Collegium System: उच्चतम न्यायालय भारतीय एकीकृत न्यायिक प्रणाली में सबसे ऊपर आता है, यानी कि भारत में ये न्याय प्राप्त करने की अंतिम जगह है।

यहाँ से न्याय करने वाले न्यायाधीश को न्याय का प्रतीक माना जाता है और इसलिए इनकी नियुक्ति बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। मूल संविधान के हिसाब से तो इनकी नियुक्ति में राष्ट्रपति के हाथों में होती थी यानि कि मंत्रिमंडल के हाथों में होती थी।

लेकिन समय ने करवट ली और नब्बे के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति या यूं कहें कि मंत्रिमंडल की शक्ति को नगण्य कर दिया। और इसके लिए जिस व्यवस्था को अपनाया गया उसे ही हम कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) के नाम से जानते हैं;

इस लेख में हम कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके आधारभूत तथ्यों को समझेंगे, तो बेहतर समझ के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें साथ ही संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें; संबंधित लेखों का लिंक नीचे दिया गया है।

Article 124 Explained in Hindi
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Collegium System Explained

कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) की पृष्ठभूमि:

अनुच्छेद 124 का खंड (2) सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment), कार्यकाल (Term of Office) और कार्यकाल की समाप्ति (Termination of Office) के बारे में है। कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) का संबंध न्यायाधीशों की नियुक्ति से है।

इस खंड में मूलतः यह लिखा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के हाइ कोर्ट के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श (consultation) करने के पश्चात, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति करेगा।

कहने का अर्थ यह है कि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा। पर ये अपने मन से नहीं करेगा बल्कि खुद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श (consultation) करने के पश्चात करेगा। पर किस न्यायाधीश से परामर्श करना है, इसका चुनाव राष्ट्रपति ही करेगा।

यहाँ यह याद रखिए कि अगर मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति होनी है तो ऐसे में राष्ट्रपति को मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श करनी ही होगी।

हमने ऊपर देखा कि यहां परामर्श (consultation) शब्द का इस्तेमाल किया गया है। और इसी परामर्श (consultation) शब्द पर काफी विवाद रहा है। यह शब्द विवाद का कारण इसीलिए बना क्योंकि इससे पता नहीं चलता है कि न्यायाधीशों की परामर्श, राष्ट्रपति के बाध्यकारी है कि नहीं।

उस समय कुछ लोग इसे इस रूप में समझता था कि परामर्श (consultation) का मतलब सहमति (Concurrence) है। यानि कि राष्ट्रपति के लिए परामर्श बाध्यकारी है। जबकि कुछ लोगों के लिए यह बस एक परामर्श था, जिसे मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा थी।

मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विवाद:

◾ दरअसल भारत का संविधान मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया का कोई संकेत नहीं देता है। इसलिए वर्षों से एक परंपरा विकसित हुई है कि जब भी कोई पद रिक्त होता है तो वरिष्ठतम न्यायाधीश भारत का मुख्य न्यायाधीश बन जाता है।

कहने का अर्थ है कि नियुक्ति एक न्यायाधीश के रूप में ही होती थी लेकिन जो भी न्यायाधीश किसी मुख्य न्यायाधीश के सेवानिवृत्त वाले दिन सबसे वरिष्ठ होते थे, उन्हे ही मुख्य न्यायाधीश बना दिया जाता था।

हालाँकि, 25 अप्रैल 1973 को जब 13वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति S M Sikri सेवानिवृत्त हुए तब इस परंपरा का पालन नहीं किया गया और जस्टिस A N Ray को जस्टिस J M Shelat, A N Grover और N S Hegde के स्थान पर भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया।

क्योंकि ये तीनों न्यायाधीश जस्टिस A N Ray से वरिष्ठ थे लेकिन फिर भी इनकी नियुक्ति नहीं की गई थी इसीलिए इन जजों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।

◾ जनवरी 1977 में मुख्य न्यायाधीश A N Ray की सेवानिवृत्ति पर यह फिर से फिर से यही हुआ। सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस Hans Raj Khanna को हटा दिया गया और जस्टिस Mirza Hameedullah Beg को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और परिणामस्वरूप जस्टिस खन्ना ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।

