यह लेख अनुच्छेद 141 (Article 141) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 141


📜 अनुच्छेद 141 (Article 141) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना — उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी।
अनुच्छेद 141

THE UNION JUDICIARY
141. Law declared by Supreme Court to be binding on all courts.— The law declared by the Supreme Court shall be binding on all courts within the territory of India.
Article 141

🔍 Article 141 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 141 (Article 141) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

अनुच्छेद-140 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 141 – उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 141  उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होने (Law declared by Supreme Court to be binding on all courts) के बारे में है।

अनुच्छेद 141 कहता है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर (binding) होगी।

इसका मतलब यह है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले देश की अन्य सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी हैं, और सभी न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को इसका पालन करना होता है।

चूंकि सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च न्यायालय है, इसीलिए इसके निर्णय कानून के सभी मामलों पर अंतिम और आधिकारिक माने जाते हैं।

Article 141 के तहत क्या बाध्यकारी है?

अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी होने वाला कानून केवल एक मामले में न्यायालय द्वारा उठाए गए और तय किए गए बिंदुओं पर टिप्पणियों तक ही विस्तारित होगा।

कहने का अर्थ है कि किसी निर्णय के सभी पहलू बाध्यकारी नहीं होते हैं बल्कि किसी निर्णय को या उसके कुछ हिस्से को जो चीज़ बाध्यकारी बनाता है वह है अंतर्निहित अवधारणा (underlying concept)।

एक ही प्रकार के मामले, समय, काल, परिस्थिति एवं केस की प्रकृति के कारण अलग रूप अख़्तियार करते हैं। ऐसे में पिछले मामले में क्या निर्णय दिया गया था यह मायने नहीं रखता है बल्कि मायने यह रखता है कि किन आधारों पर सुनवाई हुई थी, किस तरह के प्रश्न रखे गए थे इत्यादि।

“एक निर्णय उसके निष्कर्ष के कारण नहीं बल्कि उसके तर्क और उसमें निहित सिद्धांत के संबंध में बाध्यकारी है।”

जे.जे. शर्मा राव बनाम केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी

उच्चतम न्यायालय के कई ऐसे निर्णय होते हैं/हो सकते हैं, जिनमें अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी बल नहीं होता है; जैसे कि,

  • अगर निर्णय के पीछे कोई वैध औचित्य या तर्क नहीं है।
  • निर्णय उस समय के समस्या के सबसे महत्वपूर्ण पहलू को सुलझाने में विफल रहता है।
  • अदालत में या एक लिखित फैसले में न्यायाधीश की राय जो कि निर्णय के लिए आवश्यक नहीं हो, मिसाल के तौर पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं। इसे अंग्रेजी में obiter dictum कहा जाता है।

कुल मिलाकर यह याद रखें कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का सामान्य सिद्धांत (general principle of law) प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता है, जिसमें वे भी शामिल हैं जो उस आदेश के पक्षकार नहीं हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय सभी अधीनस्थ न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं, भले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हल किए गए मामले के तथ्य निचली अदालत के समक्ष परिस्थितियों से भिन्न हों। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार, यदि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों ने कानून की घोषणा का गठन किया है, तो वे सभी निचली अदालतों पर बाध्यकारी हैं।

“अदालतों की पदानुक्रमित प्रणाली में। प्रत्येक निचले स्तर के लिए आवश्यक है कि वह उच्च स्तरों के निर्णय को निष्ठापूर्वक स्वीकार करे।

कैस्पेल कंपनी लिमिटेड बनाम ब्रूम

Important Terminologies

आइये अब इससे संबंधित कुछ शब्दावलियों को समझ लेते हैं;

Res judicata (पूर्वन्याय या प्रांन्याय) का क्या अर्थ है?

पूर्वन्याय या प्रांन्याय न्याय का एक सिद्धान्त है जिसके अनुसार यदि किसी विषय पर अन्तिम निर्णय दिया जा चुका है तो यह मामला फिर से उसी न्यायालय या किसी दूसरे न्यायालय में नहीं उठाया जा सकता। अर्थात् प्रांन्याय के सिद्धान्त का उपयोग करते हुए न्यायालय ऐसे मामलों को पुनः उठाने से रोक देगा।

Obiter Dictum का अर्थ क्या है?

