकर के अल्पसंख्यकों को जिसकी संस्कृतियों के लुप्त हो जाने का डर सबसे ज्यादा होता है)।
तो आइये समझते हैं कि किस तरह के संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारों की बात हमारा संविधान करता है –
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
अगर आपको पंडित नेहरू का उद्देश्य प्रस्ताव याद हो तो, उसमें भी अल्पसंख्यकों के हितों और संस्कृतियों की सुरक्षा और उसके समुचित विकास की बात कही गयी थी।
ये सही भी था क्योंकि समाज के मुख्य धारा में रहने के कारण बांकी के वर्गों के पास विकास के पर्याप्त अवसर उपलब्ध थे पर ये अल्पसंख्यक वर्ग जिसका एक तो संख्या बल कम था दूसरा सरकार में इन लोगों की पर्याप्त भागीदारी नहीं थी।
ऐसे में ये जरूरी था कि इन को संरक्षित करने के लिए अलग से कुछ अधिकार दिये जाये। इसी को ध्यान में रखकर अनुच्छेद 29 और 30 के मौलिक अधिकार को इन वर्गों को समर्पित कर दिया गया (खासकर के अनुच्छेद 30)।
तो आप ये ध्यान रखें कि संस्कृति और शिक्षा का अधिकार खासतौर पर अल्पसंख्यकों के लिए है। इस खंड में कुल 2 अनुच्छेद है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार |
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⚫ अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण (Protection of interests of minorities) ⚫ अनुच्छेद 30 – शिक्षा संस्थानों की स्थापना और उसका प्रबंधन करने का अल्पसंख्यक वर्ग का अधिकार (Right of minority to set up and manage educational institutions) |
अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण
(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी अनुभाग ( section) को, जिसकी अपनी विशेष बोली, भाषा, लिपि, या संस्कृति है, उसे संरक्षित करने का अधिकार है।
कहने का अर्थ ये है कि यह उपरोक्त व्यवस्था एक समूह के अधिकारों की रक्षा करती है।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
कहने का अर्थ ये है कि यह उपरोक्त व्यवस्था व्यक्तिगत सम्मान एवं समानता की रक्षा करती है चाहे वो व्यक्ति किसी भी समुदाय से संबन्धित क्यों न हो।
अनुच्छेद 29(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
इस खंड का अर्थ ये है कि अगर कोई अल्पसंख्यक अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति बनाए रखना चाहते हैं तो राज्य उन पर कोई दूसरी संस्कृति अधिरोपित नहीं करेगा।
अगर कोई विधि राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया जाता है जिसका विस्तार उस समस्त राज्यक्षेत्र में है। वहाँ उस पूरे राज्य की जनसंख्या के प्रति निर्देश से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अल्पसंख्यक कौन है।
याद रखें, भाषा को बनाए रखने के अधिकार में उस भाषा के संरक्षण के लिए आंदोलन चलाने का भी अधिकार शामिल है। और यह अधिकार राजनैतिक भी हो सकता है।
⚫ कुल मिलाकर पहली व्यवस्था किसी समूह से संबन्धित है जबकि दूसरी व्यवस्था किसी भी समूह के व्यक्ति से संबन्धित है। यहाँ पर एक बात जो याद रखने योग्य है कि – अनुच्छेद 29 का शीर्षक तो अल्पसंख्यकों की बात करता है पर ये सभी पर लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले की पुष्टि करते हुए कहा है कि ये सिर्फ अल्पसंख्यकों से संबन्धित नहीं है बल्कि सभी नागरिकों (यानी कि अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक दोनों से) संबन्धित है।
इसे गहराई से समझें – अनुच्छेद 29 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]
अनुच्छेद 30 – शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
यह अनुच्छेद पूरी तरह से अल्पसंख्यकों को समर्पित है। इसमें निम्न प्रावधान है।
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
ऐसा प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि वे अपनी कला और संस्कृति, साहित्य और परंपरा, अपनी मान्यताएँ और अपने दर्शन आदि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आसानी से पहुंचा सकें।
अर्थात, प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय को यह अधिकार है कि वह अपने समुदाय के बालकों को अपने द्वारा चलाई जाने वाली शिक्षा संस्थाओं में, अपनी भाषा में शिक्षा प्रदान करे।
यदि इस अधिकार का अतिलंघन होता है तो उस समुदाय की शिक्षा संस्था मूल अधिकार के उल्लंघन के विरुद्ध उपचार की मांग कर सकती है।
याद रखें, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। और अनुच्छेद 351 में उसके प्रोन्नयन के लिए राज्य को विशेष निदेश दिया गया है। फिर भी इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनुच्छेद 29 या 30 द्वारा दिए गए अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। यानी कि राज्य का शिक्षा का माध्यम क्या हो यह तय करने का अधिकार, अल्पसंख्यक समुदाय के अपनी भाषा में शिक्षा देने के अधिकार के सामने झुक जाएगा।
अनुच्छेद 30 के तहत दो अधिकार दिए गए है; पहला है संस्था स्थापित करने का अधिकार; यानी कि संस्था की रचना करने का अधिकार। और दूसरा है उसके प्रबंधन का अधिकार; यानी कि संस्था के क्रियाकलाप के प्रबंध में बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ताकि अल्पसंख्यक वर्ग संस्था को वैसा बना सके जैसा वो ठीक समझे।