हालाँकि, मुख्य न्यायाधीश बेग की सेवानिवृत्ति के बाद, वरिष्ठ न्यायाधीश Y. V. Chandrachud को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और वरिष्ठता के नियम का फिर से पालन किया गया।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ये यह कहा कि वरिष्ठतम न्यायाधीश को हमेशा मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाएगा लेकिन अगर वह नियुक्त किए जाने के योग्य न हो, तो नहीं किया जाएगा। कोर्ट की इस व्याख्या से जजों और चीफ जस्टिस की नियुक्ति पर संदेह पैदा हो गया। साथ ही कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव भी हुआ।

यह सब 1981 में एक याचिका दायर करने के परिणामस्वरूप हुआ, जिसे प्रसिद्ध रूप से प्रथम न्यायाधीश केस 1981 (First Judges Case 1981) कहा जाता है।

साल 1993 और 1998 में क्रमशः द्वितीय न्यायाधीश केस 1993 और तीसरे न्यायाधीश केस 1998 हुआ और इन तीनों मामलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) स्थापित करके न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांत को विकसित किया।

प्रथम न्यायाधीश मामला (First Judges Case), 1982

दरअसल उस समय, 2 न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके स्थानांतरण पर सरकार के एक आदेश को चुनौती देते हुए विभिन्न वकीलों द्वारा विभिन्न उच्च न्यायालयों में बहुत सारी रिट याचिकाएँ दायर की गई थीं। साथ ही उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता पर भी सवाल उठाया गया था।

कई याचिकाओं में से एक याचिका एसपी गुप्ता द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने उस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में कार्य किया था।

इन याचिकाओं की वैधता को कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा चुनौती दिया गया। और इस तरह से इस मामले की सुनवाई एसपी गुप्ता बनाम भारत सरकार के नाम से हुई। 30 दिसंबर, 1981 को इस मामले में सात-न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया।

  • अपने फैसले में न्यायालय ने यह माना गया कि “परामर्श (consultation)” का अर्थ “सहमति (Concurrence)” नहीं है, बल्कि यह विचारों का आदान-प्रदान है।
  • कुल मिलाकर राष्ट्रपति के पास यह शक्ति बनी रही कि परामर्शदाताओं के विचारों को वो ओवरराइड कर सकते थे।

लेकिन बात इतने पर खत्म नहीं हुई, लगभग 10 साल बाद फिर से यह मामला कोर्ट के समक्ष आया। और इस बार यह द्वितीय न्यायाधीश मामला कहलाया।

द्वितीय न्यायाधीश मामला (Second judges case), 1993

द्वितीय न्यायाधीश मामला (Second judges case) 1993 – सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCARA) बनाम भारत संघ को दूसरे न्यायाधीशों के मामले के रूप में जाना जाता है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ के फैसले को खारिज कर दिया और निम्नलिखित बिंदुओं को निर्धारित किया;

  • इस निर्णय से “परामर्श (consultation)” का अर्थ सहमति (Concurrence) कर दिया गया। यानी कि मुख्य न्यायाधीश के परामर्श को लिए राष्ट्रपति के लिए बाध्य कर दिया गया।
  • यह व्यवस्था किया गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश 2 वरिष्ठ न्यायाधीशों से विचार-विमर्श करने के बाद सिफारिशें करेगा। और राष्ट्रपति का काम बस उस सिफ़ारिश को प्रभावी बनाना होगा। और यही वह मामला है जिसके परिणामस्वरूप कॉलेजियम प्रणाली का जन्म हुआ।

तीसरा न्यायाधीश मामला (Third judges case), 1998

तीसरा न्यायाधीश मामला (Third judges case) 1998 – यह मामला का ही विस्तार है। इस मामले के माध्यम से न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली में कुछ प्रावधान जोड़ दिया।

अब प्रावधान ये बनाया गया कि मुख्य न्यायाधीश को चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से सलाह करनी होगी, इनमे से अगर दो का मत भी पक्ष में नहीं है तो वह नियुक्ति के लिए सिफ़ारिश नहीं भेज सकता।

◾ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों से सलाह करनी होगी। और ट्रान्सफर के लिए सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ दोनों उच्च न्यायालय (जहां भेजा जाना है और जहां से भेजा जाना है) से भी परामर्श करनी होगी।