ओबिटर डिक्टम एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अर्थ है “कही गई अन्य बातें”, अर्थात, कानूनी राय में एक टिप्पणी जो किसी न्यायाधीश या मध्यस्थ द्वारा “पारित होने में कही गई” है। कहने का अर्थ है कि मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश द्वारा कई ऐसी बातें कही जाती है जो कि निर्णय के लिए आवश्यक नहीं होता है और मिसाल के तौर पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं।

Stare decisis का क्या अर्थ है?

स्टेयर डिसिसिस एक लैटिन मुहावरा है जिसका अर्थ है “निर्णित मामलों के साथ खड़े रहना।” कानूनी संदर्भ में, यह इस सिद्धांत को संदर्भित करता है कि अदालतों को मिसाल का पालन करना चाहिए और इसी तरह के मामलों में किए गए पिछले फैसलों का पालन करना चाहिए।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 में यह कहा गया है कि निचली अदालतों को उच्च न्यायालयों के फैसलों का पालन करना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट स्टेयर डिसिसिस थ्योरी के अधीन नहीं है; नतीजतन, यह अपने स्वयं के निर्णयों से बाध्य नहीं है और असाधारण या अद्वितीय परिस्थितियों में या जनता की अधिक भलाई के लिए ऐसा करते समय उन्हें उलट सकता है। आप देख सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व के निर्णयों को कई बार बदल देता है।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि यह एक कठोर नियम नहीं है, और अदालतों को कुछ परिस्थितियों में मिसाल से हटने का विवेक है, जैसे कि;

(पहला) यदि वे मानते हैं कि ऐसा करना आवश्यक है, या

(दूसरा) यदि पहले का निर्णय कानून की गलत व्याख्या पर आधारित था, या

(तीसरा) यदि कानून में या मामले की परिस्थितियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं जो पहले के निर्णय को अब लागू नहीं होते हैं।

theory of precedents (मिसाल का सिद्धांत) क्या है?

मिसाल का सिद्धांत जिसे स्टेयर डिसीसिस (जिसे कि अभी हमने ऊपर समझा) के नाम से भी जाना जाता है, यानी फैसले के पक्ष में खड़े रहना, इस सिद्धांत पर आधारित है कि एक जैसे मामलों का एक जैसा फैसला होना चाहिए। एक बार जब न्यायाधीश द्वारा सिद्धांत को लागू करके एक मामले का फैसला किया जाता है, तो समान तथ्यों पर एक मामला जो भविष्य में उत्पन्न हो सकता है, उसी सिद्धांत को लागू करके तय किया जाना चाहिए।

कानून का सामान्य सिद्धांत (General Principle of Law) क्या है?

कानून का सामान्य सिद्धांत एक मूलभूत कानूनी सिद्धांत या नियम को संदर्भित करता है जिसे सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त है और कानूनी प्रणालियों में लागू किया जाता है। यह एक व्यापक और मौलिक सिद्धांत है जो कानून के विभिन्न क्षेत्रों में कानूनी तर्क और निर्णय लेने का मार्गदर्शन करता है।

यह एक ऐसा सिद्धांत भी हो सकता है जिसे उन लोगों द्वारा व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है जिनके कानूनी आदेश ने एक निश्चित स्तर के परिष्कार को प्राप्त कर लिया है। जैसे कि अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई मिसालें, कानून का सामान्य सिद्धांत का रूप ले सकता है।

कुल मिलाकर, कानून के सामान्य सिद्धांत विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होते हैं, जिनमें प्रथागत प्रथाएं, कानूनी परंपराएं, विभिन्न न्यायालयों में मान्यता प्राप्त कानूनी सिद्धांत और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत शामिल हैं।

ये सिद्धांत अक्सर कानूनों की व्याख्या करने, कानून में अंतराल को भरने और कानूनी विवादों को हल करने के लिए एक आधार के रूप में काम करते हैं जहां विशिष्ट कानून चुप या अपर्याप्त हो सकते हैं।

⚫ ⚫ विस्तार से समझेंउच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of Supreme Court)

तो यही है अनुच्छेद 141 (Article 141), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

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FAQ. अनुच्छेद 141 (Article 141) क्या है?

अनुच्छेद 141  उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होने (Law declared by Supreme Court to be binding on all courts) के बारे में है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।