[नोट- यहाँ पर शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का क्या मतलब है इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सेक्रेटरी ऑफ मलनकारा सीरियन कैथीलिक कॉलेज केस (2006) द्वारा स्पष्ट किया गया, इसके बारे में नीचे बताया गया है]
◾ 44वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार से हटा दिया गया और इसी संशोधन अधिनियम के माध्यम से उपरोक्त प्रावधान में एक उप-प्रावधान को जोड़ दिया गया, जो कि कुछ इस प्रकार है;
(1क) – अगर राज्य द्वारा किसी अल्पसंख्यक वर्ग के शिक्षा संस्था की संपत्ति का अनिवार्य अर्जन किया जाता है तो राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए दी जाने वाली रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत (Guaranteed) अधिकार निर्बंधित (Restricted) या निराकृत (Abrogated) न हो जाए।
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।
इसका मतलब ये है कि राज्य से ये अपेक्षित होगा कि वे अल्पसंख्यकों द्वारा प्रबंधित संस्थान के प्रति भी वहीं वित्तीय नजरिया रखें जो अन्य के प्रति रखते हैं।
अनुच्छेद 30 के अंतर्गत आने वाले ये उपरोक्त अधिकार, अल्पसंख्यकों को अपने बच्चों को अपनी भाषा में शिक्षा का अधिकार भी प्रदान करता है। यहाँ पर ये जान लेना जरूरी है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान कितने प्रकार के होते हैं।
इसे गहराई से समझें – अनुच्छेद 30 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के प्रकार
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान तीन प्रकार की होती है।
1. राज्य से आर्थिक सहायता और मान्यता लेने वाले संस्थान।
2. ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता लेते हो लेकिन आर्थिक सहायता नहीं लेते हों।
3. ऐसे संस्थान जो राज्य से न तो आर्थिक सहायता लेता हो और न ही मान्यता।
जो भी शिक्षण संस्थान राज्य से आर्थिक सहायता या फिर मान्यता लेते हो या फिर दोनों ही लेते हों तो उसमें शिक्षण कार्य और तमाम तरह के कार्य राज्य के अनुसार होगी।
यानी कि सीधे-सीधे कहें तो पहले दो में शिक्षण कार्य राज्य के अनुसार होगी वहीं तीसरे प्रकार के संस्थान अपने प्रशासनिक कार्यों का संचालन स्वयं कर सकते है पर बिना विधि का उल्लंघन किए हुए।
सेक्रेटरी ऑफ मलनकारा कैथीलिक कॉलेज केस (2006)
जैसा कि ऊपर भी बताया जा चुका है कि इस केस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट, अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों की स्थापना एवं प्रशासन क्या अर्थ है; को व्याख्यायित किया। जैसे कि
1. अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन के अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार शामिल है;
(a) अपना शासी निकाय चुनने का अधिकार जिसमें संस्थापकों का भरोसा हो कि वह संस्थान को भली-भांति चला सकेगा।
(b) शिक्षण कर्मचारियों एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों को नियुक्त करने, साथ ही अपने काम में लापरवाही बरतने पर उनके विरुद्ध कारवाई करने का अधिकार।
(c) अपनी पसंद के योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाने तथा एक सुसंगत शुल्क-ढांचा स्थापित करने का अधिकार।
(d) अपनी संपदा तथा परिसंपत्तियों का संस्था के हित में उपयोग करने का अधिकार।
2. अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार सम्पूर्ण या अबाध नहीं है। यानी कि कुप्रबंधन की स्थिति में या अकादमिक उत्कृष्टता के मानदंडों को पूरा न करने की स्थिति में राज्य द्वारा विनियामक उपाय किए जा सकते है या कुछ स्थितियों में उसके प्रशासन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
इसे गहराई से समझें – अनुच्छेद 29-30 – भारतीय संविधान [व्याख्या सहित]
कुल मिलाकर यही है संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (Rights related to culture and education), उम्मीद है समझ में आया होगा, नीचे अन्य लेखों का लिंक है उसे भी जरूर पढ़ें।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।Right to constitutional remedies
अल्पसंख्यक (Minority) कौन है?
संविधान में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं दी गई है। इस शब्द के साधारण अर्थ में इसका तात्पर्य है कोई भी ऐसा समुदाय जो राज्य की जनसंख्या के पचास प्रतिशत से कम है।
कोई समुदाय अल्पसंख्यक है या नहीं यह आपेक्षित विधान के प्रति निर्देश से सुनिश्चित किया जाएगा। भाषिक अल्पसंख्यक होने के लिए उस समुदाय की अपनी बोलचाल की भाषा होनी चाहिए, भले ही लिपि न हो।
संविधान लागू होने के बाद अगर कोई संस्था अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर बनाई गई है तो ऐसे में अल्पसंख्यक भारत में निवासी व्यक्ति होना चाहिए। लेकिन अगर संविधान लागू होने के पूर्व ही किसी अनिवासी व्यक्ति द्वारा कोई संस्था भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के फायदे के लिए स्थापित की गई है तो उसे इस अनुच्छेद का संरक्षण मिल सकता है।
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार प्रैक्टिस क्विज
Important links,
मूल संविधान भाग 3
LiveScience Culture
The Secretary,Malankara Syrian … vs T.Jose & Ors on 27 November, 2006