यहीं जो 5 न्यायाधीशों का कॉलेजियम है यह आज भी चल रहा है। लेकिन विवाद अभी भी खत्म नहीं हुआ। वो इसीलिए क्योंकि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है और ये लोकतांत्रिक मूल्यों पर खड़ा नहीं उतरता है।

तो इसी कोलेजियम व्यवस्था को ठीक करने के उद्देश्य से साल 2014 में 99वां संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम लाया गया जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बने कॉलेजियम सिस्टम को हटाकर एक नए निकाय राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया गया।

इसी संविधान संशोधन की मदद से अनुच्छेद 124क, 124ख और 124ग को संविधान में डाला गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को यह व्यवस्था पसंद नहीं आया, और फिर चतुर्थ न्यायाधीश मामले में इसके विपक्ष में फैसला सुनाया।

चतुर्थ न्यायाधीश मामला (Fourth Judges Case), 2015

चतुर्थ न्यायाधीश मामला (Fourth Judges Case) 2015 – सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड-एसोसिएशन और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले को फोर्थ जजेस केस के रूप में जाना जाता है।

इस मामले में अदालत ने 4:1 के बहुमत से, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अमान्य कर दिया और संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया। और इस तरह पुरानी कोलेजियम सिस्टम पुनः बहाल हो गया।

तो कुल मिलाकर यही है कॉलेजियम सिस्टम, जो आज के समय में एक विवादित सिस्टम का रूप ले चुका है। लेकिन सवाल आता है कि आखिर 99वां संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से जो न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम लाया गया, उसमें ऐसा क्या था कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग [National Judicial Appointment Commission] (NJAC):

जैसा कि हमने ऊपर भी समझा कि कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) स्थापित करके सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांत को विकसित किया। जो कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की दृष्टि से बहुत ही अच्छा कदम था लेकिन कुछ चीज़ें इसकी बहुत ही बुरी थी; जैसे कि

(1) पारदर्शिता का अभाव: आम जनता को न्यायधीशों के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाता है। किसको नियुक्त किया जा रहा है, क्यों किया जा रहा है, यह सब एक राज बनकर रह जाता है।

(2) लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी: लोकतंत्र चेक एंड बैलेन्स सिस्टम पर काम करता है। यानि कि कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं विधायिका तीनों एक-दूसरे के काम में अनावश्यक दखल भी नहीं देते हैं लेकिन जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे को करेक्ट करते चलते हैं। चूंकि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका न के बराबर रह गई है; इसने एक लॉबी को जन्म दिया जो कि अपने पसंद के न्यायाधीशों की नियुक्ति पर बल देता है।

(3) जनता के प्रति जवाबदेह न होना: चाहे जो भी टेक्निकली न्यायपालिका भी सरकार का ही एक हिस्सा होता है और वो भी अंततः जनता के प्रति जवाबदेह होता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को मिले अथाह पावर ने कहीं न कहीं न्यायपालिका को रास्ते से भटका दिया है।

इन्हीं सब कारणों के चलते भारत सरकार ने साल 2014 में 99वां संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से संविधान में अनुच्छेद 124A, 124B, और 124C को जोड़ा और कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) की जगह पर एक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना की।

अनुच्छेद 124A – राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की संरचना

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) नामक एक आयोग होगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात :-

(क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति — पदेन अध्यक्ष ;
(ख) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से ठीक नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीश — पदेन सदस्य;
(ग) संघ का विधि और न्याय का भारसाधक मंत्री — पदेन सदस्य;
(घ) प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और लोकसभा में विपक्ष के नेता या जहां ऐसा कोई विपक्ष का नेता नहीं है वहाँ, लोक सभा में सबसे बड़े एकल विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनने वाली समिति द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने वाले दो विख्यात व्यक्ति — सदस्य:

परंतु विख्यात व्यक्तियों में से एक विख्यात व्यक्ति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों अथवा स्त्रियॉं में से नामनिर्दिष्ट किया जाएगा। हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि यह विख्यात व्यक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए नामनिर्दिष्ट (Nominate) किया जाएगा और पुनःनामनिर्देशन (re-nomination) का पात्र नहीं होगा।

Article 124B – आयोग के कार्य

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे, —

(क) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों तथा उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की सिफारिश करना;

(ख) उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालेय में स्थानांतरण करने की सिफारिश करना ; और

(ग) यह सुनिश्चित करना कि वह व्यक्ति, जिसकी सिफारिश की गई है, सक्षम और सत्यनिष्ठ है।

Article 124C – विधि बनाने की संसद की शक्ति

इस खंड के तहत संसद, विधि द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया विनियमित कर सकेगी तथा आयोग को विनियमों द्वारा उसके कृत्यों के निर्वहन, नियुक्ति के लिए व्यक्तियों के चयन की रीति और ऐसे अन्य विषयों के लिए, जो उसके द्वारा आवश्यक समझे जाएं, प्रक्रिया अधिकथित करने के लिए सशक्त कर सकेगी।

कुल मिलाकर इस खंड के तहत इस संबंध में विधि बनाने की अंतिम शक्ति संसद को दे दिया गया। और इस तरह से संसद और कार्यपालिका की भूमिका को सशक्त किया गया।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के बारे में हमने जो भी अभी पढ़ा उसे सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन (SCARA) बनाम भारत सरकार 2016 द्वारा उच्चतम न्यायालय ने 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा समाप्त कर दिया गया है। और इसे समाप्त करने के पीछे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary) को कारण बनाया।

Collegium System Current Status

  • न्यायिक नियुक्तियों में, राष्ट्रपति के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की राय को ध्यान में रखना अनिवार्य है।
  • चूंकि कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) प्रभाव में है इसीलिए CJI की राय सरकार के लिए बाध्यकारी है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के कम से कम चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम के साथ उचित परामर्श के बाद CJI की राय का गठन किया जाना चाहिए।
  • अगर दो जज भी प्रतिकूल राय देते हैं, तो उसे सरकार को सिफारिश नहीं भेजनी चाहिए।

Closing Remarks: Collegium System

भारत में कॉलेजियम प्रणाली देश की न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण विकास रही है। न्यायिक व्याख्या के माध्यम से शुरू की गई, प्रणाली ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के लिए।

वर्षों से, कॉलेजियम प्रणाली प्रशंसा और आलोचना दोनों के अधीन रही है। कई अधिवक्ताओं का तर्क है कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मजबूत करता है, यह सुनिश्चित करता है कि नियुक्तियां पूरी तरह से योग्यता और न्यायिक कौशल पर की जाती हैं। यह न्यायपालिका की अखंडता और विश्वसनीयता को बनाए रखने में मदद करता है और नियुक्ति प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकता है।

हालांकि, कॉलेजियम सिस्टम के आलोचकों ने पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के बारे में चिंता जताई है। स्पष्ट दिशानिर्देशों या मापदंडों के बिना चयन प्रक्रिया, बंद दरवाजों के पीछे किए गए निर्णयों , और अपारदर्शी व्यवस्था होने के कारण इस प्रणाली की आलोचना की गई है।

ज़्यादातर लोग नियुक्ति प्रक्रिया में अधिक खुलेपन और सार्वजनिक भागीदारी की आवश्यकता को महसूस करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने खुद भी कई मौकों पर कॉलेजियम सिस्टम में सुधार की जरूरत को माना है।

हाल के वर्षों में, नियुक्ति प्रक्रिया के कुछ पहलुओं को जनता के सामने प्रकट करके अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के प्रयास किए गए हैं। लेकिन ये नाकाफी साबित हुए हैं।

तो कुल मिलाकर यही है कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। संबंधित सभी लेखों को अवश्य पढ़ें और हमारे साथ बने रहें;

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https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_former_judges_of_the_Supreme_Court_of_India
https://main.sci.gov.in/chief-justice-judges
https://sociallawstoday.com/three-judges-case/#SECOND_JUDGES_CASE_1993
https://indiankanoon.org/doc/753224/
https://en.wikipedia.org/wiki/Collegium_system
https://byjus.com/free-ias-prep/collegium-system/#First%20judges%20case,%201982
https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s380537a945c7aaa788ccfcdf1b99b5d8f/uploads/2023/05/2023050195.pdf
https://wonderhindi.com/article-124
https://wonderhindi.com/supreme-court-of-india-explained-in-hindi/